Monday, 26 October 2020

महात्मा गांधी नरेगा से समूह की आजीविका हुई समृद्ध

0 राधा स्व सहायता समूह को लाख उत्पादन से एक साल में दो लाख रुपए से अधिक की आय.
0 मनरेगा से 5 एकड़ भूमि पर सेमियालता पौधरोपण.
0 लाख उत्पादक किसानों के लिए लाख बीज की उपलब्धता हुई सहज.

रायपुर। प्रदेश में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से हुए नर्सरी कार्य और वृक्षारोपण से जहाँ पर्यावरण हरा-भरा हो रहा है, वहीं ग्रामीण आजीविका भी समृद्ध हो रही है। ऐसी ही समृद्धि हमें काँकेर जिले में जिला मुख्यालय से 46 किलोमीटर दूर बनौली गाँव में देखने को मिल रही है। यहाँ करीब दो साल पहले महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से सेमियालता के पौधे रोपे गए थे। रोपण के एक वर्ष बाद, इनमें लाख उत्पादन का कार्य शुरु कर राधा स्व सहायता समूह की महिलाओं ने लाख विक्रय से दो लाख से अधिक की कमाई कर ली है। वहीं कृषि विज्ञान केन्द्र, सिंगारभाठ के तकनीकी मार्गदर्शन से 'बिहन लाख' यानि की लाख-बीज का बैंक भी स्थापित कर लिया है। इस बीज-बैंक की सहायता से वे अब आस-पास के लाख उत्पादक किसानों को लाख उत्पादन के लिए बीज उपलब्ध करा रही हैं। इससे उन्हें अतिरिक्त आय भी हो रही है। 

बनौली गाँव उत्तर बस्तर काँकेर जिले के भानुप्रतापपुर विकासखण्ड के बांसकुण्ड ग्राम पंचायत का आश्रित गाँव है। यहाँ लगभग दो हेक्टयेर की शासकीय भूमि अनुपयोगी एवं खाली पड़ी थी। केवल कुसुम के पेड़ों की हरियाली ही यहाँ दिखाई देती थी। ग्राम पंचायत इस भूमि का उपयोग गाँव की महिलाओं की आजीविका की समृद्धि के लिए करना चाहती थी। इसके लिए पंचायत ने कृषि विज्ञान केन्द्र, सिंगारभाठ के वैज्ञानिकों से संपर्क किया। यहाँ केन्द्र में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से सात लाख 7 हजार रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति से सेमियालता पौधरोपण एवं लाख उत्पादन की परियोजना पर कार्य तो चल ही रहा था। सो, पंचायत के अनुरोध पर कृषि विज्ञान केन्द्र ने बनौली गाँव में पाँच एकड़ की शासकीय भूमि में चार हजार सेमियालता पौधों का रोपण किया। इस कार्य में महात्मा गांधी नरेगा से दो लाख 68 हजार रुपए व्यय हुए। इसमें गाँव के 30 मनरेगा श्रमिकों को 710 मानव दिवस का सीधा रोजगार मिला था और मजदूरी के रुप में एक लाख 22 हजार 142 रुपए मिले थे। बनौली गाँव की यह खाली पड़ी भूमि अब सेमियालता और कुसुम के पेड़ों से आच्छादीत हो गई है।

वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख डॉ. बीरबल साहू बताते हैं कि यहाँ अगस्त, 2018 में सेमियालता पौधों का रोपण वैज्ञानिक पद्धति से किया गया था। इसके लिए सभी पौधों को कतार से कतार में 2 मीटर और पौधे से पौधे में 1 मीटर की दूरी पर रोपा गया था, ताकि ये अच्छी वृद्धि पा सकें। पौधों के लिए पानी की व्यवस्था टपक सिंचाई यूनिट की स्थापना करके की गई। वर्तमान में इनकी लंबाई 6 से 7 फीट तक हो चुकी है। यहाँ लाख उत्पादन का कार्य राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.) के अंतर्गत गठित राधा स्व सहायता समूह की महिलाएँ कर रही हैं। केन्द्र के द्वारा इन्हें इस संबंध में प्रशिक्षण भी दिया गया है और नियमित अंतराल पर मार्गदर्शन भी दिया जा रहा है।

वहीं समूह की सचिव श्रीमती कौशल्या मंडावी का कहना हैं कि समूह की महिलाओं के द्वारा जुलाई, 2019 में पौधों में बिहन लाख निवेशित (इनाकुलेशन) किया गया था, जिसके छः माह बाद करीब 2 क्विंटल लाख का उत्पादन प्राप्त हुआ। इस उत्पादन में से एक क्विंटल को समूह ने 350 रुपए प्रति कि.ग्रा. की दर से 35 हजार रुपए में बेचा और बचत 01 क्विंटल को जनवरी-फरवरी माह 2020 में कुसुम वृक्ष में बिहन लाख के रूप में उपयोग किया गया था, जिससे माह- जुलाई, 2020 में पुनः 8 क्विंटल लाख का उत्पादन प्राप्त हुआ। इसमें से फिर 6.45 क्विंटल को 270 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से विक्रय कर एक लाख 74 हजार 150 रूपये की आमदनी प्राप्त की गई तथा बचत 1.55 क्विंटल को पुनः सेमियालता पौधे में बिहन लाख के रूप में लगाया गया है, जिससे आगामी दिसम्बर माह, 2020 तक 7 से 8 क्विंटल लाख के उत्पादन होने की संभावना है।

इस प्रकार गांव की खाली पड़ी शासकीय भूमि में महात्मा गांधी नरेगा की सहायता से राधा स्व सहायता समूह की महिलाओं ने एक बार निवेशित किये गये लाख से पुनः सेमियालता एवं कुसुम के पेड़ों में वर्ष भर लाख उत्पादन के मॉडल को सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया है। पंचायत की पहल और कृषि विज्ञान केन्द्र के मार्गदर्शन से अब जहाँ समूह की महिलाओं के पास सालभर का रोजगार उपलब्ध है, वहीं लाख उत्पादक किसानों के लिए बिहन लाख की उपलब्धता भी सहज हो गई है।

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एक नजर-
कार्य का नाम- सेमियालता पौध रोपण एवं लाख उत्पादन कार्य, क्षेत्रफल- 5 एकड़, पौधों की संख्या- 4000,
ग्राम-बनोली, ग्रा.पं.- बांसकुण्ड, विकासखण्ड- भानुप्रतापपुर, जिला- उत्तर बस्तर काँकेर,
स्वीकृत राशि- 7.7 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2018-19, सृजित मानव दिवस- 710.
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रिपोर्टिंग- श्री ऋषि जैन, शिकायत निवारण अधिकारी, जिला पंचायत- उत्तर बस्तर काँकेर, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- श्री अनिल पटेल, पंचायत सचिव, ग्रा.पं.-बांसकुण्ड, ज.पं.-भानुप्रतापपुर, जिला- उत्तर बस्तर काँकेर, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।

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Monday, 19 October 2020

रेशम-सी रेशमी हुई जिंदगी

मनरेगा से रोपे 33,600 पौधों में कोसाफल उत्पादन से आयतू ने कमाए ढाई लाख

रायपुर। करीब 6 साल पहले बीजापुर जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर स्थित शासकीय कोसा बीज केन्द्र, नैमेड़ में लगे साजा और अर्जुन के पेड़ों पर रेशम के कीड़ों का पालन और कोसाफल उत्पादन का काम करने वाले आयतू कुड़ियम कुछ साल पहले तक अपने खेत में खरीफ की फसल लेने के बाद सालभर मजदूरी की तलाश में लगे रहते थे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। यही वजह रही है कि आज वह न सिर्फ कुशल कीटपालक के तौर पर कोसाफल उत्पादन कर अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं, बल्कि 4 अन्य मनरेगा श्रमिकों को भी रेशम कीटपालन में दक्ष बनाकर कोसाफल उत्पादन से उनके जिंदगी को रेशम की तरह रेशमी बना रहे हैं। 

छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले का यह आदिवासी किसान अब ग्राम पंचायत-नैमेड़ में स्थित रेशम विभाग के शासकीय कोसा बीज केन्द्र में कीटपालक समूह का प्रतिनिधित्व करते हुए कीटपालन और कोसाफल का उत्पादन व संग्रहण का कार्य कर रहा है। कुशल कीटपालक बनने के बाद पिछले 3 सालों में आयतू को लगभग ढाई लाख रुपए की अतिरिक्त आमदनी हुई है। 


रेशम विभाग के सहायक संचालक श्री राम सूरत बेक बताते हैं कि शासकीय कोसा बीज केन्द्र, नैमेड़ में वर्षः 2008-09 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) अंतर्गत 3 लाख 44 हजार की लागत से 28 हेक्टेयर में लगभग 16 हजार 800 साजा और इतनी ही संख्या में अर्जुन के पौधे रोपे गए थे। आज ये पौधे लगभग 10 फीट के हरे-भरे पेड़ बन चुके हैं। 

श्री बेक आगे बताते हैं कि विभाग के द्वारा यहाँ रेशम के कीड़ों का पालन कर कोसाफल उत्पादन का कार्य करवाया जा रहा है। साल 2015 में आयतू ने विभागीय कर्मचारी की सलाह पर यहाँ श्रमिक के रुप में काम करना शुरु किया था और अपनी सीखने की ललक के दम पर धीरे-धीरे कोसाफल उत्पादन का प्रशिक्षण लेना भी शुरु कर दिया था। सालभर में वह इसमें पूरी तरह से दक्ष हो चुका था। वर्ष 2016 में उसने गाँव के चार मनरेगा श्रमिकों को अपने साथ समूह के रुप में जोड़ा और यहाँ पेड़ों का रख-रखाव के साथ कीटपालन और कोसाफल उत्पादन का कार्य शुरु कर दिया। इनके समूह के द्वारा उत्पादित कोसाफल को विभाग के कोकून बैंक के माध्यम से खरीदा जाता है। इससे इन्हें सालभर में अच्छी-खासी कमाई हो जाती है। 

कुशल कीटपालक बनने के बाद कोसाफल उत्पादन से मिली नई आजीविका से जीवन में आये बदलाव के बारे में श्री आयतू कहते हैं कि “आगे बढ़ने के लिए मेरे मन में खेती-किसानी या मजदूरी के अलावा कुछ और भी करने का मन था। रेशम कीटपालन के रुप में मुझे रोजी-रोटी का नया साधन मिला । महात्मा गांधी नरेगा से यहाँ हुए वृक्षारोपण से फैली हरियाली ने मेरी जिंदगी में भी हरियाली ला दी है। कोसाफल उत्पादन से जुड़ने के बाद, अब मैं अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छे से कर पा रहा हूँ और अपने 3 बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पा रहा हूँ।”
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एक नजरः-
कार्य का नाम- पौध रोपण कार्य (साजा/अर्जुन), क्षेत्रफल- 28 हेक्टेयर, पौधों की संख्या- 33600, प्रजाति- साजा और अर्जुन,
ग्रा.पं.- नैमेड़, विकासखण्ड- बीजापुर, जिला-बीजापुर, स्थल- शासकीय कोसा बीज केन्द्र, नैमेड (भाग-2),
स्वीकृत राशि- 3.81 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2008-09, सृजित मानव दिवस- 2702, मजदूरी भुगतान- 2.027 लाख.

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रिपोर्टिंग- श्री मनीष सोनवानी, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत- बीजापुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- 1. श्री शरद कुमार मारकोले, फील्ड ऑफिसर, जिला रेशम विभाग, बीजापुर, छत्तीसगढ़।
2. श्री शशि तेलम, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-नैमेड़, वि.ख.- बीजापुर, जिला-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री प्रशांत कुमार यादव, सहायक प्रचार-प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- बीजापुर, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 15 October 2020

बंजर जमीन ने ओढ़ी हरियाली की चादर

दो सौ श्रमवीरों की मेहनत रंग लाई, महज दो साल में बना उपवन

मनरेगा अभिसरण और आधुनिक तकनीक का उपयोग


रायपुर। पंचायत की सोच, विशेषज्ञों के मार्गदर्शन एवं वृक्षारोपण की आधुनिक तकनीक से दो सौ मनरेगा श्रमवीरों ने सवा दो साल तक लगातार बिना रुके और बिना थके जी-तोड़ मेहनत से जुर्डा गाँव की पाँच एकड़ बंजर जमीन को आज हरा-भरा बना दिया है। महज दो साल की अवधि में रोपे गए सभी पौधे आज कम से कम पंद्रह फीट के हरे-भरे पेड़ बन चुके हैं। पूरे क्षेत्र में फैली सघन हरियाली और उनके मध्य उड़ती रंग-बिरंगी तितलियाँ व विभिन्न प्रजाति के पक्षियों की आवाजों ने इसे परंपरागत वृक्षारोपण से अलग कर विशेष वृक्षारोपण का दर्जा दे रहे हैं। मानों कि, जैसे यह कोई सघन वन हो । रायगढ़ जिले में जैव विविधता को लिये यह क्षेत्र, आज महात्मा गांधी ऑक्सीजोन के नाम से जाना जाता है।

ग्राम पंचायत ने महात्मी गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) और जिला खनिज संस्थान न्यास (डी.एम.एफ.) की निधियों के तालमेल (अभिसरण) से गाँव की खाली जमीन पर महज दो साल पहले 44 छायादार और फलदार मिश्रित प्रजातियों के 72 हजार 500 पौधे लगाए थे। अब ये पौधे पेड़ बन चुके हैं और कुछ में फल भी आने लगे हैं। इस वृक्षारोपण ने खाली पड़ी और लगभग अतिक्रमण का शिकार हो चुकी जमीन को मुक्त कर हरियाली की चादर से ढंक दिया है। इस हरियाली से गाँव की आबो-हवा अब स्वच्छ होने के साथ-साथ आस-पास का पर्यावरण भी सुधर रहा है।

औद्योगिक शहर और रायगढ़ जिला मुख्यालय से महज सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित जुर्डा गाँव दो साल पहले तक रायगढ़ विकासखण्ड के अन्य गाँवों की तरह एक सामान्य गाँव था, किन्तु आज यह पर्यावरण सुधार के क्षेत्र में मिसाल के तौर पर जाना जाता है। ग्राम पंचायत के तत्कालीन सरपंच और पर्यावरण-प्रेमी श्री जयंत किशोर प्रधान इस संबंध में बताते हैं कि शहर से नजदीक होने के कारण यहाँ औद्योगिक प्रदूषण और अतिक्रमण, दोनों बढ़ने लगे थे। इसलिए जमीन को सुरक्षित रखने के लिए पंचायत ने यहाँ वृक्षारोपण का प्रस्ताव रखा था, जिस पर मई 2018 में जिला पंचायत से अभिसरण के तहत 42 लाख 36 हजार रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त हुई। ग्रामीणों को रोजगार देने और पर्यावरण सुधार के कारण यह कार्य पंचायत के लिए काफी अहम था। सो, तत्परता दिखाते हुए 11 जून 2018 को पंचायत ने सबसे पहले संपूर्ण क्षेत्र में वृक्षारोपण का ले-आउट देकर काम शुरु किया।

श्री प्रधान आगे बताते हैं कि पौधरोपण को सफल बनाने के लिए पूरे प्रक्षेत्र की भूमि पर 3 फीट गहराई से मिट्टी खोदकर, उसमें वर्मी कम्पोस्ट डालकर उसे उपजाऊ बनाया गया। फिर एक से डेढ़ फीट की दूरी पर एक-एक फीट गहराई और चौड़ाई के गड्ढे खोदे गए और उनमें सभी पौधों को गौ-मूत्र से उपचारित कर, जमीन से लगभग 3-4 इंच की ऊँचाई पर रखते हुए रोपा गया। प्लांटेशन के बाद मिट्टी को पत्तों और धान के पैरा से ढका गया। पौधों को रोपने का कार्य गाँव के लगभग दो सौ मनरेगा श्रमिकों ने अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी के रुप में पूरा किया है। आज वे और उनके परिवार के सदस्य, इनका देखभाल करते हुए यहाँ आपको मिल जाएंगे। इन्हें महात्मा गांधी नरेगा से 2,453 मानव दिवस का सीधा रोजगार उपलब्ध कराते हुए, चार लाख 26 हजार रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया। डी.एम.एफ. मद से प्राप्त हुई राशि से पौधों की सुरक्षा के लिए पोल और चेन लिंक्ड फेंसिग का कार्य कराया गया। दो बोरिंग और स्प्रिंकलर्स का नेटवर्क बनाते हुए पौधों की नियमित सिंचाई की व्यवस्था की गई। इस वृक्षारोपण की खास बात यह है कि इसमें जापान देश की पौधरोपण की मियावाकी तकनीक का उपयोग किया गया है।

ग्राम रोजगार सहायिका सुश्री सीमा राठिया कहती हैं कि यहाँ एक प्राकृतिक तालाब भी है, जिसका सौंदर्यीकरण और गहरीकरण पंचायत ने कराया था। इसमें इक्ट्ठा हुए पानी से उपवन के आस-पास की भूमि को नमी मिलती रहती है और भू-जल भी रिचार्ज होता है। भूमि को उद्यान का स्वरुप देने हेतु यहाँ बैठने के लिए बेंच भी लगाई गई हैं। इस उपवन में लगे पेड़ों की देखभाल और यहाँ स्थापित अधोसंरचना के रख-रखाव के लिए 2 व्यक्तियों को रखा गया है। आज की तिथि में यहाँ चेरी सहित अन्य पेड़ों में फल आने शुरु हो गए हैं।वहीं पीपल और नीम जैसे ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों के कारण, 15 प्रतिशत वृद्धि के साथ वायु में ऑक्सीजन का स्तर 79 प्रतिशत से अधिक हो गया है। प्रदूषण से भी काफी राहत मिली है।

अब प्लांटेशन के आस-पास का भू-जल स्तर 75 से 80 फीट का हो गया है, जो कभी 100 फीट से नीचे चला गया था। बंजर भूमि की बदली इस तस्वीर ने जिले के साथ-साथ प्रदेश और पड़ोसी राज्यों को भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी प्रभावित किया है।


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एक नजर-

कार्य का नाम- मिनी फॉरेस्टेशन प्रोजेक्ट, क्षेत्रफल- 5 एकड़, पौधों की संख्या- 72,500, प्रजाति- मिश्रित छायादार व फलदार,
ग्रा.पं.- जुर्डा, विकासखण्ड- रायगढ़, जिला- रायगढ़,
स्वीकृत राशि- 42.362 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2018-19, सृजित मानव दिवस- 2453, श्रमिकों की संख्या- 200
कार्यावधि- 2 वर्ष, अभिसरण में शामिल योजनाएँ- महात्मा गांधी नरेगा (4.26 लाख) व डी.एम.एफ. (38.102) 
वृक्षारोपण में प्रयुक्त तकनीक- यह वनरोपण की एक पद्धति है, जिसका आविष्कार मियावाकी नामक जापान के एक वनस्पतिशास्त्री ने किया था। इसमें छोटे-छोटे स्थानों पर छोटे-छोटे पौधे रोपे जाते हैं, जो साधारण पौधों की तुलना में दस गुनी तेजी से बढ़ते हैं। इस पद्धति के अंतर्गत सबसे पहले एक गड्ढा बनाना होता है, जिसका आकार प्रकार भूमि की उपलब्धता पर निर्भर होता है। गड्ढा खोदने के भी पहले रोपे जाने वाले पौधों की प्रजातियों की एक सूची बनानी होती है। इसके लिए ऐसे पौधे चुने जाते हैं, जिनकी ऊँचाई पेड़ बनने पर अलग-अलग हो सकती है। सर्वप्रथम गड्ढे में कम्पोस्ट की एक परत डाली जाती है, तत्पश्चात् बगासे (bagasse) और खोपरों (coconut shells) जैसे प्राकृतिक कचरे की एक परत उसमें गिराई जाती है और सबसे ऊपर लाल मिट्टी की एक परत बिछाई जाती है। सभी पौधे एक साथ नहीं रोप कर थोड़े-थोड़े दिन पर रोप जाते हैं और इनके पेड़ कितने बड़े होंगे इस पर भी विचार किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया 2-3 सप्ताह में पूरी हो जाती है। इन पौधों को नियमित रूप से एक वर्ष तक संधारित किया जाता है।
तकनीकी विशेषज्ञ- श्री सी.के.नायर।
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रिपोर्टिंग- श्री राजेश शर्मा, प्रभारी अधिकारी (महात्मा गांधी नरेगा जिला इकाई), जिला पंचायत- रायगढ़, छत्तीसगढ़। 
तथ्य एवं स्त्रोत-
1. सुश्री आफशा खान, सहायक प्रोग्रामर, जनपद पंचायत- रायगढ़, जिला-रायगढ़, छत्तीसगढ़।
2. सुश्री सीमा राठिया, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-जुर्डा, वि.ख.-रायगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री आलोक कुमार सातपुते, विकास आयुक्त कार्यालय, इन्द्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, छ.ग.।
शीर्षक- श्री प्रशांत यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
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Wednesday, 7 October 2020

हरियाली ने दिलाई जोरण्डाझरिया को विकास के नक्शे में इन्ट्री

 दर्जनभर आदिवासी मनरेगा श्रमिकों को मिला अतिरिक्त आय का साधन

रायपुर। भौगोलिक नक्शे में भले ही जशपुर जिले का जोरण्डाझऱिया गाँव का नाम छोटे अक्षरों में दर्ज किया जाता हो, लेकिन हरियाली से रोजगार के मुद्दे पर यह गाँव जल्द ही विकास के नक्शे में उभर कर सामने आने वाला है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस गाँव की सफलता की कहानी में गाँव में टसर खाद्य पौधरोपण एवं कोसाफल उत्पादन से आदिवासी परिवारों को रोजगार देने का कार्य हो रहा है। करीब एक दशक पहले इस गाँव में रेशम विभाग ने विभागीय मद से 50 हेक्टेयर क्षेत्र में 2 लाख 5 हजार अर्जुन पौधे टसर खाद्य पौधरोपण के अंतर्गत रोपे थे, जिसे 2012-13 में अतिरिक्त 9 हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तारित किया गया। विस्तार कार्यक्रम के अंतर्गत यहाँ लगभग 11 लाख 36 हजार रुपयों की लागत से अतिरिक्त 36 हजार 900 अर्जुन पौधों का रोपण महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से किया गया। वक्त बदलने के साथ-साथ इस परियोजना ने एक नया मोड़ लिया। आज ये पौधे 7 से 10 फुट के पेड़ बन चुके हैं। यहाँ 12 मनरेगा श्रमिकों के द्वारा रेशम विभाग से प्रशिक्षण प्राप्त कर, एक प्रशिक्षित कीटपालक समूह के रुप में टसर कोकून का उत्पादन कर अतिरिक्त आय प्राप्त की जा रही है। पिछले चार सालों में इन्हें कोसाफल उत्पादन से लगभग पौने तीन लाख रुपये से अधिक की आमदनी हुई है। वे अब इसे सहायक रोजगार के रुप में अपनाकर खुश हैं।

जशपुर जिला मुख्यालय से 125 किलोमीटर दूर फरसाबहार विकासखण्ड में ग्राम पंचायत जोरण्डाझरिया है। यहाँ वर्ष 2009-10 में रेशम विभाग ने विभागीय मद से करीब 50 हेक्टेयर क्षेत्र में अर्जुन पौधरोपण की आधारशिला रखी थी, जिसे साल 2012-13 में महात्मा गांधी नरेगा से 9 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में विस्तारित किया गया। अब यहाँ लगभग 2 लाख 41 हजार अर्जुन के हरे-भरे पेड़ हरियाली बिखेर रहे हैं।

जिले के रेशम विभाग के सहायक संचालक श्री मनीष पवार बताते हैं कि इस गाँव में महात्मा गांधी नरेगा से कराये गए अर्जुन पौधरोपण नर्सरी और संधारण कार्य में 161 मनरेगा श्रमिकों को 7 हजार 183 मानव दिवस का सीधा रोजगार मिला है, जिसके लिए उन्हें कुल 9 लाख 48 हजार 196 रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया है। इस दरम्यान लगभग 10 से 12 श्रमिकों के द्वारा कोसाफल उत्पादन से रोजगार के संबंध में अपनी रुचि दिखाई। इनकी रुचि और इच्छाशक्ति को देखते हुए विभाग ने इनका एक समूह बनाया और फिर इन्हें कुशल कीटपालन का प्रशिक्षण प्रदान किया गया। कृमिपालन के लिए टसर कीट के रोगमुक्त अण्डे भी निःशुल्क दिए गए।

श्री पवार आगे बताते हैं कि इस समूह के द्वारा वर्ष 2016-17 में पहली बार एक लाख 38 हजार 926 टसर कोकून का उत्पादन किया गया और उससे एक लाख 10 हजार 214 रुपये की आय अर्जित की गई। पहले महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी और उसके बाद कोसाफल उत्पादन के रुप में सहायक रोजगार ने समूह के सदस्यों को इस कार्य में उत्साही बना दिया है। समूह ने साल 2016-17 से 2019-20 तक कुल 2 लाख 75 हजार 454 कोसाफलों का उत्पादन कर दो लाख 87 हजार 848 रुपयों की आमदनी प्राप्त की। यह आय उन्हें मजदूरी के रुप में विभाग के द्वारा स्थापित कोकून बैंक के माध्यम से प्राप्त हुई।

जोरण्डाझरिया गाँव में हुए इस टसर पौधरोपण ने हरियाली से विकास की एक नई दास्तां लिख दी है। इसके साथ ही गाँव का 59 हेक्टेयर क्षेत्र संरक्षित होकर अब दूर से ही हरा-भरा नजर आता है।

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एक नजर-
कार्य का नाम- टसर खाद्य पौध रोपण नर्सरी कार्य, क्षेत्रफल- 9 हेक्टेयर, पौधों की संख्या- 36900, प्रजाति- अर्जुन,
ग्रा.पं.- जोरण्डाझरिया, विकासखण्ड- फरसाबहार, जिला- जशपुर,
स्वीकृत राशि- 11.589 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2012-13, सृजित मानव दिवस- 7183, नियोजित श्रमिक- 161
कार्यावधि- 2 वर्ष

कोसाफल उत्पादन कार्य में लाभान्वित मनरेगा श्रमिकों के नाम- श्री शिवप्रसाद पिता श्री विच्छन, श्री पिताम्बर पिता श्री जगत, श्रीमती रमिला पति श्री तिलेश्वर, श्री निरंजन पिता श्री रविन्द्र, श्रीमती हबीरा पति श्री गोवर्धन, सुश्री राजकुमारी, श्री चिन्ता पिता श्री सुधराम, श्री उतियानन्द पिता श्री जयराम, श्री दिलेश्वर पिता कलिन्द्रो, श्री लक्ष्मण पिता श्री पुरन, श्री जयराम पिता श्री अघन एवं श्री नन्दकुमार पिता श्री रामचन्द्र
 
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रिपोर्टिंग-         श्री शशिकांत गुप्ता, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत- जशपुर, छत्तीसगढ़।

तथ्य एवं स्त्रोत- 1. श्री अश्विनी व्यास, शिकायत समन्वयक, जिला पंचायत- जशपुर, छत्तीसगढ़।

                        2. श्री ऋषि कुमार सिंह, फिल्ड ऑफिसर- सिंघीबहार, रेशम विभाग, विकासखण्ड-फरसाबहार, जिला-जशपुर, छ.ग.।

लेखन-            श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।

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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...