बुलंद हौसलों से बढ़े कदम . . .
इंसान अगर बुलंदियों तक पहुंचना चाहे और उसके अंदर जज्बा हो, तो वह वहाँ पहुँच सकता है। बुलंदियों तक पहुँचने का यह सफर तब और आसान हो जाता है, जब एक अच्छा पथ-प्रदर्शक मिल जाए। यह बात, कोरिया जिले की ग्राम पंचायत - भण्डारपारा में मुर्गीपालन केन्द्र में काम करते आदिवासी परिवारों को देखकर, सही साबित होती है। इन्होंने अपने बुलंद हौसलों, योजनाओं के तालमेल से मिले लाभ और पथ-प्रदर्शक बने कृषि विज्ञान केन्द्र, बैकुंठपुर के मार्गदर्शन के बलबूते कम समय में ही पारंपरिक रुप से किये जाने वाले मुर्गीपालन के कार्य में व्यावसायिक दक्षता प्राप्त कर ली है। आज ये सभी मिलकर एक कुशल व्यावसायिक मुर्गीपालक की भाँति काम कर रहे हैं। इस तरह से ये अपने गाँव के साथ क्षेत्र के लिये भी एक मिसाल बन गए हैं।
बैकुंठपुर विकासखण्ड के भण्डारपारा गाँव के निवासी श्री
बीरेन्द्र सिंह, श्री राजू सिंह, श्री मनबोध सिंह, श्री दासन सिंह और श्रीमती
इंद्रकुवर भी गाँव के उन छोटे कृषक परिवारों की भाँति थे, जिनका जीवन-यापन
खेती-किसानी और मजदूरी पर निर्भर था। बरसात में बारिश की आँख-मिचौली से प्रभावित
होने वाली खेती के कारण परिवार के समक्ष भरण-पोषण और आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा
करने की चुनौती, इन्हें बेचैन कर देती थी। यह बेचैनी ही उन्हें परिवार की सतत् आजीविका
के लिये एक नया रास्ता ढूंढने के लिये विवश कर रही थी। इसी दरम्यान मार्च 2017 में,
इन्हें ग्राम पंचायत के माध्यम से कृषि विज्ञान केन्द्र, बैकुंठपुर में आयोजित
होने वाले मुर्गीपालन प्रशिक्षण की जानकारी मिली। बस, फिर क्या था; वे जिस रास्ते को ढूंढ रहे थे, वह सामने साफ नजर आने लगा। उन्होंने बिना
एक पल की देरी किये कृषि विज्ञान केन्द्र में मुर्गीपालन प्रशिक्षण हेतु अपना नाम
प्रशिक्षुओं की सूची में दर्ज करा दिया। उन्हें अब बस प्रशिक्षण के प्रारंभ होने
का इंतजार था। आखिरकार वह दिन भी आ गया, जब कृषि विज्ञान केन्द्र में व्यावसायिक
मुर्गीपालन पर प्रशिक्षण शुरु हुआ। चूँकि उनके मन में मौजूदा परिस्थितियों में
बदलाव की इच्छाशक्ति तो थी ही, सो उन्होंने पूरी लगन के साथ प्रशिक्षण के एक-एक
पहलुओं को जाना और समझा।
यहाँ
प्रशिक्षण देने वाले कृषि विज्ञान केन्द्र, बैकुंठपुर के फील्ड असिसटेंट श्री फैय्याज
आलम के मुताबिक प्रशिक्षण के बाद बीरेन्द्र, राजू और मनबोध ने मुर्गीपालन केन्द्र शुरु
करने की इच्छा व्यक्त की थी। इस पर केन्द्र प्रमुख श्री रंजीत सिंह राजपूत के
निर्देशन में आदिवासी कृषकों हेतु व्यावसायिक मुर्गीपालन का प्रोजेक्ट तैयार किया
गया। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत सबसे पहले इनके साथ गाँव के ही 2 अन्य कृषकों श्री
दासन सिंह और श्रीमती इंद्रकुवर को जोड़ते हुए 5 सदस्यों की एक टीम बनायी गई।
उनमें टीम भावना के विकास के बाद जुलाई, 2017 को राशि 15 लाख 89 हजार की लागत से इस
प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई। प्रोजेक्ट के लिए राशि का प्रावधान महात्मा गांधी नरेगा और
जिला खनिज न्यास निधि के अभिसरण से किया गया। प्रोजेक्ट के अंतर्गत सबसे पहले मुर्गीशेड
तैयार किया गया। इसके बाद शेड में मुर्गियों के लिये फीडर, सौर चलित जल यंत्र और
ठंड के समय गर्मी
के लिये बुडर की व्यवस्था की गई। इस शेड का निर्माण विषय-विशेषज्ञ श्री संदीप
शर्मा जी के मार्गदर्शन में स्वयं इन
पाँचों ने मिलकर किया। इसका उद्देश्य इन्हें मुर्गीशेड के निर्माण कार्य में दक्ष
करना था, जिससे वे जिले में मुर्गीशेड निर्माण के कुशल कारीगर के रुप में कहीं भी
अपनी सेवाएँ दे सकें।
श्री फैय्याज
ने इस संबंध में आगे बताया कि इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत हितग्राहियों को 500 चूजे
दिये जाने हैं। प्रारंभिक तौर पर मई, 2018 में मुर्गीपालन हेतु ʻअसीलʼ प्रजाति के 250 चूजे दिये गए हैं। ज्ञातव्य हो कि इस
प्रजाति की मुर्गियाँ 3 से 4 माह में अण्डे देने लगती हैं। वर्तमान में इनसे
उत्पादित अण्डों को कृषि विज्ञान केन्द्र के द्वारा हेचिंग सेंटर में भेजा जा रहा
है, ताकि हितग्राही उनसे चूजे प्राप्त कर सकें। वहीं जैसे-जैसे मुर्गियाँ अंडे
देना बंद करेंगी, हितग्राही उन्हें बाजार में बेच देंगे। इससे उन्हें सीधे आय होगी।
समय बीतने के साथ-साथ अण्डा और मुर्गी, दोनों से हितग्राहियों को मुनाफा होना शुरु
हो जायेगा। कृषि विज्ञान केन्द्र ने हितग्राहियों की मुर्गीपालन की दिशा में बढ़ते
रुझान को देखते हुए, इस प्रोजेक्ट को 3 साल तक अपनी निगरानी में रखा है।
भण्डारपारा गाँव में चल रहे इस मुर्गीपालन केन्द्र और कृषि विज्ञान केन्द्र, बैकुंठपुर के सतत मार्गदर्शन को देखते हुए, यह निश्चित रुप से कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं, जब ये आदिवासी कृषक अपनी मेहनत और लगन के दम पर पारंपरिक रुप से किये जाने वाले मुर्गीपालन को व्यावसायिक मुर्गीपालन की बुलंदियों के शिखर तक पहुँचा देंगे।
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