Saturday, 5 May 2018

पानी की कीमत


पानी की कीमत
0 मनरेगा के कुएं ने लाया जीवन में परिवर्तन

पानी की प्रत्येक बूंद की कीमत क्या होती है, यह गोविंद चक्रधारी जैसे किसानों से बेहतर और कौन समझ सकता है, जिनके खेत बारिश के बाद सिंचाई के साधनों के अभाव में विरान और सूखे पड़े रहते थे। रायपुर जिले के अभनपुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत- नवागांव (ल) में रहने वाले किसान गोविंद के पास भी खेती-बाड़ी के लिए 2 एकड़ 70 डिसमिल कृषि भूमि तो थी, किन्तु सिंचाई के साधनों के अभाव में बारिश की अवधि के बाद सालभर विरान पड़ी रहती थी। बारिश के समय जो धान की फसल हो जाती थी, उसी से जीवन चलता था। ऐसे में महात्मा गांधी नरेगा योजना गोविन्द के लिए जीवन के परिवर्तन का महत्वपूर्ण कारक बनी। योजना ने न केवल उसकी किसानी जीवन में बदलाव लाया अपितु उसके परिवार के रहन-सहन को बेहतर बना दिया। साल 2016-17 में महात्मा गांधी नरेगा से गोविन्द के खेत में 2 लाख 11 हजार की लागत से बने कुएं से उनके खेत हरे-भरे दिखाई देते हैं। कुएं के पानी से अब सालभर में गोविन्द धान के अलावा गेहूँ की फसल भी लेने लगे हैं। इसके अलावा साग-सब्जियों से खेत में रौनक तो सालभर बनी ही रहती है।
जीवन में आये बदलाव के प्रश्न पर मुस्कुराते हुये श्री गोविन्द बताते हैं कि खेत में कुआं खुदने से पहले वे केवल बारिश के दिनों में ही धान की खेती करते थे, उससे बमुश्किल 30 बोरा धान हो जाता था, इसे बेचकर जैसे-तैसे परिवार की जरुरतों को पूरा कर रहे थे। ऐसे में भला हो हमारे सरपंच श्री भागवत साहू जी का, जिन्होंने मुझे महात्मा गांधी नरेगा योजना से कुआं बनाने और उससे सिंचाई की समस्या हल होने की बात बताई। उनके दिखाये रास्ते पर चलकर और गांव के संगवारी संग मैंने अपने खेत में महात्मा गांधी नरेगा से कुआं बना लिया। कुएं की खुदाई के समय ही इसमें पानी आ गया था और अब गर्मी के दिनों में भी इसमें पानी भरा रहता है। कुएं के पानी से सबसे पहले मैंने अपने खेत में करेला, बरबट्टी, धनिया, प्याज, मिर्ची, टमाटर और गोभी उगाया और बेचा। इससे मिले पैसों से फिर दूसरी फसल के रुप में गेहूँ की खेती की। आज हम सपरिवार अच्छा जीवन जी रहे हैं।
श्री गोविन्द चक्रधारी के सुखद अनुभवों के अनुक्रम में ग्राम पंचायत के ग्राम रोजगार सहायक श्री यादराम पटेल कहते हैं कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ने छोटे किसानों के जीवन को बेहतर बनाया है। योजना से हमारे गांव में गोविन्द के अलावा सुकालु राम और सोनू राम ध्रुव के खेतों में भी कुओं का निर्माण हुआ है। इनमें से सुकालु राम ने सरकार की सौर सुजला योजना से सौर पंप का लाभ भी ले लिया है, ताकि वह बिना बिजली के अपने कुएं से सिंचाई के लिए पानी ले सके।





Friday, 4 May 2018

डबरी बनी रामावतार की खुशियों के लिए 'अवतार'


डबरी बनी रामावतार की खुशियों के लिए 'अवतार'
छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसे बहुत से किसान हैं, जिनके पास पर्याप्त कृषि भूमि होने के बावजूद अपेक्षाकृत कम आमदनी होती है। इसके प्रमुख कारणों में से एक कारण खेतों में सिंचाई के साधनों का अभाव है। ऐसे किसानों के लिए महात्मा गांधी नरेगा एक उम्मीद की किरण बन कर सामने आई है। योजना से किसानों के खेतों में बनने वाली डबरियों ने उनके इस अभाव को दूर करते हुये, आर्थिक उन्नति के द्वार खोल दिये हैं। इसका एक उदाहरण हमें रायपुर जिले की ग्राम पंचायत- बरौंडा के किसान रामावतार देवांगन के खेतों को दखने को मिला है। इन्होंने अपने खेत में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से डबरी खुदवाकर, सिंचाई का एक बेहतर साधन प्राप्त कर लिया है। कभी बंजर-से दिखने वाले श्री देवांगन के खेतों में आज डबरी के पानी से धान के अलावा सरसों, तिवरा, गेंहू की फसलों के साथ-साथ हरी-भरी साग-सब्जियां भी देखने को मिलती हैं। डबरी से न केवल उन्हें सिंचाई के लिए पानी मिला है, अपितु मछलीपालन के अवसर भी प्राप्त हुये हैं। इस तरह से डबरी ने आर्थिक उन्नति के द्वार खोलकर रामवतार के जीवन में खुशियां ला दी हैं। बकौल रामवतार, यह डबरी उनके लिए किसी अवतार से कम नहीं है।
जिला-रायपुर के तिल्दा विकासखण्ड की ग्राम पंचायत- बरौंडा में खुशियों भरा जीवन जीने वाले रामावतार देवांगन की जिन्दगी पहले ऐसी नहीं थी। उनके पास कृषि भूमि तो पर्याप्त थी, लेकिन उसमें सिंचाई के साधन नहीं होने के कारण पैदावार कम होती थी। ऐसे में दिन-रात मेहनत करने के बावजूद, परिवार की समस्त आर्थिक जरुरतें पूरी नहीं हो पा रही थी। खेती-बाड़ी के लिए बारिश पर निर्भरता उनकी मजबूरी बन गई थी। बारिश से जो धान की फसल होती थी, उसी से परिवार का भरण-पोषण होता था। ऐसे में परिवार के लिए कुछ बेहतर सोच पाना दूर की ही कौड़ी थी। इन सबके के बावजूद श्री रामावतार के मन में मौजूदा परिस्थितियों को बदलने की इच्छाशक्ति थी। इसी इच्छाशक्ति ने उन्हें ग्राम पंचायत कार्यालय पहुँचा दिया। वहाँ मौजूद ग्राम रोजगार सहायक श्री जगदेव से हुई चर्चा में उन्हें पता चला की महात्मा गांधी नरेगा से किसानों के खेतों में डबरियों का निर्माण किया जा रहा है। डबरी बन जाने से जहाँ पानी का साधन मिलेगा, वहीं मछलीपालन के अवसर भी होंगे। ग्राम रोजगार सहायक की यह बात श्री देवांगन को जंच गई। उन्होंने इस संबंध में अपने परिवार में चर्चा की, जहाँ पहले तो डबरी निर्माण में खेत का एक हिस्सा जाने की बात पर परिवार के सदस्यों ने शुरुआत में थोड़ा आना-कानी की, किन्तु बारिश के बाद सिंचाई के लिए डबरी में जमा हुये पानी से अच्छी फसल मिलने की उम्मीद ने परिवार की सहमति भी दिला दी। इसके बाद श्री रामावतार ने बिना देर किये ग्राम पंचायत को डबरी निर्माण के लिए आवेदन दे दिया।
श्री रामावतार के आवेदन और ग्राम पंचायत के प्रस्ताव पर, मई 2016 में उनके नाम से महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत डबरी निर्माण का कार्य स्वीकृत हो गया। यह उनकी इच्छाशक्ति का ही परिणाम था कि मई माह में ही उनके खेत में डबरी का निर्माण प्रारंभ हो गया और 3 लाख रुपयों की लागत से 15 जून 2016 को डबरी बनकर तैयार हो गई। इसके बाद माह जून-जुलाई में हुई बारिश से डबरी लबालब हो गई। डबरी में भरपूर पानी को देखते हुये रामावतार ने मछलीपालन प्रारंभ कर दिया। 4 माह के बाद ही उन्हें डबरी से उत्साहजनक परिणाम मिलने लगे। लगभग 30 से 40 किलो मछली मिली, जिसे बाजार में बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमाया। इसके बाद डबरी में जमा पानी से खेत में लगाई धान की फसल को मिली नमी और पानी से पैदावार भी अच्छी हुई। इस बार पिछली बार की अपेक्षा 15 से 20 बोरा धान अधिक हुआ। उन्नति का यह सफर साल 2017 में भी जारी रहा। इस बार श्री देवांगन ने दोहरी फसल के रुप में खेतों में सरसों, तिवरा, गेंहू और प्याज की फसल भी लगाई।
महात्मा गांधी नरेगा से बनी डबरी से मिले लाभ पर उनकी पत्नी श्रीमती रोहणी बाई कहती हैं कि इस डबरी ने हमारे जीवन को बदल दिया है। यह हमारे लिए किसी अवतार से कम नहीं है।


      

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...