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Monday, 24 January 2022

पटपर नरवा को मिला पुनर्जीवन

रबी फसल के लिए किसानों को मिल रहा पानी.
महात्मा गांधी नरेगा से 48.31 लाख रूपए की लागत से हो रहा नरवा उपचार.
तीन गांवों के किसानों को फायदा.

रायपुर, 24 जनवरी 2022. विलुप्त होते नरवा (नालों) के पुनर्जीवन की कोशिशें अब रंग ला रही हैं। राजनांदगांव जिले का ठाकुरटोला-गर्रा नरवा जिसे 'पटपर' नरवा के नाम से भी जाना जाता है, अब जनवरी के महीने में भी नजर आ रहा है। ग्राम पंचायत की पहल और किसानों की मेहनत तथा महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से 48 लाख 31 हजार रूपए की लागत से हो रहे नरवा उपचार के कार्यों ने इस नाले को पुनर्जीवित कर दिया है। नरवा उपचार के बाद वहां ठहरे पानी से पटपर गांव के 20 किसान 50 एकड़ में रबी की फसल ले रहे हैं। पटपर नरवा के संरक्षण और संवर्धन के लिए वर्ष-2019 में स्वीकृत 27 कार्यों में से 20 अब पूरे हो चुके हैं। इस दौरान गर्रा पंचायत के 521 मनरेगा श्रमिकों को 31 हजार 231 मानव दिवस का रोजगार भी मिला है। नरवा उपचार के लिए पटपर गांव में नया तालाब भी निर्माणाधीन है।

राजनांदगांव जिले के छुईखदान विकासखण्ड मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर गर्रा ग्राम पंचायत है। इसके आश्रित गांव पटपर में कोहकाझोरी बांध के नजदीक की पहाड़ी से पटपर नरवा का उद्गम होता है। गर्रा, पटपर और ग्राम पंचायत के एक अन्य आश्रित ग्राम जुझारा से होकर यह लगभग 7.77 किलोमीटर की यात्रा करते हुए एक दूसरे नरवा मंडीपखोल में जाकर मिल जाता है। पटपर नरवा का कुल जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेन्ट एरिया) 1006.5 हेक्टेयर है। वन क्षेत्र में इसकी लम्बाई 3.62 किलोमीटर और राजस्व क्षेत्र में 4.15 किलोमीटर है, जबकि जलग्रहण क्षेत्र क्रमशः 394.89 हेक्टेयर और 611.61 हेक्टेयर है।

नरवा ड्रेनेज लाईन ट्रीटमेंट
पटपर नरवा में पानी को रोकने के लिए लूज बोल्डर चेकडेम की छह और गेबियन की दो संरचनाएं बनाई गई हैं। चार लाख 68 हजार रूपए की लागत की इन संरचनाओं के निर्माण से अब पहाड़ी से आने वाले पानी का बहाव धीमा हो गया है। इससे भू-जल स्तर में सुधार देखने को मिला है। नरवा में पानी रूकने से आसपास की जमीन में नमी की मात्रा बनी रहने लगी है, जिससे इसके दोनों ओर के 20 किसान लाभान्वित हुए हैं। नरवा उपचार के लिए जुझारा गांव में भी छह संरचनाओं का निर्माण प्रस्तावित है। इसके बनने से वहां के 12 किसान प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होंगे और उनके कुल 30 एकड़ खेत तक पानी पहुंचेगा।

कैचमेन्ट एरिया (सतही क्षेत्र) ट्रीटमेन्ट
वहीं पटपर नरवा के कैचमेन्ट एरिया में जल-संचय व संवर्धन के लिए पटपर में श्मशान घाट के पास एक नए तालाब के निर्माण के साथ ही गिट्टी खदान के पास स्थित तालाब का गहरीकरण किया गया है। पटपर में नए तालाब की खुदाई भी प्रगतिरत है। नरवा से लगी जमीन वाले किसानों सर्वश्री करण, हरीराम, लोकेश, रोशन, परदेशी, सुन्दरलाल, सुखदेव और केदार के खेतों में भूमि सुधार और मेड़ बंधान का कार्य भी कराया गया है। इसके अंतर्गत खेतों के मेड़ की ऊंचाई को अपेक्षाकृत ज्यादा रखा गया है, ताकि नरवा में पानी के तेज बहाव से खेतों को नुकसान नहीं पहुंचे। नरवा उपचार के बाद इन किसानों के कुल 28 एकड़ खेत में धान की भरपूर पैदावार हुई है। अभी इन किसानों ने उन खेतों में चना बोया है।

नरवा पर बनाए गए विविध संरचनाओं का सीधा लाभ ग्रामीणों व किसानों को जल संग्रहण और सिंचाई सुविधा के रूप में मिल रहा है। किसान श्री हरीराम 'पटपर नरवा' के पुनरूद्धार से हो रहे फायदे के बारे में बताते हैं कि वे पहले अपने तीन एकड़ जमीन पर एक बोर के सहारे केवल सोयाबीन और चना की ही खेती करते थे। पर इस बार भूमि सुधार के बाद बोर के साथ ही नरवा में रूके पानी का उपयोग कर उन्होंने साढ़े चार एकड़ में चना, धान और गेहूं की फसल ली है। इससे खेती से होने वाली उसकी कमाई बढ़ी है। वह क्षेत्र में नरवा उपचार के कार्यों से बेहद खुश है।

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एक नजर (27.12.2021 की स्थिति में) -
ग्राम पंचायत- गर्रा, विकासखण्ड- छुईखदान, जिला- राजनांदगांव, जी.पी.एस. लोकेशन- 21°36'47.9"N 80°57'24.3"E,
पटपर नरवा विकास कार्यक्रम में शामिल गांवों का नाम- गर्रा, पटपर एवं जुझारा,
क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, पिनकोड- 491888

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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री विमल सिंह ठाकुर, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़।
2. श्री जीवन सोरी, ग्राम रोजगार सहायक, ग्राम पंचायत-गर्रा, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़।
रिपोर्टिंग- श्री सिध्दार्थ जैसवाल, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़।
लेखन एवं संपादन-
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 17 August 2021

हिकारत से देखने वाले अब इन्हें ‘स्वच्छता दीदी’ कहते हैं

महात्मा गांधी नरेगा और स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अभिसरण से बने
सेग्रिगेशन शेड ने बदली गम्हरिया की सूरत.

गांव के कचरे का निस्तारण कर महिलाओं ने कमाए 63 हजार रूपए.



स्टोरी/रायपुर/जशपुर/17 अगस्त, 2021. महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अभिसरण से बने सेग्रिगेशन शेड ने जशपुर जिले के गम्हरिया गांव की सूरत बदल दी है। वहाँ की ‘स्वच्छता दीदियां’ कचरे का निस्तारण कर गाँव की सड़कों, गलियों और चौक-चौराहों को स्वच्छ रखने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। खुले में शौचमुक्त गाँव बनने के बाद अब गम्हरिया प्लास्टिक एवं कूड़ा-करकट मुक्त ग्राम पंचायत भी बन गया है। सड़कों, गलियों और चौक-चौराहों पर फेंके जाने वाले कचरे को वहाँ की ‘सूरज स्वसहायता समूह’ की महिलाओं ने अतिरिक्त कमाई का जरिया बनाया है। पिछले एक साल में इस समूह ने कचरे के निस्तारण और यूजर चार्ज से 63 हजार रूपए कमाए हैं।

कचरा संकलन तथा उसे अलग-अलग कर निस्तारित करने का काम इन महिलाओं के लिए सहज-सरल नहीं था। शुरूआत में जब वे रिक्शा लेकर कचरा संकलन के लिए घर-घर जाती थीं, तो लोग उन्हें ऐसे देखते थे जैसे वे कोई खराब काम कर रही हों। लोगों की हिकारत भरी नजरों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और ग्राम पंचायत के सहयोग से इस काम को जारी रखा। इनके काम से गाँव लगातार साफ-सुथरा होते गया, तो लोगों का नजरिया भी बदलने लगा। अब गाँववाले इन्हें सम्मान के साथ ‘स्वच्छता दीदी’ कहकर पुकारते हैं।

गम्हरिया की सूरज स्वसहायता समूह की महिलाएँ सफाई मित्र के रूप में घर-घर जाकर कचरा संकलित करती हैं। सेग्रिगेशन शेड यानि ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन केन्द्र में वे संकलित कचरा में से उनकी प्रकृति के हिसाब से उन्हें अलग-अलग करती हैं। कूड़े-कचरे के रूप में प्राप्त पॉलीथिन, खाद्य सामग्रियों के पैकिंग रैपर, प्लास्टिक के सामान, लोहे का कबाड़ एवं कांच जैसे ठोस अपशिष्टों को अलग-अलग करने के बाद बेच दिया जाता है। समूह की सचिव श्रीमती सुनीता कुजूर बताती हैं कि पंचायत द्वारा निर्मित सेग्रिगेशन शेड (कचरा संग्रहण केंद्र) में समूह की 12 महिलाएं जुलाई-2020 से कार्य कर रही हैं। शेड में एकत्रित ठोस कचरे की बिक्री से समूह को अब तक 28 हजार रूपए की कमाई हुई है। समूह द्वारा डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन के लिए हर घर से प्रति माह दस रूपए और दुकानदारों से प्रति दुकान हर महीने 20 रूपए का यूजर चार्ज (स्वच्छता शुल्क) लिया जाता है। बीते एक साल में समूह के पास 35 हजार रूपए का यूजर चार्ज इकट्ठा हुआ है।

गाँव के सरपंच श्री विलियम कुजूर बताते हैं कि ग्राम पंचायत के प्रस्ताव पर ग्रामसभा के अनुमोदन के बाद महात्मा गांधी नरेगा से दो लाख 69 हजार रूपए और स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) से एक लाख 85 हजार रूपए के अभिसरण से कुल चार लाख 54 हजार रूपए की लागत से सेग्रिगेशन शेड (ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन केन्द्र) बनाया गया है। इस काम में गाँव के छह परिवारों के 11 श्रमिकों को 74 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हुआ था। इसके लिए उन्हें 13 हजार रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया। महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से निर्मित इस परिसम्पत्ति से गांव में स्वच्छता अभियान को नई दिशा मिली है। साथ ही गाँव की 12 महिलाओं को कमाई का अतिरिक्त साधन भी मिला है।
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एक नजरः-
ग्राम पंचायत- गम्हरिया, विकासखण्ड- जशपुर, जिला- जशपुर,
कार्य का नाम- स्व सहायता समूह के लिए वर्क शेड, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, पिनकोड- 496331
स्वीकृत वर्ष- 2018-19, पूर्णता वर्ष- 2020-21,
स्वीकृत राशि- रुपए 4.54 लाख (महात्मा गांधी नरेगा- 2.69 लाख व स्वच्छ भारत मिशन-ग्रा. – 1.85 लाख),
सृजित मानव दिवस- 74, मजदूरी भुगतान- रुपए 13,024.00, व्यय राशि- 4.16 लाख, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 11
कार्य का कोड- 3307012012/AV /1111321308, जी.पी.एस. लोकेशन- 22°52'22.6164"N 84°9'44.892"E
 
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रिपोर्टिंग – श्री शशिकांत गुप्ता, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-जशपुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य व आंकड़े – श्री राजेश जैन, जिला सलाहकार, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री अश्वनी व्यास, समन्वयक (शिकायत निवारण), जिला पंचायत-जशपुर, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Monday, 2 August 2021

खेतों में पेड़ों के बीच फसलें उगाईं तो होने लगी लाखों की कमाई

महात्मा गांधी नरेगा फलोद्यान ने बदली किसानों की तकदीर, आम उत्पादक किसान के रुप में मिली नई पहचान


स्टोरी/रायपुर/दंतेवाड़ा/02 अगस्त, 2021. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी नरेगा) से मिले संसाधनों और परस्पर सहकार की भावना ने दंतेवाड़ा के आठ किसानों की जिंदगी बदल दी है। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से लगे गीदम विकासखण्ड के कारली गाँव के आठ आदिवासी किसानों ने करीब दस हेक्टेयर भूमि में महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से आम के एक हजार पौधों लगाए थे। दस साल पहले रोपे गए ये पौधे अब 10 से 12 फीट के हरे-भरे फलदार पेड़ बन चुके हैं। पिछले छह वर्षों से ये किसान आम के पेड़ों के बीच अंतरवर्ती फसल के रुप में सब्जियों, दलहन-तिलहन एवं धान की उपज भी ले रहे हैं। आम की पैदावार के साथ अंतरवर्तीय खेती से उन्हें सालाना चार से पाँच लाख रुपयों की अतिरिक्त कमाई हो रही है। ये किसान अब अपने इलाके में आम उत्पादक कृषक के रुप में भी जाने-पहचाने लगे हैं।

दंतेवाड़ा कृषि विज्ञान केन्द्र और कारली गाँव के आदिवासी किसान श्री राजूराम कश्यप आम से खास बनने की इस कहानी के नायक हैं। श्री कश्यप के खेत की सीमा से गाँव के ही श्री छन्नू, श्री दसरी, श्री अर्जुल, श्री झुमरलाल, श्री पाली, श्री सुन्दरलाल और श्री पाओ की कृषि भूमि लगती है। इन आठों किसानों की कुल 16 हेक्टेयर जमीन में से दस हेक्टेयर सिंचाई के साधनों के अभाव में वर्षों से बंजर पड़ी थी। श्री राजूराम कश्यप की सबसे ज्यादा दो हेक्टेयर जमीन अनुपयोगी पड़ी थी। अपनी और साथी किसानों की इस समस्या को लेकर उन्होंने दंतेवाड़ा के कृषि विज्ञान केन्द्र में संपर्क किया। वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होंने साथी किसानों से चर्चा कर खाली पड़ी जमीन पर फलदार पौध लगाने की योजना पर काम शुरु किया।

किसानों की सहमति मिलने के बाद, कृषि विज्ञान केन्द्र ने वर्ष 2011-12 में महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत नौ लाख 56 हजार रुपयों की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त कर 25 एकड़ बंजर भूमि का फलोद्यान के रुप में विकसित करने का काम शुरु किया। वैज्ञानिक पद्धति से वहाँ एक हजार आम के पौधे रोपे गए, जिनमें 500 नग दशहरी और 500 नग बैगनफली प्रजाति के थे। प्रत्येक पौधों के बीच दस-दस मीटर की दूरी रखी गई, ताकि उनकी वृद्धि अच्छे से हो सके। समय-समय पर खाद का भी छिड़काव भी गया। परियोजना की सफलता के लिए यह जरुरी था कि फलोद्यान के संपूर्ण प्रक्षेत्र को सुरक्षित रखा जाए। इसके लिए 13वें वित्त आयोग की राशि के अभिसरण से 12 लाख 58 हजार रूपए की लागत से तार फेंसिग की गई एवं सिंचाई के लिए दो ट्यूबवेल भी खोदे गए। प्रक्षेत्र के आकार देखते हुए सिंचाई के साधनों की उपलब्धता एवं भू-जल स्तर बनाए रखने के लिए महात्मा गांधी नरेगा से आठ लाख 64 हजार रूपए की लागत से पांच कुंओं का भी निर्माण किया गया।

फलोद्यान के शुरूआती तीन सालों में पौधरोपण एवं संधारण के काम में भू-स्वामी आठ किसानों के साथ ही गांव के 45 अन्य परिवारों को भी सीधा रोजगार मिला। इस दौरान 3072 मानव दिवसों का रोजगार सृजन कर उन्हें पांच लाख आठ हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। दस साल पहले रोपे गए इन पौधों से अब हर साल चार हजार किलोग्राम आम का उत्पादन हो रहा है। इनकी बिक्री से किसानों को सालाना लगभग दो लाख रूपए की आय हो रही है।

कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. नारायण साहू बताते हैं कि इस परियोजना में शामिल आठों किसानों को आम के उत्पादन और अंतरवर्ती खेती के बारे में गहन प्रशिक्षण दिया गया है। इनकी मेहनत व लगन तथा कृषि विज्ञान केन्द्र के सुझावों को गंभीरता से अमल में लाने के कारण अच्छी पैदावार और अच्छी कमाई हो रही है। वे बताते हैं कि वृक्षारोपण के दौरान प्रत्येक पौधे के बीच दस-दस मीटर की दूरी रखी गई थी, जिनके बीच इन्हें अंतरवर्ती फसलों की खेती का भी प्रशिक्षण दिया गया था। अभी ये किसान बगीचे में सात हेक्टेयर में धान तथा एक हेक्टेयर में दलहन, एक हेक्टेयर में तिलहन और एक हेक्टेयर में सब्जियों की पैदावार ले रहे हैं। अंतरवर्ती फसलों से वे हर साल लगभग दो लाख रूपए की अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं।
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एक नजरः-

ग्राम पंचायत- कारली, विकासखण्ड- गीदम, जिला- दंतेवाड़ा,
क्रियान्वयन एजेंसी- कृषि विज्ञान केन्द्र, दंतेवाड़ा, जी.पी.एस. लोकेशन- 18°56'20.0"N 81°20'56.9"E, पिनकोड- 494441
अ) महात्मा गांधी नरेगा से
1. कार्य का नाम- फलदार आम बाग वृक्षारोपण (अवधि-3 वर्ष), कार्य का कोड- 3312005/DP/1014347,
स्वीकृत वर्ष- 2011-12, स्वीकृत राशि- रुपए 9.56 लाख, सृजित मानव दिवस- 3072, मजदूरी भुगतान- रुपए 5.08 लाख

2. कार्य का नाम- कूप निर्माण (6 नग), कार्य का कोड- 3312005021/IF/12141084, स्वीकृत वर्ष- 2011-12,
स्वीकृत राशि- रुपए 8.64 लाख, सृजित मानव दिवस- 1393, मजदूरी भुगतान- रुपए 0.86 लाख

ब) 13वें वित्त से
1. कार्य का नाम- तार फेंसिग व ट्यूब वेल खनन, स्वीकृत वर्ष- 2011-12, स्वीकृत राशि- रुपए 12.98 लाख

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परियोजना में शामिल हितग्राहीवार रकबाः-
क्रमांक
हितग्राही का नाम कुल रकबा (हे.) वृक्षारोपण हेतु उपयोग रकबा (हे.)
1. श्री राजूराम कश्यप 3.10 2
2. श्री छन्नू 2.60 1.50
3. श्री दसरी 1.30 0.70
4. श्री अर्जुल 1 0.30
5. श्री झुमरलाल 2.70 2
6. श्री पाली 2 1.5
7. श्री सुन्दरलाल 1.5 0.80
8. श्री पाओ 1.80 1.20

 

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रिपोर्टिंग - श्री राजेश वर्मा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़।
तथ्य व आंकड़े - डॉ. नारायण साहू, वरिष्ठ वैज्ञानिक व केन्द्र प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र, जिला-दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

Friday, 23 July 2021

मनरेगा से बुडरा नरवा को मिला नया जीवन

खरीफ के साथ अब रबी फसलों के लिए भी मिल रहा पानी.
बमुश्किल सितम्बर तक बहने वाले बुडरा नरवा में अब फरवरी तक पानी, पंचायत की डेढ़ साल की मेहनत रंग लाई.


जल-संचय और जल-स्रोतों के संरक्षण-संवर्धन के लिए महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के माध्यम से हो रहे कार्यों से खेती-किसानी को मजबूती मिल रही है। इनके जरिए सिंचाई सुविधाओं के विस्तार से किसानों की आजीविका सशक्त हो रही है। कोंडागांव में बुडरा नरवा (नाला) के उपचार से 25 किसानों को खरीफ के साथ ही रबी फसलों के लिए भी पानी मिल रहा है। पहले बमुश्किल सितम्बर माह तक बहने वाले नरवा के ड्रेनेज ट्रीटमेंट और कैचमेंट एरिया ट्रीटमेंट के बाद अब यह फरवरी माह तक बह रहा है। ग्राम पंचायत द्वारा बुडरा नरवा के पुनर्जीवन के लिए किए गए योजनाबद्ध कार्यों ने किसानों की खुशहाली और समृद्धि का रास्ता खोल दिया है।

कोंडागांव जिले के माकड़ी विकासखंड मुख्यालय से पांच किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत पीढ़ापाल है, जहां से होकर यह बुडरा नरवा बहता है। नजदीक के राकसबेड़ा गांव के घने जंगलों से निकलने वाला यह नरवा पीढ़ापाल ग्राम पंचायत की सीमा से होकर करीब पांच किलोमीटर की यात्रा करते हुए नारंगी नदी में जाकर मिल जाता है। महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से नरवा उपचार के बाद कभी सितम्बर तक सूख जाने वाले इस नरवा में अब बरसात के बाद पांच महीनों तक पानी भरा रहता है। बुडरा नरवा की इस कायापलट में पीढ़ापाल पंचायत की डेढ़ साल की मेहनत लगी है। वहां नरवा उपचार के तहत नरवा के भीतर और उसके सतह क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) में जल संरक्षण एवं जल संवर्धन के कई कार्य किए गए हैं, जिससे आसपास के क्षेत्र में हरियाली की चादर फैली रहती है।

33 संरचनाओं के माध्यम से किया गया है नरवा ड्रेनेज ट्रीटमेंट


नरवा पुनर्जीवन की इस परियोजना पर तकनीकी मार्गदर्शन दे रही तकनीकी सहायक सुश्री बुधमनी पोयाम बताती हैं कि पिछले साल (2020 में) जनवरी-फरवरी में बुडरा नाले के भीतर “ड्रेनेज लाइन ट्रीटमेंट” और नरवा के बाहरी हिस्से में “कैचमेंट एरिया ट्रीटमेंट” के लिए महात्मा गांधी नरेगा से जल संरक्षण एवं जल संचय के लिए संरचनाओं का निर्माण कार्य शुरू किया गया था। ड्रेनेज लाइन ट्रीटमेंट के अंतर्गत नरवा के भीतर ब्रशवुड चेकडेम की 22, अर्दन गलीप्लग की चार, लूज बोल्डर चेकडेम की तीन और अंडरग्राउंड डाइक की चार जल संरक्षण संरचनाएं बनाई गईं। इससे जहां जलस्तर में सुधार देखने को मिल रहा है, वहीं नरवा से लगी भूमि में नमी की मात्रा बनी रहने लगी है। इससे आसपास के 25 किसान लाभान्वित हो रहे हैं।

कैचमेंट एरिया ट्रीटमेंट के लिए बनाई गईं रिचार्ज पिट एवं डबरियां

बुडरा नरवा का कैचमेंट एरिया करीब 791 हेक्टेयर है। इतने बड़े क्षेत्र में गिरने वाले वर्षा जल को संरक्षित कर भू-जल का स्तर बढ़ाने के लिए 150 रिचार्ज पिट बनाए गए हैं। कैचमेंट एरिया ट्रीटमेंट के लिए स्वीकृत दस डबरियों में से छह डबरियां भी बना ली गई हैं।
डबरी निर्माण से भू-जल स्तर में वृद्धि के साथ-साथ खेतों में जल संचय का साधन भी किसानों को मिल गया है। इसका उपयोग वे अल्प वर्षा या खेतों के सूखने की स्थिति में अपनी फसलों को बचाने में कर रहे हैं। बुडरा नरवा के उपचार से लाभान्वित होने वाले किसान श्री बिसरू के खेत में जल संग्रह के साधन के रूप में डबरी का निर्माण करवाया गया है। इस वर्ष उन्होंने डबरी की बदौलत पहली बार मक्के की उपज अपने खेतों में ली है। श्री सोमाराम और श्री रसन लाल के खेत भी इस नरवा से लगे हुए हैं। नरवा उपचार के बाद इन दोनों ने भी पहली बार रबी फसल लगाकर इस साल अतिरिक्त कमाई की है।

-0-


एक नजरः-
कार्य का नाम- बुडरा नरवा उपचार अंतर्गत जल संरक्षण एवं जल संचय की संरचनाओं का निर्माण,
ग्राम पंचायत- पीढ़ापाल, विकासखण्ड- माकड़ी, जिला- कोण्डागांव,
ड्रेनेज ट्रीटमेंट अंतर्गत नाले में हुए कार्यों का विवरणः-

स.क्रं.

कार्य का नाम

संख्या

कुल राशि

सृजित मानव दिवस

1.

ब्रशवुड चेकडेम

22

29,062.00

46

2.

अर्दन ग्लीप्लग

4

10,640.00

24

3.

लूज बोल्डर चेकडेम

3

27,590.00

27

4.

अंडरग्राउंड डाइक

4

1,20,694.00

301


एरिया ट्रीटमेंट अंतर्गत नाले में हुए कार्यों का विवरणः-

स.क्रं.

कार्य का नाम

संख्या

कुल राशि

सृजित मानव दिवस

1.

रिचार्ज पिट

150

1,67,014.00

802

2.

डबरी निर्माण

6

14,28,020.00

7580


जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude : 19°45'25.91" N, Longitude : 81°56'34.98"E, पिनकोड- 494237

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रिपोर्टिंग - श्री त्रिलोकी प्रसाद, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-कोंडागाँव, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं आंकड़े - सुश्री सारिका देवांगन, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-माकड़ी, जिला-कोण्डागांव, छत्तीसगढ़।
लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन - श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग - श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 15 July 2021

मनरेगा ने किया सपना पूरा

सुकमन के खेत में मछलीपालन के लिए बना तालाब, पानी की कमी से अब खेत भी नहीं सूखेंगे.


मछलीपालक दोस्तों के साथ उठते-बैठते कृषक श्री सुकमन मरकाम के मन में भी सपना पला कि उनका भी एक निजी तालाब हो तो मछलीपालन कर वे अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। वे गांव के अधिकांश किसानों की तरह वर्षा आधारित खेती करते हैं। सिंचाई का साधन नहीं होने के कारण बरसात के बाद कोई और फसल लेने की संभावना नहीं थी। अपने साथियों से वे मछलीपालन से कम समय में होने वाली कमाई के बारे में सुनते रहते थे। इसने उनके मन में भी मछलीपालन का सपना जगा दिया था।

धमतरी जिले के नगरी विकासखंड के सरईटोला (मा.) ग्राम पंचायत के आश्रित गांव गट्टासिल्ली (रै.) के किसान श्री सुकमन मरकाम का यह सपना महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) ने पूरा कर दिया है। उन्होंने मछलीपालन के लिए अपनी निजी जमीन पर तालाब की मांग ग्राम पंचायत से साझा की। ग्राम पंचायत की पहल से मनरेगा से उनके लिए तीन लाख रूपए की लागत से निजी तालाब के निर्माण का कार्य स्वीकृत हो गया। पिछले साल नवम्बर में तालाब की खुदाई शुरू हुई और इस वर्ष मई में इसका काम पूरा हो गया। तालाब खुदाई के दौरान गांव के 76 श्रमिकों को 1 हजार 424 मानव दिवस का रोजगार प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें दो लाख 71 हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। श्री सुकमन मरकाम के परिवार को भी इस काम में 54 मानव दिवस का सीधा रोजगार मिला, जिसके एवज में उन्हें दस हजार 260 रूपए की मजदूरी मिली।

महात्मा गांधी नरेगा से श्री सुकमन मरकाम के खेत में 30 मीटर लंबाई और इतनी ही चौड़ाई का तालाब खोदा गया है। वे बताते हैं कि आसपास के जलस्रोतों और बारिश के पानी से तालाब भर गया है। उन्होंने इसमें सात किलो मछली बीज (स्पान) डाला है। कुछ दिनों बाद बाजार में बेचने लायक मछलियाँ तैयार हो जाएंगी और श्री सुकमन मरकाम का सपना साकार हो जाएगा। तालाब के पानी से अल्प वर्षा की स्थिति में वे अपने खेतों की सिंचाई भी कर सकेंगे। महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित यह तालाब श्री सुकमन को आजीविका के लिए मछलीपालन का मजबूत विकल्प देने के साथ ही सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराकर उनके फसलों की पैदावार भी बढ़ाएगा। इससे उनकी कमाई बढ़ेगी और परिवार की आर्थिक समृद्धि का रास्ता खुलेगा।

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एक नजरः-

कार्य का नाम- निजी तालाब निर्माण, हितग्राही- श्री सुकमन मरकाम पिता श्री देवसिंह,
ग्राम पंचायत- सरईटोला (मा.), विकासखण्ड- नगरी, जिला- धमतरी, कार्य का कोड- 3309003024/IF/1111476417,
स्वीकृत वर्ष- 2020-21, स्वीकृत राशि- रुपए 3 लाख, सृजित मानव दिवस- 1424, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 76,
मजदूरी भुगतान- रुपए 2,70,875.00 मात्र, कुल व्यय राशि- रुपए 2,75,875.00 मात्र
जी.पी.एस. लोकेशन- 20°26'32.41" N 81°50'21.41"E, पिनकोड- 493773
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रिपोर्टिंग - श्री डुमन लाल ध्रुव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं आंकड़े - श्री आयुष झा, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-नगरी, जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़।
लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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0 माह- जुलाई, 2021 (स्त्रोतः जिला पंचायत-धमतरी)

Monday, 5 July 2021

मनरेगा ने तैराकी की पाठशाला को किया पुनर्जीवित

तालाब गहरीकरण के बाद निस्तारी के साथ ही सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी


शारीरिक तंदुरूस्ती के लिए तैराकी को सबसे अच्छे व्यायामों में से एक माना जाता रहा है। इससे एक ओर जहां शरीर में स्फूर्ति आती है, तो वहीं दूसरी ओर निरंतर अभ्यास से हड्डियां भी मजबूत बनती हैं। गांवों में बच्चे और बड़े पहले तालाबों, पोखरों, नदी-नहरों में तैराकी और जल-क्रीड़ा करते थे। लेकिन तालाबों की अनदेखी और उनके गंदगी से पटने के कारण बच्चों-बड़ों की ये गतिविधि सिमटते गई। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से रोजगार के साथ ही तालाबों के संरक्षण और पुनर्जीवन के काम भी हो रहे हैं। इसके माध्यम से नए तालाबों की खुदाई तथा पुराने तालाबों की साफ-सफाई, गहरीकरण और गाद निकासी के बाद वर्षा जल के भराव से ये जल-क्रीड़ा और तैराकी जैसी गतिविधियों की पाठशाला बन गए हैं। यहाँ अब बच्चे पहले की तरह बड़ों के मार्गदर्शन में तैराकी का हुनर सीख रहे हैं।

जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर बोकरामुड़ा गांव के इस तालाब को महात्मा गांधी नरेगा से नया जीवन मिला है। अब वापस तैराकी की पाठशाला बन चुका बलौदा विकासखंड के इस गांव का यह तालाब कुछ समय पहले तक गंदगी और गाद से लगभग पट चुका था। इस साल की गर्मी में यह करीब-करीब सूख ही गया था। कभी गांव में निस्तारी, खेती-किसानी और बच्चों की जल-क्रीड़ा का केन्द्र रहे इस तालाब की हालत ने गांववालों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी थीं।

सरपंच श्री जगजीवन ने ग्रामीणों के साथ मिलकर इसका समाधान निकाला और ग्रामसभा में इसके गहरीकरण का प्रस्ताव स्वीकृत कराकर इस साल फरवरी में काम शुरू करवाया। महात्मा गांधी नरेगा श्रमिकों की तीन महीनों की मेहनत से अप्रैल-2021 में तालाब के गहरीकरण व पचरी निर्माण का काम पूरा होने के बाद अब यह अपने पुराने समृद्ध स्वरुप में नजर आने लगा है। लॉक-डाउन के बीच मार्च-अप्रैल में महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत तालाब गहरीकरण का काम चला। इसमें गांव के 155 परिवारों को 4232 मानव दिवसों का सीधा रोजगार प्राप्त हुआ। इसके एवज में ग्रामीणों को सात लाख 52 हजार रूपए की मजदूरी का भुगतान किया गया।

तैराकी के प्रति रुझान बढ़ा, निस्तारी के साथ खेती के लिए मिला पानी
बोकरामुड़ा के इस तालाब में जल-क्रीड़ा करने आने वाले बच्चे आयुष, आर्यन, ध्रुव, सुरेन्द्र और साहिल कहते हैं कि गहरीकरण के पहले यह इतना स्वच्छ एवं सुंदर नहीं था। अब तालाब का पानी साफ-सुथरा हो गया है। हमें यहां रोज तैराकी करने में बहुत मजा आता है। किसान श्री सुकदेव रजक, श्री नाथूराम रजक, श्री संतोष दास, श्री मोहनलाल एवं श्री रामाधार बताते हैं कि तालाब के गहरीकरण के बाद अब गांव में निस्तारी के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध है। तालाब में बारिश का पानी भरने लगा है। इससे खेती के लिए पानी मिलेगा और आसपास के जलस्रोतों का भूजल स्तर भी बढ़ेगा।


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माह- जुलाई, 2021

 रिपोर्टिंग व लेखन             - श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-जाँजगीर चाम्पा, छ.ग.।

 
पुनर्लेखन व सम्पादन प्रथम - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, विकास भवन, नार्थ ब्लॉक, सेक्टर-19, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
अंतिम संपादन                 - श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क अधिकारी, जनसंपर्क संचालनालय, छत्तीसगढ़ ।
प्रूफ रिडिंग                      - श्री महेन्द्र कहार

 

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Wednesday, 3 February 2021

दलदली जमीन पर पानी से लबालब हुए तालाब, अब भेड़सर नहीं रहा लद्दी वाला गाँव

दलदली जमीन पर पानी से लबालब हुए तालाब,
अब भेड़सर नहीं रहा लद्दी वाला गाँव

-महात्मा गांधी नरेगा से बदली गाँव की तस्वीर.
-योजना के तहत गाँव में तालाबों और डबरियों की खुदाई से बनी पानी की उपलब्धता.

दिनांक-03 फरवरी 2021/ जिला मुख्यालय दुर्ग से 18 किलोमीटर दूर है भेड़सर गाँव। एक समय था जब इस गाँव को लद्दी वाले गाँव के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इस गाँव की पहचान बदलने लगी है। दलदली और लद्दी वाली जमीन अब तालाब का रुप ले चुकी है। अब यहां पानी से लबालब तालाब और डबरियाँ हैं। इसके अलावा नालों की सफाई और गहरीकरण से यहाँ का परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है। गाँव को विकसित करने के लिए जब गाँव के लोगों ने जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली, तो एक तरफ जहाँ गाँव की तस्वीर बदलने लगी तो वहीं दूसरी तरफ गाँव के लोगों के आर्थिक हालात भी सुधरने लगे। यह सब कुछ संभव हुआ है पंचायत की पहल, ग्रामीणों की मेहनत और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से।

दलदली और बंजर जमीन पर खुदवाए गए तालाब और डबरियाँ
पानी विकास का आधार है, इसी बात को ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी नरेगा योजना अंतर्गत दुर्ग विकासखण्ड के इस गाँव में तालाब तथा खेतों में डबरी खुदवाने के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया गया। पहले पहले जहाँ दलदली और बंजर भूमि थी, वहाँ तालाब का निर्माण कराया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि गाँव में निस्तारी और सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी मिलने लगा, इससे भू-जल का स्तर भी सुधरने लगा। तालाब और डबरी निर्माण के लिए गाँव के ही लोगों को लगाया गया और इसमें उन्हें अकुशल श्रम के रुप में रोजगार भी मिला। अब गाँव में नगपुरा हरदेलाल मार्ग के किनारे नया तालाब निर्माण एवं नहर नाली के पास सार्वजनिक डबरी के रुप में नए जल स्रोत बन गए हैं। वहीं कलेन्द्री ठाकुर के खेत के पास नई सार्वजनिक डबरी की खुदाई प्रगतिरत है। इसके अलावा गाँव के पुराने मतखानवा तालाब, ठेठवार तालाब तथा मछरिया खार में बने नए तालाब के गहरीकरण का कार्य जारी है। आने वाले कुछ दिनों में इस गाँव में पानी के सार्वजनिक स्रोत बढ़ जाएँगे, जिनका लाभ गाँव, ग्रामीण और किसानों को मिलेगा।

जीवन में आई खुशहाली
भेड़सर के किसान तेजराम गौतम के पास 3 एकड़ जमीन है, जो सिंचाई के लिए पूरी तरह से बारिश पर निर्भर थी। अगर बारिश ठीक से नहीं होती थी, तो उनके समक्ष खेती-किसानी के लिए गंभीर स्थिति बन जाती थी। इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न खेत में बोर खुदवाया जाए। लेकिन चार से पांच बार बोर कराने पर भी उन्हें सफलता नहीं मिली। इसमें धन भी व्यर्थ गया और खेत भी प्यासे ही रहे। पानी कम होने के कारण फसल का उत्पादन भी कम हो गया था। ऐसे में महात्मा गांधी नरेगा योजना के रुप में उनके सामने एक उम्मीद की किरण नजर आई। उन्हें पता चला कि योजना के तहत किसान अपने खेत में निजी डबरी का निर्माण करवा सकते हैं। ग्राम रोजगार सहायक से संपर्क करके सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद श्री तेजराम के खेत में डबरी की खुदाई शुरु हुई, जिसमें गाँव के लोगों ने ही काम किया और अच्छी मजदूरी प्राप्त की। डबरी बनने के बाद श्री तेजराम की मुसीबतें दूर हुईं। अब बारिश का पानी डबरी में इकट्ठा हो जाने से उन्हें बेहतर सिंचाई सुविधा मिलने लगी। इससे फसल का उत्पादन भी बढ़ा, पहले जहाँ वे 3 एकड़ जमीन में 25-30 क्विंटल उत्पादन ले रहे थे, वहीं अब डबरी बनने के बाद 50-55 क्विंटल धान की पैदावार ले रहे हैं। इतना ही नहीं खेत की मेड़ों में दलहन की फसल भी ले रहें हैं। यहाँ डबरी बन जाने से एक पंथ दो काज की बात सच होती नजर आई है, क्योंकि तेजराम की डबरी का उपयोग न केवल सिंचाई के लिए हो रहा है बल्कि वे इसमें मछली पालन भी कर रहे हैं।

दूर हुई पानी की कमी
ग्राम पंचायत भेड़सर के वार्ड क्रमांक 17, 18 व 19 में रहने वाले ग्रामीण अधिकांशतः पशुपालक हैं। इस क्षेत्र के दो तालाबों में जुलाई से नवंबर तक 4 माह पानी रहता था। इससे वर्ष की शेष अवधि में मवेशियों के लिए पानी की कमी की समस्या खड़ी हो जाती थी। इस समस्या को दूर करने के लिए महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत विस्तृत कार्य योजना बनाई गई, जिसके तहत गाँव भर में कच्ची नालियों का निर्माण कराते हुए, उन्हें तालाबों से जोड़ा जा रहा है, ताकि वर्षा का जल तालाबों और डबरियों में संग्रहीत और संरक्षित होने लगे।



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एक नजरः-
ग्रा.पं.- भेड़सर, विकासखण्ड- दुर्ग, जिला- दुर्ग, पिनकोड- 491001, जी.पी.एस. लोकेशन- 21°13'50.08"N 81°15'05.77"E
1.   कार्य- नगपुरा हरदेलाल मार्ग में नया तालाब निर्माण, स्वीकृत राशि- 11.31 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2018-19
2.   कार्य- कलेन्द्री ठाकुर के खेत के पास डबरी (नया तालाब) निर्माण, स्वीकृत राशि- 9.77 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
3.   कार्य- नहर नाली के पास सार्वजनिक डबरी (नया तालाब) निर्माण, स्वीकृत राशि- 9.32 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
4.   कार्य- मतखानवा तालाब गहरीकरण, स्वीकृत राशि- 9.10 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
5.   कार्य- मछरिया खार में नया तालाब गहरीकरण, स्वीकृत राशि- 8.27 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
6.   कार्य- ठेठवार तालाब गहरीकरण, स्वीकृत राशि- 9.99 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
7.   कार्य- खलडबरा तालाब क्रमांक 3 के पास नाला डिस्लटिंग कार्य, स्वीकृत राशि- 4.88 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
8.   कार्य- खलडबरा तालाब क्रमांक 4 के पास नाला डिस्लटिंग कार्य, स्वीकृत राशि- 5.07 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
9.   कार्य- नाला गहरीकरण एवं पुनोरुद्धार (भरत देशमुख के खेत से उर्मिला देशमुख के खेत तक), स्वीकृत राशि- 9.97 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
10. कार्य- नाला सफाई कार्य 900 मी. (बालाराम के खेत से भरत देशमुख के खेत तक), स्वीकृत राशि- 12.77 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2017-18
11. कार्य- निजी डबरी निर्माण (श्री तेजराम गौतम पिता श्री हरखराम), स्वीकृत राशि-2.97 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2017-18
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रिपोर्टिंग-           श्रीमती रीता चाटे, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-दुर्ग, छत्तीसगढ़, मो.-9131077675
लेखन-               सुश्री आमना मीर, सहायक जनसंपर्क अधिकारी, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत-
1. श्रीमती गौरव मिश्रा, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-दुर्ग, जिला-जिला, छत्तीसगढ़
2. श्रीमती दीप्ती सिंह, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-दुर्ग, जिला-जिला, छत्तीसगढ़
3. श्री ओंकार प्रसाद गौतम, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-भेड़सर, वि.ख.-दुर्ग, जिला-दुर्ग, छ.ग., मो.-7000200760
संपादन-             श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग-       
श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...