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Friday, 6 August 2021

वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ बेचकर महिलाओं ने 6 महीनों में ही कमाए 6 लाख रूपए

मनरेगा से बने 30 टांकों में वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ का उत्पादन.

समूह की महिलाएं ज्यादा कमाई के लिए बकरीपालन भी कर रहीं, 70 हजार रूपए की खरीदी बकरियां.


स्टोरी/रायपुर/धमतरी/06 अगस्त, 2021.
महिलाएं घर के भीतर और बाहर दोनों जगह मोर्चा संभाल रही हैं। घर के काम निपटाने के बाद वे स्वसहायता समूह बनाकर स्वरोजगार कर आर्थिक तौर पर भी स्वावलंबी बन रही हैं। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) से जुड़ीं धमतरी जिले के कुरूद विकासखंड की गातापार (को) की महिलाएं अपनी उद्यमिता से सफलता की नई इबारत लिख रही हैं। वहां की ‘कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह’ की महिलाओं ने वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ उत्पादन का काम शुरू किया और छह महीनों में ही छह लाख रूपए की कमाई कर लीं। गांव में वर्मी कंपोस्ट निर्माण के लिए महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से बनाए गए 30 टांकों ने उनकी सफलता की बुनियाद रखी। अपनी सीखने की ललक, हुनर और मेहनत से उन्होंने इसे परवान चढ़ाया।

सामान्य बचत से शुरूआत कर समूह के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने वाली इन महिलाओं का सफर वित्तीय वर्ष 2020-21 में तब शुरू हुआ, जब पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा से गांव में आठ लाख रूपए की लागत से सामुदायिक वर्मी कम्पोस्ट इकाई का निर्माण हुआ। ग्राम पंचायत ने चरणबद्ध तरीके से 30 टांके बनवाएं। इस काम में 88 मनरेगा श्रमिकों को सीधा रोजगार मिला। इस दौरान 561 मानव दिवसों का सृजन कर श्रमिकों को एक लाख रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया। टांकों के निर्माण के दौरान ही समूह की महिलाओं ने कृषि विभाग की मदद से जैविक खाद उत्पादन का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया था। टांके बनने के बाद वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए पंचायत ने तत्काल इन्हें कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह को सौंप दिया। समूह ने इसी साल (2021 में) जैविक खाद बनाने का काम शुरू किया और पिछले छह महीनों में ही 295 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री कर एक लाख 33 हजार रूपए कमाए। जैविक खाद के साथ ही महिलाएं इसे तैयार करने में सहयोगी केंचुएं भी बेच रही हैं। बीते छह महीनों में 24 क्विंटल केंचुआ बेचकर महिलाओं ने चार लाख 62 हजार रूपए का शुद्ध मुनाफा कमाया है।

कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती मालती यादव बताती हैं कि उनके 11 सदस्यों वाले समूह ने पंचायत से टांका मिलने के बाद वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन शुरू किया था। प्रत्येक टांका में भराव की क्षमता 30 से 35 क्विंटल की है। समूह ने पिछले छह माह में 320 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट बनाया है, जिसमें से 295 क्विंटल बेचा जा चुका है। इससे समूह को दो लाख 95 हजार रूपए मिले हैं। लागत एवं अन्य खर्चों को काटकर एक लाख 33 हजार रूपए की शुद्ध आमदनी हुई है।

समूह की सचिव श्रीमती निर्मला साहू बताती हैं कि वे लोग महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित सामुदायिक वर्मी कम्पोस्ट इकाई में जैविक खाद के साथ ही केंचुआ उत्पादन भी कर रही हैं। उन्होंने अब तक 50 क्विंटल केंचुआ का उत्पादन कर लिया है। इनमें से 24 क्विंटल की बिक्री भी हो चुकी है, जिससे समूह को चार लाख 80 हजार रूपए प्राप्त हुए हैं। इकाई के संधारण एवं केंचुआ खरीदी पर हुए खर्चों को काटने के बाद समूह को इससे चार लाख 62 हजार रूपए की शुद्ध आय हुई है। समूह की सदस्य श्रीमती गौरी ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट से हुई कमाई से समूह ने बकरीपालन शुरू किया है। इसके लिए 70 हजार रूपए की बकरियां खरीदी गई हैं। उनका समूह भविष्य में पशुपालन के काम को आगे बढ़ाना चाहता है। इसके लिए 50 हजार रूपए अलग से रखे गए हैं। वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए गौठान में भी 50 हजार रूपये लगाए हैं।

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एक नजरः-
ग्राम पंचायत- गातापार (को.), विकासखण्ड- कुरुद, जिला- धमतरी,
कार्य का नाम- वर्मी कम्पोस्ट टांका निर्माण कार्य (30 नग), क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, पिनकोड- 493663
स्वीकृत वर्ष- 2020-21, स्वीकृत राशि- रुपए 8.09 लाख, सृजित मानव दिवस- 561, मजदूरी भुगतान- रुपए 1.06 लाख
व्यय राशि- 7.03 लाख, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 88, जी.पी.एस. लोकेशन- 20°52'27.85" N 81°32'57.66"E,
कार्य का कोड- 3309002006/RS/1111362455, 309002006/RS/1111364347, 3309002006/RS/1111363820, 3309002006/RS/1111361562, 3309002006/RS/1111366730


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रिपोर्टिंग - श्री धरम सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी, छत्तीसगढ़।
तथ्य व आंकड़े – श्रीमती कुंति देवांगन, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-कुरुद, जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़।
लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 5 August 2021

मनरेगा से बने तालाब ने दिया आजीविका का नया साधन, बेटी की बीमारी में साबित हुई संजीवनी

मछलीपालन से 6 माह में ही 50 हजार की कमाई,
सिंचाई की व्यवस्था होने से खेती में भी बढ़ी आमदनी.


थैलेसीमिया की बिमारी से जूझ रही है 10 साल की पूर्णिमा.


स्टोरी/रायपुर/कोरिया/05 अगस्त, 2021. महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) कई रूपों में लोगों का जीवन बदल रहा है। जरूरत के समय सीधा रोजगार देने के साथ ही आजीविका के साधनों को भी मजबूत कर रहा है। ग्रामीणों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए रोजगार के वैकल्पिक साधन भी निर्मित कर रहा है। कोरिया जिले के किसान श्री धर्मपाल सिंह के जीवन में मनरेगा हवा का सुखद झोंका लेकर आया है। खेत में मनरेगा से बने तालाब में मछलीपालन कर वे अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं। सिंचाई का साधन मिलने से खेती में अब जोखिम कम हो गया है। पैदावार बढ़ गई है और मुनाफा भी। बेहतर हुई माली हालत के कारण बेटी के थैलेसीमिया से पीड़ित होने पर अच्छा उपचार करा पाए। इलाज हेतु आर्थिक मदद के लिए किसी का मुंह नहीं ताकना पड़ा। मुश्किल वक्त में महात्मा गांधी नरेगा से बना तालाब संजीवनी बन गया।

मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड के मुसरा ग्राम पंचायत के आश्रित गांव बाही के साढ़े तीन एकड़ जोत के छोटे किसान हैं श्री धर्मपाल सिंह। महात्मा गांधी नरेगा से खेत में तालाब खुदाई के पहले उनकी कृषि बारिश के भरोसे थी। धान की खेती के बाद आजीविका के लिए वे महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत होने वाले कार्यों तथा गांव के दूसरे बड़े किसानों के यहां मिलने वाले कामों पर निर्भर थे। अपनी पत्नी श्रीमती लक्ष्मी के साथ मजदूरी कर परिवार का पेट पालते थे। पांच सदस्यों के परिवार में जब उनकी तीसरी संतान दस साल की पूर्णिमा को थैलेसीमिया नामक रक्त न बनने की बीमारी हुई, तो परिवार परेशानी में आ गया। श्री धर्मपाल सिंह के सामने परिवार के भरण-पोषण के साथ बेटी के लगातार चलने वाले इलाज के लिए पैसों के इंतजाम की भी चुनौती थी।

इस कठिन समय में सहायक मत्स्य अधिकारी श्री हिमांचल नाथ वर्मा की सलाह उम्मीद की किरण लेकर आई। उन्होंने आजीविका संवर्धन और आमदनी बढ़ाने के लिए श्री धर्मपाल सिंह को मछलीपालन की सलाह दी। महात्मा गांधी नरेगा के तहत खेत में तालाब निर्माण के लिए श्री धर्मपाल सिंह के आवेदन के ग्रामसभा में अनुमोदन के बाद वर्ष 2019-20 में इसके लिए तीन लाख रूपए मंजूर किए गए। तालाब खुदाई के लिए मछलीपालन विभाग को निर्माण एजेंसी बनाया गया। तालाब निर्माण के दौरान श्री धर्मपाल सिंह के परिवार को भी 84 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें 15 हजार रूपए की मजदूरी मिली।

खेत में तालाब के निर्माण से जहां कम बारिश की स्थिति में फसलों को बचाने का साधन मिल गया, तो वहीं इससे खेतों में नमी भी बनी रहने लगी। तालाब खुदाई के बाद पिछले साल से श्री धर्मपाल सिंह के खेतों में धान की अच्छी उपज होने लगी है। वे धान के बाद अब सब्जी की भी खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त कमाई होने लगी है। पिछले साल रबी सीजन में उन्होंने उड़द लगाकर एक क्विंटल उत्पादन प्राप्त किया था। तालाब में मछलीपालन का धंधा भी अच्छा चल रहा है। पिछले एक साल से बेटी के लगातार चल रहे इलाज में मछलीपालन से हो रही कमाई ने अच्छा संबल दिया है। थैलेसीमिया के कारण उसे हर माह खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। श्री धर्मपाल सिंह के मुश्किल समय में महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित तालाब ने बड़ा सहारा दिया है। बीते छह महीनों में उन्होंने मछली बेचकर 50 हजार रूपए कमाए हैं। इसकी बदौलत उन्होंने परिवार के भरण-पोषण और बेटी के इलाज के खर्च की चुनौतियों का मजबूती से सामना किया है। 

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एक नजरः-
कार्य का नाम- नवीन तालाब निर्माण कार्य, हितग्राही- श्री धर्मपाल पिता श्री विक्रम सिंह, क्रियान्वयन एजेंसी- मत्स्य विभाग
ग्राम पंचायत- मुसरा, विकासखण्ड- मनेन्द्रगढ़, जिला- कोरिया, कार्य का कोड- 3306004031/IF/1111333842
स्वीकृत वर्ष- 2018-19, स्वीकृत राशि- रुपए 3 लाख, सृजित मानव दिवस- 1441,
पूर्णता वर्ष- 2020-21, मजदूरी भुगतान- रुपए 2.54 लाख, कुल व्यय राशि- रुपए 2,54,948.00 मात्र
जी.पी.एस. लोकेशन- 23°34'84.38" N 82°19'85.76"E, पिनकोड- 497442

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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं आंकड़े - श्री रमणीक गुप्ता, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-मनेन्द्रगढ़, जिला-कोरिया, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

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Monday, 2 August 2021

खेतों में पेड़ों के बीच फसलें उगाईं तो होने लगी लाखों की कमाई

महात्मा गांधी नरेगा फलोद्यान ने बदली किसानों की तकदीर, आम उत्पादक किसान के रुप में मिली नई पहचान


स्टोरी/रायपुर/दंतेवाड़ा/02 अगस्त, 2021. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी नरेगा) से मिले संसाधनों और परस्पर सहकार की भावना ने दंतेवाड़ा के आठ किसानों की जिंदगी बदल दी है। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से लगे गीदम विकासखण्ड के कारली गाँव के आठ आदिवासी किसानों ने करीब दस हेक्टेयर भूमि में महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से आम के एक हजार पौधों लगाए थे। दस साल पहले रोपे गए ये पौधे अब 10 से 12 फीट के हरे-भरे फलदार पेड़ बन चुके हैं। पिछले छह वर्षों से ये किसान आम के पेड़ों के बीच अंतरवर्ती फसल के रुप में सब्जियों, दलहन-तिलहन एवं धान की उपज भी ले रहे हैं। आम की पैदावार के साथ अंतरवर्तीय खेती से उन्हें सालाना चार से पाँच लाख रुपयों की अतिरिक्त कमाई हो रही है। ये किसान अब अपने इलाके में आम उत्पादक कृषक के रुप में भी जाने-पहचाने लगे हैं।

दंतेवाड़ा कृषि विज्ञान केन्द्र और कारली गाँव के आदिवासी किसान श्री राजूराम कश्यप आम से खास बनने की इस कहानी के नायक हैं। श्री कश्यप के खेत की सीमा से गाँव के ही श्री छन्नू, श्री दसरी, श्री अर्जुल, श्री झुमरलाल, श्री पाली, श्री सुन्दरलाल और श्री पाओ की कृषि भूमि लगती है। इन आठों किसानों की कुल 16 हेक्टेयर जमीन में से दस हेक्टेयर सिंचाई के साधनों के अभाव में वर्षों से बंजर पड़ी थी। श्री राजूराम कश्यप की सबसे ज्यादा दो हेक्टेयर जमीन अनुपयोगी पड़ी थी। अपनी और साथी किसानों की इस समस्या को लेकर उन्होंने दंतेवाड़ा के कृषि विज्ञान केन्द्र में संपर्क किया। वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होंने साथी किसानों से चर्चा कर खाली पड़ी जमीन पर फलदार पौध लगाने की योजना पर काम शुरु किया।

किसानों की सहमति मिलने के बाद, कृषि विज्ञान केन्द्र ने वर्ष 2011-12 में महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत नौ लाख 56 हजार रुपयों की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त कर 25 एकड़ बंजर भूमि का फलोद्यान के रुप में विकसित करने का काम शुरु किया। वैज्ञानिक पद्धति से वहाँ एक हजार आम के पौधे रोपे गए, जिनमें 500 नग दशहरी और 500 नग बैगनफली प्रजाति के थे। प्रत्येक पौधों के बीच दस-दस मीटर की दूरी रखी गई, ताकि उनकी वृद्धि अच्छे से हो सके। समय-समय पर खाद का भी छिड़काव भी गया। परियोजना की सफलता के लिए यह जरुरी था कि फलोद्यान के संपूर्ण प्रक्षेत्र को सुरक्षित रखा जाए। इसके लिए 13वें वित्त आयोग की राशि के अभिसरण से 12 लाख 58 हजार रूपए की लागत से तार फेंसिग की गई एवं सिंचाई के लिए दो ट्यूबवेल भी खोदे गए। प्रक्षेत्र के आकार देखते हुए सिंचाई के साधनों की उपलब्धता एवं भू-जल स्तर बनाए रखने के लिए महात्मा गांधी नरेगा से आठ लाख 64 हजार रूपए की लागत से पांच कुंओं का भी निर्माण किया गया।

फलोद्यान के शुरूआती तीन सालों में पौधरोपण एवं संधारण के काम में भू-स्वामी आठ किसानों के साथ ही गांव के 45 अन्य परिवारों को भी सीधा रोजगार मिला। इस दौरान 3072 मानव दिवसों का रोजगार सृजन कर उन्हें पांच लाख आठ हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। दस साल पहले रोपे गए इन पौधों से अब हर साल चार हजार किलोग्राम आम का उत्पादन हो रहा है। इनकी बिक्री से किसानों को सालाना लगभग दो लाख रूपए की आय हो रही है।

कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. नारायण साहू बताते हैं कि इस परियोजना में शामिल आठों किसानों को आम के उत्पादन और अंतरवर्ती खेती के बारे में गहन प्रशिक्षण दिया गया है। इनकी मेहनत व लगन तथा कृषि विज्ञान केन्द्र के सुझावों को गंभीरता से अमल में लाने के कारण अच्छी पैदावार और अच्छी कमाई हो रही है। वे बताते हैं कि वृक्षारोपण के दौरान प्रत्येक पौधे के बीच दस-दस मीटर की दूरी रखी गई थी, जिनके बीच इन्हें अंतरवर्ती फसलों की खेती का भी प्रशिक्षण दिया गया था। अभी ये किसान बगीचे में सात हेक्टेयर में धान तथा एक हेक्टेयर में दलहन, एक हेक्टेयर में तिलहन और एक हेक्टेयर में सब्जियों की पैदावार ले रहे हैं। अंतरवर्ती फसलों से वे हर साल लगभग दो लाख रूपए की अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं।
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एक नजरः-

ग्राम पंचायत- कारली, विकासखण्ड- गीदम, जिला- दंतेवाड़ा,
क्रियान्वयन एजेंसी- कृषि विज्ञान केन्द्र, दंतेवाड़ा, जी.पी.एस. लोकेशन- 18°56'20.0"N 81°20'56.9"E, पिनकोड- 494441
अ) महात्मा गांधी नरेगा से
1. कार्य का नाम- फलदार आम बाग वृक्षारोपण (अवधि-3 वर्ष), कार्य का कोड- 3312005/DP/1014347,
स्वीकृत वर्ष- 2011-12, स्वीकृत राशि- रुपए 9.56 लाख, सृजित मानव दिवस- 3072, मजदूरी भुगतान- रुपए 5.08 लाख

2. कार्य का नाम- कूप निर्माण (6 नग), कार्य का कोड- 3312005021/IF/12141084, स्वीकृत वर्ष- 2011-12,
स्वीकृत राशि- रुपए 8.64 लाख, सृजित मानव दिवस- 1393, मजदूरी भुगतान- रुपए 0.86 लाख

ब) 13वें वित्त से
1. कार्य का नाम- तार फेंसिग व ट्यूब वेल खनन, स्वीकृत वर्ष- 2011-12, स्वीकृत राशि- रुपए 12.98 लाख

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परियोजना में शामिल हितग्राहीवार रकबाः-
क्रमांक
हितग्राही का नाम कुल रकबा (हे.) वृक्षारोपण हेतु उपयोग रकबा (हे.)
1. श्री राजूराम कश्यप 3.10 2
2. श्री छन्नू 2.60 1.50
3. श्री दसरी 1.30 0.70
4. श्री अर्जुल 1 0.30
5. श्री झुमरलाल 2.70 2
6. श्री पाली 2 1.5
7. श्री सुन्दरलाल 1.5 0.80
8. श्री पाओ 1.80 1.20

 

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रिपोर्टिंग - श्री राजेश वर्मा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़।
तथ्य व आंकड़े - डॉ. नारायण साहू, वरिष्ठ वैज्ञानिक व केन्द्र प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र, जिला-दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

Monday, 14 December 2020

आर्थिक संबल से संपन्नता की कहानी गढ़ते संपत

रायपुर। मेहनतकश आदिवासी परिवार मार्गदर्शन और संसाधनों का संबल पाकर संपन्नता की कहानी गढ़ लेते हैं। प्रगति की राह पर बढ़ते ऐसा ही परिवार है कोरिया जिले की ग्राम पंचायत पिपरिया में रहने वाले श्री संपत सिंह पिता बुद्धु सिंह का है। खरीफ की खेती के बाद परिवार की रोजी-रोटी चलाने के लिए अकुशल श्रम की कतार में लगने वाले इस परिवार को जब से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से डबरी के रुप में जल-संचय का साधन मिला है, तब से इनके जीवन जीने का तरीका ही बदल गया है।

     मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत पिपरिया के निवासी श्री संपत सिंह के छोटे से परिवार को अब बारिश के बाद के महीनों में रोजगार की कोई चिंता नहीं है। महात्मा गांधी नरेगा से एक छोटा सा जल-संग्रह का साधन पाकर, यह परिवार अपनी आर्थिक उन्नति की राह बनाने में लग गया है। डबरी बनने के बाद इन्होंने धान की दो-गुनी उपज ली और अब वे अपनी बाड़ी में दो क्विंटल आलू के अलावा टमाटर और मिर्च लगाकर खुशहाली के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं।

     श्री संपत के परिवार में माँ श्रीमती मानकुंवर, पिता श्री बुद्धु सिंह और पत्नी श्रीमती सुनीता को मिलाकर कुल चार सदस्य हैं। यद्यपि पिता की उम्र 60 साल से अधिक हो चुकी है और वे अब पहले की तरह खेतों में काम नहीं करते हैं, फिर भी उनके नाम से स्वीकृत हुई यह डबरी खेतों में श्री संपत को उनके पिता के होने का एहसास निरंतर कराती रहती है। खेतों में डबरी निर्माण की आवश्यकता के प्रश्न पर श्री संपत ने उत्साहपूर्वक बताया कि उनके पिता के नाम पर गाँव में कुल आठ एकड़ कृषि भूमि है, जिसमें से चार एकड़ भूमि घर से लगकर है। सिंचाई साधनों के अभाव में पूरी की पूरी जमीन असिंचित थी। गाँव में उनके चाचा और आस-पड़ोस के किसानों के खेतों में डबरी बनने के बाद से उनकी खेती और जीवन में आये परिवर्तन ने ही उन्हें अपने खेत में डबरी बनाने के लिए प्रेरित किया था। ग्राम पंचायत की मदद से उनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से डबरी बनी है। वे डबरी की बदौलत इस साल रबी की फसल के रुप में गेहूँ लगाने की तैयारी में हैं।

     जनपद पंचायत- मनेन्द्रगढ़ की तकनीकी सहायक श्रीमती अंजु रानी इस डबरी निर्माण से जुड़े अन्य पहलुओं पर रोशनी डालती हुए कहती है कि योजनांतर्गत सितम्बर 2019 में श्री बुद्धु सिंह के नाम से एक लाख 80 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति से यह डबरी स्वीकृत हुई थी। लॉकडाउन के दरम्यान यहाँ काम चला था और हितग्राही के परिवार को सीधे रोजगार भी मिला, जिससे उन्हें लगभग 18 हजार रुपए की मजदूरी प्राप्त हुई। इन रुपयों के सहारे हितग्राही के बेटे श्री संपत ने बिजली से चलने वाला दो हॉर्सपावर का एक पम्प खरीदा, जिसका उपयोग वे डबरी से सिंचाई में करते हैं। डबरी से मिल रहे फायदों को आगे बढ़ाते हुए, इन्होंने मछलीपालन के लिए इस बार डबरी में पाँच किलो मछली बीज भी डाला है।

     महात्मा गांधी नरेगा का संबल श्री संपत की संपन्नता की कहानी का आधार बना। अब वह अपनी सफलता से अन्य हितग्राहियों के लिए प्रेरणा पुंज बन रहा है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- डबरी निर्माण कार्य (बुद्धू सिंह/ माधव), ग्रा.पं.- पिपरिया, विकासखण्ड- मनेन्द्रगढ़, जिला- कोरिया,
कार्य प्रारंभ तिथि- 03.11.2019, कार्य पूर्णता तिथि- 30.04.2020,
स्वीकृत राशि- 1.80 लाख, स्वीकृत वर्ष-2019-20, सृजित मानव दिवस- 980,
दूरी- जिला मुख्यालय से 10 कि.मी. एवं विकासखण्ड मुख्यालय से 45 कि.मी., पिन कोड- 497442
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 23◦15'49.9″ एवं Longitude: E 82◦14'49.8″
परिवर्तन- पहले घर के पास के खेतों में खरीफ में 20 से 25 बोरा धान की फसल होती थी, जो इस बार 45 बोरा हुई है।

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रिपोर्टिंग एवं लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार-प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.- 9424259026
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Saturday, 28 November 2020

मनरेगा से सुधन राम की खुशियों को मिला एक नया ठौर, पेश की आत्मनिर्भरता की मिसाल (लॉकडाउन टू अनलॉक विशेष)

रायपुर। मनुष्य में अगर काम करने की दृढ़ इच्छाशक्ति और लगन हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बनते जाते हैं। ऐसी ही एक मिसाल जशपुर जिले की ग्राम पंचायत कण्डोरा के लघु कृषक श्री सुधन राम ने प्रस्तुत की है। कल तक बारिश के भरोसे खेतों में धान उगाकर और बाकी समय मजदूरी करके, अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले श्री सुधन अब सालभर अपने खेतों में नजर आने लगे हैं। वे वहाँ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से बने कुएँ के पानी से सिंचाई के द्वारा खेतों में धान के अलावा सब्जियों का उत्पादन लेकर अपने परिवार को बेहतर जिंदगी दे पा रहे हैं। उन्होंने कुएँ की बदौलत अपने खेतों में 16 क्विंटल धान की उपज प्राप्त की है और उत्पादित सब्जियों की बिक्री से 50 हजार रुपये की आय भी अर्जित की है।

जशपुर जिले के कुनकुरी विकासखण्ड से 8 कि.मी. दूर कण्डोरा ग्राम पंचायत है। इस पंचायत के निवासी श्री सुधन राम पिता श्री डूढ़ की गाँव में 4 एकड़ कृषि भूमि है। वहाँ वे परम्परागत तरीकों से खेती-किसानी कर अपने परिवार का जीवन-यापन जैसे-तैसे कर रहे थे, परन्तु समय के अनुसार बढ़ती पारिवारिक जरुरतों और आकस्मिक खर्चों को पूरा करने की चुनौती हमेशा बनी रहती थी। उस पर पूरी तरह बारिश पर निर्भरता भी एक समस्या बनी हुई थी, जो उन्हें सतत आजीविका के लिए एक नया रास्ता ढूंढने के लिए विवश कर रही थी। 

अंततः श्री सुधन राम को रास्ता मिला और खुशियों ने उनके घर-आँगन में दस्तक दे दी। ग्राम पंचायत के सहयोग से उनके खेत में दो लाख 10 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति के साथ कूप निर्माण का कार्य जो प्रारंभ हो गया था। स्वयं, परिवार के 2 सदस्यों और गाँव के 18 मनरेगा श्रमिकों की मदद से उनका यह कुआँ पाँच माह में बनकर तैयार हो गया। कार्य पूर्ण होने के बाद जुलाई 2019 में श्री सुधन ने पहली बार अपने कुएँ से लगी 2 एकड़ 20 डिसमिल जमीन में धान की फसल और बागवानी फसल के रुप में गोभी, टमाटर, आलू, मिर्च, धनिया, मूली, बैगन और प्याज लगाया, जिससे उन्हें लगभग 25 हजार रुपए की आमदनी हुई। उन्हें पहली बार जिंदगी में अपनी मेहनत का इतना ज्यादा मूल्य मिला था, सो पूरा परिवार खुश हो गया। 

लॉकडाउन में भी लॉक नहीं हुई आजीविका 

खेती-बाड़ी के लिए कुएँ के रुप में सिंचाई का साधन मिलने के बाद, जैसे ही श्री सुधन राम की जिंदगी की राह आसान बनने लगी थी कि अचानक कोरोना बीमारी के चलते लॉकडाउन लग गया और बाहरी काम बंद हो गए। ऐसे में कूएँ के पानी से खेत में सब्जी उत्पादन आय का एक प्रमुख साधन बन गया। श्री सुधन ने अपने खेतों में उत्पादित सब्जियों को घूम-घूमकर आस-पास के गाँव में और कुनकुरी के बाजार में बेचकर अच्छी कमाई की। आज उन्होंने सब्जी उत्पादन और बिक्री से लगातार बढ़ती आय को ही अपनी आजीविका का मुख्य आधार बना लिया है। 

इस संबंध में श्री सुधन राम बताते हैं कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ने उनके जीवन को एक नया आधार दिया है। कुआं निर्माण से जहाँ अब उनके खेतों में साल भर सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता बनी रहती है, वहीं उन्हें सालभर का रोजगार अपने ही खेत से मिल रहा है। सालभर सब्जी उत्पादन होने से अच्छी-खासी आमदनी हो रही है और परिवार का भरण-पोषण अच्छे से कर पा रहे हैं। आर्थिक स्थिति बेहतर होने से उन्होंने अपने बेटे का इलाज भी अच्छे से करा पाया है। यह योजना और कुआँ, दोनों ही उनके परिवार की खुशियों का एक नया ठौर बन गया है। 

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कूप निर्माण, कार्य प्रारंभ तिथि-19.02.2019, कार्य पूर्णता तिथि-01.07.2019,
ग्रा.पं.- कण्डोरा, विकासखण्ड-कुनकुरी, जिला-जशपुर
दूरी-कुनकुरी विकासखण्ड मुख्यालय से 8 कि.मी.,
स्वीकृत राशि-2.10 लाख, स्वीकृत वर्ष-2017-18, सृजित मानव दिवस- 566
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 22◦45'41.7384″ एवं Longitude: E 84◦0'10.1196″
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रिपोर्टिंग एवं लेखन- श्री अश्वनी व्यास, समन्वयक (शिकायत निवारण), जिला पंचायत-जशपुर, छत्तीसगढ़, मो.-9165736925
तथ्य एवं स्त्रोत- श्री गोवर्धन प्रसाद नायक, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-कुनकुरी, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़, मो.-8889054279
संपादन- 1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़,
2. श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इन्द्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, छत्तीसगढ़।

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Monday, 28 September 2020

सामुदायिक फलोद्यान से आत्मनिर्भरता और आर्थिक उन्नति का सफ़र

सामुदायिक फलोद्यान से

आत्मनिर्भरता और आर्थिक उन्नति का सफ़र

रायपुर। सहकारिता की भावना के साथ एक सूत्र में बंधकर आगे बढ़ने का परिणाम हमें जशपुर जिले के गाँव सुरेशपुर में देखने को मिला। यहाँ पाँच आदिवासी किसानों ने अपनी-अपनी कृषि भूमि के आपस में लगते हिस्सों को मिलाकर लगभग 5 हेक्टेयर के एक चक में कुछ बरस पहले महात्मा गांधी नरेगा से आम का फलोद्यान लगाया था। अब ये पौधे पेड़ बन गए हैं। पिछले तीन सालों में आम के उत्पादन से अब तक 5 लाख रुपए से अधिक की आमदनी इन्हें हो चुकी है। वहीं सब्जियों की अंतरवर्ती खेती करते हुए वे अतिरिक्त लाभ भी अर्जित कर रहे हैं। अब वे अपने गाँव में फल उत्पादक के रुप में भी पहचाने जाने लगे हैं। 

जिला मुख्यालय से 96 किलोमीटर दूर पत्थलगाँव विकासखण्ड में सुरेशपुर एक आदिवासी बहुल्य गाँव है। इस गाँव के निवासी 45 वर्षीय श्री मदनलाल पिता श्री जगरनाथ एक आदिवासी गोंड किसान हैं। वे खेती करके अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे थे, किन्तु उन्हें अपनी लगभग ढाई हेक्टेयर की पड़ती(बंजर) कृषि भूमि पर कुछ भी नहीं उगा पाने का काफी दुख था। एक दिन उन्होंने पंचायत कार्यालय में सहसा ही गाँव के ग्राम रोजगार सहायक श्री ज्ञानेश कुमार डनसेना से इस संबंध में बातचीत की थी, उन्हें क्या पता था कि उनकी यह बातचीत उनके पड़ती जमीन के दिन बदल देगी। श्री ज्ञानेश ने उन्हें उद्यानिकी विभाग के माध्यम से सामुदायिक फलोद्यान लगाने और उनके बीच अंतरवर्ती खेती के रुप में सब्जियों के उत्पादन का उपाय बताया। बस फिर क्या था, श्री मदनलाल ने पंचायत की सलाह पर तुरंत अपनी कृषि भूमि से लगते अन्य कृषकों श्री बुधकुंवर पिता श्री सोनसाय, श्री मोहन पिता श्री बुधु, श्री मनबहाल पिता श्री माधव और श्रीमती हेमलता पति श्री पिनाकधर से संपर्क किया एवं उन्हें मिलकर सामुदायिक फलोद्यान से होने वाले फायदे के बारे में बताया। चूँकि इन चारों किसानों की आधे से लेकर एक हेक्टेयर तक की कृषि भूमि श्री मदनलाल की कृषि भूमि से लगती थी और लगभग सभी की यह भूमि पड़ती होने के कारण अनुपयोगी थी। इसलिए सभी ने इसके लिए अपनी सहमति दे दी। आखिरकार श्री मदनलाल की मेहनत रंग लाई और ग्राम सभा के प्रस्ताव के आधार पर 9.48 लाख रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति के साथ सामुदायिक फलोद्यान रोपण का मार्ग प्रशस्त हो गया।

यहाँ वर्ष 2013-14 में उद्यानिकी विभाग ने श्री मदनलाल सहित पाँचों किसानों की कृषि भूमि को मिलाकर 4.600 हेक्टेयर भूमि के एक चक पर आम का सामुदायिक फलोद्यान रोपण का कार्य महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से कराया। उस समय 7 लाख 97 हजार रुपयों की लागत से आम की दशहरी प्रजाति के एक हजार 300 पौधे रोपे गए थे। यह कार्य इन पाँचों हितग्राहियों के परिवार के सदस्यों सहित कुल 67 जॉबकार्डधारी श्रमिकों ने मिलकर पूरा किया। योजना से इन्हें 3 हजार 617 मानव दिवस रोजगार के लिए 5 लाख 75 हजार 863 रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया।

जिले के उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक श्री राम अवध सिंह भदौरिया बताते हैं कि इस आम्र फलोद्यान से इन्हें पिछले 3 सालों में आमों की बिक्री से लगभग 5 लाख 70 हजार रुपये से अधिक की आमदनी हुई है। वहीं दूसरी ओर अंतरवर्ती फसल के रुप में इन्होंने बरबट्टी, भिण्डी, करेला, मिर्च, टमाटर, प्याज और आलू की सब्जियों का उत्पादन लिया है। इन सब्जियों को स्थानीय और पत्थलगाँव के बाजारों में बेचकर इन्होंने लगभग साढ़े 3 लाख रुपए की अतिरिक्त कमाई भी की है। पाँचों किसानों में श्री मदनलाल काफी सक्रिय हैं। वे फलोद्यान में अपने हिस्से की भूमि के साथ-साथ बाकी चारों किसानों की भूमि पर रोपे गए पेड़ों की शुरु से देखभाल करते आए हैं। 

फलोद्यान से प्राप्त हुए फायदों के बारे में लाभार्थी श्री मदनलाल कहते हैं कि “इस आम के बगीचे में उद्यानिकी विभाग ने हमारी बहुत मदद की है। विभाग ने यहाँ राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजना से ड्रिप इरिगेशन सिस्टम, सब्जी क्षेत्र विस्तार (प्याज), पैक हाउस, मल्चिंग शीट और वर्मी कम्पोस्ट यूनिट के रुप में विभागीय अनुदान सहायता उपलब्ध कराई हैं। हमारी परस्पर एकजुटता और योजनाओं के तालमेल से विकसित हुए इस फलोद्यान से तीन ही सालों में ही हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी हुई है। आमों की अच्छी क्वालिटी होने से पत्थलगाँव विकासखण्ड के फल व्यापारी सीधे खेत पर पहुँचकर हमसे इनकी थोक में खरीदी कर रहे हैं।”

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एक नजर-

कार्य का नाम- सामुदायिक फलोद्यान रोपण-सुरेशपुर, क्षेत्रफल- 4.60 हेक्टेयर, पौधों की संख्या- 1300, प्रजाति- दशहरी आम,
ग्रा.पं.- सुरेशपुर, विकासखण्ड- पत्थलगाँव, जिला- जशपुर, जनसंख्या- 2200
स्वीकृत राशि- 9.48 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2013-14, सृजित मानव दिवस- 3617, नियोजित श्रमिक- 67

क्रं.

हितग्राही का नाम

रोपण रकबा (हेक्टेयर में)

रोपण पौधों की संख्या

1.

श्री मदनलाल पिता श्री जगरनाथ

2.400

610

2.

श्री बुधकुंवर पिता श्री सोनसाय

0.400

120

3.

श्री मोहन पिता श्री बुधू

0.500

170

4.

श्रीमती हेमलता पति श्री पिनाकधर

0.500

170

5.

श्री मनबहाल पिता श्री माधव

0.800

230

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रिपोर्टिंग- श्री शशिकांत गुप्ता, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत- जशपुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- 1. श्री पुष्पेन्द्र कुमार पटेल, प्रभारी उद्यान अधीक्षक, विकासखण्ड-पत्थलगाँव, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़।
2. श्री ज्ञानेश कुमार डनसेना, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-सुरेशपुर, ज.पं.-पत्थलगाँव, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री आलोक सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर, छत्तीसगढ़।
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http://mgnrega.cg.nic.in/success_story.aspx

Saturday, 6 June 2020

लॉक-डाउन में भी रोज अच्छी कमाई कर रहे हैं जयसिंह


मनरेगा से बने कुएं से अब खेतों में साल भर हरियाली, अभी सब्जी की खेती से कमा रहे मुनाफा


हौसलों को अगर संसाधन मिल जाए तो सफलता का रास्ता सुगम हो जाता है। कोविड-19 के चलते लॉक-डाउन के कारण जब लोग अपनी आजीविका को लेकर चिंतित हैं, कोरिया जिले के किसान जयसिंह रोज एक से डेढ़ हजार रूपए कमा रहे हैं। इन दिनों वे साग-सब्जी की खेती कर रहे हैं और इसकी बिक्री से हर दिन उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत जयसिंह के खेत में खोदा गया कुआं विपरीत परिस्थितियों में उनकी मजबूत आजीविका का आधार बना है। कुएं की खुदाई के बाद से अब साल भर उनके खेतों में हरियाली रहती है। इस साल धान की बम्पर पैदावार के बाद अभी सब्जियों से उनके खेत लहलहा रहे हैं।

महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित कुएं ने कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ विकासखंड के पिपरिया के करीब छह एकड़ जोत के किसान जयसिंह की खेती की दशा और दिशा बदल दी है। वे बताते हैं कि पहले उनकी कृषि ट्यूब-वेल के भरोसे थी। लेकिन पर्याप्त पानी न होने के कारण बारिश के बाद बहुत दिक्कत आती थी। गर्मी के दिनों में फसल अकसर सूख जाती थी। परेशानियों के बीच उन्होंने पंचायत में महात्मा गांधी नरेगा के तहत खेत में कुआं खोदने के लिए आवेदन दिया। ग्राम पंचायत ने कुएं के लिए एक लाख 80 हजार रूपए मंजूर कर काम शुरू कर दिया। इस कुएं के साथ आदिवासी किसान जयसिंह की जिंदगी ने भी करवट ली।

देशव्यापी लॉक-डाउन में आर्थिक मंदी के इस दौर में जयसिंह छोटे किसानों के लिए नजीर बन गए हैं। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत आजीविका संवर्धन के लिए निर्मित कुएं ने आर्थिक समृद्धि का रास्ता खोला है। धान की अच्छी पैदावार के बाद उन्होंने पालक, लालभाजी और भिंडी लगाया। उन्हें सब्जियों की खेती से कम समय में ही 30 हजार रुपए का मुनाफा हुआ। अभी पिछले दो माह से वे औसतन 1200 रूपए की सब्जी रोज बेच रहे हैं। जयसिंह कहते हैं- 'लॉक-डाउन में भी मुझे कोई चिंता नहीं है। रोजी-रोटी के लिए अलग से कोई काम करने की जरूरत नहीं। महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं की बदौलत अब हर मौसम में मेरे खेतों में फसल और पर्याप्त आमदनी है।'

-***-

संक्षिप्त शब्दावलीः-
कार्य का नाम- कूप निर्माण
मनरेगा/ महात्मा गांधी नरेगा- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना
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माह- जून, 2020
रिपोर्टिंग व लेखन             -           श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छ.ग.। 
पुनर्लेखन व सम्पादन प्रथम -           श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
अंतिम संपादन                 -           श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क अधिकारी, जनसंपर्क संचालनालय, छत्तीसगढ़ ।
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Saturday, 3 August 2019

सही दिशा से बदली दशा (जल संचयन का नया उपक्रम)


बहते पानी को मिली दिशा
और बदली झिरिया गांव के किसानों की दशा


       यह जान लेना जरुरी है कि धरती पर इंसान का अस्तित्व बनाए रखने के लिए पानी जरूरी है, तो पानी को बचाए रखने के लिए उसका संरक्षण एवं युक्तियुक्त उपयोग ही एकमात्र उपाय है। इस तरह पानी जुटाने के लिए जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर पारम्परिक जल प्रणालियों को खेाजा जाए और उनको सुरक्षित रखते हुए उपयोग किया जाये। छत्तीसगढ़ के झिरिया गांव के ग्रामीणों ने भी पहाड़ी जंगल के तलहटी में प्राकृतिक रुप से बने झिरिया (जल स्त्रोत) से झर-झर कर बहते पानी को रोकने और उसे एक दिशा देकर बेहतर उपयोग करने का एक तरीका विकसित कर लिया गया है। इस तरीके से सहेजे गए पानी का इस्तेमाल रोजमर्रा के कामों और सिंचाई में तो हो ही रहा है, भू-जल स्तर भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है। बहते पानी को रोकने, उसे एक दिशा देने और उपयोग करने की यह बातें उन मायनों में तब और अधिक प्रासंगिक हो जाती है, जब इसे आदिवासियों विशेषकर बैगा जनजाति यानि माननीय राष्ट्रपति के दत्तकपुत्र का दर्जा प्राप्त विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों के द्वारा मिलकर किया गया हो।


छत्तीसगढ़ राज्य के मुंगेली जिले के लोरमी विकासखण्ड मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर पहाड़ और जंगल की तलहटी में बसे झिरिया गांव के आदिवासी ग्रामीणों विशेषकर बैगा जनजाति परिवारों ने ग्राम पंचायत के साथ मिलकर पहले तो प्राकृतिक झिरिया के वर्षों से यूँ ही बह रहे पानी को चेक डेम बनाकर रोका, फिर उसे पक्की नाली बनाकर बहाव की एक निश्चित दिशा दे दी। इसके बाद इसे गांव के ही सामुदायिक तालाब से जोड़ कर पानी को सहेज लिया। इसके अलावा नाली के समीप स्थित खेत-खलिहानों
तक सिंचाई के लिए पानी पहुँचाने के उद्देश्य से गांव के ही 28 किसानों ने अपनी खेती जमीन पर बनी डबरियों को इस नाली से जोड़ लिया। अब इन डबरियों में बारह महीनों झिरिया का पानी रहने से सिंचाई के लिए पानी की समस्या से मुक्ति मिल गई है। इस प्रकार न केवल मिट्टी का कटाव और झिरिया के माध्यम से पहाड़ों में संचित होकर रिसता वर्षाजल का नुकसान रुका, बल्कि खेतों को भी पानी मिला। ग्रामीणों एवं ग्राम पंचायत का यह प्रयास, अब पूरे गांव के लिए संजीवनी बन गया है।

वर्षों से झिरिया के यूं ही बहते पानी को रोककर दिशा देने और उससे किसानों की दशा को बदलने का सपना देखने वाले गांव के उपसरपंच श्री नरेश तिलगाम कहते हैं, "इस झिरिया का पानी जमीन की ढाल के हिसाब से यूँ ही बह कर गांव से बाहर चला जाता था। मैं अक्सर इसे रोकने और तालाब में ले जाकर एकत्र करने के बारे में सोचता था। एक दिन गांव के सरपंच श्री बबलू जी से इस संबंध में विस्तार से चर्चा की, तब उन्होंने जनपद पंचायत एवं जिला पंचायत के अधिकारियों से इस संबंध में योजना बनाकर संसाधन उपलब्ध कराने को कहा। साल 2018-19 में जिला प्रशासन का सहयोग मिला और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना एवं जिला खनिज न्यास निधि के परस्पर तालमेल से पानी बचाने और उसे उपयोग करने की यह योजना बनी, फिर जो बदलाव आया वो आपके सामने है।"


ग्राम पंचायत के सरपंच श्री बबलू यादव ने इस संबंध में बताया कि उपसरपंच तिलगाम ने झिरिया के बहते प्राकृतिक जल को रोकने और उसके उपयोग को लेकर हुये इन कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने सबसे पहले सभी ग्रामीणों को इसके लिए तैयार किया, जो कि सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण काम था। क्योंकि ग्रामीणजन मान्यताओं के कारण झिरिया के आस-पास निर्माण के लिए मना कर रहे थे। काफी समझाने के बाद सबकी सहमति से झिरिया से लगभग 100-150 मीटर की दूरी पर निर्माण कार्य शुरु करने बात बनी। इसके बाद महात्मा गांधी नरेगा और डी.एम.एफ. (जिला खनिज न्यास निधि) के अभिसरण से लूज बोल्डर चेक डेम, स्थाई चेक डेम व डाइवर्सन वेयर निर्माण, पक्की नाली एवं डबरी बनवाने की स्वीकृति प्राप्त की गई।

पहाड़ की तलहटी पर तीन स्थानों पर बने प्राकृतिक झिरिया से आने वाला पानी का ढलान गांव की ओर है। इस वजह से यह अपने साथ मिट्टी को भी बहा कर ले आता है। इसलिये नौ अलग-अलग स्थानों पर छोटे-छोटे पत्थरों से लूज बोल्डर चेक डेम (एल.बी.सी.डी.) बनाए गए। इससे बहते जल की गति धीमी हो गई और उसका ठहराव होने लगा। बारिश की वजह से झिरिया के पानी का बहाव तेज होने पर भी, ये एल.बी.सी.डी. पानी के बहाव को कम करने में मददगार सिद्ध हो रहे हैं। इससे मिट्टी के कटाव में कमी आई है। जनपद पंचायत के कार्यक्रम अधिकारी श्री अशोक कुमार साहू बताते हैं कि इनका निर्माण महात्मा गांधी नरेगा से किया गया है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पत्थरों का ही उपयोग किया गया। इससे लागत में भी कमी आई।

श्री अशोक ने आगे बताया कि लूज बोल्डरों (पत्थरों) से बनाये गये चेक से झिरिया के पानी के बहाव को कम करने के बाद पानी को संचित कर उसे एक दिशा देने के लिए डी.एम.एफ. की राशि से चेक डेम एवं डाइवर्सन वेयर (उल्ट) का निर्माण कराया गया। बहते पानी को दिशा देने के बाद, उसे सामुदायिक तालाब तक पहुँचाने के लिए महात्मा गांधी नरेगा से 975 मीटर लम्बी पक्की नाली का निर्माण कराया गया। नाली के बनने के बाद से तालाब में अब बारह महीनों पानी रहता है। झिरिया के पानी के साथ-साथ
बारिश के समय पहाड़ों से होकर आने वाला पानी भी तालाब में संचित हो रहा है। तालाब की लंबाई, चौड़ाई और गहराई के हिसाब से इसमें लगभग 6 हजार 500 क्यूबिक मीटर पानी एकत्र हो जाता है। इस पानी का उपयोग ग्रामीण निस्तारी (दैनिक जरुरतों) के अलावा सिंचाई और मछलीपालन के लिए भी कर रहे हैं। यहाँ मछलीपालन का कार्य स्व सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा किया जा रहा है। इससे उन्हें आजीविका का एक साधन भी गाँव में ही मिल गया है।

झिरिया के पानी को सहेजने के कार्य में तकनीकी मार्गदर्शन देने वाले तकनीकी सहायक श्री चंद्रप्रकाश कश्यप कहते हैं कि जल संरक्षण के कामों के बाद गांव में बैठक लेकर ग्रामीणों को खेतों में डबरी निर्माण के फायदों के बारे में समझाया गया। इससे 59 आदिवासी किसान तैयार हुये। प्रथम चरण में इनमें से 28 हितग्राहियों के खेतों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से डबरियाँ बनवाई गई। प्रत्येक डबरी में लगभग 900 क्यूबिक मीटर पानी एकत्र हो रहा है। इस प्रकार 28 डबरियों में कुल मिलाकर लगभग 25 हजार 200 क्यूबिक मीटर पानी संग्रहित हो जाता है। इन डबरियों को महात्मा गांधी नरेगा से बनी पक्की नाली के साथ इस प्रकार जोड़ा गया कि अब डबरियों में पानी बारह महीनों रहता है। किसानों के द्वारा चेक डेम से नाली द्वारा आ रहा झिरिया के पानी को आवश्यकतानुसार रोककर, उसे अपनी डबरी एवं खेत में ले जाकर सिंचाई और मछलीपालन किया जा रहा है। डबरी बनने के बाद मछलीपालन कर बाजारु बैगा ने 8 हजार, लौहार सिंह बैगा ने 17 हजार, नरेश कुमार तिलगाम ने 17 हजार 5 सौ, जानहू बैगा ने 6 हजार, मुन्ना गौंड ने 35 हजार, और रामभू बैगा ने 12 हजार रुपये कमाये। डबरियों के निर्माण के दौरान भी ग्रामीणों को जहाँ महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी मिली, वहीं खरीफ के साथ-साथ रबी की फसल लेने के लिये साधन भी मिल गया है। पहले ये सभी 28 किसान कुल मिलाकर लगभग 362.29 क्विंटल धान ही ले पाते थे, किन्तु डबरी व नाली निर्माण के बाद ये लगभग 905.40 क्विंटल धान की पैदावार ले रहे हैं।

श्री कश्यप ने आगे बताया कि योजनांतर्गत चयनित 59 हितग्राहियों को लगभग 100 हेक्टेयर भूमि का वन अधिकार पट्टा प्रदाय किया गया है। बारहमासी सिंचाई के साधन मिलने के बाद, पशुओं से इनकी खेती-बाड़ी को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सम्पूर्ण भूमि की फेंसिग की गई है। अब ये किसान जंगली-जानवरों विशेषकर जंगली सुअरों से निश्चिंत होकर किसानी कर पा रहे हैं।

आदिवासी किसान श्री मुन्ना सिंह तिलगाम कहते हैं-"मनरेगा से डबरी बनी, तो पानी भरा। उसमें मैं मछली बीज डाला। अभी मछलीपालन कर रहा हूँ और परिवार के साथ मछली का स्वाद भी ले रहा हूँ। जब मछली ओर बड़ी हो जाएंगी, तो इन्हें बाजार में बेचूंगा। पहले मैं सिर्फ 10 से 15 बोरा धान ही ले पाता था, लेकिन अब डबरी बनने के बाद साल 2018-19 में पहली बार 40 से 50 बोरा धान लिया हूँ। बारिश के बाद डबरी में भरे हुए पानी से खेत में सिंचाई की थी।"


वहीं श्री श्याम सिंह तिलगाम का कहना है- "मैंने डबरी से अरहर लगाया था। लगभग 2 बोरा अरहर हुई और इस साल फिर मैं अरहर ही लगाऊँगा। ग्राम पंचायत में हुए इन कामों से अब अब पलायन पूरी तरह रुक गया है।"

झिरिया का बहता पानी जहाँ ग्राम पंचायत झिरिया का नाम सार्थक कर रहा है, वहीं जल संचय को मिली सही दिशा और इन आदिवासी किसानों की मेहनत ने गाँव की दशा ही बदल दी है।




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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य व स्त्रोत-         श्री विनायक गुप्ता, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-मुंगेली, छत्तीसगढ़ एवं  
                             श्री अशोक कुमार साहू, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-लोरमी, जिला-मुंगेली।
संपादन -               श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...