डबरी बनी संकटमोचन
डबरी... कहने को तो एक छोटा-सा शब्द है और दिखने में किसी खेत में बरसात के पानी को इकट्ठा करने के लिए बनाया गया एक छोटा-सा तालाब, किन्तु जब यह किसी किसान की आजीविका का स्त्रोत और जीवन निर्वाह का मुख्य साधन बन जाए, तो एक बड़ी बात हो जाती है। यह कहानी है श्री महेन्द्र और उनके खेत में बनी डबरी की। महात्मा गांधी नरेगा से महेन्द्र के खेत में जो डबरी बनाई गई, उसने महेन्द्र के जीवन में छाई आर्थिक समस्याओं से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया और संकटमोचन बन गई।
धमतरी जिले के विकासखण्ड मगरलोड की ग्राम पंचायत बिरझुली में आश्रित ग्राम आलेखुटा है। यहाँ रहने वाले श्री महेन्द्र कुमार साहू एक किसान हैं। इनके पास 4 एकड़ कृषि भूमि है, जिसमें वे बारिश के सीजन में ही फसल ले पाते थे। बाकी समय भूमि का अधिकांश हिस्सा सिंचाई के अभाव में खाली पड़ा हुआ रहता था। सिर्फ एक फसल ही ले पाने के कारण उनकी आमदनी उतनी नहीं थी, कि वे अपने परिवार को बेहतर जिंदगी दे सकें। यूँ कहे कि महेन्द्र जैसे-तैसे अपने परिवार का गुजर बसर कर पा रहा था।
एक दिन ग्राम पंचायत में महेन्द्र की मुलाकात तकनीकी सहायक शैलेन्द्र सरसिहा से हुई। शैलेन्द्र ने उनको महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से किसानों के खेतों में डबरी निर्माण कराये जाने की जानकारी दी। महेन्द्र की डबरी के प्रति उत्सुकता देख शैलेन्द्र ने डबरी में बरसात के पानी को संग्रह कर खेतों की सिंचाई के लिए उपयोगी बनाने के तकनीकी पहलुओं और मछलीपालन जैसे अतिरिक्त लाभ मिलने के बारे में उन्हें विस्तार से समझाया। खेतों की सिंचाई और मछलीपालन की बात सुन महेन्द्र के चेहरे पर आई चमक उसकी खुशी बयां कर रही थी। कहते हैं न “जहाँ चाह, वहाँ राह”। डबरी निर्माण की बात सुन महेन्द्र को अपनी आजीविका से संबंधित समस्या का समाधान नजर आने लगा। परिवार से चर्चा करने के बाद महेन्द्र ने अपने खेत में डबरी बनवाने के लिए आवेदन कर दिया। कुछ ही दिनों बाद ग्राम पंचायत को जिला पंचायत से महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत श्री महेन्द्र कुमार पिता श्री कार्तिक राम के नाम से डबरी निर्माण की प्रशासकीय स्वीकृति मिल गई। ग्राम पंचायत ने भी बिना देर किये पंद्रह जून, 2016 को डबरी निर्माण के लिए खुदाई कार्य प्रारंभ करवा दिया। डबरी में श्री महेन्द्र के पूरे परिवार के अलावा आस-पास के महात्मा गांधी नरेगा मजदूरों को भी काम मिला। देखते ही देखते लगभग चालीस दिनों के भीतर श्री महेन्द्र के खेत में 20 मीटर लम्बी, 20 मीटर चौड़ी और 3 मीटर गहरी डबरी बनकर तैयार हो गई। श्री महेन्द्र को अब केवल बारिश का इंतजार था, बारिश को अभी दो माह बचे हुए थे। इंतजार का समय लम्बा था, लेकिन महेन्द्र की उत्सुकता उसे दिन में एक बार डबरी के पास अवश्य ले जाती। इंतजार के दिन भी आखिर बीत ही गए। आषाढ़ की झमाझम बारिश ने महेन्द्र की खेत व डबरी को लबालब भर दिया। महेन्द्र ने अपनी डबरी में मछली बीज भी डाल दिया। डबरी से भूमि में नमी रहने लगी। दिन बीतते गए। बारिश में लगी धान की फसल पकने लगी। । इस बार पहले की तुलना में धान की अच्छी पैदावार हुई है। धान की फसल लेने के बाद, बाड़ी के लिए पानी की कमी होने पर डबरी के पानी से ही श्री महेन्द्र ने खेतों की सिंचाई भी की। डबरी के चारों तरफ मेड़ में महेन्द्र ने आलू, मटर, बैगन, धनिया-मिर्ची भी लगाई, जिसके कारण उसका प्रतिदिन का साग-सब्जी का खर्चा भी बचा और उसे आसपास के ग्रामीणों को बेचकर कुछ पैसे भी कमा लिए।
डबरी में डाली गई मछलियाँ भी बड़ी हो गई, जिसका श्री महेन्द्र ने सपरिवार उपभोग किया और बेचना भी शुरू कर दिया। मछली को बेचने से श्री महेन्द्र को अच्छी आमदनी हुई है। महेन्द्र का कहना है कि पानी की कमी के कारण पहले मैं कुछ कर नहीं पा रहा था, लेकिन जब से डबरी मिली है, एक राह मिल गई है।
महेन्द्र के जीवन में डबरी से आये सुखद परिवर्तन का दौर निरंतर जारी है...
महेन्द्र के जीवन में डबरी से आये सुखद परिवर्तन का दौर निरंतर जारी है...
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एक नजरः-
कार्य का नाम- डबरी निर्माण, ग्राम पंचायत- बिरझुली, विकासखण्ड- मगरलोड, जिला- धमतरी, छत्तीसगढ़
स्वीकृत राशि- 1.43 लाख रुपए, स्वीकृति वर्ष- 2016-17
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रिपोर्टिंग - श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- जांजगीर चाम्पा
तथ्य व स्त्रोत- श्री धरम सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी
लेखन - श्री प्रशांत कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, रायपुर
संपादन - श्री संदीप सिंह चैधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर एवं
श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, रायपुर
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