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Monday, 28 February 2022

पितृसत्तात्मक समाज की बदली मानसिकता, संतेश्वरी ने अपने कार्यों से गढ़े नए आयाम

महिला मेट और बैंक सखी की अपनी भूमिका का बखूबी कर रही निर्वाह, 
सर्वश्रेष्ठ बैंक सखी के रूप में 3 बार सम्मानित हो चुकी है संतेश्वरी.


स्टोरी/रायपुर/कांकेर/28 फरवरी 2022. सुश्री संतेश्वरी कुंजाम ने अपने कार्यों और कौशल से पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता बदल दी है। मनरेगा मेट जैसे नाप-जोख की तकनीकी समझ और श्रमिकों के प्रबंधन के कौशल वाले काम को वह बखूबी अंजाम दे रही है। उसने बैंक सखी के रूप में भी अपनी कार्यकुशलता का लोहा मनवाया है। वह तीन बार अपने विकासखण्ड में सर्वश्रेष्ठ बैंक सखी के रूप में सम्मानित हो चुकी है। पहले-पहल जब उसने मनरेगा मेट का काम शुरू किया था तब गांव वाले कहते थे कि लड़की है, क्या मेट का काम करेगी! क्या माप देगी!! संतेश्वरी ने तभी ठान लिया था कि मैं मेट का काम करके दिखाऊँगी। अब वही ग्रामीण उसका गुणगान करते हुए कहते हैं कि संतेश्वरी के कारण महात्मा गांधी नरेगा में बहुत काम मिला। वह दूसरी लड़कियों के लिए प्रेरणा है।

कांकेर जिले के नरहरपुर विकासखण्ड के हटकाचारामा की सुश्री संतेश्वरी कुंजाम की कहानी काफी प्रेरक है। अपने कार्यों से उसने पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता बदली है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम) में महिला मेट के रूप में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर उसने खुद को साबित किया और महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी। बारहवीं तक पढ़ी 26 साल की संतेश्वरी ने अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए वर्ष 2015 में महात्मा गांधी नरेगा कार्यों में अकुशल श्रमिक के रूप में काम करना शुरू किया था। कार्यस्थल पर वह जिज्ञासावश ग्राम रोज़गार सहायक, मेट एवं तकनीकी सहायकों को काम करते हुए देखती थी। कुछ-कुछ काम समझ आने पर उसने ग्राम रोजगार सहायक से मेट का काम करने की इच्छा जाहिर की।

संतेश्वरी की यह इच्छा गाँव में चर्चा का विषय बन गई। कई लोग उसकी क्षमता और रूचि के बारे में टीका-टिप्पणी करने लगे। कई लोग यह मानते थे कि मेट का काम बहुत कठिन है, क्योंकि इसके लिए माप के बुनियादी और तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है। अकुशल श्रमिक होने के कारण वह इसे नहीं कर पायेगी। संतेश्वरी इन बातों से दुखी तो हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी। इसे चुनौती मानकर खुद को साबित करने में लग गई। उसने बुनियादी गणित, कन्वर्सन टूल्स और महात्मा गांधी नरेगा से संबंधित दस्तावेजों को पढ़ना शुरू किया। गाँव में काम करने वाले स्वयंसेवी संस्था ‘प्रदान’ से मैदानी स्तर पर श्रमिकों एवं कार्यस्थल के प्रबंधन के तौर-तरीकों को सीखा। संतेश्वरी के हौसले और इच्छाशक्ति को देखकर उसके माता-पिता ने भी हरसंभव सहायता की।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी सन्तेश्वरी वर्ष 2018 में अपने पंचायत के मेट-पैनल में शामिल हुई। वह विकासखण्ड स्तर पर आयोजित प्रशिक्षणों और मैदानी अनुभव तथा अपनी ऊर्जा, दृढ़ संकल्प व धैर्य से लगातार आगे बढ़ती गई। इस सफर में उसे लोगों की अस्वीकृति और अपमान का भी सामना करना पड़ा। उसने साहस और दृढ़ता से इन सबका सामना किया और अकुशल श्रम तक खुद को सीमित कर लेने वाली महिलाओं के लिए मिसाल कायम की।


स्वसहायता समूह की दीदियों के साथ ने रास्ता किया आसान

संतेश्वरी अपने गांव की गुलाब महिला स्वसहायता समूह और जय मां लक्ष्मी ग्राम संगठन की सदस्य थी। इसलिए उन्होंने सबसे पहले समूह की दीदियों के साथ महात्मा गांधी नरेगा के भुगतान में देरी, काम की गुणवत्ता, सृजित संपत्ति के उपयोग और काम की मांग जैसे मुद्दों पर चर्चा शुरू की। उसकी लगातार कोशिशों से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित ग्राम संगठन की बैठकों में महात्मा गांधी नरेगा चर्चा का नियमित एजेंडा बन गया और सभी ने इससे संबंधित मुद्दों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। संतेश्वरी ने समूह की दीदियों को साथ लेकर इन विषयों पर सरपंच, ग्राम रोजगार सहायक, पंचों एवं पंचायत सचिव के साथ ग्रामसभा में भी चर्चा शुरू की।

महात्मा गांधी नरेगा में मेट और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) में बैंक सखी होने के नाते संतेश्वरी ने श्रमिकों के बैंक खातों से संबंधित त्रुटियों को कम करने की दिशा में भी काम करना शुरू किया। इससे श्रमिकों को मजदूरी भुगतान की राशि अपने खातों में प्राप्त करने में सुविधा हुई। वह बैंक सखी के रूप में हर महीने औसतन 15 लाख रूपये का लेन-देन करती है, जिससे लोगों को गाँव में ही नगद राशि मिल जा रही है। इन सबसे परिस्थितियाँ धीरे-धीरे बदलने लगीं और ग्रामीणों का उस पर विश्वास बढ़ने लगा।

एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की योजना बनाने में निभाई अग्रणी भूमिका

संतेश्वरी ने हटकाचारामा की महिला स्वसहायता समूहों, पंचायत सदस्यों और स्वयंसेवी संगठन की मदद से वहां के उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए विकेन्द्रीकृत तरीके से सभी लोगों की भागीदारी से कृषि सुधार के लिए पैच में योजना बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने पारा-मोहल्ला स्तर की बैठकें आयोजित कर भूमि में संभावित विभिन्न सकारात्मक संरचनाओं और उनके उपयोग के बारे में किसानों व महिला समूहों के साथ चर्चा की। उसके प्रयास से विभिन्न हितग्राहियों की भागीदारी के साथ एक पंचायत स्तरीय एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की योजना बनी।

संतेश्वरी की अपने गांव और महिलाओं के लिए विकास की सोच ने जमीनी स्तर पर बदलाव लाया। वित्तीय वर्ष 2020-21 में गांव में प्रति परिवार प्रदान किए जाने वाले रोजगार के औसत दिन 66 प्रतिशत से बढ़कर 87 प्रतिशत हुआ। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत गांव में सृजित कुल मानव दिवस रोजगार में महिलाओं का योगदान भी बढ़ा। वर्ष 2019-20 में यह 31 प्रतिशत था, जो 2020-21 में बढ़कर 36 प्रतिशत हो गया। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में इसमें और भी इजाफा हुआ है। इस साल यह बढ़कर 37 प्रतिशत से अधिक हो गया है। संतेश्वरी के अकुशल श्रमिक से महिला मेट और बैंक सखी बनने के सफर ने उसकी जैसी अनेक महिलाओं को आगे बढ़ने और नया मुकाम हासिल करने के लिए प्रेरित किया है।
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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 23.02.2022 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 225, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 220, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 214,
रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 286, कुल सृजित मानव दिवस- 7119,
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 110, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 2658,
मेट का नाम- सुश्री संतेश्वरी कुंजाम, उम्र- 26 वर्ष, मोबाईल नं.-7354077552
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री राहुल तारक, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-नरहरपुर, जिला-कांकेर।
लेखन- सुश्री मोहिनी, बी.आर.एल.एफ. प्रोजेक्ट सदस्य।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Friday, 18 February 2022

समाज के लिए उदाहरण बनी दिव्यांग महिला मेट अनुराग

संघर्ष कर बनी घर की पालनहार.



स्टोरी/रायपुर/दुर्ग/18 फरवरी 2022. दुर्ग जिले के चीचा ग्राम पंचायत की सुश्री अनुराग ठाकुर का जज्बा देखते ही बनता है। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी मंजिल के रास्ते में आने नहीं दिया। जो ठान लिया, उसे पूरा करके ही माना। अपनी हिम्मत, हौसले और जुनून के बूते वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) में महिला मेट बनकर, समाज के लिए वह एक आदर्श बनकर उभरी हैं। आज उनका नाम गाँव के प्रत्येक के जुबान पर है। वह दिव्यांग होने के बावजूद महात्मा गांधी नरेगा में मेट का कार्य करते हुए अपने परिवार का आर्थिक सहयोग कर रही है।

जिले के पाटन विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-चीचा की 34 वर्षीय सुश्री अनुराग ठाकुर एक पैर से दिव्यांग है। उनके परिवार में दो बहनें और एक भाई है। बचपन में ही नियति ने उसके सिर से पिता का साया उठा लिया था। ऐसे में परिवार में बड़ी होने के नाते उसके कंधों पर समय से पहले ही परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी। काफी कोशिशों के बाद उन्होंने अपनी स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। ग्राम पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत वर्ष 2012 से वे मेट के रुप में काम कर रही हैं। वह सुबह जल्दी-जल्दी घर के सभी कामों को निपटाकर महात्मा गांधी नरेगा के कार्यस्थल पर पहुँचती है और मेट के रुप में मनरेगा श्रमिकों को काम आबंटित करके, उनके द्वारा किये गये कामों का हिसाब अपनी मेट-माप पंजी में दर्ज करती हैं। सुश्री अनुराग अपने कार्य में इतनी अधिक कुशल हो गई हैं कि वे अन्य मेट के भांति सभी कामों को सहजता से निपटा लेती हैं। इनके कौशल के सामने इनकी दिव्यांगता कहीं नजर ही नहीं आती।

जीवन के उतार-चढ़ाव को नजदीक से देखने वाली सुश्री अनुराग ने परिवार में बड़े होने की भूमिका का भी बखूबी निर्वहन किया है। उन्होंने विरासत में मिली खेती-बाड़ी को संभालते हुए अपने छोटे भाई-बहनों को पढ़ाया और उनका विवाह भी कराया। वह बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा से उन्हें काफी संबल मिला। योजना में मेट के रुप में मिलने वाले पारिश्रमिक से वे अपनी आजीविका पहले से बेहतर तरीके से चला पा रही हैं। मेट के कार्य से उन्हें अब तक बतौर पारिश्रमिक एक लाख 67 हजार रुपये मिल चुके हैं।

मनरेगा में साल दर साल बढ़ी महिलाओं की भागीदारी

महिला मेट के रुप में सुश्री अनुराग ने महात्मा गांधी नरेगा में चलने वाले कार्यों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए घर-घर महिलाओं से संपर्क करके उनसे काम की डिमांड ली। उनकी सक्रियता के फलस्वरुप वर्ष 2018-19 में 189 महिलाओं को 4 हजार 346 मानव दिवस का रोजगार मिला, जो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 225 महिलाओं के द्वारा सृजित मानव दिवस 7 हजार 719 हो गया। महिलाओं की भागीदारी का यह सिलसिला वर्ष 2020-21 में भी जारी रहा। इस वर्ष 289 महिलाओं के द्वारा 16 हजार 271 मानव दिवस का रोजगार प्राप्त किया गया। वहीं चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में 16 फरवरी की स्थिति में 277 महिलाओं को 5 हजार 430 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हो चुका है, जबकि अभी वित्तीय वर्ष समाप्त होने में एक माह से अधिक का समय शेष है।


स्व सहायता समूहों का सहयोग

अनुराग ठाकुर महात्मा गांधी नरेगा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के अलावा, गाँव में महिला स्व सहायता समूह की दीदीयों के साथ भी कार्य करती है। वह स्वयं भी ओम सांईनाथ स्व सहायता समूह से जुड़ी हैं और समूह में लेखापाल की भूमिका निभाती हैं। अपनी लीडरशीप और लेखा संधारण के कौशल के बलबूते उन्होंने गाँव में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित 14 महिला स्व सहायता समूहों को परस्पर सक्रिय बनाकर रखा है। वह समूह की सभी दीदीयों के मध्य सहकार की भावना को बलवती करने का कार्य करती हैं। इसके अलावा वह सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं में हितग्राही मूलक कार्यों को सीधे हितग्राही तक पहुँचाने के लिए गांव के निवासियों को जानकारी भी प्रदान करती हैं।
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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 17.02.2022 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 378, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 399, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 476,
सक्रिय महिलाओं की संख्या- 310, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 320, रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 397
कुल सृजित मानव दिवस- 7882, रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 277,
महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 5430, सौ-दिवस रोजगार पूर्ण करने वाले परिवारों की संख्या- 12
मेट का नाम- सुश्री अनुराग ठाकुर, उम्र- 34 वर्ष, मोबाईल- 7974429901
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्रीमती डालिमलता, कार्यक्रम अधिकारी, विकासखण्ड-पाटन, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
2. श्री जवाहर चंद्राकर, सरपंच, ग्रा.पं.-चीचा, विकासखण्ड-पाटन, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
रिपोर्टिंग- श्रीमती रीता चाटे, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 7 December 2021

दिव्यांग सुश्री ठगन ने संघर्ष कर बदली अपनी तकदीर

मनरेगा मेट बनकर योजना में बढ़ाई महिलाओं की भागीदारी
और खुद को भी बनाया सशक्त.


स्टोरी/रायपुर/राजनांदगांव/07 दिसम्बर 2021. दुनिया में ऐसे कई दिव्यांग हैं, जिन्होंने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाया है। इन्होंने कभी हौसला नहीं खोया और सफलता के मुकाम पर पहुँचकर औरों के लिए आदर्श प्रस्तुत किया है। दिव्यांगता को कभी जीवन में बाधक बनने नहीं दिया और संघर्ष कर अपनी तकदीर को बदला है। राजनांदगांव जिले के छुईखदान विकासखण्ड की मुंडाटोला ग्राम पंचायत की दिव्यांग महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) मेट सुश्री ठगन मरकाम की कहानी भी ऐसी ही है। परिवार में माता-पिता के गुजरने के बाद गाँव के बड़े-बुर्जुगों को ही अपना अभिभावक मानकर मनरेगा के जरिये गाँव के लिए कुछ कर गुजरने का हौसला रखने वाली वह आज सबकी, विशेषकर महिलाओं की आदर्श बन गई है।

35 वर्षीया सुश्री ठगन एक पैर से दिव्यांग हैं और जनवरी 2021 से गाँव में महिला मेट की भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रही हैं। मेट बनने के बाद उन्होंने गाँव में नया तालाब निर्माण, श्री विनय धुर्वे के खेत में भूमि सुधार कार्य एवं श्री श्यामलाल के खेत में कूप निर्माण का कार्य करवाया है। उनकी सक्रियता से योजनांतर्गत खुले कामों में महिला श्रमिकों की भागीदारी बढ़कर 50 प्रतिशत पर पहुँच गई है। महात्मा गांधी नरेगा में वर्ष 2019-20 में जहाँ महिलाओं के द्वारा सृजित मानव दिवस रोजगार का प्रतिशत 42.36 था, वह वर्ष 2020-21 में बढ़कर 50.86 प्रतिशत हो गया। गाँव में महिलाओं के बीच अपने सरल व्यवहार को लेकर लोकप्रिय सुश्री ठगन ने अपनी लगनशीलता के बलबते चालू वित्तीय वर्ष में भी महिलाओं की भागीदारी को 50 प्रतिशत बनाकर रखा है। नवम्बर, 2021 की समाप्ति तक गाँव में कुल रोजगार प्राप्त 615 श्रमिकों में से 310 महिला श्रमिकों को 6802 मानव दिवस का रोजगार मिल चुका है।

मनरेगा मेट सुश्री ठगन का अतीत संघर्षों से भरा रहा है। मनरेगा मजदूर से मनरेगा मेट बनने का सफर उनके लिए आसान नहीं था। माता-पिता के स्वर्गवास होने और बहनों के विवाह उपरांत वह परिवार में अकेली हो गई थी। एक पैर से दिव्यांग होने के कारण पंचायत से उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार काम मिलता था। । अपने संघर्षों के बारे में ठगन मरकाम कहती हैं कि उनके पास लगभग डेढ़ एकड़ की पुश्तैनी कृषि भूमि है, जिसे वे अधिया में देकर कृषि कार्य कराती हैं। जीवन-यापन के सीमित साधनों के कारण उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। ऐसे में ग्राम रोजगार सहायक सुश्री सरिता ध्रुर्वे उनके लिए नवा बिहान (नई सुबह) बनकर आयी और उन्हें महात्मा गांधी नरेगा में महिला मेट के रुप में काम करने की सलाह दी। यह उनकी सलाह का ही परिणाम है कि सुश्री ठगन गाँव में आज मनरेगा मेट के रुप में सम्मानपूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन कर पा रही हैं। मनरेगा से मिले पारिश्रमिक से उन्होंने अपने लिए एक सिलाई मशीन खरीद ली है, जिसका उपयोग वे अपनी आजीविका समृद्धि के लिए कर रही हैं।

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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 04.12.2021 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 314, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 303,
रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 286, रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 615, सृजित मानव दिवस- 13602,
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 310, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 6802,
मेट का नाम- सुश्री ठगन मरकाम पिता स्व. श्री राम मरकाम, उम्र- 35 वर्ष, मोबाईल नं.-82258 93923

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तथ्य/आंकड़े– श्री सिद्धार्थ जायसवाल, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़,
रिपोर्टिंग- श्री फैज मेमन, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-राजनांदगांव, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़,
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।

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Friday, 3 December 2021

स्वच्छता के बाद अब महात्मा गांधी नरेगा में प्रबंधन का हुनर दिखा रही है मेट करीना

रिजेक्टेड ट्रांजेक्शन की समस्याओं को दूर कर मनरेगा मजदूरी भुगतान को सुगम बनाया


स्टोरी/रायपुर/जशपुर/03 दिसम्बर 2021. नारी को अपने बाल्यकाल से ही घर के सभी कामों के प्रबंधन के बारे में जानकारी होती है। घरेलू आवश्यकताओं और जरूरतों को पूरा करने के लिए संसाधनों के समुचित उपयोग एवं उनके प्रबंधन देखते हुए वे बड़ी होती हैं। किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते वे परिवारिक प्रबंधन कार्य में दक्ष हो जाती हैं। यही दक्षता उन्हें घर के बाहर अपने कार्य-उत्तरदायित्वों के निर्वहन में मदद करती है। जशपुर जिले के मनोरा विकासखण्ड अन्तर्गत ग्राम पंचायत डड़गांव की रहने वाली श्रीमती करीना खातून के प्रबंधन कार्य को महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत खुले कामों में देखा जा सकता है। कल तक गांव में स्वच्छता के क्षेत्र में अपने प्रबंधन कार्य के हुनर का लोहा मनवा चुकी श्रीमती करीना आज महात्मा गांधी नरेगा में श्रमिकों से काम की मांग, मोबाईल एप्प में उनकी उपस्थिति, रिजेक्टेड ट्रांजेक्शन जैसी मजदूरी भुगतान में आने वाली समस्या का निराकरण एवं जॉब कार्ड अद्यतन जैसे कार्यों के प्रबंधन को बड़ी कुशलता से करती हैं।

स्वच्छता एवं रोजगार का प्रबंधन

37 वर्षीय करीना वर्ष 2018 से अपने गांव में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अन्तर्गत स्वच्छता ग्राही की भूमिका का निर्वहन कर रही हैं। इस दौरान उन्होंने ‘‘शौचालय का उपयोग, गांव को प्लास्टिक मुक्त बनाने, किशोरियों/ बालिकाओं एवं महिलाओं हेतु माहवारी प्रबंधन तथा सैनेटरी पैड के नियमित उपयोग’’ के संबंध में जागरुकता एवं व्यवहार परिवर्तन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये हैं, जिसके लिए उन्हें 2 अक्टूबर 2019 को राष्ट्रीय स्तर पर "बेस्ट स्वच्छता ग्राही" पुरस्कार से नवाजा गया। महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत साल 2019 से मेट के रुप में काम करते हुए करीना ने अपनी प्रबंधन-कला के बलबूते अन्य मेट के साथ एक टीम बनाई और काम करना शुरु किया। उनकी टीम योजनांतर्गत श्रमिकों से काम की मांग प्राप्त करती है और फिर उन्हें कार्य प्रारंभ होने की सूचना देते हुए उनका कार्यस्थल पर नियोजन व प्रबंधन करती है।

स्वच्छता-ग्राही के बाद महात्मा गांधी नरेगा में मेट के रुप में अपने अनुभव को साझा करते हुए श्रीमती करीना खातून बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत सबसे बड़ी चुनौती श्रमिकों के मजदूरी भुगतान में आ रही ट्रान्जेक्शन्स रिजेक्शन की समस्याओं का निराकरण है। इसके अंतर्गत सामान्यतः श्रमिकों को बैंक से जारी पास-बुक में अंकित नाम व खाता क्रमांक के आधार पर नरेगा सॉफ्टवेयर (नरेगा-सॉफ्ट) में दर्ज श्रमिकों के नाम व खाता क्रमांक में अंतर, अमान्य खाता प्रकार, ऐसा कोई खाता नहीं, खाता बंद या स्थानांतरित, निष्क्रिय आधार, केवाईसी अपडेट नहीं, खाता मौजूद नहीं है, आधार को खाते से नहीं जोड़ा गया, बैंकों के मर्ज होने की स्थिति में अमान्य बैंक पहचानकर्ता, आई.एफ.एस. कोड का गलत होना एवं दावारहित खाता जैसे कारण हैं, जिनसे मजदूरी भुगतान के लिए जारी फंड ट्रांसफर आर्डर रिजेक्ट हो जाते हैं और श्रमिक को लगता है कि उसका मजदूरी भुगतान नहीं हो रहा है। वे आगे बताती हैं कि साल 2019 में महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत मजदूरी भुगतान के कुल 250 ट्रांजेक्शन रिजेक्ट हुए थे, जिसे जनपद पंचायत के कार्यक्रम अधिकारी से प्राप्त मार्गदर्शन के आधार पर आवश्यक सुधारकर, दूर किया। आज की स्थिति में ग्राम पंचायत में रिजेक्टेड ट्रांजेक्शन नहीं के बराबर हैं और महात्मा गांधी नरेगा के मजदूरों के बैंक-पासबुक में उनकी मजदूरी दिखाई देती है। इसका सीधा प्रभाव कार्य स्थल पर दिख रहा है। महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत खुले कामों में श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

परिवार और खेती-बाड़ी को बनाया खुशहाल


महिला मेट के तौर पर काम करते हुए श्रीमती करीना को अब तक बतौर पारिश्रमिक 31 हजार 884 रुपये प्राप्त हो चुके हैं, जिसका उपयोग उन्होंने अपने बच्चों के ट्यूशन एवं कॉलेज फीस भरने में किया। इसके अलावा उन्होंने शेष बचे रुपयों को अपने लगभग दो एकड़ की जमीन में मिर्ची की खेती में लगाया है। उनकी मेहनत से आज उनका खेत हरा-भरा है।

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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 26.11.2021 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 351, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 287, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 701,
सक्रिय महिलाओं की संख्या- 363, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 145,
रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 242, सृजित मानव दिवस- 4601,
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 148, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 2748,
मेट का नाम- श्रीमती करीना खातून , उम्र- 37 वर्ष

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तथ्य/आंकड़े- श्री अखिलेश भगत, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-मनोरा, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़,
रिपोर्टिंग- श्री विकास प्रभात एक्का, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-मनोरा, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़,
लेखन- श्री अश्विनी व्यास, समन्वयक (शिकायत निवारण), जिला पंचायत-जशपुर, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़,
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।

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Sunday, 21 November 2021

बुलंद है सोमारी के हौसले

महिला मेट बन लोगों को स्वाभिमान से जीने का दिखा रहीं रास्ता


स्टोरी/रायपुर/कोण्डागांव/21 नवम्बर 2021. कहते हैं सफलता का कोई कद-काठी, रंग-रुप और आकार-प्रकार नहीं होता। यह इंसान के किये गये संघर्ष पर निर्भर करती है। उसे बस एक मौके की आवश्यकता होती है और वह अपनी इच्छाशक्ति एवं मेहनत के दम पर हर चुनौतियों को पार करते हुए सफलता के शिखर पर पहुँच जाता है। जहाँ से वह आने वाली पीढ़ी के लिए एक मिशाल कायम कर देता है। ऐसी मिशाले लोगों के लिए वर्षों तक प्रेरणा का कार्य करती है। कुछ ऐसी ही हौसले से भरी प्रेरक कहानी है कोण्डागांव जिले के फरसगांव विकासखण्ड के ग्राम पंचायत आलोर की रहने वाली सोमारी मरकाम की। सुश्री सोमारी 23 साल की है और उनकी कद-काठी तीन फूट व पांच इंच की है। उनका कद भले ही छोटो हों, पर उनके हौसले काफी बुलंद है। वे आज जितनी सहजता से गाँव में महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत चलने वाले कार्य में मनरेगा श्रमिकों को काम पर लगाती हैं, उतनी ही सरलता के साथ ग्राम रोजगार सहायक के साथ मिलकर कार्यस्थल पर बी.सी. (बिजनेस करेसपोंडेंट) सखी के माध्यम से श्रमिकों का नगद मजदूरी भुगतान करा देती है। इससे गाँव में ग्रामीणों का महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों के प्रति रूझान बढ़ा है। सोमारी की लगन और कर्तव्यपरायणता ने उनके व्यक्तित्व को आज इतना ऊँचा कर दिया है कि वह आम आदमी को स्वाभिमान से जीवन जीने की राह दिखा रही हैं।

वर्ष 2016 में बारहवीं की परीक्षा पास करने वाली सोमारी का कद अनुवांशिक बीमारी के कारण जन्म से भले ही छोटा रह गया था परंतु बढ़ती उम्र के साथ कुछ न कुछ कर गुजरने का जुनून हमेशा से ही उनके दिमाग में सवार रहता था। घर की आर्थिक जरुरतों के कारण उन्हें बारहवीं कक्षा के बाद ही नौकरी की आवश्यकता आन पड़ी थी। इसके लिए उन्होंने कई स्थानों पर नौकरी के लिए प्रयास किया, किन्तु उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इससे उनके परिजनों तथा उन्हें अपने भविष्य की चिंता होने लगी थी। ऐसे में उन्हें गाँव की ग्राम रोजगार सहायक गौरी देहरी का साथ मिला, जिनसे उन्हें महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत महिला मेट की नियुक्ति के बारे में जानकारी प्राप्त हुई।

कर्मठता से जुटी काम में

मेट बनने के बाद सोमारी को यह अहसास हुआ कि वे महात्मा गांधी नरेगा की जरिये अपने जैसे कई लोगों को रोजगार दिलाकर और उनकी निजी भूमि पर आजीविकामूलक कार्यों को कराकर उनके जीवन में परिवर्तन ला सकती है। यह अहसास आगे चलकर उनका उद्देश्य बन गया। वे महिला मेट के रूप में कर्मठता से कार्य करते हुए रोज सुबह 5 बजे से कार्यस्थल पर पहुंच कर गोदी की चुने द्वारा मार्किंग कर वहाँ मनरेगा श्रमिकों से खुदाई कार्य शुरु करवाती। इसके अलावा मेट माप-पंजी का संधारण कर, श्रमिकों के जॉबकार्ड अद्यतन करने एवं मोबाईल एप्प द्वारा मस्टर रोल में उनकी ऑनलाईन हाजिरी भरने का कार्य भी करती है। सोमारी कहती है कि उन्हें अपना कार्य बहुत पसंद है। वे प्रतिदिन लोगों से मिलकर उन्हें महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत रोजगार के अधिकार से अवगत कराकर उन्हें रोजगार हेतु प्रेरित करती है।

तीन देवियों की संज्ञा

मेट सुश्री सोमारी मरकाम, बी.सी.सखी श्रीमती सावित्री कोर्राम एवं ग्राम रोजगार सहायक श्रीमती गौरी देहारी के द्वारा महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत मिलकर किए जा रहे कामों को देखकर ग्रामीणों के द्वारा इन्हें तीन देवियों की संज्ञा दी गई है। ग्रामीण, जहाँ श्रीमती सावित्री को बैंक दीदी और श्रीमती गौरी को रोजगार दीदी कहकर बुलाते हैं, वहीं सुश्री सोमारी का परिचय मनरेगा मेट का है। वह राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के अंतर्गत गठित लक्ष्मी देवी स्व सहायता समूह की सक्रिय सदस्य भी है और समूह के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में कार्य कर रही हैं। इन तीनों के प्रयास से गांव में महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत नवीन कार्यों के चयन, उनके क्रियान्वयन के साथ समय पर भुगतान प्राप्त होने से लोगों में योजना के प्रति विश्वास पहले से काफी बढ़ा है।

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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 21.11.2021 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 383, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 381, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 837,
सक्रिय महिलाओं की संख्या- 413, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 145, रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 260
सृजित मानव दिवस- 5994, रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 129,
महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 2920, सौ-दिवस रोजगार पूर्ण करने वाले परिवारों की संख्या- 13
मेट का नाम- सुश्री सोमारी मरकाम , उम्र- 23 वर्ष
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तथ्य/आंकड़े एवं लेखन-
श्री वीरेन्द्र साहू, कार्यक्रम अधिकारी, विकासखण्ड-फरसगांव, जिला-कोंडागाँव, छत्तीसगढ़।

संपादन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 18 November 2021

पंचायत के साथ मिलकर गांव में “वित्तीय समावेशन की मशाल” जला रही है गंगोत्री

महिलाओं को स्वरोजगार और महात्मा गांधी नरेगा कार्यों से भी जोड़ रही


स्टोरी/रायपुर/सुकमा/18 नवम्बर, 2021. घर की चारदीवारी और मजदूरी करने तक सीमित रहने वाली ग्रामीण महिलाएं आज महात्मा गांधी नरेगा में महिला मेट के रूप में काम कर बदलाव की कहानियां गढ़ रही हैं। हाथ में टेप लेकर गोदी की माप का लेखा-जोखा अपने रजिस्टर में दर्ज करने से लेकर महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और स्वरोजगार के माध्यम से उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने की मुहिम की अगुवाई भी वे बखूबी कर रही हैं। महात्मा गांधी नरेगा और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जरिए महिलाओं के आजीविका संवर्धन और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महिला मेट महत्वपूर्ण काम कर रही हैं। नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के कोंटा विकासखंड की दुब्बाटोटा ग्राम पंचायत की आदिवासी महिला मेट श्रीमती गंगोत्री पुनेम भी अपने गांव की महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में लगी हुई हैं। महात्मा गांधी नरेगा के साथ ही सरकार की दूसरी योजनाओं के माध्यम से वह महिलाओं की आमदनी बढ़ा रही है।

महात्मा गांधी नरेगा में मेट की अपनी जिम्मेदारियों को कुशलता से अंजाम देने के साथ ही 30 साल की गंगोत्री पंचायत के साथ मिलकर गांव में वित्तीय समावेशन को भी बढ़ा रही है। दुब्बाटोटा में महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत मजदूरी का भुगतान पहले नगद होता था। गंगोत्री की पंचायत के संग की गई कोशिशों से अब श्रमिकों के बैंक खातों में इसका भुगतान हो रहा है। गांव से छह किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक की दोरनापाल शाखा में पिछले साल तक 300 महात्मा गांधी नरेगा श्रमिकों का बचत खाता था। गंगोत्री ने इस वर्ष 66 और श्रमिकों का वहां खाता खुलवा दिया है। श्रमिकों की मजदूरी अब सीधे उनके खातों में आ रही है।

गांव में महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में गंगोत्री की बड़ी भूमिका है। उन्होंने गांव की चार अन्य महिला मेट के साथ घर-घर जाकर महिलाओं से बात की और उन्हें महिला मेट के सुपरविजन में काम करने के लिए प्रेरित किया। उन लोगों का यह प्रयास रंग लाया। उनकी लगातार कोशिशों से इस साल गांव की 480 महिला श्रमिकों को 23 हजार 272 मानव दिवस का रोजगार मिल चुका है। महिला मेट की उपस्थिति से आदिवासी क्षेत्रों की महिलाएं कार्यस्थल पर सहजता महसूस कर रही हैं। इससे महात्मा गांधी नरेगा कार्यों में महिला श्रमिकों की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है।

गंगोत्री एक साल पहले तक खेती में पति का हाथ बटाकर और मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करती थी। वह गांव में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.) के अंतर्गत गठित ‘सीता स्वसहायता समूह’ से जुड़ी और आजीविकामूलक गतिविधियों में सक्रिय हुई। उन्होंने अन्य महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित किया। बारहवीं तक शिक्षित गंगोत्री शुरूआत से ही अपने समूह में 'बुक-कीपर' की जिम्मेदारी उठा रही है। उसका समूह मुर्गीपालन और अंडा उत्पादन के काम में लगा हुआ है। इससे हो रही आमदनी से समूह की महिलाएं अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही हैं।

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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 18.11.2021 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 524, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 524, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 934,
सक्रिय महिलाओं की संख्या- 498, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 506, रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 898
सृजित मानव दिवस- 44057, रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 480,
महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 23272, सौ-दिवस रोजगार पूर्ण करने वाले परिवारों की संख्या- 149
मेट का नाम- श्रीमती गंगोत्री पुनेम पति श्री सोना पुनेम, उम्र- 30 वर्ष
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री अखिलेश सिंह राजपूत, प्रोग्रामर, जिला पंचायत-सुकमा, छत्तीसगढ़।
2. श्री लोकेश कुमार बघेल, कार्यक्रम अधिकारी, विकासखण्ड-कोंटा, जिला-सुकमा, छत्तीसगढ़।
3. श्री देवा करको, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-दुब्बाटोटा, विकासखण्ड-कोंटा, जिला-सुकमा, छत्तीसगढ़।

लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
संपादन - श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।

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Thursday, 11 November 2021

दिव्यांग मेट लक्ष्मीन ने अपने हौसलों से जिंदगी में नए रंग भरे

टेक्नोलॉजी के उपयोग में दक्ष लक्ष्मीन है कई लोगों की प्रेरणा,
मनरेगा मेट के दायित्वों के साथ श्रमिकों की कई तरह से करती है मदद


स्टोरी/रायपुर/मुंगेली/11 नवम्बर, 2021. दुनिया में सिर्फ एक ही विकलांगता है... नकारात्मक सोच। यदि सोच सकारात्मक हो तो कठिनाईयों के बीच भी सफलता का द्वार खुल जाता है। ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्होंने अपनी सकारात्मक सोच और मजबूत इच्छाशक्ति से शारीरिक अक्षमता को कमजोरी नहीं बनने दिया। मुंगेली जिले के पथरिया विकासखंड की सांवा ग्राम पंचायत की दिव्यांग महात्मा गांधी नरेगा-मेट श्रीमती लक्ष्मीन साहू की कहानी भी ऐसी ही है। अपनी लगन और ललक से नई टेक्नोलॉजी के उपयोग में दक्षता हासिल कर वह गांव के कई लोगों की प्रेरणा बन गई है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के कार्यों में मेट के अपने दायित्वों के निर्वहन के साथ ही वह श्रमिकों की कई तरीकों से मदद भी करती है।

गांव में महात्मा गांधी नरेगा के कार्य संचालित होने पर लक्ष्मीन हर सुबह तैयार होकर कार्यस्थल पर पहुंचती है और वहां काम कर रहे श्रमिकों की उपस्थिति अपने मोबाइल में मौजूद ‘मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम एप’ में दर्ज करती है। यदि किसी मजदूर को अपने बैंक खाते में महात्मा गांधी नरेगा से मिली मजदूरी आने की जानकारी लेनी होती है, तो वह सीधे लक्ष्मीन के पास आता है। लक्ष्मीन महात्मा गांधी नरेगा-पोर्टल से रिपोर्ट देखकर उसकी मजदूरी के खाते में जमा होने या नहीं होने की जानकारी दे देती है। इससे श्रमिकों को अनावश्यक बार-बार बैंक नहीं जाना पड़ता है। लक्ष्मीन तकनीकी कारणों से मजदूरी भुगतान के रिजेक्ट खातों का पता कर उन्हें सुधारने में ग्राम पंचायत एवं जनपद पंचायत के कर्मचारियों की मदद करती है। बारहवीं तक पढ़ी-लिखी लक्ष्मीन ने सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग कर अपनी शारीरिक अक्षमता को ऐसी दिव्यांगता में बदल दिया है, जिसकी लोग मिसाल देते हैं। उसके हौसले को देखकर गांव की दो अन्य दिव्यांग महिलाएं श्रीमती कांतिबाई और श्रीमती संगीता राजपूत भी महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों से जुड़ीं। पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 में उन्होंने क्रमशः 23 और 26 दिनों का रोजगार प्राप्त किया।

महात्मा गांधी नरेगा में मेट लक्ष्मीन का अतीत संघर्ष से भरा रहा है। महात्मा गांधी नरेगा के मजदूर से मेट बनने का सफर उसके लिए आसान नहीं था। वह पैर से 50 प्रतिशत दिव्यांग हैं। उसके पति श्री नरेश साहू कृषक हैं। लक्ष्मीन मेट बनने के पहले परिवार के साथ महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों में अपनी शारीरिक क्षमता के हिसाब से मजदूरी किया करती थी। परन्तु दिव्यांग होने के कारण अन्य मजदूरों की भांति कार्य करने में उसे कठिनाई होती थी। इससे उसके मन में संकोच का भाव भर आता था। सरंपच श्रीमती मुद्रिका साहू और ग्राम रोजगार सहायक ने उसकी शैक्षणिक योग्यता को देखकर महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों के लिए तैयार किए जा रहे मेट-पैनल में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। लक्ष्मीन की सहमति के बाद पथरिया विकासखण्ड में क्लस्टर लेवल पर आयोजित मेट-प्रशिक्षण में उसका प्रशिक्षण भी शुरू हो गया। इस दौरान उसे फील्ड में चल रहे कार्यों का भ्रमण भी कराया गया। चूंकि लक्ष्मीन पहले ही मजदूर के रूप में योजना को भली-भांति समझती थी और पढ़ी-लिखी भी थी, इसलिए तुरंत सभी बारीकियों को समझ गई। नरेगा-सॉफ्ट के प्रशिक्षण के दौरान उसने ऑनलाइन जॉब-कार्ड एवं मजदूरी भुगतान संबंधी अपडेट देखना भी सहजता से सीख लिया।

महात्मा गांधी नरेगा में मेट के रूप में अपने पांच साल के अनुभव के बारे में लक्ष्मीन कहती है कि जब से उसने मेट के तौर पर काम करना शुरू किया है, लोगों का उसके प्रति नजरिया बदल गया है। अब वे मुझे सम्मान देते हैं। गांव की अन्य महिलाएं भी अब मेट का काम करना चाहती हैं। ग्राम पंचायत के मेट-पैनल में अब दस अन्य महिलाएं भी हैं, जिनके साथ मिलकर वह मजदूरों की हाजिरी भरने के साथ-साथ उनके द्वारा खोदी गई गोदियों के माप का रिकार्ड भी रखती है। वह कहती है – “गांव के लोग अब मेरी बातों को सुनते हैं और मुझसे राय भी लेते हैं। ये सब बहुत अच्छा लगता है। महात्मा गांधी नरेगा से मेरे जीवन में बहुत बदलाव आया है। इसने मुझे बांकी से अलग नहीं किया, बल्कि औरों से जोड़ दिया है।’’

मेट बनने के बाद से लक्ष्मीन के जीवन में रंग निखरने लगा है। वह गांव की मां कर्मा स्वसहायता समूह की सक्रिय सदस्य भी है। सावां ग्राम पंचायत में बने मुंगेली जिले के पहले आदर्श गौठान में वह अपनी समूह की अन्य महिलाओं के साथ मिलकर वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन, मछली पालन, मुर्गी पालन एवं बांस से ट्री-गार्ड बनाने का भी काम कर रही है। इन सब गतिविधियों से प्राप्त आमदनी से उसके परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।


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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 11.11.2021 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 597, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 499, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 760,
सक्रिय महिलाओं की संख्या- 381, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 347, रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 674
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 340, सृजित मानव दिवस- 16621,
महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 8592, सौ-दिवस रोजगार पूर्ण करने वाले परिवारों की संख्या- 6
मेट का नाम- श्रीमती लक्ष्मीन साहू पति श्री नरेश साहू, उम्र- 35 वर्ष
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तथ्य एवं आंकड़े- 
1. श्री विनायक गुप्ता, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-मुंगेली, छत्तीसगढ़।
2. श्री सागर खांड़े, कार्यक्रम अधिकारी, विकासखण्ड-पथरिया, जिला-मुंगेली, छत्तीसगढ़।
3. श्री राजेश कुमार बरगाह, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-सांवा, विकासखण्ड-पथरिया, जिला-मुंगेली, छत्तीसगढ़।

लेखन- श्री नवीन जायसवाल, प्रोग्रामर, जिला पंचायत-मुंगेली, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Saturday, 23 October 2021

हरियाली की ब्रांड एम्बेसडर है मनरेगा मेट पुष्पा

पर्यावरण प्रेमी महिला मेट पुष्पा की कोशिशों से आबाद है दो फलदार पौधरोपण क्षेत्र.

स्वसहायता समूहों की महिलाएं फल उत्पादन के साथ दोनों उद्यानों में कर रही हैं अंतरवर्ती फसलों की खेती.

हरियाली के साथ ही आजीविका का भी संवर्धन.




स्टोरी/रायपुर/धमतरी/23 अक्टूबर, 2021. कुछ लोग जो बदलाव की ओर अपने कदमों को बढ़ाते हैं और देखते ही देखते अपने आस-पास के लोगों के लिए एक मिसाल बन जाते हैं, या यूं कहें कि एक हस्ती बन जाते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत का नाम है- श्रीमती पुष्पा बाई पटेल। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) कार्यों में मेट का काम करने वाली श्रीमती पुष्पा पटेल गांव को हरा-भरा बनाने के साथ ही महिलाओं को रोजगार के नए अवसरों से भी जोड़ रही हैं। धमतरी जिले के कुरुद विकासखण्ड के सिरसिदा गांव की पुष्पा 'महिला मेट' के रूप में अपने कर्तव्यों के निर्वहन के साथ ही स्वसहायता समूह की सक्रिय सदस्य के तौर पर लोगों को, खासतौर से 'महिलाओं' को वृक्षारोपण से जोड़ने का भी काम कर रही हैं। उसकी कोशिशों से गांव में महानदी के किनारे पांच साल पहले पांच एकड़ में रोपे गए फलदार पौधे अब 5-6 फीट के हरे-भरे पेड़ बन गए हैं। उसके प्रोत्साहन से तीन स्वसहायता समूहों की महिलाएं वहां फल उत्पादन के साथ अंतरवर्ती खेती कर अपनी आजीविका संवार रही हैं। इस उद्यम की कामयाबी को देखकर ग्राम पंचायत ने वर्ष 2020-21 में महात्मा गांधी नरेगा और डीएमएफ (जिला खनिज न्यास निधि) के अभिसरण से 12 लाख 51 हजार रूपए की लागत से 7.41 एकड़ में 850 फलदार पौधों का और रोपण करवाया है। गांव की शिव गंगा स्वसहायता समूह की 11 महिलाएं इनकी देखभाल करने के साथ रोपित पौधों के बीच अंतरवर्ती खेती कर रही हैं।

पेड़-पौधों से बचपन से ही लगाव रखने वाली पुष्पा का सिरसिदा में दोनों पौधरोपण क्षेत्रों में पौधों की देखभाल और महिलाओं को वहां आजीविकामूलक गतिविधियों से जोड़ने में अहम योगदान है। बारहवीं तक शिक्षित 39 साल की पुष्पा गांव की महिलाओं के लिए 'प्रेरणा-पुंज' है। मेट के रूप में पुष्पा के कार्यों से प्रेरित होकर इस साल गांव की पांच अन्य महिलाएं श्रीमती नेहा साहू, श्रीमती चमेली निषाद, श्रीमती देवली दीवान, श्रीमती टिकेश्वरी निषाद और श्रीमती खिलेश्वरी साहू भी महात्मा गांधी नरेगा में महिला मेट बन गई हैं। पुष्पा बताती है कि वर्ष 2016-17 में महात्मा गांधी नरेगा और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अभिसरण से गांव में मिश्रित पौधरोपण का कार्य स्वीकृत हुआ था। इसके अंतर्गत पांच एकड़ क्षेत्र में छह लाख 48 हजार रूपए की लागत से 1120 फलदार पौधों का रोपण करना था। पौधरोपण के बाद नियमित रूप से उनकी देखभाल भी करनी थी, इसलिए इसमें महिलाओं की भागीदारी जरूरी थी। गांव की महिलाएं शुरू में इस काम के लिए तैयार नहीं हो रही थीं। उन्होंने स्वसहायता समूहों की महिलाओं के साथ लगातार बैठक कर इसके लिए उन्हें राजी किया। इन महिलाओं की मेहनत से पांच एकड़ का यह क्षेत्र आज दूर से ही हरा-भरा दिखाई देता है। कटहल, जामुन, अमरुद, बेर, आम और करौंदा के पेड़ वहां लहलहा रहे हैं। महिलाओं ने इस साल 112 किलोग्राम आम बेचकर साढ़े चार हजार रूपए कमाए भी हैं।

स्वसहायता समूहों के जरिए रोजगार

पुष्पा राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित जय मां शारदा स्वसहायता समूह की सक्रिय सदस्य है। वह पिछले पांच सालों से गांव की महिलाओं के साथ काम कर रही है और उन्हें स्वसहायता समूह के रूप में संगठित कर आजीविका मूलक गतिविधियों से भी जोड़ रही है। उसकी कोशिशों से गांव में अब तक 21 स्वसहायता समूह गठित हो चुके हैं। इनमें से तीन समूहों की महिलाएं फलदार पौधरोपण क्षेत्र में पेड़ों के मध्य अंतरवर्ती खेती कर शकरकंद, मूंगफल्ली, भाजी, बरबट्टी, सेमी, मूली और गोभी की पैदावार ले रही हैं।

मनरेगा कार्यों में बढ़ाई महिलाओं की भागीदारी

महिला मेट के तौर पर पुष्पा की सक्रियता और प्रोत्साहन से मनरेगा कार्यों में गांव की महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। सिरसिदा में कुल पंजीकृत महिला श्रमिकों की संख्या 400 है। वर्ष 2017-18 में 179 महिला श्रमिकों ने 3606 मानव दिवस रोजगार सृजित किया था, जो वर्ष 2018-19 में बढ़कर 255 महिला श्रमिकों द्वारा 3752 मानव दिवस, वर्ष 2019-20 में 286 महिला श्रमिकों द्वारा 7754 मानव दिवस एवं वर्ष 2020-21 में 334 महिला श्रमिकों द्वारा 11 हजार 925 मानव दिवस हो गया।

परिवार के आर्थिक हालात भी बदले

गांव में हरियाली बढ़ाने के साथ-साथ अपने परिवार की माली स्थिति को सुधारने में भी पुष्पा ने अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन किया है। मेट बनने के पहले वह पढ़ी-लिखी होने के बावजूद घर की चार-दीवारी तक सीमित थी। पति श्री करण सिंह पटेल मोटर सायकल रिपेयरिंग का काम करते हैं। आय के सीमित साधनों के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पति की प्रेरणा और ग्राम पंचायत के सहयोग से पुष्पा वर्ष 2011 से मनरेगा कार्यों में मेट का काम कर रही है। मेट बनने के बाद बच्चों की परवरिश और घर-परिवार की जरूरतों को पूरा करने में वह अपने पति की मदद कर रही है। अपने स्वसहायता समूह के साथ उद्यान में सब्जियों की अंतरवर्ती खेती कर अतिरिक्त आय भी जुटा रही है।

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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 21.10.2021 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 321, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 313, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 744
रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 310, रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 665 सृजित मानव दिवस- 9573
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 326, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 4485
मेट का नाम- श्रीमती पुष्पा बाई पटेल पति श्री करण सिंह पटेल, उम्र- 39 वर्ष


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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री धरम सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी, छत्तीसगढ़।
2. श्रीमती कुंती देवांगन, कार्यक्रम अधिकारी, विकासखण्ड-कुरुद, जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़।
3. श्री प्रदीप साहू, तकनीकी सहायक, विकासखण्ड-कुरुद, जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़।
4. श्री अभिमन्यु निषाद, सरपंच, ग्राम पंचायत-सिरसिदा, विकासखण्ड-कुरुद, जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़।

लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
संपादन - श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।

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Monday, 18 October 2021

पांच महिला मेटो ने बढ़ाई ‘आधी आबादी’ की भागीदारी

मेट का काम कुशलता से अंजाम देने के साथ ही महिलाओं को कर रहीं प्रेरित


स्टोरी/रायपुर/गरियाबंद/18 अक्टूबर, 2021. ‘हर हाथ को काम और काम का वाजिब दाम’ की उक्ति को धरातल पर उतारने वाली महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) देश की ‘आधी आबादी’ को भी आर्थिक मजबूती प्रदान कर रही है। हर हाथ को काम देने का आशय केवल पुरूष मजदूर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ऐसे सभी महिला श्रमिक भी शामिल हैं जो काम की इच्छुक हैं और जो काम कर सकती हैं। देश की ‘आधी आबादी’ यानि महिलाएं महात्मा गांधी नरेगा में पुरूषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर रोजगार सृजन कर रही हैं। महिला मेटो की नियुक्ति से कार्यस्थल में उनकी उपस्थिति और भी ज्यादा सुनिश्चित हुई है। महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों में महिला मेट नाप से लेकर रिकॉर्ड संधारण का कार्य बखूबी कर रही हैं। वे महिला मजदूरों को प्रोत्साहित भी कर रही हैं। फलस्वरूप अनेक जिलों में कार्यस्थलों में महिला मजदूरों की भागीदारी 50 प्रतिशत से अधिक हो गई है।

गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर विकासखण्ड मुख्यालय से दस किलोमीटर की दूरी पर सघन वनों के बीच ग्राम पंचायत गुन्डरदेही बसा है। वहां पंजीकृत पांच महिलो मेटों में एक श्रीमती गिरजा साहू भी है।

बदल दिए घर के हालात
मजदूर परिवार की गिरजा बारहवीं तक शिक्षित है। पहले उनका परिवार पति की रोजी-मजदूरी पर ही निर्भर था। पर अब जब से वह मेट बनी है, अपने परिवार को आर्थिक संबल प्रदान कर रही है। वर्ष 2015 से मेट का काम कर रही गिरजा ने धीरे-धीरे रकम जोड़कर अब कपड़े की एक दुकान भी खोल ली है। आय का अतिरिक्त साधन होने से परिवार की आर्थिक स्थिति अब पहले से काफी बेहतर हो गई है।

दूसरी महिलाओं को कर रही प्रेरित
गिरजा को मेट का काम करते देख गांव की केशरी ध्रुव, मंजू साहू, उर्वशी यादव और त्रिवेणी साहू भी प्रेरित हुईं और मेट का काम सीखकर अब वे भी महिला मेट के रूप में सेवाएं दे रही हैं। इन लोगों ने मनरेगा के तकनीकी सहायक से खनती की माप एवं मजदूरों का नियोजन सीखने के बाद महिला मेटों के लिए आयोजित प्रशिक्षण में पंजी संधारण एवं दस्तावेजों के रखरखाव का काम भी कुशलता से सीख लिया है। गांव में नवीन तालाब निर्माण, तालाब गहरीकरण, नाला सफाई एवं भूमि सुधार जैसे अनेक कार्यों में मेट के रूप में मजदूरों के कुशल नियोजन के साथ-साथ उन्हें जरूरी दिशा-निर्देश देने, पंजी संधारण तथा मस्टररोल में हाजिरी दर्ज करने जैसे महत्वपूर्ण काम वे कर रही हैं।

महिलाओं की 50% प्रतिशत से अधिक भागीदारी
वन क्षेत्र में स्थित होने के कारण गुण्डरदेही में खेती-किसानी का रकबा बहुत कम है। रोजगार के अन्य साधन भी कम संख्या में हैं। वहां मनरेगा कार्यों में महिला श्रमिकों की भागीदारी बढ़ाने में गांव की इन पांचों महिला मेटो का विशेष योगदान है। इनके प्रोत्साहन से पिछले तीन वर्षों में मनरेगा कार्यों में महिला श्रमिकों की भागीदारी 50 प्रतिशत से अधिक रही है। गुन्डरदेही में वर्ष 2018-19 में सृजित कुल मानव दिवस रोजगार में से 55 प्रतिशत, 2019-20 में 56 प्रतिशत और 2020-21 में करीब 54 प्रतिशत महिलाओं द्वारा सृजित किए गए हैं। गांव की महिला मेटो द्वारा आजीविका संवर्धन के कार्यों के प्रति महिलाओं को प्रोत्साहित करने से ही इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार देना संभव हो पाया है।
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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 18.10.2021 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 641, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 614, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 1246,
रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 449, सृजित मानव दिवस- 8890,
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 384, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 4430
मेट का नाम- श्रीमती गिरजा साहू पति श्री कृष्ण कुमार साहू, उम्र- 37 वर्ष, मोबाईल नं.- 8435778737
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री बुद्धेश्वर साहू, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-गरियाबंद, छत्तीसगढ़।
2. श्री अंकित वर्मा, प्रोग्रामर, जिला पंचायत-गरियाबंद, छत्तीसगढ़ ।
3. श्री कपिल नायक, तकनीकी सहायक, वि.ख.-फिंगेश्वर, जिला-गरियाबंद, छ.ग.।

लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।

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Monday, 11 October 2021

आत्मविश्वास के बूते राजकुमारी ने तय किया गृहिणी से महिला मेट तक का सफर

स्टोरी/रायपुर/बलरामपुर-रामानुजगंज/11 अक्टूबर, 2021. कल तक घर की चारदीवारी के बीच रहने वाली राजकुमारी, आज बड़े ही आत्मविश्वास के साथ मनरेगा कार्य स्थल पर श्रमिकों के बीच मस्टर रोल पर उनकी हाजिरी लेती है और उन्हें गोदी का साइज बता कर काम पर लगाती है। जिस कुशलता के साथ वे गृहिणी के किरदार में घर के कामों और जिम्मेदारियों को निभाती है; वैसी ही वह घर के बाहर महिला मेट के रूप में मनरेगा के कामों और जिम्मेदारियों को पूरा करती है।

बलरामपुर जिला के शंकरगढ़ विकासखण्ड के खरकोना गांव की निवासी श्रीमती राजकुमारी बरगाह के जीवन में आए इस बदलाव के पीछे उनके पति श्री चंद्रपाल बरगाह का प्रोत्साहन एवं संबल है। विवाह के बाद राजकुमारी भी आम गृहणियों की भांति घर को संभालने में लग गई थी। इसी दरम्यान समय-समय पर राजकुमारी में पढ़ने-लिखने के प्रति रुचि को देखते हुए पति चंद्रपाल ने उन्हें दसवीं कक्षा की परीक्षा देने के लिए प्रोत्साहित किया। लगातार प्रोत्साहन से वर्ष 2015 में उन्होंने अपनी दसवीं पूरी कर ली।

पति से मिले प्रोत्साहन और हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद राजकुमारी का आत्मविश्वास काफी बढ़ गया था, जिसके बलबूते उन्होंने मनरेगा में मेट के रूप में काम करने का निर्णय लिया। पिछले 3 साल से वे खरोकना ग्राम पंचायत में महिला मेट का काम बड़ी ही निष्ठा से कर रही हैं। अपने काम को बेहतर बनाने के उद्देश्य से उन्होंने जनपद पंचायत-शंकरगढ़ में संपन्न हुए विशेष मेट प्रशिक्षण में भागीदारी भी की थी। वे अब योजना अंतर्गत "काम की मांग लेने, काम का आबंटन, श्रमिकों की हाजिरी व उनके काम की माप-पंजी में एंट्री, कार्यस्थल पर सुविधाएं एवं समय-सीमा में काम कराने” जैसे विषयों में पारंगत हो गई हैं। उन्होंने ग्राम पंचायत में महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत वृक्षारोपण, निजी तालाब निर्माण एवं 06 किसानों की निजी भूमि पर डबरियों (फार्म पोण्ड) का निर्माण करवाया है।

श्रीमती राजकुमारी के पति किसान हैं और मनरेगा में भी मजदूरी करते हैं। घर की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए मनरेगा में मेट के रूप में काम करने का राजकुमारी का निर्णय, आज फलीभूत होता नजर आ रहा है। वे बताती हैं कि मेट के काम से मिले पारिश्रमिक से वे अब तक 27 हजार रुपए जोड़ चुकी हैं, जो उनके परिवार के लिए जरूरत के समय काम आएंगे।


मेट राजकुमारी के जीवन में आया यह बदलाव ग्रामीण क्षेत्रों में महात्मा गांधी नरेगा के एक नए आयाम को दर्शा रहा है। योजना में मेट के रूप में महिला की नियुक्ति से जहां एक ओर महिला सशक्तिकरण हो रहा है; वहीं ग्रामीण स्तर पर एक सामाजिक परिवर्तन होता भी नजर आ रहा है।

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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 11.10.2021 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 423, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 398, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 889,
रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 318, सृजित मानव दिवस- 11637, सौ-दिवस रोजगार प्राप्त परिवार- 6
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 261, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 5235,
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री अनिल कुमार गुप्ता, प्रोग्रामर, जिला पंचायत-बलरामपुर रामानुजगंज, छत्तीसगढ़।
2. श्री मुरारीलाल यादव, ग्राम रोजगार सहायक, ग्राम पंचायत-खरकोना, वि.ख.-शंकरगढ़, जिला-बलरामपुर रामानुजगंज, छ.ग.।
3. श्री अविनाश कुमार भारती, तकनीकी सहायक, वि.ख.-शंकरगढ़, जिला-बलरामपुर रामानुजगंज, छ.ग.।

लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 7 October 2021

हेमलता कभी खुद करती थीं मजदूरी, अब महिला मेट बन लोगों को दिला रही रोजगार

स्टोरी/रायपुर/कोण्डागांव/07 अक्टूबर, 2021. कोरोना काल एक ऐसा समय था, जब सभी दुकानों में ताले पड़ गये थे और विकास के पहियों पर लॉकडाउन की जंजीरे लटक रही थीं। इस समय महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) संकटमोचक के रूप में सामने आई, जिसने दैनिक मजदूरी करने वाले लोगों को नियमित रोजगार देने के साथ उनमें उम्मीद की एक किरण जगायी रखी। परंतु इस समय जब लोग घरों से निकलना भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे थे; ऐसे में लोगों को रोजगार से जोड़ने का बीड़ा कोण्डागांव जिले की ग्राम पंचायत-बड़ेडोंगर की सुश्री हेमलता यादव ने उठाया। कोरोना वॉरियर की भांति संकटकाल में वे घर-घर जाकर लोगों से रोजगार का आवेदन लेने का काम कर रहीं थी। वे लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के साथ-साथ कार्यस्थल पर कोरोना से सुरक्षा-सावधानियों की व्यवस्था के संबंध में भी जानकारी देकर उन्हें स्वस्थ कार्य परिस्थितियों के बारे में बताती थी।

फरसगांव विकासखण्ड मुख्यालय से 18 कि.मी. की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत-बड़ेडोंगर की महिला मेट की जिम्मेदारी निभा रही हेमलता यादव का जीवन संघर्षपूर्ण रहा है। वे मजदूर परिवार से होने के कारण परिवार के सदस्यों के साथ महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों में मजदूरी करने जाया करती थी, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण होता था। महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों में जाने के कारण योजना के संबंध में थोड़ी बहुत जानकारी उन्हें पहले से ही थी। इस दौरान उन्हें ग्राम रोजगार सहायक श्री दुलेन्द्र पात्र से योजनांतर्गत महिला मेट के संबंध में जानकारी प्राप्त हुई।

यह जानकारी प्राप्त होने पर बारहवीं तक पढ़ी-लिखी हेमलता यादव के भीतर उम्मीद की किरण जगी और उन्होंने अपना पंजीयन महिला मेट के रूप मे कराने के बाद जनपद पंचायत स्तर पर आयोजित तीन दिवसीय मेट-प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद कोरोना की दस्तक के साथ रोजगार कार्यों पर असर पड़ा। ऐसे में हेमलता ने हिम्मत दिखाते हुए कोरोना काल में फ्रंट लाईन वॉरियर बन कर ग्राम पंचायत में चल रहे सड़क निर्माण कार्य एवं डबरी निर्माण कार्य में महिला मेट के रूप में कार्य कर ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस संबंध में हेमलता बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा योजना में मेट के रूप मे कार्य करने से उसे ग्राम पंचायत स्तर पर बहुत-सी जानकारियां जैसे कि 'कार्ययोजना कैसे तैयार की जाती है', 'कार्य कैसे होता है', 'ग्राम पंचायत में सात पंजी एवं मेट पंजी का संधारण', 'जॉब कार्ड का अद्यतन' एवं 'कार्य स्थल में श्रमिकों का काम का आबंटन' आदि प्राप्त हुई। जिसके साथ उन्होंने रोजगार दिलाने में अपनी सहभागिता दी। वर्तमान में महिला मेट के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त होने से बेहतर कार्य करने का प्रोत्साहन मिला है। वर्तमान वित्तीय वर्ष 2021-22 में ग्राम पंचायत के 10 परिवारों को 100 दिवस का रोजगार प्राप्त हो चुका है, जिसमें उनका परिवार भी शामिल है।

इसके अलावा उन्होंने बताया कि महिला मेट के रूप में कार्य करने से उन्हें समाज में मान-सम्मान मिलने के साथ कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा, परंतु महिला मेट के रूप में कार्य करते हुए उन्हें यह आत्म संतुष्टि प्राप्त हुई कि वह संकट काल से लोगों को उबारने का कार्य कर सकी।

ग्राम पंचायत-बड़ेडोंगर के सरपंच श्री विद्यासागर नायक ने बताया कि सुश्री हेमलता यादव के कार्य से अन्य महिलाओं को मनोबल प्राप्त हुआ है। इससे ग्राम पंचायत के विकास में एवं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के कार्यों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। इस वित्तीय वर्ष में ग्राम पंचायत में कुल 9870 मानव दिवस सृजित हुआ है; जिसमें महिलाओं की सहभागिता का प्रतिशत 59.13% जबकि पुरूष श्रमिकों की भागीदारी का प्रतिशत केवल 40.87% रहा।

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एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 718, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 628, सक्रिय पंजीकृत महिला श्रमिक- 801

वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 07.10.2021 की स्थिति में,
रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 297, सृजित मानव दिवस- 9870, सौ-दिवस रोजगा प्राप्त परिवारों की संख्या- 10
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की सख्या- 316, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस-5788

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तथ्य एवं आंकड़े- 
1. श्री त्रिलोकी प्रसाद अवस्थी, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-कोण्डागांव, छत्तीसगढ़।
2. श्री पवन साहू, शिकायत समन्वयक, जिला पंचायत-कोण्डागांव, छत्तीसगढ़।
3. श्री वीरेन्द्र साहू, कार्यक्रम अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा, जनपद पंचायत-फरसगांव, जिला-कोण्डागांव, छ.ग.।

लेखन- श्री गोपाल शुक्ला, जिला जनसंपर्क कार्यालय, जिला-कोण्डागांव, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Wednesday, 6 October 2021

मनरेगा मेट पुलोजमा को मिली ‘इंजीनियर दीदी’ की नई पहचान

तालाब गहरीकरण, डबरी निर्माण से लेकर मिट्टी सड़क निर्माण में अपनी भूमिका को किया है सिद्ध.
परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाकर कर रही हैं गांव के विकास का कार्य.

स्टोरी/रायपुर/जांजगीर-चाँपा/06 अक्टूबर, 2021. पुलोजमा, अपने गांव में इंजीनियर दीदी के नाम से जानी और पहचानी जाती हैं। हर किसी की जुबान पर उनका ही नाम रहता है। गांव में जहां से भी वे निकलती हैं, सभी उनका आदर के साथ अभिवादन करते हैं और उनके काम की तारीफ करते हैं। उनकी इस पहचान के पीछे उनका अपना एक संघर्ष है। कुछ साल पहले तक वे भी आम गृहणी की तरह अपने परिवार की देखभाल में लगी रहती थी, उनकी पहचान का दायरा केवल उनके परिवार तक ही सीमित था। लेकिन एक ऐसा दिन भी आया, जब उन्हें अपनी पहचान बदलने का मौका मिला। यह मौका, उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) में महिला मेट के काम के रूप में मिला। यहीं से उनके जीवन में असली बदलाव आया और वे पिछले 10 सालों से लगातार गाँव में महिला मेट की जिम्मेदारी बखूबी निभाते आ रही हैं। उनकी कार्यशैली को देखते हुए महात्मा गांधी नरेगा के श्रमिकगण और ग्रामीणजन उन्हें इंजीनियर दीदी के नाम से बुलाने लगे हैं और यही उनकी पहचान बन गई है।

ग्राम पंचायत जूनाडीह जांजगीर-चांपा जिले के बलौदा विकासखण्ड के अंतर्गत आता है। इसी गांव की रहने वाली हैं मेट श्रीमती पुलोजमा खैरवार, जो कि अनुसूचित जनजाति वर्ग से आती हैं। वे बताती हैं कि वे संयुक्त परिवार में रहती हैं। उनके ससुर के पास एक एकड़ जमीन है, जिस पर परिवार का गुजर-बसर चलता रहा। कहते हैं कि समय हर इंसान की परीक्षा लेता है, तो उनका परिवार भी कठिन समय की परीक्षा से गुजर रहा था। बदलते पारिवारिक घटनाक्रम के चलते उनके परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उन पर ही आन पड़ी थी। आर्थिक स्थिति काफी खराब होने के कारण वे अपने बच्चों पर भी उतना ध्यान नहीं दे पा रही थी। लगातार इन परेशानियों से जूझते हुए एक दिन उन्हें ग्राम रोजगार सहायक श्री महेन्द्र कुमार चौसले के माध्यम पता चला कि महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों में मेट की आवश्यकता है। ऐसे में श्रीमती पुलोजमा की बारहवीं तक की पढ़ाई उनके काम आ गई और उन्हें 11 अक्टूबर 2011 को पंचायत से मेट का काम मिल गया।

बस फिर क्या था, पुलोजमा मेहनती तो थी ही। उन्होंने धीरे-धीरे महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत मेट का पूरा काम सीख लिया। इसके अंतर्गत कार्यस्थल पर मजदूरों की संख्या को दर्ज करना, किये जा रहे कार्यों का माप पंजी में रिकार्ड रखना, काम का आबंटन करना एवं प्रत्येक श्रमिकों के पास उसका जॉब-कार्ड रहे इसका ध्यान रखना, कार्यस्थल पर साफ पीने का पानी और प्राथमिक चिकित्सा पेटी की उपलब्धता जैसी जानकारी शामिल है। काम सीखने के बाद उनकी मेहनत रंग लाई और गांव में उनकी सराहना होने लगी। पहले साल उन्होंने 31 मार्च 2011 तक योजना में मेट के रुप में काम करते हुए 8 हजार 500 रूपए बतौर पारिश्रमिक प्राप्त किए, जिसे उन्होंने अपने परिवार के पालन-पोषण पर खर्च किया। 

कोरोना काल में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका 
जूनाडीह गांव की जनसंख्या एक हजार 62 है, जिसमें 527 महिलाएं एवं 535 पुरूष हैं। वहीं महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत 371 पंजीकृत परिवार हैं। यह जानकारी मेट श्रीमती पुलोजमा हमेशा अपने पास रखती हैं, ताकि जब भी गाँव में योजनांतर्गत कोई काम शुरु हो, तो वे जॉबकार्डधारियों को काम पर आने की सूचना दे सके। आज वे अपने काम में परिपक्व हो गई हैं। इसका उदाहरण कोरोना काल में देखने को मिला। उन्होंने कार्यस्थल पर मनरेगा श्रमिकों विशेषकर महिलाओं को कोविड-19 से बचने के उपाय बताए और उन्हें नियमित रूप से मास्क पहनने एवं समय-समय पर हाथों की धुलाई करने के साथ ही निश्चित शारीरिक दूरी बनाए रखते हुए काम करने के लिए प्रेरित किया। यही कारण रहा कि महामारी के दौरान वर्ष 2020-21 में योजनांतर्गत 548 महिलाओं ने 19 हजार 194 मानव दिवस का रोजगार प्राप्त किया। वहीं चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में अब तक 465 महिलाओं के द्वारा 10 हजार 460 मानव दिवस का रोजगार अर्जित किया जा चुका है। ग्राम रोजगार सहायक श्री महेन्द्र कुमार चौसले बताते हैं कि श्रीमती पुलोजमा मेट के रुप में काफी सक्रिय महिला हैं। वे काम के दौरान नियमित रूप से गोदी की नापजोख करते हुए उसे माप पंजी में संधारण करती हैं। इसके अलावा कार्यस्थल पर पानी की व्यवस्था, बच्चों के लिए छांव एवं चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था का ख्याल भी रखती हैं। कार्यस्थल पर जब भी कार्य शुरू होता है, तो नागरिक सूचना पटल के निर्माण की जिम्मेदारी उन्होंने बखूबी निभाई है। श्रमिक परिवारों के जॉब कार्ड को अद्यतन करने के काम में भी वे ग्राम पंचायत की मदद करती हैं।
 
सतत रूप से कार्यों की करती हैं मॉनिटरिंग 
महात्मा गांधी नरेगा के निर्माण कार्यों में गुणवत्ता का ख्याल रखने के लिए मेट श्रीमती पुलोजमा ने नियमित रूप से कार्यस्थल पर जाकर मानीटरिंग की। उनके द्वारा इस तरह से कार्यों में रूचि लेने से समय-सीमा में कार्यों का संपादन बेहतर हो सका। श्रमिकों को समय पर मजदूरी भुगतान के लिए उन्होंने मस्टर रोल भरने में ग्राम रोजगार सहायक की मदद की। यही कारण रहा कि योजना में श्रमिकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती गई और योजना में उनका विश्वास बढ़ता गया। उनके द्वारा बांध तालाब गहरीकरण, नया डबरी निर्माण, मूडा तालाब गहरीकरण, मेन रोड डबरी गहरीकरण, बरडबरी तालाब गहरीकरण, नया तालाब गहरीकरण, देवरहा तालाब गहरीकरण, नया तालाब गहरीकरण, पानी पिया तालाब गहरीकरण, कार्तिक पटेल के घर से जंगल तक मिट्टी सड़क निर्माण, मेन रोड से आंगनबाड़ी भवन तक मिट्टी सड़क निर्माण के कार्यों में अहम भूमिका निभाई गई। 

परिवार की जिम्मेदारी को उठाया कंधों पर 
मेट श्रीमती पुलोजमा बताती हैं कि उनके परिवार की जिम्मेदारी उनके ही कंधों पर है। परिवार में ससुर श्री मायाराम खैरवार, सास श्रीमती रथबाई, बेटा श्री सौम्य, कैलाश और विशाल, ननंद विजय कुमारी हैं। मेट के रूप में कार्य करते हुए जो राशि मिलती है, उससे ही वे अपने परिवार का भरण-पोषण करती हैं।

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तथ्य एवं आंकड़े- 
1. श्री हृदय शंकर, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बलौदा, जिलाः जांजगीर-चाँपा, छत्तीसगढ़।
2. श्री महेन्द्र कुमार चौसले, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-जूनाडीह, जिलाः जांजगीर-चाँपा, छत्तीसगढ़।
लेखन - श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायतः जांजगीर-चाँपा, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...