Monday, 9 July 2018

बुलंद हौसलों से बढ़े कदम . . .


बुलंद हौसलों से बढ़े कदम . . .

इंसान अगर बुलंदियों तक पहुंचना चाहे और उसके अंदर जज्बा हो, तो वह वहाँ पहुँच सकता है। बुलंदियों तक पहुँचने का यह सफर तब और आसान हो जाता है, जब एक अच्छा पथ-प्रदर्शक मिल जाए। यह बात, कोरिया जिले की ग्राम पंचायत - भण्डारपारा में मुर्गीपालन केन्द्र में काम करते आदिवासी परिवारों को देखकर, सही साबित होती है। इन्होंने अपने बुलंद हौसलों, योजनाओं के तालमेल से मिले लाभ और पथ-प्रदर्शक बने कृषि विज्ञान केन्द्र, बैकुंठपुर के मार्गदर्शन के बलबूते कम समय में ही पारंपरिक रुप से किये जाने वाले मुर्गीपालन के कार्य में व्यावसायिक दक्षता प्राप्त कर ली है। आज ये सभी मिलकर एक कुशल व्यावसायिक मुर्गीपालक की भाँति काम कर रहे हैं। इस तरह से ये अपने गाँव के साथ क्षेत्र के लिये भी एक मिसाल बन गए हैं। 
बैकुंठपुर विकासखण्ड के भण्डारपारा गाँव के निवासी श्री बीरेन्द्र सिंह, श्री राजू सिंह, श्री मनबोध सिंह, श्री दासन सिंह और श्रीमती इंद्रकुवर भी गाँव के उन छोटे कृषक परिवारों की भाँति थे, जिनका जीवन-यापन खेती-किसानी और मजदूरी पर निर्भर था। बरसात में बारिश की आँख-मिचौली से प्रभावित होने वाली खेती के कारण परिवार के समक्ष भरण-पोषण और आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने की चुनौती, इन्हें बेचैन कर देती थी। यह बेचैनी ही उन्हें परिवार की सतत् आजीविका के लिये एक नया रास्ता ढूंढने के लिये विवश कर रही थी। इसी दरम्यान मार्च 2017 में, इन्हें ग्राम पंचायत के माध्यम से कृषि विज्ञान केन्द्र, बैकुंठपुर में आयोजित होने वाले मुर्गीपालन प्रशिक्षण की जानकारी मिली। बस, फिर क्या था; वे जिस रास्ते को ढूंढ रहे थे, वह सामने साफ नजर आने लगा। उन्होंने बिना एक पल की देरी किये कृषि विज्ञान केन्द्र में मुर्गीपालन प्रशिक्षण हेतु अपना नाम प्रशिक्षुओं की सूची में दर्ज करा दिया। उन्हें अब बस प्रशिक्षण के प्रारंभ होने का इंतजार था। आखिरकार वह दिन भी आ गया, जब कृषि विज्ञान केन्द्र में व्यावसायिक मुर्गीपालन पर प्रशिक्षण शुरु हुआ। चूँकि उनके मन में मौजूदा परिस्थितियों में बदलाव की इच्छाशक्ति तो थी ही, सो उन्होंने पूरी लगन के साथ प्रशिक्षण के एक-एक पहलुओं को जाना और समझा।
यहाँ प्रशिक्षण देने वाले कृषि विज्ञान केन्द्र, बैकुंठपुर के फील्ड असिसटेंट श्री फैय्याज आलम के मुताबिक प्रशिक्षण के बाद बीरेन्द्र, राजू और मनबोध ने मुर्गीपालन केन्द्र शुरु करने की इच्छा व्यक्त की थी। इस पर केन्द्र प्रमुख श्री रंजीत सिंह राजपूत के निर्देशन में आदिवासी कृषकों हेतु व्यावसायिक मुर्गीपालन का प्रोजेक्ट तैयार किया गया। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत सबसे पहले इनके साथ गाँव के ही 2 अन्य कृषकों श्री दासन सिंह और श्रीमती इंद्रकुवर को जोड़ते हुए 5 सदस्यों की एक टीम बनायी गई। उनमें टीम भावना के विकास के बाद जुलाई, 2017 को राशि 15 लाख 89 हजार की लागत से इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई। प्रोजेक्ट के लिए राशि का प्रावधान महात्मा गांधी नरेगा और जिला खनिज न्यास निधि के अभिसरण से किया गया। प्रोजेक्ट के अंतर्गत सबसे पहले मुर्गीशेड तैयार किया गया। इसके बाद शेड में मुर्गियों के लिये फीडर, सौर चलित जल यंत्र और ठंड के समय गर्मी के लिये बुडर की व्यवस्था की गई। इस शेड का निर्माण विषय-विशेषज्ञ श्री संदीप शर्मा जी के मार्गदर्शन  में स्वयं इन पाँचों ने मिलकर किया। इसका उद्देश्य इन्हें मुर्गीशेड के निर्माण कार्य में दक्ष करना था, जिससे वे जिले में मुर्गीशेड निर्माण के कुशल कारीगर के रुप में कहीं भी अपनी सेवाएँ दे सकें।
श्री फैय्याज ने इस संबंध में आगे बताया कि इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत हितग्राहियों को 500 चूजे दिये जाने हैं। प्रारंभिक तौर पर मई, 2018 में मुर्गीपालन हेतु ʻअसीलʼ प्रजाति के 250 चूजे दिये गए हैं। ज्ञातव्य हो कि इस प्रजाति की मुर्गियाँ 3 से 4 माह में अण्डे देने लगती हैं। वर्तमान में इनसे उत्पादित अण्डों को कृषि विज्ञान केन्द्र के द्वारा हेचिंग सेंटर में भेजा जा रहा है, ताकि हितग्राही उनसे चूजे प्राप्त कर सकें। वहीं जैसे-जैसे मुर्गियाँ अंडे देना बंद करेंगी, हितग्राही उन्हें बाजार में बेच देंगे। इससे उन्हें सीधे आय होगी। समय बीतने के साथ-साथ अण्डा और मुर्गी, दोनों से हितग्राहियों को मुनाफा होना शुरु हो जायेगा। कृषि विज्ञान केन्द्र ने हितग्राहियों की मुर्गीपालन की दिशा में बढ़ते रुझान को देखते हुए, इस प्रोजेक्ट को 3 साल तक अपनी निगरानी में रखा है। 

भण्डारपारा गाँव में चल रहे इस मुर्गीपालन केन्द्र और कृषि विज्ञान केन्द्र, बैकुंठपुर के सतत मार्गदर्शन को देखते हुए, यह निश्चित रुप से कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं, जब ये आदिवासी कृषक अपनी मेहनत और लगन के दम पर पारंपरिक रुप से किये जाने वाले मुर्गीपालन को व्यावसायिक मुर्गीपालन की बुलंदियों के शिखर तक पहुँचा देंगे।

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Thursday, 5 July 2018

झूम उठी पथरीली जमीन


झूम उठी पथरीली जमीन
बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती । परिश्रम कभी निष्फल नहीं जाता । मजबूत इच्छा शक्ति और जज्बे से पत्थर पर भी दूब उगाई जा सकती है । इन सब बातों का जीवंत प्रमाण है बालोद जिले के गुरुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-धानापुरी में हुआ वृक्षारोपण । इस जगह पर जहाँ कभी बड़े-बड़े पत्थर एवं दीमक से भरी उबड़-खाबड़ पथरीली जमीन हुआ करती थी, वहीं आज हरे-भरे फलदार और छायादार वृक्ष झूम रहे हैं । यह सब संभव हुआ है ग्राम पंचायत की सरपंच और उनकी टीम तथा ग्रामीणों के सामूहिक प्रयास से । इस प्रयास को आधार मिला है, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से ।
 पंचायत की ग्राम रोजगार सहायिका श्रीमती हेमलता सिन्हा के मुताबिक बंजर और पथरीली जमीन होने के कारण लगभग 4.50 एकड़ का यह भूखंड काफी समय से पड़ती भूमि पड़ा था । इसे उपयोगी बनाने की चर्चा ग्राम पंचायत में उठी थी । ग्राम सभा में ग्रामीणों ने यहाँ वृक्षारोपण करने का निर्णय लिया, किन्तु पथरीली जमीन पर पौधरोपण के साथ उन्हें जीवित रखना एक चुनौती थी । इसलिए यह कार्य दो चरणों में कराने का फैसला लिया गया । पहले चरण में पड़ती भूखंड के एक हेक्टेयर भू-भाग का चयन किया गया । इस चयनित भूमि पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से राशि 6 लाख 30 हजार रुपयों की लागत से पौधरोपण का प्रस्ताव स्वीकृत कराया गया । इस प्रस्ताव के अंतर्गत एक हजार फलदार पौधों के रोपण का लक्ष्य रखा गया । इसकी शुरुआत दिनांक 1 मार्च, 2014 को भूखंड की साफ-सफाई से हुई । इसके बाद गाँव के 219 ग्रामीणों ने, जिनमें 121 महिलाएं और 98 पुरुष शामिल हैं, ने मिलकर वृक्ष लगाना शुरु किया । आज इस भूखंड पर लगभग एक हजार पेड़ झूम रहे हैं । इनमें आंवला के 150, आम के 150, अमरुद के 200, कटहल के 50, जामुन के 250 और नींबू के 150 पेड़ शामिल हैं । जब इन्हें लगाया गया था, तब इनकी अधिकतम साईज डेढ़ फीट थी और आज जुलाई, 2018 में ये 7 से 10 फुट तक की ऊँचाई के हो गए हैं । अमरुद के पेड़ों में तो फल भी आ गए हैं ।
गाँव में हरियाली के प्रतीक के तौर पर नजर आ रहे इस वृक्षारोपण के संबंध में सरपंच श्रीमती योगेश्वरी सिन्हा ने बताया कि बाग में फल लगने लगे हैं । पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से और भविष्य में होने वाले आर्थिक फायदे की उम्मीद में ग्राम पंचायत के द्वारा यह कार्य करवाया गया । पौधरोपण को बचाये रखने के लिए चारों ओर पोल एवं तार से घेराबंदी कराई गई और पानी की व्यवस्था के लिए बोर खनन करवाया गया । पानी की पहुँच हर पौधे तक हो, इसके लिए वृक्षारोपण के दूसरे चरण में नाली निर्माण के माध्यम से पानी के डायवर्सन की व्यवस्था की गई । आज यह वृक्षारोपण हरा-भरा होने के कारण गार्डन की भाँति आकर्षक भी नजर आता है, क्योंकि यहाँ पौधों का रोपण लाइनिंग करके किया गया है, जो इसके व्यवस्थित विकास का आधार भी है ।
उन्होंने आगे कहा कि इस वृक्षारोपण के परिणामों से उत्साहित होकर ग्राम पंचायत ने दूसरे चरण में शेष भूखंड पर भी महात्मा गांधी नरेगा से जून, 2016 में एक हजार पौधों का वृक्षारोपण का कार्य संपादित कराया । वर्तमान में यह कार्य प्रगति पर है । इस चरण में पहले चरण में शामिल पौधों की प्रजातियों के अतिरिक्त सीताफल के 150, मुनगा के 50 और अशोक के 50 पौधों का रोपण किया गया है । आज की स्थिति में ये पौधे भी 4 से 7 फीट के वृक्ष बन गये हैं । सारे वृक्षारोपण के देखभाल की जिम्मेदारी 6 ग्रामीणों के कंधों पर है, जिन्हें महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी भुगतान किया जाता है ।
कल की उपेक्षित यह बंजर और पथरीली जमीन आज पंचायत और ग्रामीणों के लिए अति महत्वपूर्ण बनी हुई है । बगीचे का स्वरुप धारण कर चुके इस वृक्षारोपण के संरक्षण एवं पोषण के प्रति यहाँ के ग्रामीण काफी सजग हैं । इसका प्रभाव गुरुर विकासखण्ड की अन्य ग्राम पंचायतों में भी देखने को मिल रहा है । ग्राम पंचायत - भेजा मैदानी में भी महात्मा गांधी नरेगा से राशि 9 लाख 24 हजार रुपयों की लागत से अगस्त, 2017 में फलदार व छायादार वृक्षारोपण किया गया । यहां लगभग एक हेक्टेयर के भूखंड में 1039 फलदार पौधों का रोपण हुआ है । इस वृक्षारोपण के अंतर्गत केला, सीताफल, कटहल, जामुन, आम, नींबू, अमरुद, मुनगा, पपीता, अनार, आंवला, बेल, करंज, सोनफूल, करौंदा, कदम, खम्हार, गुड़हल और नीम पौधों का रोपण शामिल है । इन वृक्षारोपण को देखकर यहाँ यह स्पष्ट रुप से कहा जा सकता है कि ग्रामीणों के प्रयास ने पथरीली जमीन की तस्वीर ही बदल दी है ।


महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...