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Monday, 18 June 2018

बच्चों में संस्कार का आधार बना, महात्मा गांधी नरेगा-वृक्षारोपण


बच्चों में संस्कार का आधार बना, महात्मा गांधी नरेगा-वृक्षारोपण

0 आक्सीजोन बना, फैला रहे हैं पर्यावरण के प्रति चेतना.


भारतीय संस्कृति में वृक्षों की पूजा किये जाने का संस्कार है और वृक्ष मनुष्य के चिर मित्र भी हैं। ये मित्र पीढ़ीयों को हस्तांतरित होते साथ निभाते हैं। इनके फायदों को चंद लाईनों में गिनाना या समेटना संभव नहीं है। इन सबके बावजूद वर्तमान समय में इंसानी जरुरतों और बढ़ती लालसा के कारण इनका दोहन बढ़ गया है, परिणामस्वरुप पर्यावरण असंतुलन की स्थिति निर्मित होती जा रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकारें, संस्थाएं और प्रकृति प्रेमी अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं। ऐसा ही प्रयास ग्राम पंचायत- अड़सेना में नजर आता है, जहाँ ग्राम पंचायत के द्वारा हाई स्कूल-अड़सेना में महात्मा गांधी नरेगा योजना से एक हजार पौधों का रोपण कराकर पर्यावरण चेतना का प्रसार किया जा रहा है। यह रोपण उन मायनों में तब और अधिक रेखांकित हो जाता है, जब स्कूल के बच्चे इनके संरक्षण की जिम्मेदारी उठाते हुये दिखाई देते हैं।
रायपुर जिले के तिल्दा विकासखण्ड की ग्राम पंचायत- अड़सेना के हाई स्कूल के प्रांगण में छांयादार प्रजाति के रोपित हरे-भरे पौधे अपने संरक्षण की कहानी खुद ही बयां करते हैं। स्कूल के प्राचार्य श्री बलदेव प्रसाद नायक एवं गांव के सरपंच श्री आनंद गिलहरे का इस संबंध में कहना है कि स्कूली जीवन में डाली गई आदतें और सीख, भविष्य के अच्छे और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनने में सहायक होती हैं। इसलिये ग्राम पंचायत और स्कूल के द्वारा स्कूली-परिसर में वृक्षारोपण करवाने का निर्णय लिया गया था। वृक्षारोपण के बाद, स्कूल के बच्चे रोपित पौधों को स्वेच्छा से पानी देते हैं। ये सभी रोपित पौधें, अब स्कूल परिवार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं। हम सभी के समक्ष यह प्रयास बच्चों में वृक्षारोपण का संस्कार डालते हुये नजर आता है।   
परिसर में ही उपस्थित ग्राम पंचायत के ग्राम रोजगार सहायक श्री ढालसिंह वर्मा बताते हैं कि यह वृक्षारोपण महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) के अंतर्गत दो साल पहले यानि साल 2016 में किया गया था। वृक्षारोपण के अंतर्गत नीम के 850, करंज के 50, सिरिज के 50 और जामुन के 50 पौधे रोपे गये। पौधरोपण के इस कार्य से गांव के 39 ग्रामीणों को रोजगार भी मिला। रोपित पौधों की नियमित देखभाल और पानी देने के लिए गांव के ही 2 ग्रामीणों को काम पर लगाया गया है, जिनकी मजदूरी का भुगतान महात्मा गांधी नरेगा से किया जाता है। योजना के अंतर्गत इस कार्य की अवधि 3 साल है। इसलिये यहाँ यह कहना चाहूँगा कि तीन साल बाद आक्सीजोन के रुप में परिवर्तित यह स्कूल परिसर ग्रीन स्कूल के रुप में जाना और पहचाना जायेगा।


Pdf अथवा Word Copy डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें-
 http://mgnrega.cg.nic.in/success_story.aspx

Saturday, 5 May 2018

पानी की कीमत


पानी की कीमत
0 मनरेगा के कुएं ने लाया जीवन में परिवर्तन

पानी की प्रत्येक बूंद की कीमत क्या होती है, यह गोविंद चक्रधारी जैसे किसानों से बेहतर और कौन समझ सकता है, जिनके खेत बारिश के बाद सिंचाई के साधनों के अभाव में विरान और सूखे पड़े रहते थे। रायपुर जिले के अभनपुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत- नवागांव (ल) में रहने वाले किसान गोविंद के पास भी खेती-बाड़ी के लिए 2 एकड़ 70 डिसमिल कृषि भूमि तो थी, किन्तु सिंचाई के साधनों के अभाव में बारिश की अवधि के बाद सालभर विरान पड़ी रहती थी। बारिश के समय जो धान की फसल हो जाती थी, उसी से जीवन चलता था। ऐसे में महात्मा गांधी नरेगा योजना गोविन्द के लिए जीवन के परिवर्तन का महत्वपूर्ण कारक बनी। योजना ने न केवल उसकी किसानी जीवन में बदलाव लाया अपितु उसके परिवार के रहन-सहन को बेहतर बना दिया। साल 2016-17 में महात्मा गांधी नरेगा से गोविन्द के खेत में 2 लाख 11 हजार की लागत से बने कुएं से उनके खेत हरे-भरे दिखाई देते हैं। कुएं के पानी से अब सालभर में गोविन्द धान के अलावा गेहूँ की फसल भी लेने लगे हैं। इसके अलावा साग-सब्जियों से खेत में रौनक तो सालभर बनी ही रहती है।
जीवन में आये बदलाव के प्रश्न पर मुस्कुराते हुये श्री गोविन्द बताते हैं कि खेत में कुआं खुदने से पहले वे केवल बारिश के दिनों में ही धान की खेती करते थे, उससे बमुश्किल 30 बोरा धान हो जाता था, इसे बेचकर जैसे-तैसे परिवार की जरुरतों को पूरा कर रहे थे। ऐसे में भला हो हमारे सरपंच श्री भागवत साहू जी का, जिन्होंने मुझे महात्मा गांधी नरेगा योजना से कुआं बनाने और उससे सिंचाई की समस्या हल होने की बात बताई। उनके दिखाये रास्ते पर चलकर और गांव के संगवारी संग मैंने अपने खेत में महात्मा गांधी नरेगा से कुआं बना लिया। कुएं की खुदाई के समय ही इसमें पानी आ गया था और अब गर्मी के दिनों में भी इसमें पानी भरा रहता है। कुएं के पानी से सबसे पहले मैंने अपने खेत में करेला, बरबट्टी, धनिया, प्याज, मिर्ची, टमाटर और गोभी उगाया और बेचा। इससे मिले पैसों से फिर दूसरी फसल के रुप में गेहूँ की खेती की। आज हम सपरिवार अच्छा जीवन जी रहे हैं।
श्री गोविन्द चक्रधारी के सुखद अनुभवों के अनुक्रम में ग्राम पंचायत के ग्राम रोजगार सहायक श्री यादराम पटेल कहते हैं कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ने छोटे किसानों के जीवन को बेहतर बनाया है। योजना से हमारे गांव में गोविन्द के अलावा सुकालु राम और सोनू राम ध्रुव के खेतों में भी कुओं का निर्माण हुआ है। इनमें से सुकालु राम ने सरकार की सौर सुजला योजना से सौर पंप का लाभ भी ले लिया है, ताकि वह बिना बिजली के अपने कुएं से सिंचाई के लिए पानी ले सके।





Friday, 4 May 2018

डबरी बनी रामावतार की खुशियों के लिए 'अवतार'


डबरी बनी रामावतार की खुशियों के लिए 'अवतार'
छत्तीसगढ़ राज्य में ऐसे बहुत से किसान हैं, जिनके पास पर्याप्त कृषि भूमि होने के बावजूद अपेक्षाकृत कम आमदनी होती है। इसके प्रमुख कारणों में से एक कारण खेतों में सिंचाई के साधनों का अभाव है। ऐसे किसानों के लिए महात्मा गांधी नरेगा एक उम्मीद की किरण बन कर सामने आई है। योजना से किसानों के खेतों में बनने वाली डबरियों ने उनके इस अभाव को दूर करते हुये, आर्थिक उन्नति के द्वार खोल दिये हैं। इसका एक उदाहरण हमें रायपुर जिले की ग्राम पंचायत- बरौंडा के किसान रामावतार देवांगन के खेतों को दखने को मिला है। इन्होंने अपने खेत में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से डबरी खुदवाकर, सिंचाई का एक बेहतर साधन प्राप्त कर लिया है। कभी बंजर-से दिखने वाले श्री देवांगन के खेतों में आज डबरी के पानी से धान के अलावा सरसों, तिवरा, गेंहू की फसलों के साथ-साथ हरी-भरी साग-सब्जियां भी देखने को मिलती हैं। डबरी से न केवल उन्हें सिंचाई के लिए पानी मिला है, अपितु मछलीपालन के अवसर भी प्राप्त हुये हैं। इस तरह से डबरी ने आर्थिक उन्नति के द्वार खोलकर रामवतार के जीवन में खुशियां ला दी हैं। बकौल रामवतार, यह डबरी उनके लिए किसी अवतार से कम नहीं है।
जिला-रायपुर के तिल्दा विकासखण्ड की ग्राम पंचायत- बरौंडा में खुशियों भरा जीवन जीने वाले रामावतार देवांगन की जिन्दगी पहले ऐसी नहीं थी। उनके पास कृषि भूमि तो पर्याप्त थी, लेकिन उसमें सिंचाई के साधन नहीं होने के कारण पैदावार कम होती थी। ऐसे में दिन-रात मेहनत करने के बावजूद, परिवार की समस्त आर्थिक जरुरतें पूरी नहीं हो पा रही थी। खेती-बाड़ी के लिए बारिश पर निर्भरता उनकी मजबूरी बन गई थी। बारिश से जो धान की फसल होती थी, उसी से परिवार का भरण-पोषण होता था। ऐसे में परिवार के लिए कुछ बेहतर सोच पाना दूर की ही कौड़ी थी। इन सबके के बावजूद श्री रामावतार के मन में मौजूदा परिस्थितियों को बदलने की इच्छाशक्ति थी। इसी इच्छाशक्ति ने उन्हें ग्राम पंचायत कार्यालय पहुँचा दिया। वहाँ मौजूद ग्राम रोजगार सहायक श्री जगदेव से हुई चर्चा में उन्हें पता चला की महात्मा गांधी नरेगा से किसानों के खेतों में डबरियों का निर्माण किया जा रहा है। डबरी बन जाने से जहाँ पानी का साधन मिलेगा, वहीं मछलीपालन के अवसर भी होंगे। ग्राम रोजगार सहायक की यह बात श्री देवांगन को जंच गई। उन्होंने इस संबंध में अपने परिवार में चर्चा की, जहाँ पहले तो डबरी निर्माण में खेत का एक हिस्सा जाने की बात पर परिवार के सदस्यों ने शुरुआत में थोड़ा आना-कानी की, किन्तु बारिश के बाद सिंचाई के लिए डबरी में जमा हुये पानी से अच्छी फसल मिलने की उम्मीद ने परिवार की सहमति भी दिला दी। इसके बाद श्री रामावतार ने बिना देर किये ग्राम पंचायत को डबरी निर्माण के लिए आवेदन दे दिया।
श्री रामावतार के आवेदन और ग्राम पंचायत के प्रस्ताव पर, मई 2016 में उनके नाम से महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत डबरी निर्माण का कार्य स्वीकृत हो गया। यह उनकी इच्छाशक्ति का ही परिणाम था कि मई माह में ही उनके खेत में डबरी का निर्माण प्रारंभ हो गया और 3 लाख रुपयों की लागत से 15 जून 2016 को डबरी बनकर तैयार हो गई। इसके बाद माह जून-जुलाई में हुई बारिश से डबरी लबालब हो गई। डबरी में भरपूर पानी को देखते हुये रामावतार ने मछलीपालन प्रारंभ कर दिया। 4 माह के बाद ही उन्हें डबरी से उत्साहजनक परिणाम मिलने लगे। लगभग 30 से 40 किलो मछली मिली, जिसे बाजार में बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमाया। इसके बाद डबरी में जमा पानी से खेत में लगाई धान की फसल को मिली नमी और पानी से पैदावार भी अच्छी हुई। इस बार पिछली बार की अपेक्षा 15 से 20 बोरा धान अधिक हुआ। उन्नति का यह सफर साल 2017 में भी जारी रहा। इस बार श्री देवांगन ने दोहरी फसल के रुप में खेतों में सरसों, तिवरा, गेंहू और प्याज की फसल भी लगाई।
महात्मा गांधी नरेगा से बनी डबरी से मिले लाभ पर उनकी पत्नी श्रीमती रोहणी बाई कहती हैं कि इस डबरी ने हमारे जीवन को बदल दिया है। यह हमारे लिए किसी अवतार से कम नहीं है।


      

Monday, 9 April 2018

जागरुकता और भागीदारी का प्रकाशपुंज बना, नवीन पंचायत भवन




जागरुकता और भागीदारी का प्रकाशपुंज बना, नवीन पंचायत भवन


कई बार सहसा, कोई निर्माण कार्य भी किसी उद्देश्य की प्राप्ति के मार्ग को सहज कर देते हैं। ऐसा ही निर्माण कार्य रायपुर जिले के आरंग विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-बेनीडीह में देखने को मिलता है। यहाँ महात्मा गांधी नरेगा के साथ पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं के अभिसरण से बने नवीन पंचायत भवन की बाहरी दीवारों पर चित्रित विभिन्न योजनाओं की जानकारियां, ग्रामीणों को जागरुक कर उनकी स्थानीय स्वशासन में भागीदारी को बढ़ा रही हैं। ग्राम पंचायत के द्वारा नवाचार के तहत इस नवीन भवन में कुछ इस तरह प्रकाश व्यवस्था की गई है कि, रात को यह रंग-बिरंगी रोशनी में जगमगाता हुआ दिखाई देता है। इस रोशनी में भवन की बाह्य दीवारों पर उकेरे गये चित्र और जानकारियाँ सहसा ही यहाँ से गुजरने वालों का मन मोह लेती हैं। इस प्रकार यह भवन दिन और रात, दोनों ही अवधि में ग्रामीणजनों को जागरुक करने और उनकी पंचायतराज व्यवस्था में भागीदारी को प्रेरित करने के लिए प्रकाशपुंज की भूमिका निभा रहा है।
साल 2014 तक बेनीडीह, ग्राम पंचायत-राटाकाट का आश्रित गांव हुआ करता था। बारिश के समय महानदी के पानी के बहाव के कारण ग्राम पंचायत मुख्यालय पहुँचने का रास्ता बंद हो जाता था। परिणामस्वरुप लभगभ 7 किलोमीटर का रास्ता घूमकर ही ग्राम पंचायत- कार्यालय में पहुँचा जा सकता था। ग्रामीणों की इस समस्या को समझते हुये प्रदेश सरकार ने प्रशासनिक संवेदनशीलता के तहत् बेनीडीह को आरंग विकासखण्ड का ग्राम पंचायत घोषित किया । इससे यहाँ के ग्रामीणों को ग्रामीण सचिवालय के कार्यों के लिए तो सहुलियत हो गई, किन्तु ग्राम पंचायत भवन नहीं होने के कारण पंचायत की बैठकें और ग्राम सभा की कार्यवाही जैसे कार्य सामुदायिक भवन में संपादित करने पड़ रहे थे। ग्राम पंचायत की इस समस्या का समाधान भी शीघ्र ही निकल आया। यहाँ नवीन पंचायत भवन के निर्माण के लिए साल 2016-17 में प्रशासकीय स्वीकृति मिल गई। भवन निर्माण के लिए शासन की विभिन्न योजनाओं की निधियों के अभिसरण की युक्ति अपनाई गई। इसके अंतर्गत महात्मा गांधी नरेगा से 8 लाख 15 हजार तथा राज्य सरकार की योजना मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना से 5 लाख व 14वें वित्त योजना से 1 लाख रुपये की राशि जारी की गई। ग्राम पंचायत के पदाधिकारियों और ग्रामीणों की लगन का ही परिणाम था कि राशि 14 लाख 15 हजार रुपयों की कुल लागत से यह भवन अक्टूबर-2017 में बनकर तैयार हो गया।
ग्रामीण श्री दिनेश कुमार सिन्हा, श्री चैतराम साहू और श्री मुकेश सिन्हा से मौके पर हुई चर्चा में वे बताते हैं कि गांव में नवीन पंचायत भवन बनने के बाद से पंचायत के कार्यों में तेजी आई है। अब हमें अपने गांव की समस्याओं, मांगो और विकास के कार्यों पर अपने विचार रखने के लिए एक समुचित स्थान मिल गया है। पंचायत भवन पर योजनाओं की जानकारी इतने सरल शब्दों में दी गई है कि अब हम सभी योजनाओं के बारे नई-नई बातें जानने के लिए ग्राम पंचायत कार्यालय में होने वाली बैठकों में आते रहते हैं। विशेष अवसरों पर हमारा पंचायत भवन देर शाम या रात तक भी खुला रहता है। ऐसे में यहां की गई रोशनी व्यवस्था से यह भवन जगमगाता हुआ बहुत सुंदर दिखाई देता है। इसके कारण यह पंचायत भवन आस-पड़ोस की दूसरी ग्राम पंचायतों के भवनों से अलग नजर आता है।
ग्राम पंचायत- बेनीडीह की सरपंच श्रीमती ईश्वरी देवदास ग्रामीणों से नये पंचायत भवन पर हो रही चर्चा को आगे बढ़ाते हुये कहती हैं कि इस तरह का भवन निर्माण, उसकी बाहरी दिवारों पर योजनाओं की सारगर्भित जानकारियाँ और रोशनी व्यवस्था पंचायत के सभी प्रतिनिधियों का सामूहिक संकल्प था, जिसे ग्रामीणों की भागीदारी से पूरा किया गया। खुद का भवन होने से पंचायत के कार्यों को व्यवस्थित ढंग से करने में सहायता मिल रही है। भवन की बाहरी दीवारों पर योजनाओं की जानकारियों के रेखांकन के बाद से ग्रामीणों में जागरुकता का स्तर बढ़ा है। वे अब योजनावार चर्चा में अपनी मांगों और समस्याओं पर खुलकर चर्चा करते हैं। यह पंचायत भवन हम सभी के लिए विकास का एक प्रकाशपुंज बनकर सामने आया है।

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...