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Monday, 7 March 2022

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया.

ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई.


स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/ 7 मार्च 2022. महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) हितग्राही के तौर पर निजी भूमि में निर्मित कुएं ने परिवार के हालात बदल दिए हैं। पहले केवल चार एकड़ कृषि भूमि के भरोसे जीवन-यापन करने वाला परिवार कुएं की खुदाई के बाद अब धान की ज्यादा पैदावार ले रहा है। पानी की पर्याप्त उपलब्धता को देखते हुए परिवार ने ईंट निर्माण के व्यवसाय में हाथ आजमाया। इस काम में परिवार को अच्छी सफलता मिल रही है। ईंटों की बिक्री से पिछले तीन वर्षों में परिवार को साढ़े तीन लाख रूपए की आमदनी हुई है। इससे वे ट्रैक्टर खरीदने के लिए बैंक से लिए कर्ज की किस्त नियमित रूप से चुका रहे हैं।

महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित कुएं ने बीजापुर जिले के धनोरा गांव की श्रीमती महिमा कुड़ियम और उसके परिवार की जिंदगी बदल दी है। इस कुएं की बदौलत अब उसका परिवार तेजी से कर्जमुक्त होने की राह पर है। पहले श्रीमती महिमा कुड़ियम और उसके पति श्री जेम्स कुड़ियम खरीफ मौसम में अपने चार एकड़ खेत में धान उगाकर बमुश्किल गुजर-बसर कर पाते थे। श्री जेम्स कुड़ियम बताते है कि सिंचाई का साधन नहीं होने से केवल बारिश के भरोसे सालाना 15-20 क्विंटल धान की पैदावार होती थी। वर्ष 2017 में उन्होंने बैंक से कर्ज लेकर ट्रैक्टर खरीदा था, जिसका हर छह महीने में 73 हजार रूपए का किस्त अदा करना पड़ता था। आय के सीमित साधनों और ट्रैक्टर से भी आसपास लगातार काम नहीं मिलने से वे इसका किस्त समय पर भर नहीं पा रहे थे, जिससे ब्याज बढ़ता जा रहा था। इसने पूरे परिवार को मुश्किल में डाल दिया था।

इन्हीं परेशानियों के बीच एक दिन श्रीमती महिमा कुड़ियम की धान की सूखती फसल को देखकर ग्राम रोजगार सहायक श्री सोहन ने उन्हें महात्मा गांधी नरेगा से खेत में कुआं निर्माण का सुझाव दिया। ग्राम रोजगार सहायक की सलाह पर उसने अपनी निजी भूमि में कुआं खुदाई के लिए ग्राम पंचायत को आवेदन दिया। पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत उसके खेत में कुआं निर्माण का काम स्वीकृत हो गया और 11 फरवरी 2019 को इसकी खुदाई भी शुरू हो गई। सात फीट की गहराई में ही गीली मिट्टी में पानी नजर आने लगा। चार महीनों के काम के बाद जून 2019 को कुआं बनकर तैयार हो गया। कुएं में लबालब पानी आ गया।

श्रीमती महिमा कुड़ियम बताती है कि उसके कुएं में पर्याप्त पानी है। कुएं के पानी का उपयोग वे अपने चार एकड़ खेत में लगे धान की सिंचाई के लिए करते है। इससे धान की पैदावार अब बढ़कर लगभग 50 क्विंटल हो गई है। इसमें से वे कुछ को स्वयं के उपभोग के लिए रखकर शेष पैदावार को बेच देते हैं। धान की उपज बढ़ने के बाद भी ट्रैक्टर का किस्त पटाने की समस्या बरकरार थी। ऐसे में उन्होंने कुएं से लगी अपनी एक एकड़ खाली जमीन पर ईंट बनाने का काम शुरू किया। पिछले तीन सालों से वे लाल ईंट का कारोबार कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर उसके परिवार के द्वारा बनाए गए ईटों की काफी मांग है। ईंट की बिक्री से उन्हें वर्ष 2019 में 50 हजार रूपए, 2020 में एक लाख रूपए और 2021 में डेढ़ लाख रूपए की कमाई हुई है।

खेत में कुआं निर्माण के बाद बदले हालातों के बारे में श्रीमती कुड़ियम बताती है कि फसल का उत्पादन बढ़ने और ईंट के कारोबार से परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। उसका परिवार अब चिंतामुक्त होकर सुखी और समृद्ध जीवन की ओर बढ़ रहा है। ट्रैक्टर के ऋण की अदायगी भी अब वे नियमित रूप से कर रहे हैं। अपने तीनों बच्चों जॉन, रोशनी और अभिलव को अच्छे स्कूल में पढ़ाने का उनका सपना भी अब पूरा हो गया है। वह कहती है – “कभी-कभी मन में यह विचार आता है कि यदि सही समय में उन्हें महात्मा गांधी नरेगा से जल संसाधन के रूप में कुआं नहीं मिला होता, तो वे कर्ज में डूब गए होते। महात्मा गांधी नरेगा सच में हम जैसे गरीब परिवारों के लिए वरदान है।”

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कुआँ निर्माण, हितग्राही- श्रीमती महिमा कुड़ियम पति श्री जेम्स कुड़ियम, मो.-9302961825,
परिवार रोजगार कार्ड (जॉब कार्ड)- CH-12-004-005-001/248, ग्राम पंचायत- धनोरा, विकासखण्ड- बीजापुर,
क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2018-19, स्वीकृत राशि- 2.30 लाख रुपए, व्यय राशि- 2.23 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 11.02.2019, कार्य पूर्णता तिथि- 11.06.2019, वर्क कोड- 3312004005/IF/1111373077,
सृजित मानव दिवस- 426, नियोजित परिवारों की संख्या- 12, मजदूरी भुगतान- 74,292.00 रुपए,
सामग्री भुगतान- 1,49,200.00 रुपए, जी.पी.एस. लोकेशन- 21°32'59.0"N 83°07'24.8"E, पिनकोड- 494444,
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री पदुम साहू, लेखापाल, जनपद पंचायत-बीजापुर, जिला-बीजापुर, छ.ग.।
2. श्री सोहन कुड़ियम, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-धनोरा, वि.ख.-बीजापुर, जिला-बीजापुर, छ.ग.।

लेखन- श्री प्रशांत यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
संपादन-
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

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Thursday, 3 March 2022

मनरेगा से बने शेड ने बकरी पालन व्यवसाय को दी मजबूती

चम्पाबाई ने 6 महीने में ही कमाए 89 हजार रूपए, बकरियों की संख्या 4 से बढ़कर 26 हुई


स्टोरी/रायपुर/रायगढ़/ 3 मार्च 2022. ग्रामीण क्षेत्र में गरीब की गाय के नाम से मशहूर बकरी आजीविका का महत्वपूर्ण साधन शुरु से रही है। यह बहुपयोगी होने के कारण भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों के भरण-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यही कारण है कि रायगढ़ जिले की ग्राम पंचायत- बटाऊपाली (ब) की रहने वाली श्रीमती चम्पाबाई ने भी बकरी पालन व्यवसाय को अपनाया और अपनी मेहनत के बलबूते आज उन्होंने अपने जीवन की दशा और दिशा, दोनों बदली दी है। बकरी पालन के लिए महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से पक्का शेड बनने के बाद श्रीमती चम्पाबाई अब व्यवस्थित ढंग से अपने व्यवसाय को आगे बढ़ा पा रही है। शेड बनने से पहले उसके पास केवल चार बकरी थी। महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से घर में बकरी शेड बनने के बाद उसके बकरी पालन के व्यवसाय ने जोर पकड़ा और कमाई बढ़ने लगी। अब उसके पास 26 बकरे-बकरियां हो गए हैं। बकरी पालन से उसने छह महीने में ही 89 हजार रूपए कमाए हैं।

चम्पाबाई का जीवन

श्रीमती चम्पाबाई, पति श्री कार्तिकराम पटेल, बकरी पालन से अपने परिवार की आर्थिक हालात सुधार रही है। उसके इस काम में घर में महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित बकरी पालन शेड ने बड़ी भूमिका निभाई है। चम्पाबाई की लगन, मेहनत और योजना से मिले सहयोग से उसका व्यवसाय तेजी से फल-फूल रहा है और अच्छी आमदनी हो रही है। मां गंगा स्वसहायता समूह की सदस्य चम्पाबाई के परिवार के पास करीब पांच एकड़ जमीन है। इसमें से केवल तीन एकड़ में ही खेती-बाड़ी हो पाती है। खेती के बाद के समय में मजदूरी कर परिवार गुजर-बसर करता है। चम्पाबाई ने घर की आमदनी बढ़ाने के लिए बकरी पालन का काम शुरू किया। लेकिन कच्चा और टूटा-फूटा कोठा के कारण इसमें बहुत कठिनाई हो रही थी। वह इसे व्यवस्थित ढंग से आगे नहीं बढ़ा पा रही थी। अपनी परेशानी को उसने समूह की बैठक में रखा। समूह के सदस्यों की सलाह पर उसने महात्मा गांधी नरेगा के तहत अपनी निजी भूमि पर पक्का कोठा के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत को आवेदन दिया।

महात्मा गांधी नरेगा से मिली सहायता

ग्राम पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत वर्ष 2020-21 में बतौर हितग्राही चम्पाबाई की निजी जमीन पर 61 हजार 265 रुपयों की लागत से बकरी शेड निर्माण (कोठा) के लिए प्रशासकीय स्वीकृति मिली। लगातार 15 दिनों के काम के बाद दिसम्बर-2020 में उसका कोठा बनकर तैयार हो गया। इस काम में उसके और गांव के एक अन्य परिवार को 34 मानव दिवसों का रोजगार भी प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें 6 हजार 460 रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। शेड बनने के बाद चम्पाबाई को बकरी पालन के लिए पर्याप्त जगह मिली और उसका धंधा जोर पकड़ने लगा।

इतने रुपयों में बेचे बकरा-बकरी

पक्का बकरी शेड निर्माण के पहले चम्पाबाई के पास केवल चार बकरियाँ थीं। शेड बनने के बाद उसने चार और बकरियाँ खरीदीं। इन बकरियों से जन्मे मेमनों के बाद उसके पास कुल 26 बकरे-बकरियाँ हो गए हैं। इनमें से 15 बकरे-बकरियों को बेचकर उसने छह महीनों में 89 हजार रूपए कमाए हैं। वह बकरी को पांच हजार रूपए और बकरा को सात हजार रूपए की दर से बेचती है। बकरी पालन से कम समय में हुए इस लाभ से चम्पाबाई खुश हैं। इससे उसकी माली हालत तो सुधरी ही, घर के लिए उसने नई टी.वी., पंखा और आलमारी भी खरीदी है।

श्रीमती चम्पाबाई बकरी पालन के अपने इस धंधे को और आगे बढ़ाना चाहती है। वह कहती है कि अगर उसे बकरी पालन के लिए मनरेगा से शेड नहीं मिलता, तो वह अपना काम आगे नहीं बढ़ा पाती। अब वह गांव के दूसरे लोगों को भी बकरी पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

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एक नजरः-

कार्य का नाम- बकरी शेड (कोठा) निर्माण कार्य, हितग्राही- श्रीमती चम्पाबाई पति श्री कार्तिकराम पटेल, मो.-7489033936,
परिवार रोजगार कार्ड (जॉब कार्ड)- CH-13-008-096-001/41
क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21, ग्राम पंचायत- बटाऊपाली (ब), विकासखण्ड- सारंगढ़,
स्वीकृत राशि- 61,265.00 रुपए, व्यय राशि- 54,938.00 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 24.11.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 08.12.2020, वर्क कोड- 3313008096/IF/1111513039,
सृजित मानव दिवस- 34, नियोजित परिवारों की संख्या- 02, मजदूरी भुगतान- 6,460.00 रुपए,
सामग्री भुगतान- 48,478.00 रुपए, जी.पी.एस. लोकेशन- 21°32'59.0"N 83°07'24.8"E, पिनकोड- 496445,
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री युवराज पटेल, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-सारंगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।
2. श्री मुकेश सुमन, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-सारंगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।
3. कु. रेशमा सिदार, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-बटाऊपाली (ब), ज.पं.-सारंगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।

रिपोर्टिंग- श्री राजेश शर्मा, समन्वयक (शिकायत निवारण), जिला पंचायत-रायगढ़, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 15 February 2022

मेरा कुआँ - मेरा सम्मान

मनरेगा से बना कुआँ तो निस्तारी की समस्या हुई हल और आजीविका को मिला सहारा.


स्टोरी/रायपुर/गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही/15 फरवरी 2022. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अपने विभिन्न आयामों से ग्रामीण जन-जीवन को निरंतर मजबूती प्रदान कर रही है। योजना के तहत् कुआँ, डबरी, तालाब, पशु शेड, फलोद्यान सहित अन्य हितग्राही मूलक कार्यों से किसानों एवं पशुपालकों की आजीविका सशक्त हो रही है। साथ ही उन्हें अपनी निजी जमीन में स्वीकृत कार्यों में रोजगार भी प्राप्त हो रहा है। योजना से मिल रहे ये दोनों लाभ उन्हें निश्चिंतता प्रदान कर रहे हैं। ऐसी ही निश्चिंतता गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले के पेण्ड्रा विकासखण्ड की की सोनबचरवार ग्राम पंचायत की निवासी 46 वर्षीया श्रीमती उमिन्द कुंवर के चहरे पर साफ नजर आती है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से उनके घर की बाड़ी में कुआँ बनने के बाद अब उन्हें पहले की भाँति रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के लिए पानी की व्यवस्था हेतु दूर तक भटकना नहीं पड़ता है। कुआँ बनने के बाद उनका जीवन सहज हो गया है। वे इस कुएँ से अपनी 50 डिसमिल की बाड़ी में विभिन्न तरह की साग-सब्जियों का उत्पादन भी ले रही हैं।

महात्मा गांधी नरेगा से खुद के नाम पर निर्मित परिसम्पत्ति से स्वयं को गौरान्वित मानते हुए श्रीमती उमिन्द कुंवर बताती हैं कि उनके परिवार में उनके पति श्री कलवन कुंवर के अलावा दो बच्चे हैं। परिवार के पास जीवन-यापन के लिए लगभग 2 एकड़ की खेती है और राज्य सरकार से वन अधिकार पट्टा के अंतर्गत एक एकड़ की जमीन भी मिली है, जिसमें वे धान का उत्पादन लेते हैं। इसके अलावा महात्मा गांधी नरेगा में खुलने वाले कामों और आस-पास के खेतों में मजदूरी के लिए वे अपने पति के साथ जाया करती थीं। इस दरम्यान काम पर जल्दी जाने या देर से घर आने पर दैनिक जरुरतों के लिए पानी की व्यवस्था करना दूभर हो जाता था। ऐसे में एक दिन ग्राम रोजगार सहायक श्री रमजीत सिंह की सलाह पर उन्होंने अपने घर के पीछे बाड़ी में कुआँ बनवाने का आवदेन ग्राम पंचायत में दिया। तब ग्राम पंचायत की पहल पर उनके नाम से महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत कुआँ स्वीकृत हो गया।

श्रीमती कुंवर आगे बताती हैं कि मेरे नाम से कुआँ निर्माण की स्वीकृति मेरे लिए सबसे बड़ी बात थी, क्योंकि मैंने आज से पहले किसी महिला के नाम पर कुछ बनना सुना नहीं था और यह साल 2021 में हकीकत में भी बदल गया। अब मेरे पास मेरे नाम से मेरी अपनी संपत्ति है। यह मेरी पहचान और मेरा सम्मान, दोनों है। कुआँ बनने के बाद पहली बार वे अपनी बाड़ी में सब्जी-भाजी का उत्पादन ले रही हैं, जिसमें लगभग 2 डिसमिल में लहसुन, 6 डिसमिल में टमाटर और 5 डिसमिल में आलू लगाया है। इसके अलावा वे कुएँ के पानी से बाड़ी में लाल भाजी, भांटा (बैगन) एवं मिर्च का भी उत्पादन कर रही हैं। वे बताती हैं कि अभी शुरुआती उत्पादन का उपयोग वे घर में प्रतिदिन के उपयोग में कर रही हैं। इसके बाद जैसे-जैसे बाड़ी से पर्याप्त मात्रा में साग-सब्जियाँ निकलेंगी, वे उसे स्थानीय बाजार में बेचेंगी।

सरपंच श्री अगस्ते कंवर का इस संबंध में कहना है कि पंचायत के द्वारा वन अधिकार पट्टा प्राप्त हितग्राहियों की निजी भूमि पर प्राथमिकता के आधार पर महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत अनुमेय कार्य स्वीकृत कराये जा रहे हैं। इसी प्रकिया के अंतर्गत महात्मा गांधी नरेगा से 2 लाख 79 हजार 283 रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति से हितग्राही श्रीमती उमिन्द कुंवर की निजी भूमि में कूप निर्माण कार्य स्वीकृत कराया गया था। अप्रेल, 2021 में यह कूप बनकर तैयार हुआ, जिसमें हितग्राही के साथ-साथ गाँव के ही 2 अन्य मनरेगा जॉबकार्डधारी परिवारों को कुल मिलाकर 517 मानव दिवस रोजगार प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें 94 हजार 126 रुपये का मजदूरी भुगतान किया गया।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कूप निर्माण कार्य, हितग्राही का नाम- श्रीमती उमिन्द कुंवर पति श्री कलवन कुंवर,
हितग्राही का जॉब कार्ड नं.- CH-01-018-024-001/96, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
ग्राम पंचायत- सोनबचरवार, विकासखण्ड- पेण्ड्रा (गौरेला 1), जिला- गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, पूर्णता वर्ष- 2021-22
स्वीकृत राशि- 279283.00 रुपए, व्यय राशि- 226623.00 रुपए, मजदूरी भुगतान- 94126.00 रुपए,
कार्य प्रारंभ तिथि- 06.03.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 07.04.2021, वर्क कोड- 3301018024/IF/1111382746,
सृजित मानव दिवस- 517, नियोजित परिवारों की संख्या- 03,
जी.पी.एस. लोकेशन- 22°42'21.7"N 82°02'25.2"E, पिनकोड- 495119
हितग्राही श्रीमती उमिन्द कुंवर का संपर्क सूत्र- 6263674465 (श्री कलवन कुंवर-पति)
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री रोशन सराफ, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-पेण्ड्रा, जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
1. श्री रोशन सराफ, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-पेण्ड्रा, जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
2. श्री रमजीत सिंह, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.- सोनबचरवार, ज.पं.-पेण्ड्रा (गौरेला 1), जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
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रिपोर्टिंग- श्री रवि कुमार, सहायक परियोजना अधिकारी, डी.आर.डी.ए.-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 8 February 2022

मनरेगा से फलीभूत हुआ ‘दूधो नहाओ – पूतो फलो’ का आशीर्वाद

मनरेगा से बने पशुशेड में पशुपालन कर दुग्ध उत्पादन को बनाया मुख्य व्यवसाय.
प्रति माह हो रही 30 से 40 हजार रुपये की आय.



स्टोरी/रायपुर/बालोद/ 8 फरवरी 2022. 'दूधो नहाओ-पूतो फलो'....62 वर्षीय श्रीमती तुलसीबाई साहू के इस आशीर्वाद के तले आज उनका 14 सदस्यीय परिवार फल-फूल रहा है। साल 2020 में जहाँ पूरी दुनिया कोरोना महामारी के दौर में लॉक-डाउन और आर्थिक तंगी से जूझ रही थी, ऐसे में श्रीमती तुलसीबाई ने समझदारी का परिचय देते हुए परिवार को एकजुट किया। इसके बाद उन्होंने अपनी निजी भूमि पर महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से बने पशु शेड में 10 मवेशियों की पालना करते हुए उनका दूध बेचकर अपने परिवार को उस कठिन समय से बाहर निकाला। आज उनके पास 42 मवेशी हो गए हैं और उनका पूरा परिवार इस व्यवसाय में लगा हुआ है, जिससे उन्हें प्रति माह 30 से 40 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। परिवार की दशा-दिशा में आये इस बदलाव को लेकर गाँव में सब उनकी तारीफ करते हैं।

महिलाओं के लिए मिसाल बनीं तुलसीबाई
बालोद जिले के गुरुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत पेरपार में श्रीमती तुलसीबाई अपने 14 सदस्यीय परिवार के साथ रहती हैं। उनके परिवार में उनके पति श्री जगन्नाथ साहू के अलावा उनके तीन बेटे और पुत्रवधुएँ एवं 6 बच्चे हैं। इतने बड़े परिवार का भरण-पोषण लगभग 3 एकड़ की खेती एवं 10 पशुओं, जिनमें से चार ही दुधारु थे, पर निर्भर था। पशुओं को रखने के लिए कोई पक्की छतयुक्त व्यवस्था नहीं थी, जिससे व्यवसायिक रुप से दुग्ध उत्पादन का कार्य दूर की कौड़ी थी। ऐसे में ग्राम पंचायत की पहल पर उनके यहाँ जून, 2020 में महात्मा गांधी नरेगा से 49 हजार 770 रुपये की लागत से पशु शेड का निर्माण हुआ।

महात्मा गांधी नरेगा से मिले संसाधन से संबल पाकर, श्रीमती तुलसीबाई ने कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों में घर को चलाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों को दूध उत्पादन को मुख्य व्यवसाय बनाकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। तब उनका प्रेरणा रुपी आशीर्वाद पाकर परिवार के सभी पुरुषों और महिलाओं ने मिलकर पशु पालन करना शुरु किया। सबकी मेहनत रंग लाई। आज श्रीमती तुलसीबाई के पशु शेड में मवेशियों की संख्या बढ़कर 42 हो गई है, जिनमें से 16 दुधारु हैं। उनसे प्रति दिन लगभग 40-50 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है, जिसे बाजार में बेचने पर महीने की लगभग 40 हजार रुपये की आमदनी हो रही है।

श्रीमती तुलसीबाई बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा से बने पशु शेड में पशु पालन और दूध उत्पादन के कार्य से उन्हें जो आमदनी हुई, उससे उन्होंने 08 नये मवेशी खरीदे और दो अतिरिक्त पशु शेड का निर्माण करवाया। वे आगे बताती हैं कि कल तक वे पारंपरिक रुप से पशुपालन कर रहे थे, लेकिन आज उन्होंने इसे डेयरी व्यवसाय में बदल दिया है। डेयरी की शुरुआत में पशुओं से जो गोबर मिला, उसे राज्य सरकार की गोधन न्याय योजना के तहत बेचने से 20 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई, जिससे दो नग वर्मी कम्पोस्ट टांका बनवाया। अब उसमें गोबर से जैविक खाद बना रहे हैं और उसे खेतों में उपयोग कर रहे हैं। इससे हमारी छोटी-सी खेती-बाड़ी भी निखर रही है।
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एक नजरः-
कार्य का नाम- पशु शेड निर्माण कार्य, हितग्राही का नाम- श्रीमती तुलसी बाई पति श्री जगन्नाथ साहू,
हितग्राही का जॉब कार्ड नं.- CH-03-012-030-001/93, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम पंचायत- पेरपार, विकासखण्ड- गुरुर, जिला- बालोद, स्वीकृत राशि- 57649.00 रुपए, व्यय राशि- 49770.00 रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 15.06.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 28.06.2020, वर्क कोड- 3303012036/IF/1111437489,
सृजित मानव दिवस- 24, नियोजित परिवारों की संख्या- 02, मजदूरी भुगतान- 4560.00 रुपए,
जी.पी.एस. लोकेशन- 22°74'23.77"N 81°48'01.23"E, पिनकोड- 491227
हितग्राही श्रीमती तुलसीबाई साहू का संपर्क सूत्र- 07771088038 (श्री कांशीराम साहू-पुत्र)
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री राजेन्द्र कश्यप, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-गुरुर, जिला-बालोद, छ.ग.।
2. श्रीमती संजुलता राजपूत, सरपंच, ग्रा.पं.- पेरपार, ज.पं.-गुरुर, जिला-बालोद, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्री ओम प्रकाश साहू, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बालोद, जिला-बालोद, छ.ग.।
लेखन एवं संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Friday, 17 December 2021

पपीता की खेती ने बदली कुंजबाई की किस्मत

दो एकड़ में 500 क्विंटल पपीता का उत्पादन, बिक्री से मिले 4 लाख रूपए.


महात्मा गांधी नरेगा, उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केन्द्र के अभिसरण से शुरू की पपीता की खेती, इस साल खुद के पैसे से लगाए हैं 2600 पौधे.


रायपुर. 17 दिसम्बर 2021. महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम), उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र के अभिसरण से धान के बदले पपीता की खेती शुरू करने वाली श्रीमती कुंजबाई की किस्मत पपीता की एक फसल ने बदल दी है। उसके दो एकड़ खेतों में 500 क्विंटल पपीता का उत्पादन हुआ है। पपीता की गुणवत्ता ऐसी कि बिलासपुर के फल व्यवसाईयों ने खेत में खड़ी फसल ही खरीद ली। इससे कुंजबाई को चार लाख रूपए मिले। पपीता की पहली फसल के मुनाफे से उत्साहित कुंजबाई ने इस बार अपने पैसों से इसके 2600 पौधे लगाए हैं।

बेमेतरा जिले के बाराडेरा ग्राम पंचायत के आश्रित गांव मुंगेली की श्रीमती कुंजबाई साहू चार एकड़ की सीमांत किसान हैं। महात्मा गांधी नरेगा तथा उद्यानिकी विभाग के अभिसरण से मिले संसाधनों और बेमेतरा कृषि विज्ञान केन्द्र के मार्गदर्शन में उन्होंने पिछले साल अपने दो एकड़ खेत में पपीते के दो हजार पौधे लगाए थे। इनसे 500 क्विंटल पपीता की पैदावार हुई, जिसे थोक फल विक्रेताओं ने आठ रूपए प्रति किलोग्राम की दर से उनके खेतों से ही खरीद लिया। पपीता के पेड़ों में फल आने के बाद उद्यानिकी विभाग की मदद से बिलासपुर के थोक फल विक्रेताओं ने उससे संपर्क किया। अच्छी फसल देखकर व्यापारियों ने तुरंत ही पूरे दो एकड़ के फल खरीद लिए। कुंजबाई को पपीता की बिक्री के लिए कहीं बाहर जाना नहीं पड़ा और घर में ही रहकर फसल के अच्छे दाम मिल गए। इससे उत्साहित होकर उसने इस साल पपीता के 2600 पौधे लगाए हैं। कुंजबाई ने कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर पिछले वर्ष पपीता के पौधों के बीच में अंतरवर्ती फसल के रूप में भुट्टा, कोचई और अन्य सब्जियों की भी खेती की। इससे उसे अतिरिक्त कमाई हुई।

कुंजबाई का परिवार पहले परंपरागत रूप से धान की खेती से जीवन निर्वाह करता था। इसमें लगने वाली मेहनत और लागत की तुलना में फायदा कम होता था। कृषि विज्ञान केन्द्र बेमेतरा में सब्जी और फलों की खेती से होने वाले लाभ के संबंध में आयोजित प्रशिक्षण में शामिल होने से उसके विचार बदले। वहां विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए रास्ते पर चलने का निर्णय तो उसने ले लिया था, लेकिन आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होने के कारण इसे शुरू नहीं कर पा रही थी। ग्राम पंचायत ने इस काम में उसकी सहायता की और महात्मा गांधी नरेगा के साथ उद्यानिकी विभाग की योजना का अभिसरण कर उसके दो एकड़ खेत में एक लाख 27 हजार रूपए की लागत से पपीता की खेती का प्रस्ताव स्वीकृत कराया।

कुंजबाई के खेत में जून-2020 में पपीता उद्यान का काम शुरू हुआ। महात्मा गांधी नरेगा से भूमि विकास का काम किया गया। इसमें दस मनरेगा मजदूरों को 438 मानव दिवस का रोजगार मिला, जिसके लिए 83 हजार रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया। कुंजबाई के परिवार को भी इसमें रोजगार मिला और 33 हजार रूपए की मजदूरी प्राप्त हुई। उद्यानिकी विभाग ने पपीता की खेती के लिए ड्रिप-इरिगेशन, खाद और पौधों की व्यवस्था की। खेत के तैयार होने के बाद कुंजबाई ने अपने बेटे श्री रामखिलावन साहू और बहु श्रीमती मालती बाई के साथ कृषि विज्ञान केन्द्र के मार्गदर्शन में दो हजार पौधों का रोपण किया। वहां के वैज्ञानिकों ने उसके परिवार को पपीता की खेती की बारिकियों का प्रशिक्षण दिया। महात्मा गांधी नरेगा, उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र की सहायता से कुंजबाई के परिवार की मेहनत रंग लाई और उसकी दो एकड़ की फसल चार लाख रूपए में बिकी। आधुनिक तौर-तरीकों से खेती उसे अच्छा मुनाफा दे रही। इससे उसका परिवार तेजी से समृद्धि का राह पर बढ़ रहा है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कुंजबाई/उमाशंकर का पपीता उद्यान कार्य, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम- मुंगेली, ग्राम पंचायत- बाराडेरा, विकासखण्ड- बेमेतरा, स्वीकृत राशि- 1.27 लाख रुपए, व्यय राशि- 1.23 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 08.06.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 02.07.2021, वर्क कोड- 3303002044/IF/1111497272,
परियोजना में शामिल योजनावार लागतें-
महात्मा गांधी नरेगा से 87 हजार रुपए, उद्यानिकी विभाग से 30 हजार रुपए एवं हितग्राही अंशदान 10 हजार रुपए
सृजित मानव दिवस- 438, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 10, मजदूरी भुगतान- 83,265 रुपए,
हितग्राही का नाम- श्रीमती कुंजबाई साहू, पति स्व. श्री उमाशंकर साहू (जॉब कार्ड नं.- CH-03-002-044-003/182-A)
हितग्राही श्रीमती कुंजबाई साहू, उनके पुत्र श्री रामखिलावन और पुत्रवधु श्रीमती आरती को प्राप्त रोजगार दिवस एवं मजदूरी- 174 मानव दिवस एवं 33,087 रुपए।
कृषि विज्ञान केन्द्र से मार्गदर्शन- डॉ. चेतना बंजारे
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री राकेश कुमार टंडन, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-बेमेतरा, जिला-बेमेतरा, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप वारे, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बेमेतरा, जिला-बेमेतरा, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्री नवीन कुमार साहू, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बेमेतरा, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन एवं संपादन -
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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