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Monday, 7 March 2022

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया.

ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई.


स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/ 7 मार्च 2022. महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) हितग्राही के तौर पर निजी भूमि में निर्मित कुएं ने परिवार के हालात बदल दिए हैं। पहले केवल चार एकड़ कृषि भूमि के भरोसे जीवन-यापन करने वाला परिवार कुएं की खुदाई के बाद अब धान की ज्यादा पैदावार ले रहा है। पानी की पर्याप्त उपलब्धता को देखते हुए परिवार ने ईंट निर्माण के व्यवसाय में हाथ आजमाया। इस काम में परिवार को अच्छी सफलता मिल रही है। ईंटों की बिक्री से पिछले तीन वर्षों में परिवार को साढ़े तीन लाख रूपए की आमदनी हुई है। इससे वे ट्रैक्टर खरीदने के लिए बैंक से लिए कर्ज की किस्त नियमित रूप से चुका रहे हैं।

महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित कुएं ने बीजापुर जिले के धनोरा गांव की श्रीमती महिमा कुड़ियम और उसके परिवार की जिंदगी बदल दी है। इस कुएं की बदौलत अब उसका परिवार तेजी से कर्जमुक्त होने की राह पर है। पहले श्रीमती महिमा कुड़ियम और उसके पति श्री जेम्स कुड़ियम खरीफ मौसम में अपने चार एकड़ खेत में धान उगाकर बमुश्किल गुजर-बसर कर पाते थे। श्री जेम्स कुड़ियम बताते है कि सिंचाई का साधन नहीं होने से केवल बारिश के भरोसे सालाना 15-20 क्विंटल धान की पैदावार होती थी। वर्ष 2017 में उन्होंने बैंक से कर्ज लेकर ट्रैक्टर खरीदा था, जिसका हर छह महीने में 73 हजार रूपए का किस्त अदा करना पड़ता था। आय के सीमित साधनों और ट्रैक्टर से भी आसपास लगातार काम नहीं मिलने से वे इसका किस्त समय पर भर नहीं पा रहे थे, जिससे ब्याज बढ़ता जा रहा था। इसने पूरे परिवार को मुश्किल में डाल दिया था।

इन्हीं परेशानियों के बीच एक दिन श्रीमती महिमा कुड़ियम की धान की सूखती फसल को देखकर ग्राम रोजगार सहायक श्री सोहन ने उन्हें महात्मा गांधी नरेगा से खेत में कुआं निर्माण का सुझाव दिया। ग्राम रोजगार सहायक की सलाह पर उसने अपनी निजी भूमि में कुआं खुदाई के लिए ग्राम पंचायत को आवेदन दिया। पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत उसके खेत में कुआं निर्माण का काम स्वीकृत हो गया और 11 फरवरी 2019 को इसकी खुदाई भी शुरू हो गई। सात फीट की गहराई में ही गीली मिट्टी में पानी नजर आने लगा। चार महीनों के काम के बाद जून 2019 को कुआं बनकर तैयार हो गया। कुएं में लबालब पानी आ गया।

श्रीमती महिमा कुड़ियम बताती है कि उसके कुएं में पर्याप्त पानी है। कुएं के पानी का उपयोग वे अपने चार एकड़ खेत में लगे धान की सिंचाई के लिए करते है। इससे धान की पैदावार अब बढ़कर लगभग 50 क्विंटल हो गई है। इसमें से वे कुछ को स्वयं के उपभोग के लिए रखकर शेष पैदावार को बेच देते हैं। धान की उपज बढ़ने के बाद भी ट्रैक्टर का किस्त पटाने की समस्या बरकरार थी। ऐसे में उन्होंने कुएं से लगी अपनी एक एकड़ खाली जमीन पर ईंट बनाने का काम शुरू किया। पिछले तीन सालों से वे लाल ईंट का कारोबार कर रहे हैं। स्थानीय स्तर पर उसके परिवार के द्वारा बनाए गए ईटों की काफी मांग है। ईंट की बिक्री से उन्हें वर्ष 2019 में 50 हजार रूपए, 2020 में एक लाख रूपए और 2021 में डेढ़ लाख रूपए की कमाई हुई है।

खेत में कुआं निर्माण के बाद बदले हालातों के बारे में श्रीमती कुड़ियम बताती है कि फसल का उत्पादन बढ़ने और ईंट के कारोबार से परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है। उसका परिवार अब चिंतामुक्त होकर सुखी और समृद्ध जीवन की ओर बढ़ रहा है। ट्रैक्टर के ऋण की अदायगी भी अब वे नियमित रूप से कर रहे हैं। अपने तीनों बच्चों जॉन, रोशनी और अभिलव को अच्छे स्कूल में पढ़ाने का उनका सपना भी अब पूरा हो गया है। वह कहती है – “कभी-कभी मन में यह विचार आता है कि यदि सही समय में उन्हें महात्मा गांधी नरेगा से जल संसाधन के रूप में कुआं नहीं मिला होता, तो वे कर्ज में डूब गए होते। महात्मा गांधी नरेगा सच में हम जैसे गरीब परिवारों के लिए वरदान है।”

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कुआँ निर्माण, हितग्राही- श्रीमती महिमा कुड़ियम पति श्री जेम्स कुड़ियम, मो.-9302961825,
परिवार रोजगार कार्ड (जॉब कार्ड)- CH-12-004-005-001/248, ग्राम पंचायत- धनोरा, विकासखण्ड- बीजापुर,
क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2018-19, स्वीकृत राशि- 2.30 लाख रुपए, व्यय राशि- 2.23 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 11.02.2019, कार्य पूर्णता तिथि- 11.06.2019, वर्क कोड- 3312004005/IF/1111373077,
सृजित मानव दिवस- 426, नियोजित परिवारों की संख्या- 12, मजदूरी भुगतान- 74,292.00 रुपए,
सामग्री भुगतान- 1,49,200.00 रुपए, जी.पी.एस. लोकेशन- 21°32'59.0"N 83°07'24.8"E, पिनकोड- 494444,
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री पदुम साहू, लेखापाल, जनपद पंचायत-बीजापुर, जिला-बीजापुर, छ.ग.।
2. श्री सोहन कुड़ियम, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-धनोरा, वि.ख.-बीजापुर, जिला-बीजापुर, छ.ग.।

लेखन- श्री प्रशांत यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
संपादन-
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

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Thursday, 3 March 2022

मनरेगा से बने शेड ने बकरी पालन व्यवसाय को दी मजबूती

चम्पाबाई ने 6 महीने में ही कमाए 89 हजार रूपए, बकरियों की संख्या 4 से बढ़कर 26 हुई


स्टोरी/रायपुर/रायगढ़/ 3 मार्च 2022. ग्रामीण क्षेत्र में गरीब की गाय के नाम से मशहूर बकरी आजीविका का महत्वपूर्ण साधन शुरु से रही है। यह बहुपयोगी होने के कारण भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों के भरण-पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यही कारण है कि रायगढ़ जिले की ग्राम पंचायत- बटाऊपाली (ब) की रहने वाली श्रीमती चम्पाबाई ने भी बकरी पालन व्यवसाय को अपनाया और अपनी मेहनत के बलबूते आज उन्होंने अपने जीवन की दशा और दिशा, दोनों बदली दी है। बकरी पालन के लिए महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से पक्का शेड बनने के बाद श्रीमती चम्पाबाई अब व्यवस्थित ढंग से अपने व्यवसाय को आगे बढ़ा पा रही है। शेड बनने से पहले उसके पास केवल चार बकरी थी। महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से घर में बकरी शेड बनने के बाद उसके बकरी पालन के व्यवसाय ने जोर पकड़ा और कमाई बढ़ने लगी। अब उसके पास 26 बकरे-बकरियां हो गए हैं। बकरी पालन से उसने छह महीने में ही 89 हजार रूपए कमाए हैं।

चम्पाबाई का जीवन

श्रीमती चम्पाबाई, पति श्री कार्तिकराम पटेल, बकरी पालन से अपने परिवार की आर्थिक हालात सुधार रही है। उसके इस काम में घर में महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित बकरी पालन शेड ने बड़ी भूमिका निभाई है। चम्पाबाई की लगन, मेहनत और योजना से मिले सहयोग से उसका व्यवसाय तेजी से फल-फूल रहा है और अच्छी आमदनी हो रही है। मां गंगा स्वसहायता समूह की सदस्य चम्पाबाई के परिवार के पास करीब पांच एकड़ जमीन है। इसमें से केवल तीन एकड़ में ही खेती-बाड़ी हो पाती है। खेती के बाद के समय में मजदूरी कर परिवार गुजर-बसर करता है। चम्पाबाई ने घर की आमदनी बढ़ाने के लिए बकरी पालन का काम शुरू किया। लेकिन कच्चा और टूटा-फूटा कोठा के कारण इसमें बहुत कठिनाई हो रही थी। वह इसे व्यवस्थित ढंग से आगे नहीं बढ़ा पा रही थी। अपनी परेशानी को उसने समूह की बैठक में रखा। समूह के सदस्यों की सलाह पर उसने महात्मा गांधी नरेगा के तहत अपनी निजी भूमि पर पक्का कोठा के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत को आवेदन दिया।

महात्मा गांधी नरेगा से मिली सहायता

ग्राम पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत वर्ष 2020-21 में बतौर हितग्राही चम्पाबाई की निजी जमीन पर 61 हजार 265 रुपयों की लागत से बकरी शेड निर्माण (कोठा) के लिए प्रशासकीय स्वीकृति मिली। लगातार 15 दिनों के काम के बाद दिसम्बर-2020 में उसका कोठा बनकर तैयार हो गया। इस काम में उसके और गांव के एक अन्य परिवार को 34 मानव दिवसों का रोजगार भी प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें 6 हजार 460 रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। शेड बनने के बाद चम्पाबाई को बकरी पालन के लिए पर्याप्त जगह मिली और उसका धंधा जोर पकड़ने लगा।

इतने रुपयों में बेचे बकरा-बकरी

पक्का बकरी शेड निर्माण के पहले चम्पाबाई के पास केवल चार बकरियाँ थीं। शेड बनने के बाद उसने चार और बकरियाँ खरीदीं। इन बकरियों से जन्मे मेमनों के बाद उसके पास कुल 26 बकरे-बकरियाँ हो गए हैं। इनमें से 15 बकरे-बकरियों को बेचकर उसने छह महीनों में 89 हजार रूपए कमाए हैं। वह बकरी को पांच हजार रूपए और बकरा को सात हजार रूपए की दर से बेचती है। बकरी पालन से कम समय में हुए इस लाभ से चम्पाबाई खुश हैं। इससे उसकी माली हालत तो सुधरी ही, घर के लिए उसने नई टी.वी., पंखा और आलमारी भी खरीदी है।

श्रीमती चम्पाबाई बकरी पालन के अपने इस धंधे को और आगे बढ़ाना चाहती है। वह कहती है कि अगर उसे बकरी पालन के लिए मनरेगा से शेड नहीं मिलता, तो वह अपना काम आगे नहीं बढ़ा पाती। अब वह गांव के दूसरे लोगों को भी बकरी पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

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एक नजरः-

कार्य का नाम- बकरी शेड (कोठा) निर्माण कार्य, हितग्राही- श्रीमती चम्पाबाई पति श्री कार्तिकराम पटेल, मो.-7489033936,
परिवार रोजगार कार्ड (जॉब कार्ड)- CH-13-008-096-001/41
क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21, ग्राम पंचायत- बटाऊपाली (ब), विकासखण्ड- सारंगढ़,
स्वीकृत राशि- 61,265.00 रुपए, व्यय राशि- 54,938.00 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 24.11.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 08.12.2020, वर्क कोड- 3313008096/IF/1111513039,
सृजित मानव दिवस- 34, नियोजित परिवारों की संख्या- 02, मजदूरी भुगतान- 6,460.00 रुपए,
सामग्री भुगतान- 48,478.00 रुपए, जी.पी.एस. लोकेशन- 21°32'59.0"N 83°07'24.8"E, पिनकोड- 496445,
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री युवराज पटेल, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-सारंगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।
2. श्री मुकेश सुमन, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-सारंगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।
3. कु. रेशमा सिदार, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-बटाऊपाली (ब), ज.पं.-सारंगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।

रिपोर्टिंग- श्री राजेश शर्मा, समन्वयक (शिकायत निवारण), जिला पंचायत-रायगढ़, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Monday, 28 February 2022

पितृसत्तात्मक समाज की बदली मानसिकता, संतेश्वरी ने अपने कार्यों से गढ़े नए आयाम

महिला मेट और बैंक सखी की अपनी भूमिका का बखूबी कर रही निर्वाह, 
सर्वश्रेष्ठ बैंक सखी के रूप में 3 बार सम्मानित हो चुकी है संतेश्वरी.


स्टोरी/रायपुर/कांकेर/28 फरवरी 2022. सुश्री संतेश्वरी कुंजाम ने अपने कार्यों और कौशल से पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता बदल दी है। मनरेगा मेट जैसे नाप-जोख की तकनीकी समझ और श्रमिकों के प्रबंधन के कौशल वाले काम को वह बखूबी अंजाम दे रही है। उसने बैंक सखी के रूप में भी अपनी कार्यकुशलता का लोहा मनवाया है। वह तीन बार अपने विकासखण्ड में सर्वश्रेष्ठ बैंक सखी के रूप में सम्मानित हो चुकी है। पहले-पहल जब उसने मनरेगा मेट का काम शुरू किया था तब गांव वाले कहते थे कि लड़की है, क्या मेट का काम करेगी! क्या माप देगी!! संतेश्वरी ने तभी ठान लिया था कि मैं मेट का काम करके दिखाऊँगी। अब वही ग्रामीण उसका गुणगान करते हुए कहते हैं कि संतेश्वरी के कारण महात्मा गांधी नरेगा में बहुत काम मिला। वह दूसरी लड़कियों के लिए प्रेरणा है।

कांकेर जिले के नरहरपुर विकासखण्ड के हटकाचारामा की सुश्री संतेश्वरी कुंजाम की कहानी काफी प्रेरक है। अपने कार्यों से उसने पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता बदली है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम) में महिला मेट के रूप में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर उसने खुद को साबित किया और महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी। बारहवीं तक पढ़ी 26 साल की संतेश्वरी ने अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए वर्ष 2015 में महात्मा गांधी नरेगा कार्यों में अकुशल श्रमिक के रूप में काम करना शुरू किया था। कार्यस्थल पर वह जिज्ञासावश ग्राम रोज़गार सहायक, मेट एवं तकनीकी सहायकों को काम करते हुए देखती थी। कुछ-कुछ काम समझ आने पर उसने ग्राम रोजगार सहायक से मेट का काम करने की इच्छा जाहिर की।

संतेश्वरी की यह इच्छा गाँव में चर्चा का विषय बन गई। कई लोग उसकी क्षमता और रूचि के बारे में टीका-टिप्पणी करने लगे। कई लोग यह मानते थे कि मेट का काम बहुत कठिन है, क्योंकि इसके लिए माप के बुनियादी और तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है। अकुशल श्रमिक होने के कारण वह इसे नहीं कर पायेगी। संतेश्वरी इन बातों से दुखी तो हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी। इसे चुनौती मानकर खुद को साबित करने में लग गई। उसने बुनियादी गणित, कन्वर्सन टूल्स और महात्मा गांधी नरेगा से संबंधित दस्तावेजों को पढ़ना शुरू किया। गाँव में काम करने वाले स्वयंसेवी संस्था ‘प्रदान’ से मैदानी स्तर पर श्रमिकों एवं कार्यस्थल के प्रबंधन के तौर-तरीकों को सीखा। संतेश्वरी के हौसले और इच्छाशक्ति को देखकर उसके माता-पिता ने भी हरसंभव सहायता की।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी सन्तेश्वरी वर्ष 2018 में अपने पंचायत के मेट-पैनल में शामिल हुई। वह विकासखण्ड स्तर पर आयोजित प्रशिक्षणों और मैदानी अनुभव तथा अपनी ऊर्जा, दृढ़ संकल्प व धैर्य से लगातार आगे बढ़ती गई। इस सफर में उसे लोगों की अस्वीकृति और अपमान का भी सामना करना पड़ा। उसने साहस और दृढ़ता से इन सबका सामना किया और अकुशल श्रम तक खुद को सीमित कर लेने वाली महिलाओं के लिए मिसाल कायम की।


स्वसहायता समूह की दीदियों के साथ ने रास्ता किया आसान

संतेश्वरी अपने गांव की गुलाब महिला स्वसहायता समूह और जय मां लक्ष्मी ग्राम संगठन की सदस्य थी। इसलिए उन्होंने सबसे पहले समूह की दीदियों के साथ महात्मा गांधी नरेगा के भुगतान में देरी, काम की गुणवत्ता, सृजित संपत्ति के उपयोग और काम की मांग जैसे मुद्दों पर चर्चा शुरू की। उसकी लगातार कोशिशों से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित ग्राम संगठन की बैठकों में महात्मा गांधी नरेगा चर्चा का नियमित एजेंडा बन गया और सभी ने इससे संबंधित मुद्दों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। संतेश्वरी ने समूह की दीदियों को साथ लेकर इन विषयों पर सरपंच, ग्राम रोजगार सहायक, पंचों एवं पंचायत सचिव के साथ ग्रामसभा में भी चर्चा शुरू की।

महात्मा गांधी नरेगा में मेट और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) में बैंक सखी होने के नाते संतेश्वरी ने श्रमिकों के बैंक खातों से संबंधित त्रुटियों को कम करने की दिशा में भी काम करना शुरू किया। इससे श्रमिकों को मजदूरी भुगतान की राशि अपने खातों में प्राप्त करने में सुविधा हुई। वह बैंक सखी के रूप में हर महीने औसतन 15 लाख रूपये का लेन-देन करती है, जिससे लोगों को गाँव में ही नगद राशि मिल जा रही है। इन सबसे परिस्थितियाँ धीरे-धीरे बदलने लगीं और ग्रामीणों का उस पर विश्वास बढ़ने लगा।

एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की योजना बनाने में निभाई अग्रणी भूमिका

संतेश्वरी ने हटकाचारामा की महिला स्वसहायता समूहों, पंचायत सदस्यों और स्वयंसेवी संगठन की मदद से वहां के उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए विकेन्द्रीकृत तरीके से सभी लोगों की भागीदारी से कृषि सुधार के लिए पैच में योजना बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने पारा-मोहल्ला स्तर की बैठकें आयोजित कर भूमि में संभावित विभिन्न सकारात्मक संरचनाओं और उनके उपयोग के बारे में किसानों व महिला समूहों के साथ चर्चा की। उसके प्रयास से विभिन्न हितग्राहियों की भागीदारी के साथ एक पंचायत स्तरीय एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की योजना बनी।

संतेश्वरी की अपने गांव और महिलाओं के लिए विकास की सोच ने जमीनी स्तर पर बदलाव लाया। वित्तीय वर्ष 2020-21 में गांव में प्रति परिवार प्रदान किए जाने वाले रोजगार के औसत दिन 66 प्रतिशत से बढ़कर 87 प्रतिशत हुआ। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत गांव में सृजित कुल मानव दिवस रोजगार में महिलाओं का योगदान भी बढ़ा। वर्ष 2019-20 में यह 31 प्रतिशत था, जो 2020-21 में बढ़कर 36 प्रतिशत हो गया। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में इसमें और भी इजाफा हुआ है। इस साल यह बढ़कर 37 प्रतिशत से अधिक हो गया है। संतेश्वरी के अकुशल श्रमिक से महिला मेट और बैंक सखी बनने के सफर ने उसकी जैसी अनेक महिलाओं को आगे बढ़ने और नया मुकाम हासिल करने के लिए प्रेरित किया है।
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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 23.02.2022 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 225, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 220, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 214,
रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 286, कुल सृजित मानव दिवस- 7119,
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 110, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 2658,
मेट का नाम- सुश्री संतेश्वरी कुंजाम, उम्र- 26 वर्ष, मोबाईल नं.-7354077552
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री राहुल तारक, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-नरहरपुर, जिला-कांकेर।
लेखन- सुश्री मोहिनी, बी.आर.एल.एफ. प्रोजेक्ट सदस्य।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Friday, 18 February 2022

समाज के लिए उदाहरण बनी दिव्यांग महिला मेट अनुराग

संघर्ष कर बनी घर की पालनहार.



स्टोरी/रायपुर/दुर्ग/18 फरवरी 2022. दुर्ग जिले के चीचा ग्राम पंचायत की सुश्री अनुराग ठाकुर का जज्बा देखते ही बनता है। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी मंजिल के रास्ते में आने नहीं दिया। जो ठान लिया, उसे पूरा करके ही माना। अपनी हिम्मत, हौसले और जुनून के बूते वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) में महिला मेट बनकर, समाज के लिए वह एक आदर्श बनकर उभरी हैं। आज उनका नाम गाँव के प्रत्येक के जुबान पर है। वह दिव्यांग होने के बावजूद महात्मा गांधी नरेगा में मेट का कार्य करते हुए अपने परिवार का आर्थिक सहयोग कर रही है।

जिले के पाटन विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-चीचा की 34 वर्षीय सुश्री अनुराग ठाकुर एक पैर से दिव्यांग है। उनके परिवार में दो बहनें और एक भाई है। बचपन में ही नियति ने उसके सिर से पिता का साया उठा लिया था। ऐसे में परिवार में बड़ी होने के नाते उसके कंधों पर समय से पहले ही परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी। काफी कोशिशों के बाद उन्होंने अपनी स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। ग्राम पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत वर्ष 2012 से वे मेट के रुप में काम कर रही हैं। वह सुबह जल्दी-जल्दी घर के सभी कामों को निपटाकर महात्मा गांधी नरेगा के कार्यस्थल पर पहुँचती है और मेट के रुप में मनरेगा श्रमिकों को काम आबंटित करके, उनके द्वारा किये गये कामों का हिसाब अपनी मेट-माप पंजी में दर्ज करती हैं। सुश्री अनुराग अपने कार्य में इतनी अधिक कुशल हो गई हैं कि वे अन्य मेट के भांति सभी कामों को सहजता से निपटा लेती हैं। इनके कौशल के सामने इनकी दिव्यांगता कहीं नजर ही नहीं आती।

जीवन के उतार-चढ़ाव को नजदीक से देखने वाली सुश्री अनुराग ने परिवार में बड़े होने की भूमिका का भी बखूबी निर्वहन किया है। उन्होंने विरासत में मिली खेती-बाड़ी को संभालते हुए अपने छोटे भाई-बहनों को पढ़ाया और उनका विवाह भी कराया। वह बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा से उन्हें काफी संबल मिला। योजना में मेट के रुप में मिलने वाले पारिश्रमिक से वे अपनी आजीविका पहले से बेहतर तरीके से चला पा रही हैं। मेट के कार्य से उन्हें अब तक बतौर पारिश्रमिक एक लाख 67 हजार रुपये मिल चुके हैं।

मनरेगा में साल दर साल बढ़ी महिलाओं की भागीदारी

महिला मेट के रुप में सुश्री अनुराग ने महात्मा गांधी नरेगा में चलने वाले कार्यों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए घर-घर महिलाओं से संपर्क करके उनसे काम की डिमांड ली। उनकी सक्रियता के फलस्वरुप वर्ष 2018-19 में 189 महिलाओं को 4 हजार 346 मानव दिवस का रोजगार मिला, जो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 225 महिलाओं के द्वारा सृजित मानव दिवस 7 हजार 719 हो गया। महिलाओं की भागीदारी का यह सिलसिला वर्ष 2020-21 में भी जारी रहा। इस वर्ष 289 महिलाओं के द्वारा 16 हजार 271 मानव दिवस का रोजगार प्राप्त किया गया। वहीं चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में 16 फरवरी की स्थिति में 277 महिलाओं को 5 हजार 430 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हो चुका है, जबकि अभी वित्तीय वर्ष समाप्त होने में एक माह से अधिक का समय शेष है।


स्व सहायता समूहों का सहयोग

अनुराग ठाकुर महात्मा गांधी नरेगा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के अलावा, गाँव में महिला स्व सहायता समूह की दीदीयों के साथ भी कार्य करती है। वह स्वयं भी ओम सांईनाथ स्व सहायता समूह से जुड़ी हैं और समूह में लेखापाल की भूमिका निभाती हैं। अपनी लीडरशीप और लेखा संधारण के कौशल के बलबूते उन्होंने गाँव में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित 14 महिला स्व सहायता समूहों को परस्पर सक्रिय बनाकर रखा है। वह समूह की सभी दीदीयों के मध्य सहकार की भावना को बलवती करने का कार्य करती हैं। इसके अलावा वह सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं में हितग्राही मूलक कार्यों को सीधे हितग्राही तक पहुँचाने के लिए गांव के निवासियों को जानकारी भी प्रदान करती हैं।
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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 17.02.2022 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 378, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 399, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 476,
सक्रिय महिलाओं की संख्या- 310, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 320, रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 397
कुल सृजित मानव दिवस- 7882, रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 277,
महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 5430, सौ-दिवस रोजगार पूर्ण करने वाले परिवारों की संख्या- 12
मेट का नाम- सुश्री अनुराग ठाकुर, उम्र- 34 वर्ष, मोबाईल- 7974429901
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्रीमती डालिमलता, कार्यक्रम अधिकारी, विकासखण्ड-पाटन, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
2. श्री जवाहर चंद्राकर, सरपंच, ग्रा.पं.-चीचा, विकासखण्ड-पाटन, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
रिपोर्टिंग- श्रीमती रीता चाटे, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 15 February 2022

मेरा कुआँ - मेरा सम्मान

मनरेगा से बना कुआँ तो निस्तारी की समस्या हुई हल और आजीविका को मिला सहारा.


स्टोरी/रायपुर/गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही/15 फरवरी 2022. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अपने विभिन्न आयामों से ग्रामीण जन-जीवन को निरंतर मजबूती प्रदान कर रही है। योजना के तहत् कुआँ, डबरी, तालाब, पशु शेड, फलोद्यान सहित अन्य हितग्राही मूलक कार्यों से किसानों एवं पशुपालकों की आजीविका सशक्त हो रही है। साथ ही उन्हें अपनी निजी जमीन में स्वीकृत कार्यों में रोजगार भी प्राप्त हो रहा है। योजना से मिल रहे ये दोनों लाभ उन्हें निश्चिंतता प्रदान कर रहे हैं। ऐसी ही निश्चिंतता गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले के पेण्ड्रा विकासखण्ड की की सोनबचरवार ग्राम पंचायत की निवासी 46 वर्षीया श्रीमती उमिन्द कुंवर के चहरे पर साफ नजर आती है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से उनके घर की बाड़ी में कुआँ बनने के बाद अब उन्हें पहले की भाँति रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के लिए पानी की व्यवस्था हेतु दूर तक भटकना नहीं पड़ता है। कुआँ बनने के बाद उनका जीवन सहज हो गया है। वे इस कुएँ से अपनी 50 डिसमिल की बाड़ी में विभिन्न तरह की साग-सब्जियों का उत्पादन भी ले रही हैं।

महात्मा गांधी नरेगा से खुद के नाम पर निर्मित परिसम्पत्ति से स्वयं को गौरान्वित मानते हुए श्रीमती उमिन्द कुंवर बताती हैं कि उनके परिवार में उनके पति श्री कलवन कुंवर के अलावा दो बच्चे हैं। परिवार के पास जीवन-यापन के लिए लगभग 2 एकड़ की खेती है और राज्य सरकार से वन अधिकार पट्टा के अंतर्गत एक एकड़ की जमीन भी मिली है, जिसमें वे धान का उत्पादन लेते हैं। इसके अलावा महात्मा गांधी नरेगा में खुलने वाले कामों और आस-पास के खेतों में मजदूरी के लिए वे अपने पति के साथ जाया करती थीं। इस दरम्यान काम पर जल्दी जाने या देर से घर आने पर दैनिक जरुरतों के लिए पानी की व्यवस्था करना दूभर हो जाता था। ऐसे में एक दिन ग्राम रोजगार सहायक श्री रमजीत सिंह की सलाह पर उन्होंने अपने घर के पीछे बाड़ी में कुआँ बनवाने का आवदेन ग्राम पंचायत में दिया। तब ग्राम पंचायत की पहल पर उनके नाम से महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत कुआँ स्वीकृत हो गया।

श्रीमती कुंवर आगे बताती हैं कि मेरे नाम से कुआँ निर्माण की स्वीकृति मेरे लिए सबसे बड़ी बात थी, क्योंकि मैंने आज से पहले किसी महिला के नाम पर कुछ बनना सुना नहीं था और यह साल 2021 में हकीकत में भी बदल गया। अब मेरे पास मेरे नाम से मेरी अपनी संपत्ति है। यह मेरी पहचान और मेरा सम्मान, दोनों है। कुआँ बनने के बाद पहली बार वे अपनी बाड़ी में सब्जी-भाजी का उत्पादन ले रही हैं, जिसमें लगभग 2 डिसमिल में लहसुन, 6 डिसमिल में टमाटर और 5 डिसमिल में आलू लगाया है। इसके अलावा वे कुएँ के पानी से बाड़ी में लाल भाजी, भांटा (बैगन) एवं मिर्च का भी उत्पादन कर रही हैं। वे बताती हैं कि अभी शुरुआती उत्पादन का उपयोग वे घर में प्रतिदिन के उपयोग में कर रही हैं। इसके बाद जैसे-जैसे बाड़ी से पर्याप्त मात्रा में साग-सब्जियाँ निकलेंगी, वे उसे स्थानीय बाजार में बेचेंगी।

सरपंच श्री अगस्ते कंवर का इस संबंध में कहना है कि पंचायत के द्वारा वन अधिकार पट्टा प्राप्त हितग्राहियों की निजी भूमि पर प्राथमिकता के आधार पर महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत अनुमेय कार्य स्वीकृत कराये जा रहे हैं। इसी प्रकिया के अंतर्गत महात्मा गांधी नरेगा से 2 लाख 79 हजार 283 रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति से हितग्राही श्रीमती उमिन्द कुंवर की निजी भूमि में कूप निर्माण कार्य स्वीकृत कराया गया था। अप्रेल, 2021 में यह कूप बनकर तैयार हुआ, जिसमें हितग्राही के साथ-साथ गाँव के ही 2 अन्य मनरेगा जॉबकार्डधारी परिवारों को कुल मिलाकर 517 मानव दिवस रोजगार प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें 94 हजार 126 रुपये का मजदूरी भुगतान किया गया।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कूप निर्माण कार्य, हितग्राही का नाम- श्रीमती उमिन्द कुंवर पति श्री कलवन कुंवर,
हितग्राही का जॉब कार्ड नं.- CH-01-018-024-001/96, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
ग्राम पंचायत- सोनबचरवार, विकासखण्ड- पेण्ड्रा (गौरेला 1), जिला- गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, पूर्णता वर्ष- 2021-22
स्वीकृत राशि- 279283.00 रुपए, व्यय राशि- 226623.00 रुपए, मजदूरी भुगतान- 94126.00 रुपए,
कार्य प्रारंभ तिथि- 06.03.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 07.04.2021, वर्क कोड- 3301018024/IF/1111382746,
सृजित मानव दिवस- 517, नियोजित परिवारों की संख्या- 03,
जी.पी.एस. लोकेशन- 22°42'21.7"N 82°02'25.2"E, पिनकोड- 495119
हितग्राही श्रीमती उमिन्द कुंवर का संपर्क सूत्र- 6263674465 (श्री कलवन कुंवर-पति)
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री रोशन सराफ, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-पेण्ड्रा, जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
1. श्री रोशन सराफ, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-पेण्ड्रा, जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
2. श्री रमजीत सिंह, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.- सोनबचरवार, ज.पं.-पेण्ड्रा (गौरेला 1), जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
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रिपोर्टिंग- श्री रवि कुमार, सहायक परियोजना अधिकारी, डी.आर.डी.ए.-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 8 February 2022

मनरेगा से फलीभूत हुआ ‘दूधो नहाओ – पूतो फलो’ का आशीर्वाद

मनरेगा से बने पशुशेड में पशुपालन कर दुग्ध उत्पादन को बनाया मुख्य व्यवसाय.
प्रति माह हो रही 30 से 40 हजार रुपये की आय.



स्टोरी/रायपुर/बालोद/ 8 फरवरी 2022. 'दूधो नहाओ-पूतो फलो'....62 वर्षीय श्रीमती तुलसीबाई साहू के इस आशीर्वाद के तले आज उनका 14 सदस्यीय परिवार फल-फूल रहा है। साल 2020 में जहाँ पूरी दुनिया कोरोना महामारी के दौर में लॉक-डाउन और आर्थिक तंगी से जूझ रही थी, ऐसे में श्रीमती तुलसीबाई ने समझदारी का परिचय देते हुए परिवार को एकजुट किया। इसके बाद उन्होंने अपनी निजी भूमि पर महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से बने पशु शेड में 10 मवेशियों की पालना करते हुए उनका दूध बेचकर अपने परिवार को उस कठिन समय से बाहर निकाला। आज उनके पास 42 मवेशी हो गए हैं और उनका पूरा परिवार इस व्यवसाय में लगा हुआ है, जिससे उन्हें प्रति माह 30 से 40 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। परिवार की दशा-दिशा में आये इस बदलाव को लेकर गाँव में सब उनकी तारीफ करते हैं।

महिलाओं के लिए मिसाल बनीं तुलसीबाई
बालोद जिले के गुरुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत पेरपार में श्रीमती तुलसीबाई अपने 14 सदस्यीय परिवार के साथ रहती हैं। उनके परिवार में उनके पति श्री जगन्नाथ साहू के अलावा उनके तीन बेटे और पुत्रवधुएँ एवं 6 बच्चे हैं। इतने बड़े परिवार का भरण-पोषण लगभग 3 एकड़ की खेती एवं 10 पशुओं, जिनमें से चार ही दुधारु थे, पर निर्भर था। पशुओं को रखने के लिए कोई पक्की छतयुक्त व्यवस्था नहीं थी, जिससे व्यवसायिक रुप से दुग्ध उत्पादन का कार्य दूर की कौड़ी थी। ऐसे में ग्राम पंचायत की पहल पर उनके यहाँ जून, 2020 में महात्मा गांधी नरेगा से 49 हजार 770 रुपये की लागत से पशु शेड का निर्माण हुआ।

महात्मा गांधी नरेगा से मिले संसाधन से संबल पाकर, श्रीमती तुलसीबाई ने कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों में घर को चलाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों को दूध उत्पादन को मुख्य व्यवसाय बनाकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। तब उनका प्रेरणा रुपी आशीर्वाद पाकर परिवार के सभी पुरुषों और महिलाओं ने मिलकर पशु पालन करना शुरु किया। सबकी मेहनत रंग लाई। आज श्रीमती तुलसीबाई के पशु शेड में मवेशियों की संख्या बढ़कर 42 हो गई है, जिनमें से 16 दुधारु हैं। उनसे प्रति दिन लगभग 40-50 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है, जिसे बाजार में बेचने पर महीने की लगभग 40 हजार रुपये की आमदनी हो रही है।

श्रीमती तुलसीबाई बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा से बने पशु शेड में पशु पालन और दूध उत्पादन के कार्य से उन्हें जो आमदनी हुई, उससे उन्होंने 08 नये मवेशी खरीदे और दो अतिरिक्त पशु शेड का निर्माण करवाया। वे आगे बताती हैं कि कल तक वे पारंपरिक रुप से पशुपालन कर रहे थे, लेकिन आज उन्होंने इसे डेयरी व्यवसाय में बदल दिया है। डेयरी की शुरुआत में पशुओं से जो गोबर मिला, उसे राज्य सरकार की गोधन न्याय योजना के तहत बेचने से 20 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई, जिससे दो नग वर्मी कम्पोस्ट टांका बनवाया। अब उसमें गोबर से जैविक खाद बना रहे हैं और उसे खेतों में उपयोग कर रहे हैं। इससे हमारी छोटी-सी खेती-बाड़ी भी निखर रही है।
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एक नजरः-
कार्य का नाम- पशु शेड निर्माण कार्य, हितग्राही का नाम- श्रीमती तुलसी बाई पति श्री जगन्नाथ साहू,
हितग्राही का जॉब कार्ड नं.- CH-03-012-030-001/93, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम पंचायत- पेरपार, विकासखण्ड- गुरुर, जिला- बालोद, स्वीकृत राशि- 57649.00 रुपए, व्यय राशि- 49770.00 रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 15.06.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 28.06.2020, वर्क कोड- 3303012036/IF/1111437489,
सृजित मानव दिवस- 24, नियोजित परिवारों की संख्या- 02, मजदूरी भुगतान- 4560.00 रुपए,
जी.पी.एस. लोकेशन- 22°74'23.77"N 81°48'01.23"E, पिनकोड- 491227
हितग्राही श्रीमती तुलसीबाई साहू का संपर्क सूत्र- 07771088038 (श्री कांशीराम साहू-पुत्र)
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री राजेन्द्र कश्यप, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-गुरुर, जिला-बालोद, छ.ग.।
2. श्रीमती संजुलता राजपूत, सरपंच, ग्रा.पं.- पेरपार, ज.पं.-गुरुर, जिला-बालोद, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्री ओम प्रकाश साहू, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बालोद, जिला-बालोद, छ.ग.।
लेखन एवं संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Monday, 7 February 2022

मल्टी-यूटिलिटी सेंटर ने खोला स्वरोजगार का द्वार, महिलाओं ने अकुशल श्रम से व्यवसाय की ओर बढ़ाए कदम

महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से निर्मित वर्क-शेड में बना रही हैं फेन्सिंग पोल, आर्थिक स्वावलंबन के लिए बनीं प्रेरणास्रोत.


मजदूरी करने वाली महिलाएं अब खुद का व्यवसाय कर रहीं, इनके काम को देखकर गांव में बने 12 नए स्वसहायता समूह.


स्टोरी/रायपुर/कोरिया/7 फरवरी 2022. स्वरोजगार के लिए अच्छा माहौल और उपयुक्त स्थान पाकर सुदूर कोरिया जिले के आदिवासी बहुल चिरमी गांव की महिलाओं ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और डी.एम.एफ. (जिला खनिज न्यास निधि) के अभिसरण से बने मल्टी-यूटिलिटी सेंटर में वहां की गंगा माई स्वसहायता समूह की 12 महिलाएं खुद का उद्यम स्थापित कर फेंसिंग पोल बनाने का काम कर रही हैं। खेतों और महात्मा गांधी नरेगा में खुले कार्यों में मजदूरी करने वाली इन महिलाओं को अकुशल श्रम से स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाते देखकर गांव की बांकी महिलाएं भी प्रेरित हो रही हैं। इनके काम शुरू करने के बाद से गांव में 12 स्वसहायता समूह गठित हो चुके हैं।

महात्मा गांधी नरेगा और डी.एम.एफ. के अभिसरण से 12 लाख 15 हजार रूपए की लागत से वर्क-शेड के रूप में तैयार मल्टी-यूटिलिटी सेंटर में चिरमी की गंगा माई स्वसहायता समूह की महिलाएं फेन्सिंग पोल बनाकर खड़गंवा विकासखण्ड के कई गांवों में आपूर्ति कर रही हैं। इनके द्वारा निर्मित 300 से अधिक पोल्स (Poles) की बिक्री अब तक की जा चुकी है। ग्राम पंचायतें इनका उपयोग गौठान और ब्लॉक-प्लांटेशन की घेराबंदी में कर रही हैं। पोल्स की बिक्री से समूह को 80 हजार रूपए मिले हैं। इन महिलाओं को तीन लाख रूपए का वर्क-ऑर्डर मिला है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित इस समूह की महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन की उड़ान को देखकर गांव में 12 नए महिला स्वसहायता समूह गठित हो गए हैं।

गंगा माई स्वसहायता समूह की सदस्य श्रीमती उर्मिला सिंह और श्रीमती रामवती महात्मा गांधी नरेगा में पंजीकृत श्रमिक हैं। खेती-किसानी, वनोपज संग्रहण और महात्मा गांधी नरेगा में मजदूरी ही उनकी आजीविका का साधन हुआ करता था। उन्होंने कुछ साल पहले गांव की अन्य महिलाओं को जोड़कर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गंगा माई स्वसहायता समूह बनाया। समूह की इन महिलाओं ने महात्मा गांधी नरेगा में कार्य से मिली मजदूरी में से कुछ रकम बचाकर समूह की गतिविधियां प्रारंभ की। इनके समूह को आजीविका मिशन से 15 हजार रूपए की आर्थिक सहायता भी मिली। इससे उत्साहित होकर इन्होंने वन-धन केन्द्र के माध्यम से वनोपज संग्रहण का काम शुरू किया। इस काम के लिए समूह को वन प्रबंधन समिति के माध्यम से बतौर कमीशन 18 हजार रूपए मिले। चिरमी में पिछले साल गौठान बनने के बाद इन महिलाओं ने वहां जैविक खाद बनाने का काम किया। इससे उन्हें साढ़े आठ हजार रूपए की अतिरिक्त कमाई हुई।

श्रीमती उर्मिला सिंह बताती हैं कि ग्राम पंचायत से उनके समूह को जून-2021 में यह मल्टी-यूटिलिटी सेंटर मिला था। लेकिन इसके तुरंत बाद खेती-किसानी का काम आ जाने से उन लोगों ने सितम्बर-2021 से फेंसिंग पोल बनाने का काम शुरू किया। आजीविका मिशन से मिले संसाधनों, वहां बने समान रखने का स्टोर और पोल्स की तराई के लिए पानी की व्यवस्था होने के बाद काम में तेजी आई। वह बताती हैं कि समूह को आसपास के ग्राम पंचायतों से अब तक करीब एक हजार पोल का ऑर्डर मिल चुका है। वे इनमें से 300 पोल्स की आपूर्ति भी कर चुके हैं।

कोरिया जिला मुख्यालय बैकुंठपुर से 28 किलोमीटर दूर चिरमी में गौठान के पास ही वर्क-शेड का निर्माण कराया गया है। इसके लिए 12 लाख 15 हजार रूपए की प्रशासकीय स्वीकृति जारी हुई थी। महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी भुगतान के लिए मिले एक लाख 54 हजार रूपए और डी.एम.एफ. से सामग्री के लिए प्राप्त दस लाख 61 हजार रूपए के अभिसरण से इसका निर्माण हुआ है। गांव में मल्टी-यूटिलिटी सेंटर के निर्माण से जहां एक ओर 39 मनरेगा श्रमिकों को 798 मानव दिवस का रोजगार मिला, वहीं स्थानीय समूह को स्वरोजगार के लिए ठौर भी मिल गया।

महात्मा गांधी नरेगा के तहत वर्ष 2020-21 में गंगा माई स्वसहायता समूह की महिलाओं के परिवार ने 612 दिनों का रोजगार प्राप्त किया था, जबकि इस वर्ष 2021-22 में उन्होंने केवल 306 दिनों का रोजगार प्राप्त किया है। यह इस बात का प्रमाण है कि ये महिलाएं अब अकुशल श्रम के स्थान पर रोजगार के स्थाई साधन अपने व्यवसाय को तरजीह दे रही हैं। कल तक खेतों और महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों में मजदूरी ढूंढने वाली ये महिलाएं अब राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान), महात्मा गांधी नरेगा और डी.एम.एफ. से संबल और संसाधन पाकर आर्थिक स्वावलंबन के नए आयाम गढ़ रही हैं।
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एक नजरः-
कार्य का नाम- स्व सहायता समूह हेतु मल्टी यूटिलिटी सेन्टर निर्माण कार्य, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत,
ग्राम पंचायत- चिरमी, विकासखण्ड- खड़गवां, स्वीकृत राशि- 12.15 लाख रुपए, व्यय राशि- 11.95 लाख रुपए
स्वीकृत वर्ष- 2020-21, कार्य प्रारंभ तिथि- 28.01.2021, कार्य पूर्णता तिथि (भौतिक)- 24.05.2021,
वर्क कोड- 3306003015/AV/1111388920, जी.पी.एस. लोकेशन- 23°05'31.6"N 82°32'44.2"E, पिनकोड- 497449, 
परियोजना में शामिल योजनावार लागतें-
स्वीकृत राशि रुपए 12.15 लाख रुपए में महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी भुगतान हेतु रुपए 1 लाख 54 हजार और जिला खनिज न्यास संस्थान निधि (डी.एम.एफ.) से रुपए 10 लाख 61 हजार रुपए।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत पोल निर्माण हेतु आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था हेतु निधि।
सृजित मानव दिवस- 798, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 39, मजदूरी भुगतान- 1,51,620.00 रुपये

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रिपोर्टिंग एवं लेखन- श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, जिला-कोरिया, छ.ग.।
पुनर्लेखन एवं संपादन-
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Monday, 24 January 2022

पटपर नरवा को मिला पुनर्जीवन

रबी फसल के लिए किसानों को मिल रहा पानी.
महात्मा गांधी नरेगा से 48.31 लाख रूपए की लागत से हो रहा नरवा उपचार.
तीन गांवों के किसानों को फायदा.

रायपुर, 24 जनवरी 2022. विलुप्त होते नरवा (नालों) के पुनर्जीवन की कोशिशें अब रंग ला रही हैं। राजनांदगांव जिले का ठाकुरटोला-गर्रा नरवा जिसे 'पटपर' नरवा के नाम से भी जाना जाता है, अब जनवरी के महीने में भी नजर आ रहा है। ग्राम पंचायत की पहल और किसानों की मेहनत तथा महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से 48 लाख 31 हजार रूपए की लागत से हो रहे नरवा उपचार के कार्यों ने इस नाले को पुनर्जीवित कर दिया है। नरवा उपचार के बाद वहां ठहरे पानी से पटपर गांव के 20 किसान 50 एकड़ में रबी की फसल ले रहे हैं। पटपर नरवा के संरक्षण और संवर्धन के लिए वर्ष-2019 में स्वीकृत 27 कार्यों में से 20 अब पूरे हो चुके हैं। इस दौरान गर्रा पंचायत के 521 मनरेगा श्रमिकों को 31 हजार 231 मानव दिवस का रोजगार भी मिला है। नरवा उपचार के लिए पटपर गांव में नया तालाब भी निर्माणाधीन है।

राजनांदगांव जिले के छुईखदान विकासखण्ड मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर गर्रा ग्राम पंचायत है। इसके आश्रित गांव पटपर में कोहकाझोरी बांध के नजदीक की पहाड़ी से पटपर नरवा का उद्गम होता है। गर्रा, पटपर और ग्राम पंचायत के एक अन्य आश्रित ग्राम जुझारा से होकर यह लगभग 7.77 किलोमीटर की यात्रा करते हुए एक दूसरे नरवा मंडीपखोल में जाकर मिल जाता है। पटपर नरवा का कुल जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेन्ट एरिया) 1006.5 हेक्टेयर है। वन क्षेत्र में इसकी लम्बाई 3.62 किलोमीटर और राजस्व क्षेत्र में 4.15 किलोमीटर है, जबकि जलग्रहण क्षेत्र क्रमशः 394.89 हेक्टेयर और 611.61 हेक्टेयर है।

नरवा ड्रेनेज लाईन ट्रीटमेंट
पटपर नरवा में पानी को रोकने के लिए लूज बोल्डर चेकडेम की छह और गेबियन की दो संरचनाएं बनाई गई हैं। चार लाख 68 हजार रूपए की लागत की इन संरचनाओं के निर्माण से अब पहाड़ी से आने वाले पानी का बहाव धीमा हो गया है। इससे भू-जल स्तर में सुधार देखने को मिला है। नरवा में पानी रूकने से आसपास की जमीन में नमी की मात्रा बनी रहने लगी है, जिससे इसके दोनों ओर के 20 किसान लाभान्वित हुए हैं। नरवा उपचार के लिए जुझारा गांव में भी छह संरचनाओं का निर्माण प्रस्तावित है। इसके बनने से वहां के 12 किसान प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होंगे और उनके कुल 30 एकड़ खेत तक पानी पहुंचेगा।

कैचमेन्ट एरिया (सतही क्षेत्र) ट्रीटमेन्ट
वहीं पटपर नरवा के कैचमेन्ट एरिया में जल-संचय व संवर्धन के लिए पटपर में श्मशान घाट के पास एक नए तालाब के निर्माण के साथ ही गिट्टी खदान के पास स्थित तालाब का गहरीकरण किया गया है। पटपर में नए तालाब की खुदाई भी प्रगतिरत है। नरवा से लगी जमीन वाले किसानों सर्वश्री करण, हरीराम, लोकेश, रोशन, परदेशी, सुन्दरलाल, सुखदेव और केदार के खेतों में भूमि सुधार और मेड़ बंधान का कार्य भी कराया गया है। इसके अंतर्गत खेतों के मेड़ की ऊंचाई को अपेक्षाकृत ज्यादा रखा गया है, ताकि नरवा में पानी के तेज बहाव से खेतों को नुकसान नहीं पहुंचे। नरवा उपचार के बाद इन किसानों के कुल 28 एकड़ खेत में धान की भरपूर पैदावार हुई है। अभी इन किसानों ने उन खेतों में चना बोया है।

नरवा पर बनाए गए विविध संरचनाओं का सीधा लाभ ग्रामीणों व किसानों को जल संग्रहण और सिंचाई सुविधा के रूप में मिल रहा है। किसान श्री हरीराम 'पटपर नरवा' के पुनरूद्धार से हो रहे फायदे के बारे में बताते हैं कि वे पहले अपने तीन एकड़ जमीन पर एक बोर के सहारे केवल सोयाबीन और चना की ही खेती करते थे। पर इस बार भूमि सुधार के बाद बोर के साथ ही नरवा में रूके पानी का उपयोग कर उन्होंने साढ़े चार एकड़ में चना, धान और गेहूं की फसल ली है। इससे खेती से होने वाली उसकी कमाई बढ़ी है। वह क्षेत्र में नरवा उपचार के कार्यों से बेहद खुश है।

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एक नजर (27.12.2021 की स्थिति में) -
ग्राम पंचायत- गर्रा, विकासखण्ड- छुईखदान, जिला- राजनांदगांव, जी.पी.एस. लोकेशन- 21°36'47.9"N 80°57'24.3"E,
पटपर नरवा विकास कार्यक्रम में शामिल गांवों का नाम- गर्रा, पटपर एवं जुझारा,
क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, पिनकोड- 491888

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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री विमल सिंह ठाकुर, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़।
2. श्री जीवन सोरी, ग्राम रोजगार सहायक, ग्राम पंचायत-गर्रा, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़।
रिपोर्टिंग- श्री सिध्दार्थ जैसवाल, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़।
लेखन एवं संपादन-
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 18 January 2022

मनरेगा डबरी से फुलेशराम की खेती हुई बेहतर

धान की 25 क्विंटल अधिक हुई पैदावार
सब्जी-भाजी उत्पादन के साथ मछलीपालन से अतिरिक्त कमाई


स्टोरी/रायपुर/जांजगीर चांपा/18 जनवरी 2022. जांजगीर चांपा जिले में दमाऊ पहाड़ की सुरम्मयवादियों के बीच बसे हुए गांव बरपाली कलां के रहने वाले श्री फुलेशराम आज बेहद खुश नजर आते हैं। उनकी खुशी का असल कारण है, उनके खेतों में बनी हुई निजी डबरी। यह डबरी, उनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से बनी है, जिसमें एकत्र हुई बारिश की बूंदों से उनके जमीन में नमी बनी रही और धान की फसल बेहतर हो सकी। डबरी से मिले फायदे से फुलेशराम इतने उत्साहित हैं कि उन्होंने इसके इर्द-गिर्द ही अपने भविष्य की योजनाओं का ताना-बाना बुन लिया है। वे खेतों में धान की फसल के साथ ही मछलीपालन और सब्जी-भाजी उत्पादन का कार्य कर रहे हैं।

फुलेशराम की डबरी जहां पर बनी है, वह जगह जांजगीर-चांपा मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर और सक्ती विकासखण्ड से 15 किलोमीटर दूर बरपाली कलां ग्राम पंचायत में है। श्री फुलेशराम बरेठ पिता श्री कायतराम बरेठ के पास 5 एकड़ जमीन है, जिस पर वे कई सालों से खेती-किसानी करते आ रहे हैं, लेकिन जल संचय या जल स्त्रोतों के अभाव में वे हमेशा एक ही फसल ले पा रहे थे। अपनी इस समस्या से जूझते हुए एक दिन उनकी मुलाकात ग्राम रोजगार सहायक श्री अनिल कुमार जायसवाल से हुई। इस मुलाकात में उन्हें पता चला कि महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से खेतीहर किसानों की जमीन पर डबरी और कुआं निर्माण जैसे जल संसाधनों का निर्माण किया जा सकता है, जिससे किसान आवश्यकता अनुसार अपनी पानी की जरुरतों को पूरा कर सकते हैं। इनके निर्माण के दौरान हितग्राही को उसमें मजदूरी करने का अवसर भी मिलता है।

'एक पंथ दो काज' की कहावत की तरह यह बातें श्री फुलेशराम के समझ में आ गई और उन्होंने बिना एक पल की देरी किये, अपने खेत में डबरी बनाए जाने का आवेदन ग्राम पंचायत को दे दिया। अंततः ग्राम पंचायत के प्रयास से श्री फुलेशराम के खेत में निजी डबरी निर्माण के लिए 2.99 लाख रूपए की मंजूरी मिल गई और 4 दिसंबर 2020 को वहाँ डबरी खुदाई का काम शुरू हो गया। मनरेगा श्रमिकों के साथ ही उन्होंने भी डबरी की खुदाई में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। दिनांक 20 फरवरी 2021 को सभी की मेहनत सफल हुई और श्री फुलेशराम के खेत में डबरी का निर्माण पूरा हो गया। इस कार्य में गांव के ही 91 परिवारों को 1452 मानव दिवस रोजगार प्रदान किया गया, जिसके लिए उन्हें 2 लाख 75 हजार 880 रूपए की मजदूरी का भुगतान किया गया। वहीं दूसरी ओर हितग्राही श्री फुलेशराम के परिवार को भी इसमें रोजगार मिला और उन्हें इसके लिए 19 हजार 380 रूपए की मजदूरी प्राप्त हुई।

धान की 25 क्विंटल अधिक पैदावार
फुलेशराम बताते हैं कि जब डबरी नहीं बनी थी, तो खेती के लिये बारिश के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता था। यदि बारिश की आँख-मिचौली हो जाए, तो फिर पैदावार राम भरोसे हो जाती थी। ऐसी स्थिति में लगभग 80 क्विंटल के आस-पास ही धान की पैदावार हो पाती थी। वहीं इस साल इस डबरी की बदौलत उतनी ही जमीन पर 105 क्विंटल धान की पैदावार हुई, जो पिछले साल की तुलना में 25 क्विंटल अधिक थी। वे आगे बताते हैं कि इस साल हुई अधिक पैदावार से जो मुनाफा होगा, उससे वे खेती-किसानी के उपकरण खरीदेंगे। डबरी से हुए फायदे से उनके परिवार के सभी सदस्य विशेषकर उनकी जीवन संगिनी श्रीमती फिरतिन बाई बरेठ बहुत खुश हैं।

बाड़ी के साथ मछलीपालन
इस साल एक ओर जहाँ श्री फुलेशराम ने धान की फसल लगाई, जिससे उन्हें फायदा मिला। तो वहीं दूसरी ओर डबरी के आसपास की जमीन पर बाड़ी के रुप में टमाटर, मिर्च, धनिया, बरबट्टी आदि सब्जियां भी लगाई हैं, जो उनके परिवार के प्रतिदिन के भोजन की जरुरतों को पूरा कर रही हैं। इसके अलावा बारिश के बाद जब डबरी में पर्याप्त पानी भर गया था, तो उन्होंने मछलीपालन के उद्देश्य से उसमें 5 किलोग्राम मछली बीज डाले थे, जो आने वाले दिनों में उनकी अतिरिक्त आय का जरिया बनेंगे।
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एक नजरः-
कार्य का नाम- डबरी निर्माण, हितग्राही का नाम- फुलेशराम बरेठ, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम पंचायत- बरपाली कलां, विकासखण्ड- सक्ती, जिला- जांजगीर चांपा, स्वीकृत राशि- 299582.00 लाख रुपए,
व्यय राशि- 285342.00 लाख रुपए, कार्य प्रारंभ तिथि- 04.12.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 20.02.2021,
वर्क कोड- 3314003066/IF/1111495923, जी.पी.एस. लोकेशन- 22°07'34.9"N 82°51'20.1"E, पिनकोड- 495689,
सृजित मानव दिवस- 1452, नियोजित श्रमिकों परिवारों की संख्या- 91, मजदूरी भुगतान- 275880 रुपए,
संपर्क- हितग्राही श्री फुलेशराम बरेठ के पुत्र श्री सुरेश कुमार बरेठ का मोबाईल नं. 918085441620

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तथ्य एवं आंकड़े-श्री अनिल कुमार जायसवाल, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.- बरपाली कलां, ज.पं.-सक्ती, जिला-जांजगीर चांपा, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्रीमती आकांक्षा सिन्हा, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-सक्ती, जिला-जांजगीर चांपा, छ.ग.।
लेखन- श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-जांजगीर चांपा, जिला-जांजगीर चांपा, छ.ग.।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Monday, 3 January 2022

मनरेगा अभिसरण और ‘बिहान’ ने दिया कमाई का जरिया

स्वसहायता समूह की चार महिलाएं कैंटीन चलाकर रोज हज़ार से 12 सौ रूपए कमा रहीं


स्टोरी/रायपुर/कबीरधाम (कवर्धा)/ 3 जनवरी 2022. इंद्राणी, उर्मिला, सुनीता और सातोबाई की जिंदगी अब बदल चुकी है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और ‘बिहान’ (राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन) ने उनका जीवन बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है। महात्मा गांधी नरेगा और 14वें वित्त आयोग मद के अभिसरण से निर्मित वर्क-शेड में स्वसहायता समूह की ये महिलाएं ‘बिहान कैंटीन’ संचालित कर रोज लगभग एक हजार से 1200 रूपए की कमाई कर रही हैं।

ये चारों महिलाएं कबीरधाम जिले के बोड़ला विकासखंड के राजानवागांव के भारत माता स्वसहायता समूह की सदस्य हैं। इन महिलाओं ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित ग्राम संगठन से 30 हजार रूपए का कर्ज लेकर कैंटीन शुरू किया है। इनके हुनर और इनके बनाए नाश्ते के स्वाद से कैंटीन में भीड़ जुटने लगी है। प्रसिद्ध पर्यटन एवं धार्मिक स्थल भोरमदेव पहुंचने वाले पर्यटक, कैंटीन के पास स्थित भोरमदेव आजीविका केन्द्र में काम करने वाले तथा नजदीकी धान खरीदी केन्द्र में आने वाले किसानों की भीड़ वहां लगी रहती है। इससे इनकी आमदनी बढ़ रही है। अक्टूबर-2021 के आखिरी सप्ताह में शुरू हुई इस कैंटीन से इन महिलाओं ने अब तक लगभग 60 हजार रूपए का नाश्ता बेचा है। इसमें से 30 हजार रूपए बचाकर उन्होंने आमदनी में हिस्सेदारी के साथ ग्राम संगठन से लिया गया कर्ज लौटाना भी शुरू कर दिया है।

‘बिहान कैंटीन’ संचालित करने वाली भारत माता स्वसहायता समूह की सचिव श्रीमती उर्मिला ध्रुर्वे बताती हैं कि राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत उनके समूह का गठन हुआ है। समूह ने कैंटीन चलाने के लिए बर्तन और राशन खरीदने ग्राम संगठन से 30 हजार रूपए का ऋण लिया है। समूह की चार महिलाएं इस कैंटीन का संचालन कर रही हैं। उर्मिला आगे बताती है कि समूह की कोशिश रहती है कि कैंटीन में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को गरमा-गरम चाय-नाश्ता परोसा जाए। दिनभर की मेहनत के बाद चारों सदस्यों को 300-300 रूपए की आमदनी हो जाती है। महात्मा गांधी नरेगा और ‘बिहान’ के सहयोग से वे अब आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो रही हैं।

राजानवागांव के सरपंच श्री गंगूराम धुर्वे स्व सहायता समूह के लिए महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से बने इस वर्क-शेड के बारे में बताते हैं कि ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर वर्ष 2020-21 में इसकी स्वीकृति मिली थी। भोरमदेव आजीविका केन्द्र से लगा यह शेड सात लाख आठ हजार रूपए की लागत से जुलाई-2021 में बनकर तैयार हुआ। गांव के मनरेगा श्रमिकों को इसके निर्माण के दौरान 335 मानव दिवस का रोजगार प्राप्त हुआ जिसके लिए उन्हें करीब 64 हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। महात्मा गांधी नरेगा और 14वे वित्त आयोग के अभिसरण के तहत निर्मित इस परिसम्पत्ति ने कैंटीन के रूप में महिलाओं को आजीविका का नया साधन दिया है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- शेड निर्माण कार्य स्व सहायता महिला समूह के लिए, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम पंचायत- राजानवागांव, विकासखण्ड- बोडला, स्वीकृत राशि- 7.30 लाख रुपए, व्यय राशि- 7.08 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 03.11.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 24.07.2021, वर्क कोड- 3302002041/AV/1111385308,

परियोजना में शामिल योजनावार लागतें-
स्वीकृत राशि रुपए 7.30 लाख रुपए में महात्मा गांधी नरेगा से ₹ 6 लाख 64 हजार और 14वे वित्त से ₹ 66 हजार रुपए,
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत 30 हजार रुपए (लोन) से कैंटीन हेतु बर्तन एवं खाद्य सामग्री की खरीदी

सृजित मानव दिवस- 335, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 58, मजदूरी भुगतान- 63815.00 रुपए,
जी.पी.एस. लोकेशन- 22°04'43.6"N 81°11'54.8"E, पिनकोड- 491995,
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री अभिषेक जायसवाल, बी.पी.एम.-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान), ज.पं.-बोडला, जिला-कबीरधाम, छ.ग.।
2. श्रीमती गीतू वर्मा, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-बोडला, जिला-कबीरधाम, छ.ग.।
3. श्री मनोज यादव, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-राजानवागांव, ज.पं.-बोडला, जिला-कबीरधाम, छ.ग.।

रिपोर्टिंग- श्री रमेश भास्कर, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बोडला, जिला-कबीरधाम, छ.ग.।
लेखन- श्री विनीत दास, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कबीरधाम, जिला-कबीरधाम, छ.ग.।
पुनर्लेखन एवं संपादन-
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 23 December 2021

रोजगार के साथ ही कुपोषण को मात देने का काम, आंगनबाड़ियों में अंडों की आपूर्ति

# महात्मा गांधी नरेगा, 14वां वित्त आयोग एवं जिला खनिज संस्थान न्यास निधि के अभिसरण से सामुदायिक मुर्गीपालन.
# समूह की महिलाएँ मुर्गीपालन व अंडा उत्पादन कर हुईं आत्मनिर्भर.
# परंपरागत मुर्गीपालन को व्यावसायिक रूप देकर महिलाओं ने कमाए 25 लाख रूपए.



स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/23 दिसम्बर, 2021. आदिवासी अंचल की महिलाएं घर पर किए जाने वाले परंपरागत मुर्गीपालन को व्यावसायिक रूप देकर अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। अलग-अलग स्वसहायता समूहों की ये महिलाएं स्वरोजगार के साथ ही कुपोषण को मात देने का भी काम कर रही हैं। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम), डी.एम.एफ. (जिला खनिज संस्थान न्यास निधि) और 14वें वित्त आयोग के अभिसरण से सुदूर वनांचल बीजापुर जिले की 43 समूहों की महिलाएं सामुदायिक मुर्गीपालन कर अंडा उत्पादन कर रही हैं। स्थानीय जिला प्रशासन महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान हेतु आंगनबाड़ियों के लिए इन अंडों की खरीदी कर रही है। समूह की महिलाएं स्थानीय बाजारों में भी इन अंडों को बेचती हैं। विभिन्न स्वसहायता समूहों द्वारा जिले के 43 सामुदायिक मुर्गीपालन केन्द्रों में तीन लाख 77 हजार अण्डों का उत्पादन किया गया है। इनमें से तीन लाख 44 हजार अंडों की बिक्री से महिलाओं ने 25 लाख रूपए से अधिक की कमाई की है।

नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में वनोपज संग्रहण, कृषि और पशुपालन ग्रामीणों की आजीविका का प्रमुख आधार है। वहां के आदिवासी परिवार घरों में परंपरागत रूप से मुर्गीपालन करते हैं। स्थानीय महिलाओं की मुर्गीपालन में दक्षता और कुपोषण दूर करने में अंडा की उपयोगिता को देखते हुए बीजापुर जिला प्रशासन ने वर्ष 2020-21 में अलग-अलग योजनाओं के अभिसरण से सामुदायिक मुर्गीपालन के माध्यम से अंडा उत्पादन की आधारशिला रखी। इस परियोजना के अंतर्गत जिले में अभी 43 सामुदायिक मुर्गीपालन शेड संचालित किए जा रहे हैं। इनका निर्माण महात्मा गांधी नरेगा से प्राप्त 60 लाख नौ हजार रूपए, 14वें वित्त आयोग के 29 लाख 72 हजार रूपए और डी.एम.एफ. के एक करोड़ 27 लाख 26 हजार रूपए के अभिसरण से हुआ है। इस दौरान जिले के मनरेगा श्रमिकों को 6536 मानव दिवस का सीधा रोजगार भी प्राप्त हुआ।

स्वरोजगार के साथ ही कुपोषण से मुक्ति की लड़ाई में जिले के बीजापुर विकासखण्ड में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के अंतर्गत गठित नौ, भैरमगढ़ विकासखण्ड के 14, भोपालपटनम विकासखण्ड के सात और उसूर विकासखण्ड के 13 स्वसहायता समूहों की महिलाएं अपनी सहभागिता दे रही हैं। पशुपालन विभाग के तकनीकी मार्गदर्शन में मुर्गीपालन में व्यावसायिक दक्षता हासिल कर ये महिलाएं बी.वी. 380 लेयर बर्ड्स प्रजाति की मुर्गियों का पालन शेड में कर रही हैं। सामुदायिक मुर्गीपालन के लिए चूजों की आपूर्ति, केज की व्यवस्था तथा वर्षभर के लिए चारा एवं आवश्यक दवाईयों का इंतजाम डी.एम.एफ. के माध्यम से किया गया था।

बीजापुर विकासखण्ड के तोयनार ग्राम पंचायत में मुर्गी शेड का संचालन करने वाली रानी दुर्गावती स्वसहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती सोनमणि पोरतेक बताती हैं कि उसके समूह द्वारा अब तक 49 हजार अण्डों का उत्पादन किया गया है। इनमें से साढ़े 48 हजार अण्डों की बिक्री से करीब तीन लाख रूपए की आमदनी हुई है। उसूर विकासखण्ड के नुकनपाल पंचायत में मुर्गी शेड संचालित करने वाली काव्या स्वसहायता समूह की सचिव सुश्री पार्वती कहती है कि इस परियोजना से हम महिलाओं को अपनी आजीविका चलाने का साधन मिल गया है। आर्थिक रूप से हम सक्षम हो गई हैं। मुर्गीपालन से समूह को हर माह अच्छी कमाई हो रही है। जिला प्रशासन की कोशिशों और महिलाओं की मेहनत का असर अब दिखने लगा है। बीजापुर में कुपोषण तेजी से घट रहा है। अक्टूबर-2019 में कुपोषण की दर वहां लगभग 38 प्रतिशत थी, जो जुलाई-2021 में आयोजित वजन त्यौहार के आंकड़ों के मुताबिक 13 प्रतिशत गिरकर 25 प्रतिशत पर आ गई है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- स्व सहायता समूह हेतु पोल्ट्री फार्म निर्माण, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
विकासखण्ड (ग्राम पंचायत)-
1. बीजापुर विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- तोयनार, ईटपाल, चेरपाल, बोरजे, मोरमेड़ एवं पापनपाल (6).
2. भैरमगढ़ विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- जैवारम, मटवाड़ा, मंगलनार, पातरपारा, नेलसनार, मिरतुर, कोडोली, तालनार, टिन्डोडी, जांगला, कॉन्ड्रोजी, मंगापेठा एवं फरसेगढ़ (13).
3. भोपालपटनम विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- तमलापल्ली, संगमपल्ली, दम्पाया, चेरपल्ली, रुद्राराम, गोटाइगुड़ा एवं भद्रकाली (7).
4. उसूर विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- आवापल्ली, नुकनपाल, मुरदण्डा, इलमिड़ी, संकनपल्ली, हीरापुर एवं बासागुड़ा (7).
परियोजना में शामिल 43 सामुदायिक मुर्गीशेड निर्माण में योजनावार लागत- महात्मा गांधी नरेगा से 60.09 लाख, 14वां वित्त आयोग से 29.72 लाख एवं जिला खनिज संस्थान न्यास निधि से 127.26 लाख रुपए।
प्रति इकाई लागत-
(क) 100 मुर्गियों के लिए एक सामुदायिक शेड की स्वीकृत राशि-
1.83 लाख रुपए (महात्मा गांधी नरेगा-1.13 लाख एवं 14वां वित्त आयोग राशि- 0.70 लाख)
(ख) 200 मुर्गियों के लिए एक सामुदायिक शेड की स्वीकृत राशि-
2.48 लाख रुपए (महात्मा गांधी नरेगा-1.48 लाख एवं 14वां वित्त आयोग राशि- 1 लाख)
(ग) प्रति यूनिट हेतु 50 मुर्गियाँ, वर्षभर का चारा, आवश्यक दवाईयाँ व केज हेतु स्वीकृत राशि-
1.14 लाख रुपए (जिला खनिज संस्थान न्यास निधि)

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तथ्य-आंकड़े एवं रिपोर्टिंग - श्री मनीष सोनवानी, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
लेखन - श्री प्रशांत यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन एवं संपादन -
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग - श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

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Friday, 17 December 2021

पपीता की खेती ने बदली कुंजबाई की किस्मत

दो एकड़ में 500 क्विंटल पपीता का उत्पादन, बिक्री से मिले 4 लाख रूपए.


महात्मा गांधी नरेगा, उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केन्द्र के अभिसरण से शुरू की पपीता की खेती, इस साल खुद के पैसे से लगाए हैं 2600 पौधे.


रायपुर. 17 दिसम्बर 2021. महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम), उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र के अभिसरण से धान के बदले पपीता की खेती शुरू करने वाली श्रीमती कुंजबाई की किस्मत पपीता की एक फसल ने बदल दी है। उसके दो एकड़ खेतों में 500 क्विंटल पपीता का उत्पादन हुआ है। पपीता की गुणवत्ता ऐसी कि बिलासपुर के फल व्यवसाईयों ने खेत में खड़ी फसल ही खरीद ली। इससे कुंजबाई को चार लाख रूपए मिले। पपीता की पहली फसल के मुनाफे से उत्साहित कुंजबाई ने इस बार अपने पैसों से इसके 2600 पौधे लगाए हैं।

बेमेतरा जिले के बाराडेरा ग्राम पंचायत के आश्रित गांव मुंगेली की श्रीमती कुंजबाई साहू चार एकड़ की सीमांत किसान हैं। महात्मा गांधी नरेगा तथा उद्यानिकी विभाग के अभिसरण से मिले संसाधनों और बेमेतरा कृषि विज्ञान केन्द्र के मार्गदर्शन में उन्होंने पिछले साल अपने दो एकड़ खेत में पपीते के दो हजार पौधे लगाए थे। इनसे 500 क्विंटल पपीता की पैदावार हुई, जिसे थोक फल विक्रेताओं ने आठ रूपए प्रति किलोग्राम की दर से उनके खेतों से ही खरीद लिया। पपीता के पेड़ों में फल आने के बाद उद्यानिकी विभाग की मदद से बिलासपुर के थोक फल विक्रेताओं ने उससे संपर्क किया। अच्छी फसल देखकर व्यापारियों ने तुरंत ही पूरे दो एकड़ के फल खरीद लिए। कुंजबाई को पपीता की बिक्री के लिए कहीं बाहर जाना नहीं पड़ा और घर में ही रहकर फसल के अच्छे दाम मिल गए। इससे उत्साहित होकर उसने इस साल पपीता के 2600 पौधे लगाए हैं। कुंजबाई ने कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर पिछले वर्ष पपीता के पौधों के बीच में अंतरवर्ती फसल के रूप में भुट्टा, कोचई और अन्य सब्जियों की भी खेती की। इससे उसे अतिरिक्त कमाई हुई।

कुंजबाई का परिवार पहले परंपरागत रूप से धान की खेती से जीवन निर्वाह करता था। इसमें लगने वाली मेहनत और लागत की तुलना में फायदा कम होता था। कृषि विज्ञान केन्द्र बेमेतरा में सब्जी और फलों की खेती से होने वाले लाभ के संबंध में आयोजित प्रशिक्षण में शामिल होने से उसके विचार बदले। वहां विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए रास्ते पर चलने का निर्णय तो उसने ले लिया था, लेकिन आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होने के कारण इसे शुरू नहीं कर पा रही थी। ग्राम पंचायत ने इस काम में उसकी सहायता की और महात्मा गांधी नरेगा के साथ उद्यानिकी विभाग की योजना का अभिसरण कर उसके दो एकड़ खेत में एक लाख 27 हजार रूपए की लागत से पपीता की खेती का प्रस्ताव स्वीकृत कराया।

कुंजबाई के खेत में जून-2020 में पपीता उद्यान का काम शुरू हुआ। महात्मा गांधी नरेगा से भूमि विकास का काम किया गया। इसमें दस मनरेगा मजदूरों को 438 मानव दिवस का रोजगार मिला, जिसके लिए 83 हजार रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया। कुंजबाई के परिवार को भी इसमें रोजगार मिला और 33 हजार रूपए की मजदूरी प्राप्त हुई। उद्यानिकी विभाग ने पपीता की खेती के लिए ड्रिप-इरिगेशन, खाद और पौधों की व्यवस्था की। खेत के तैयार होने के बाद कुंजबाई ने अपने बेटे श्री रामखिलावन साहू और बहु श्रीमती मालती बाई के साथ कृषि विज्ञान केन्द्र के मार्गदर्शन में दो हजार पौधों का रोपण किया। वहां के वैज्ञानिकों ने उसके परिवार को पपीता की खेती की बारिकियों का प्रशिक्षण दिया। महात्मा गांधी नरेगा, उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र की सहायता से कुंजबाई के परिवार की मेहनत रंग लाई और उसकी दो एकड़ की फसल चार लाख रूपए में बिकी। आधुनिक तौर-तरीकों से खेती उसे अच्छा मुनाफा दे रही। इससे उसका परिवार तेजी से समृद्धि का राह पर बढ़ रहा है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कुंजबाई/उमाशंकर का पपीता उद्यान कार्य, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम- मुंगेली, ग्राम पंचायत- बाराडेरा, विकासखण्ड- बेमेतरा, स्वीकृत राशि- 1.27 लाख रुपए, व्यय राशि- 1.23 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 08.06.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 02.07.2021, वर्क कोड- 3303002044/IF/1111497272,
परियोजना में शामिल योजनावार लागतें-
महात्मा गांधी नरेगा से 87 हजार रुपए, उद्यानिकी विभाग से 30 हजार रुपए एवं हितग्राही अंशदान 10 हजार रुपए
सृजित मानव दिवस- 438, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 10, मजदूरी भुगतान- 83,265 रुपए,
हितग्राही का नाम- श्रीमती कुंजबाई साहू, पति स्व. श्री उमाशंकर साहू (जॉब कार्ड नं.- CH-03-002-044-003/182-A)
हितग्राही श्रीमती कुंजबाई साहू, उनके पुत्र श्री रामखिलावन और पुत्रवधु श्रीमती आरती को प्राप्त रोजगार दिवस एवं मजदूरी- 174 मानव दिवस एवं 33,087 रुपए।
कृषि विज्ञान केन्द्र से मार्गदर्शन- डॉ. चेतना बंजारे
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री राकेश कुमार टंडन, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-बेमेतरा, जिला-बेमेतरा, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप वारे, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बेमेतरा, जिला-बेमेतरा, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्री नवीन कुमार साहू, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बेमेतरा, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन एवं संपादन -
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...