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Monday, 14 December 2020

आर्थिक संबल से संपन्नता की कहानी गढ़ते संपत

रायपुर। मेहनतकश आदिवासी परिवार मार्गदर्शन और संसाधनों का संबल पाकर संपन्नता की कहानी गढ़ लेते हैं। प्रगति की राह पर बढ़ते ऐसा ही परिवार है कोरिया जिले की ग्राम पंचायत पिपरिया में रहने वाले श्री संपत सिंह पिता बुद्धु सिंह का है। खरीफ की खेती के बाद परिवार की रोजी-रोटी चलाने के लिए अकुशल श्रम की कतार में लगने वाले इस परिवार को जब से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से डबरी के रुप में जल-संचय का साधन मिला है, तब से इनके जीवन जीने का तरीका ही बदल गया है।

     मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत पिपरिया के निवासी श्री संपत सिंह के छोटे से परिवार को अब बारिश के बाद के महीनों में रोजगार की कोई चिंता नहीं है। महात्मा गांधी नरेगा से एक छोटा सा जल-संग्रह का साधन पाकर, यह परिवार अपनी आर्थिक उन्नति की राह बनाने में लग गया है। डबरी बनने के बाद इन्होंने धान की दो-गुनी उपज ली और अब वे अपनी बाड़ी में दो क्विंटल आलू के अलावा टमाटर और मिर्च लगाकर खुशहाली के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं।

     श्री संपत के परिवार में माँ श्रीमती मानकुंवर, पिता श्री बुद्धु सिंह और पत्नी श्रीमती सुनीता को मिलाकर कुल चार सदस्य हैं। यद्यपि पिता की उम्र 60 साल से अधिक हो चुकी है और वे अब पहले की तरह खेतों में काम नहीं करते हैं, फिर भी उनके नाम से स्वीकृत हुई यह डबरी खेतों में श्री संपत को उनके पिता के होने का एहसास निरंतर कराती रहती है। खेतों में डबरी निर्माण की आवश्यकता के प्रश्न पर श्री संपत ने उत्साहपूर्वक बताया कि उनके पिता के नाम पर गाँव में कुल आठ एकड़ कृषि भूमि है, जिसमें से चार एकड़ भूमि घर से लगकर है। सिंचाई साधनों के अभाव में पूरी की पूरी जमीन असिंचित थी। गाँव में उनके चाचा और आस-पड़ोस के किसानों के खेतों में डबरी बनने के बाद से उनकी खेती और जीवन में आये परिवर्तन ने ही उन्हें अपने खेत में डबरी बनाने के लिए प्रेरित किया था। ग्राम पंचायत की मदद से उनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से डबरी बनी है। वे डबरी की बदौलत इस साल रबी की फसल के रुप में गेहूँ लगाने की तैयारी में हैं।

     जनपद पंचायत- मनेन्द्रगढ़ की तकनीकी सहायक श्रीमती अंजु रानी इस डबरी निर्माण से जुड़े अन्य पहलुओं पर रोशनी डालती हुए कहती है कि योजनांतर्गत सितम्बर 2019 में श्री बुद्धु सिंह के नाम से एक लाख 80 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति से यह डबरी स्वीकृत हुई थी। लॉकडाउन के दरम्यान यहाँ काम चला था और हितग्राही के परिवार को सीधे रोजगार भी मिला, जिससे उन्हें लगभग 18 हजार रुपए की मजदूरी प्राप्त हुई। इन रुपयों के सहारे हितग्राही के बेटे श्री संपत ने बिजली से चलने वाला दो हॉर्सपावर का एक पम्प खरीदा, जिसका उपयोग वे डबरी से सिंचाई में करते हैं। डबरी से मिल रहे फायदों को आगे बढ़ाते हुए, इन्होंने मछलीपालन के लिए इस बार डबरी में पाँच किलो मछली बीज भी डाला है।

     महात्मा गांधी नरेगा का संबल श्री संपत की संपन्नता की कहानी का आधार बना। अब वह अपनी सफलता से अन्य हितग्राहियों के लिए प्रेरणा पुंज बन रहा है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- डबरी निर्माण कार्य (बुद्धू सिंह/ माधव), ग्रा.पं.- पिपरिया, विकासखण्ड- मनेन्द्रगढ़, जिला- कोरिया,
कार्य प्रारंभ तिथि- 03.11.2019, कार्य पूर्णता तिथि- 30.04.2020,
स्वीकृत राशि- 1.80 लाख, स्वीकृत वर्ष-2019-20, सृजित मानव दिवस- 980,
दूरी- जिला मुख्यालय से 10 कि.मी. एवं विकासखण्ड मुख्यालय से 45 कि.मी., पिन कोड- 497442
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 23◦15'49.9″ एवं Longitude: E 82◦14'49.8″
परिवर्तन- पहले घर के पास के खेतों में खरीफ में 20 से 25 बोरा धान की फसल होती थी, जो इस बार 45 बोरा हुई है।

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रिपोर्टिंग एवं लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार-प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.- 9424259026
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Wednesday, 24 June 2020

मछली पालन बना आमदनी का जरिया


जिला मुख्यालय कबीरधाम से लगभग 70 किमी दूर सुदूर वनांचल क्षेत्र में बोड़ला विकासखण्ड के गांव बम्हनी की निवासी श्रीमती माहेश्वरी पटले का परिवार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) अंतर्गत डबरी निर्माण से आजीविका का नया साधन पाकर आत्मनिर्भर हो गया है । 


श्रीमती माहेश्वरी पटले, बम्हनी गाँव की अन्य मनरेगा महिला श्रमिकों के भाँति एक सामान्य पंजीकृत श्रमिक है। एक दिन उन्हें जब यह मालूम हुआ कि उनकी अपनी निजी भूमि पर डबरी का निर्माण हो सकता है, तो मानो उनके लिए तरक्की की नई राह खुल गई । ग्राम पंचायत बम्हनी की ग्राम सभा में श्रीमती माहेश्वरी और उसके पति कांशीराम ने आवेदन करते हुए कहा कि उन्हें अपने खेत में डबरी का निर्माण करना है । फिर क्या था; ग्राम पंचायत ने नक्शा, खसरा सहित सभी जरूरी दस्तावेजों के आधार पर श्रीमती माहेश्वरी पटले के नाम से 1.57 लाख रूपए की लागत से डबरी निर्माण का कार्य स्वीकृत करा कर प्रारंभ करा दिया । डबरी निर्माण में 922 मानव दिवस का रोजगार सृजन हुआ, जिसमें 1.54 लाख रूपए मजदूरी पर और तीन हजार रूपए सामग्री पर खर्च हुये। डबरी निर्माण में श्रीमती माहेश्वरी, उनके पति कांशीराम एवं उनके पुत्र रवि कुमार पटले को 167 रूपए प्रति दिवस की दर से रोजगार भी मिल गया ।

डबरी निर्माण की शुरुआत, उनके आगे बढ़ने का एक कदम था । 20 मीटर बाई 20 मीटर साईज की एक अच्छी डबरी बनने से उनके लिए स्व-रोजगार के द्वार खुल गये। डबरी निर्माण के बाद, श्री कांशीराम और उसके पुत्र रवि ने सरपंच श्री डाखन सिंह चौधरी के साथ मछली पालन विभाग से संपर्क किया। यहाँ उन्हें अभिसरण के तहत आजीविका संवर्धन के लिए मछली पालन का विशेष प्रशिक्षण, जाल, एवं दवाईयाँ निःशुल्क मिल गई। वहीं विभाग ने दो हजार रूपए के रियायत दर पर छः किलो मछली बीज भी उन्हें उपलब्ध करा दिया। बस फिर क्या था, श्रीमती माहेश्वरी के पूरे परिवार ने दिलो-जान से डबरी में मछलीपालन का कार्य शुरु कर दिया। मछलियों के बीज जैसे ही बड़े हुये, श्री कांशीराम और उनके पुत्र रवि ने प्रत्येक सप्ताह मछलियाँ बाजार में 120 से 140 रुपये प्रति किलो की दर से बेचना शुरू कर दिया। पहले सप्ताह में ही लगभग 8,400 रूपए की आमदनी हो गई। मछली के व्यवसाय से उन्हें प्रत्येक सप्ताह अच्छी आमदनी होने लगी। मछलीपालन विभाग से प्राप्त मार्गदर्शन के आधार पर, उन्होंने अपने घर से कुछ रूपए लगाकर इस डबरी को और बड़ा तथा गहरा कर दिया, ताकि मछलीपालन बेहतर तरीके से हो सके और बड़ी साईज की मछलियाँ प्राप्त हो सके। आज साल 2020-21 में योजनांतर्गत बनी डबरी और उसमें हो रहे मछलीपालन को 3 साल हो चुके हैं और वे मछली पालन से अच्छी आमदनी कमा रहे तथा अपनी जरूरतों को पूरी कर रहे हैं।

गाँव के सरपंच श्री डाखन सिंह चौधरी, श्रीमती माहेश्वरी की निजी भूमि में निर्मित डबरी के बारे में बताते हैं कि ‘‘हमारे गांव से 4 से 5 कि.मी. दूर समनापुर और रेंगखार गाँव में साप्ताहिक बाजार बैठता है । श्री कांशीराम और उनके बेटे, वहाँ मछली बेचने के लिए अपनी दुकान लगाते हैं। उनके द्वारा मनरेगा से बनी इस डबरी में किया जा रहा मछली पालन, आज गाँव में सभी के लिए नाजिर बन गया है ।’’

हितग्राही श्रीमती माहेश्वरी अपना अनुभव बताती हैं कि ‘‘डबरी बनाकर, मछली पालन करना ही हमने सोच रखा था। पंचायत के माध्यम से हमको महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत रोजगार और परिसम्पत्ति के जरिये स्व-रोजगार, दोनों मिल गया। एक बड़ी डबरी मेरे यहाँ बन गई। इसमें रोहू, कतला, मृगल एवं बी ग्रेड जैसी मछलियों का पालन कर, उन्हें पास के बाजार में बेच रहे हैं। सीजन में अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है।’’

श्रीमती माहेश्वरी के पति श्री कांशीराम कहते हैं कि ‘‘मैं और मेरा बेटा रवि तथा घर के अन्य सदस्य मिलकर, डबरी से मछली पकड़ते हैं। डबरी निर्माण के बाद से हमको बहुत फायदा हो रहा है, क्योंकि पहले हम रोजी-मजदूरी करके अपना खर्च चलाते थे, लेकिन अब एक मछलीपालक किसान बनकर लाभ कमा रहे हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से हमको डबरी के रूप में जो स्व-रोजगार का साधन मिला है, उससे हमारी आजीविका बेहतर हो गई है। सालभर में मछलीपालन से लगभग 18 से 20 हजार रुपयों की कमाई हो जाती है।’’


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माह- जून2020
रिपोर्टिंग एवं लेखन   -              श्री विनित दास, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- कबीरधाम, छत्तीसगढ़।
तथ्य व स्त्रोत            -               श्री बाबूलाल मेहरा, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बोड़ला, जिला-कबीरधाम, छत्तीसगढ़।
संपादन                    -               श्री संदीप सिंह चैधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 11 June 2020

डबरी बनी नूतन के विश्वास का आधार

काँकेर जिले के निवासी श्री नूतन दर्रो पेशे से आज किसान हैं और उन्हें विश्वास है कि पिछले साल की भाँति इस साल भी उनकी खरीफ की फसल को अनियमित वर्षा से नुकसान नहीं होगा। खेतों में सूखे की दरारें नहीं अपितु हरी-भरी धान की फसल दिखाई देगी। उनके इस विश्वास का आधार बनी है, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से बनी डबरी। इस डबरी की बदौलत श्री नूतन ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में धान और काले चने की अच्छी पैदावार ली थी। अब डबरी में मछलीपालन कर, लॉकडाउन के कारण पैदा हुई आर्थिक मंदी में भी मुनाफा कमा रहे हैं।

भानुप्रतापपुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-चिचगाँव के कृषक श्री नूतन, अपने जीवन में आये इस बदलाव के बारे में बताते हैं कि पिछले तीन-चार सालों से बारिश के मौसम में अनियमित वर्षा हो रही है। बारिश में बीच-बीच में सूखे का एक लंबा अंतराल आ जाता था, जिससे धान के खेत पानी की कमी के कारण सूखने लगते और उनमें दरारें साफ-साफ नजर आने लगतीं। हालात तो यहाँ तक खराब हो गये थे कि सूखे के बाद जब पानी गिरता तो फिर से खेतों की बुआई करनी पड़ती। इससे खेती-किसानी को बहुत नुकसान हो रहा था। इस नुकसान से मैं बहुत परेशान रहने लगा था।

 श्री नूतन की इस परेशानी को समझते हुए, ग्राम पंचायत ने उनकी बहुत मदद की । उनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से ग्राम पंचायत ने डबरी का निर्माण करवाया। इसमें उनके परिवार को 112 दिनों की 19 हजार 264 रुपये मजदूरी भी प्राप्त हुई। डबरी बनने के बाद एकत्र हुये वर्षाजल का उपयोग श्री नूतन ने अनियमित वर्षा के दौरान किया और अपनी धान एवं काले चने की फसल को बचाया। खरीफ की फसल लेने के बाद उन्होंने डबरी में जून, 2018 से मछलीपालन शुरु किया। अब तक वे मछलियों को बेचकर लगभग 50 हजार रुपये कमा चुके हैं। लॉकडाउन की अवधि में उन्होंने 20 हजार रुपये की मछलियाँ बेची हैं। डबरी बनने के बाद हुई आय से श्री नूतन ने सबसे पहले अपनी 20 हजार रुपये की उधारी को चुकाया और शेष बचे पैसे का उपयोग बच्चों की शिक्षा और खेती-बाड़ी में किया।

ग्राम रोजगार सहायक श्री उपेन्द्र शोरी नूतन के खेत में निर्मित डबरी के बारे में कहते हैं कि इनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से साल 2018-19 में राशि 2 लाख 94 हजार रुपयों की लागत से डबरी का निर्माण करवाया गया था। डबरी बनने के बाद से नूतन में एक गजब का आत्मविश्वास दिखाई देता है। वे अब अपने खेती-किसानी और मछलीपालन के काम में लगे रहते हैं।

जल संग्रहण का साधन मिलने के बाद, हर साल खेत से यूँ ही बह जाने वाला वर्षाजल, अब डबरी के जरिये नूतन और नूतन जैसे किसानों के जीवन को खुशियों से भिगा रहा है।

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माह- जून, 2020
रिपोर्टिंग व लेखन             - श्री ऋषि जैन, शिकायत निवारण अधिकारी, जिला पंचायत-काँकेर, छ.ग.। 
पुनर्लेखन व सम्पादन         - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
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Wednesday, 10 June 2020

हौसलों की उड़ान कभी नाकामियाब नहीं होती

मनरेगा से बनी डबरी से लाख रुपये की धान बेचकर, अब लॉकडाउन में मछलीपालन से कमाया लाभ.


हौसलों की उड़ान कभी नाकामियाब नहीं होती और मुश्किलें उन्हें कमजोर नहीं, मजबूत बना देती हैं। कोरिया जिले के खड़गवाँ विकासखण्ड के सुदूर गाँव पेण्ड्री के निवासी श्री रामसिंह ने इसे अपने आत्मविश्वास और महात्मा गांधी नरेगा से मिली डबरी के दम पर साबित कर दिखाया है। बारिश में खेती-बाड़ी कर, सालभर मजदूरी पर निर्भर रहने वाले श्री रामसिंह आज अपने खेत में महात्मा गांधी नरेगा से बनी डबरी में मछलीपालन में व्यस्त हैं। उनके लिए मानों लॉकडाउन जैसी कोई आर्थिक मुश्किल ही नहीं है। उन्होंने मछलीपालन कर लॉकडाउन में मछली बेचकर बारह हजार रुपये से अधिक का लाभ कमाया है। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत श्री रामसिंह के खेत में बनी डबरी ने उनकी आजीविका को मजबूती दी है। इससे उनके हौंसलों को मजबूती मिली और उन्होंने पहली बार बम्पर धान का उत्पादन लेकर, उसे सहकारी समिति को बेचकर एक लाख 20 हजार रुपयों की आय प्राप्त की।

महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित डबरी ने कोरिया जिले के वनवासी श्री रामसिंह पिता श्री पुरुषोत्तम के हौसलों को कभी कम नहीं होने दिया है। वे हमेशा अपनी आजीविका की समृद्धि के लिए कोशिशे करते रहते हैं, जिसमें यह डबरी उनकी सहायक बनी हुई है। छः एकड़ जोत के किसान श्री रामसिंह कहते हैं कि पहले उनकी आजीविका बारिश के भरोसे वाली खेती और मजदूरी पर ही निर्भर थी। खेती से सालभर खाने का अनाज ही मिल पाता था, बाकी जरुरतों के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी। ऐसे में एक दिन ग्राम पंचायत कार्यालय में ग्राम पंचायत विकास योजना के निर्माण के लिए बुलाई गई बैठक में महात्मा गांधी नरेगा से किसानों के आजीविका विकास के लिए डबरी निर्माण की जानकारी प्राप्त हुई। डबरी से मछलीपालन और खेती के लिए पानी के प्रबंधन की बात ने तो मानो श्री रामसिंह के बेहतर आजीविका पाने के हौसलों को पंख लगा दिये हों। उन्होंने तुरंत ही ग्राम पंचायत में अपने खेत में डबरी बनवाने का आवेदन दे दिया। ग्राम पंचायत ने डबरी निर्माण के लिए एक लाख 60 हजार रुपए मंजूर कर काम शुरु कर दिया। तीन सप्ताह तक चले इस कार्य में श्री रामसिंह के परिवार ने भी काम किया और उन्हें 14 हजार रुपये की मजदूरी प्राप्त हुई। 18 अप्रेल 2017 को उनके खेत में योजनांतर्गत डबरी बनकर तैयार हो गई।

देशव्यापी लॉकडाउन में आर्थिक मंदी के इस दौर में जहाँ लोगों के हौसलें पस्त हुए हैं। वहाँ श्री रामसिंह जैसे किसान अपने आत्मविश्वास और महात्मा गांधी नरेगा से मिले आजीविका के संसाधन के सहारे आगे बढ़ रहे हैं। महात्मा गांधी नरेगा से डबरी खुदने के बाद, पहली ही बारिश में वह पानी से लबालब भर गई। पहला साल नए संसाधन के उपयोग को समझने का रहा और दूसरे साल डबरी की मदद से धान की अच्छी पैदावार के बाद श्री रामसिंह ने गेहूँ का भी उत्पादन लिया। इसके बाद खड़गवाँ विकासखण्ड के आमाडांड से चार सौ रुपये की दर तीन किलो मछली बीज लेकर उन्होंने डबरी में मछलीपालन शुरु किया। मछलीपालन की उनकी कोशिशें सफल हुई और 12 हजार रुपये से अधिक की मछली लॉकडाउन में बेच चुके हैं। इस प्रकार रामसिंह ने साबित कर दिया है कि जो लोग अपने हौसलों को कभी कम नहीं होने देते और हमेशा कोशिश करते रहते हैं, वे कभी भी नाकामियाब नहीं होते। उन्हें सफलता जरुर हासिल होती है।
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एक नजर %&
कार्य का नाम - डबरी निर्माण (हितग्राही- श्री राम सिंह)
ग्राम पंचायत - पेण्ड्री, विकासखण्ड - खड़गवाँ, जिला - कोरिया, छत्तीसगढ़।
स्वीकृत राशि – 1.60 लाख.

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माह- जून, 2020
रिपोर्टिंग व लेखन             -           श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छ.ग.।
पुनर्लेखन व सम्पादन        -           श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
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Saturday, 6 June 2020

महात्मा गांधी नरेगा से बनी डबरी में मछली पालन कर खम्हन ने लॉक-डाउन में भी कमाया मुनाफा

डबरी के आसपास की जमीन में उगाते हैं सब्जियां, मुश्किल समय में कई ग्रामीणों को बांटी सब्जी


महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) से हो रहे आजीविका संवर्धन के कार्यों ने कई परिवारों की जिंदगी बदल दी है। जीवन-यापन के साधनों को सशक्त कर इसने लोगों की आर्थिक उन्नति के द्वार खोले हैं। कोविड-19 से निपटने लागू देशव्यापी लॉक-डाउन के दौर में भी महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित संसाधनों ने हितग्राहियों की आजीविका को अप्रभावित रखा है। नए संसाधनों ने उन्हें इस काबिल भी बना दिया है कि अब विपरीत परिस्थितियों में वे दूसरों की मदद कर रहे हैं।

लॉक-डाउन में जब लोग रोजी-रोटी की चिंता में घरों में बैठे हैं, तब जांजगीर-चांपा के सीमांत किसान खम्हन लाल बरेठ अपनी डबरी से मछली निकालकर बाजारों में बेच रहे हैं। डबरी के आसपास की जमीन में उगाई गई सब्जियां उन्हें अतिरिक्त आमदनी दे रही हैं। वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण पैदा हुए विपरीत हालातों के बीच भी उनका 14 सदस्यों का परिवार आराम से गुजर-बसर कर रहा है। खम्हन लाल की इस बेफिक्री का कारण मनरेगा के तहत उनके खेत में खुदी डबरी है। इस डबरी ने मछली पालन के रूप में कमाई का अतिरिक्त साधन देने के साथ ही बरसात में धान की फसल के बाद सब्जी की खेती को भी संभव बनाया है।
जांजगीर-चांपा जिले के मालखरौदा विकासखंड के चरौदा गांव के किसान खम्हन लाल के खेत में निर्मित डबरी ने उनके जीवन की दशा और दिशा बदल दी है। मनरेगा के अंतर्गत 20 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी एवं 10 मीटर गहरी निजी डबरी ने जीवन आसान कर दिया है। इस डबरी के निर्माण के दौरान खम्हन लाल के परिवार के साथ ही अन्य ग्रामीणों को भी कुल 656 मानव दिवसों का सीधा रोजगार मिला। खम्हन लाल और उनकी पत्नी ने 38 दिन साथ काम कर 6346 रूपए की मजदूरी प्राप्त की।

खम्हन लाल बताते हैं कि डबरी निर्माण के पहले वे धान की फसल के बाद मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। लेकिन जब से डबरी बनी है वे धान की खेती के साथ मछली पालन भी कर रहे हैं। डबरी के आसपास चारों ओर सब्जी-भाजी तथा फलों के पेड़ भी लगाए हैं। पिछले दो वर्षों से वे मछली पालन और सब्जी बेचकर सालाना करीब 50 हजार रूपए की अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं। 

खम्हन लाल के बेटे बसंत कुमार जो अभी गांव के सरपंच भी हैं, कहते हैं कि मनरेगा ने उनकी जिंदगी बदल दी है। डबरी ने उनकी आजीविका को स्थायी और सशक्त बनाया है। अभी डबरी के आसपास नमी वाली जगहों पर फल और सब्जियां उगा रहे हैं। यहां हम लोगों ने केला, पपीता, कटहल, मुनगा, अमरूद, हल्दी, मिर्च, लहसुन, तरोई, टमाटर, लौकी, मखना और बरबट्टी लगाया है। लॉक-डाउन में सब्जी की जो भी पैदावार हुई, उसे बाजार में बेचने के साथ-साथ गांव के जरूरतमंद परिवारों को भी दिया है। मुश्किल समय में लोगों की मदद कर सकें, इसका सुकुन है।


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 माह- जून, 2020

रिपोर्टिंग व लेखन             - श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-जाँजगीर चाम्पा, छ.ग.।
पुनर्लेखन व सम्पादन प्रथम - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
अंतिम संपादन                 - श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क अधिकारी, जनसंपर्क संचालनालय, छत्तीसगढ़ ।
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Wednesday, 21 August 2019

डबरी बनी बारिश की बूँदों का तीर्थ

डबरी बनी बारिश की बूँदों का तीर्थ

         "मेरा यह खेत पटपरी जंगल से लगा हुआ है। हर साल बारिश का पानी इस जंगल से निकलकर मेरे खेत से होकर यूँ ही बेकार बह जाता था। मैं अक्सर यह सोचा करता था कि यदि मैं इस पानी को खेत में ही रोक लूँ, तो बारिश के बाद रबी की फसल भी ले सकता हूँ। मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि ग्राम पंचायत मेरी इस कल्पना को धरातल पर उतारकर, मेरे खेत में डबरी बना देगी और यह बहता हुआ पानी मेरी जिंदगानी बन जायेगा। डबरी बनने के बाद मैंने खरीफ के बाद रबी की फसल भी ली है। मछलीपालन से भी दो पैसे आ जाये, सोचकर मैंने डबरी में मछली के बीज भी डाल दिये हैं।" कोरबा जिले की ग्राम पंचायत दमिया के आदिवासी किसान श्री जवाहिल सिंह पिता श्री उदयराम बड़े उत्साह से यह बताते हैं, और साथ ही जोश में आकर कहते हैं कि मेरी डबरी का कमाल कोई भी व्यक्ति मेरे खेत पर आकर देख सकता है।

         कोरबा जिले के पाली विकासखण्ड मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर दमिया ग्राम पंचायत है। यहाँ श्री जवाहिल सिंह खैरवार अपने परिवार के साथ खेती और मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं। इनका लगभग ढाई एकड़ का खेत गाँव की सीमा पर पटपरी जंगल से लगकर है। इस जंगल की भूमि का ढाल इनके खेत की ओर है। हर साल बारिश में बरसात की बूँदें आतीं और श्री जवाहिल के खेत से पानी की धाराओं के रुप में बहकर यूँ ही निकल जातीं। श्री जवाहिल जंगल से बहकर आने वाली बारिश की इन बूंदों को सहेजना चाहते थे। उनकी इस चाहत में मददगार बनी ग्राम पंचायत और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना। एक दिन ग्राम पंचायत कार्यालय में ग्राम रोजगार सहायक श्री सबल सिंह कुसरो ने श्री जवाहिल को बारिश के पानी को सहेजने के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से खेत में डबरी बनाने की सलाह दी। उन्होंने डबरी बनाने से होने वाले फायदे बताते हुए कहा कि डबरी से भूजल स्तर बढ़ता है। डबरी में पानी होने से आस-पास की जमीन में नमी तो रहेगी ही, बारिश के बाद इससे सिंचाई भी की जा सकेगी। साथ ही चाहो तो मछलीपालन कर ताजा मछलियों का स्वाद भी ले सकोगे और बाजार में इन्हें बेचकर दो पैसे भी कमा लोगे। ग्राम रोजगार सहायक की सलाह श्री जवाहिल को जँच गई। उन्हें लगा कि बहती हुई बारिश की बूँदे उनकी अंजुरी में भर गई हो। उन्होंने तुरंत ही ग्राम पंचायत में डबरी निर्माण का आवेदन दे दिया। निर्धारित प्रकिया पूरी होने के बाद उनके नाम से महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत डबरी निर्माण का कार्य स्वीकृत भी हो गया।

          आखिरकार वह दिन भी आ गया, जिसका श्री जवाहिल को बेसब्री से इंतजार था। 3 मई 2018 को उन्होंने अपनी धर्मपत्नी और छोटे बेटे संतोष के साथ मिलकर खेत में ले-आउट के अनुसार डबरी की खुदाई प्रारंभ कर दी। इस खुदाई में गाँव के 48 ग्रामीणों ने भी काम किया। 2 जुलाई 2018 को डबरी पूरी तरह बन कर तैयार हो गई। डबरी निर्माण में तकनीकी मार्गदर्शन देने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर क्लाइमेट रेजिलिएंट ग्रोथ (आई.सी.आर.जी.) परियोजना के तकनीकी विशेषज्ञ श्री पुरुषोत्तम देशमुख ने बताया कि डबरी का निर्माण इस तरह किया गया है कि खेत से लगे पटपरी जंगल से बहकर पानी इनलेट के जरिये सीधे डबरी में आ जाये। अक्सर पानी के साथ मिट्टी भी बहकर आती है, इसलिये इनलेट में स्टोन पिचिंग का कार्य किया गया है और 3 मीटर लंबाई, 2 मीटर चौड़ाई व 1 मीटर गहराई का सील्ट-चेम्बर बनाया गया है। इससे डबरी में गाद रहित पानी आने का रास्ता बन गया।

         डबरी के संबंध में गाँव की सरपंच श्रीमती अनिता जगत कहती हैं कि डबरी जिसे आप लोग फार्म पॉण्ड के नाम से जानते हैं, से वाटर रिचार्ज तो होता ही है, डबरी के हितग्राही की आजीविका को भी सहारा मिलता है। यानी, डबरी से हैं दोनों तरह के फायदे! जवाहिल की डबरी का आकार 25 मीटर लम्बाई, 25 मीटर चौड़ाई, 3 मीटर गहराई का है। यह मात्र 41 दिनों में तैयार हो गई। खुद श्री जवाहिल और उनके परिवार ने भी दिन-रात एक करके बारिश की बूँदों की धाराओं के इस तीर्थ की रचना की है। इसके लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से कुल 2 लाख 64 हजार रुपये स्वीकृत किये गये थे। डबरी निर्माण से 51 ग्रामीणों को सीधे रोजगार मिला, इनमें 28 महिलाएँ एवं 23 पुरुष थे। श्री जवाहिल के परिवार को मजदूरी के रुप में पन्द्रह हजार तीन सौ बारह रुपये मिले। इन्होंने डबरी के पानी से रबी फसल के रुप में गेहूँ की फसल ली थी, जिससे पहली बार 3 से 4 क्विंटल गेहूँ का उत्पादन हुआ था। इस डबरी से आस-पास के 3 किसान भी लाभान्वित हुए हैं। बारिश के बाद श्री जवाहिल के पड़ोसी किसान श्री छत्रपाल, श्री दुखीराम और श्री होरीलाल के लगभग 2.10 एकड़ खेत पंप के जरिये डबरी से सिंचाई कर सिंचित हुए थे। 

          डबरी निर्माण से अपने आपको भाग्यशाली महसूस करने वाले श्री जवाहिल सिंह कहते हैं कि "पहले तो मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यहाँ पानी संचय का काम भी हो सकता है और इतना बड़ा बदलाव आ सकता है। अब मैं साल में दो फसलें लेता हूँ। डबरी से मुझे सिंचाई का साधन मिल गया है। इसकी मदद से मैंने 37 हजार 200 रुपयों की अतिरिक्त कमाई की है। इसके बाद ही मुझमें हिम्मत आई और मैंने अपने बेटे संतोष की शादी की। डबरी बनने के बाद मैंने शौकिया तौर पर कुछ मछली बीज डाले थे और सपरिवार बड़े चाव से मछली का स्वाद भी लिया। अबकी बार मैं अतिरिक्त लाभ के लिए डबरी में मछलीपालन करुँगा।"

          दमिया गाँव में श्री जवाहिल के खेत में डबरी निर्माण से पानी-संचय की एक वैचारिक धारा ने बहना शुरु किया है। यदि थोड़ी और कोशिश की जाये तो इसे एक 'डबरी-आंदोलन' का रूप दिया जा सकता है। सिर्फ सरकारी जमीन पर तालाब बनाने से ही जल संरक्षण के बड़े उद्देश्यों को हासिल नहीं किया जा सकता। इसके लिए हर किसान को इस तरह के आंदोलन का हिस्सा बनना होगा।


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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल                                 नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़।

तथ्य व स्त्रोत-        श्री सुरेश यादव, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-पाली, जिला-कोरबा, छत्तीसगढ़।
संपादन -              श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर,                                       जिला- रायपुर, छत्तीसगढ़।
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