Monday, 19 October 2020

रेशम-सी रेशमी हुई जिंदगी

मनरेगा से रोपे 33,600 पौधों में कोसाफल उत्पादन से आयतू ने कमाए ढाई लाख

रायपुर। करीब 6 साल पहले बीजापुर जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर स्थित शासकीय कोसा बीज केन्द्र, नैमेड़ में लगे साजा और अर्जुन के पेड़ों पर रेशम के कीड़ों का पालन और कोसाफल उत्पादन का काम करने वाले आयतू कुड़ियम कुछ साल पहले तक अपने खेत में खरीफ की फसल लेने के बाद सालभर मजदूरी की तलाश में लगे रहते थे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। यही वजह रही है कि आज वह न सिर्फ कुशल कीटपालक के तौर पर कोसाफल उत्पादन कर अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं, बल्कि 4 अन्य मनरेगा श्रमिकों को भी रेशम कीटपालन में दक्ष बनाकर कोसाफल उत्पादन से उनके जिंदगी को रेशम की तरह रेशमी बना रहे हैं। 

छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले का यह आदिवासी किसान अब ग्राम पंचायत-नैमेड़ में स्थित रेशम विभाग के शासकीय कोसा बीज केन्द्र में कीटपालक समूह का प्रतिनिधित्व करते हुए कीटपालन और कोसाफल का उत्पादन व संग्रहण का कार्य कर रहा है। कुशल कीटपालक बनने के बाद पिछले 3 सालों में आयतू को लगभग ढाई लाख रुपए की अतिरिक्त आमदनी हुई है। 


रेशम विभाग के सहायक संचालक श्री राम सूरत बेक बताते हैं कि शासकीय कोसा बीज केन्द्र, नैमेड़ में वर्षः 2008-09 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) अंतर्गत 3 लाख 44 हजार की लागत से 28 हेक्टेयर में लगभग 16 हजार 800 साजा और इतनी ही संख्या में अर्जुन के पौधे रोपे गए थे। आज ये पौधे लगभग 10 फीट के हरे-भरे पेड़ बन चुके हैं। 

श्री बेक आगे बताते हैं कि विभाग के द्वारा यहाँ रेशम के कीड़ों का पालन कर कोसाफल उत्पादन का कार्य करवाया जा रहा है। साल 2015 में आयतू ने विभागीय कर्मचारी की सलाह पर यहाँ श्रमिक के रुप में काम करना शुरु किया था और अपनी सीखने की ललक के दम पर धीरे-धीरे कोसाफल उत्पादन का प्रशिक्षण लेना भी शुरु कर दिया था। सालभर में वह इसमें पूरी तरह से दक्ष हो चुका था। वर्ष 2016 में उसने गाँव के चार मनरेगा श्रमिकों को अपने साथ समूह के रुप में जोड़ा और यहाँ पेड़ों का रख-रखाव के साथ कीटपालन और कोसाफल उत्पादन का कार्य शुरु कर दिया। इनके समूह के द्वारा उत्पादित कोसाफल को विभाग के कोकून बैंक के माध्यम से खरीदा जाता है। इससे इन्हें सालभर में अच्छी-खासी कमाई हो जाती है। 

कुशल कीटपालक बनने के बाद कोसाफल उत्पादन से मिली नई आजीविका से जीवन में आये बदलाव के बारे में श्री आयतू कहते हैं कि “आगे बढ़ने के लिए मेरे मन में खेती-किसानी या मजदूरी के अलावा कुछ और भी करने का मन था। रेशम कीटपालन के रुप में मुझे रोजी-रोटी का नया साधन मिला । महात्मा गांधी नरेगा से यहाँ हुए वृक्षारोपण से फैली हरियाली ने मेरी जिंदगी में भी हरियाली ला दी है। कोसाफल उत्पादन से जुड़ने के बाद, अब मैं अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छे से कर पा रहा हूँ और अपने 3 बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पा रहा हूँ।”
-0-


एक नजरः-
कार्य का नाम- पौध रोपण कार्य (साजा/अर्जुन), क्षेत्रफल- 28 हेक्टेयर, पौधों की संख्या- 33600, प्रजाति- साजा और अर्जुन,
ग्रा.पं.- नैमेड़, विकासखण्ड- बीजापुर, जिला-बीजापुर, स्थल- शासकीय कोसा बीज केन्द्र, नैमेड (भाग-2),
स्वीकृत राशि- 3.81 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2008-09, सृजित मानव दिवस- 2702, मजदूरी भुगतान- 2.027 लाख.

------------------------------------------------------

रिपोर्टिंग- श्री मनीष सोनवानी, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत- बीजापुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- 1. श्री शरद कुमार मारकोले, फील्ड ऑफिसर, जिला रेशम विभाग, बीजापुर, छत्तीसगढ़।
2. श्री शशि तेलम, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-नैमेड़, वि.ख.- बीजापुर, जिला-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री प्रशांत कुमार यादव, सहायक प्रचार-प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- बीजापुर, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
------------------------------------------------------

Pdf अथवा Word Copy डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें-

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...