बच्चों में संस्कार का आधार बना, महात्मा गांधी
नरेगा-वृक्षारोपण
0 आक्सीजोन बना, फैला रहे हैं पर्यावरण के प्रति चेतना.
भारतीय संस्कृति में वृक्षों की पूजा किये जाने
का संस्कार है और वृक्ष मनुष्य के चिर मित्र भी हैं। ये मित्र पीढ़ीयों को
हस्तांतरित होते साथ निभाते हैं। इनके फायदों को चंद लाईनों में गिनाना या समेटना
संभव नहीं है। इन सबके बावजूद वर्तमान समय में इंसानी जरुरतों और बढ़ती लालसा के
कारण इनका दोहन बढ़ गया है, परिणामस्वरुप पर्यावरण असंतुलन की स्थिति निर्मित होती
जा रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकारें, संस्थाएं और प्रकृति प्रेमी
अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं। ऐसा ही प्रयास ग्राम पंचायत- अड़सेना में
नजर आता है, जहाँ ग्राम पंचायत के द्वारा हाई स्कूल-अड़सेना में महात्मा गांधी
नरेगा योजना से एक हजार पौधों का रोपण कराकर पर्यावरण चेतना का प्रसार किया जा रहा
है। यह रोपण उन मायनों में तब और अधिक रेखांकित हो जाता है, जब स्कूल के बच्चे
इनके संरक्षण की जिम्मेदारी उठाते हुये दिखाई देते हैं।
रायपुर जिले के तिल्दा विकासखण्ड की ग्राम
पंचायत- अड़सेना के हाई स्कूल के प्रांगण में छांयादार प्रजाति के रोपित हरे-भरे
पौधे अपने संरक्षण की कहानी खुद ही बयां करते हैं। स्कूल के प्राचार्य श्री बलदेव
प्रसाद नायक एवं गांव के सरपंच श्री आनंद गिलहरे का इस संबंध में कहना है कि
स्कूली जीवन में डाली गई आदतें और सीख, भविष्य के अच्छे और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक
बनने में सहायक होती हैं। इसलिये ग्राम पंचायत और स्कूल के द्वारा स्कूली-परिसर
में वृक्षारोपण करवाने का निर्णय लिया गया था। वृक्षारोपण के बाद, स्कूल के बच्चे
रोपित पौधों को स्वेच्छा से पानी देते हैं। ये सभी रोपित पौधें, अब स्कूल परिवार
का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुके हैं। हम सभी के समक्ष यह प्रयास बच्चों में वृक्षारोपण
का संस्कार डालते हुये नजर आता है।
परिसर में ही उपस्थित ग्राम पंचायत के
ग्राम रोजगार सहायक श्री ढालसिंह वर्मा बताते हैं कि यह वृक्षारोपण महात्मा गांधी
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) के अंतर्गत दो साल
पहले यानि साल 2016 में किया गया था। वृक्षारोपण के
अंतर्गत नीम के 850, करंज के 50, सिरिज के 50 और जामुन के 50 पौधे रोपे गये। पौधरोपण के इस कार्य से गांव के 39 ग्रामीणों को रोजगार भी मिला। रोपित पौधों की नियमित
देखभाल और पानी देने के लिए गांव के ही 2 ग्रामीणों को काम पर लगाया गया है,
जिनकी मजदूरी का भुगतान महात्मा गांधी नरेगा से किया जाता है। योजना के अंतर्गत इस
कार्य की अवधि 3 साल है। इसलिये यहाँ यह कहना
चाहूँगा कि तीन साल बाद आक्सीजोन के रुप में परिवर्तित यह स्कूल परिसर ग्रीन
स्कूल के रुप में जाना और पहचाना जायेगा।
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http://mgnrega.cg.nic.in/success_story.aspx
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