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Thursday, 3 March 2022

मनरेगा से बने शेड ने बकरी पालन व्यवसाय को दी मजबूती

चम्पाबाई ने 6 महीने में ही कमाए 89 हजार रूपए, बकरियों की संख्या 4 से बढ़कर 26 हुई


स्टोरी/रायपुर/रायगढ़/ 3 मार्च 2022. ग्रामीण क्षेत्र में गरीब की गाय के नाम से मशहूर बकरी आजीविका का महत्वपूर्ण साधन शुरु से रही है। यह बहुपयोगी होने के कारण भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों के भरण-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यही कारण है कि रायगढ़ जिले की ग्राम पंचायत- बटाऊपाली (ब) की रहने वाली श्रीमती चम्पाबाई ने भी बकरी पालन व्यवसाय को अपनाया और अपनी मेहनत के बलबूते आज उन्होंने अपने जीवन की दशा और दिशा, दोनों बदली दी है। बकरी पालन के लिए महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से पक्का शेड बनने के बाद श्रीमती चम्पाबाई अब व्यवस्थित ढंग से अपने व्यवसाय को आगे बढ़ा पा रही है। शेड बनने से पहले उसके पास केवल चार बकरी थी। महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से घर में बकरी शेड बनने के बाद उसके बकरी पालन के व्यवसाय ने जोर पकड़ा और कमाई बढ़ने लगी। अब उसके पास 26 बकरे-बकरियां हो गए हैं। बकरी पालन से उसने छह महीने में ही 89 हजार रूपए कमाए हैं।

चम्पाबाई का जीवन

श्रीमती चम्पाबाई, पति श्री कार्तिकराम पटेल, बकरी पालन से अपने परिवार की आर्थिक हालात सुधार रही है। उसके इस काम में घर में महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित बकरी पालन शेड ने बड़ी भूमिका निभाई है। चम्पाबाई की लगन, मेहनत और योजना से मिले सहयोग से उसका व्यवसाय तेजी से फल-फूल रहा है और अच्छी आमदनी हो रही है। मां गंगा स्वसहायता समूह की सदस्य चम्पाबाई के परिवार के पास करीब पांच एकड़ जमीन है। इसमें से केवल तीन एकड़ में ही खेती-बाड़ी हो पाती है। खेती के बाद के समय में मजदूरी कर परिवार गुजर-बसर करता है। चम्पाबाई ने घर की आमदनी बढ़ाने के लिए बकरी पालन का काम शुरू किया। लेकिन कच्चा और टूटा-फूटा कोठा के कारण इसमें बहुत कठिनाई हो रही थी। वह इसे व्यवस्थित ढंग से आगे नहीं बढ़ा पा रही थी। अपनी परेशानी को उसने समूह की बैठक में रखा। समूह के सदस्यों की सलाह पर उसने महात्मा गांधी नरेगा के तहत अपनी निजी भूमि पर पक्का कोठा के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत को आवेदन दिया।

महात्मा गांधी नरेगा से मिली सहायता

ग्राम पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत वर्ष 2020-21 में बतौर हितग्राही चम्पाबाई की निजी जमीन पर 61 हजार 265 रुपयों की लागत से बकरी शेड निर्माण (कोठा) के लिए प्रशासकीय स्वीकृति मिली। लगातार 15 दिनों के काम के बाद दिसम्बर-2020 में उसका कोठा बनकर तैयार हो गया। इस काम में उसके और गांव के एक अन्य परिवार को 34 मानव दिवसों का रोजगार भी प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें 6 हजार 460 रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। शेड बनने के बाद चम्पाबाई को बकरी पालन के लिए पर्याप्त जगह मिली और उसका धंधा जोर पकड़ने लगा।

इतने रुपयों में बेचे बकरा-बकरी

पक्का बकरी शेड निर्माण के पहले चम्पाबाई के पास केवल चार बकरियाँ थीं। शेड बनने के बाद उसने चार और बकरियाँ खरीदीं। इन बकरियों से जन्मे मेमनों के बाद उसके पास कुल 26 बकरे-बकरियाँ हो गए हैं। इनमें से 15 बकरे-बकरियों को बेचकर उसने छह महीनों में 89 हजार रूपए कमाए हैं। वह बकरी को पांच हजार रूपए और बकरा को सात हजार रूपए की दर से बेचती है। बकरी पालन से कम समय में हुए इस लाभ से चम्पाबाई खुश हैं। इससे उसकी माली हालत तो सुधरी ही, घर के लिए उसने नई टी.वी., पंखा और आलमारी भी खरीदी है।

श्रीमती चम्पाबाई बकरी पालन के अपने इस धंधे को और आगे बढ़ाना चाहती है। वह कहती है कि अगर उसे बकरी पालन के लिए मनरेगा से शेड नहीं मिलता, तो वह अपना काम आगे नहीं बढ़ा पाती। अब वह गांव के दूसरे लोगों को भी बकरी पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

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एक नजरः-

कार्य का नाम- बकरी शेड (कोठा) निर्माण कार्य, हितग्राही- श्रीमती चम्पाबाई पति श्री कार्तिकराम पटेल, मो.-7489033936,
परिवार रोजगार कार्ड (जॉब कार्ड)- CH-13-008-096-001/41
क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21, ग्राम पंचायत- बटाऊपाली (ब), विकासखण्ड- सारंगढ़,
स्वीकृत राशि- 61,265.00 रुपए, व्यय राशि- 54,938.00 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 24.11.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 08.12.2020, वर्क कोड- 3313008096/IF/1111513039,
सृजित मानव दिवस- 34, नियोजित परिवारों की संख्या- 02, मजदूरी भुगतान- 6,460.00 रुपए,
सामग्री भुगतान- 48,478.00 रुपए, जी.पी.एस. लोकेशन- 21°32'59.0"N 83°07'24.8"E, पिनकोड- 496445,
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री युवराज पटेल, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-सारंगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।
2. श्री मुकेश सुमन, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-सारंगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।
3. कु. रेशमा सिदार, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-बटाऊपाली (ब), ज.पं.-सारंगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।

रिपोर्टिंग- श्री राजेश शर्मा, समन्वयक (शिकायत निवारण), जिला पंचायत-रायगढ़, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 15 February 2022

मेरा कुआँ - मेरा सम्मान

मनरेगा से बना कुआँ तो निस्तारी की समस्या हुई हल और आजीविका को मिला सहारा.


स्टोरी/रायपुर/गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही/15 फरवरी 2022. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अपने विभिन्न आयामों से ग्रामीण जन-जीवन को निरंतर मजबूती प्रदान कर रही है। योजना के तहत् कुआँ, डबरी, तालाब, पशु शेड, फलोद्यान सहित अन्य हितग्राही मूलक कार्यों से किसानों एवं पशुपालकों की आजीविका सशक्त हो रही है। साथ ही उन्हें अपनी निजी जमीन में स्वीकृत कार्यों में रोजगार भी प्राप्त हो रहा है। योजना से मिल रहे ये दोनों लाभ उन्हें निश्चिंतता प्रदान कर रहे हैं। ऐसी ही निश्चिंतता गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले के पेण्ड्रा विकासखण्ड की की सोनबचरवार ग्राम पंचायत की निवासी 46 वर्षीया श्रीमती उमिन्द कुंवर के चहरे पर साफ नजर आती है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से उनके घर की बाड़ी में कुआँ बनने के बाद अब उन्हें पहले की भाँति रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के लिए पानी की व्यवस्था हेतु दूर तक भटकना नहीं पड़ता है। कुआँ बनने के बाद उनका जीवन सहज हो गया है। वे इस कुएँ से अपनी 50 डिसमिल की बाड़ी में विभिन्न तरह की साग-सब्जियों का उत्पादन भी ले रही हैं।

महात्मा गांधी नरेगा से खुद के नाम पर निर्मित परिसम्पत्ति से स्वयं को गौरान्वित मानते हुए श्रीमती उमिन्द कुंवर बताती हैं कि उनके परिवार में उनके पति श्री कलवन कुंवर के अलावा दो बच्चे हैं। परिवार के पास जीवन-यापन के लिए लगभग 2 एकड़ की खेती है और राज्य सरकार से वन अधिकार पट्टा के अंतर्गत एक एकड़ की जमीन भी मिली है, जिसमें वे धान का उत्पादन लेते हैं। इसके अलावा महात्मा गांधी नरेगा में खुलने वाले कामों और आस-पास के खेतों में मजदूरी के लिए वे अपने पति के साथ जाया करती थीं। इस दरम्यान काम पर जल्दी जाने या देर से घर आने पर दैनिक जरुरतों के लिए पानी की व्यवस्था करना दूभर हो जाता था। ऐसे में एक दिन ग्राम रोजगार सहायक श्री रमजीत सिंह की सलाह पर उन्होंने अपने घर के पीछे बाड़ी में कुआँ बनवाने का आवदेन ग्राम पंचायत में दिया। तब ग्राम पंचायत की पहल पर उनके नाम से महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत कुआँ स्वीकृत हो गया।

श्रीमती कुंवर आगे बताती हैं कि मेरे नाम से कुआँ निर्माण की स्वीकृति मेरे लिए सबसे बड़ी बात थी, क्योंकि मैंने आज से पहले किसी महिला के नाम पर कुछ बनना सुना नहीं था और यह साल 2021 में हकीकत में भी बदल गया। अब मेरे पास मेरे नाम से मेरी अपनी संपत्ति है। यह मेरी पहचान और मेरा सम्मान, दोनों है। कुआँ बनने के बाद पहली बार वे अपनी बाड़ी में सब्जी-भाजी का उत्पादन ले रही हैं, जिसमें लगभग 2 डिसमिल में लहसुन, 6 डिसमिल में टमाटर और 5 डिसमिल में आलू लगाया है। इसके अलावा वे कुएँ के पानी से बाड़ी में लाल भाजी, भांटा (बैगन) एवं मिर्च का भी उत्पादन कर रही हैं। वे बताती हैं कि अभी शुरुआती उत्पादन का उपयोग वे घर में प्रतिदिन के उपयोग में कर रही हैं। इसके बाद जैसे-जैसे बाड़ी से पर्याप्त मात्रा में साग-सब्जियाँ निकलेंगी, वे उसे स्थानीय बाजार में बेचेंगी।

सरपंच श्री अगस्ते कंवर का इस संबंध में कहना है कि पंचायत के द्वारा वन अधिकार पट्टा प्राप्त हितग्राहियों की निजी भूमि पर प्राथमिकता के आधार पर महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत अनुमेय कार्य स्वीकृत कराये जा रहे हैं। इसी प्रकिया के अंतर्गत महात्मा गांधी नरेगा से 2 लाख 79 हजार 283 रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति से हितग्राही श्रीमती उमिन्द कुंवर की निजी भूमि में कूप निर्माण कार्य स्वीकृत कराया गया था। अप्रेल, 2021 में यह कूप बनकर तैयार हुआ, जिसमें हितग्राही के साथ-साथ गाँव के ही 2 अन्य मनरेगा जॉबकार्डधारी परिवारों को कुल मिलाकर 517 मानव दिवस रोजगार प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें 94 हजार 126 रुपये का मजदूरी भुगतान किया गया।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कूप निर्माण कार्य, हितग्राही का नाम- श्रीमती उमिन्द कुंवर पति श्री कलवन कुंवर,
हितग्राही का जॉब कार्ड नं.- CH-01-018-024-001/96, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
ग्राम पंचायत- सोनबचरवार, विकासखण्ड- पेण्ड्रा (गौरेला 1), जिला- गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, पूर्णता वर्ष- 2021-22
स्वीकृत राशि- 279283.00 रुपए, व्यय राशि- 226623.00 रुपए, मजदूरी भुगतान- 94126.00 रुपए,
कार्य प्रारंभ तिथि- 06.03.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 07.04.2021, वर्क कोड- 3301018024/IF/1111382746,
सृजित मानव दिवस- 517, नियोजित परिवारों की संख्या- 03,
जी.पी.एस. लोकेशन- 22°42'21.7"N 82°02'25.2"E, पिनकोड- 495119
हितग्राही श्रीमती उमिन्द कुंवर का संपर्क सूत्र- 6263674465 (श्री कलवन कुंवर-पति)
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री रोशन सराफ, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-पेण्ड्रा, जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
1. श्री रोशन सराफ, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-पेण्ड्रा, जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
2. श्री रमजीत सिंह, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.- सोनबचरवार, ज.पं.-पेण्ड्रा (गौरेला 1), जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
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रिपोर्टिंग- श्री रवि कुमार, सहायक परियोजना अधिकारी, डी.आर.डी.ए.-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 8 February 2022

मनरेगा से फलीभूत हुआ ‘दूधो नहाओ – पूतो फलो’ का आशीर्वाद

मनरेगा से बने पशुशेड में पशुपालन कर दुग्ध उत्पादन को बनाया मुख्य व्यवसाय.
प्रति माह हो रही 30 से 40 हजार रुपये की आय.



स्टोरी/रायपुर/बालोद/ 8 फरवरी 2022. 'दूधो नहाओ-पूतो फलो'....62 वर्षीय श्रीमती तुलसीबाई साहू के इस आशीर्वाद के तले आज उनका 14 सदस्यीय परिवार फल-फूल रहा है। साल 2020 में जहाँ पूरी दुनिया कोरोना महामारी के दौर में लॉक-डाउन और आर्थिक तंगी से जूझ रही थी, ऐसे में श्रीमती तुलसीबाई ने समझदारी का परिचय देते हुए परिवार को एकजुट किया। इसके बाद उन्होंने अपनी निजी भूमि पर महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से बने पशु शेड में 10 मवेशियों की पालना करते हुए उनका दूध बेचकर अपने परिवार को उस कठिन समय से बाहर निकाला। आज उनके पास 42 मवेशी हो गए हैं और उनका पूरा परिवार इस व्यवसाय में लगा हुआ है, जिससे उन्हें प्रति माह 30 से 40 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। परिवार की दशा-दिशा में आये इस बदलाव को लेकर गाँव में सब उनकी तारीफ करते हैं।

महिलाओं के लिए मिसाल बनीं तुलसीबाई
बालोद जिले के गुरुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत पेरपार में श्रीमती तुलसीबाई अपने 14 सदस्यीय परिवार के साथ रहती हैं। उनके परिवार में उनके पति श्री जगन्नाथ साहू के अलावा उनके तीन बेटे और पुत्रवधुएँ एवं 6 बच्चे हैं। इतने बड़े परिवार का भरण-पोषण लगभग 3 एकड़ की खेती एवं 10 पशुओं, जिनमें से चार ही दुधारु थे, पर निर्भर था। पशुओं को रखने के लिए कोई पक्की छतयुक्त व्यवस्था नहीं थी, जिससे व्यवसायिक रुप से दुग्ध उत्पादन का कार्य दूर की कौड़ी थी। ऐसे में ग्राम पंचायत की पहल पर उनके यहाँ जून, 2020 में महात्मा गांधी नरेगा से 49 हजार 770 रुपये की लागत से पशु शेड का निर्माण हुआ।

महात्मा गांधी नरेगा से मिले संसाधन से संबल पाकर, श्रीमती तुलसीबाई ने कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों में घर को चलाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों को दूध उत्पादन को मुख्य व्यवसाय बनाकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। तब उनका प्रेरणा रुपी आशीर्वाद पाकर परिवार के सभी पुरुषों और महिलाओं ने मिलकर पशु पालन करना शुरु किया। सबकी मेहनत रंग लाई। आज श्रीमती तुलसीबाई के पशु शेड में मवेशियों की संख्या बढ़कर 42 हो गई है, जिनमें से 16 दुधारु हैं। उनसे प्रति दिन लगभग 40-50 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है, जिसे बाजार में बेचने पर महीने की लगभग 40 हजार रुपये की आमदनी हो रही है।

श्रीमती तुलसीबाई बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा से बने पशु शेड में पशु पालन और दूध उत्पादन के कार्य से उन्हें जो आमदनी हुई, उससे उन्होंने 08 नये मवेशी खरीदे और दो अतिरिक्त पशु शेड का निर्माण करवाया। वे आगे बताती हैं कि कल तक वे पारंपरिक रुप से पशुपालन कर रहे थे, लेकिन आज उन्होंने इसे डेयरी व्यवसाय में बदल दिया है। डेयरी की शुरुआत में पशुओं से जो गोबर मिला, उसे राज्य सरकार की गोधन न्याय योजना के तहत बेचने से 20 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई, जिससे दो नग वर्मी कम्पोस्ट टांका बनवाया। अब उसमें गोबर से जैविक खाद बना रहे हैं और उसे खेतों में उपयोग कर रहे हैं। इससे हमारी छोटी-सी खेती-बाड़ी भी निखर रही है।
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एक नजरः-
कार्य का नाम- पशु शेड निर्माण कार्य, हितग्राही का नाम- श्रीमती तुलसी बाई पति श्री जगन्नाथ साहू,
हितग्राही का जॉब कार्ड नं.- CH-03-012-030-001/93, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम पंचायत- पेरपार, विकासखण्ड- गुरुर, जिला- बालोद, स्वीकृत राशि- 57649.00 रुपए, व्यय राशि- 49770.00 रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 15.06.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 28.06.2020, वर्क कोड- 3303012036/IF/1111437489,
सृजित मानव दिवस- 24, नियोजित परिवारों की संख्या- 02, मजदूरी भुगतान- 4560.00 रुपए,
जी.पी.एस. लोकेशन- 22°74'23.77"N 81°48'01.23"E, पिनकोड- 491227
हितग्राही श्रीमती तुलसीबाई साहू का संपर्क सूत्र- 07771088038 (श्री कांशीराम साहू-पुत्र)
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री राजेन्द्र कश्यप, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-गुरुर, जिला-बालोद, छ.ग.।
2. श्रीमती संजुलता राजपूत, सरपंच, ग्रा.पं.- पेरपार, ज.पं.-गुरुर, जिला-बालोद, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्री ओम प्रकाश साहू, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बालोद, जिला-बालोद, छ.ग.।
लेखन एवं संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 18 January 2022

मनरेगा डबरी से फुलेशराम की खेती हुई बेहतर

धान की 25 क्विंटल अधिक हुई पैदावार
सब्जी-भाजी उत्पादन के साथ मछलीपालन से अतिरिक्त कमाई


स्टोरी/रायपुर/जांजगीर चांपा/18 जनवरी 2022. जांजगीर चांपा जिले में दमाऊ पहाड़ की सुरम्मयवादियों के बीच बसे हुए गांव बरपाली कलां के रहने वाले श्री फुलेशराम आज बेहद खुश नजर आते हैं। उनकी खुशी का असल कारण है, उनके खेतों में बनी हुई निजी डबरी। यह डबरी, उनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से बनी है, जिसमें एकत्र हुई बारिश की बूंदों से उनके जमीन में नमी बनी रही और धान की फसल बेहतर हो सकी। डबरी से मिले फायदे से फुलेशराम इतने उत्साहित हैं कि उन्होंने इसके इर्द-गिर्द ही अपने भविष्य की योजनाओं का ताना-बाना बुन लिया है। वे खेतों में धान की फसल के साथ ही मछलीपालन और सब्जी-भाजी उत्पादन का कार्य कर रहे हैं।

फुलेशराम की डबरी जहां पर बनी है, वह जगह जांजगीर-चांपा मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर और सक्ती विकासखण्ड से 15 किलोमीटर दूर बरपाली कलां ग्राम पंचायत में है। श्री फुलेशराम बरेठ पिता श्री कायतराम बरेठ के पास 5 एकड़ जमीन है, जिस पर वे कई सालों से खेती-किसानी करते आ रहे हैं, लेकिन जल संचय या जल स्त्रोतों के अभाव में वे हमेशा एक ही फसल ले पा रहे थे। अपनी इस समस्या से जूझते हुए एक दिन उनकी मुलाकात ग्राम रोजगार सहायक श्री अनिल कुमार जायसवाल से हुई। इस मुलाकात में उन्हें पता चला कि महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से खेतीहर किसानों की जमीन पर डबरी और कुआं निर्माण जैसे जल संसाधनों का निर्माण किया जा सकता है, जिससे किसान आवश्यकता अनुसार अपनी पानी की जरुरतों को पूरा कर सकते हैं। इनके निर्माण के दौरान हितग्राही को उसमें मजदूरी करने का अवसर भी मिलता है।

'एक पंथ दो काज' की कहावत की तरह यह बातें श्री फुलेशराम के समझ में आ गई और उन्होंने बिना एक पल की देरी किये, अपने खेत में डबरी बनाए जाने का आवेदन ग्राम पंचायत को दे दिया। अंततः ग्राम पंचायत के प्रयास से श्री फुलेशराम के खेत में निजी डबरी निर्माण के लिए 2.99 लाख रूपए की मंजूरी मिल गई और 4 दिसंबर 2020 को वहाँ डबरी खुदाई का काम शुरू हो गया। मनरेगा श्रमिकों के साथ ही उन्होंने भी डबरी की खुदाई में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। दिनांक 20 फरवरी 2021 को सभी की मेहनत सफल हुई और श्री फुलेशराम के खेत में डबरी का निर्माण पूरा हो गया। इस कार्य में गांव के ही 91 परिवारों को 1452 मानव दिवस रोजगार प्रदान किया गया, जिसके लिए उन्हें 2 लाख 75 हजार 880 रूपए की मजदूरी का भुगतान किया गया। वहीं दूसरी ओर हितग्राही श्री फुलेशराम के परिवार को भी इसमें रोजगार मिला और उन्हें इसके लिए 19 हजार 380 रूपए की मजदूरी प्राप्त हुई।

धान की 25 क्विंटल अधिक पैदावार
फुलेशराम बताते हैं कि जब डबरी नहीं बनी थी, तो खेती के लिये बारिश के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता था। यदि बारिश की आँख-मिचौली हो जाए, तो फिर पैदावार राम भरोसे हो जाती थी। ऐसी स्थिति में लगभग 80 क्विंटल के आस-पास ही धान की पैदावार हो पाती थी। वहीं इस साल इस डबरी की बदौलत उतनी ही जमीन पर 105 क्विंटल धान की पैदावार हुई, जो पिछले साल की तुलना में 25 क्विंटल अधिक थी। वे आगे बताते हैं कि इस साल हुई अधिक पैदावार से जो मुनाफा होगा, उससे वे खेती-किसानी के उपकरण खरीदेंगे। डबरी से हुए फायदे से उनके परिवार के सभी सदस्य विशेषकर उनकी जीवन संगिनी श्रीमती फिरतिन बाई बरेठ बहुत खुश हैं।

बाड़ी के साथ मछलीपालन
इस साल एक ओर जहाँ श्री फुलेशराम ने धान की फसल लगाई, जिससे उन्हें फायदा मिला। तो वहीं दूसरी ओर डबरी के आसपास की जमीन पर बाड़ी के रुप में टमाटर, मिर्च, धनिया, बरबट्टी आदि सब्जियां भी लगाई हैं, जो उनके परिवार के प्रतिदिन के भोजन की जरुरतों को पूरा कर रही हैं। इसके अलावा बारिश के बाद जब डबरी में पर्याप्त पानी भर गया था, तो उन्होंने मछलीपालन के उद्देश्य से उसमें 5 किलोग्राम मछली बीज डाले थे, जो आने वाले दिनों में उनकी अतिरिक्त आय का जरिया बनेंगे।
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एक नजरः-
कार्य का नाम- डबरी निर्माण, हितग्राही का नाम- फुलेशराम बरेठ, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम पंचायत- बरपाली कलां, विकासखण्ड- सक्ती, जिला- जांजगीर चांपा, स्वीकृत राशि- 299582.00 लाख रुपए,
व्यय राशि- 285342.00 लाख रुपए, कार्य प्रारंभ तिथि- 04.12.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 20.02.2021,
वर्क कोड- 3314003066/IF/1111495923, जी.पी.एस. लोकेशन- 22°07'34.9"N 82°51'20.1"E, पिनकोड- 495689,
सृजित मानव दिवस- 1452, नियोजित श्रमिकों परिवारों की संख्या- 91, मजदूरी भुगतान- 275880 रुपए,
संपर्क- हितग्राही श्री फुलेशराम बरेठ के पुत्र श्री सुरेश कुमार बरेठ का मोबाईल नं. 918085441620

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तथ्य एवं आंकड़े-श्री अनिल कुमार जायसवाल, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.- बरपाली कलां, ज.पं.-सक्ती, जिला-जांजगीर चांपा, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्रीमती आकांक्षा सिन्हा, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-सक्ती, जिला-जांजगीर चांपा, छ.ग.।
लेखन- श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-जांजगीर चांपा, जिला-जांजगीर चांपा, छ.ग.।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 23 December 2021

रोजगार के साथ ही कुपोषण को मात देने का काम, आंगनबाड़ियों में अंडों की आपूर्ति

# महात्मा गांधी नरेगा, 14वां वित्त आयोग एवं जिला खनिज संस्थान न्यास निधि के अभिसरण से सामुदायिक मुर्गीपालन.
# समूह की महिलाएँ मुर्गीपालन व अंडा उत्पादन कर हुईं आत्मनिर्भर.
# परंपरागत मुर्गीपालन को व्यावसायिक रूप देकर महिलाओं ने कमाए 25 लाख रूपए.



स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/23 दिसम्बर, 2021. आदिवासी अंचल की महिलाएं घर पर किए जाने वाले परंपरागत मुर्गीपालन को व्यावसायिक रूप देकर अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। अलग-अलग स्वसहायता समूहों की ये महिलाएं स्वरोजगार के साथ ही कुपोषण को मात देने का भी काम कर रही हैं। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम), डी.एम.एफ. (जिला खनिज संस्थान न्यास निधि) और 14वें वित्त आयोग के अभिसरण से सुदूर वनांचल बीजापुर जिले की 43 समूहों की महिलाएं सामुदायिक मुर्गीपालन कर अंडा उत्पादन कर रही हैं। स्थानीय जिला प्रशासन महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान हेतु आंगनबाड़ियों के लिए इन अंडों की खरीदी कर रही है। समूह की महिलाएं स्थानीय बाजारों में भी इन अंडों को बेचती हैं। विभिन्न स्वसहायता समूहों द्वारा जिले के 43 सामुदायिक मुर्गीपालन केन्द्रों में तीन लाख 77 हजार अण्डों का उत्पादन किया गया है। इनमें से तीन लाख 44 हजार अंडों की बिक्री से महिलाओं ने 25 लाख रूपए से अधिक की कमाई की है।

नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में वनोपज संग्रहण, कृषि और पशुपालन ग्रामीणों की आजीविका का प्रमुख आधार है। वहां के आदिवासी परिवार घरों में परंपरागत रूप से मुर्गीपालन करते हैं। स्थानीय महिलाओं की मुर्गीपालन में दक्षता और कुपोषण दूर करने में अंडा की उपयोगिता को देखते हुए बीजापुर जिला प्रशासन ने वर्ष 2020-21 में अलग-अलग योजनाओं के अभिसरण से सामुदायिक मुर्गीपालन के माध्यम से अंडा उत्पादन की आधारशिला रखी। इस परियोजना के अंतर्गत जिले में अभी 43 सामुदायिक मुर्गीपालन शेड संचालित किए जा रहे हैं। इनका निर्माण महात्मा गांधी नरेगा से प्राप्त 60 लाख नौ हजार रूपए, 14वें वित्त आयोग के 29 लाख 72 हजार रूपए और डी.एम.एफ. के एक करोड़ 27 लाख 26 हजार रूपए के अभिसरण से हुआ है। इस दौरान जिले के मनरेगा श्रमिकों को 6536 मानव दिवस का सीधा रोजगार भी प्राप्त हुआ।

स्वरोजगार के साथ ही कुपोषण से मुक्ति की लड़ाई में जिले के बीजापुर विकासखण्ड में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के अंतर्गत गठित नौ, भैरमगढ़ विकासखण्ड के 14, भोपालपटनम विकासखण्ड के सात और उसूर विकासखण्ड के 13 स्वसहायता समूहों की महिलाएं अपनी सहभागिता दे रही हैं। पशुपालन विभाग के तकनीकी मार्गदर्शन में मुर्गीपालन में व्यावसायिक दक्षता हासिल कर ये महिलाएं बी.वी. 380 लेयर बर्ड्स प्रजाति की मुर्गियों का पालन शेड में कर रही हैं। सामुदायिक मुर्गीपालन के लिए चूजों की आपूर्ति, केज की व्यवस्था तथा वर्षभर के लिए चारा एवं आवश्यक दवाईयों का इंतजाम डी.एम.एफ. के माध्यम से किया गया था।

बीजापुर विकासखण्ड के तोयनार ग्राम पंचायत में मुर्गी शेड का संचालन करने वाली रानी दुर्गावती स्वसहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती सोनमणि पोरतेक बताती हैं कि उसके समूह द्वारा अब तक 49 हजार अण्डों का उत्पादन किया गया है। इनमें से साढ़े 48 हजार अण्डों की बिक्री से करीब तीन लाख रूपए की आमदनी हुई है। उसूर विकासखण्ड के नुकनपाल पंचायत में मुर्गी शेड संचालित करने वाली काव्या स्वसहायता समूह की सचिव सुश्री पार्वती कहती है कि इस परियोजना से हम महिलाओं को अपनी आजीविका चलाने का साधन मिल गया है। आर्थिक रूप से हम सक्षम हो गई हैं। मुर्गीपालन से समूह को हर माह अच्छी कमाई हो रही है। जिला प्रशासन की कोशिशों और महिलाओं की मेहनत का असर अब दिखने लगा है। बीजापुर में कुपोषण तेजी से घट रहा है। अक्टूबर-2019 में कुपोषण की दर वहां लगभग 38 प्रतिशत थी, जो जुलाई-2021 में आयोजित वजन त्यौहार के आंकड़ों के मुताबिक 13 प्रतिशत गिरकर 25 प्रतिशत पर आ गई है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- स्व सहायता समूह हेतु पोल्ट्री फार्म निर्माण, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
विकासखण्ड (ग्राम पंचायत)-
1. बीजापुर विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- तोयनार, ईटपाल, चेरपाल, बोरजे, मोरमेड़ एवं पापनपाल (6).
2. भैरमगढ़ विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- जैवारम, मटवाड़ा, मंगलनार, पातरपारा, नेलसनार, मिरतुर, कोडोली, तालनार, टिन्डोडी, जांगला, कॉन्ड्रोजी, मंगापेठा एवं फरसेगढ़ (13).
3. भोपालपटनम विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- तमलापल्ली, संगमपल्ली, दम्पाया, चेरपल्ली, रुद्राराम, गोटाइगुड़ा एवं भद्रकाली (7).
4. उसूर विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- आवापल्ली, नुकनपाल, मुरदण्डा, इलमिड़ी, संकनपल्ली, हीरापुर एवं बासागुड़ा (7).
परियोजना में शामिल 43 सामुदायिक मुर्गीशेड निर्माण में योजनावार लागत- महात्मा गांधी नरेगा से 60.09 लाख, 14वां वित्त आयोग से 29.72 लाख एवं जिला खनिज संस्थान न्यास निधि से 127.26 लाख रुपए।
प्रति इकाई लागत-
(क) 100 मुर्गियों के लिए एक सामुदायिक शेड की स्वीकृत राशि-
1.83 लाख रुपए (महात्मा गांधी नरेगा-1.13 लाख एवं 14वां वित्त आयोग राशि- 0.70 लाख)
(ख) 200 मुर्गियों के लिए एक सामुदायिक शेड की स्वीकृत राशि-
2.48 लाख रुपए (महात्मा गांधी नरेगा-1.48 लाख एवं 14वां वित्त आयोग राशि- 1 लाख)
(ग) प्रति यूनिट हेतु 50 मुर्गियाँ, वर्षभर का चारा, आवश्यक दवाईयाँ व केज हेतु स्वीकृत राशि-
1.14 लाख रुपए (जिला खनिज संस्थान न्यास निधि)

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तथ्य-आंकड़े एवं रिपोर्टिंग - श्री मनीष सोनवानी, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
लेखन - श्री प्रशांत यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन एवं संपादन -
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग - श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

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Friday, 17 December 2021

पपीता की खेती ने बदली कुंजबाई की किस्मत

दो एकड़ में 500 क्विंटल पपीता का उत्पादन, बिक्री से मिले 4 लाख रूपए.


महात्मा गांधी नरेगा, उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केन्द्र के अभिसरण से शुरू की पपीता की खेती, इस साल खुद के पैसे से लगाए हैं 2600 पौधे.


रायपुर. 17 दिसम्बर 2021. महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम), उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र के अभिसरण से धान के बदले पपीता की खेती शुरू करने वाली श्रीमती कुंजबाई की किस्मत पपीता की एक फसल ने बदल दी है। उसके दो एकड़ खेतों में 500 क्विंटल पपीता का उत्पादन हुआ है। पपीता की गुणवत्ता ऐसी कि बिलासपुर के फल व्यवसाईयों ने खेत में खड़ी फसल ही खरीद ली। इससे कुंजबाई को चार लाख रूपए मिले। पपीता की पहली फसल के मुनाफे से उत्साहित कुंजबाई ने इस बार अपने पैसों से इसके 2600 पौधे लगाए हैं।

बेमेतरा जिले के बाराडेरा ग्राम पंचायत के आश्रित गांव मुंगेली की श्रीमती कुंजबाई साहू चार एकड़ की सीमांत किसान हैं। महात्मा गांधी नरेगा तथा उद्यानिकी विभाग के अभिसरण से मिले संसाधनों और बेमेतरा कृषि विज्ञान केन्द्र के मार्गदर्शन में उन्होंने पिछले साल अपने दो एकड़ खेत में पपीते के दो हजार पौधे लगाए थे। इनसे 500 क्विंटल पपीता की पैदावार हुई, जिसे थोक फल विक्रेताओं ने आठ रूपए प्रति किलोग्राम की दर से उनके खेतों से ही खरीद लिया। पपीता के पेड़ों में फल आने के बाद उद्यानिकी विभाग की मदद से बिलासपुर के थोक फल विक्रेताओं ने उससे संपर्क किया। अच्छी फसल देखकर व्यापारियों ने तुरंत ही पूरे दो एकड़ के फल खरीद लिए। कुंजबाई को पपीता की बिक्री के लिए कहीं बाहर जाना नहीं पड़ा और घर में ही रहकर फसल के अच्छे दाम मिल गए। इससे उत्साहित होकर उसने इस साल पपीता के 2600 पौधे लगाए हैं। कुंजबाई ने कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर पिछले वर्ष पपीता के पौधों के बीच में अंतरवर्ती फसल के रूप में भुट्टा, कोचई और अन्य सब्जियों की भी खेती की। इससे उसे अतिरिक्त कमाई हुई।

कुंजबाई का परिवार पहले परंपरागत रूप से धान की खेती से जीवन निर्वाह करता था। इसमें लगने वाली मेहनत और लागत की तुलना में फायदा कम होता था। कृषि विज्ञान केन्द्र बेमेतरा में सब्जी और फलों की खेती से होने वाले लाभ के संबंध में आयोजित प्रशिक्षण में शामिल होने से उसके विचार बदले। वहां विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए रास्ते पर चलने का निर्णय तो उसने ले लिया था, लेकिन आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होने के कारण इसे शुरू नहीं कर पा रही थी। ग्राम पंचायत ने इस काम में उसकी सहायता की और महात्मा गांधी नरेगा के साथ उद्यानिकी विभाग की योजना का अभिसरण कर उसके दो एकड़ खेत में एक लाख 27 हजार रूपए की लागत से पपीता की खेती का प्रस्ताव स्वीकृत कराया।

कुंजबाई के खेत में जून-2020 में पपीता उद्यान का काम शुरू हुआ। महात्मा गांधी नरेगा से भूमि विकास का काम किया गया। इसमें दस मनरेगा मजदूरों को 438 मानव दिवस का रोजगार मिला, जिसके लिए 83 हजार रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया। कुंजबाई के परिवार को भी इसमें रोजगार मिला और 33 हजार रूपए की मजदूरी प्राप्त हुई। उद्यानिकी विभाग ने पपीता की खेती के लिए ड्रिप-इरिगेशन, खाद और पौधों की व्यवस्था की। खेत के तैयार होने के बाद कुंजबाई ने अपने बेटे श्री रामखिलावन साहू और बहु श्रीमती मालती बाई के साथ कृषि विज्ञान केन्द्र के मार्गदर्शन में दो हजार पौधों का रोपण किया। वहां के वैज्ञानिकों ने उसके परिवार को पपीता की खेती की बारिकियों का प्रशिक्षण दिया। महात्मा गांधी नरेगा, उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र की सहायता से कुंजबाई के परिवार की मेहनत रंग लाई और उसकी दो एकड़ की फसल चार लाख रूपए में बिकी। आधुनिक तौर-तरीकों से खेती उसे अच्छा मुनाफा दे रही। इससे उसका परिवार तेजी से समृद्धि का राह पर बढ़ रहा है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कुंजबाई/उमाशंकर का पपीता उद्यान कार्य, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम- मुंगेली, ग्राम पंचायत- बाराडेरा, विकासखण्ड- बेमेतरा, स्वीकृत राशि- 1.27 लाख रुपए, व्यय राशि- 1.23 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 08.06.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 02.07.2021, वर्क कोड- 3303002044/IF/1111497272,
परियोजना में शामिल योजनावार लागतें-
महात्मा गांधी नरेगा से 87 हजार रुपए, उद्यानिकी विभाग से 30 हजार रुपए एवं हितग्राही अंशदान 10 हजार रुपए
सृजित मानव दिवस- 438, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 10, मजदूरी भुगतान- 83,265 रुपए,
हितग्राही का नाम- श्रीमती कुंजबाई साहू, पति स्व. श्री उमाशंकर साहू (जॉब कार्ड नं.- CH-03-002-044-003/182-A)
हितग्राही श्रीमती कुंजबाई साहू, उनके पुत्र श्री रामखिलावन और पुत्रवधु श्रीमती आरती को प्राप्त रोजगार दिवस एवं मजदूरी- 174 मानव दिवस एवं 33,087 रुपए।
कृषि विज्ञान केन्द्र से मार्गदर्शन- डॉ. चेतना बंजारे
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री राकेश कुमार टंडन, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-बेमेतरा, जिला-बेमेतरा, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप वारे, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बेमेतरा, जिला-बेमेतरा, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्री नवीन कुमार साहू, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बेमेतरा, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन एवं संपादन -
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Saturday, 28 August 2021

मनरेगा का मुर्गीपालन शेड बना समूह की महिलाओं के लिए कर्मभूमि

आत्मनिर्भर बनकर कर रही हैं मुर्गीपालन का व्यवसाय.
आजीविका संवर्धन गतिविधि से गांव में महिलाओं को मिल रही है सराहना.




स्टोरी/रायपुर/जांजगीर-चाँपा/28 अगस्त, 2021. कोई कहानी ऐसे ही नहीं बनती बल्कि उसके पीछे अथक मेहनत, परिश्रम और एक बेहतर सोच होती है। ऐसी ही सोच को पहचानने का काम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के बेहतर तालमेल के साथ किया गया। जांजगीर-चाँपा जिले के बलौदा विकासखण्ड के गांव औराईकला की स्व सहायता समूह की महिलाओं के लिए महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से बनाया गया पोल्ट्री शेड फलीभूत साबित हुआ और उनके लिए कर्मभूमि बन गया। कर्मभूमि ऐसा बना कि पोल्ट्री शेड निर्माण के बाद से ही महिलाओं ने भविष्य की उम्मीदों का ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया। आज समूह की महिलाओं ने गांव में रहते हुए अपने आपको आत्मनिर्भर बनाया और मुर्गीपालन क्षेत्र में हाथ आजमाते हुए सफलता की सीढ़ियों को चढ़ना शुरू किया। उनके आत्मनिर्भर बनने से उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हुई और वे गांव के लिए एक मिसाल बनकर उभरने लगीं।

बलौदा विकासखण्ड की ग्राम पंचायत औराईकला के मोहारपारा की जय सती माँ स्व सहायता समूह की महिलाओं ने अपनी जिंदादिली, मेहनत एवं कुछ अलग कर दिखाने का जज्बे के चलते अपने रोजमर्रा के कामों को निपटाते हुए पहले तो अपने समूह का नियमित रूप से संचालन करते हुए बैठकें कीं। साथ ही अपने सभी दस्तावेजों का संधारण नियमित रूप से किया। उसके बाद समूह ने शुरूआती दिनों में छोटी-छोटी बचत करके जो पैसा जमा किया, उस राशि को कम ब्याज पर जरूरतमंदों को देकर उनकी मदद की। इससे वे गाँव में लोकप्रिय होने लगीं और धीरे-धीरे आर्थिक रुप से मजबूत होने लगीं। जब उनके पास नियमित बचत के जरिये कुछ रकम जमा हुई, तो उन्होंने मुर्गीपालन व्यवसाय के जरिये आत्मनिर्भर होने का सोचा। इस सोच को हकीकत में बदलने के लिए उन्हें एक बहुत बड़े शेड की जरूरत थी, जिसमें वे मुर्गीपालन कर सकें। लेकिन इस समूह के पास शेड निर्माण के लायक कोई बड़ी बचत राशि नहीं थी।

स्व सहायता समूह की महिलाओं ने अपनी इस जरूरत को ग्राम पंचायत के माध्यम से ग्राम सभा के समक्ष रखा। तब इन महिलाओं की इच्छाशक्ति और आत्मबल को देखते हुए ग्राम रोजगार सहायक श्री पीलासिंह गोड़ ने आजीविका गतिविधियों के संचालन हेतु महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से मुर्गीपालन शेड बनाकर दिये जाने की बात बताई। बस फिर क्या था, ग्राम सभा के अनुमोदन के आधार पर वर्ष 2020-21 में 5 लाख रुपये की लागत से महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत समूह के लिए मुर्गीपालन शेड निर्माण का कार्य मंजूर हो गया। इस राशि से ग्राम पंचायत ने तत्काल गाँव में बने गोठान (पशु आश्रय स्थल) के साथ में खाली पड़ी जमीन पर समूह के लिए एक मुर्गीशेड का निर्माण करा दिया। इस प्रकार महात्मा गांधी नरेगा से जहाँ समूह को मुर्गीपालन व्यवसाय के लिए शेड मिला, तो वहीं 65 मनरेगा श्रमिकों को गाँव में ही 277 मानव दिवस का रोजगार भी मिला। पोल्ट्री शेड निर्माण होने के बाद तो समूह की महिलाओं को आर्थिक उन्नति के मानो पंख ही मिल गए हों और वे उन्मुक्त गगन में अपने पंखों को पसार कर उड़ने के लिए तैयार हो गई।
 

हार के बाद जीत

समूह की अध्यक्ष श्रीमती रूप बाई बिंझवार बताती हैं कि शेड के मिलने के साथ ही मुर्गीपालन कैसे किया जाता है, इसके बारे में विस्तार से पशुपालन विभाग के डॉक्टरों से प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया गया। इसके बाद छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) योजना से अनुदान राशि के रुप में मिले रिवाल्विंग फंड के 15 हजार रूपए एवं सी.आई.एफ. (सामुदायिक निवेश निधि) के 60 हजार रुपए से शेड में मुर्गीपालन का काम शुरू किया। इसके अंतर्गत सबसे पहले काकरेल प्रजाति के 600 चूजे खरीदे गए, जिन्हें नियमित आहार, पानी, दवा एवं अन्य सुविधाएं देकर छह सप्ताह में बड़ा किया गया। वे आगे बताती हैं कि इसी दरम्यान मौसम के खराब होने के कारण कई चूजों की मौत हो गई, जिससे समूह को काफी नुकसान हुआ। इन सबके बावजूद समूह की महिलाओं ने हार नहीं मानी और अपने आत्मबल एवं समूह की शक्ति के दम पर फिर से मुर्गीपालन के काम में जुट गई। इस बार समूह ने 600 ब्रायलर चूजे खरीदे और उनकी देखभाल करना शुरू किया। धीरे-धीरे ये चूजे बड़े हो गए। आखिरकार इन महिलाओं की मेहनत रंग लाई और चाँपा के एक बड़े व्यवसायी ने मुर्गों को बेहतर दाम देकर खरीद लिया। इस बार समूह को मुर्गीपालन से लाभ हुआ और सभी खर्चों को काटकर उन्हें लगभग 30 हजार रूपए की बचत हुई।

मुर्गीपालन से समूह को पहली बार हुए लाभ के बारे में बताते हुए समूह की सचिव श्रीमती मालती चौहान कहती हैं कि इस बार समूह की सभी सदस्य काफी खुश थीं। सभी का उत्साह भी दो-गुना हो चुका था। समूह ने फिर एक कदम आगे बढ़ाते हुए लगभग 600 चूजे और खरीद लिए, जो बड़े हुए तो उन्हें बेचने से समूह को लगभग 50 हजार रूपए का मुनाफा हुआ। इसने समूह में एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया था, सो अब उनके कदम कहाँ रूकने वाले थे। उन्होंने फिर 600 ब्रायलर चूजे खरीदे, जिन्हें फिलहाल दाना-पानी देकर बड़ा किया जा रहा है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इनको बेचने से समूह को लाभ होगा।

पंचायत से मिली मदद

ग्राम के सरपंच श्री दशरथ यादव बताते हैं कि मुर्गीपालन का कार्य ध्यानपूर्वक किये जाने वाला कार्य है। यहाँ चूजों और मुर्गियों की नियमित रूप से देखभाल करनी पड़ती है। इसलिए समय-समय पर इनके स्वास्थ्य जाँच के लिए पंचायत द्वारा समय-समय पर पशुपालन विभाग के वेटनरी डॉक्टरों को बुलाया जाता है, ताकि इनको किसी तरह की कोई बीमारी न हो सके। पंचायत द्वारा महिलाओं को मुर्गीपालन व्यवसाय के लिए लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अलावा उनके व्यवसाय को बढ़ाने के लिए मुर्गी व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों से भी संपर्क करके उन्हें अच्छे दाम दिलवाने का प्रयास किया जा रहा है।

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एक नजरः-
ग्राम पंचायत- औराईकला, विकासखण्ड- बलौदा, जिला- जांजगीर-चाँपा,
कार्य का नाम- गौठान में पोल्ट्री शेड हेतु शेड निर्माण कार्य(कार्य श्रेणी- एन.आर.एल.एम. स्व सहायता समूह हेतु वर्कशेड निर्माण),
क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, पिनकोड- 495668, स्वीकृत वर्ष- 2020-21, स्वीकृत राशि- रुपए 5.00 लाख, 
नियोजित श्रमिकों की संख्या- 65, सृजित मानव दिवस- 277, मजदूरी भुगतान- रुपए 52,580.00 लाख, व्यय राशि- 4.94 लाख,  जी.पी.एस. लोकेशन- 22°05'20.2" N 82°34'47.4"E, कार्य का कोड- 3314006038/AV/1111387451
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तथ्य एवं आंकड़े- 1. श्री हृदय शंकर, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बलौदा, जिलाः जांजगीर-चाँपा, छत्तीसगढ़।
                            2. श्री पीलासिंह गोंड, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-औराईकला, जिलाः जांजगीर-चाँपा, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायतः जांजगीर-चाँपा, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 17 August 2021

हिकारत से देखने वाले अब इन्हें ‘स्वच्छता दीदी’ कहते हैं

महात्मा गांधी नरेगा और स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अभिसरण से बने
सेग्रिगेशन शेड ने बदली गम्हरिया की सूरत.

गांव के कचरे का निस्तारण कर महिलाओं ने कमाए 63 हजार रूपए.



स्टोरी/रायपुर/जशपुर/17 अगस्त, 2021. महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अभिसरण से बने सेग्रिगेशन शेड ने जशपुर जिले के गम्हरिया गांव की सूरत बदल दी है। वहाँ की ‘स्वच्छता दीदियां’ कचरे का निस्तारण कर गाँव की सड़कों, गलियों और चौक-चौराहों को स्वच्छ रखने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। खुले में शौचमुक्त गाँव बनने के बाद अब गम्हरिया प्लास्टिक एवं कूड़ा-करकट मुक्त ग्राम पंचायत भी बन गया है। सड़कों, गलियों और चौक-चौराहों पर फेंके जाने वाले कचरे को वहाँ की ‘सूरज स्वसहायता समूह’ की महिलाओं ने अतिरिक्त कमाई का जरिया बनाया है। पिछले एक साल में इस समूह ने कचरे के निस्तारण और यूजर चार्ज से 63 हजार रूपए कमाए हैं।

कचरा संकलन तथा उसे अलग-अलग कर निस्तारित करने का काम इन महिलाओं के लिए सहज-सरल नहीं था। शुरूआत में जब वे रिक्शा लेकर कचरा संकलन के लिए घर-घर जाती थीं, तो लोग उन्हें ऐसे देखते थे जैसे वे कोई खराब काम कर रही हों। लोगों की हिकारत भरी नजरों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और ग्राम पंचायत के सहयोग से इस काम को जारी रखा। इनके काम से गाँव लगातार साफ-सुथरा होते गया, तो लोगों का नजरिया भी बदलने लगा। अब गाँववाले इन्हें सम्मान के साथ ‘स्वच्छता दीदी’ कहकर पुकारते हैं।

गम्हरिया की सूरज स्वसहायता समूह की महिलाएँ सफाई मित्र के रूप में घर-घर जाकर कचरा संकलित करती हैं। सेग्रिगेशन शेड यानि ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन केन्द्र में वे संकलित कचरा में से उनकी प्रकृति के हिसाब से उन्हें अलग-अलग करती हैं। कूड़े-कचरे के रूप में प्राप्त पॉलीथिन, खाद्य सामग्रियों के पैकिंग रैपर, प्लास्टिक के सामान, लोहे का कबाड़ एवं कांच जैसे ठोस अपशिष्टों को अलग-अलग करने के बाद बेच दिया जाता है। समूह की सचिव श्रीमती सुनीता कुजूर बताती हैं कि पंचायत द्वारा निर्मित सेग्रिगेशन शेड (कचरा संग्रहण केंद्र) में समूह की 12 महिलाएं जुलाई-2020 से कार्य कर रही हैं। शेड में एकत्रित ठोस कचरे की बिक्री से समूह को अब तक 28 हजार रूपए की कमाई हुई है। समूह द्वारा डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन के लिए हर घर से प्रति माह दस रूपए और दुकानदारों से प्रति दुकान हर महीने 20 रूपए का यूजर चार्ज (स्वच्छता शुल्क) लिया जाता है। बीते एक साल में समूह के पास 35 हजार रूपए का यूजर चार्ज इकट्ठा हुआ है।

गाँव के सरपंच श्री विलियम कुजूर बताते हैं कि ग्राम पंचायत के प्रस्ताव पर ग्रामसभा के अनुमोदन के बाद महात्मा गांधी नरेगा से दो लाख 69 हजार रूपए और स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) से एक लाख 85 हजार रूपए के अभिसरण से कुल चार लाख 54 हजार रूपए की लागत से सेग्रिगेशन शेड (ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन केन्द्र) बनाया गया है। इस काम में गाँव के छह परिवारों के 11 श्रमिकों को 74 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हुआ था। इसके लिए उन्हें 13 हजार रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया। महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से निर्मित इस परिसम्पत्ति से गांव में स्वच्छता अभियान को नई दिशा मिली है। साथ ही गाँव की 12 महिलाओं को कमाई का अतिरिक्त साधन भी मिला है।
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एक नजरः-
ग्राम पंचायत- गम्हरिया, विकासखण्ड- जशपुर, जिला- जशपुर,
कार्य का नाम- स्व सहायता समूह के लिए वर्क शेड, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, पिनकोड- 496331
स्वीकृत वर्ष- 2018-19, पूर्णता वर्ष- 2020-21,
स्वीकृत राशि- रुपए 4.54 लाख (महात्मा गांधी नरेगा- 2.69 लाख व स्वच्छ भारत मिशन-ग्रा. – 1.85 लाख),
सृजित मानव दिवस- 74, मजदूरी भुगतान- रुपए 13,024.00, व्यय राशि- 4.16 लाख, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 11
कार्य का कोड- 3307012012/AV /1111321308, जी.पी.एस. लोकेशन- 22°52'22.6164"N 84°9'44.892"E
 
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रिपोर्टिंग – श्री शशिकांत गुप्ता, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-जशपुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य व आंकड़े – श्री राजेश जैन, जिला सलाहकार, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री अश्वनी व्यास, समन्वयक (शिकायत निवारण), जिला पंचायत-जशपुर, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Friday, 6 August 2021

वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ बेचकर महिलाओं ने 6 महीनों में ही कमाए 6 लाख रूपए

मनरेगा से बने 30 टांकों में वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ का उत्पादन.

समूह की महिलाएं ज्यादा कमाई के लिए बकरीपालन भी कर रहीं, 70 हजार रूपए की खरीदी बकरियां.


स्टोरी/रायपुर/धमतरी/06 अगस्त, 2021.
महिलाएं घर के भीतर और बाहर दोनों जगह मोर्चा संभाल रही हैं। घर के काम निपटाने के बाद वे स्वसहायता समूह बनाकर स्वरोजगार कर आर्थिक तौर पर भी स्वावलंबी बन रही हैं। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) से जुड़ीं धमतरी जिले के कुरूद विकासखंड की गातापार (को) की महिलाएं अपनी उद्यमिता से सफलता की नई इबारत लिख रही हैं। वहां की ‘कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह’ की महिलाओं ने वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ उत्पादन का काम शुरू किया और छह महीनों में ही छह लाख रूपए की कमाई कर लीं। गांव में वर्मी कंपोस्ट निर्माण के लिए महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से बनाए गए 30 टांकों ने उनकी सफलता की बुनियाद रखी। अपनी सीखने की ललक, हुनर और मेहनत से उन्होंने इसे परवान चढ़ाया।

सामान्य बचत से शुरूआत कर समूह के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने वाली इन महिलाओं का सफर वित्तीय वर्ष 2020-21 में तब शुरू हुआ, जब पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा से गांव में आठ लाख रूपए की लागत से सामुदायिक वर्मी कम्पोस्ट इकाई का निर्माण हुआ। ग्राम पंचायत ने चरणबद्ध तरीके से 30 टांके बनवाएं। इस काम में 88 मनरेगा श्रमिकों को सीधा रोजगार मिला। इस दौरान 561 मानव दिवसों का सृजन कर श्रमिकों को एक लाख रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया। टांकों के निर्माण के दौरान ही समूह की महिलाओं ने कृषि विभाग की मदद से जैविक खाद उत्पादन का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया था। टांके बनने के बाद वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए पंचायत ने तत्काल इन्हें कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह को सौंप दिया। समूह ने इसी साल (2021 में) जैविक खाद बनाने का काम शुरू किया और पिछले छह महीनों में ही 295 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री कर एक लाख 33 हजार रूपए कमाए। जैविक खाद के साथ ही महिलाएं इसे तैयार करने में सहयोगी केंचुएं भी बेच रही हैं। बीते छह महीनों में 24 क्विंटल केंचुआ बेचकर महिलाओं ने चार लाख 62 हजार रूपए का शुद्ध मुनाफा कमाया है।

कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती मालती यादव बताती हैं कि उनके 11 सदस्यों वाले समूह ने पंचायत से टांका मिलने के बाद वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन शुरू किया था। प्रत्येक टांका में भराव की क्षमता 30 से 35 क्विंटल की है। समूह ने पिछले छह माह में 320 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट बनाया है, जिसमें से 295 क्विंटल बेचा जा चुका है। इससे समूह को दो लाख 95 हजार रूपए मिले हैं। लागत एवं अन्य खर्चों को काटकर एक लाख 33 हजार रूपए की शुद्ध आमदनी हुई है।

समूह की सचिव श्रीमती निर्मला साहू बताती हैं कि वे लोग महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित सामुदायिक वर्मी कम्पोस्ट इकाई में जैविक खाद के साथ ही केंचुआ उत्पादन भी कर रही हैं। उन्होंने अब तक 50 क्विंटल केंचुआ का उत्पादन कर लिया है। इनमें से 24 क्विंटल की बिक्री भी हो चुकी है, जिससे समूह को चार लाख 80 हजार रूपए प्राप्त हुए हैं। इकाई के संधारण एवं केंचुआ खरीदी पर हुए खर्चों को काटने के बाद समूह को इससे चार लाख 62 हजार रूपए की शुद्ध आय हुई है। समूह की सदस्य श्रीमती गौरी ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट से हुई कमाई से समूह ने बकरीपालन शुरू किया है। इसके लिए 70 हजार रूपए की बकरियां खरीदी गई हैं। उनका समूह भविष्य में पशुपालन के काम को आगे बढ़ाना चाहता है। इसके लिए 50 हजार रूपए अलग से रखे गए हैं। वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए गौठान में भी 50 हजार रूपये लगाए हैं।

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एक नजरः-
ग्राम पंचायत- गातापार (को.), विकासखण्ड- कुरुद, जिला- धमतरी,
कार्य का नाम- वर्मी कम्पोस्ट टांका निर्माण कार्य (30 नग), क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, पिनकोड- 493663
स्वीकृत वर्ष- 2020-21, स्वीकृत राशि- रुपए 8.09 लाख, सृजित मानव दिवस- 561, मजदूरी भुगतान- रुपए 1.06 लाख
व्यय राशि- 7.03 लाख, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 88, जी.पी.एस. लोकेशन- 20°52'27.85" N 81°32'57.66"E,
कार्य का कोड- 3309002006/RS/1111362455, 309002006/RS/1111364347, 3309002006/RS/1111363820, 3309002006/RS/1111361562, 3309002006/RS/1111366730


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रिपोर्टिंग - श्री धरम सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी, छत्तीसगढ़।
तथ्य व आंकड़े – श्रीमती कुंति देवांगन, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-कुरुद, जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़।
लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 5 August 2021

मनरेगा से बने तालाब ने दिया आजीविका का नया साधन, बेटी की बीमारी में साबित हुई संजीवनी

मछलीपालन से 6 माह में ही 50 हजार की कमाई,
सिंचाई की व्यवस्था होने से खेती में भी बढ़ी आमदनी.


थैलेसीमिया की बिमारी से जूझ रही है 10 साल की पूर्णिमा.


स्टोरी/रायपुर/कोरिया/05 अगस्त, 2021. महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) कई रूपों में लोगों का जीवन बदल रहा है। जरूरत के समय सीधा रोजगार देने के साथ ही आजीविका के साधनों को भी मजबूत कर रहा है। ग्रामीणों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए रोजगार के वैकल्पिक साधन भी निर्मित कर रहा है। कोरिया जिले के किसान श्री धर्मपाल सिंह के जीवन में मनरेगा हवा का सुखद झोंका लेकर आया है। खेत में मनरेगा से बने तालाब में मछलीपालन कर वे अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं। सिंचाई का साधन मिलने से खेती में अब जोखिम कम हो गया है। पैदावार बढ़ गई है और मुनाफा भी। बेहतर हुई माली हालत के कारण बेटी के थैलेसीमिया से पीड़ित होने पर अच्छा उपचार करा पाए। इलाज हेतु आर्थिक मदद के लिए किसी का मुंह नहीं ताकना पड़ा। मुश्किल वक्त में महात्मा गांधी नरेगा से बना तालाब संजीवनी बन गया।

मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड के मुसरा ग्राम पंचायत के आश्रित गांव बाही के साढ़े तीन एकड़ जोत के छोटे किसान हैं श्री धर्मपाल सिंह। महात्मा गांधी नरेगा से खेत में तालाब खुदाई के पहले उनकी कृषि बारिश के भरोसे थी। धान की खेती के बाद आजीविका के लिए वे महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत होने वाले कार्यों तथा गांव के दूसरे बड़े किसानों के यहां मिलने वाले कामों पर निर्भर थे। अपनी पत्नी श्रीमती लक्ष्मी के साथ मजदूरी कर परिवार का पेट पालते थे। पांच सदस्यों के परिवार में जब उनकी तीसरी संतान दस साल की पूर्णिमा को थैलेसीमिया नामक रक्त न बनने की बीमारी हुई, तो परिवार परेशानी में आ गया। श्री धर्मपाल सिंह के सामने परिवार के भरण-पोषण के साथ बेटी के लगातार चलने वाले इलाज के लिए पैसों के इंतजाम की भी चुनौती थी।

इस कठिन समय में सहायक मत्स्य अधिकारी श्री हिमांचल नाथ वर्मा की सलाह उम्मीद की किरण लेकर आई। उन्होंने आजीविका संवर्धन और आमदनी बढ़ाने के लिए श्री धर्मपाल सिंह को मछलीपालन की सलाह दी। महात्मा गांधी नरेगा के तहत खेत में तालाब निर्माण के लिए श्री धर्मपाल सिंह के आवेदन के ग्रामसभा में अनुमोदन के बाद वर्ष 2019-20 में इसके लिए तीन लाख रूपए मंजूर किए गए। तालाब खुदाई के लिए मछलीपालन विभाग को निर्माण एजेंसी बनाया गया। तालाब निर्माण के दौरान श्री धर्मपाल सिंह के परिवार को भी 84 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें 15 हजार रूपए की मजदूरी मिली।

खेत में तालाब के निर्माण से जहां कम बारिश की स्थिति में फसलों को बचाने का साधन मिल गया, तो वहीं इससे खेतों में नमी भी बनी रहने लगी। तालाब खुदाई के बाद पिछले साल से श्री धर्मपाल सिंह के खेतों में धान की अच्छी उपज होने लगी है। वे धान के बाद अब सब्जी की भी खेती कर रहे हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त कमाई होने लगी है। पिछले साल रबी सीजन में उन्होंने उड़द लगाकर एक क्विंटल उत्पादन प्राप्त किया था। तालाब में मछलीपालन का धंधा भी अच्छा चल रहा है। पिछले एक साल से बेटी के लगातार चल रहे इलाज में मछलीपालन से हो रही कमाई ने अच्छा संबल दिया है। थैलेसीमिया के कारण उसे हर माह खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। श्री धर्मपाल सिंह के मुश्किल समय में महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित तालाब ने बड़ा सहारा दिया है। बीते छह महीनों में उन्होंने मछली बेचकर 50 हजार रूपए कमाए हैं। इसकी बदौलत उन्होंने परिवार के भरण-पोषण और बेटी के इलाज के खर्च की चुनौतियों का मजबूती से सामना किया है। 

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एक नजरः-
कार्य का नाम- नवीन तालाब निर्माण कार्य, हितग्राही- श्री धर्मपाल पिता श्री विक्रम सिंह, क्रियान्वयन एजेंसी- मत्स्य विभाग
ग्राम पंचायत- मुसरा, विकासखण्ड- मनेन्द्रगढ़, जिला- कोरिया, कार्य का कोड- 3306004031/IF/1111333842
स्वीकृत वर्ष- 2018-19, स्वीकृत राशि- रुपए 3 लाख, सृजित मानव दिवस- 1441,
पूर्णता वर्ष- 2020-21, मजदूरी भुगतान- रुपए 2.54 लाख, कुल व्यय राशि- रुपए 2,54,948.00 मात्र
जी.पी.एस. लोकेशन- 23°34'84.38" N 82°19'85.76"E, पिनकोड- 497442

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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं आंकड़े - श्री रमणीक गुप्ता, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-मनेन्द्रगढ़, जिला-कोरिया, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

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Monday, 2 August 2021

खेतों में पेड़ों के बीच फसलें उगाईं तो होने लगी लाखों की कमाई

महात्मा गांधी नरेगा फलोद्यान ने बदली किसानों की तकदीर, आम उत्पादक किसान के रुप में मिली नई पहचान


स्टोरी/रायपुर/दंतेवाड़ा/02 अगस्त, 2021. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी नरेगा) से मिले संसाधनों और परस्पर सहकार की भावना ने दंतेवाड़ा के आठ किसानों की जिंदगी बदल दी है। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से लगे गीदम विकासखण्ड के कारली गाँव के आठ आदिवासी किसानों ने करीब दस हेक्टेयर भूमि में महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से आम के एक हजार पौधों लगाए थे। दस साल पहले रोपे गए ये पौधे अब 10 से 12 फीट के हरे-भरे फलदार पेड़ बन चुके हैं। पिछले छह वर्षों से ये किसान आम के पेड़ों के बीच अंतरवर्ती फसल के रुप में सब्जियों, दलहन-तिलहन एवं धान की उपज भी ले रहे हैं। आम की पैदावार के साथ अंतरवर्तीय खेती से उन्हें सालाना चार से पाँच लाख रुपयों की अतिरिक्त कमाई हो रही है। ये किसान अब अपने इलाके में आम उत्पादक कृषक के रुप में भी जाने-पहचाने लगे हैं।

दंतेवाड़ा कृषि विज्ञान केन्द्र और कारली गाँव के आदिवासी किसान श्री राजूराम कश्यप आम से खास बनने की इस कहानी के नायक हैं। श्री कश्यप के खेत की सीमा से गाँव के ही श्री छन्नू, श्री दसरी, श्री अर्जुल, श्री झुमरलाल, श्री पाली, श्री सुन्दरलाल और श्री पाओ की कृषि भूमि लगती है। इन आठों किसानों की कुल 16 हेक्टेयर जमीन में से दस हेक्टेयर सिंचाई के साधनों के अभाव में वर्षों से बंजर पड़ी थी। श्री राजूराम कश्यप की सबसे ज्यादा दो हेक्टेयर जमीन अनुपयोगी पड़ी थी। अपनी और साथी किसानों की इस समस्या को लेकर उन्होंने दंतेवाड़ा के कृषि विज्ञान केन्द्र में संपर्क किया। वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होंने साथी किसानों से चर्चा कर खाली पड़ी जमीन पर फलदार पौध लगाने की योजना पर काम शुरु किया।

किसानों की सहमति मिलने के बाद, कृषि विज्ञान केन्द्र ने वर्ष 2011-12 में महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत नौ लाख 56 हजार रुपयों की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त कर 25 एकड़ बंजर भूमि का फलोद्यान के रुप में विकसित करने का काम शुरु किया। वैज्ञानिक पद्धति से वहाँ एक हजार आम के पौधे रोपे गए, जिनमें 500 नग दशहरी और 500 नग बैगनफली प्रजाति के थे। प्रत्येक पौधों के बीच दस-दस मीटर की दूरी रखी गई, ताकि उनकी वृद्धि अच्छे से हो सके। समय-समय पर खाद का भी छिड़काव भी गया। परियोजना की सफलता के लिए यह जरुरी था कि फलोद्यान के संपूर्ण प्रक्षेत्र को सुरक्षित रखा जाए। इसके लिए 13वें वित्त आयोग की राशि के अभिसरण से 12 लाख 58 हजार रूपए की लागत से तार फेंसिग की गई एवं सिंचाई के लिए दो ट्यूबवेल भी खोदे गए। प्रक्षेत्र के आकार देखते हुए सिंचाई के साधनों की उपलब्धता एवं भू-जल स्तर बनाए रखने के लिए महात्मा गांधी नरेगा से आठ लाख 64 हजार रूपए की लागत से पांच कुंओं का भी निर्माण किया गया।

फलोद्यान के शुरूआती तीन सालों में पौधरोपण एवं संधारण के काम में भू-स्वामी आठ किसानों के साथ ही गांव के 45 अन्य परिवारों को भी सीधा रोजगार मिला। इस दौरान 3072 मानव दिवसों का रोजगार सृजन कर उन्हें पांच लाख आठ हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। दस साल पहले रोपे गए इन पौधों से अब हर साल चार हजार किलोग्राम आम का उत्पादन हो रहा है। इनकी बिक्री से किसानों को सालाना लगभग दो लाख रूपए की आय हो रही है।

कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. नारायण साहू बताते हैं कि इस परियोजना में शामिल आठों किसानों को आम के उत्पादन और अंतरवर्ती खेती के बारे में गहन प्रशिक्षण दिया गया है। इनकी मेहनत व लगन तथा कृषि विज्ञान केन्द्र के सुझावों को गंभीरता से अमल में लाने के कारण अच्छी पैदावार और अच्छी कमाई हो रही है। वे बताते हैं कि वृक्षारोपण के दौरान प्रत्येक पौधे के बीच दस-दस मीटर की दूरी रखी गई थी, जिनके बीच इन्हें अंतरवर्ती फसलों की खेती का भी प्रशिक्षण दिया गया था। अभी ये किसान बगीचे में सात हेक्टेयर में धान तथा एक हेक्टेयर में दलहन, एक हेक्टेयर में तिलहन और एक हेक्टेयर में सब्जियों की पैदावार ले रहे हैं। अंतरवर्ती फसलों से वे हर साल लगभग दो लाख रूपए की अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं।
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एक नजरः-

ग्राम पंचायत- कारली, विकासखण्ड- गीदम, जिला- दंतेवाड़ा,
क्रियान्वयन एजेंसी- कृषि विज्ञान केन्द्र, दंतेवाड़ा, जी.पी.एस. लोकेशन- 18°56'20.0"N 81°20'56.9"E, पिनकोड- 494441
अ) महात्मा गांधी नरेगा से
1. कार्य का नाम- फलदार आम बाग वृक्षारोपण (अवधि-3 वर्ष), कार्य का कोड- 3312005/DP/1014347,
स्वीकृत वर्ष- 2011-12, स्वीकृत राशि- रुपए 9.56 लाख, सृजित मानव दिवस- 3072, मजदूरी भुगतान- रुपए 5.08 लाख

2. कार्य का नाम- कूप निर्माण (6 नग), कार्य का कोड- 3312005021/IF/12141084, स्वीकृत वर्ष- 2011-12,
स्वीकृत राशि- रुपए 8.64 लाख, सृजित मानव दिवस- 1393, मजदूरी भुगतान- रुपए 0.86 लाख

ब) 13वें वित्त से
1. कार्य का नाम- तार फेंसिग व ट्यूब वेल खनन, स्वीकृत वर्ष- 2011-12, स्वीकृत राशि- रुपए 12.98 लाख

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परियोजना में शामिल हितग्राहीवार रकबाः-
क्रमांक
हितग्राही का नाम कुल रकबा (हे.) वृक्षारोपण हेतु उपयोग रकबा (हे.)
1. श्री राजूराम कश्यप 3.10 2
2. श्री छन्नू 2.60 1.50
3. श्री दसरी 1.30 0.70
4. श्री अर्जुल 1 0.30
5. श्री झुमरलाल 2.70 2
6. श्री पाली 2 1.5
7. श्री सुन्दरलाल 1.5 0.80
8. श्री पाओ 1.80 1.20

 

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रिपोर्टिंग - श्री राजेश वर्मा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़।
तथ्य व आंकड़े - डॉ. नारायण साहू, वरिष्ठ वैज्ञानिक व केन्द्र प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र, जिला-दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...