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Monday, 2 August 2021

खेतों में पेड़ों के बीच फसलें उगाईं तो होने लगी लाखों की कमाई

महात्मा गांधी नरेगा फलोद्यान ने बदली किसानों की तकदीर, आम उत्पादक किसान के रुप में मिली नई पहचान


स्टोरी/रायपुर/दंतेवाड़ा/02 अगस्त, 2021. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी नरेगा) से मिले संसाधनों और परस्पर सहकार की भावना ने दंतेवाड़ा के आठ किसानों की जिंदगी बदल दी है। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से लगे गीदम विकासखण्ड के कारली गाँव के आठ आदिवासी किसानों ने करीब दस हेक्टेयर भूमि में महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से आम के एक हजार पौधों लगाए थे। दस साल पहले रोपे गए ये पौधे अब 10 से 12 फीट के हरे-भरे फलदार पेड़ बन चुके हैं। पिछले छह वर्षों से ये किसान आम के पेड़ों के बीच अंतरवर्ती फसल के रुप में सब्जियों, दलहन-तिलहन एवं धान की उपज भी ले रहे हैं। आम की पैदावार के साथ अंतरवर्तीय खेती से उन्हें सालाना चार से पाँच लाख रुपयों की अतिरिक्त कमाई हो रही है। ये किसान अब अपने इलाके में आम उत्पादक कृषक के रुप में भी जाने-पहचाने लगे हैं।

दंतेवाड़ा कृषि विज्ञान केन्द्र और कारली गाँव के आदिवासी किसान श्री राजूराम कश्यप आम से खास बनने की इस कहानी के नायक हैं। श्री कश्यप के खेत की सीमा से गाँव के ही श्री छन्नू, श्री दसरी, श्री अर्जुल, श्री झुमरलाल, श्री पाली, श्री सुन्दरलाल और श्री पाओ की कृषि भूमि लगती है। इन आठों किसानों की कुल 16 हेक्टेयर जमीन में से दस हेक्टेयर सिंचाई के साधनों के अभाव में वर्षों से बंजर पड़ी थी। श्री राजूराम कश्यप की सबसे ज्यादा दो हेक्टेयर जमीन अनुपयोगी पड़ी थी। अपनी और साथी किसानों की इस समस्या को लेकर उन्होंने दंतेवाड़ा के कृषि विज्ञान केन्द्र में संपर्क किया। वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होंने साथी किसानों से चर्चा कर खाली पड़ी जमीन पर फलदार पौध लगाने की योजना पर काम शुरु किया।

किसानों की सहमति मिलने के बाद, कृषि विज्ञान केन्द्र ने वर्ष 2011-12 में महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत नौ लाख 56 हजार रुपयों की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त कर 25 एकड़ बंजर भूमि का फलोद्यान के रुप में विकसित करने का काम शुरु किया। वैज्ञानिक पद्धति से वहाँ एक हजार आम के पौधे रोपे गए, जिनमें 500 नग दशहरी और 500 नग बैगनफली प्रजाति के थे। प्रत्येक पौधों के बीच दस-दस मीटर की दूरी रखी गई, ताकि उनकी वृद्धि अच्छे से हो सके। समय-समय पर खाद का भी छिड़काव भी गया। परियोजना की सफलता के लिए यह जरुरी था कि फलोद्यान के संपूर्ण प्रक्षेत्र को सुरक्षित रखा जाए। इसके लिए 13वें वित्त आयोग की राशि के अभिसरण से 12 लाख 58 हजार रूपए की लागत से तार फेंसिग की गई एवं सिंचाई के लिए दो ट्यूबवेल भी खोदे गए। प्रक्षेत्र के आकार देखते हुए सिंचाई के साधनों की उपलब्धता एवं भू-जल स्तर बनाए रखने के लिए महात्मा गांधी नरेगा से आठ लाख 64 हजार रूपए की लागत से पांच कुंओं का भी निर्माण किया गया।

फलोद्यान के शुरूआती तीन सालों में पौधरोपण एवं संधारण के काम में भू-स्वामी आठ किसानों के साथ ही गांव के 45 अन्य परिवारों को भी सीधा रोजगार मिला। इस दौरान 3072 मानव दिवसों का रोजगार सृजन कर उन्हें पांच लाख आठ हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। दस साल पहले रोपे गए इन पौधों से अब हर साल चार हजार किलोग्राम आम का उत्पादन हो रहा है। इनकी बिक्री से किसानों को सालाना लगभग दो लाख रूपए की आय हो रही है।

कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. नारायण साहू बताते हैं कि इस परियोजना में शामिल आठों किसानों को आम के उत्पादन और अंतरवर्ती खेती के बारे में गहन प्रशिक्षण दिया गया है। इनकी मेहनत व लगन तथा कृषि विज्ञान केन्द्र के सुझावों को गंभीरता से अमल में लाने के कारण अच्छी पैदावार और अच्छी कमाई हो रही है। वे बताते हैं कि वृक्षारोपण के दौरान प्रत्येक पौधे के बीच दस-दस मीटर की दूरी रखी गई थी, जिनके बीच इन्हें अंतरवर्ती फसलों की खेती का भी प्रशिक्षण दिया गया था। अभी ये किसान बगीचे में सात हेक्टेयर में धान तथा एक हेक्टेयर में दलहन, एक हेक्टेयर में तिलहन और एक हेक्टेयर में सब्जियों की पैदावार ले रहे हैं। अंतरवर्ती फसलों से वे हर साल लगभग दो लाख रूपए की अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं।
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एक नजरः-

ग्राम पंचायत- कारली, विकासखण्ड- गीदम, जिला- दंतेवाड़ा,
क्रियान्वयन एजेंसी- कृषि विज्ञान केन्द्र, दंतेवाड़ा, जी.पी.एस. लोकेशन- 18°56'20.0"N 81°20'56.9"E, पिनकोड- 494441
अ) महात्मा गांधी नरेगा से
1. कार्य का नाम- फलदार आम बाग वृक्षारोपण (अवधि-3 वर्ष), कार्य का कोड- 3312005/DP/1014347,
स्वीकृत वर्ष- 2011-12, स्वीकृत राशि- रुपए 9.56 लाख, सृजित मानव दिवस- 3072, मजदूरी भुगतान- रुपए 5.08 लाख

2. कार्य का नाम- कूप निर्माण (6 नग), कार्य का कोड- 3312005021/IF/12141084, स्वीकृत वर्ष- 2011-12,
स्वीकृत राशि- रुपए 8.64 लाख, सृजित मानव दिवस- 1393, मजदूरी भुगतान- रुपए 0.86 लाख

ब) 13वें वित्त से
1. कार्य का नाम- तार फेंसिग व ट्यूब वेल खनन, स्वीकृत वर्ष- 2011-12, स्वीकृत राशि- रुपए 12.98 लाख

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परियोजना में शामिल हितग्राहीवार रकबाः-
क्रमांक
हितग्राही का नाम कुल रकबा (हे.) वृक्षारोपण हेतु उपयोग रकबा (हे.)
1. श्री राजूराम कश्यप 3.10 2
2. श्री छन्नू 2.60 1.50
3. श्री दसरी 1.30 0.70
4. श्री अर्जुल 1 0.30
5. श्री झुमरलाल 2.70 2
6. श्री पाली 2 1.5
7. श्री सुन्दरलाल 1.5 0.80
8. श्री पाओ 1.80 1.20

 

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रिपोर्टिंग - श्री राजेश वर्मा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़।
तथ्य व आंकड़े - डॉ. नारायण साहू, वरिष्ठ वैज्ञानिक व केन्द्र प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र, जिला-दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

Wednesday, 23 December 2020

मनरेगा से मिले संबल और सामूहिक प्रयास ने बदली पाँच किसानों की दशा

फलदार पौधों के साथ लेमन ग्रास व शकरकंद की अंतरवर्ती खेती से कमाए लाखों रुपए.

पड़त भूमि विकास कार्यक्रम के अंतर्गत फलदार पौधों की मातृ नर्सरी की स्थापना से जिले के किसानों को बागवानी विस्तार के लिए मिलेंगे उन्नत पौधे.

रायपुर। कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत लाई के कुछ किसानों ने इस साल मानसून पूर्व सामूहिक खेती का एक प्रयास करने का विचार किया। सबने मिलकर अपने परिवार की बचत रकम लगाकर गाँव के किनारे से बहने वाली हसदेव नदी के किनारे की पड़त भूमि को विकसित कर खेती करने के लायक बनाया। जब भूमि खेती के लायक हुई, तो सबने बड़े उत्साह से टमाटर की फसल लगाई। पौधे बढ़ते, इससे पहले ही मौसम की मार हुई और पूरी फसल नष्ट हो गई। इस सामूहिक खेती के असफल प्रयास में इन किसानों की जमा पूँजी पूरी तरह बर्बाद हो गई। इस पूँजी के एक झटके में बर्बाद होने से इनके सामने विकट समस्या आ खड़ी हुई। अब इनके पास न तो खेती का कोई विकल्प था और न ही कोई बचत पूँजी, जिसके सहारे वे दुबारा कोई प्रयास कर सकें। ऐसे में इन किसानों का संबल बना महात्मा गांधी नरेगा। इस योजना के अंतर्गत इन्हें सामूहिक फलदार पौधरोपण अंतरवर्ती लेमनग्रास/शकरकंद की खेती कार्य स्वीकृत किया गया, जिससे इन्हें अपने कर्जों से मुक्ति में मदद मिली, वहीं वे अब लाभ लेने की स्थिति में आ गये हैं। इस कार्य में फलदार पौधों की स्थापित मातृ नर्सरी से इन्हें प्रथम छःमाही में ही लगभग दो लाख रुपए का लाभ हो चुका है। इन किसानों ने अपनी आर्थिक प्रगति से संबल पाकर जल्द ही एक ट्रेक्टर खरीदने की योजना बनाई है। 

सामूहिक प्रयास से बदलाव लाने की इस कहानी की शुरुआत होती है गाँव के साधारण से पाँच किसानों की आपसी बातचीत और आगे बढ़ने की ललक से। इन किसानों में श्री परसराम भैना, श्री सोनसाय पण्डो, श्री हरिदास वैष्णव, श्री संतोष कुमार यादव और मोहम्मद सत्तार ने आपस में बातचीत करके बड़े स्तर पर खेती की एक कार्ययोजना बनाई। इसमें बस एक ही समस्या थी कि इनके पास कहीं पर भी खेती लायक बड़ी जोत यानि खेती भूमि उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में सभी ने मिलकर अपनी कुछ भूमि के साथ गाँव के किनारे छोटी-मोटी झाड़ियों के बीच की पड़त भूमि को मिलाकर, उसे खेती लायक बनाने का विचार किया और परस्पर सहमति से उसमें टमाटर लगाने का निर्णय लिया। जब यहाँ टमाटर की खेती की गई, तब पौधों में फल आने के पहले ही लगातार बारिश और प्रतिकूल मौसम की मार ने पूरी की पूरी फसल को चौपट कर दिया। 

इस संबंध में किसान श्री हरिदास वैष्णव बताते हैं कि टमाटर की फसल को बचाने के लिए बहुत उपाय किए गए थे, किन्तु नुकसान को नहीं रोक सके। वहीं एक अन्य किसान श्री परसराम भैना, जो कि इस समूह के सबसे कमजोर किसान थे, कहते हैं कि- “मेरे पास चार एकड़ भूमि है, परंतु असिंचित होने के कारण बारिश भरोसे परिवार के खाने भर को अनाज बमुश्किल हो पाता था। पिछले साल बारिश से धान की अच्छी पैदावार हुई थी और कीमत भी अच्छी मिली थी, तो लगभग 25 हजार रुपए जुड़ गए। जब दोस्तों ने टमाटर की खेती की सलाह दी, तो यह जमा पूँजी उसमें लगा दी। उसके बाद मौसम खराब होने से टमाटर की फसल बर्बाद हो गई और मेरी कमर पूरी तरह टूट गई।” 

हौसला पस्त हो चुके इन किसानों के लिए ग्राम पंचायत एवं जिले का कृषि विज्ञान केन्द्र मददगार बनकर सामने आये और इन्हें नए सिरे से आजीविका शुरु करने का विकल्प दिया। पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) के तहत बारह एकड़ भूमि पर सामूहिक फलोद्यान और अंतरवर्ती खेती के लिए 11 लाख 82 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई और कृषि विज्ञान केन्द्र को कार्य एजेंसी बनाया गया। 

अब कृषि विज्ञान केन्द्र ने सबसे पहले इन किसानों का एक समूह बनाया और गाँव के मनरेगा श्रमिकों के नियोजन से परियोजना में शामिल भूमि को समतलीकरण कर खेती लायक बनाया। फिर कार्य-योजना के अनुसार, यहाँ उच्च गुणवत्ता वाले फलदार पौधे वैज्ञानिक तरीके से लगवाए। इनका रोपण इस तरह से किया गया कि सभी पौधे उच्च उत्पादकता के साथ आने वाले वर्षों में मातृ-वाटिका की तरह अच्छे गुणवत्तायुक्त कलमें भी प्रदान करेंगे। यहाँ 285 आम के पौधों के साथ रोपे गए कुल 862 पौधों में 85 अनार, 190 कटहल, 105 अमरुद और 197 सीताफल के पौधे हैं। अच्छी देखभाल के कारण यहाँ शत-प्रतिशत पौधों की जीवितता बनी हुई है। केन्द्र के विज्ञानिकों के अनुसार आने वाले वर्षों में यहाँ से प्रतिवर्ष 20 से 25 हजार नए पौधे तैयार किए जा सकेंगे। इससे जिले में बागवानी विस्तार हेतु उच्च गुणवत्ता के निरोगी पौधों की उपलब्धता बनी रहेगी और किसानों को आमदनी के विकल्प मिलेंगे। इस कार्ययोजना की शुरुआत में ही सफलता मिलने लगी थी। पौधों की तैयारी के पूर्व ही इस फलोद्यान से निकलने वाली नई पौध के लिए जिले के उद्यान विभाग से करार हो चुका है, जिसके अनुसार विभाग प्रतिवर्ष यहाँ से निर्धारित दर पर पौधे खरीदेगा। 

महात्मा गांधी नरेगा मद से विकसित हो रहे इस फलोद्यान की घेराबंदी में किनारों पर 250 गढ्ढों में शकरकंद की कलमें लगाई गई थीं। यहाँ फलदार पौधरोपण के बाद अंतरवर्ती फसल के रुप में लेमनग्रास लगाया गया है। इनकी नियमित सिंचाई के लिए पास में ही बहने वाली नदी से पंप लगाकर पानी लिया जा रहा है और टपक पद्धति से सिंचाई की जा रही है। समूह के सदस्य श्री सोनसाय पण्डो की लगभग दो एकड़ भूमि इस फलोद्यान में शामिल है। वह बतलाते हैं कि यहाँ सिंचाई की लिए सोलर पम्प लगाने की योजना बनाई गई थी, जिसकी क्रेडा विभाग से अनुमति भी मिल चुकी है। 

लॉकडाउन के दौरान इस कार्य से जहाँ गाँव में पर्याप्त संख्या में रोजगार के अवसर सृजित हुए, वहीं समूह के किसानों को भी रोजगार प्राप्त हुआ। समूह के कृषक श्री परसराम और श्री हीरादास ने बताया कि इस परियोजना के शुरुआती छः माह में ही उन्हें इसका लाभ मिलना शुरु हो गया था। यहाँ तैयार की गई लेमनग्रास की 74 क्विंटल पत्तियों को काटकर बेचने से उन्हें अगस्त माह में 74 हजार रुपए से ज्यादा का लाभ हुआ था। इसके साथ ही लेमन ग्रास की एक लाख 8 हजार नग स्लिप्स की बिक्री से उन्हें 81 हजार रुपए की आमदनी भी हुई थी। यहाँ लगाई गई शकरकंद की 65,300 नग वाईन कटिंग(डंठल) का भी विक्रय किया गया, जिससे समूह को एक लाख 14 हजार 275 रुपये की आय हुई। अब कुछ ही दिनों में शकरकंद की फसल भी निकालने लायक हो जाएगी, जिसका लगभग दस क्विंटल उत्पादन का अनुमान है, जिसकी अनुमानित कीमत 35 हजार के आस-पास हो सकती है। कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों की देख-रेख में यहाँ शतावर के भी एक सौ पौधे लगाए गए हैं, जो अभी तैयार हो रहे हैं। इन किसानों ने आगे बताया कि यहाँ के लेमनग्रास से निकलने वाले तेल का भी पैसा इनके खातों में आने वाला है। इससे और अधिक लाभ होगा। 

परियोजना के प्रारंभिक चरण में ही इन पाँचों किसानों में से प्रत्येक के खाते में 33 हजार 775 रुपए आ चुके हैं। वहीं महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी की राशि मिलने से अब इनके समक्ष पैसों का संकट कम हो गया है। सभी किसान कहते हैं कि फलोद्यान में लेमनग्रास और शकरकंद की अंतरवर्ती खेती ने जीवन में बदलाव ला दिया है। वे हँसते हुए कहते हैं कि सालभर मेहनत से जितना नहीं मिलता था, वह इस खेती से छःमाह में ही मिल गया है। अब जब तक हिम्मत है, तब तक इस खेती को मन लगाकर करेंगे। 

एक्सपर्ट व्यू 
इस परियोजना के टेक्नीकल एक्सपर्ट एवं कृषि विज्ञान केन्द्र कोरिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री आर.एस.राजपूत एवं वैज्ञानिक (उद्यानिकी) श्री केशव चंद्र राजहंस ने बताया कि महात्मा गांधी नरेगा के अनुमेय कार्य पड़त भूमि विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत यहाँ उन्नत किस्म फलदार पौध रोपण सह अतंरवर्तीय फसल के रूप में लेमनग्रास (कावेरी प्रजाति), शकरकंद (इंदिरा नारंगी, इंदिरा मधुर, इंदिरा नंदनी, श्रीभ्रदा, श्री रत्ना प्रजाति) व औषधीय पौध सतावर का उत्पादन लिया जा रहा है। 

विशेषज्ञों ने आगे बताया कि लेमनग्रास खेती का फायदा यह है कि इसे एक बार लगाकर प्रत्येक दो से ढाई माह के बीच 4 से 5 साल तक इसकी कटाई की जा सकती है। जिले में किसानों का उत्पादक समूह बनाकर उसके माध्यम से लेमनग्रास से तेल निकालने की यूनिट लगाई गई है, जिससे कच्चे माल को एसेंसियल ऑइल के रुप में प्राप्त किया जा रहा है। लेमनग्रास के सुगंधित तेल से हस्त निर्मित साबुन व अगरबत्ती निर्माण कार्य का तकनीकी प्रशिक्षण भी इन कृषकों को दिया गया है, ताकि वे इनका निर्माण कर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकें। वहीं यहाँ रोपित फलदार पौधों से लेयरिंग, कटिंग, ग्राफ्टिंग व बीज द्वारा लगभग 20-22 हजार उच्च गुणवत्ता की नई पौध तैयार की जावेगी, जिससे इन किसानों के समूह को लगभग दो लाख रुपए की अतिरिक्त आय अनुमानित है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- सामूहिक फलदार पौधरोपण अंतरवर्ती लेमनग्रास/शकरकंद की खेती,
ग्रा.पं.- लाई, विकासखण्ड- मनेन्द्रगढ़, जिला- कोरिया, पिनकोड- 497442
कार्य प्रारंभ तिथि- 04.05.2020, कार्य स्थिति- प्रगतिरत, परियोजना क्षेत्र- 12 एकड़,
स्वीकृत राशि- 11.28 लाख, स्वीकृत वर्ष-2020-21, सृजित मानव दिवस- 1546,
रोपित पौधों की प्रजातिवार संख्या- आम (285), अनार (85), कटहल (190), अमरुद (105) एवं सीताफल (197)
रोपित लेमन ग्रास की प्रजाति- सिम शिखर व कावेरी
रोपित शकरकंद की प्रजाति- इंदिरा मधुर, इंदिरा नंदनी, इंदिरा नारंगी, श्री भद्रा व श्री रतना
नियोजित मनरेगा परिवारों की संख्या- 20
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 23◦18'01.4″ एवं Longitude: E 82◦18'49.0″
 
समूह के किसानों को वित्तीय वर्षः2020-21 में महात्मा गांधी नरेगा से प्राप्त रोजगारः
क्रं.
किसानों का नाम
वर्ग
रोजगार दिवसों की संख्या
मजदूरी राशि
1.
श्री परसराम भैना
अनुसूचित जनजाति
24
4560.00
2.
श्री सोनसाय पण्डो
विशेष पिछड़ी जनजाति
6
1140.00
3.
श्री हरिदास वैष्णव
अन्य पिछड़ा वर्ग
44
8360.00
4.
श्री संतोष कुमार यादव
अन्य पिछड़ा वर्ग
36
6840.00
5.
श्री मोहम्मद सत्तार
अन्य पिछड़ा वर्ग
12
2280.00
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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.-9424259026
तथ्य एवं स्त्रोत-
1. श्री आर.एस. राजपूत, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं केन्द्र प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र बैकुण्ठपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7089554290
2. डॉ. केशव चंद्र राजहंस, वैज्ञानिक (उद्यानिकी), कृषि विज्ञान केन्द्र बैकुण्ठपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7415302210
3. श्री बुधेन्द्र नाथ, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-लाई, वि.ख.-मनेन्द्रगढ़, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-8319576988
संपादन- 
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, विकास भवन, नवा रायपुर अटल नगर, छत्तीसगढ़।
2. श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, नवा रायपुर अटल नगर, छत्तीसगढ़।
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Monday, 7 December 2020

पथरीली व चट्टानी भूमि हुई हरी-भरी, परस्पर तालमेल ने बनाया असम्भव को सम्भव


रायपुर। आईये, आपको आज एक ऐसे स्थान पर ले चलते हैं, जहाँ वन विभाग और पंचायत के परस्पर तालमेल और मनरेगा श्रमिकों की मेहनत ने पथरीली व चट्टानी भूमि की तस्वीर ही बदल दी है। एक दशक पहले तक तो यह कल्पना करना ही असम्भव था कि एक ऐसी पठारी भूमि, जो पूरी तरह से पत्थर-चट्टानयुक्त और वृक्षविहीन हो, वह कभी पेड़-पौधों से हरी-भरी भी होगी। 

जोश, जुनून और जज्बा हो तो पत्थरों का सीना चीरकर भी पौधों की कोपलें उगाई जा सकती हैं...लक्ष्य के प्रति समर्पण और बदलाव की चाह से महासमुन्द जिले के कौंदकेरा गाँव में वन विभाग ने पंचायत के सहयोग से और मनरेगा श्रमिकों की मेहनत के बल-बूते इस तरह के असम्भव से दिखने वाले कार्य को अंजाम देकर एक उदाहरण सबके सामने रख दिया है।

दरअसल महासमुन्द से तुमगाँव मुख्यमार्ग पर विकासखण्ड महासमुन्द के कौंदकेरा गाँव में 15 एकड़ की भूमि पत्थर और चट्टानयुक्त, वीरान व बंजर थी। यहाँ अप्रेल, 2012 में वन विभाग ने पीपल, बरगद व गूलर प्रजाति के पौधों का रोपण किया था। इसके लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से 14 लाख 50 हजार रुपए स्वीकृत किए गए थे। दो साल तक वन विभाग के मार्गदर्शन में यहाँ 44 महिला और 93 पुरुष मनरेगा श्रमिकों की कड़ी मेहतन और देख-रेख के फलस्वरुप, इन चट्टानों और पत्थरों के सीने पर रोपे गए पौधों ने अपनी हरियाली की छटा बिखेरनी शुरु कर दी थी। हरियाली मुरझाए नहीं, इसके लिए पौधरोपण के बाद इनकी सिंचाई मटका के माध्यम से टपक पद्धति से की गई। पौधे बेहतर तरीके से बढ़ें, इसके लिए उनके बीच लगभग 8 मीटर की दूरी रखी गई और समय-समय पर गोबर खाद, डी.ए.पी., यूरिया और सुपर फॉस्फेट भी डाला गया। 

विभागों के परस्पर तालमेल और मनरेगा श्रमिकों के श्रम से यह प्रयास अब फलता-फूलता नजर आने लगा है। आज जहाँ यह पथरीली बंजर भूमि हरी-भरी हो गई है, वहीं इस कार्य से गाँव के 54 मनरेगा जॉबकार्डधारी परिवारों को 7 हजार 741 मानव दिवस का रोजगार भी प्राप्त हुआ। इसके लिए उन्हें 9 लाख 44 हजार 410 रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया था। यहाँ रोपे गए पौधे अब 10-15 फीट के हरे-भरे पेड़ बन गए हैं, जिन्हें देखकर आज पूरा गाँव खुश है। साल 2012 से वन विभाग, पंचायत और ग्रामीणों को शायद इसी दिन का इंतजार था। सामूहिक प्रयास से यह परिक्षेत्र हरा-भरा होकर ऑक्सीजोन में बदल गया है। अब इसे देखने और यहाँ घूमने-फिरने आस-पास के लोग आने लगे हैं। यहाँ की हरियाली इस बात का सबूत दे रही है कि परस्पर तालमेल से असम्भव को सम्भव बनाया जा सकता है। 


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एक नजरः-
कार्य का नाम- पत्थर चट्टान में पीपल, बरगद वृक्षारोपण कार्य, ग्रा.पं.- कौंदकेरा, जिला व विकासखण्ड- महासमुन्द,
कार्य प्रारंभ तिथि- 02.04.2012, कार्य पूर्णता तिथि- 07.06.2014, वृक्षारोपण क्षेत्र- 15 एकड़,
स्वीकृत राशि- 14.50 लाख, स्वीकृत वर्ष-2012-13, सृजित मानव दिवस- 7741,
रोपित पौधों की प्रजातिवार संख्या- पीपल (448), बरगद (448) एवं गुलर (40)
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 21◦10'03.3″ एवं Longitude: E 82◦07'14.4″
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रिपोर्टिंग - श्री प्रथम अग्रवाल, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-महासमुन्द, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- श्री राकेश चौबे, वन परिक्षेत्र अधिकारी, जिला-महासमुन्द, छत्तीसगढ़, मो.-9425563857
(तत्कालीन वन परिक्षेत्र अधिकारी- श्री सी.बी.अग्रवाल, मो.-9425242730)
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 26 November 2020

कोसाफल उत्पादन व अंतरवर्तीय सब्जी उत्पादनः मनरेगा से आपदा को अवसर में बदलती ग्रामीण महिलाएँ

महात्मा गांधी नरेगा से 25 एकड़ में फैली हरियाली, 
बना कोसाफल का सुनहरा बागान


रायपुर। कोरोना महामारी ने देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ आम आदमी की आर्थिक स्थिति को भी काफी नुकसान पहुँचाया है। एक ओर लॉकडाउन में जहाँ लोगों के रोजगार पर संकट छाया, तो वहीं अनलॉक होने के बाद भी लोगों को उनकी क्षमता के अनुरुप काम नहीं मिल रहा है। इन सब के बावजूद देश में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन्होंने कोरोना महामारी जैसी आपदा को अवसर में बदला है और स्वयं के साथ-साथ अपने से जुड़े लोगों की आजीविका के लिए नए रास्ते बनाये हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण जय माँ कंकाली महिला स्व सहायता समूह की महिलाएँ हैं, जिन्होंने लॉकडाउन से अनलॉक की अवधि में रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न होने पर भी हार नहीं मानी और अपने मजबूत इरादों तथा दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत गाँव में रेशम विभाग के द्वारा महात्मा गांधी नरेगा मद से कराए गए अर्जुन वृक्षारोपण में कोसाफल तथा अंतरवर्तीय सब्जी उत्पादन करके, लाभ कमाने के साथ-साथ अपने परिवार के भरण-पोषण में मदद भी कर रही हैं।

जाँजगीर चाँपा जिले में ग्राम महुदा (च) की ग्रामीण महिलाएँ बनी मिसाल

छत्तीसगढ़ में कोसे के कपड़े के लिए प्रसिद्ध जाँजगीर चाँपा जिला मुख्यालय से 20 कि.मी एवं बलौदा विकासखण्ड मुख्यालय से 35 कि.मी. दूर ग्राम पंचायत महुदा (च) की माँ कंकाली महिला स्व सहायता समूह की महिलाएँ इन दिनों मिसाल बन गई हैं। कोरोना संक्रमण काल की विषम परिस्थितियों में ये महिलाएँ रेशम विभाग से कृमिपालन एवं कोसाफल उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त कर, जुलाई 2020 से अर्जुन के पेड़ों पर कृमि पालन का कार्य कर रही हैं। 45 दिनों की कड़ी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के दम पर पहली फसल के रुप में इन्होंने 35 हजार कोसाफल का उत्पादन प्राप्त किया। इन्होंने स्थानीय व्यापारियों को दो रुपए प्रति कोसाफल के हिसाब से बेचकर 70 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त की। वहीं प्रक्षेत्र के एक हिस्से में आलू, टमाटर, प्याज, लहसुन, मक्का, मूंग, पालक, लालभाजी, धनिया, मिर्ची के अलावा पपीता इत्यादि का उत्पादन करके, उन्हें आस-पास के स्थानीय बाजार में बेचने का कार्य भी कर रही हैं। इससे इन्हें एक लाख रुपए से अधिक की आमदनी भी हो चुकी है। 

इस समूह की अध्यक्ष श्रीमती शांति बाई बरेठ बताती हैं कि लॉकडाउन में सब काम बंद हो गया था, जिसके बाद यहाँ अर्जुन के लगे पेड़ों के बीच की खाली जगह को देखकर ध्यान आया कि इसमें हम सब्जी उगाकर रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं। फिर यहाँ हमने सब्जी उगाने का प्रयास किया, जो अब हमारी सहायक आजीविका बन गया है। वे कहती हैं कि कोरोनाकाल की शुरुआत में हमारे गांव क्षेत्र के साप्ताहिक बाजारों में रोक होने के कारण सब्जियों के दाम लगातार बढ़ रहे थे। ऐसे में गांव के गरीब लोगों को सब्जियां खरीदने में काफी दिक्कत हो रही थी। हमारे उत्पादन से गांव के लोगों को बहुत राहत मिली। कम कीमत होने के कारण ग्रामीण आसानी से खरीदते रहे।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना बनी आजीविका का आधार

दरअसल महुदा (च) गाँव की लगभग 25 एकड़ भूमि वीरान और अनुपयोगी थी। यहाँ पंचायत की पहल पर करीब चार साल पहले रेशम विभाग के द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) अंतर्गत 6 लाख 60 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति से टसर पौधरोपण किया गया था। इसमें 73 मनरेगा जॉबकार्डधारी परिवारों ने काम करते हुए 41 हजार पौधों का रोपण किया था, जिसके लिए उन्हें 3 लाख 75 हजार 446 रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया। वहीं रोपे गए पौधों के संधारण के लिए अभिसरण के तहत रेशम विभाग के द्वारा रेशम विकास एवं विस्तार योजनांतर्गत 11 लाख 42 हजार 400 रुपए स्वीकृत किए गए। इन चार सालों में अर्जुन पौधे अब 6 से 8 फीट के हरे-भरे पेड़ बन गए हैं। यहाँ भूमिगत जल की वृद्धि के लिए महात्मा गांधी नरेगा से साल 2020-21 में 5.54 लाख रुपए की लागत से पौधों के निकट 6,220 गड्ढे खोदे गए हैं। इस कार्य में मनरेगा श्रमिकों को 2 हजार 490 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हुआ है। 

जिला रेशम विभाग के उपसंचालक श्री एस.एस. कंवर ने इस संबंध में बताया कि यहाँ महात्मा गांधी नरेगा से टसर पौधरोपण एवं संधारण कार्य में जिन महि लाओं ने काम किया था, उनमें से रुचि के आधार पर 25 महिलाओं का एक समूह बनाया गया और उन्हें कृमिपालन का 15 दिवसीय विशेष प्रशिक्षण दिया गया। अब ये महिलाएँ कोसाफल उत्पादन में पारंगत हो गई हैं और इसे अपनी आजीविका के रुप में अपना लिया है। 

महुदा गाँव की इन ग्रामीण महिलाओं का यह छोटा सा प्रयास स्वयं के साथ-साथ गाँव की अर्थव्यवस्था के विकास में भी सराहनीय कदम है।

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एक नजर-
कार्य का नाम- टसर पौधरोपण, क्षेत्रफल- 25 एकड़, कार्य प्रारंभ तिथि- 20.6.2016, परियोजना अवधि- 1 वर्ष,
पौधों की संख्या- 41,000 (महात्मा गांधी नरेगा)
ग्रा.पं.- महुदा (च), विकासखण्ड- बलौदा, जिला-जाँजगीर चाम्पा,
दूरी- जिला मुख्यालय से 20 कि.मी. एवं विकासखण्ड मुख्यालय से 35 कि.मी.
स्वीकृत राशि- 6.60 लाख (महात्मा गांधी नरेगा), स्वीकृत वर्ष- 2015-16, सृजित मानव दिवस- 2186,
स्वीकृत राशि- 11.42 लाख (संधारण कार्य-रेशम प्रभाग, ग्रामोद्योग विभाग), स्वीकृत वर्ष- 2019-20, परियोजना अवधि- 4 वर्ष,
स्वीकृत राशि- 5.54 लाख (जल संरक्षण कार्य-महात्मा गांधी नरेगा), स्वीकृत वर्ष- 2020-21, सृजित मानव दिवस- 2490
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 22◦5'4.87586″ एवं Longitude: N 82◦39'29.6847″
महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत रोपे पौधों की प्रजाति– अर्जुन
माँ कंकाली महिला स्व सहायता समूह- श्रीमती शांति बाई बरेठ (अध्यक्ष) 

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रिपोर्टिंग - श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-जाँजगीर चाँपा, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- 1. श्री मनमोहन सिंह ठाकुर, वरिष्ठ रेशम निरीक्षक, महुदा (च), जिला-जाँजगीर चाँपा, छ.ग., मो.-9406045859
2. श्री विजय कुमार अनंत, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-महुदा (च), वि.ख.-बलौदा, जिला-जाँजगीर चाँपा, छ.ग., मो.-8964003727
3. श्री ह्दयशंकर, कार्यक्रम अधिकारी, वि.ख.-बलौदा, जिला-जाँजगीर चाम्पा, छ.ग., मो.-7974829952
लेखन व संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़
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Tuesday, 17 November 2020

वीरान पहाड़ी पर वृक्षारोपण कर वन्य प्राणियों का संरक्षण

0 महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग के अभिसरण से मसनिया पहाड़ पर लगाए गए थे 25 हजार पौधे. 
0 भालूओं के लिए पहाड़ पर ही खाने और पानी की व्यवस्था, ग्रामीणों की सोच से मानव-भालू द्वंद्व खत्म.


रायपुर। प्राकृतिक संसाधनों, पारिस्थितिक तंत्र और जल, जंगल व जमीन को सहेजने में महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) किस तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, यह देखना हो तो मसनिया पहाड़ पर उगाए गए पेड़ों के बीच खेलते-कूदते भालूओं के आनंददायक दृश्य का साक्षात्कार करना चाहिए। महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग की योजनाओं के अभिसरण से वहां न केवल पहाड़ को वृक्षों से आच्छादित किया गया है, बल्कि जल संरक्षण के लिए कई चेकडेम भी बनाए गए हैं। मानव और वन्य प्राणी के सह-अस्तित्व को मानवीय प्रयासों से मजबूत करने का नायाब उदाहरण है मसनिया पहाड़ और इसके आसपास के क्षेत्र में महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग से हुए काम।

जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती विकासखंड के मसनियां कला और मसनियाखुर्द गांव से लगे मसनिया पहाड़ पर कुछ साल पहले तक हरियाली का नामो-निशान तक नहीं था। पेड़-पौधों से वीरान इस पहाड़ी पर खाने-पीने की कमी हुई तो भालू एवं अन्य वन्य प्राणी गांव की तरफ खिंचे चले आए। नतीजतन भालू और ग्रामीण बार-बार आमने-सामने होने लगे, जिससे कभी भालू तो कभी ग्रामीण घायल हुए। भूख के कारण भालू फसलों को भी नुकसान पहुंचाने लगे। इससे ग्रामीणों में भय व्याप्त रहने लगा और वे इस समस्या से निजात पाने का रास्ता तलाशने लगे।

गांववालों ने आपस में चर्चा कर भालूओं को पहाड़ एवं जंगल में ही संरक्षित करने की योजना बनाई। मसनियां कला ग्राम पंचायत और उसके आश्रित गांव मसनियाखुर्द में ऐसे पौधे लगाने पर विचार किया गया, जिससे कि भालूओं को जंगल में ही खाने को मिल जाए और वे गांव की तरफ न आए। इसके लिए महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग की योजनाओं के अभिसरण से पहाड़ पर वृक्षारोपण करने का उपाय खोजा गया। वर्ष 2017-18 में अगले पांच वर्षों के लिए योजना तैयार कर इसे अमलीजामा पहनाया गया। लगभग 25 एकड़ जमीन पर मिश्रित पौधों का रोपण किया गया, जिसमें सागौन, डूमर, खम्हार, जामुन, आम, बांस, सीसम, अर्जुन, केसियासेमिया और बेर के 25 हजार पौधे शामिल थे।

इस काम के लिए महात्मा गांधी नरेगा से 29 लाख 38 हजार रूपए स्वीकृत होने के बाद श्रमिकों ने अपनी सहभागिता निभाते हुए उज्जड़, वीरान व दुर्गम मसनिया पहाड़ी पर पौधे रोपने का काम शुरू किया। यह काम मुश्किल था क्योंकि पौधरोपण के बाद पानी की कमी के चलते पौधे अधिक समय तक जिंदा नहीं रह पाते। पानी की समस्या को दूर करने महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग के अभिसरण से भू-जल संरक्षण के लिए करीब दस लाख रूपए स्वीकृत किए गए। इस राशि से ब्रशवुड चेकडेम, गाडकर चेकडेम, बोल्डर चेकडेम और कंटूर ट्रेंच का निर्माण किया गया। श्रमिकों ने कड़ी मेहनत से लगातार पानी देकर व फेंसिंग कर पौधों को सुरक्षित रखा।

अच्छी देखभाल से पौधे दो साल में ही वृक्ष की तरह लहलहाने लगे। मजदूरों ने कांवर एवं डीजल पंप के माध्यम से इन पौधों की सिंचाई की। पौधों की सुरक्षा के लिए सीमेंट पोल चैनलिंक से 716 मीटर फेंसिंग की गई। पांच सालों की इस कार्ययोजना में पहले साल वृक्षारोपण और उसके बाद के वर्षों में पौधों के संधारण एवं सुरक्षा कार्य में अब तक सीधे कुल 7851 मानव दिवस रोजगार का सृजन भी हुआ है। इसके लिए श्रमिकों को करीब 14 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया है। वहां महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से ही निर्मित ब्रशवुड चेकडेम, गाडकर चेकडेम, बोल्डर चेकडेम व कंटूर ट्रेंच से पौधों को भरपूर पानी मिलने से उनकी अच्छी बढ़ोतरी हुई। अभी 10 से 12 फीट तक के पेड़ वहां नजर आने लगे हैं। भू-जल संरक्षण से अब भालूओं को पहाड़ी पर ही पानी भी मिलने लगा है।

जामवंत परियोजना से भालू रहवास एवं चारागाह विकास 

राज्य कैम्पा मद से जामवंत परियोजना के तहत क्षेत्र को विकसित करने के लिए पिछले वित्तीय वर्ष में 48 लाख रूपए स्वीकृत किए गए। इस राशि से वहां जलस्रोत के विकास के लिए तालाब एवं डबरी बनाया गया है। भालू रहवास एवं चारागाह विकास के लिए छायादार व फलदार प्रजाति के 13 हजार 200 पौधे रोपे गए हैं। इनमें बेर, जामुन, छोटा करोंदा, बेल, गूलर, बरगद, पीपल, सतावर, केवकंद, जंगली हल्दी और शकरकंद के पौधे शामिल हैं। भालूओं को दीमक अति प्रिय है, इसलिए क्षेत्र में दीमक सिफ्टिंग (भालू के लिए उपयोगी) को भी यहां स्थापित किया गया है। वनमंडलाधिकारी श्रीमती प्रेमलता यादव कहती हैं कि जल, जंगल और जमीन को बचाने से ही प्रकृति का संतुलन बना हुआ है। महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग के तालमेल से मसनिया कला पहाड़ी में इस दिशा में अहम काम हुआ है। पहाड़ पर वृक्षारोपण और जल संग्रहण से वन्य प्राणी खासकर भालू स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। 

मानव-भालू द्वंद्व के बजाय सह-अस्तित्व 

मसनियां कला के सरपंच श्री संजय कुमार पटेल बताते हैं कि पौधरोपण के बाद से इस क्षेत्र की रंगत बदल गई है। महात्मा गांधी नरेगा तथा वन विभाग के संयुक्त प्रयासों से मानव व भालू के बीच द्वंद्व अब समाप्त हो गया है और वे सह-अस्तित्व की भावना से एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाए बिना साथ मिलकर रहवास कर रहे हैं। फलदार और छायादार पेड़ों ने पहाड़ को न केवल हरियाली की चादर ओढ़ाई है, बल्कि भालूओं को भी संरक्षण प्रदान किया है। भालूओं को किसी से, किसी तरह का कोई नुकसान न हो, इसके लिए गांव में “भालू मित्र दल” का गठन किया गया है। 

इस दल की सदस्या श्रीमती भगवती पटेल बताती हैं कि गांव में भालूओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन इससे किसी को किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती। मसनिया पहाड़ के नीचे पेड़ों के पास भालू अक्सर दिख जाते हैं। 
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एक नजर-
कार्य का नाम- मिश्रित वृक्षारोपण, क्षेत्रफल- 25 एकड़, कार्य प्रारंभ तिथि- 20.7.2017
पौधों की संख्या- 25,000 (महात्मा गांधी नरेगा) एवं 13,200 (वन विभाग-राज्य कैम्पा मद)
ग्राम-मसनियाखुर्द, ग्रा.पं.- मसनियां कला, विकासखण्ड- सक्ति, जिला-जाँजगीर चाम्पा,
दूरी- जिला मुख्यालय से 54 कि.मी. एवं विकासखण्ड मुख्यालय से 10 कि.मी.
स्वीकृत राशि- 39.28 लाख (महात्मा गांधी नरेगा से पौधरोपण व जल-संरक्षण व संचय कार्य हेतु) एवं 48 लाख (वन विभाग),
स्वीकृत वर्ष- 2017-18, परियोजना अवधि- 5 वर्ष, सृजित मानव दिवस- 7851(अक्टूबर, 2020-21 तक),
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: 22.070641 एवं Longitude: 83.004816  
महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत रोपे पौधों की प्रजाति व संख्या- सागौन के 8015, डूमर के 2975, खम्हार के 1815, जामुन के 2445, आम के 2075, बांस के 1425, सीसम के 1245, अर्जुन के 1275, केसियासेमिया के तीन हजार तथा बेर के 730 पौधों को मिलाकर, कुल 25 हजार पौधे रोपे गए।
वर्षवार सृजित मानव दिवस-

क्रं.

वर्ष

गतिविधि

सृजित मानव दिवस

1.

2017-18

पौधरोपण

4451

2.

2018-19

पौध संधारण

685

3.

2019-20

पौध संधारण

1748

4.

2020-21

पौध संधारण

967


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रिपोर्टिंग एवं लेखन - श्री देवेन्द्र यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- जाँजगीर चाम्पा, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- 1. श्री एम.आर.साहू, वन परिक्षेत्र अधिकारी, वन मण्डल-सक्ति, जिला- जाँजगीर चाम्पा, छत्तीसगढ़।
2. श्री अमर सिंह सिदार, उपवन परिक्षेत्र अधिकारी, वन मण्डल-सक्ति, जिला- जाँजगीर चाम्पा, छत्तीसगढ़।
3. श्री अमर सिंह सिदार, पूर्व सरपंच, ग्राम पंचायत- मसनियां कला, वि.ख.-सक्ति, जिला- जाँजगीर चाम्पा, छत्तीसगढ़।
4. सुश्री आकांक्षा सिन्हा, कार्यक्रम अधिकारी, वि.ख.-सक्ति, जिला-जाँजगीर चाम्पा, छत्तीसगढ़।
संपादन- 1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ एवं 
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क अधिकारी, जनसम्पर्क संचालनालय, नवा रायपुर अटल नगर, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Monday, 26 October 2020

महात्मा गांधी नरेगा से समूह की आजीविका हुई समृद्ध

0 राधा स्व सहायता समूह को लाख उत्पादन से एक साल में दो लाख रुपए से अधिक की आय.
0 मनरेगा से 5 एकड़ भूमि पर सेमियालता पौधरोपण.
0 लाख उत्पादक किसानों के लिए लाख बीज की उपलब्धता हुई सहज.

रायपुर। प्रदेश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से हुए नर्सरी कार्य और वृक्षारोपण से जहाँ पर्यावरण हरा-भरा हो रहा है, वहीं ग्रामीण आजीविका भी समृद्ध हो रही है। ऐसी ही समृद्धि हमें काँकेर जिले में जिला मुख्यालय से 46 किलोमीटर दूर बनौली गाँव में देखने को मिल रही है। यहाँ करीब दो साल पहले महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से सेमियालता के पौधे रोपे गए थे। रोपण के एक वर्ष बाद, इनमें लाख उत्पादन का कार्य शुरु कर राधा स्व सहायता समूह की महिलाओं ने लाख विक्रय से दो लाख से अधिक की कमाई कर ली है। वहीं कृषि विज्ञान केन्द्र, सिंगारभाठ के तकनीकी मार्गदर्शन से 'बिहन लाख' यानि की लाख-बीज का बैंक भी स्थापित कर लिया है। इस बीज-बैंक की सहायता से वे अब आस-पास के लाख उत्पादक किसानों को लाख उत्पादन के लिए बीज उपलब्ध करा रही हैं। इससे उन्हें अतिरिक्त आय भी हो रही है। 

बनौली गाँव उत्तर बस्तर काँकेर जिले के भानुप्रतापपुर विकासखण्ड के बांसकुण्ड ग्राम पंचायत का आश्रित गाँव है। यहाँ लगभग दो हेक्टयेर की शासकीय भूमि अनुपयोगी एवं खाली पड़ी थी। केवल कुसुम के पेड़ों की हरियाली ही यहाँ दिखाई देती थी। ग्राम पंचायत इस भूमि का उपयोग गाँव की महिलाओं की आजीविका की समृद्धि के लिए करना चाहती थी। इसके लिए पंचायत ने कृषि विज्ञान केन्द्र, सिंगारभाठ के वैज्ञानिकों से संपर्क किया। यहाँ केन्द्र में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से सात लाख 7 हजार रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति से सेमियालता पौधरोपण एवं लाख उत्पादन की परियोजना पर कार्य तो चल ही रहा था। सो, पंचायत के अनुरोध पर कृषि विज्ञान केन्द्र ने बनौली गाँव में पाँच एकड़ की शासकीय भूमि में चार हजार सेमियालता पौधों का रोपण किया। इस कार्य में महात्मा गांधी नरेगा से दो लाख 68 हजार रुपए व्यय हुए। इसमें गाँव के 30 मनरेगा श्रमिकों को 710 मानव दिवस का सीधा रोजगार मिला था और मजदूरी के रुप में एक लाख 22 हजार 142 रुपए मिले थे। बनौली गाँव की यह खाली पड़ी भूमि अब सेमियालता और कुसुम के पेड़ों से आच्छादीत हो गई है।

वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख डॉ. बीरबल साहू बताते हैं कि यहाँ अगस्त, 2018 में सेमियालता पौधों का रोपण वैज्ञानिक पद्धति से किया गया था। इसके लिए सभी पौधों को कतार से कतार में 2 मीटर और पौधे से पौधे में 1 मीटर की दूरी पर रोपा गया था, ताकि ये अच्छी वृद्धि पा सकें। पौधों के लिए पानी की व्यवस्था टपक सिंचाई यूनिट की स्थापना करके की गई। वर्तमान में इनकी लंबाई 6 से 7 फीट तक हो चुकी है। यहाँ लाख उत्पादन का कार्य राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.) के अंतर्गत गठित राधा स्व सहायता समूह की महिलाएँ कर रही हैं। केन्द्र के द्वारा इन्हें इस संबंध में प्रशिक्षण भी दिया गया है और नियमित अंतराल पर मार्गदर्शन भी दिया जा रहा है।

वहीं समूह की सचिव श्रीमती कौशल्या मंडावी का कहना हैं कि समूह की महिलाओं के द्वारा जुलाई, 2019 में पौधों में बिहन लाख निवेशित (इनाकुलेशन) किया गया था, जिसके छः माह बाद करीब 2 क्विंटल लाख का उत्पादन प्राप्त हुआ। इस उत्पादन में से एक क्विंटल को समूह ने 350 रुपए प्रति कि.ग्रा. की दर से 35 हजार रुपए में बेचा और बचत 01 क्विंटल को जनवरी-फरवरी माह 2020 में कुसुम वृक्ष में बिहन लाख के रूप में उपयोग किया गया था, जिससे माह- जुलाई, 2020 में पुनः 8 क्विंटल लाख का उत्पादन प्राप्त हुआ। इसमें से फिर 6.45 क्विंटल को 270 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से विक्रय कर एक लाख 74 हजार 150 रूपये की आमदनी प्राप्त की गई तथा बचत 1.55 क्विंटल को पुनः सेमियालता पौधे में बिहन लाख के रूप में लगाया गया है, जिससे आगामी दिसम्बर माह, 2020 तक 7 से 8 क्विंटल लाख के उत्पादन होने की संभावना है।

इस प्रकार गांव की खाली पड़ी शासकीय भूमि में महात्मा गांधी नरेगा की सहायता से राधा स्व सहायता समूह की महिलाओं ने एक बार निवेशित किये गये लाख से पुनः सेमियालता एवं कुसुम के पेड़ों में वर्ष भर लाख उत्पादन के मॉडल को सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया है। पंचायत की पहल और कृषि विज्ञान केन्द्र के मार्गदर्शन से अब जहाँ समूह की महिलाओं के पास सालभर का रोजगार उपलब्ध है, वहीं लाख उत्पादक किसानों के लिए बिहन लाख की उपलब्धता भी सहज हो गई है।

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एक नजर-
कार्य का नाम- सेमियालता पौध रोपण एवं लाख उत्पादन कार्य, क्षेत्रफल- 5 एकड़, पौधों की संख्या- 4000,
ग्राम-बनोली, ग्रा.पं.- बांसकुण्ड, विकासखण्ड- भानुप्रतापपुर, जिला- उत्तर बस्तर काँकेर,
स्वीकृत राशि- 7.7 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2018-19, सृजित मानव दिवस- 710.
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रिपोर्टिंग- श्री ऋषि जैन, शिकायत निवारण अधिकारी, जिला पंचायत- उत्तर बस्तर काँकेर, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- श्री अनिल पटेल, पंचायत सचिव, ग्रा.पं.-बांसकुण्ड, ज.पं.-भानुप्रतापपुर, जिला- उत्तर बस्तर काँकेर, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।

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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...