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Monday, 14 December 2020

आर्थिक संबल से संपन्नता की कहानी गढ़ते संपत

रायपुर। मेहनतकश आदिवासी परिवार मार्गदर्शन और संसाधनों का संबल पाकर संपन्नता की कहानी गढ़ लेते हैं। प्रगति की राह पर बढ़ते ऐसा ही परिवार है कोरिया जिले की ग्राम पंचायत पिपरिया में रहने वाले श्री संपत सिंह पिता बुद्धु सिंह का है। खरीफ की खेती के बाद परिवार की रोजी-रोटी चलाने के लिए अकुशल श्रम की कतार में लगने वाले इस परिवार को जब से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से डबरी के रुप में जल-संचय का साधन मिला है, तब से इनके जीवन जीने का तरीका ही बदल गया है।

     मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत पिपरिया के निवासी श्री संपत सिंह के छोटे से परिवार को अब बारिश के बाद के महीनों में रोजगार की कोई चिंता नहीं है। महात्मा गांधी नरेगा से एक छोटा सा जल-संग्रह का साधन पाकर, यह परिवार अपनी आर्थिक उन्नति की राह बनाने में लग गया है। डबरी बनने के बाद इन्होंने धान की दो-गुनी उपज ली और अब वे अपनी बाड़ी में दो क्विंटल आलू के अलावा टमाटर और मिर्च लगाकर खुशहाली के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं।

     श्री संपत के परिवार में माँ श्रीमती मानकुंवर, पिता श्री बुद्धु सिंह और पत्नी श्रीमती सुनीता को मिलाकर कुल चार सदस्य हैं। यद्यपि पिता की उम्र 60 साल से अधिक हो चुकी है और वे अब पहले की तरह खेतों में काम नहीं करते हैं, फिर भी उनके नाम से स्वीकृत हुई यह डबरी खेतों में श्री संपत को उनके पिता के होने का एहसास निरंतर कराती रहती है। खेतों में डबरी निर्माण की आवश्यकता के प्रश्न पर श्री संपत ने उत्साहपूर्वक बताया कि उनके पिता के नाम पर गाँव में कुल आठ एकड़ कृषि भूमि है, जिसमें से चार एकड़ भूमि घर से लगकर है। सिंचाई साधनों के अभाव में पूरी की पूरी जमीन असिंचित थी। गाँव में उनके चाचा और आस-पड़ोस के किसानों के खेतों में डबरी बनने के बाद से उनकी खेती और जीवन में आये परिवर्तन ने ही उन्हें अपने खेत में डबरी बनाने के लिए प्रेरित किया था। ग्राम पंचायत की मदद से उनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से डबरी बनी है। वे डबरी की बदौलत इस साल रबी की फसल के रुप में गेहूँ लगाने की तैयारी में हैं।

     जनपद पंचायत- मनेन्द्रगढ़ की तकनीकी सहायक श्रीमती अंजु रानी इस डबरी निर्माण से जुड़े अन्य पहलुओं पर रोशनी डालती हुए कहती है कि योजनांतर्गत सितम्बर 2019 में श्री बुद्धु सिंह के नाम से एक लाख 80 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति से यह डबरी स्वीकृत हुई थी। लॉकडाउन के दरम्यान यहाँ काम चला था और हितग्राही के परिवार को सीधे रोजगार भी मिला, जिससे उन्हें लगभग 18 हजार रुपए की मजदूरी प्राप्त हुई। इन रुपयों के सहारे हितग्राही के बेटे श्री संपत ने बिजली से चलने वाला दो हॉर्सपावर का एक पम्प खरीदा, जिसका उपयोग वे डबरी से सिंचाई में करते हैं। डबरी से मिल रहे फायदों को आगे बढ़ाते हुए, इन्होंने मछलीपालन के लिए इस बार डबरी में पाँच किलो मछली बीज भी डाला है।

     महात्मा गांधी नरेगा का संबल श्री संपत की संपन्नता की कहानी का आधार बना। अब वह अपनी सफलता से अन्य हितग्राहियों के लिए प्रेरणा पुंज बन रहा है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- डबरी निर्माण कार्य (बुद्धू सिंह/ माधव), ग्रा.पं.- पिपरिया, विकासखण्ड- मनेन्द्रगढ़, जिला- कोरिया,
कार्य प्रारंभ तिथि- 03.11.2019, कार्य पूर्णता तिथि- 30.04.2020,
स्वीकृत राशि- 1.80 लाख, स्वीकृत वर्ष-2019-20, सृजित मानव दिवस- 980,
दूरी- जिला मुख्यालय से 10 कि.मी. एवं विकासखण्ड मुख्यालय से 45 कि.मी., पिन कोड- 497442
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 23◦15'49.9″ एवं Longitude: E 82◦14'49.8″
परिवर्तन- पहले घर के पास के खेतों में खरीफ में 20 से 25 बोरा धान की फसल होती थी, जो इस बार 45 बोरा हुई है।

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रिपोर्टिंग एवं लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार-प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.- 9424259026
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Wednesday, 21 August 2019

डबरी बनी बारिश की बूँदों का तीर्थ

डबरी बनी बारिश की बूँदों का तीर्थ

         "मेरा यह खेत पटपरी जंगल से लगा हुआ है। हर साल बारिश का पानी इस जंगल से निकलकर मेरे खेत से होकर यूँ ही बेकार बह जाता था। मैं अक्सर यह सोचा करता था कि यदि मैं इस पानी को खेत में ही रोक लूँ, तो बारिश के बाद रबी की फसल भी ले सकता हूँ। मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि ग्राम पंचायत मेरी इस कल्पना को धरातल पर उतारकर, मेरे खेत में डबरी बना देगी और यह बहता हुआ पानी मेरी जिंदगानी बन जायेगा। डबरी बनने के बाद मैंने खरीफ के बाद रबी की फसल भी ली है। मछलीपालन से भी दो पैसे आ जाये, सोचकर मैंने डबरी में मछली के बीज भी डाल दिये हैं।" कोरबा जिले की ग्राम पंचायत दमिया के आदिवासी किसान श्री जवाहिल सिंह पिता श्री उदयराम बड़े उत्साह से यह बताते हैं, और साथ ही जोश में आकर कहते हैं कि मेरी डबरी का कमाल कोई भी व्यक्ति मेरे खेत पर आकर देख सकता है।

         कोरबा जिले के पाली विकासखण्ड मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर दमिया ग्राम पंचायत है। यहाँ श्री जवाहिल सिंह खैरवार अपने परिवार के साथ खेती और मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं। इनका लगभग ढाई एकड़ का खेत गाँव की सीमा पर पटपरी जंगल से लगकर है। इस जंगल की भूमि का ढाल इनके खेत की ओर है। हर साल बारिश में बरसात की बूँदें आतीं और श्री जवाहिल के खेत से पानी की धाराओं के रुप में बहकर यूँ ही निकल जातीं। श्री जवाहिल जंगल से बहकर आने वाली बारिश की इन बूंदों को सहेजना चाहते थे। उनकी इस चाहत में मददगार बनी ग्राम पंचायत और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना। एक दिन ग्राम पंचायत कार्यालय में ग्राम रोजगार सहायक श्री सबल सिंह कुसरो ने श्री जवाहिल को बारिश के पानी को सहेजने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से खेत में डबरी बनाने की सलाह दी। उन्होंने डबरी बनाने से होने वाले फायदे बताते हुए कहा कि डबरी से भूजल स्तर बढ़ता है। डबरी में पानी होने से आस-पास की जमीन में नमी तो रहेगी ही, बारिश के बाद इससे सिंचाई भी की जा सकेगी। साथ ही चाहो तो मछलीपालन कर ताजा मछलियों का स्वाद भी ले सकोगे और बाजार में इन्हें बेचकर दो पैसे भी कमा लोगे। ग्राम रोजगार सहायक की सलाह श्री जवाहिल को जँच गई। उन्हें लगा कि बहती हुई बारिश की बूँदे उनकी अंजुरी में भर गई हो। उन्होंने तुरंत ही ग्राम पंचायत में डबरी निर्माण का आवेदन दे दिया। निर्धारित प्रकिया पूरी होने के बाद उनके नाम से महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत डबरी निर्माण का कार्य स्वीकृत भी हो गया।

          आखिरकार वह दिन भी आ गया, जिसका श्री जवाहिल को बेसब्री से इंतजार था। 3 मई 2018 को उन्होंने अपनी धर्मपत्नी और छोटे बेटे संतोष के साथ मिलकर खेत में ले-आउट के अनुसार डबरी की खुदाई प्रारंभ कर दी। इस खुदाई में गाँव के 48 ग्रामीणों ने भी काम किया। 2 जुलाई 2018 को डबरी पूरी तरह बन कर तैयार हो गई। डबरी निर्माण में तकनीकी मार्गदर्शन देने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर क्लाइमेट रेजिलिएंट ग्रोथ (आई.सी.आर.जी.) परियोजना के तकनीकी विशेषज्ञ श्री पुरुषोत्तम देशमुख ने बताया कि डबरी का निर्माण इस तरह किया गया है कि खेत से लगे पटपरी जंगल से बहकर पानी इनलेट के जरिये सीधे डबरी में आ जाये। अक्सर पानी के साथ मिट्टी भी बहकर आती है, इसलिये इनलेट में स्टोन पिचिंग का कार्य किया गया है और 3 मीटर लंबाई, 2 मीटर चौड़ाई व 1 मीटर गहराई का सील्ट-चेम्बर बनाया गया है। इससे डबरी में गाद रहित पानी आने का रास्ता बन गया।

         डबरी के संबंध में गाँव की सरपंच श्रीमती अनिता जगत कहती हैं कि डबरी जिसे आप लोग फार्म पॉण्ड के नाम से जानते हैं, से वाटर रिचार्ज तो होता ही है, डबरी के हितग्राही की आजीविका को भी सहारा मिलता है। यानी, डबरी से हैं दोनों तरह के फायदे! जवाहिल की डबरी का आकार 25 मीटर लम्बाई, 25 मीटर चौड़ाई, 3 मीटर गहराई का है। यह मात्र 41 दिनों में तैयार हो गई। खुद श्री जवाहिल और उनके परिवार ने भी दिन-रात एक करके बारिश की बूँदों की धाराओं के इस तीर्थ की रचना की है। इसके लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से कुल 2 लाख 64 हजार रुपये स्वीकृत किये गये थे। डबरी निर्माण से 51 ग्रामीणों को सीधे रोजगार मिला, इनमें 28 महिलाएँ एवं 23 पुरुष थे। श्री जवाहिल के परिवार को मजदूरी के रुप में पन्द्रह हजार तीन सौ बारह रुपये मिले। इन्होंने डबरी के पानी से रबी फसल के रुप में गेहूँ की फसल ली थी, जिससे पहली बार 3 से 4 क्विंटल गेहूँ का उत्पादन हुआ था। इस डबरी से आस-पास के 3 किसान भी लाभान्वित हुए हैं। बारिश के बाद श्री जवाहिल के पड़ोसी किसान श्री छत्रपाल, श्री दुखीराम और श्री होरीलाल के लगभग 2.10 एकड़ खेत पंप के जरिये डबरी से सिंचाई कर सिंचित हुए थे। 

          डबरी निर्माण से अपने आपको भाग्यशाली महसूस करने वाले श्री जवाहिल सिंह कहते हैं कि "पहले तो मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यहाँ पानी संचय का काम भी हो सकता है और इतना बड़ा बदलाव आ सकता है। अब मैं साल में दो फसलें लेता हूँ। डबरी से मुझे सिंचाई का साधन मिल गया है। इसकी मदद से मैंने 37 हजार 200 रुपयों की अतिरिक्त कमाई की है। इसके बाद ही मुझमें हिम्मत आई और मैंने अपने बेटे संतोष की शादी की। डबरी बनने के बाद मैंने शौकिया तौर पर कुछ मछली बीज डाले थे और सपरिवार बड़े चाव से मछली का स्वाद भी लिया। अबकी बार मैं अतिरिक्त लाभ के लिए डबरी में मछलीपालन करुँगा।"

          दमिया गाँव में श्री जवाहिल के खेत में डबरी निर्माण से पानी-संचय की एक वैचारिक धारा ने बहना शुरु किया है। यदि थोड़ी और कोशिश की जाये तो इसे एक 'डबरी-आंदोलन' का रूप दिया जा सकता है। सिर्फ सरकारी जमीन पर तालाब बनाने से ही जल संरक्षण के बड़े उद्देश्यों को हासिल नहीं किया जा सकता। इसके लिए हर किसान को इस तरह के आंदोलन का हिस्सा बनना होगा।


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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल                                 नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।

तथ्य व स्त्रोत-        श्री सुरेश यादव, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-पाली, जिला-कोरबा, छत्तीसगढ़।
संपादन -              श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर,                                       जिला- रायपुर, छत्तीसगढ़।
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