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Monday, 24 January 2022

पटपर नरवा को मिला पुनर्जीवन

रबी फसल के लिए किसानों को मिल रहा पानी.
महात्मा गांधी नरेगा से 48.31 लाख रूपए की लागत से हो रहा नरवा उपचार.
तीन गांवों के किसानों को फायदा.

रायपुर, 24 जनवरी 2022. विलुप्त होते नरवा (नालों) के पुनर्जीवन की कोशिशें अब रंग ला रही हैं। राजनांदगांव जिले का ठाकुरटोला-गर्रा नरवा जिसे 'पटपर' नरवा के नाम से भी जाना जाता है, अब जनवरी के महीने में भी नजर आ रहा है। ग्राम पंचायत की पहल और किसानों की मेहनत तथा महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से 48 लाख 31 हजार रूपए की लागत से हो रहे नरवा उपचार के कार्यों ने इस नाले को पुनर्जीवित कर दिया है। नरवा उपचार के बाद वहां ठहरे पानी से पटपर गांव के 20 किसान 50 एकड़ में रबी की फसल ले रहे हैं। पटपर नरवा के संरक्षण और संवर्धन के लिए वर्ष-2019 में स्वीकृत 27 कार्यों में से 20 अब पूरे हो चुके हैं। इस दौरान गर्रा पंचायत के 521 मनरेगा श्रमिकों को 31 हजार 231 मानव दिवस का रोजगार भी मिला है। नरवा उपचार के लिए पटपर गांव में नया तालाब भी निर्माणाधीन है।

राजनांदगांव जिले के छुईखदान विकासखण्ड मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर गर्रा ग्राम पंचायत है। इसके आश्रित गांव पटपर में कोहकाझोरी बांध के नजदीक की पहाड़ी से पटपर नरवा का उद्गम होता है। गर्रा, पटपर और ग्राम पंचायत के एक अन्य आश्रित ग्राम जुझारा से होकर यह लगभग 7.77 किलोमीटर की यात्रा करते हुए एक दूसरे नरवा मंडीपखोल में जाकर मिल जाता है। पटपर नरवा का कुल जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेन्ट एरिया) 1006.5 हेक्टेयर है। वन क्षेत्र में इसकी लम्बाई 3.62 किलोमीटर और राजस्व क्षेत्र में 4.15 किलोमीटर है, जबकि जलग्रहण क्षेत्र क्रमशः 394.89 हेक्टेयर और 611.61 हेक्टेयर है।

नरवा ड्रेनेज लाईन ट्रीटमेंट
पटपर नरवा में पानी को रोकने के लिए लूज बोल्डर चेकडेम की छह और गेबियन की दो संरचनाएं बनाई गई हैं। चार लाख 68 हजार रूपए की लागत की इन संरचनाओं के निर्माण से अब पहाड़ी से आने वाले पानी का बहाव धीमा हो गया है। इससे भू-जल स्तर में सुधार देखने को मिला है। नरवा में पानी रूकने से आसपास की जमीन में नमी की मात्रा बनी रहने लगी है, जिससे इसके दोनों ओर के 20 किसान लाभान्वित हुए हैं। नरवा उपचार के लिए जुझारा गांव में भी छह संरचनाओं का निर्माण प्रस्तावित है। इसके बनने से वहां के 12 किसान प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होंगे और उनके कुल 30 एकड़ खेत तक पानी पहुंचेगा।

कैचमेन्ट एरिया (सतही क्षेत्र) ट्रीटमेन्ट
वहीं पटपर नरवा के कैचमेन्ट एरिया में जल-संचय व संवर्धन के लिए पटपर में श्मशान घाट के पास एक नए तालाब के निर्माण के साथ ही गिट्टी खदान के पास स्थित तालाब का गहरीकरण किया गया है। पटपर में नए तालाब की खुदाई भी प्रगतिरत है। नरवा से लगी जमीन वाले किसानों सर्वश्री करण, हरीराम, लोकेश, रोशन, परदेशी, सुन्दरलाल, सुखदेव और केदार के खेतों में भूमि सुधार और मेड़ बंधान का कार्य भी कराया गया है। इसके अंतर्गत खेतों के मेड़ की ऊंचाई को अपेक्षाकृत ज्यादा रखा गया है, ताकि नरवा में पानी के तेज बहाव से खेतों को नुकसान नहीं पहुंचे। नरवा उपचार के बाद इन किसानों के कुल 28 एकड़ खेत में धान की भरपूर पैदावार हुई है। अभी इन किसानों ने उन खेतों में चना बोया है।

नरवा पर बनाए गए विविध संरचनाओं का सीधा लाभ ग्रामीणों व किसानों को जल संग्रहण और सिंचाई सुविधा के रूप में मिल रहा है। किसान श्री हरीराम 'पटपर नरवा' के पुनरूद्धार से हो रहे फायदे के बारे में बताते हैं कि वे पहले अपने तीन एकड़ जमीन पर एक बोर के सहारे केवल सोयाबीन और चना की ही खेती करते थे। पर इस बार भूमि सुधार के बाद बोर के साथ ही नरवा में रूके पानी का उपयोग कर उन्होंने साढ़े चार एकड़ में चना, धान और गेहूं की फसल ली है। इससे खेती से होने वाली उसकी कमाई बढ़ी है। वह क्षेत्र में नरवा उपचार के कार्यों से बेहद खुश है।

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एक नजर (27.12.2021 की स्थिति में) -
ग्राम पंचायत- गर्रा, विकासखण्ड- छुईखदान, जिला- राजनांदगांव, जी.पी.एस. लोकेशन- 21°36'47.9"N 80°57'24.3"E,
पटपर नरवा विकास कार्यक्रम में शामिल गांवों का नाम- गर्रा, पटपर एवं जुझारा,
क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, पिनकोड- 491888

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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री विमल सिंह ठाकुर, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़।
2. श्री जीवन सोरी, ग्राम रोजगार सहायक, ग्राम पंचायत-गर्रा, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़।
रिपोर्टिंग- श्री सिध्दार्थ जैसवाल, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़।
लेखन एवं संपादन-
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 18 January 2022

मनरेगा डबरी से फुलेशराम की खेती हुई बेहतर

धान की 25 क्विंटल अधिक हुई पैदावार
सब्जी-भाजी उत्पादन के साथ मछलीपालन से अतिरिक्त कमाई


स्टोरी/रायपुर/जांजगीर चांपा/18 जनवरी 2022. जांजगीर चांपा जिले में दमाऊ पहाड़ की सुरम्मयवादियों के बीच बसे हुए गांव बरपाली कलां के रहने वाले श्री फुलेशराम आज बेहद खुश नजर आते हैं। उनकी खुशी का असल कारण है, उनके खेतों में बनी हुई निजी डबरी। यह डबरी, उनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से बनी है, जिसमें एकत्र हुई बारिश की बूंदों से उनके जमीन में नमी बनी रही और धान की फसल बेहतर हो सकी। डबरी से मिले फायदे से फुलेशराम इतने उत्साहित हैं कि उन्होंने इसके इर्द-गिर्द ही अपने भविष्य की योजनाओं का ताना-बाना बुन लिया है। वे खेतों में धान की फसल के साथ ही मछलीपालन और सब्जी-भाजी उत्पादन का कार्य कर रहे हैं।

फुलेशराम की डबरी जहां पर बनी है, वह जगह जांजगीर-चांपा मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर और सक्ती विकासखण्ड से 15 किलोमीटर दूर बरपाली कलां ग्राम पंचायत में है। श्री फुलेशराम बरेठ पिता श्री कायतराम बरेठ के पास 5 एकड़ जमीन है, जिस पर वे कई सालों से खेती-किसानी करते आ रहे हैं, लेकिन जल संचय या जल स्त्रोतों के अभाव में वे हमेशा एक ही फसल ले पा रहे थे। अपनी इस समस्या से जूझते हुए एक दिन उनकी मुलाकात ग्राम रोजगार सहायक श्री अनिल कुमार जायसवाल से हुई। इस मुलाकात में उन्हें पता चला कि महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से खेतीहर किसानों की जमीन पर डबरी और कुआं निर्माण जैसे जल संसाधनों का निर्माण किया जा सकता है, जिससे किसान आवश्यकता अनुसार अपनी पानी की जरुरतों को पूरा कर सकते हैं। इनके निर्माण के दौरान हितग्राही को उसमें मजदूरी करने का अवसर भी मिलता है।

'एक पंथ दो काज' की कहावत की तरह यह बातें श्री फुलेशराम के समझ में आ गई और उन्होंने बिना एक पल की देरी किये, अपने खेत में डबरी बनाए जाने का आवेदन ग्राम पंचायत को दे दिया। अंततः ग्राम पंचायत के प्रयास से श्री फुलेशराम के खेत में निजी डबरी निर्माण के लिए 2.99 लाख रूपए की मंजूरी मिल गई और 4 दिसंबर 2020 को वहाँ डबरी खुदाई का काम शुरू हो गया। मनरेगा श्रमिकों के साथ ही उन्होंने भी डबरी की खुदाई में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। दिनांक 20 फरवरी 2021 को सभी की मेहनत सफल हुई और श्री फुलेशराम के खेत में डबरी का निर्माण पूरा हो गया। इस कार्य में गांव के ही 91 परिवारों को 1452 मानव दिवस रोजगार प्रदान किया गया, जिसके लिए उन्हें 2 लाख 75 हजार 880 रूपए की मजदूरी का भुगतान किया गया। वहीं दूसरी ओर हितग्राही श्री फुलेशराम के परिवार को भी इसमें रोजगार मिला और उन्हें इसके लिए 19 हजार 380 रूपए की मजदूरी प्राप्त हुई।

धान की 25 क्विंटल अधिक पैदावार
फुलेशराम बताते हैं कि जब डबरी नहीं बनी थी, तो खेती के लिये बारिश के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ता था। यदि बारिश की आँख-मिचौली हो जाए, तो फिर पैदावार राम भरोसे हो जाती थी। ऐसी स्थिति में लगभग 80 क्विंटल के आस-पास ही धान की पैदावार हो पाती थी। वहीं इस साल इस डबरी की बदौलत उतनी ही जमीन पर 105 क्विंटल धान की पैदावार हुई, जो पिछले साल की तुलना में 25 क्विंटल अधिक थी। वे आगे बताते हैं कि इस साल हुई अधिक पैदावार से जो मुनाफा होगा, उससे वे खेती-किसानी के उपकरण खरीदेंगे। डबरी से हुए फायदे से उनके परिवार के सभी सदस्य विशेषकर उनकी जीवन संगिनी श्रीमती फिरतिन बाई बरेठ बहुत खुश हैं।

बाड़ी के साथ मछलीपालन
इस साल एक ओर जहाँ श्री फुलेशराम ने धान की फसल लगाई, जिससे उन्हें फायदा मिला। तो वहीं दूसरी ओर डबरी के आसपास की जमीन पर बाड़ी के रुप में टमाटर, मिर्च, धनिया, बरबट्टी आदि सब्जियां भी लगाई हैं, जो उनके परिवार के प्रतिदिन के भोजन की जरुरतों को पूरा कर रही हैं। इसके अलावा बारिश के बाद जब डबरी में पर्याप्त पानी भर गया था, तो उन्होंने मछलीपालन के उद्देश्य से उसमें 5 किलोग्राम मछली बीज डाले थे, जो आने वाले दिनों में उनकी अतिरिक्त आय का जरिया बनेंगे।
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एक नजरः-
कार्य का नाम- डबरी निर्माण, हितग्राही का नाम- फुलेशराम बरेठ, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम पंचायत- बरपाली कलां, विकासखण्ड- सक्ती, जिला- जांजगीर चांपा, स्वीकृत राशि- 299582.00 लाख रुपए,
व्यय राशि- 285342.00 लाख रुपए, कार्य प्रारंभ तिथि- 04.12.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 20.02.2021,
वर्क कोड- 3314003066/IF/1111495923, जी.पी.एस. लोकेशन- 22°07'34.9"N 82°51'20.1"E, पिनकोड- 495689,
सृजित मानव दिवस- 1452, नियोजित श्रमिकों परिवारों की संख्या- 91, मजदूरी भुगतान- 275880 रुपए,
संपर्क- हितग्राही श्री फुलेशराम बरेठ के पुत्र श्री सुरेश कुमार बरेठ का मोबाईल नं. 918085441620

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तथ्य एवं आंकड़े-श्री अनिल कुमार जायसवाल, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.- बरपाली कलां, ज.पं.-सक्ती, जिला-जांजगीर चांपा, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्रीमती आकांक्षा सिन्हा, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-सक्ती, जिला-जांजगीर चांपा, छ.ग.।
लेखन- श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-जांजगीर चांपा, जिला-जांजगीर चांपा, छ.ग.।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 15 July 2021

मनरेगा ने किया सपना पूरा

सुकमन के खेत में मछलीपालन के लिए बना तालाब, पानी की कमी से अब खेत भी नहीं सूखेंगे.


मछलीपालक दोस्तों के साथ उठते-बैठते कृषक श्री सुकमन मरकाम के मन में भी सपना पला कि उनका भी एक निजी तालाब हो तो मछलीपालन कर वे अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। वे गांव के अधिकांश किसानों की तरह वर्षा आधारित खेती करते हैं। सिंचाई का साधन नहीं होने के कारण बरसात के बाद कोई और फसल लेने की संभावना नहीं थी। अपने साथियों से वे मछलीपालन से कम समय में होने वाली कमाई के बारे में सुनते रहते थे। इसने उनके मन में भी मछलीपालन का सपना जगा दिया था।

धमतरी जिले के नगरी विकासखंड के सरईटोला (मा.) ग्राम पंचायत के आश्रित गांव गट्टासिल्ली (रै.) के किसान श्री सुकमन मरकाम का यह सपना महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) ने पूरा कर दिया है। उन्होंने मछलीपालन के लिए अपनी निजी जमीन पर तालाब की मांग ग्राम पंचायत से साझा की। ग्राम पंचायत की पहल से मनरेगा से उनके लिए तीन लाख रूपए की लागत से निजी तालाब के निर्माण का कार्य स्वीकृत हो गया। पिछले साल नवम्बर में तालाब की खुदाई शुरू हुई और इस वर्ष मई में इसका काम पूरा हो गया। तालाब खुदाई के दौरान गांव के 76 श्रमिकों को 1 हजार 424 मानव दिवस का रोजगार प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें दो लाख 71 हजार रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया। श्री सुकमन मरकाम के परिवार को भी इस काम में 54 मानव दिवस का सीधा रोजगार मिला, जिसके एवज में उन्हें दस हजार 260 रूपए की मजदूरी मिली।

महात्मा गांधी नरेगा से श्री सुकमन मरकाम के खेत में 30 मीटर लंबाई और इतनी ही चौड़ाई का तालाब खोदा गया है। वे बताते हैं कि आसपास के जलस्रोतों और बारिश के पानी से तालाब भर गया है। उन्होंने इसमें सात किलो मछली बीज (स्पान) डाला है। कुछ दिनों बाद बाजार में बेचने लायक मछलियाँ तैयार हो जाएंगी और श्री सुकमन मरकाम का सपना साकार हो जाएगा। तालाब के पानी से अल्प वर्षा की स्थिति में वे अपने खेतों की सिंचाई भी कर सकेंगे। महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित यह तालाब श्री सुकमन को आजीविका के लिए मछलीपालन का मजबूत विकल्प देने के साथ ही सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराकर उनके फसलों की पैदावार भी बढ़ाएगा। इससे उनकी कमाई बढ़ेगी और परिवार की आर्थिक समृद्धि का रास्ता खुलेगा।

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एक नजरः-

कार्य का नाम- निजी तालाब निर्माण, हितग्राही- श्री सुकमन मरकाम पिता श्री देवसिंह,
ग्राम पंचायत- सरईटोला (मा.), विकासखण्ड- नगरी, जिला- धमतरी, कार्य का कोड- 3309003024/IF/1111476417,
स्वीकृत वर्ष- 2020-21, स्वीकृत राशि- रुपए 3 लाख, सृजित मानव दिवस- 1424, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 76,
मजदूरी भुगतान- रुपए 2,70,875.00 मात्र, कुल व्यय राशि- रुपए 2,75,875.00 मात्र
जी.पी.एस. लोकेशन- 20°26'32.41" N 81°50'21.41"E, पिनकोड- 493773
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रिपोर्टिंग - श्री डुमन लाल ध्रुव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं आंकड़े - श्री आयुष झा, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-नगरी, जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़।
लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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0 माह- जुलाई, 2021 (स्त्रोतः जिला पंचायत-धमतरी)

Monday, 5 July 2021

मनरेगा ने तैराकी की पाठशाला को किया पुनर्जीवित

तालाब गहरीकरण के बाद निस्तारी के साथ ही सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी


शारीरिक तंदुरूस्ती के लिए तैराकी को सबसे अच्छे व्यायामों में से एक माना जाता रहा है। इससे एक ओर जहां शरीर में स्फूर्ति आती है, तो वहीं दूसरी ओर निरंतर अभ्यास से हड्डियां भी मजबूत बनती हैं। गांवों में बच्चे और बड़े पहले तालाबों, पोखरों, नदी-नहरों में तैराकी और जल-क्रीड़ा करते थे। लेकिन तालाबों की अनदेखी और उनके गंदगी से पटने के कारण बच्चों-बड़ों की ये गतिविधि सिमटते गई। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से रोजगार के साथ ही तालाबों के संरक्षण और पुनर्जीवन के काम भी हो रहे हैं। इसके माध्यम से नए तालाबों की खुदाई तथा पुराने तालाबों की साफ-सफाई, गहरीकरण और गाद निकासी के बाद वर्षा जल के भराव से ये जल-क्रीड़ा और तैराकी जैसी गतिविधियों की पाठशाला बन गए हैं। यहाँ अब बच्चे पहले की तरह बड़ों के मार्गदर्शन में तैराकी का हुनर सीख रहे हैं।

जांजगीर-चांपा जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर बोकरामुड़ा गांव के इस तालाब को महात्मा गांधी नरेगा से नया जीवन मिला है। अब वापस तैराकी की पाठशाला बन चुका बलौदा विकासखंड के इस गांव का यह तालाब कुछ समय पहले तक गंदगी और गाद से लगभग पट चुका था। इस साल की गर्मी में यह करीब-करीब सूख ही गया था। कभी गांव में निस्तारी, खेती-किसानी और बच्चों की जल-क्रीड़ा का केन्द्र रहे इस तालाब की हालत ने गांववालों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी थीं।

सरपंच श्री जगजीवन ने ग्रामीणों के साथ मिलकर इसका समाधान निकाला और ग्रामसभा में इसके गहरीकरण का प्रस्ताव स्वीकृत कराकर इस साल फरवरी में काम शुरू करवाया। महात्मा गांधी नरेगा श्रमिकों की तीन महीनों की मेहनत से अप्रैल-2021 में तालाब के गहरीकरण व पचरी निर्माण का काम पूरा होने के बाद अब यह अपने पुराने समृद्ध स्वरुप में नजर आने लगा है। लॉक-डाउन के बीच मार्च-अप्रैल में महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत तालाब गहरीकरण का काम चला। इसमें गांव के 155 परिवारों को 4232 मानव दिवसों का सीधा रोजगार प्राप्त हुआ। इसके एवज में ग्रामीणों को सात लाख 52 हजार रूपए की मजदूरी का भुगतान किया गया।

तैराकी के प्रति रुझान बढ़ा, निस्तारी के साथ खेती के लिए मिला पानी
बोकरामुड़ा के इस तालाब में जल-क्रीड़ा करने आने वाले बच्चे आयुष, आर्यन, ध्रुव, सुरेन्द्र और साहिल कहते हैं कि गहरीकरण के पहले यह इतना स्वच्छ एवं सुंदर नहीं था। अब तालाब का पानी साफ-सुथरा हो गया है। हमें यहां रोज तैराकी करने में बहुत मजा आता है। किसान श्री सुकदेव रजक, श्री नाथूराम रजक, श्री संतोष दास, श्री मोहनलाल एवं श्री रामाधार बताते हैं कि तालाब के गहरीकरण के बाद अब गांव में निस्तारी के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध है। तालाब में बारिश का पानी भरने लगा है। इससे खेती के लिए पानी मिलेगा और आसपास के जलस्रोतों का भूजल स्तर भी बढ़ेगा।


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माह- जुलाई, 2021

 रिपोर्टिंग व लेखन             - श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-जाँजगीर चाम्पा, छ.ग.।

 
पुनर्लेखन व सम्पादन प्रथम - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, विकास भवन, नार्थ ब्लॉक, सेक्टर-19, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।
अंतिम संपादन                 - श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क अधिकारी, जनसंपर्क संचालनालय, छत्तीसगढ़ ।
प्रूफ रिडिंग                      - श्री महेन्द्र कहार

 

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Tuesday, 23 February 2021

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएँ ने बदला भोजन और जिंदगी का स्वाद

धान की खेती के बाद खाली रहने वाली जमीन पर अब आलू, टमाटर, बैंगन, कुंदरु, करेला, बरबट्टी, फूलगोभी, पत्तागोभी, बैंगन, टमाटर और मटर की पैदावार.


रायपुर, 23 फरवरी 2021/ सरगुजा के पोतका गांव के श्री दिका प्रसाद के भोजन और जिंदगी, दोनों का स्वाद अब बदल गया है। जीवन साथी श्रीमती लक्ष्मनिया के हाथों की बनी तरकारी में अब उन्हें पहले से कहीं अधिक स्वाद और आनंद आने लगा है। और आए भी क्यों न! आखिरकार ये तरकारियां उनकी अपनी बाड़ी की जो हैं, जिन्हें पहली बार दिका प्रसाद ने लक्ष्मनिया के साथ मिलकर उगाया है और महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से बने अपने कुएं के पानी से सींचा व संवारा है। महात्मा गांधी नरेगा से घर की बाड़ी में कुआँ खुदाई के बाद से इस परिवार की जिंदगी बदल गई है। अब दिका प्रसाद सब्जी उत्पादक किसान कहलाने लगे हैं।

सरगुजा जिले के लखनपुर विकासखण्ड मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर पोतका ग्राम पंचायत के किसान दिका प्रसाद और लक्ष्मनिया अपने दो बच्चों के साथ रहते हैं। उनके जीवन में आए इस बदलाव की शुरुआत करीब दो साल पहले हुई थी। कुआँ खुदाई के पहले वे अपने घर से लगे दो एकड़ खेत में खरीफ सीजन में केवल परिवार के खाने लायक धान उगा पाते थे। सिंचाई का कोई साधन नहीं होने के कारण बाकी समय यह जमीन खाली पड़ी रहती थी। पूरे परिवार के लिए रोजमर्रा के पानी की जरूरतों के लिए लक्ष्मनिया को काफी मशक्कत भी करनी पड़ती थी। उसे सुबह-शाम घर से 300 मीटर दूर सार्वजनिक हैंडपंप से पानी भरना पड़ता था।

ग्राम पंचायत की पहल पर दिका प्रसाद की बाड़ी में कुआँ निर्माण ने उनकी खेती और परिवार की दिक्कत सुलझाने का रास्ता खोला। दो साल पहले महात्मा गांधी नरेगा से दो लाख दस हजार रूपए की लागत से निर्मित कुएँ से उनकी जिंदगी में बदलाव की शुरुआत हुई। जैसे-जैसे कुएँ की गहराई बढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे इनकी उम्मीदों की रोशनी भी बढ़ती जा रही थी। कुआँ खुदाई के दौरान उनके परिवार को महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत 90 दिनों का सीधा रोजगार भी मिला। इससे उन्हें 15 हजार 840 रुपए की मजदूरी प्राप्त हुई। दिसम्बर-2019 में दिका प्रसाद, लक्ष्मनिया और गाँव के आठ अन्य मनरेगा श्रमिकों की मेहनत से कुएँ का निर्माण पूर्ण हुआ। जैसे-जैसे कूप निर्माण का काम पूर्णता की ओर बढ़ता गया, दिका प्रसाद और लक्ष्मनिया अपनी बाड़ी भी तैयार करते गए।

कुआँ बन जाने के बाद दिका प्रसाद ने अपनी बाड़ी में पिछले साल आलू, टमाटर, बैंगन, कुंदरु, करेला, बरबट्टी, फूलगोभी, पत्तागोभी, बैंगन, टमाटर और मटर उगाया। बाजार में इन्हें बेचकर परिवार ने 15 हजार रुपए की कमाई की। कुएँ के पानी से धान की खेती में भी मदद मिली और सात क्विंटल धान का उत्पादन हुआ। धान की फसल के बाद इस साल उन्होंने बाड़ी में फूलगोभी, पत्तागोभी, बैंगन, टमाटर और मटर लगाया है, जिन्हें बेचकर वे अब तक छह हजार रूपए कमा चुके हैं। अपनी बाड़ी में उगी सब्जियों की ओर इशारा करते हुए लक्ष्मनिया कहती हैं कि वह पहले बाजार से सब्जियां खरीदती थी। अब जब से कुआँ बना है, तब से अपनी ही बाड़ी से सब्जियाँ तोड़कर तरकारी बनाती हैं। अपनी मेहनत से उपजाई सब्जी-भाजी को परिवार का हर सदस्य बड़े चाव से खाता है। वहीं दिका प्रसाद बताते हैं कि बाड़ी में पहली बार सब्जियों की पैदावार से जो कमाई हुई, उससे बिजली से चलने वाला एक मोटर पम्प खरीदा। हमारी मेहनत और महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएँ से हम बच्चों के बेहतर भविष्य के प्रति आशान्वित हैं। आजीविका सुदृढ़ होने से हम दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला सकते हैं।
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एक नजरः-
कार्य का नाम- कूप निर्माण, हितग्राही- श्रीमती लक्ष्मनिया पिता श्री जय मंगल,
ग्रा.पं.- पोतका, विकासखण्ड- लखनपुर, जिला- सरगुजा, कार्य का कोड- 3305002047/IF/1111378086,
स्वीकृत वर्ष- 2018-19, स्वीकृत राशि- रुपए 2.10 लाख, सृजित मानव दिवस- 372, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 10,
नियोजित श्रमिकों के नाम- श्री जगेश्वर, श्री धरमसाय, श्री अधनु, श्री दिका प्रसाद, श्री चैन सिंह, श्रीमती फुलसिया, श्रीमती रजमेत, श्रीमती उर्मिला, श्रीमती लक्ष्मनिया एवं श्रीमती फुलेश्वरी
जी.पी.एस. लोकेशन- 23°04'52.2"N 82°57'21.8"E, पिनकोड- 497117   
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रिपोर्टिंग व लेखन - सुश्री मीनाक्षी वर्मा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-सरगुजा, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग-
श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Wednesday, 10 February 2021

खाली खेतों में उम्मीदों के नए अंकुर

महात्मा गांधी नरेगा ने 34 एकड़ रकबे के एक फसली से द्विफसली खेतों में बदला.
आदिवासी किसानों के खेतों में पहली बार लहलहाई गेहूँ की फसल.


रायपुर, 10 फरवरी 2021/ आदिवासी किसान श्री छोटे लाल, श्री तुलसी दास और श्री रमाशंकर अपने जीवन में एक चमत्कार देख रहे हैं। कोरिया जिला मुख्यालय से 105 किलोमीटर दूर देवगढ़ गाँव में अभी जब वे अपने खेतों की ओर देखते हैं, तो वहाँ लहलहाती गेहूँ की फसल उनकी आँखों में खुशी के आँसू ला देती है। बस, कुछ समय का इंतजार है और वे पहली बार अपने ही खेत में उपजाए गेहूँ के आटे से बनी रोटी खा सकेंगे, और फसल बेचकर अतिरिक्त कमाई कर सकेंगे। ये वही जमीनें हैं जिन्हें कई वर्षों से वे खरीफ की फसल के बाद उसके हाल पर ही छोड़ देते थे, क्योंकि पानी के बिना इनमें एक अंकुर भी नहीं फूटता था। इन किसानों ने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि उनकी जमीन पर कभी रबी की फसलें भी लहलहाएंगी।

कोरिया जिले के वनांचल भरतपुर विकासखण्ड के बैगा आदिवासी बाहुल्य देवगढ़ में केवल ये तीन किसान ही नहीं हैं, जिनके खेतों में अभी हरियाली नजर आ रही है। पचनी नाला पर महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम) से बने स्टॉपडेम से नाला के दोनों पार के गांवों देवगढ़ और जनुआ के दस किसानों की 34 एकड़ भूमि पर सिंचाई हो रही है। इस स्टॉपडेम से जनुआ के सात किसानों सर्वश्री दिनेश सिंह, बलीचरण सिंह, रामदास सिंह, प्रफुल्ल सिंह, भगवान दास, बुद्धु सिंह एवं श्रीमती खेलमती की कुल 15 एकड़ तथा देवगढ़ के तीन किसानों सर्वश्री छोटे लाल, तुलसी दास व रमाशंकर के कुल 19 एकड़ रकबे को रबी के मौसम में सिंचाई के लिए पानी मिल रहा है।

खरीफ मौसम में धान की फसल के बाद खाली पड़े रहने वाले खेतों में दूसरी फसल के लिए सिंचाई की व्यवस्था की कवायद करीब चार साल पहले शुरु हुई थी। देवगढ़ के बाहरी छोर से होकर बहने वाले पचनी नाले में बरसात के बाद पानी का बहाव कम होने लगता था। गर्मियों में तो काफी कम हो जाता था। ऐसे में आसपास के खेत असिंचित होकर अनुपयोगी रह जाते थे। किसानों को रबी फसलों के लिए पानी देने के लिए ग्राम पंचायत ने पचनी नाला पर स्टॉपडेम बनाने का निर्णय लिया। स्टॉपडेम के लिए ऐसे स्थान का चयन किया गया, जिससे देवगढ़ के साथ ही जनुआ के किसानों को भी पानी मिल सके।

देवगढ़ के सरपंच श्री लाल साय बताते हैं कि पचनी नाला का उद्गम ग्राम पंचायत नोढ़िया में है। यह गाँव से बहते हुए अंत में बनास नदी में जाकर मिल जाता है। इस नाले पर स्टॉपडेम बनाने के लिए महात्मा गांधी नरेगा से तीन वर्ष पहले 19 लाख 61 हजार रुपए मिले थे। गांव के 62 महात्मा गांधी नरेगा जॉब-कॉर्डधारी परिवारों ने मिलकर इसका निर्माण पूरा किया। इस दौरान ग्रामीणों को 3030 मानव दिवस का सीधा रोजगार मिला। स्टॉपडेम से अपने खेतों की सिंचाई करने वाले देवगढ़ के किसान श्री छोटे लाल, श्री तुलसी दास और श्री रमाशंकर कहते हैं कि अब पचनी नाला का पूरा उपयोग हो रहा है। पहले बारिश का पानी नाला से यूं ही बह जाता था। स्टॉपडेम के बन जाने से नीचे के खेतों में भी नमी बनी रहती है। वहां रुके पानी से हमारे खेत जीवंत हो उठे हैं।
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क नजरः-

कार्य का नाम- स्टॉप डेम निर्माण, ग्रा.पं.- देवगढ़, विकासखण्ड- भरतपुर, जिला- कोरिया,

कार्य का कोड- 3306005013/WC/1111332293, स्वीकृत वर्ष- 2017-18, स्वीकृत राशि- रुपए 19.61 लाख,
सृजित मानव दिवस- 3030, जी.पी.एस. लोकेशन- 23°46'46.1"N 81°36'38.8"E, पिनकोड- 497778   

लाभान्वित किसान और उनकी सिंचित भूमि-

(अ) ग्राम पंचायत- देवगढ़ में 3 किसानों की 19 एकड़ कृषि भूमि
1. श्री छोटे लाल    -           8 एकड़,
2. श्री तुलसी दास   -           6 एकड़,
3. श्री रमाशंकर      -           5 एकड़.
(ब) ग्राम पंचायत- जनुआ में 7 किसानों की 15 एकड़ कृषि भूमि
1. श्री दिनेश सिंह   -           4 एकड़,
2. श्री बलीचरण सिंह-         3 एकड़,
3. श्री रामदास सिंह -           1 एकड़,
4. श्रीमती खेलमति -           1 एकड़,
5. श्री प्रफुल सिंह   -           4 एकड़,
6. श्री भगवानदास  -           1 एकड़,
7. श्री बुद्धु सिंह      -           1 एकड़. 
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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.-9424259026
तथ्य एवं स्त्रोत-
1.       श्री नरेन्द्र कंवर, तकनीकी सहायक, वि.ख.-भरतपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-9691022830
2.       श्रीमती प्रतिमा, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-देवगढ़, वि.ख.-भरतपुर, जिला-कोरिया, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन व संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Wednesday, 3 February 2021

दलदली जमीन पर पानी से लबालब हुए तालाब, अब भेड़सर नहीं रहा लद्दी वाला गाँव

दलदली जमीन पर पानी से लबालब हुए तालाब,
अब भेड़सर नहीं रहा लद्दी वाला गाँव

-महात्मा गांधी नरेगा से बदली गाँव की तस्वीर.
-योजना के तहत गाँव में तालाबों और डबरियों की खुदाई से बनी पानी की उपलब्धता.

दिनांक-03 फरवरी 2021/ जिला मुख्यालय दुर्ग से 18 किलोमीटर दूर है भेड़सर गाँव। एक समय था जब इस गाँव को लद्दी वाले गाँव के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब इस गाँव की पहचान बदलने लगी है। दलदली और लद्दी वाली जमीन अब तालाब का रुप ले चुकी है। अब यहां पानी से लबालब तालाब और डबरियाँ हैं। इसके अलावा नालों की सफाई और गहरीकरण से यहाँ का परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है। गाँव को विकसित करने के लिए जब गाँव के लोगों ने जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली, तो एक तरफ जहाँ गाँव की तस्वीर बदलने लगी तो वहीं दूसरी तरफ गाँव के लोगों के आर्थिक हालात भी सुधरने लगे। यह सब कुछ संभव हुआ है पंचायत की पहल, ग्रामीणों की मेहनत और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से।

दलदली और बंजर जमीन पर खुदवाए गए तालाब और डबरियाँ
पानी विकास का आधार है, इसी बात को ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी नरेगा योजना अंतर्गत दुर्ग विकासखण्ड के इस गाँव में तालाब तथा खेतों में डबरी खुदवाने के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया गया। पहले पहले जहाँ दलदली और बंजर भूमि थी, वहाँ तालाब का निर्माण कराया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि गाँव में निस्तारी और सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी मिलने लगा, इससे भू-जल का स्तर भी सुधरने लगा। तालाब और डबरी निर्माण के लिए गाँव के ही लोगों को लगाया गया और इसमें उन्हें अकुशल श्रम के रुप में रोजगार भी मिला। अब गाँव में नगपुरा हरदेलाल मार्ग के किनारे नया तालाब निर्माण एवं नहर नाली के पास सार्वजनिक डबरी के रुप में नए जल स्रोत बन गए हैं। वहीं कलेन्द्री ठाकुर के खेत के पास नई सार्वजनिक डबरी की खुदाई प्रगतिरत है। इसके अलावा गाँव के पुराने मतखानवा तालाब, ठेठवार तालाब तथा मछरिया खार में बने नए तालाब के गहरीकरण का कार्य जारी है। आने वाले कुछ दिनों में इस गाँव में पानी के सार्वजनिक स्रोत बढ़ जाएँगे, जिनका लाभ गाँव, ग्रामीण और किसानों को मिलेगा।

जीवन में आई खुशहाली
भेड़सर के किसान तेजराम गौतम के पास 3 एकड़ जमीन है, जो सिंचाई के लिए पूरी तरह से बारिश पर निर्भर थी। अगर बारिश ठीक से नहीं होती थी, तो उनके समक्ष खेती-किसानी के लिए गंभीर स्थिति बन जाती थी। इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न खेत में बोर खुदवाया जाए। लेकिन चार से पांच बार बोर कराने पर भी उन्हें सफलता नहीं मिली। इसमें धन भी व्यर्थ गया और खेत भी प्यासे ही रहे। पानी कम होने के कारण फसल का उत्पादन भी कम हो गया था। ऐसे में महात्मा गांधी नरेगा योजना के रुप में उनके सामने एक उम्मीद की किरण नजर आई। उन्हें पता चला कि योजना के तहत किसान अपने खेत में निजी डबरी का निर्माण करवा सकते हैं। ग्राम रोजगार सहायक से संपर्क करके सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद श्री तेजराम के खेत में डबरी की खुदाई शुरु हुई, जिसमें गाँव के लोगों ने ही काम किया और अच्छी मजदूरी प्राप्त की। डबरी बनने के बाद श्री तेजराम की मुसीबतें दूर हुईं। अब बारिश का पानी डबरी में इकट्ठा हो जाने से उन्हें बेहतर सिंचाई सुविधा मिलने लगी। इससे फसल का उत्पादन भी बढ़ा, पहले जहाँ वे 3 एकड़ जमीन में 25-30 क्विंटल उत्पादन ले रहे थे, वहीं अब डबरी बनने के बाद 50-55 क्विंटल धान की पैदावार ले रहे हैं। इतना ही नहीं खेत की मेड़ों में दलहन की फसल भी ले रहें हैं। यहाँ डबरी बन जाने से एक पंथ दो काज की बात सच होती नजर आई है, क्योंकि तेजराम की डबरी का उपयोग न केवल सिंचाई के लिए हो रहा है बल्कि वे इसमें मछली पालन भी कर रहे हैं।

दूर हुई पानी की कमी
ग्राम पंचायत भेड़सर के वार्ड क्रमांक 17, 18 व 19 में रहने वाले ग्रामीण अधिकांशतः पशुपालक हैं। इस क्षेत्र के दो तालाबों में जुलाई से नवंबर तक 4 माह पानी रहता था। इससे वर्ष की शेष अवधि में मवेशियों के लिए पानी की कमी की समस्या खड़ी हो जाती थी। इस समस्या को दूर करने के लिए महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत विस्तृत कार्य योजना बनाई गई, जिसके तहत गाँव भर में कच्ची नालियों का निर्माण कराते हुए, उन्हें तालाबों से जोड़ा जा रहा है, ताकि वर्षा का जल तालाबों और डबरियों में संग्रहीत और संरक्षित होने लगे।



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एक नजरः-
ग्रा.पं.- भेड़सर, विकासखण्ड- दुर्ग, जिला- दुर्ग, पिनकोड- 491001, जी.पी.एस. लोकेशन- 21°13'50.08"N 81°15'05.77"E
1.   कार्य- नगपुरा हरदेलाल मार्ग में नया तालाब निर्माण, स्वीकृत राशि- 11.31 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2018-19
2.   कार्य- कलेन्द्री ठाकुर के खेत के पास डबरी (नया तालाब) निर्माण, स्वीकृत राशि- 9.77 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
3.   कार्य- नहर नाली के पास सार्वजनिक डबरी (नया तालाब) निर्माण, स्वीकृत राशि- 9.32 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
4.   कार्य- मतखानवा तालाब गहरीकरण, स्वीकृत राशि- 9.10 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
5.   कार्य- मछरिया खार में नया तालाब गहरीकरण, स्वीकृत राशि- 8.27 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
6.   कार्य- ठेठवार तालाब गहरीकरण, स्वीकृत राशि- 9.99 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
7.   कार्य- खलडबरा तालाब क्रमांक 3 के पास नाला डिस्लटिंग कार्य, स्वीकृत राशि- 4.88 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
8.   कार्य- खलडबरा तालाब क्रमांक 4 के पास नाला डिस्लटिंग कार्य, स्वीकृत राशि- 5.07 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
9.   कार्य- नाला गहरीकरण एवं पुनोरुद्धार (भरत देशमुख के खेत से उर्मिला देशमुख के खेत तक), स्वीकृत राशि- 9.97 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
10. कार्य- नाला सफाई कार्य 900 मी. (बालाराम के खेत से भरत देशमुख के खेत तक), स्वीकृत राशि- 12.77 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2017-18
11. कार्य- निजी डबरी निर्माण (श्री तेजराम गौतम पिता श्री हरखराम), स्वीकृत राशि-2.97 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2017-18
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रिपोर्टिंग-           श्रीमती रीता चाटे, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-दुर्ग, छत्तीसगढ़, मो.-9131077675
लेखन-               सुश्री आमना मीर, सहायक जनसंपर्क अधिकारी, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत-
1. श्रीमती गौरव मिश्रा, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-दुर्ग, जिला-जिला, छत्तीसगढ़
2. श्रीमती दीप्ती सिंह, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-दुर्ग, जिला-जिला, छत्तीसगढ़
3. श्री ओंकार प्रसाद गौतम, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-भेड़सर, वि.ख.-दुर्ग, जिला-दुर्ग, छ.ग., मो.-7000200760
संपादन-             श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग-       
श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 28 January 2021

महात्मा गांधी नरेगा से संवरें तालाब और जिन्दगी

पंचायत और आदिवासी किसान को मिला नया आर्थिक स्त्रोत


रायपुर, 28 जनवरी, 2021. प्राचीन काल से अब तक जहां-जहां भी आबादी बसती गई, वहां परंपरागत ढंग से जलस्रोत के साधनों के रूप में तालाबों का निर्माण किया जाता रहा है। पुराने जमाने में भी यह पेयजल, सिंचाई और निस्तारी का प्रमुख साधन हुआ करते थे। आधुनिक दौर में जलस्रोतों के उन्नत रूप में बोरिंग और नलकूप जैसी सुविधाओं के चलते वर्तमान समय में, ये पारंपरिक महत्वपूर्ण जल स्त्रोत गंदगी का केन्द्र बन गए हैं। इससे इतर आज भी गाँवों में तालाबों की सुरक्षा के प्रति ग्रामीण और पंचायतें सजग हैं। इसी सजगता का ‘परिणाम’ योजनाओं के सहयोग से सफलता की कहानी में भी तब्दील हो जाता है। ऐसा ही एक कार्य कोरिया जिले के सुदूर विकासखण्ड भरतपुर की ग्राम पंचायत कंजिया में देखने को मिलता है। यहां पुरातन समय का एक बड़ा तालाब है, जिसका स्रोत धीरे-धीरे बंद होता जा रहा था। तब इसे देखते हुए ग्रामीणों की मांग पर पंचायत ने महात्मा गांधी नरेगा से इसका गहरीकरण कराया। इससे एक ओर जहाँ ग्रामीणों को रोजगार मिला, वहीं दूसरी ओर गहरीकरण के बाद से इस तालाब में मछली पालन भी प्रारंभ हो गया। इसके अलावा ग्राम पंचायत को इससे एक निश्चित आय भी हो रही है और गाँव के ही एक आदिवासी परिवार को रोजगार का स्थायी साधन मिल गया है, जिससे उन्हें प्रति वर्ष लगभग दो लाख रूपए तक की आय होने लगी है।

कोरिया जिला मुख्यालय बैकुण्ठपुर से 168 किलोमीटर दूर कंजिया गाँव है, जो कि अनुसूचित जनजाति बाहुल्य है। यहां काफी पुराना एक तालाब है, जिसे ‘बड़ा तालाब’ के नाम से जाना जाता है। गांव के ही मोहल्लों बीचपारा और डोंगरीपारा के बीच मुख्यमार्ग के किनारे यह तालाब स्थानीय तौर पर निस्तारी का प्रमुख साधन है। इसके अलावा यह तालाब उनके पशुओं के पेयजल का भी मुख्य स्रोत है। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि इस तालाब में लंबे समय से गहरीकरण नहीं किए जाने के कारण यहाँ पानी कम होने लगा था, जिससे गर्मियों में यह सूखने की कगार पर पहुँच जाता था। लगभग चार बरस पहले जिले में लगातार दो साल औसत से काफी कम बारिश हुई थी, इस कारण यह तालाब पूरी तरह से सूख गया था।

पंचायत को मिला नया आर्थिक स्रोत

ग्राम पंचायत की सरपंच श्रीमती विपुनलता सिंह बताती हैं कि साल 2015 में जब गर्मियों में पानी की किल्लत हुई थी, तब पंचायत ने तालाब के गहरीकरण का कार्य प्रस्तावित किया था। तब महात्मा गांधी नरेगा से चार लाख 40 हजार की लागत से इसके गहरीकरण का कार्य स्वीकृत किया गया। इस कार्य से गांव में मनरेगा श्रमिकों को फरवरी से जून 2016 तक रोजगार मिला और गांव के पुराने जलस्रोत का पुनरूद्धार भी हो गया। तालाब के गहरीकरण के बाद वर्षा ऋतु में यह पानी से लबालब भर गया। इसके बाद पंचायत ने अपने आय के स्रोत बढ़ाने के लिए इसे ठेके पर देने का निर्णय लिया। इस तालाब के किनारे रहने वाले गांव के ही आदिवासी किसान श्री अमीर सिंह ने इसके लिए सर्वाधिक बोली लगाई और तालाब को 23 हजार रूपए की राशि में 10 सालों की लीज में पंचायत से प्राप्त किया।

आदिवासी परिवार को मिला सहारा

श्री अमीर सिंह के पास लगभग साढ़े चार एकड़ असिंचित कृषि भूमि है। तालाब के किनारे ही उनका घर और लगभग एक एकड़ की बाड़ी है। इस तालाब को लीज में लेकर उन्होंने अपनी बाड़ी में धान के बाद रबी की फसल में गेहूँ और उड़द का उत्पादन लिया है। वहीं बीते दो साल से उन्हें तालाब में मछली पालन के व्यवसाय से लगभग दो लाख रूपए की वार्षिक आमदनी भी होने लगी है। इस संबंध में श्री अमीर सिंह बताते हैं कि अब उन्हें रोजगार को लेकर कोई चिंता नहीं है। पहले साल तो मछली पालन से उन्हें कोई बड़ा लाभ नहीं हुआ, परंतु अब दो वर्षों से अच्छी कमाई हो रही है। मछली बेचने के लिए बाजार की उपलब्धता पर वह हंसकर कहते हैं कि “साहब! कहूं नई जाय ला परय, तलवा के भीठा में सब बिक जथे।”

सदभाव की मिसाल

गांव में रहने वाले वनवासी दिल से किस कदर जिंदादिल होते हैं, यह श्री अमीर सिंह से मिलकर जाना जा सकता है। वे गांव के बाहर के लोगों के लिए मछली की दर 2 सौ रूपए प्रति किलो रखते हैं, परंतु गांव वालों को वह मात्र 150 रूपए प्रति किलो की दर से ही अपनी मछलियां बेचते हैं। इसका कारण वे बताते हैं कि गांव के लोग एक परिवार के होते हैं, उनसे सौदा नहीं किया जाता है। हमेशा भाई-चारा बनाये रखना होता है। गांव में ऐसे किसान जिनके खेत इस तालाब के आस-पास हैं, उन्हें खरीफ के मौसम में जब कभी धान का रोपा लगाने के लिए पानी की जरुरत होती है, उन्हें वे सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराते हैं। वहीं ये किसान भी मछली पालन और आखेट में श्री अमीर सिंह की मदद करते हैं।

आवास निर्माण में मिली मदद

श्री अमीर सिंह के परिवार के पास आज कृषि के बाद मत्स्य पालन मुख्य व्यवसाय हो चुका है। सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना के तहत सूचीबद्ध होने से उन्हें साल 2018-19 में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का लाभ मिला था। अपने लिए पक्के आवास का सपना पूरा होने की खुशी उनके चेहरे पर भी झलकती है। आवास निर्माण के लिए महात्मा गांधी नरेगा से जहाँ उनके परिवार को पूरे 90 दिन की मजदूरी का लाभ मिला, वहीं उन्होंने महात्मा गांधी नरेगा से गहरीकरण हुए इस तालाब में मछली पालन से कमाए पैसे को भी घर के निर्माण में लगाया। वे दोनों पति-पत्नी खुश होकर महात्मा गांधी नरेगा योजना से मिले लाभ के बारे में हंसकर कहते हैं “अब बुढ़ापे की कोई चिंता नहीं है। पैसे आने से सब कुछ अच्छा हो गया है।”

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एक नजरः-
कार्य का नाम- बड़ा तालाब गहरीकरण, ग्रा.पं.- कंजिया, विकासखण्ड- भरतपुर, जिला- कोरिया, पिनकोड- 497778
स्वीकृत वर्ष- 2015-16,  कार्य प्रारंभ तिथि- 09/02/2016, कार्य प्रारंभ तिथि- 30/06/2016, कार्य स्थिति- पूर्ण
स्वीकृत राशि- रुपए 4.40 लाख, सृजित मानव दिवस- 2680, जी.पी.एस. लोकेशन- 23°41'15.9"N 81°41'18.8"E
कार्य का कोड- 3306005027/WC/81055423

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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.-9424259026

तथ्य एवं स्त्रोत-
1. श्री आरिफ रजा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, जिला-कोरिया, छत्तीसगढ़
2. श्री पुरुषोत्तम सिंह मारको, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-कंजिया, वि.ख.-भरतपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7722853989
पुनर्लेखन व संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...