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Saturday, 6 June 2020

लॉक-डाउन में भी रोज अच्छी कमाई कर रहे हैं जयसिंह


मनरेगा से बने कुएं से अब खेतों में साल भर हरियाली, अभी सब्जी की खेती से कमा रहे मुनाफा


हौसलों को अगर संसाधन मिल जाए तो सफलता का रास्ता सुगम हो जाता है। कोविड-19 के चलते लॉक-डाउन के कारण जब लोग अपनी आजीविका को लेकर चिंतित हैं, कोरिया जिले के किसान जयसिंह रोज एक से डेढ़ हजार रूपए कमा रहे हैं। इन दिनों वे साग-सब्जी की खेती कर रहे हैं और इसकी बिक्री से हर दिन उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत जयसिंह के खेत में खोदा गया कुआं विपरीत परिस्थितियों में उनकी मजबूत आजीविका का आधार बना है। कुएं की खुदाई के बाद से अब साल भर उनके खेतों में हरियाली रहती है। इस साल धान की बम्पर पैदावार के बाद अभी सब्जियों से उनके खेत लहलहा रहे हैं।

महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित कुएं ने कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ विकासखंड के पिपरिया के करीब छह एकड़ जोत के किसान जयसिंह की खेती की दशा और दिशा बदल दी है। वे बताते हैं कि पहले उनकी कृषि ट्यूब-वेल के भरोसे थी। लेकिन पर्याप्त पानी न होने के कारण बारिश के बाद बहुत दिक्कत आती थी। गर्मी के दिनों में फसल अकसर सूख जाती थी। परेशानियों के बीच उन्होंने पंचायत में महात्मा गांधी नरेगा के तहत खेत में कुआं खोदने के लिए आवेदन दिया। ग्राम पंचायत ने कुएं के लिए एक लाख 80 हजार रूपए मंजूर कर काम शुरू कर दिया। इस कुएं के साथ आदिवासी किसान जयसिंह की जिंदगी ने भी करवट ली।

देशव्यापी लॉक-डाउन में आर्थिक मंदी के इस दौर में जयसिंह छोटे किसानों के लिए नजीर बन गए हैं। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत आजीविका संवर्धन के लिए निर्मित कुएं ने आर्थिक समृद्धि का रास्ता खोला है। धान की अच्छी पैदावार के बाद उन्होंने पालक, लालभाजी और भिंडी लगाया। उन्हें सब्जियों की खेती से कम समय में ही 30 हजार रुपए का मुनाफा हुआ। अभी पिछले दो माह से वे औसतन 1200 रूपए की सब्जी रोज बेच रहे हैं। जयसिंह कहते हैं- 'लॉक-डाउन में भी मुझे कोई चिंता नहीं है। रोजी-रोटी के लिए अलग से कोई काम करने की जरूरत नहीं। महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं की बदौलत अब हर मौसम में मेरे खेतों में फसल और पर्याप्त आमदनी है।'

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संक्षिप्त शब्दावलीः-
कार्य का नाम- कूप निर्माण
मनरेगा/ महात्मा गांधी नरेगा- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना
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माह- जून, 2020
रिपोर्टिंग व लेखन             -           श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छ.ग.। 
पुनर्लेखन व सम्पादन प्रथम -           श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
अंतिम संपादन                 -           श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क अधिकारी, जनसंपर्क संचालनालय, छत्तीसगढ़ ।
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Wednesday, 14 August 2019

मेहनत और सूझबूझ से झिरिया का पानी हुआ स्वच्छ

मेहनत और सूझबूझ से झिरिया का पानी हुआ स्वच्छ
 
मेहनत और सूझबूझ से इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता । असंभव कार्य भी संभव हो जाता है । बड़ी से बड़ी समस्या भी चुटकियों में हल हो जाती हैं । ऐसी ही एक समस्या का समाधान, कबीरधाम जिले की भेलकी ग्राम पंचायत के बैगा परिवारों ने अपनी मेहनत और सुझबूझ से कर दिखाया है । इसमें उन्हें मदद मिली है महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से। कल तक बारिश के दिनों में जिस झिरिया (पहाड़ों से बहने वाली एक छोटी जलधारा) का पानी गंदा होकर अनुपयोगी हो जाता था, वह आज इतना स्वच्छ है कि उसमें इंसान का चेहरा भी साफ नजर आता है । भेलकी गाँव के ग्रामीणों ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से मिली राशि से पहाड़ से बह रही प्राकृतिक झिरिया को इस तरह युक्तिपूर्वक चारों तरफ से पक्का निर्माण कर बांधा कि, झिरिया एक कुण्ड में परिवर्तित हो गई और उसके प्राकृतिक प्रादुर्भाव व बहाव की स्थिति में कोई परिवर्तन भी नहीं हुआ । अब झिरिया में बारहों माह 5 से 6 फीट शीतल जल उपलब्ध रहता है । अपनी सुझबूझ से प्राकृतिक जल को संरक्षित करने के बाद, ये बैगा आदिवासी झिरिया के पानी को पीने के अलावा रोजमर्रा के कामों में भी इस्तेमाल कर रहे हैं ।
भेलकी गाँव छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले के पण्डरिया विकासखण्ड से 45 किलोमीटर दूर पहाड़ों के बीच में बसा हुआ है । इसकी कुल आबादी 1411 है और उसके 3 आश्रित ग्राम अधचरा, तेलियापानी धोबे एवं देवानपट्पर हैं । यहाँ के रहवासी मुख्यतः विशेष पिछड़ी संरक्षित 'बैगा' जनजाति के हैं । अपनी संस्कृति के अनुरुप ये अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति, प्रकृति के दिये हुये संसाधनों से करते हैं । इस गाँव में ऐसा ही एक संसाधन झिरिया है, जिसके पानी का उपयोग ये आदिवासी परिवार पीने के पानी के लिए और अपने दैनिक कार्यों में करते हैं । बारिश के दिनों में पहाड़ों से बहकर आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी या गाद को बहाकर लाता था, जो इस झिरिया के पानी के साथ मिलकर, उसे मटमैला कर देता था, जिससे यह पानी अनुपयोगी हो जाता था । वहीं गर्मी की शुरुआत में ही जल संकट का दौर शुरू हो जाता था । मार्च के महीने में ही पानी की समस्या उत्पन्न होने लगती थी । हालाँकि इस गाँव में हैंडपंप तो हैं, लेकिन अधिकांश हैंडपंप या तो सूख गए होते थे, या किन्हीं कारणों से खराब भी हो जाते थे । इसके चलते इस वनांचल गाँव के बैगा-आदिवासियों को प्यास बुझाने के लिए झिरिया का पानी पीना पड़ रहा था । झिरिया से पानी लेने के लिए वे कटोरीनुमा बर्तन से पानी निकालते थे, घंटों मशक्कत के बाद उन्हें कुछ हांडी पानी ही उपलब्ध हो पाता था । एक या दो लोगों के पानी लेने के बाद झिरिया के कच्चा होने के कारण उसका पानी गंदा हो जाता था । इसके बाद 20 से 25 मिनट के इंतजार के बाद ही झिरिया का पानी साफ हो पाता था ।
आने जाने में लग जाता था घंटों समय
पानी के लिए इन बैगा आदिवासियों को दर-दर भटकना पड़ रहा था । इन्हें मजबूरीवश पानी के लिए गाँव से दूर जाना पड़ता था । ऐसे में पानी के लिए ही इन्हें घंटों समय लग जाता था । गाँव के पुरुष और महिलाएँ जान जोखिम में डालकर जंगली रास्तों से होकर पानी की व्यवस्था करते थे ।
पक्का झिरिया से साफ पानी और मजदूरी, दोनों मिले
ऐसे में एक दिन भेलकी गाँव के आश्रित गाँव देवानपट्पर के घिनवा मोहल्ले में पानी की समस्या को दूर करने के लिए ग्रामीणों की बैठक हुई । इस बैठक में मोहल्ले के सबसे उम्रदराज श्री घिनवा राम बैगा पिता श्री महाजन ने पानी की समस्या को दूर करने के लिए कच्चे झिरिया को पक्का बनाने का सुझाव सबके सामने रखा । सभी ने एक मत से झिरिया के प्राकृतिक बहाव को सुरक्षित रखते हुये पक्की झिरिया निर्माण पर अपनी सहमति दे दी। इस संबंध में श्री घिनवा राम बैगा कहते हैं - "सब गाँव वालों ने सोचा कि यदि ग्राम पंचायत, घिनवा मोहल्ले के कच्चे झिरिया के पाया को पक्का बना दें, तो बहुत सुविधा हो जाएगी । ऐसा सोचकर हमने ग्राम सभा में पक्की झिरिया निर्माण का प्रस्ताव पारित किया । साल 2018 के जून महीने में सरपंच से पक्की झिरिया के निर्माण की स्वीकृति की जानकारी मिली, तो मैंने सभी मोहल्लेवासियों को कहा कि तुम्हारा झिरिया निर्माण का काम स्वीकृत हो गया है । अब तुम लोग पक्की झिरिया बनाओ । झिरिया के निर्माण से साफ पानी तो मिला ही, साथ में मजदूरी भी मिली ।"
चुनौतीपूर्ण काम था पक्का झिरिया का निर्माण
घिनवा मोहल्ले में पहाड़ की तलहटी में ढलान पर बहने वाली झिरिया के पक्काकरण के बारे में सरपंच श्री तितरु सिंह बैगा बताते हैं कि इस मोहल्ले की बसाहट पहाड़ पर है । पक्की झिरिया की स्वीकृति के बाद इसका निर्माण करना ग्राम पंचायत के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि पक्की झिरिया के निर्माण के लिए पहले तो रेत, सीमेंट, ईंटों और पत्थरों को परिवहन कर पहाड़ पर मोहल्ले तक लाना था, फिर आड़े-तिरछे रास्ते से उन्हें नीचे झिरिया तक पहुँचाना सबसे कठिन काम  था, किन्तु श्री घिनवा राम बैगा ने पक्की झिरिया निर्माण के लिए लगातार ग्रामीणों को प्रेरित कर इसे सरल बना दिया । आखिरकार सबके सामूहिक प्रयास से लगभग 2.70 मीटर व्यास और 3 मीटर गहराई/ ऊँचाई का पक्की झिरिया एक कूप के रुप में परिवर्तित हो गई । श्री तितरु सिंह आगे बताते हैं कि वर्तमान में इस पक्की झिरिया के पानी का उपयोग घिनवा मोहल्ले के 30 बैगा परिवारों के द्वारा किया जा रहा है । इसे देखकर, ग्राम पंचायत को चारों आश्रित ग्राम से 8 और पक्की झिरिया के निर्माण का आवेदन प्राप्त हुआ था, जिसका निर्माण ग्राम पंचायत ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से करवाया। योजनांतर्गत जुलाई, 2019 तक आश्रित गाँव देवानपट्पर में तीन, भेलकी में एक, अधचरा में एक एवं तेलियापानी धोबे में चार पक्की झिरिया का निर्माण हो चुका है ।
अस्पताल के खर्चे बचे
ग्राम रोजगार सहायक श्री उमेंद धुर्वे ग्राम पंचायत में बने पक्की झिरिया के बारे में बताते हैं कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से एक पक्की झिरिया बनाने के लिए 52 हजार रुपयों की स्वीकृति प्राप्त हुई थी । इसमें से 12 हजार रुपये मजदूरी और 40 हजार रुपये सामग्री मद की लागत शामिल थी । इस प्रकार कुल 4 लाख 68 हजार रुपयों की स्वीकृति से ग्राम पंचायत में 9 पक्के झिरिया का निर्माण हुआ । पक्की झिरिया के निर्माण के बाद से इन मोहल्लों में जल जनित बीमारियों का एक भी प्रकरण अस्पताल में दर्ज नहीं हुआ है। इससे बीमारियों के ईलाज पर होने वाले खर्चों से ग्रामीणों को मुक्ति भी मिली है । 
घिनवा मोहल्ले में बनी पक्की झिरिया में पानी लेने आयी रामबाई कहती हैं - "अब पानी की तकलीफ नहीं है, भरपूर पानी मिलता है। पहले छोटी-सी कच्ची झिरिया होने के कारण गंदा पानी लेना पड़ता था, जिससे बच्चों को कभी भी बुखार, उल्टी और दस्त हो जाता था, अब सब स्वस्थ हैं ।"

वहीं घिनवा मोहल्ले के ही श्री धनसिंह पिता श्री मोहतू, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण से मिले अपने आवास के निर्माण के लिए पानी की व्यवस्था भी इसी पक्की झिरिया से मोटर पम्प के जरिये कर रहे हैं ।
आश्रित ग्राम देवानपट्पर में श्री मंगलू के खेत के पास और सड़क से 20 मीटर की ऊँचाई पर पहाड़ी में एक अन्य पक्की झिरिया का निर्माण करवाया गया है । यहाँ झिरिया के पानी को पाईप के द्वारा नीचे बस्ती में सड़क किनारे टंकी में एकत्र कर उपयोग किया जा रहा है । इससे लगभग 25 बैगा परिवार अपनी पानी की जरुरतों को पूरा कर रहे हैं । ग्राम पंचायत ने 14वें वित्त आयोग से प्राप्त राशि से पाईप और टंकी की व्यवस्था की है ।
ग्राम पंचायत भेलकी में झिरिया के पक्कीकरण से आज जहाँ इन आदिवासी बैगा परिवारों को प्राकृतिक एवं स्वच्छ जल प्राप्त हो रहा है, वहीं इनके मध्य जल संरक्षण जैसी आवश्यकताओं और समस्याओं की पहचान कर मिलकर समाधान करने की प्रवृत्ति का भी प्रसार हो रहा है। 



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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य व स्त्रोत-         श्री सेवकुमार चंद्रवंशी, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-पंडरिया, जिला-कबीरधाम,  छत्तीसगढ़। 
संपादन -               श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Saturday, 3 August 2019

सही दिशा से बदली दशा (जल संचयन का नया उपक्रम)


बहते पानी को मिली दिशा
और बदली झिरिया गांव के किसानों की दशा


       यह जान लेना जरुरी है कि धरती पर इंसान का अस्तित्व बनाए रखने के लिए पानी जरूरी है, तो पानी को बचाए रखने के लिए उसका संरक्षण एवं युक्तियुक्त उपयोग ही एकमात्र उपाय है। इस तरह पानी जुटाने के लिए जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर पारम्परिक जल प्रणालियों को खेाजा जाए और उनको सुरक्षित रखते हुए उपयोग किया जाये। छत्तीसगढ़ के झिरिया गांव के ग्रामीणों ने भी पहाड़ी जंगल के तलहटी में प्राकृतिक रुप से बने झिरिया (जल स्त्रोत) से झर-झर कर बहते पानी को रोकने और उसे एक दिशा देकर बेहतर उपयोग करने का एक तरीका विकसित कर लिया गया है। इस तरीके से सहेजे गए पानी का इस्तेमाल रोजमर्रा के कामों और सिंचाई में तो हो ही रहा है, भू-जल स्तर भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है। बहते पानी को रोकने, उसे एक दिशा देने और उपयोग करने की यह बातें उन मायनों में तब और अधिक प्रासंगिक हो जाती है, जब इसे आदिवासियों विशेषकर बैगा जनजाति यानि माननीय राष्ट्रपति के दत्तकपुत्र का दर्जा प्राप्त विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों के द्वारा मिलकर किया गया हो।


छत्तीसगढ़ राज्य के मुंगेली जिले के लोरमी विकासखण्ड मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर पहाड़ और जंगल की तलहटी में बसे झिरिया गांव के आदिवासी ग्रामीणों विशेषकर बैगा जनजाति परिवारों ने ग्राम पंचायत के साथ मिलकर पहले तो प्राकृतिक झिरिया के वर्षों से यूँ ही बह रहे पानी को चेक डेम बनाकर रोका, फिर उसे पक्की नाली बनाकर बहाव की एक निश्चित दिशा दे दी। इसके बाद इसे गांव के ही सामुदायिक तालाब से जोड़ कर पानी को सहेज लिया। इसके अलावा नाली के समीप स्थित खेत-खलिहानों
तक सिंचाई के लिए पानी पहुँचाने के उद्देश्य से गांव के ही 28 किसानों ने अपनी खेती जमीन पर बनी डबरियों को इस नाली से जोड़ लिया। अब इन डबरियों में बारह महीनों झिरिया का पानी रहने से सिंचाई के लिए पानी की समस्या से मुक्ति मिल गई है। इस प्रकार न केवल मिट्टी का कटाव और झिरिया के माध्यम से पहाड़ों में संचित होकर रिसता वर्षाजल का नुकसान रुका, बल्कि खेतों को भी पानी मिला। ग्रामीणों एवं ग्राम पंचायत का यह प्रयास, अब पूरे गांव के लिए संजीवनी बन गया है।

वर्षों से झिरिया के यूं ही बहते पानी को रोककर दिशा देने और उससे किसानों की दशा को बदलने का सपना देखने वाले गांव के उपसरपंच श्री नरेश तिलगाम कहते हैं, "इस झिरिया का पानी जमीन की ढाल के हिसाब से यूँ ही बह कर गांव से बाहर चला जाता था। मैं अक्सर इसे रोकने और तालाब में ले जाकर एकत्र करने के बारे में सोचता था। एक दिन गांव के सरपंच श्री बबलू जी से इस संबंध में विस्तार से चर्चा की, तब उन्होंने जनपद पंचायत एवं जिला पंचायत के अधिकारियों से इस संबंध में योजना बनाकर संसाधन उपलब्ध कराने को कहा। साल 2018-19 में जिला प्रशासन का सहयोग मिला और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना एवं जिला खनिज न्यास निधि के परस्पर तालमेल से पानी बचाने और उसे उपयोग करने की यह योजना बनी, फिर जो बदलाव आया वो आपके सामने है।"


ग्राम पंचायत के सरपंच श्री बबलू यादव ने इस संबंध में बताया कि उपसरपंच तिलगाम ने झिरिया के बहते प्राकृतिक जल को रोकने और उसके उपयोग को लेकर हुये इन कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने सबसे पहले सभी ग्रामीणों को इसके लिए तैयार किया, जो कि सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण काम था। क्योंकि ग्रामीणजन मान्यताओं के कारण झिरिया के आस-पास निर्माण के लिए मना कर रहे थे। काफी समझाने के बाद सबकी सहमति से झिरिया से लगभग 100-150 मीटर की दूरी पर निर्माण कार्य शुरु करने बात बनी। इसके बाद महात्मा गांधी नरेगा और डी.एम.एफ. (जिला खनिज न्यास निधि) के अभिसरण से लूज बोल्डर चेक डेम, स्थाई चेक डेम व डाइवर्सन वेयर निर्माण, पक्की नाली एवं डबरी बनवाने की स्वीकृति प्राप्त की गई।

पहाड़ की तलहटी पर तीन स्थानों पर बने प्राकृतिक झिरिया से आने वाला पानी का ढलान गांव की ओर है। इस वजह से यह अपने साथ मिट्टी को भी बहा कर ले आता है। इसलिये नौ अलग-अलग स्थानों पर छोटे-छोटे पत्थरों से लूज बोल्डर चेक डेम (एल.बी.सी.डी.) बनाए गए। इससे बहते जल की गति धीमी हो गई और उसका ठहराव होने लगा। बारिश की वजह से झिरिया के पानी का बहाव तेज होने पर भी, ये एल.बी.सी.डी. पानी के बहाव को कम करने में मददगार सिद्ध हो रहे हैं। इससे मिट्टी के कटाव में कमी आई है। जनपद पंचायत के कार्यक्रम अधिकारी श्री अशोक कुमार साहू बताते हैं कि इनका निर्माण महात्मा गांधी नरेगा से किया गया है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पत्थरों का ही उपयोग किया गया। इससे लागत में भी कमी आई।

श्री अशोक ने आगे बताया कि लूज बोल्डरों (पत्थरों) से बनाये गये चेक से झिरिया के पानी के बहाव को कम करने के बाद पानी को संचित कर उसे एक दिशा देने के लिए डी.एम.एफ. की राशि से चेक डेम एवं डाइवर्सन वेयर (उल्ट) का निर्माण कराया गया। बहते पानी को दिशा देने के बाद, उसे सामुदायिक तालाब तक पहुँचाने के लिए महात्मा गांधी नरेगा से 975 मीटर लम्बी पक्की नाली का निर्माण कराया गया। नाली के बनने के बाद से तालाब में अब बारह महीनों पानी रहता है। झिरिया के पानी के साथ-साथ
बारिश के समय पहाड़ों से होकर आने वाला पानी भी तालाब में संचित हो रहा है। तालाब की लंबाई, चौड़ाई और गहराई के हिसाब से इसमें लगभग 6 हजार 500 क्यूबिक मीटर पानी एकत्र हो जाता है। इस पानी का उपयोग ग्रामीण निस्तारी (दैनिक जरुरतों) के अलावा सिंचाई और मछलीपालन के लिए भी कर रहे हैं। यहाँ मछलीपालन का कार्य स्व सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा किया जा रहा है। इससे उन्हें आजीविका का एक साधन भी गाँव में ही मिल गया है।

झिरिया के पानी को सहेजने के कार्य में तकनीकी मार्गदर्शन देने वाले तकनीकी सहायक श्री चंद्रप्रकाश कश्यप कहते हैं कि जल संरक्षण के कामों के बाद गांव में बैठक लेकर ग्रामीणों को खेतों में डबरी निर्माण के फायदों के बारे में समझाया गया। इससे 59 आदिवासी किसान तैयार हुये। प्रथम चरण में इनमें से 28 हितग्राहियों के खेतों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से डबरियाँ बनवाई गई। प्रत्येक डबरी में लगभग 900 क्यूबिक मीटर पानी एकत्र हो रहा है। इस प्रकार 28 डबरियों में कुल मिलाकर लगभग 25 हजार 200 क्यूबिक मीटर पानी संग्रहित हो जाता है। इन डबरियों को महात्मा गांधी नरेगा से बनी पक्की नाली के साथ इस प्रकार जोड़ा गया कि अब डबरियों में पानी बारह महीनों रहता है। किसानों के द्वारा चेक डेम से नाली द्वारा आ रहा झिरिया के पानी को आवश्यकतानुसार रोककर, उसे अपनी डबरी एवं खेत में ले जाकर सिंचाई और मछलीपालन किया जा रहा है। डबरी बनने के बाद मछलीपालन कर बाजारु बैगा ने 8 हजार, लौहार सिंह बैगा ने 17 हजार, नरेश कुमार तिलगाम ने 17 हजार 5 सौ, जानहू बैगा ने 6 हजार, मुन्ना गौंड ने 35 हजार, और रामभू बैगा ने 12 हजार रुपये कमाये। डबरियों के निर्माण के दौरान भी ग्रामीणों को जहाँ महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी मिली, वहीं खरीफ के साथ-साथ रबी की फसल लेने के लिये साधन भी मिल गया है। पहले ये सभी 28 किसान कुल मिलाकर लगभग 362.29 क्विंटल धान ही ले पाते थे, किन्तु डबरी व नाली निर्माण के बाद ये लगभग 905.40 क्विंटल धान की पैदावार ले रहे हैं।

श्री कश्यप ने आगे बताया कि योजनांतर्गत चयनित 59 हितग्राहियों को लगभग 100 हेक्टेयर भूमि का वन अधिकार पट्टा प्रदाय किया गया है। बारहमासी सिंचाई के साधन मिलने के बाद, पशुओं से इनकी खेती-बाड़ी को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सम्पूर्ण भूमि की फेंसिग की गई है। अब ये किसान जंगली-जानवरों विशेषकर जंगली सुअरों से निश्चिंत होकर किसानी कर पा रहे हैं।

आदिवासी किसान श्री मुन्ना सिंह तिलगाम कहते हैं-"मनरेगा से डबरी बनी, तो पानी भरा। उसमें मैं मछली बीज डाला। अभी मछलीपालन कर रहा हूँ और परिवार के साथ मछली का स्वाद भी ले रहा हूँ। जब मछली ओर बड़ी हो जाएंगी, तो इन्हें बाजार में बेचूंगा। पहले मैं सिर्फ 10 से 15 बोरा धान ही ले पाता था, लेकिन अब डबरी बनने के बाद साल 2018-19 में पहली बार 40 से 50 बोरा धान लिया हूँ। बारिश के बाद डबरी में भरे हुए पानी से खेत में सिंचाई की थी।"


वहीं श्री श्याम सिंह तिलगाम का कहना है- "मैंने डबरी से अरहर लगाया था। लगभग 2 बोरा अरहर हुई और इस साल फिर मैं अरहर ही लगाऊँगा। ग्राम पंचायत में हुए इन कामों से अब अब पलायन पूरी तरह रुक गया है।"

झिरिया का बहता पानी जहाँ ग्राम पंचायत झिरिया का नाम सार्थक कर रहा है, वहीं जल संचय को मिली सही दिशा और इन आदिवासी किसानों की मेहनत ने गाँव की दशा ही बदल दी है।




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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य व स्त्रोत-         श्री विनायक गुप्ता, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-मुंगेली, छत्तीसगढ़ एवं  
                             श्री अशोक कुमार साहू, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-लोरमी, जिला-मुंगेली।
संपादन -               श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 23 July 2019

एक युक्ति, जिसने लिख दी जल संरक्षण की एक नई कहानी...


एक युक्ति, जिसने लिख दी जल संरक्षण की एक नई कहानी...


  
अक्सर देखा जाता है कि संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद समस्याएँ हल नहीं होतीं, वहीं एक छोटी-सी युक्ति से बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकल आता है। ऐसा ही कुछ बिलासपुर जिले से लगभग बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित भरारी ग्राम पंचायत में देखने को मिला। यहाँ एक सौ ग्यारह एकड़ में स्थापित पावरग्रिड कार्पोरेशन लिमिटेड के 765 केवी उपकेंद्र परिसर से हर साल बारिश का पानी यूँ ही गाँव में बहा दिया जाता था। पंप के माध्यम से परिसर के निकासी सिरे से तेजी से निकलने वाले वर्षाजल से ग्राम पंचायत में मिट्टी का कटाव हो रहा था और आबादी वाले इलाके में जल भराव की स्थिति भी निर्मित हो रही थी। वर्षा ऋतु में गाँव के लिए चिंता का सबब बनी इस समस्या का हल ग्राम पंचायत ने एक युक्ति से ढूंढ निकाला। इस युक्ति के तहत साल 2016-17 में महात्मा गांधी नरेगा और अन्य योजनाओं के तालमेल से मिली राशि से नाली बनाकर बिजली उपकेन्द्र के निकासी केन्द्र को तालाब से जोड़ दिया गया। इससे वर्षाजल तालाब में संरक्षित होने लगा। वहीं इस तालाब से लगे पाँच अन्य नजदीकी तालाबों को भी अगले वर्ष 2017-18 में एक-दूसरे से जोड़ दिया गया। इस उपाय से अब हर साल यूँ ही व्यर्थ होकर बह जाने वाला लाखों लीटर वर्षाजल तालाबों में एकत्र हो रहा है और वाटर रिचार्जिंग के साथ ही कई अन्य कार्यों में उपयोग में लाया जा रहा है। 
इस कहानी की शुरुआत होती है, साल 2016-17 में। बिलासपुर जिले के बिल्हा विकासखण्ड की ग्राम पंचायत भरारी में पावरग्रिड कार्पोरेशन लिमिटेड के द्वारा 765 केवी उपकेंद्र स्थापित किया गया है, जहाँ से बिजली का वितरण होता है। यह उपकेन्द्र 111 एकड़ में फैला हुआ है, जिसका तल कांक्रीट का बना है। बारिश के समय यहाँ इकट्ठे होने वाले पानी की निकासी पाईप के द्वारा ग्राम पंचायत की ओर की गई है। जनवरी, 2016 के पहले तक, दो से तीन घंटे लगातार पानी बरसने पर, उपकेन्द्र के परिसर में एकत्र हुये पानी का प्रवाह पम्प के माध्यम से निकासी द्वार से ग्राम पंचायत क्षेत्र में होने लगता था। इससे उपकेन्द्र से लगी ग्राम पंचायत की भूमि में पानी अत्यधिक वेग के साथ बहने लगता था और थोड़ी ही देर में ग्राम की भूमि डूब जाती और पानी यूँ ही बरबाद हो जाता था। पानी की इस बरबादी और तेज जल प्रवाह से हो रहे मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए ग्राम पंचायत भरारी ने एक युक्ति अपनाई। इसके अनुसार सबसे पहले बिजली उपकेन्द्र के जल निकासी केन्द्र से जोड़कर तीन सौ मीटर लंबी नाली का निर्माण कराया गया और इसे दूसरे छोर पर नया तालाब से जोड़ दिया गया। इससे वर्षा जल सीधे तालाब में एकत्रित होने लगा। कल तक यूँ ही बर्बाद हो रहा वर्षाजल साल 2016-17 से लगभग एक हेक्टेयर के इस तालाब में संरक्षित होकर, जल संरक्षण की अपनी कहानी बयां कर रहा है। इस कहानी में नाली निर्माण की जो युक्ति अपनाई गई, उसके लिए 5 लाख 91 हजार रुपयों की राशि की व्यवस्था अभिसरण के माध्यम से की गई। इसमें महात्मा गांधी नरेगा, 14वें वित्त आयोग की राशि एवं राज्य योजना- मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना का अभिसरण हुआ।
ग्राम पंचायत के सरपंच श्री विनय शुक्ला बताते हैं कि ग्राम सभा के अनुमोदन के आधार पर यह कार्य 3 जनवरी 2017 को प्रारंभ किया गया और तीन चरणों में 6 मार्च को पूरा करा लिया गया। इस कार्य में 16 ग्रामीणों को सीधे रोजगार मिला। इसमें 9 महिलाएं भी थीं। नाली के माध्यम से नया तालाब में संग्रहित हो रहे वर्षाजल का आधार बढ़ाने के लिए साल 2017-18 में ग्राम पंचायत के द्वारा इस तालाब के गहरीकरण का कार्य कराया गया। इस हेतु महात्मा गांधी नरेगा से 9 लाख 91 हजार रुपयों की स्वीकृति प्राप्त हुई। इसमें 312 जॉबकार्डधारियों को रोजगार प्राप्त हुआ। इसमें 168 महिलाएँ थीं। ग्रामीणों के सहयोग से हमने यह कार्य 15 मार्च को ही पूरा कर लिया। पिछले साल हुई बारिश में इससे गाँव को बहुत फायदा हुआ। 

भरारी गाँव में शिव मंदिर से लगा नवा तालाब और उसका नवा पैठू तालाब तथा सिंघरी तालाब व उसका सिंघरी पैठू तालाब 100 साल से भी अधिक समय से पुराने हैं। इनका उपयोग ग्रामीण बारहों महीना करते हैं। फिर भी गर्मी के आते-आते केवल मंदिर से लगा नवा तालाब में ही रोजमर्रा के उपयोग के लायक पानी बच पाता था। इस विकट परिस्थिति के निराकरण में ग्राम पंचायत को आई.सी.आर.जी. (इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर क्लाइमेंट रेजिलिएंट ग्रोथ) परियोजना के तकनीकी विशेषज्ञ श्री विभाष चौबे ने काफी मदद की। श्री विभाष चौबे के तकनीकी मार्गदर्शन में ग्राम पंचायत ने नाली और नया तालाब के जुड़ाव के पहले एक सिल्ट चैम्बर का निर्माण कराया, ताकि नाली के माध्यम से वर्षाजल के साथ बहकर आने वाली गाद इस चैम्बर में रुक जाये और साफ पानी तालाब में एकत्र हो सके। इसके बाद सबसे पहले नया तालाब के आउटफ्लो को नवा पैठू तालाब के इनलेट के साथ जोड़ा गया। इसके  बाद नवा पैठू तालाब के आउटलेट को नवा तालाब के इनलेट के साथ जोड़ा गया। इसी क्रम में सिंघरी तालाब, सिंघरी पैठू तालाब एवं सामुदायिक तालाब को एक-दूसरे से जोड़ा गया।
इसी क्रम में बिल्हा विकासखण्ड के कार्यक्रम अधिकारी श्री महेन्द्र भारद्वाज ने बताया कि भरारी ग्राम पंचायत महात्मा गांधी नरेगा और अन्य योजनाओं के अभिसरण के द्वारा नाली निर्माण कर बिजली सबस्टेशन के पानी को तालाब में एकत्र करना और इससे लगे बाकी 5 तालाबों को परस्पर जोड़ना एक दूरगामी सोच है। आज की स्थिति में यदि बारिश अच्छी हो जाये, तो ग्रामीणों को दैनिक उपयोग और सिंचाई कार्य के लिए साल भर पानी की उपलब्धता रहेगी। जल संरक्षण की इस परियोजना में छठवें नम्बर के सामुदायिक तालाब का गहरीकरण भी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से कराया गया है। साल 2017-18 में यह कार्य 9 लाख 89 हजार रुपयों की लागत से पूरा कराया गया था। इससे 320 ग्रामीणों को सीधे रोजगार मिला। तालाबों का स्थायित्व बढ़ाने के उद्देश्य से इन तालाबों की मेड़ पर वृक्षारोपण का कार्य भी महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत कराया जा रहा है।
जल संरक्षण की इस परियोजना के लाभार्थी श्री जतनलाल पिता श्री इतवार 40 साल के हैं। इनका लगभग एक हेक्टेयर का खेत तालाब से लगा हुआ है। इनका कहना है कि वे तालाबों को जोड़ने की इस परियोजना के पहले अपने खेत में 1.85 एकड़ में ही धान की फसल ले पाते थे। इससे उन्हें 15 क्विंटल धान मिल पाता था। जब से तालाबों में नाली से वर्षाजल भरा रहता है, तब से अच्छी खेती कर पा रहा हूँ। साल 2017 में 24 क्विंटल और 2018 में 26 क्विंटल धान का उत्पादन हुआ है।  रबी में 1.3 एकड़ में गेहूँ की फसल से 11 क्विंटल गेहूँ भी उत्पादित हुआ है।
भरारी गाँव के ही एक अन्य किसान श्री देवीप्रसाद पिता श्री लच्छन बताते हैं कि वे अपने 7 सदस्यीय परिवार के मुखिया हैं और तालाब से उनकी 1.3 हेक्टेयर खेत भूमि लगी है। तालाबों के एक दूसरे से जुड़ने से बहुत फायदा हुआ है। बारिश के बाद भी खेतों में नमी बनी रहती है। उन्हें अब 1.45 एकड़ कृषि भूमि से 20 क्विंटल धान की पैदावार हुई है, जो पूर्व से 7 क्विंटल अधिक है।

जतनलाल और देवीप्रसाद की तरह श्री नंद कुमार, श्री भरतलाल और श्री परमेश्वर भी उन चुनिंदा किसानों में से हैं, जिनकी कृषि भूमि तालाब से लगी हुई और खेती में तालाब से सिंचाई करते हैं। वर्षाजल को संरक्षित एवं एकत्रित करने के उद्देश्य से इस परियोजना में हुए नाली निर्माण, दो तालाबों का गहरीकरण एवं वृक्षारोपण कार्य से भरारी गांव के 723 ग्रामीणों को सीधे रोजगार भी मिला है और 12 हजार 462 मानव दिवस सृजित हुए। गांव के 23 अनुसूचित जाति परिवारों के द्वारा 2 तालाबों में मछलीपालन का कार्य किया जा रहा है। छः तालाबों के एक दूसरे से जड़ने के कारण, 25 हेक्टेयर भूमि में खरीफ और 8 हेक्टेयर में रबि की फसल सिंचित हो रही है। इससे लगभग 45 परिवार लाभान्वित हो रहे हैं। ग्रामीण महिलाओं को दैनिक जीवन के उपयोग के लिए पानी मिल पा रहा है। साल 2016 के बाद से परियोजना का बहुपयोगी प्रभाव साल दर साल देखने को मिल रहा है। इससे यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि युक्तिपूर्वक योजनाओं से मिले लाभ से गाँव ने जल संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर स्थापित कर दिया है।     
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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री संदीप सिंह चैधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर
तथ्य व स्त्रोत-  श्री महेन्द्र भारद्वाज, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बिल्हा जिला-बिलासपुर 
संपादन -        श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, रायपुर
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