Showing posts with label *Rural Infrastructure. Show all posts
Showing posts with label *Rural Infrastructure. Show all posts

Monday, 3 January 2022

मनरेगा अभिसरण और ‘बिहान’ ने दिया कमाई का जरिया

स्वसहायता समूह की चार महिलाएं कैंटीन चलाकर रोज हज़ार से 12 सौ रूपए कमा रहीं


स्टोरी/रायपुर/कबीरधाम (कवर्धा)/ 3 जनवरी 2022. इंद्राणी, उर्मिला, सुनीता और सातोबाई की जिंदगी अब बदल चुकी है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और ‘बिहान’ (राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन) ने उनका जीवन बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है। महात्मा गांधी नरेगा और 14वें वित्त आयोग मद के अभिसरण से निर्मित वर्क-शेड में स्वसहायता समूह की ये महिलाएं ‘बिहान कैंटीन’ संचालित कर रोज लगभग एक हजार से 1200 रूपए की कमाई कर रही हैं।

ये चारों महिलाएं कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखंड के राजानवागांव के भारत माता स्वसहायता समूह की सदस्य हैं। इन महिलाओं ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित ग्राम संगठन से 30 हजार रूपए का कर्ज लेकर कैंटीन शुरू किया है। इनके हुनर और इनके बनाए नाश्ते के स्वाद से कैंटीन में भीड़ जुटने लगी है। प्रसिद्ध पर्यटन एवं धार्मिक स्थल भोरमदेव पहुंचने वाले पर्यटक, कैंटीन के पास स्थित भोरमदेव आजीविका केन्द्र में काम करने वाले तथा नजदीकी धान खरीदी केन्द्र में आने वाले किसानों की भीड़ वहां लगी रहती है। इससे इनकी आमदनी बढ़ रही है। अक्टूबर-2021 के आखिरी सप्ताह में शुरू हुई इस कैंटीन से इन महिलाओं ने अब तक लगभग 60 हजार रूपए का नाश्ता बेचा है। इसमें से 30 हजार रूपए बचाकर उन्होंने आमदनी में हिस्सेदारी के साथ ग्राम संगठन से लिया गया कर्ज लौटाना भी शुरू कर दिया है।

‘बिहान कैंटीन’ संचालित करने वाली भारत माता स्वसहायता समूह की सचिव श्रीमती उर्मिला ध्रुर्वे बताती हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत उनके समूह का गठन हुआ है। समूह ने कैंटीन चलाने के लिए बर्तन और राशन खरीदने ग्राम संगठन से 30 हजार रूपए का ऋण लिया है। समूह की चार महिलाएं इस कैंटीन का संचालन कर रही हैं। उर्मिला आगे बताती है कि समूह की कोशिश रहती है कि कैंटीन में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को गरमा-गरम चाय-नाश्ता परोसा जाए। दिनभर की मेहनत के बाद चारों सदस्यों को 300-300 रूपए की आमदनी हो जाती है। महात्मा गांधी नरेगा और ‘बिहान’ के सहयोग से वे अब आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो रही हैं।

राजानवागांव के सरपंच श्री गंगूराम धुर्वे स्व सहायता समूह के लिए महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से बने इस वर्क-शेड के बारे में बताते हैं कि ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर वर्ष 2020-21 में इसकी स्वीकृति मिली थी। भोरमदेव आजीविका केन्द्र से लगा यह शेड सात लाख आठ हजार रूपए की लागत से जुलाई-2021 में बनकर तैयार हुआ। गांव के मनरेगा श्रमिकों को इसके निर्माण के दौरान 335 मानव दिवस का रोजगार प्राप्त हुआ जिसके लिए उन्हें करीब 64 हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। महात्मा गांधी नरेगा और 14वे वित्त आयोग के अभिसरण के तहत निर्मित इस परिसम्पत्ति ने कैंटीन के रूप में महिलाओं को आजीविका का नया साधन दिया है।

-0-

एक नजरः-
कार्य का नाम- शेड निर्माण कार्य स्व सहायता महिला समूह के लिए, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम पंचायत- राजानवागांव, विकासखण्ड- बोडला, स्वीकृत राशि- 7.30 लाख रुपए, व्यय राशि- 7.08 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 03.11.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 24.07.2021, वर्क कोड- 3302002041/AV/1111385308,

परियोजना में शामिल योजनावार लागतें-
स्वीकृत राशि रुपए 7.30 लाख रुपए में महात्मा गांधी नरेगा से ₹ 6 लाख 64 हजार और 14वे वित्त से ₹ 66 हजार रुपए,
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत 30 हजार रुपए (लोन) से कैंटीन हेतु बर्तन एवं खाद्य सामग्री की खरीदी

सृजित मानव दिवस- 335, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 58, मजदूरी भुगतान- 63815.00 रुपए,
जी.पी.एस. लोकेशन- 22°04'43.6"N 81°11'54.8"E, पिनकोड- 491995,
---

तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री अभिषेक जायसवाल, बी.पी.एम.-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान), ज.पं.-बोडला, जिला-कबीरधाम, छ.ग.।
2. श्रीमती गीतू वर्मा, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-बोडला, जिला-कबीरधाम, छ.ग.।
3. श्री मनोज यादव, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-राजानवागांव, ज.पं.-बोडला, जिला-कबीरधाम, छ.ग.।

रिपोर्टिंग- श्री रमेश भास्कर, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बोडला, जिला-कबीरधाम, छ.ग.।
लेखन- श्री विनीत दास, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कबीरधाम, जिला-कबीरधाम, छ.ग.।
पुनर्लेखन एवं संपादन-
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
---
Pdf अथवा Word Copy डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें- http://mgnrega.cg.nic.in/success_story.aspx

Friday, 6 August 2021

वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ बेचकर महिलाओं ने 6 महीनों में ही कमाए 6 लाख रूपए

मनरेगा से बने 30 टांकों में वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ का उत्पादन.

समूह की महिलाएं ज्यादा कमाई के लिए बकरीपालन भी कर रहीं, 70 हजार रूपए की खरीदी बकरियां.


स्टोरी/रायपुर/धमतरी/06 अगस्त, 2021.
महिलाएं घर के भीतर और बाहर दोनों जगह मोर्चा संभाल रही हैं। घर के काम निपटाने के बाद वे स्वसहायता समूह बनाकर स्वरोजगार कर आर्थिक तौर पर भी स्वावलंबी बन रही हैं। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) से जुड़ीं धमतरी जिले के कुरूद विकासखंड की गातापार (को) की महिलाएं अपनी उद्यमिता से सफलता की नई इबारत लिख रही हैं। वहां की ‘कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह’ की महिलाओं ने वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ उत्पादन का काम शुरू किया और छह महीनों में ही छह लाख रूपए की कमाई कर लीं। गांव में वर्मी कंपोस्ट निर्माण के लिए महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से बनाए गए 30 टांकों ने उनकी सफलता की बुनियाद रखी। अपनी सीखने की ललक, हुनर और मेहनत से उन्होंने इसे परवान चढ़ाया।

सामान्य बचत से शुरूआत कर समूह के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने वाली इन महिलाओं का सफर वित्तीय वर्ष 2020-21 में तब शुरू हुआ, जब पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा से गांव में आठ लाख रूपए की लागत से सामुदायिक वर्मी कम्पोस्ट इकाई का निर्माण हुआ। ग्राम पंचायत ने चरणबद्ध तरीके से 30 टांके बनवाएं। इस काम में 88 मनरेगा श्रमिकों को सीधा रोजगार मिला। इस दौरान 561 मानव दिवसों का सृजन कर श्रमिकों को एक लाख रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया। टांकों के निर्माण के दौरान ही समूह की महिलाओं ने कृषि विभाग की मदद से जैविक खाद उत्पादन का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया था। टांके बनने के बाद वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए पंचायत ने तत्काल इन्हें कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह को सौंप दिया। समूह ने इसी साल (2021 में) जैविक खाद बनाने का काम शुरू किया और पिछले छह महीनों में ही 295 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री कर एक लाख 33 हजार रूपए कमाए। जैविक खाद के साथ ही महिलाएं इसे तैयार करने में सहयोगी केंचुएं भी बेच रही हैं। बीते छह महीनों में 24 क्विंटल केंचुआ बेचकर महिलाओं ने चार लाख 62 हजार रूपए का शुद्ध मुनाफा कमाया है।

कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती मालती यादव बताती हैं कि उनके 11 सदस्यों वाले समूह ने पंचायत से टांका मिलने के बाद वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन शुरू किया था। प्रत्येक टांका में भराव की क्षमता 30 से 35 क्विंटल की है। समूह ने पिछले छह माह में 320 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट बनाया है, जिसमें से 295 क्विंटल बेचा जा चुका है। इससे समूह को दो लाख 95 हजार रूपए मिले हैं। लागत एवं अन्य खर्चों को काटकर एक लाख 33 हजार रूपए की शुद्ध आमदनी हुई है।

समूह की सचिव श्रीमती निर्मला साहू बताती हैं कि वे लोग महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित सामुदायिक वर्मी कम्पोस्ट इकाई में जैविक खाद के साथ ही केंचुआ उत्पादन भी कर रही हैं। उन्होंने अब तक 50 क्विंटल केंचुआ का उत्पादन कर लिया है। इनमें से 24 क्विंटल की बिक्री भी हो चुकी है, जिससे समूह को चार लाख 80 हजार रूपए प्राप्त हुए हैं। इकाई के संधारण एवं केंचुआ खरीदी पर हुए खर्चों को काटने के बाद समूह को इससे चार लाख 62 हजार रूपए की शुद्ध आय हुई है। समूह की सदस्य श्रीमती गौरी ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट से हुई कमाई से समूह ने बकरीपालन शुरू किया है। इसके लिए 70 हजार रूपए की बकरियां खरीदी गई हैं। उनका समूह भविष्य में पशुपालन के काम को आगे बढ़ाना चाहता है। इसके लिए 50 हजार रूपए अलग से रखे गए हैं। वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए गौठान में भी 50 हजार रूपये लगाए हैं।

-0-
एक नजरः-
ग्राम पंचायत- गातापार (को.), विकासखण्ड- कुरुद, जिला- धमतरी,
कार्य का नाम- वर्मी कम्पोस्ट टांका निर्माण कार्य (30 नग), क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, पिनकोड- 493663
स्वीकृत वर्ष- 2020-21, स्वीकृत राशि- रुपए 8.09 लाख, सृजित मानव दिवस- 561, मजदूरी भुगतान- रुपए 1.06 लाख
व्यय राशि- 7.03 लाख, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 88, जी.पी.एस. लोकेशन- 20°52'27.85" N 81°32'57.66"E,
कार्य का कोड- 3309002006/RS/1111362455, 309002006/RS/1111364347, 3309002006/RS/1111363820, 3309002006/RS/1111361562, 3309002006/RS/1111366730


-0-

रिपोर्टिंग - श्री धरम सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी, छत्तीसगढ़।
तथ्य व आंकड़े – श्रीमती कुंति देवांगन, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-कुरुद, जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़।
लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
-0-
Pdf अथवा Word Copy डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें- http://mgnrega.cg.nic.in/success_story.aspx

Saturday, 23 January 2021

धान संग्रहण चबूतरों ने परिसम्पत्ति के रुप में साबित की अपनी सार्थकता

संग्रहण केन्द्र में बने पक्के चबूतरे धान को बचा रहे हैं “नमी, बारिश और चूहों से”.
महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से बनाए गए हैं पक्के चबूतरे.


रायपुर, 21 जनवरी 2021. इस साल कोरिया जिले के दूरस्थ विकासखण्ड भरतपुर के गाँव कंजिया में सरकार द्वारा समर्थन मूल्य में उपार्जित धान की सुरक्षा को लेकर ग्राम पंचायत के पदाधिकारियों और सहकारी समिति के प्रबंधकों के माथे पर चिंता की लकीरें नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर यहाँ अपना धान बेच चुके किसान भी अब पूरी तरह से निश्चिंत हैं कि स्थानीय सहकारी समिति द्वारा खरीदा गया उनका धान बे-मौसम होने वाली बारिश, नमी और चूहों व कीड़ों के प्रकोप से उनके द्वारा उपार्जित धान सुरक्षित है। 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) के अभिसरण तथा ग्राम पंचायत और सहकारी समिति के संयुक्त प्रयास से यह संभव हो सका है। महात्मा गांधी नरेगा से स्वीकृत सात लाख 38 हजार रूपए और 14वें वित्त आयोग के 50 हजार रूपए के अभिसरण से कंजिया धान संग्रहण केंद्र में चार पक्के चबूतरों का निर्माण किया गया है। स्थानीय पंचायत एवं सहकारी समिति को इससे जहां धान को सुरक्षित रखने में सहजता हो रही है, वहीं किसान भी अब खुश हैं। वनांचल भरतपुर की ग्राम पंचायत कंजिया की सरपंच श्रीमती विपुलता सिंह कहती हैं कि संग्रहण केन्द्र में चबूतरों के निर्माण से धान को सुरक्षित रखने में बड़ी मदद मिल रही है। इनके निर्माण के कुछ ही महीनों में उपार्जित धान के सुरक्षित रखरखाव से पक्के चबूतरों की उपयोगिता और सार्थकता दिख रही है। कंजिया में 18 जनवरी 2021 तक किसानों से उपार्जित 15 हजार 106 क्विंटल धान आ चुका है, जिसे इन चबूतरों के ऊपर सुरक्षित रखा गया है। 


ग्राम पंचायत स्थित सहकारी समिति, जो कि आदिम जाति सेवा सहकारी समिति मर्यादित गढ़वार (कंजिया) के नाम से पंजीकृत है, वहाँ के सहायक प्रबंधक श्री विक्रम सिंह के अनुसार इस सहकारी समिति से आस-पास के 30 गाँव जुड़े हुए थे। इस साल एक और उपकेन्द्र कुंवारपुर में खुल जाने से कंजिया में लगभग 21 हजार क्विंटल धान की खरीदी का अनुमान है। उन्होंने बताया कि पूर्व के वर्षों में यहाँ सुरक्षित भंडारण की सुविधा नहीं होने से उठाव होने तक हर साल लगभग 150 से 200 क्विंटल धान खराब हो जाता था। इसका सीधा नुकसान सहकारी साख समिति प्रबंधन और समिति से जुड़े किसानों को होता था। परंतु अब अब पक्के चबूतरों के बन जाने से यह समस्या लगभग समाप्त हो गई है। 

श्री सिंह ने आगे बताया कि अभी नए साल की शुरुआत में ही बे-मौसम बारिश हुई थी, परंतु इस बार धान को सुरक्षित रखने में कोई परेशानी नहीं हुई। धान संग्रहण चबूतरों के बन जाने से अब किसानों के द्वारा दिन-रात की मेहनत से उपजाई गई पूँजी 'धान' को ज्यादा अच्छे से रखा जा रहा है। 

यहाँ चबूतरे के निर्माण से सहकारी समिति कंजिया से जुड़े गाँव के किसान श्री संतोष कुमार और श्री रामलाल सहित कुल 49 मनरेगा श्रमिकों को 393 मानव दिवस का सीधा रोजगार भी प्राप्त हुआ। ग्राम रोजगार सहायक श्री पुरुषोत्तम सिंह बताते हैं कि संग्रहण केन्द्र में चार नग चबूतरों के निर्माण से जहाँ पंचायत एवं समिति को अपने कार्य-उत्तरदायित्वों के निर्वहन में सहजता हो रही है। 

-0-

एक नजरः-

कार्य का नाम- धान संग्रहण केन्द्र चबूतरा निर्माण कार्य, निर्मित चबूतरों की संख्या- 4

ग्रा.पं.- कंजिया, विकासखण्ड- भरतपुर, जिला- कोरिया, पिनकोड- 497778

स्वीकृत वर्ष- 2020-21,  कार्य प्रारंभ तिथि- 15/06/2020, कार्य स्थिति- पूर्ण

स्वीकृत राशि- रुपए 7.88 लाख(महात्मा गांधी नरेगा- 7.38 लाख एवं 14वाँ वित्त आयोग- 50 हजार),

रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 49, सृजित मानव दिवस- 393, मजदूरी पर व्यय- 74,670.00

धान संग्रहण केन्द्र में पंजीकृत किसानों की संख्या- 385, कार्य का जी.पी.एस. लोकेशन- 23°41'15.9"N 81°41'18.8"E

कार्य का कोड- 3306005027/AV/1111377944 एवं 3306005027/AV/1111387491

-----

रिपोर्टिंग व लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.-9424259026

तथ्य एवं स्त्रोत-

1. श्री आरिफ रजा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, जिला-कोरिया, छत्तीसगढ़

2. श्री पुरुषोत्तम सिंह, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-कंजिया, वि.ख.-भरतपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7722853989

पुनर्लेखन व संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

-0-
Pdf अथवा Word Copy डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें- http://mgnrega.cg.nic.in/success_story.aspx



Wednesday, 14 August 2019

मेहनत और सूझबूझ से झिरिया का पानी हुआ स्वच्छ

मेहनत और सूझबूझ से झिरिया का पानी हुआ स्वच्छ
 
मेहनत और सूझबूझ से इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता । असंभव कार्य भी संभव हो जाता है । बड़ी से बड़ी समस्या भी चुटकियों में हल हो जाती हैं । ऐसी ही एक समस्या का समाधान, कबीरधाम जिले की भेलकी ग्राम पंचायत के बैगा परिवारों ने अपनी मेहनत और सुझबूझ से कर दिखाया है । इसमें उन्हें मदद मिली है महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से। कल तक बारिश के दिनों में जिस झिरिया (पहाड़ों से बहने वाली एक छोटी जलधारा) का पानी गंदा होकर अनुपयोगी हो जाता था, वह आज इतना स्वच्छ है कि उसमें इंसान का चेहरा भी साफ नजर आता है । भेलकी गाँव के ग्रामीणों ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से मिली राशि से पहाड़ से बह रही प्राकृतिक झिरिया को इस तरह युक्तिपूर्वक चारों तरफ से पक्का निर्माण कर बांधा कि, झिरिया एक कुण्ड में परिवर्तित हो गई और उसके प्राकृतिक प्रादुर्भाव व बहाव की स्थिति में कोई परिवर्तन भी नहीं हुआ । अब झिरिया में बारहों माह 5 से 6 फीट शीतल जल उपलब्ध रहता है । अपनी सुझबूझ से प्राकृतिक जल को संरक्षित करने के बाद, ये बैगा आदिवासी झिरिया के पानी को पीने के अलावा रोजमर्रा के कामों में भी इस्तेमाल कर रहे हैं ।
भेलकी गाँव छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले के पण्डरिया विकासखण्ड से 45 किलोमीटर दूर पहाड़ों के बीच में बसा हुआ है । इसकी कुल आबादी 1411 है और उसके 3 आश्रित ग्राम अधचरा, तेलियापानी धोबे एवं देवानपट्पर हैं । यहाँ के रहवासी मुख्यतः विशेष पिछड़ी संरक्षित 'बैगा' जनजाति के हैं । अपनी संस्कृति के अनुरुप ये अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति, प्रकृति के दिये हुये संसाधनों से करते हैं । इस गाँव में ऐसा ही एक संसाधन झिरिया है, जिसके पानी का उपयोग ये आदिवासी परिवार पीने के पानी के लिए और अपने दैनिक कार्यों में करते हैं । बारिश के दिनों में पहाड़ों से बहकर आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी या गाद को बहाकर लाता था, जो इस झिरिया के पानी के साथ मिलकर, उसे मटमैला कर देता था, जिससे यह पानी अनुपयोगी हो जाता था । वहीं गर्मी की शुरुआत में ही जल संकट का दौर शुरू हो जाता था । मार्च के महीने में ही पानी की समस्या उत्पन्न होने लगती थी । हालाँकि इस गाँव में हैंडपंप तो हैं, लेकिन अधिकांश हैंडपंप या तो सूख गए होते थे, या किन्हीं कारणों से खराब भी हो जाते थे । इसके चलते इस वनांचल गाँव के बैगा-आदिवासियों को प्यास बुझाने के लिए झिरिया का पानी पीना पड़ रहा था । झिरिया से पानी लेने के लिए वे कटोरीनुमा बर्तन से पानी निकालते थे, घंटों मशक्कत के बाद उन्हें कुछ हांडी पानी ही उपलब्ध हो पाता था । एक या दो लोगों के पानी लेने के बाद झिरिया के कच्चा होने के कारण उसका पानी गंदा हो जाता था । इसके बाद 20 से 25 मिनट के इंतजार के बाद ही झिरिया का पानी साफ हो पाता था ।
आने जाने में लग जाता था घंटों समय
पानी के लिए इन बैगा आदिवासियों को दर-दर भटकना पड़ रहा था । इन्हें मजबूरीवश पानी के लिए गाँव से दूर जाना पड़ता था । ऐसे में पानी के लिए ही इन्हें घंटों समय लग जाता था । गाँव के पुरुष और महिलाएँ जान जोखिम में डालकर जंगली रास्तों से होकर पानी की व्यवस्था करते थे ।
पक्का झिरिया से साफ पानी और मजदूरी, दोनों मिले
ऐसे में एक दिन भेलकी गाँव के आश्रित गाँव देवानपट्पर के घिनवा मोहल्ले में पानी की समस्या को दूर करने के लिए ग्रामीणों की बैठक हुई । इस बैठक में मोहल्ले के सबसे उम्रदराज श्री घिनवा राम बैगा पिता श्री महाजन ने पानी की समस्या को दूर करने के लिए कच्चे झिरिया को पक्का बनाने का सुझाव सबके सामने रखा । सभी ने एक मत से झिरिया के प्राकृतिक बहाव को सुरक्षित रखते हुये पक्की झिरिया निर्माण पर अपनी सहमति दे दी। इस संबंध में श्री घिनवा राम बैगा कहते हैं - "सब गाँव वालों ने सोचा कि यदि ग्राम पंचायत, घिनवा मोहल्ले के कच्चे झिरिया के पाया को पक्का बना दें, तो बहुत सुविधा हो जाएगी । ऐसा सोचकर हमने ग्राम सभा में पक्की झिरिया निर्माण का प्रस्ताव पारित किया । साल 2018 के जून महीने में सरपंच से पक्की झिरिया के निर्माण की स्वीकृति की जानकारी मिली, तो मैंने सभी मोहल्लेवासियों को कहा कि तुम्हारा झिरिया निर्माण का काम स्वीकृत हो गया है । अब तुम लोग पक्की झिरिया बनाओ । झिरिया के निर्माण से साफ पानी तो मिला ही, साथ में मजदूरी भी मिली ।"
चुनौतीपूर्ण काम था पक्का झिरिया का निर्माण
घिनवा मोहल्ले में पहाड़ की तलहटी में ढलान पर बहने वाली झिरिया के पक्काकरण के बारे में सरपंच श्री तितरु सिंह बैगा बताते हैं कि इस मोहल्ले की बसाहट पहाड़ पर है । पक्की झिरिया की स्वीकृति के बाद इसका निर्माण करना ग्राम पंचायत के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि पक्की झिरिया के निर्माण के लिए पहले तो रेत, सीमेंट, ईंटों और पत्थरों को परिवहन कर पहाड़ पर मोहल्ले तक लाना था, फिर आड़े-तिरछे रास्ते से उन्हें नीचे झिरिया तक पहुँचाना सबसे कठिन काम  था, किन्तु श्री घिनवा राम बैगा ने पक्की झिरिया निर्माण के लिए लगातार ग्रामीणों को प्रेरित कर इसे सरल बना दिया । आखिरकार सबके सामूहिक प्रयास से लगभग 2.70 मीटर व्यास और 3 मीटर गहराई/ ऊँचाई का पक्की झिरिया एक कूप के रुप में परिवर्तित हो गई । श्री तितरु सिंह आगे बताते हैं कि वर्तमान में इस पक्की झिरिया के पानी का उपयोग घिनवा मोहल्ले के 30 बैगा परिवारों के द्वारा किया जा रहा है । इसे देखकर, ग्राम पंचायत को चारों आश्रित ग्राम से 8 और पक्की झिरिया के निर्माण का आवेदन प्राप्त हुआ था, जिसका निर्माण ग्राम पंचायत ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से करवाया। योजनांतर्गत जुलाई, 2019 तक आश्रित गाँव देवानपट्पर में तीन, भेलकी में एक, अधचरा में एक एवं तेलियापानी धोबे में चार पक्की झिरिया का निर्माण हो चुका है ।
अस्पताल के खर्चे बचे
ग्राम रोजगार सहायक श्री उमेंद धुर्वे ग्राम पंचायत में बने पक्की झिरिया के बारे में बताते हैं कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से एक पक्की झिरिया बनाने के लिए 52 हजार रुपयों की स्वीकृति प्राप्त हुई थी । इसमें से 12 हजार रुपये मजदूरी और 40 हजार रुपये सामग्री मद की लागत शामिल थी । इस प्रकार कुल 4 लाख 68 हजार रुपयों की स्वीकृति से ग्राम पंचायत में 9 पक्के झिरिया का निर्माण हुआ । पक्की झिरिया के निर्माण के बाद से इन मोहल्लों में जल जनित बीमारियों का एक भी प्रकरण अस्पताल में दर्ज नहीं हुआ है। इससे बीमारियों के ईलाज पर होने वाले खर्चों से ग्रामीणों को मुक्ति भी मिली है । 
घिनवा मोहल्ले में बनी पक्की झिरिया में पानी लेने आयी रामबाई कहती हैं - "अब पानी की तकलीफ नहीं है, भरपूर पानी मिलता है। पहले छोटी-सी कच्ची झिरिया होने के कारण गंदा पानी लेना पड़ता था, जिससे बच्चों को कभी भी बुखार, उल्टी और दस्त हो जाता था, अब सब स्वस्थ हैं ।"

वहीं घिनवा मोहल्ले के ही श्री धनसिंह पिता श्री मोहतू, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण से मिले अपने आवास के निर्माण के लिए पानी की व्यवस्था भी इसी पक्की झिरिया से मोटर पम्प के जरिये कर रहे हैं ।
आश्रित ग्राम देवानपट्पर में श्री मंगलू के खेत के पास और सड़क से 20 मीटर की ऊँचाई पर पहाड़ी में एक अन्य पक्की झिरिया का निर्माण करवाया गया है । यहाँ झिरिया के पानी को पाईप के द्वारा नीचे बस्ती में सड़क किनारे टंकी में एकत्र कर उपयोग किया जा रहा है । इससे लगभग 25 बैगा परिवार अपनी पानी की जरुरतों को पूरा कर रहे हैं । ग्राम पंचायत ने 14वें वित्त आयोग से प्राप्त राशि से पाईप और टंकी की व्यवस्था की है ।
ग्राम पंचायत भेलकी में झिरिया के पक्कीकरण से आज जहाँ इन आदिवासी बैगा परिवारों को प्राकृतिक एवं स्वच्छ जल प्राप्त हो रहा है, वहीं इनके मध्य जल संरक्षण जैसी आवश्यकताओं और समस्याओं की पहचान कर मिलकर समाधान करने की प्रवृत्ति का भी प्रसार हो रहा है। 



--0--




----------------------------------------------------------------------------

रिपोर्टिंग व लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य व स्त्रोत-         श्री सेवकुमार चंद्रवंशी, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-पंडरिया, जिला-कबीरधाम,  छत्तीसगढ़। 
संपादन -               श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
 ----------------------------------------------------------------------------

Saturday, 3 August 2019

सही दिशा से बदली दशा (जल संचयन का नया उपक्रम)


बहते पानी को मिली दिशा
और बदली झिरिया गांव के किसानों की दशा


       यह जान लेना जरुरी है कि धरती पर इंसान का अस्तित्व बनाए रखने के लिए पानी जरूरी है, तो पानी को बचाए रखने के लिए उसका संरक्षण एवं युक्तियुक्त उपयोग ही एकमात्र उपाय है। इस तरह पानी जुटाने के लिए जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर पारम्परिक जल प्रणालियों को खेाजा जाए और उनको सुरक्षित रखते हुए उपयोग किया जाये। छत्तीसगढ़ के झिरिया गांव के ग्रामीणों ने भी पहाड़ी जंगल के तलहटी में प्राकृतिक रुप से बने झिरिया (जल स्त्रोत) से झर-झर कर बहते पानी को रोकने और उसे एक दिशा देकर बेहतर उपयोग करने का एक तरीका विकसित कर लिया गया है। इस तरीके से सहेजे गए पानी का इस्तेमाल रोजमर्रा के कामों और सिंचाई में तो हो ही रहा है, भू-जल स्तर भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है। बहते पानी को रोकने, उसे एक दिशा देने और उपयोग करने की यह बातें उन मायनों में तब और अधिक प्रासंगिक हो जाती है, जब इसे आदिवासियों विशेषकर बैगा जनजाति यानि माननीय राष्ट्रपति के दत्तकपुत्र का दर्जा प्राप्त विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों के द्वारा मिलकर किया गया हो।


छत्तीसगढ़ राज्य के मुंगेली जिले के लोरमी विकासखण्ड मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर पहाड़ और जंगल की तलहटी में बसे झिरिया गांव के आदिवासी ग्रामीणों विशेषकर बैगा जनजाति परिवारों ने ग्राम पंचायत के साथ मिलकर पहले तो प्राकृतिक झिरिया के वर्षों से यूँ ही बह रहे पानी को चेक डेम बनाकर रोका, फिर उसे पक्की नाली बनाकर बहाव की एक निश्चित दिशा दे दी। इसके बाद इसे गांव के ही सामुदायिक तालाब से जोड़ कर पानी को सहेज लिया। इसके अलावा नाली के समीप स्थित खेत-खलिहानों
तक सिंचाई के लिए पानी पहुँचाने के उद्देश्य से गांव के ही 28 किसानों ने अपनी खेती जमीन पर बनी डबरियों को इस नाली से जोड़ लिया। अब इन डबरियों में बारह महीनों झिरिया का पानी रहने से सिंचाई के लिए पानी की समस्या से मुक्ति मिल गई है। इस प्रकार न केवल मिट्टी का कटाव और झिरिया के माध्यम से पहाड़ों में संचित होकर रिसता वर्षाजल का नुकसान रुका, बल्कि खेतों को भी पानी मिला। ग्रामीणों एवं ग्राम पंचायत का यह प्रयास, अब पूरे गांव के लिए संजीवनी बन गया है।

वर्षों से झिरिया के यूं ही बहते पानी को रोककर दिशा देने और उससे किसानों की दशा को बदलने का सपना देखने वाले गांव के उपसरपंच श्री नरेश तिलगाम कहते हैं, "इस झिरिया का पानी जमीन की ढाल के हिसाब से यूँ ही बह कर गांव से बाहर चला जाता था। मैं अक्सर इसे रोकने और तालाब में ले जाकर एकत्र करने के बारे में सोचता था। एक दिन गांव के सरपंच श्री बबलू जी से इस संबंध में विस्तार से चर्चा की, तब उन्होंने जनपद पंचायत एवं जिला पंचायत के अधिकारियों से इस संबंध में योजना बनाकर संसाधन उपलब्ध कराने को कहा। साल 2018-19 में जिला प्रशासन का सहयोग मिला और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना एवं जिला खनिज न्यास निधि के परस्पर तालमेल से पानी बचाने और उसे उपयोग करने की यह योजना बनी, फिर जो बदलाव आया वो आपके सामने है।"


ग्राम पंचायत के सरपंच श्री बबलू यादव ने इस संबंध में बताया कि उपसरपंच तिलगाम ने झिरिया के बहते प्राकृतिक जल को रोकने और उसके उपयोग को लेकर हुये इन कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्होंने सबसे पहले सभी ग्रामीणों को इसके लिए तैयार किया, जो कि सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण काम था। क्योंकि ग्रामीणजन मान्यताओं के कारण झिरिया के आस-पास निर्माण के लिए मना कर रहे थे। काफी समझाने के बाद सबकी सहमति से झिरिया से लगभग 100-150 मीटर की दूरी पर निर्माण कार्य शुरु करने बात बनी। इसके बाद महात्मा गांधी नरेगा और डी.एम.एफ. (जिला खनिज न्यास निधि) के अभिसरण से लूज बोल्डर चेक डेम, स्थाई चेक डेम व डाइवर्सन वेयर निर्माण, पक्की नाली एवं डबरी बनवाने की स्वीकृति प्राप्त की गई।

पहाड़ की तलहटी पर तीन स्थानों पर बने प्राकृतिक झिरिया से आने वाला पानी का ढलान गांव की ओर है। इस वजह से यह अपने साथ मिट्टी को भी बहा कर ले आता है। इसलिये नौ अलग-अलग स्थानों पर छोटे-छोटे पत्थरों से लूज बोल्डर चेक डेम (एल.बी.सी.डी.) बनाए गए। इससे बहते जल की गति धीमी हो गई और उसका ठहराव होने लगा। बारिश की वजह से झिरिया के पानी का बहाव तेज होने पर भी, ये एल.बी.सी.डी. पानी के बहाव को कम करने में मददगार सिद्ध हो रहे हैं। इससे मिट्टी के कटाव में कमी आई है। जनपद पंचायत के कार्यक्रम अधिकारी श्री अशोक कुमार साहू बताते हैं कि इनका निर्माण महात्मा गांधी नरेगा से किया गया है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पत्थरों का ही उपयोग किया गया। इससे लागत में भी कमी आई।

श्री अशोक ने आगे बताया कि लूज बोल्डरों (पत्थरों) से बनाये गये चेक से झिरिया के पानी के बहाव को कम करने के बाद पानी को संचित कर उसे एक दिशा देने के लिए डी.एम.एफ. की राशि से चेक डेम एवं डाइवर्सन वेयर (उल्ट) का निर्माण कराया गया। बहते पानी को दिशा देने के बाद, उसे सामुदायिक तालाब तक पहुँचाने के लिए महात्मा गांधी नरेगा से 975 मीटर लम्बी पक्की नाली का निर्माण कराया गया। नाली के बनने के बाद से तालाब में अब बारह महीनों पानी रहता है। झिरिया के पानी के साथ-साथ
बारिश के समय पहाड़ों से होकर आने वाला पानी भी तालाब में संचित हो रहा है। तालाब की लंबाई, चौड़ाई और गहराई के हिसाब से इसमें लगभग 6 हजार 500 क्यूबिक मीटर पानी एकत्र हो जाता है। इस पानी का उपयोग ग्रामीण निस्तारी (दैनिक जरुरतों) के अलावा सिंचाई और मछलीपालन के लिए भी कर रहे हैं। यहाँ मछलीपालन का कार्य स्व सहायता समूह की महिलाओं के द्वारा किया जा रहा है। इससे उन्हें आजीविका का एक साधन भी गाँव में ही मिल गया है।

झिरिया के पानी को सहेजने के कार्य में तकनीकी मार्गदर्शन देने वाले तकनीकी सहायक श्री चंद्रप्रकाश कश्यप कहते हैं कि जल संरक्षण के कामों के बाद गांव में बैठक लेकर ग्रामीणों को खेतों में डबरी निर्माण के फायदों के बारे में समझाया गया। इससे 59 आदिवासी किसान तैयार हुये। प्रथम चरण में इनमें से 28 हितग्राहियों के खेतों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से डबरियाँ बनवाई गई। प्रत्येक डबरी में लगभग 900 क्यूबिक मीटर पानी एकत्र हो रहा है। इस प्रकार 28 डबरियों में कुल मिलाकर लगभग 25 हजार 200 क्यूबिक मीटर पानी संग्रहित हो जाता है। इन डबरियों को महात्मा गांधी नरेगा से बनी पक्की नाली के साथ इस प्रकार जोड़ा गया कि अब डबरियों में पानी बारह महीनों रहता है। किसानों के द्वारा चेक डेम से नाली द्वारा आ रहा झिरिया के पानी को आवश्यकतानुसार रोककर, उसे अपनी डबरी एवं खेत में ले जाकर सिंचाई और मछलीपालन किया जा रहा है। डबरी बनने के बाद मछलीपालन कर बाजारु बैगा ने 8 हजार, लौहार सिंह बैगा ने 17 हजार, नरेश कुमार तिलगाम ने 17 हजार 5 सौ, जानहू बैगा ने 6 हजार, मुन्ना गौंड ने 35 हजार, और रामभू बैगा ने 12 हजार रुपये कमाये। डबरियों के निर्माण के दौरान भी ग्रामीणों को जहाँ महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी मिली, वहीं खरीफ के साथ-साथ रबी की फसल लेने के लिये साधन भी मिल गया है। पहले ये सभी 28 किसान कुल मिलाकर लगभग 362.29 क्विंटल धान ही ले पाते थे, किन्तु डबरी व नाली निर्माण के बाद ये लगभग 905.40 क्विंटल धान की पैदावार ले रहे हैं।

श्री कश्यप ने आगे बताया कि योजनांतर्गत चयनित 59 हितग्राहियों को लगभग 100 हेक्टेयर भूमि का वन अधिकार पट्टा प्रदाय किया गया है। बारहमासी सिंचाई के साधन मिलने के बाद, पशुओं से इनकी खेती-बाड़ी को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सम्पूर्ण भूमि की फेंसिग की गई है। अब ये किसान जंगली-जानवरों विशेषकर जंगली सुअरों से निश्चिंत होकर किसानी कर पा रहे हैं।

आदिवासी किसान श्री मुन्ना सिंह तिलगाम कहते हैं-"मनरेगा से डबरी बनी, तो पानी भरा। उसमें मैं मछली बीज डाला। अभी मछलीपालन कर रहा हूँ और परिवार के साथ मछली का स्वाद भी ले रहा हूँ। जब मछली ओर बड़ी हो जाएंगी, तो इन्हें बाजार में बेचूंगा। पहले मैं सिर्फ 10 से 15 बोरा धान ही ले पाता था, लेकिन अब डबरी बनने के बाद साल 2018-19 में पहली बार 40 से 50 बोरा धान लिया हूँ। बारिश के बाद डबरी में भरे हुए पानी से खेत में सिंचाई की थी।"


वहीं श्री श्याम सिंह तिलगाम का कहना है- "मैंने डबरी से अरहर लगाया था। लगभग 2 बोरा अरहर हुई और इस साल फिर मैं अरहर ही लगाऊँगा। ग्राम पंचायत में हुए इन कामों से अब अब पलायन पूरी तरह रुक गया है।"

झिरिया का बहता पानी जहाँ ग्राम पंचायत झिरिया का नाम सार्थक कर रहा है, वहीं जल संचय को मिली सही दिशा और इन आदिवासी किसानों की मेहनत ने गाँव की दशा ही बदल दी है।




----------------------------------------------------------------------------

रिपोर्टिंग व लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य व स्त्रोत-         श्री विनायक गुप्ता, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-मुंगेली, छत्तीसगढ़ एवं  
                             श्री अशोक कुमार साहू, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-लोरमी, जिला-मुंगेली।
संपादन -               श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
 ----------------------------------------------------------------------------

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...