झूम उठी पथरीली जमीन
बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती । परिश्रम
कभी निष्फल नहीं जाता । मजबूत इच्छा शक्ति और जज्बे से पत्थर पर भी दूब उगाई जा
सकती है । इन सब बातों का जीवंत प्रमाण है बालोद जिले के गुरुर विकासखण्ड की ग्राम
पंचायत-धानापुरी में हुआ वृक्षारोपण । इस जगह पर जहाँ कभी बड़े-बड़े पत्थर एवं
दीमक से भरी उबड़-खाबड़ पथरीली जमीन हुआ करती थी, वहीं आज हरे-भरे फलदार और
छायादार वृक्ष झूम रहे हैं । यह सब संभव हुआ है ग्राम पंचायत की सरपंच और उनकी टीम
तथा ग्रामीणों के सामूहिक प्रयास से । इस प्रयास को आधार मिला है, महात्मा गांधी
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से ।
पंचायत की ग्राम रोजगार सहायिका श्रीमती हेमलता सिन्हा के
मुताबिक बंजर और पथरीली जमीन होने के कारण लगभग 4.50 एकड़ का यह भूखंड काफी समय से
पड़ती भूमि पड़ा था । इसे उपयोगी बनाने की चर्चा ग्राम पंचायत में उठी थी । ग्राम
सभा में ग्रामीणों ने यहाँ वृक्षारोपण करने का निर्णय लिया, किन्तु पथरीली जमीन पर
पौधरोपण के साथ उन्हें जीवित रखना एक चुनौती थी । इसलिए यह कार्य दो चरणों में
कराने का फैसला लिया गया । पहले चरण में पड़ती भूखंड के एक हेक्टेयर भू-भाग का चयन
किया गया । इस चयनित भूमि पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना
(महात्मा गांधी नरेगा) से राशि 6 लाख 30 हजार रुपयों की लागत से पौधरोपण का
प्रस्ताव स्वीकृत कराया गया । इस प्रस्ताव के अंतर्गत एक हजार फलदार पौधों के रोपण
का लक्ष्य रखा गया । इसकी शुरुआत दिनांक 1 मार्च, 2014 को भूखंड की साफ-सफाई से
हुई । इसके बाद गाँव के 219 ग्रामीणों ने, जिनमें 121 महिलाएं और 98 पुरुष शामिल
हैं, ने मिलकर वृक्ष लगाना शुरु किया । आज इस भूखंड पर लगभग एक हजार पेड़ झूम रहे
हैं । इनमें आंवला के 150, आम के 150, अमरुद के 200, कटहल के 50, जामुन के 250 और
नींबू के 150 पेड़ शामिल हैं । जब इन्हें लगाया गया था, तब इनकी अधिकतम साईज डेढ़
फीट थी और आज जुलाई, 2018 में ये 7 से 10 फुट तक की ऊँचाई के हो गए हैं । अमरुद के
पेड़ों में तो फल भी आ गए हैं ।
गाँव में हरियाली के प्रतीक के तौर पर नजर आ रहे इस
वृक्षारोपण के संबंध में सरपंच श्रीमती योगेश्वरी सिन्हा ने बताया कि बाग में फल
लगने लगे हैं । पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से और भविष्य में होने वाले आर्थिक
फायदे की उम्मीद में ग्राम पंचायत के द्वारा यह कार्य करवाया गया । पौधरोपण को
बचाये रखने के लिए चारों ओर पोल एवं तार से घेराबंदी कराई गई और पानी की व्यवस्था
के लिए बोर खनन करवाया गया । पानी की पहुँच हर पौधे तक हो, इसके लिए वृक्षारोपण के
दूसरे चरण में नाली निर्माण के माध्यम से पानी के डायवर्सन की व्यवस्था की गई । आज
यह वृक्षारोपण हरा-भरा होने के कारण गार्डन की भाँति आकर्षक भी नजर आता है,
क्योंकि यहाँ पौधों का रोपण लाइनिंग करके किया गया है, जो इसके व्यवस्थित विकास का
आधार भी है ।
उन्होंने आगे कहा कि इस वृक्षारोपण के परिणामों से उत्साहित
होकर ग्राम पंचायत ने दूसरे चरण में शेष भूखंड पर भी महात्मा गांधी नरेगा से जून,
2016 में एक हजार पौधों का वृक्षारोपण का कार्य संपादित कराया । वर्तमान में यह
कार्य प्रगति पर है । इस चरण में पहले चरण में शामिल पौधों की प्रजातियों के
अतिरिक्त सीताफल के 150, मुनगा के 50 और अशोक के 50 पौधों का रोपण किया गया है ।
आज की स्थिति में ये पौधे भी 4 से 7 फीट के वृक्ष बन गये हैं । सारे वृक्षारोपण के
देखभाल की जिम्मेदारी 6 ग्रामीणों के कंधों पर है, जिन्हें महात्मा गांधी नरेगा से
मजदूरी भुगतान किया जाता है ।
कल की उपेक्षित यह बंजर और पथरीली जमीन आज पंचायत और
ग्रामीणों के लिए अति महत्वपूर्ण बनी हुई है । बगीचे का स्वरुप धारण कर चुके इस
वृक्षारोपण के संरक्षण एवं पोषण के प्रति यहाँ के ग्रामीण काफी सजग हैं । इसका प्रभाव गुरुर विकासखण्ड की
अन्य ग्राम पंचायतों में भी देखने को मिल रहा है । ग्राम पंचायत - भेजा मैदानी में
भी महात्मा गांधी नरेगा से राशि 9 लाख 24 हजार रुपयों की लागत से अगस्त, 2017 में
फलदार व छायादार वृक्षारोपण किया गया । यहां लगभग एक हेक्टेयर के भूखंड में 1039
फलदार पौधों का रोपण हुआ है । इस वृक्षारोपण के अंतर्गत केला, सीताफल, कटहल,
जामुन, आम, नींबू, अमरुद, मुनगा, पपीता, अनार, आंवला, बेल, करंज, सोनफूल, करौंदा,
कदम, खम्हार, गुड़हल और नीम पौधों का रोपण शामिल है । इन वृक्षारोपण को देखकर यहाँ
यह स्पष्ट रुप से कहा जा सकता है कि ग्रामीणों के प्रयास ने पथरीली जमीन की तस्वीर
ही बदल दी है ।

