Monday, 25 June 2018

राजेन्द्र द भागीरथी


हिम्मत, मेहनत और जुनून से खुद गया कुआँ और
बन गई एक कहानी...  राजेन्द्र द भागीरथी
राजेन्द्र की कहानी भी बालीवुड फिल्म "मांझी-द माउंटेनमैन" की कहानी की तरह हिम्मत, मेहनत और जुनून पर आधारित है। दोनों कहानियों में सिर्फ इतना-सा अंतर है कि फिल्म की कहानी में दशरथ मांझी अपने जुनून व आत्मविश्वास के दम पर पहाड़ काटने जैसा असंभव काम करके रास्ता बनाता है, जबकि इस कहानी में राजेन्द्र कुमार कुआँ की खुदाई में आये चट्टान के टुकड़े-टुकड़े कर, कुआँ बना लेता है। इन दोनों की कहानी से यह साबित होता है कि व्यक्ति के अंदर असीमित क्षमताएं होती हैं, बस उसे खुद पर यकीन होना चाहिए।

श्री राजेन्द्र कुमार छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के गुण्डरदेही विकासखण्ड के मोहंदीपाट गाँव में रहने वाले एक आम किसान हैं। उनके पास जीवन यापन करने के नाम पर खेती-बाड़ी के लिए 4.25 एकड़ जमीन तो थी, किन्तु उसकी तरक्की में सबसे बड़ी रुकावट सिंचाई का साधन नहीं होना था। उसके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह खुद का कुआँ खुदवा सके। सालभर में गुजर-बसर के लायक ही धान की पैदावार हो पाती थी, बाकी समय उसे मजदूरी पर निर्भर रहना पड़ता था। ऐसी स्थिति में परिवार को अच्छा जीवन स्तर और सुख-सुविधाएं मुहैया हो, यह केवल एक सपना ही था, जो वह दिन-रात देखा करता था।

एक दिन उनको इस सपने को साकार करने का आधार मिल गया। उन्हें सरपंच श्री मुकेश कुमार साहू से न केवल महात्मा गांधी नरेगा से कुआँ मिलने की बात का पता चला, अपितु 3 मार्च 2017 को उनके नाम से महात्मा गांधी नरेगा योजनांतर्गत 2 लाख 87 हजार रुपयों की लागत से कुआं निर्माण का कार्यादेश भी जारी हो गया। यह आदेश, राजेन्द्र के लिए केवल आदेश नहीं था, बल्कि उसके सपने के सच होने का प्रमाण था। उसने पूरे उत्साह के साथ अपने माता-पिता और जीवनसाथी श्रीमती गीताबाई का साथ लेकर 18 मार्च, 2017 को कुएँ की खुदाई प्रारंभ कर दी। इस कार्य में उन्हें 15 ग्रामीणों का भी साथ मिला। अभी कुएँ की 4 फीट की खुदाई ही हुई थी, कि उन्हें एक बड़ी-सी चट्टान दिखाई देने लगी। तमाम कोशिशों के बावजूद चट्टान को निकालना सम्भव नहीं हो पा रहा था। ऐसे में वहाँ से गुजरने वाले कुछ ग्रामीणों ने राजेन्द्र को कुएं की खुदाई को बंद करने की सलाह तक दे डाली। चट्टान की कठोरता और लोगों की सलाह से उसे लगने लगा कि उसका सपना साकार होने के पहले ही टूट जायेगा, पर सपने के प्रति लगाव ने उसमें हौसले का संचार कर दिया था।

अपने हौसले और मेहनत के दम पर गैती, छैनी-हथौड़ी और सब्बल को लेकर वह अकेला ही सुबह से लेकर रात तक चट्टान को तोड़ने में जुट गया। अब यह उसका जुनून सा बन चुका था। चट्टान और बड़े पत्थरों को तोड़ते समय उसके मन में एक पल भी यह नहीं आया कि यह काम उसके बस की बात नहीं है। राजेन्द्र के इस जुनून को देखकर, परिवार के सदस्य और साथी ग्रामीण भी एक बार फिर उसके साथ हो लिए। एक महीने की मेहनत के बाद कुएँ की खुदाई में रोड़ा बनी चट्टान छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल चुकी थी। अब कुएँ की 10 फीट की खुदाई और करने के बाद पानी नजर आने लगा था। आखिरकर वह दिन भी आ गया, जब 20 फीट की खुदाई के बाद, 9 जून 2017 को कुआं बन कर तैयार हो गया।
मोहंदीपाट के ग्राम रोजगार सहायक श्री झनक लाल कुर्रे कहते हैं कि कुएँ की खुदाई में राजेन्द्र की हिम्मत, मेहनत और जुनून ने ही विशाल चट्टान को पत्थर-कंकड़ों में तबदील कर दिया। कुआँ बनने के बाद से उसने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। अपने खेत में पहली बार कुएँ के पानी से धान का फसल लिया। उसके बाद आलू और प्याज की फसल भी ली। उसने उसे बाजार में बेचकर अच्छा-खासा मुनाफा कमाया। इस मुनाफे से पहले तो डिजल पम्प खरीदा और उसके बाद राज्य सरकार की सौर सुजला योजना से सौर पम्प भी लगवा लिये हैं। अब वे अक्सर खेत में अपने सपने... यानि कुएँ के साथ खेती-बाड़ी करते हुये नजर आते हैं। 

   





महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...