Thursday, 31 January 2019

डबरी बनी संकटमोचन

डबरी बनी संकटमोचन




           डबरी... कहने को तो एक छोटा-सा शब्द है और दिखने में किसी खेत में बरसात के पानी को इकट्ठा करने के लिए बनाया गया एक छोटा-सा तालाब, किन्तु जब यह किसी किसान की आजीविका का स्त्रोत और जीवन निर्वाह का मुख्य साधन बन जाए, तो एक बड़ी बात हो जाती है। यह कहानी है श्री महेन्द्र और उनके खेत में बनी डबरी की। महात्मा गांधी नरेगा से महेन्द्र के खेत में जो डबरी बनाई गई, उसने महेन्द्र के जीवन में छाई आर्थिक समस्याओं से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया और संकटमोचन बन गई।
             धमतरी जिले के विकासखण्ड मगरलोड की ग्राम पंचायत बिरझुली में आश्रित ग्राम आलेखुटा है। यहाँ रहने वाले श्री महेन्द्र कुमार साहू एक किसान हैं। इनके पास 4 एकड़ कृषि भूमि है, जिसमें वे बारिश के सीजन में ही फसल ले पाते थे। बाकी समय भूमि का अधिकांश हिस्सा सिंचाई के अभाव में खाली पड़ा हुआ रहता था। सिर्फ एक फसल ही ले पाने के कारण उनकी आमदनी उतनी नहीं थी, कि वे अपने परिवार को बेहतर जिंदगी दे सकें। यूँ कहे कि महेन्द्र जैसे-तैसे अपने परिवार का गुजर बसर कर पा रहा था।
          एक दिन ग्राम पंचायत में महेन्द्र की मुलाकात तकनीकी सहायक शैलेन्द्र सरसिहा से हुई। शैलेन्द्र ने उनको महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से किसानों के खेतों में डबरी निर्माण कराये जाने की जानकारी दी। महेन्द्र की डबरी के प्रति उत्सुकता देख शैलेन्द्र ने डबरी में बरसात के पानी को संग्रह कर खेतों की सिंचाई के लिए उपयोगी बनाने के तकनीकी पहलुओं और मछलीपालन जैसे अतिरिक्त लाभ मिलने के बारे में उन्हें विस्तार से समझाया। खेतों की सिंचाई और मछलीपालन की बात सुन महेन्द्र के चेहरे पर आई चमक उसकी खुशी बयां कर रही थी। कहते हैं न “जहाँ चाह, वहाँ राह”। डबरी निर्माण की बात सुन महेन्द्र को अपनी आजीविका से संबंधित समस्या का समाधान नजर आने लगा। परिवार से चर्चा करने के बाद महेन्द्र ने अपने खेत में डबरी बनवाने के लिए आवेदन कर दिया। कुछ ही दिनों बाद ग्राम पंचायत को जिला पंचायत से महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत श्री महेन्द्र कुमार पिता श्री कार्तिक राम के नाम से डबरी निर्माण की प्रशासकीय स्वीकृति मिल गई। ग्राम पंचायत ने भी बिना देर किये पंद्रह जून, 2016 को डबरी निर्माण के लिए खुदाई कार्य प्रारंभ करवा दिया। डबरी में श्री महेन्द्र के पूरे परिवार के अलावा आस-पास के महात्मा गांधी नरेगा मजदूरों को भी काम मिला। देखते ही देखते लगभग चालीस दिनों के भीतर श्री महेन्द्र के खेत में 20 मीटर लम्बी, 20 मीटर चौड़ी और 3 मीटर गहरी डबरी बनकर तैयार हो गई। श्री महेन्द्र को अब केवल बारिश का इंतजार था, बारिश को अभी दो माह बचे हुए थे। इंतजार का समय लम्बा था, लेकिन महेन्द्र की उत्सुकता उसे दिन में एक बार डबरी के पास अवश्य ले जाती। इंतजार के दिन भी आखिर बीत ही गए। आषाढ़ की झमाझम बारिश ने महेन्द्र की खेत व डबरी को लबालब भर दिया। महेन्द्र ने अपनी डबरी में मछली बीज भी डाल दिया। डबरी से भूमि में नमी रहने लगी। दिन बीतते गए। बारिश में लगी धान की फसल पकने लगी। । इस बार पहले की तुलना में धान की अच्छी पैदावार हुई है। धान की फसल लेने के बाद, बाड़ी के लिए पानी की कमी होने पर डबरी के पानी से ही श्री महेन्द्र ने खेतों की सिंचाई भी की। डबरी के चारों तरफ मेड़ में महेन्द्र ने आलू, मटर, बैगन, धनिया-मिर्ची भी लगाई, जिसके कारण उसका प्रतिदिन का साग-सब्जी का खर्चा भी बचा और उसे आसपास के ग्रामीणों को बेचकर कुछ पैसे भी कमा लिए।
               डबरी में डाली गई मछलियाँ भी बड़ी हो गई, जिसका श्री महेन्द्र ने सपरिवार उपभोग किया और बेचना भी शुरू कर दिया। मछली को बेचने से श्री महेन्द्र को अच्छी आमदनी हुई है। महेन्द्र का कहना है कि पानी की कमी के कारण पहले मैं कुछ कर नहीं पा रहा था, लेकिन जब से डबरी मिली है, एक राह मिल गई है।
              महेन्द्र के जीवन में डबरी से आये सुखद परिवर्तन का दौर निरंतर जारी है...






----------------------------------------------------------------------------
एक नजरः-
कार्य का नाम- डबरी निर्माण, ग्राम पंचायत- बिरझुली,  विकासखण्ड- मगरलोड,  जिला- धमतरी, छत्तीसगढ़
स्वीकृत राशि1.43 लाख रुपए,  स्वीकृति वर्ष2016-17
---------------------------------------------------------------------------------------------



----------------------------------------------------------------------------

रिपोर्टिंग - श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- जांजगीर चाम्पा
तथ्य व स्त्रोत-  श्री धरम सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी 
लेखन - श्री प्रशांत कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, रायपुर
संपादन - श्री संदीप सिंह चैधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर एवं
               श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, रायपुर
 ----------------------------------------------------------------------------

Tuesday, 1 January 2019

जुगलबंदी और योजनाओं के तालमेल ने बनाया, आंगनबाड़ी को बालवाड़ी


जुगलबंदी और योजनाओं के तालमेल ने बनाया,
आंगनबाड़ी को बालवाड़ी
दो महिलाओं की जुगलबंदी और योजनाओं के तालमेल ने धमतरी जिले के कुरुद विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-परसवानी की आंगनबाड़ी को एक नया आधार प्रदान किया है। आज यह सही मायनों में जीवंत होकर बालवाड़ी बन गई है। कल तक जहाँ आंगनबाड़ी आने के नाम से बच्चे आना-कानी किया करते थे, वहीं आज बच्चे रोज आंगनबाड़ी केन्द्र जाने की जिद करने लगे हैं। इस परिवर्तन का श्रेय जाता है, ग्राम पंचायत की महिला सरपंच श्रीमती कविता चंद्राकर एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती येमलता साहू की जुगलबंदी को। इन दोनों ने मिलकर जहाँ नवीन आंगनबाड़ी भवन को प्ले-स्कूल बना दिया है, वहीं महात्मा गांधी नरेगा और एकीकृत बाल विकास योजना की निधियों के तालमेल से आंगनबाड़ी को उसका अपना नवीन आंगन मिल गया है।
          लभगभ दो साल पहले की ही तो बात है, जब गांव की आंगनबाड़ी प्राथमिक शाला के एक कमरे में लगा करती थी। रंगों के अभाव में न बच्चे आंगनबाड़ी में ज्यादा समय तक रुकना नहीं चाहते थे। उनके माता-पिता भी उन्हें छोड़ने को राजी नहीं हुआ करते थे। आंगनबाड़ी की इस दशा से कार्यकर्ता श्रीमती येमलता साहू काफी चिंतित थी। उन्होंने अपनी चिंता और परेशानी को गांव की सरपंच श्रीमती कविता चंद्राकर के साथ साझा किया। इस पर सरपंच ने उन्हें योजनाओं के तालमेल से नवीन आंगनबाड़ी भवन निर्माण की व्यवस्था से अवगत कराया। बस, फिर क्या था, मानों येमलता साहू जी की सारी चिंताएँ एक बार में ही छू-मंतर हो गई। सरपंच ने ग्राम पंचायत की बैठक बुलाई। बैठक में यह तय हुआ कि सरपंच गांव की आंगनबाड़ी के लिए नवीन भवन का निर्माण शहरी प्ले-स्कूल की भाँति करवाएंगी और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व उनकी टीम आंगनबाड़ी की भीतरी साज-सज्जा, रंग-रोगन और अन्य व्यवस्थाओं को देखें। इस तरह दोनों की जुगलबंदी और महात्मा गांधी नरेगा श्रमिकों के परिश्रम से गांव को उनका नया आंगनबाड़ी भवन मिल गया। भवन बिल्कुल वैसा ही था, जैसे कि इसकी कल्पना की गई थी। प्रवेश द्वार से लेकर पिल्लरों तक को सीस-पेंसिल का स्वरुप दिया गया। दीवारों की बाहरी-सतहों को सफेद रंग से इस तरह पोता गया है, मानों वे कोई ड्राइंग-बुक का कोरा-कागज हो और उस पर चित्र उकेरने के लिए सीस-पेंसिलें रखी गई हों। वहीं बाहरी दीवारों पर कलात्मक चित्रकारी के जरिये अक्षरमाला, गिनती, जोड़ना-घटाना, पंतग उड़ाना और खेल-कूद के दृश्यों को मनोहारी तरीके से उकेरा गया है। ऐसे में जब सूरज की पहली किरण इस भवन पर पड़ती है, तो मानों आंगनबाड़ी बच्चों को कहती है...चलो चलें, आंगनबाड़ी चलें!
      नवीन आंगनबाड़ी भवन के संबंध में अपनी भावनाएं व्यक्त करती हुई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती येमलता साहू हर्षपूर्वक बताती हैं कि जब से यह नया आंगनबाड़ी भवन बना है, बच्चों को आकर्षित कर रहा है। प्ले-स्कूल की तरह दिखने के कारण बच्चे ही क्या हर कोई यहाँ एक बार आकर देखना चाहता है। चूँकि बच्चों पर रंगों और आकृतियों का विशेष प्रभाव पड़ता है, इसलिए आंगनबाड़ी के हॉल को चित्रकारी से एवं बाल सुलभ ढंग से सजाया गया है। यहाँ बच्चों को खेल-खेल में अनौपचारिक शिक्षा दी जाती है। उनका मानसिक और शारीरिक विकास किया जाता है। खेलों के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी की जाती हैं। माहौल ऐसा है कि आंगनबाड़ी आने के लिए बच्चों पर दबाव नहीं डाला जाता है बल्कि बच्चे खुद आंगनबाड़ी आने को लlलायित रहते हैं। मेरी आंगनबाड़ी अब सही मायनों में बालवाड़ी बन गई है। वर्तमान में यहाँ मेनका, रेशमी, लक्ष्मी, दीपमाला, टेकेश्वरी सहित 18 बच्चे आते हैं। इसके साथ ही 09 गर्भवती महिलाओं एवं 04 शिशुवती माताएँ के नाम भी रजिस्टर में दर्ज हैं, जिन्हें समय पर टीकाकरण एवं पोषण-आहार की जानकारी दी जाती है और पोषण सप्ताह मनाया जाता है।
             गांव की सरपंच श्रीमती कविता चंद्राकर, स्वयं स्नातक तक शिक्षित हैं। बच्चों को पढ़ाना-लिखाना उनकी रुचि का विषय है। वे स्वयं भी समय-समय मिलने पर आंगनबाड़ी में पढ़ाने के लिए पहुँच जाती हैं। उनका कहना है कि शाला पूर्व अनौपचारिक शिक्षा प्ले-स्कूल के बच्चों के लिए बहुत जरुरी है। यह नवीन आंगनबाड़ी भवन, बच्चों को सीखने लायक वातावरण उपलब्ध कराता है। इससे बच्चों का सामाजिक, भावनात्मक, बौद्धिक, शारीरिक और सौंदर्यबोध का विकास होता है और वे प्राथमिक शाला के लिए तैयार होते हैं।
            यहाँ यह कहना गलत नहीं होगा कि परसवानी गांव की आंगनबाड़ी केन्द्र एक ऐसा मॉडल है, जहाँ शिक्षा और संस्कार बच्चों को खेल-खेल में और मनोरंजक तरीके से दिए जा रहे हैं। बनावट, भीतरी स्वरुप और व्यवस्थाओं की बात करें, तो यह आंगनबाड़ी शहरों के प्ले-स्कूल के समकक्ष नजर आती है।





नए भवन के लिए मिले 6.45 लाख रुपए

ग्राम रोजगार सहायक श्री शैलेन्द्र कुमार यादव बताते हैं कि आंगनबाड़ी भवन का निर्माण योजनाओं के तालमेल (अभिसरण) से हुआ है। इसमें महात्मा गांधी नरेगा से 5 लाख रुपए एवं महिला व बाल विकास विभाग की एकीकृत बाल विकास योजना मद से 1.45 लाख रुपए, कुल मिलाकर 6.45 लाख रुपयों की प्रशासकीय स्वीकृति मिली। दिनांक 4 जनवरी, 2017 को भवन का निर्माण पूरा हुआ, इसमें 28 श्रमिकों को मजदूरी प्राप्त हुई।   



----------------------------------------------------------------------------
एक नजरः-
कार्य का नाम- आंगनबाड़ी निर्माण, 
ग्राम पंचायत- परसवानी  विकासखण्ड- कुरुद,  जिला- धमतरी, छत्तीसगढ़
अभिसरण में शामिल योजना/विभाग व परियोजना की लागत- 6.45 लाख रुपए (महात्मा गांधी नरेगा- लाख व एकीकृत बाल विकास योजना- 1.45 लाख), स्वीकृति वर्ष2016-17
---------------------------------------------------------------------------------------------



----------------------------------------------------------------------------

रिपोर्टिंग - श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- जांजगीर चाम्पा
तथ्य व स्त्रोत-  श्री डुमनलाल ध्रुव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी एवं 
                      श्री रामचंद्र खरे, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-कुरुद, धमतरी
लेखन - श्री संदीप सिंह चैधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर
संपादन - श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, रायपुर
श्री प्रशांत कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, रायपुर
 ----------------------------------------------------------------------------

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...