Saturday, 17 March 2018

डबरी ने दिलाई बेरोजगारी और मजदूरी पर 'विजय'


डबरी ने दिलाई बेरोजगारी और मजदूरी पर 'विजय'
कोण्डागांव जिले के फरसगांव विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-सिंगारपुरी के विजय मरकाम ने बेरोजगारी और मजदूरी पर, आत्मनिर्भरता की विजय पाने की दिशा में एक नया इतिहास रचा है । कल तक केवल बारिश में धान की फसल लेकर मजदूरी पर जीवन-यापन करने वाले विजय ने, आज मत्स्य पालन कर खुद को और परिवार को सफल व्यवसाय से जोड़ लिया है । वे आस-पास के गांवों में केवल मजदूरी पर निर्भर रहने वालों के लिए स्व-रोजगार के प्रेरणा-स्त्रोत बन गये हैं ।

अपने गांव के अन्य ग्रामीणों की तरह मजूदरी पर जीवन-यापन करने वाले विजय के लिए दो-वक्त की रोटी का इंतजाम करना इतना आसान नहीं था, जितना बाकी लोगों के लिए था । परिवार में सदस्यों की संख्या 18 होने के कारण, यह हर दिन का एक संघर्ष हुआ करता था । इस संघर्ष में चाचा-चाची, बड़े भाई-भाभी और पत्नी का साथ तो था, किन्तु यह परिवार के सदस्यों को अच्छा जीवन देने में नाकाफी साबित हो रहा था । अपने परिवार को बेहतर जीवन देने की ललक ने उसे एक दिन ग्राम पंचायत पहुँचा दिया । जहाँ उसने ग्राम पंचायत की सरपंच श्रीमती सहादई मरकाम को बेहतर जीवन-यापन की इच्छा से अवगत कराया । सरपंच की सलाह पर उसने अपने खेत में डबरी निर्माण का आवेदन ग्राम पंचायत को सौंप दिया । सरपंच की सलाह और उसकी इच्छाशक्ति रंग लाई । दिनांक 20 मार्च 2017 को विजय की खेत में डबरी के निर्माण का कार्य शुरु हो गया । तकनीकी सहायक सुश्री प्रियंका ठाकुर के तकनीकी मार्गदर्शन में महात्मा गांधी नरेगा से 2 लाख 68 हजार रुपयों की लागत डबरी बनकर तैयार हो गई ।
कहते हैं न की आगे बढ़ने की इच्छा रखने वाले के लिए उम्मीद  की एक किरण ही काफी होती है । महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत बनी यह डबरी, विजय के लिए बदलाव की एक उम्मीद बनकर सामने आई । बारिश में लबालब होने के बाद, उसने डबरी में मत्स्य बीज प्रक्षेत्र का निर्माण का व्यवसाय शुरु किया । इसमें उसने रोहा, कातला, बिटकप और कामनकार जैसी प्रजाति की मछली बीजों को डाला । मत्स्य बीज संवर्धन से विजय मरकाम को इतना लाभ हुआ है कि वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर घरेलू जरूरतों को पूरा करने में पूर्णत: सक्षम हो गया है । विजय का कहना है कि वह अब रोजी तलाशते नहीं, बल्कि अपनी ही डबरी और खेत में अपना पसीना बहाते हैं । 

सुख-दुख में साथी रही विजय की जीवन-साथी श्रीमती सरिता मरकाम बताती हैं कि डबरी में मछली पालन करने से हमें दोहरा फायदा हुआ । पहली बार में ही हमें डबरी से 50 किलो मछली मिली, जिसे बाजार में बेचने का बाद 7 हजार 500 रुपयों का फायदा हुआ । वहीं बच्चों को उनके शारीरिक विकास के लिए मछली के रुप में पोषक आहार भी मिल रहा है ।   




महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...