डबरी ने
दिलाई बेरोजगारी और मजदूरी पर 'विजय'
कोण्डागांव
जिले के फरसगांव विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-सिंगारपुरी के विजय मरकाम ने बेरोजगारी
और मजदूरी पर, आत्मनिर्भरता की विजय पाने की दिशा में एक नया इतिहास रचा है । कल
तक केवल बारिश में धान की फसल लेकर मजदूरी पर जीवन-यापन करने वाले विजय ने, आज
मत्स्य पालन कर खुद को और परिवार को सफल व्यवसाय से जोड़ लिया है । वे आस-पास के
गांवों में केवल मजदूरी पर निर्भर रहने वालों के लिए स्व-रोजगार के प्रेरणा-स्त्रोत
बन गये हैं ।
अपने गांव
के अन्य ग्रामीणों की तरह मजूदरी पर जीवन-यापन करने वाले विजय के लिए दो-वक्त की
रोटी का इंतजाम करना इतना आसान नहीं था, जितना बाकी लोगों के लिए था । परिवार में
सदस्यों की संख्या 18 होने के कारण, यह हर दिन का एक संघर्ष हुआ करता था । इस
संघर्ष में चाचा-चाची, बड़े भाई-भाभी और पत्नी का साथ तो था, किन्तु यह परिवार के
सदस्यों को अच्छा जीवन देने में नाकाफी साबित हो रहा था । अपने परिवार को बेहतर
जीवन देने की ललक ने उसे एक दिन ग्राम पंचायत पहुँचा दिया । जहाँ उसने ग्राम
पंचायत की सरपंच श्रीमती सहादई मरकाम को बेहतर जीवन-यापन की इच्छा से अवगत कराया ।
सरपंच की सलाह पर उसने अपने खेत में डबरी निर्माण का आवेदन ग्राम पंचायत को सौंप
दिया । सरपंच की सलाह और उसकी इच्छाशक्ति रंग लाई । दिनांक 20 मार्च 2017 को विजय
की खेत में डबरी के निर्माण का कार्य शुरु हो गया । तकनीकी सहायक सुश्री प्रियंका
ठाकुर के तकनीकी मार्गदर्शन में महात्मा गांधी नरेगा से 2 लाख 68 हजार रुपयों की
लागत डबरी बनकर तैयार हो गई ।
कहते हैं न
की आगे बढ़ने की इच्छा रखने वाले के लिए उम्मीद की एक किरण ही काफी होती है । महात्मा गांधी
नरेगा के अंतर्गत बनी यह डबरी, विजय के लिए बदलाव की एक उम्मीद बनकर सामने आई ।
बारिश में लबालब होने के बाद, उसने डबरी में मत्स्य बीज प्रक्षेत्र का निर्माण का
व्यवसाय शुरु किया । इसमें उसने रोहा, कातला, बिटकप और कामनकार जैसी प्रजाति की
मछली बीजों को डाला । मत्स्य बीज संवर्धन से विजय मरकाम को इतना लाभ हुआ है कि वह
अपने परिवार का पालन-पोषण कर घरेलू जरूरतों को पूरा करने में पूर्णत: सक्षम हो गया
है । विजय का कहना है कि वह अब रोजी तलाशते नहीं, बल्कि अपनी ही डबरी और खेत में
अपना पसीना बहाते हैं ।
सुख-दुख
में साथी रही विजय की जीवन-साथी श्रीमती सरिता मरकाम बताती हैं कि डबरी में मछली
पालन करने से हमें दोहरा फायदा हुआ । पहली बार में ही हमें डबरी से 50 किलो मछली
मिली, जिसे बाजार में बेचने का बाद 7 हजार 500 रुपयों का फायदा हुआ । वहीं बच्चों
को उनके शारीरिक विकास के लिए मछली के रुप में पोषक आहार भी मिल रहा है ।