मिथलेश बना आम से
खास
0 डबरी और किसान हितैषी योजनाओं
से हुआ कारनामा
रायपुर
जिले के अभनपुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-सोनेसिल्ली के निवासी मिथलेश साहू कल तक
उन आम किसानों में से ही एक थे, जो अपने खेतों में सामान्य किसानों के भांति
सिंचाई और दूसरी समस्याओं से दो-चार होते हुये खेती-बाड़ी किया करते थे। किन्तु
मौजूदा परिस्थितियों को बदलने की इच्छाशक्ति और महात्मा गांधी नरेगा से बनी डबरी
(फार्म पोण्ड) के साथ-साथ दूसरी सरकारी योजनाओं से मिले लाभों ने उन्हें आम
किसानों में से एक खास उन्नतशील किसान बना दिया है। उनके खेत में बनी डबरी की मेढ़
पर लगे पपीते और केले के पौधे, डबरी के पानी से हरी-भरी बाड़ी, जैविक खाद के लिए
बना वर्मीकम्पोस्ट टैंक, सौर ऊर्जा से ऊर्जाकृत सिंचाई पम्प तथा स्प्रिंक्लर्स,
उनके आम से खास बनने की कहानी खुद ही बयां करते हैं।
इस
कहानी के विभिन्न पहलुओं को जानने के उद्देश्य से जब ग्राम रोजगार सहायिका श्रीमती
लीला साहू के सहयोग से हमारी मुलाकात श्री मिथलेश साहू जी से उनके खेत में हुई, तो
वे अपने खेत में बनी डबरी में मछलियों को दाना डाल रहे थे। उनसे इस डबरी और किसानी
जीवन में आये बदलाव पर हुई चर्चा में उन्होंने बतलाया कि उनके पास कुल 8 एकड़ कृषि
भूमि है, जिसमें वे अक्सर धान की फसल लेते रहे हैं। सिंचाई के लिए पानी की
व्यवस्था के लिए उन्होंने खुद के पैसों से एक डबरी भी खुदवाई थी, किन्तु छोटी और
कम गहराई होने के कारण इतनी कारगर साबित नहीं हुई। ऐसे में पानी के लिए वर्षा पर
ही निर्भर थे। उन्होंने बताया कि एक दिन मुझे हमारे ग्राम पंचायत के सरपंच श्री
किशन साहू से खुद के खेत में महात्मा गांधी नरेगा से डबरी खुदने की जानकारी
प्राप्त हुई। डबरी से एक किसान को क्या-क्या फायदा हो सकता है, इसकी पूरी जानकारी
तो पहले से ही मुझे थी, सो मैंने एक पल की देरी किये बिना ग्राम पंचायत में डबरी
के लिए आवेदन दे दिया। कुछ ही दिन के बाद मुझे सरपंच महोदय से 2.05 लाख रुपये की
लागत से डबरी निर्माण की स्वीकृति मिलने की सूचना भी प्राप्त हो गई । दिनांक-23
मई, 2016 को मेरे खेत में डबरी के लिए खुदाई प्रारंभ हो गई। इसमें मैंने भी काम
किया और मुझे 15 दिन की मजदूरी मिली। गांव के ग्रामीण भाईयों की मदद से 12 जून,
2016 को डबरी का निर्माण पूरा हो गया। इस प्रकार मुझे साल 2016-17 में मेरे खेत
में एक बड़ी और गहरी डबरी के रुप में उपयोगी परिसम्पत्ति मिल गई।

डबरी की मेढ़ पर केले और
पपीते के पेड़ों को दिखाते हुये उन्होंने आगे बताया कि डबरी बनने के बाद, उसमें
बारिश का पानी भरने पर आसपास की जमीन में नमी रहने लगी। इसे देखते हुये मैंने इसकी
मेढ़ और आस-पास की जमीन में पपीते और केले के पौधों का रोपण कर दिया, जो आज इतने
बड़े हो गये हैं। इसके बाद साथ की लगी जमीन में अरहर और चने के बीज बो दिये थे।
फिर बाड़ी में गोभी, प्याज, मिर्ची और धनिया भी उगाया। इन्हें बाजार में बेचने पर लगभग 50 हजार रुपयों की
कमाई हुई। वहीं दूसरी ओर मैंने डबरी में 15 हजार रुपये के मछली के बीज डाल दिये।
नियमित रुप से देखभाल के बाद मछलीपालन के माध्यम से मुझे लगभग 1.00 लाख रुपयों की
आमदनी हुई।

अपने खेतों को दिखाते हुये
श्री मिथलेश जी ने कहा कि हर किसान को अपने खेत में वर्मी कम्पोस्ट टैंक बनवाना
चाहिए। इससे जहाँ जैविक खाद की प्राप्ति होगी, वहीं रसायनिक खाद की खरीदी पर होने
वाले पैसे भी बचेंगे। इसी बात को ध्यान में रखते हुये मैंने अपने खेत में वर्मी
कम्पोस्ट टैंक बनवाया। खेती-बाड़ी में सिंचाई के लिए पम्प पर होने वाले बिजली बिल
के खर्चे को कम करने के उद्देश्य से छत्तीसगढ़ सरकार की सौर सुजला योजना का लाभ भी
लिया। इस योजना में मात्र 20 हजार रुपयों के अंशदान से 5 लाख रुपयों का सौर ऊर्जा
से ऊर्जाकृत पम्प की स्थापना खेत में हो गई। अब सिंचाई के साधन का एक और विकल्प भी
उपलब्ध हो गया। इसके बाद मैंने कृषि विभाग की योजनाओं की जानकारी ली और सब्सिडी का
लाभ लेते हुये खेत में स्प्रिंक्लर व
पाइप भी लगवाये। यहाँ यह जरुर बताना चाहूँगा कि सरकार की योजनाओं से मुझ जैसे किसानों को बहुत फायदा हो रहा है। इनकी
मदद से मैं आज उन्नतशील किसान बनने जा रहा हूँ। इस बात का सबूत यह भी है कि मेरी
इस डबरी और खेती-बाड़ी को देखने के लिए दूर-दराज से ग्रामीण किसान भाई आते हैं और
मुझसे सीखने के साथ-साथ अपने अनुभव भी
साझा करते हैं।
वास्तव में सरकार की
विभिन्न किसान हितैषी योजनाओं से मिले लाभों ने श्री मिथलेश साहू को अपने समकक्ष
किसान भाईयों के बीच आदर्श बना दिया है।