दो सौ श्रमवीरों की मेहनत रंग लाई, महज दो साल में बना उपवन
मनरेगा अभिसरण और आधुनिक तकनीक का उपयोग
रायपुर। पंचायत की सोच, विशेषज्ञों के मार्गदर्शन एवं वृक्षारोपण की आधुनिक तकनीक से दो सौ मनरेगा श्रमवीरों ने सवा दो साल तक लगातार बिना रुके और बिना थके जी-तोड़ मेहनत से जुर्डा गाँव की पाँच एकड़ बंजर जमीन को आज हरा-भरा बना दिया है। महज दो साल की अवधि में रोपे गए सभी पौधे आज कम से कम पंद्रह फीट के हरे-भरे पेड़ बन चुके हैं। पूरे क्षेत्र में फैली सघन हरियाली और उनके मध्य उड़ती रंग-बिरंगी तितलियाँ व विभिन्न प्रजाति के पक्षियों की आवाजों ने इसे परंपरागत वृक्षारोपण से अलग कर विशेष वृक्षारोपण का दर्जा दे रहे हैं। मानों कि, जैसे यह कोई सघन वन हो । रायगढ़ जिले में जैव विविधता को लिये यह क्षेत्र, आज महात्मा गांधी ऑक्सीजोन के नाम से जाना जाता है।
ग्राम पंचायत ने महात्मी गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) और जिला खनिज संस्थान न्यास (डी.एम.एफ.) की निधियों के तालमेल (अभिसरण) से गाँव की खाली जमीन पर महज दो साल पहले 44 छायादार और फलदार मिश्रित प्रजातियों के 72 हजार 500 पौधे लगाए थे। अब ये पौधे पेड़ बन चुके हैं और कुछ में फल भी आने लगे हैं। इस वृक्षारोपण ने खाली पड़ी और लगभग अतिक्रमण का शिकार हो चुकी जमीन को मुक्त कर हरियाली की चादर से ढंक दिया है। इस हरियाली से गाँव की आबो-हवा अब स्वच्छ होने के साथ-साथ आस-पास का पर्यावरण भी सुधर रहा है।
औद्योगिक शहर और रायगढ़ जिला मुख्यालय से महज सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित जुर्डा गाँव दो साल पहले तक रायगढ़ विकासखण्ड के अन्य गाँवों की तरह एक सामान्य गाँव था, किन्तु आज यह पर्यावरण सुधार के क्षेत्र में मिसाल के तौर पर जाना जाता है। ग्राम पंचायत के तत्कालीन सरपंच और पर्यावरण-प्रेमी श्री जयंत किशोर प्रधान इस संबंध में बताते हैं कि शहर से नजदीक होने के कारण यहाँ औद्योगिक प्रदूषण और अतिक्रमण, दोनों बढ़ने लगे थे। इसलिए जमीन को सुरक्षित रखने के लिए पंचायत ने यहाँ वृक्षारोपण का प्रस्ताव रखा था, जिस पर मई 2018 में जिला पंचायत से अभिसरण के तहत 42 लाख 36 हजार रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त हुई। ग्रामीणों को रोजगार देने और पर्यावरण सुधार के कारण यह कार्य पंचायत के लिए काफी अहम था। सो, तत्परता दिखाते हुए 11 जून 2018 को पंचायत ने सबसे पहले संपूर्ण क्षेत्र में वृक्षारोपण का ले-आउट देकर काम शुरु किया।

श्री प्रधान आगे बताते हैं कि पौधरोपण को सफल बनाने के लिए पूरे प्रक्षेत्र की भूमि पर 3 फीट गहराई से मिट्टी खोदकर, उसमें वर्मी कम्पोस्ट डालकर उसे उपजाऊ बनाया गया। फिर एक से डेढ़ फीट की दूरी पर एक-एक फीट गहराई और चौड़ाई के गड्ढे खोदे गए और उनमें सभी पौधों को गौ-मूत्र से उपचारित कर, जमीन से लगभग 3-4 इंच की ऊँचाई पर रखते हुए रोपा गया। प्लांटेशन के बाद मिट्टी को पत्तों और धान के पैरा से ढका गया। पौधों को रोपने का कार्य गाँव के लगभग दो सौ मनरेगा श्रमिकों ने अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी के रुप में पूरा किया है। आज वे और उनके परिवार के सदस्य, इनका देखभाल करते हुए यहाँ आपको मिल जाएंगे। इन्हें महात्मा गांधी नरेगा से 2,453 मानव दिवस का सीधा रोजगार उपलब्ध कराते हुए, चार लाख 26 हजार रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया। डी.एम.एफ. मद से प्राप्त हुई राशि से पौधों की सुरक्षा के लिए पोल और चेन लिंक्ड फेंसिग का कार्य कराया गया। दो बोरिंग और स्प्रिंकलर्स का नेटवर्क बनाते हुए पौधों की नियमित सिंचाई की व्यवस्था की गई। इस वृक्षारोपण की खास बात यह है कि इसमें जापान देश की पौधरोपण की मियावाकी तकनीक का उपयोग किया गया है।
ग्राम रोजगार सहायिका सुश्री सीमा राठिया कहती हैं कि यहाँ एक प्राकृतिक तालाब भी है, जिसका सौंदर्यीकरण और गहरीकरण पंचायत ने कराया था। इसमें इक्ट्ठा हुए पानी से उपवन के आस-पास की भूमि को नमी मिलती रहती है और भू-जल भी रिचार्ज होता है। भूमि को उद्यान का स्वरुप देने हेतु यहाँ बैठने के लिए बेंच भी लगाई गई हैं। इस उपवन में लगे पेड़ों की देखभाल और यहाँ स्थापित अधोसंरचना के रख-रखाव के लिए 2 व्यक्तियों को रखा गया है। आज की तिथि में यहाँ चेरी सहित अन्य पेड़ों में फल आने शुरु हो गए हैं।वहीं पीपल और नीम जैसे ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों के कारण, 15 प्रतिशत वृद्धि के साथ वायु में ऑक्सीजन का स्तर 79 प्रतिशत से अधिक हो गया है। प्रदूषण से भी काफी राहत मिली है।
अब प्लांटेशन के आस-पास का भू-जल स्तर 75 से 80 फीट का हो गया है, जो कभी 100 फीट से नीचे चला गया था। बंजर भूमि की बदली इस तस्वीर ने जिले के साथ-साथ प्रदेश और पड़ोसी राज्यों को भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी प्रभावित किया है।
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एक नजर-
कार्य का नाम- मिनी फॉरेस्टेशन प्रोजेक्ट, क्षेत्रफल- 5 एकड़, पौधों की संख्या- 72,500, प्रजाति- मिश्रित छायादार व फलदार,
ग्रा.पं.- जुर्डा, विकासखण्ड- रायगढ़, जिला- रायगढ़,
स्वीकृत राशि- 42.362 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2018-19, सृजित मानव दिवस- 2453, श्रमिकों की संख्या- 200
कार्यावधि- 2 वर्ष, अभिसरण में शामिल योजनाएँ- महात्मा गांधी नरेगा (4.26 लाख) व डी.एम.एफ. (38.102) वृक्षारोपण में प्रयुक्त तकनीक- यह वनरोपण की एक पद्धति है, जिसका आविष्कार मियावाकी नामक जापान के एक वनस्पतिशास्त्री ने किया था। इसमें छोटे-छोटे स्थानों पर छोटे-छोटे पौधे रोपे जाते हैं, जो साधारण पौधों की तुलना में दस गुनी तेजी से बढ़ते हैं। इस पद्धति के अंतर्गत सबसे पहले एक गड्ढा बनाना होता है, जिसका आकार प्रकार भूमि की उपलब्धता पर निर्भर होता है। गड्ढा खोदने के भी पहले रोपे जाने वाले पौधों की प्रजातियों की एक सूची बनानी होती है। इसके लिए ऐसे पौधे चुने जाते हैं, जिनकी ऊँचाई पेड़ बनने पर अलग-अलग हो सकती है। सर्वप्रथम गड्ढे में कम्पोस्ट की एक परत डाली जाती है, तत्पश्चात् बगासे (bagasse) और खोपरों (coconut shells) जैसे प्राकृतिक कचरे की एक परत उसमें गिराई जाती है और सबसे ऊपर लाल मिट्टी की एक परत बिछाई जाती है। सभी पौधे एक साथ नहीं रोप कर थोड़े-थोड़े दिन पर रोप जाते हैं और इनके पेड़ कितने बड़े होंगे इस पर भी विचार किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया 2-3 सप्ताह में पूरी हो जाती है। इन पौधों को नियमित रूप से एक वर्ष तक संधारित किया जाता है।
तकनीकी विशेषज्ञ- श्री सी.के.नायर।
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रिपोर्टिंग- श्री राजेश शर्मा, प्रभारी अधिकारी (महात्मा गांधी नरेगा जिला इकाई), जिला पंचायत- रायगढ़, छत्तीसगढ़। तथ्य एवं स्त्रोत-
1. सुश्री आफशा खान, सहायक प्रोग्रामर, जनपद पंचायत- रायगढ़, जिला-रायगढ़, छत्तीसगढ़।
2. सुश्री सीमा राठिया, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-जुर्डा, वि.ख.-रायगढ़, जिला-रायगढ़, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री आलोक कुमार सातपुते, विकास आयुक्त कार्यालय, इन्द्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, छ.ग.।
शीर्षक- श्री प्रशांत यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
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