Thursday, 28 January 2021

महात्मा गांधी नरेगा से संवरें तालाब और जिन्दगी

पंचायत और आदिवासी किसान को मिला नया आर्थिक स्त्रोत


रायपुर, 28 जनवरी, 2021. प्राचीन काल से अब तक जहां-जहां भी आबादी बसती गई, वहां परंपरागत ढंग से जलस्रोत के साधनों के रूप में तालाबों का निर्माण किया जाता रहा है। पुराने जमाने में भी यह पेयजल, सिंचाई और निस्तारी का प्रमुख साधन हुआ करते थे। आधुनिक दौर में जलस्रोतों के उन्नत रूप में बोरिंग और नलकूप जैसी सुविधाओं के चलते वर्तमान समय में, ये पारंपरिक महत्वपूर्ण जल स्त्रोत गंदगी का केन्द्र बन गए हैं। इससे इतर आज भी गाँवों में तालाबों की सुरक्षा के प्रति ग्रामीण और पंचायतें सजग हैं। इसी सजगता का ‘परिणाम’ योजनाओं के सहयोग से सफलता की कहानी में भी तब्दील हो जाता है। ऐसा ही एक कार्य कोरिया जिले के सुदूर विकासखण्ड भरतपुर की ग्राम पंचायत कंजिया में देखने को मिलता है। यहां पुरातन समय का एक बड़ा तालाब है, जिसका स्रोत धीरे-धीरे बंद होता जा रहा था। तब इसे देखते हुए ग्रामीणों की मांग पर पंचायत ने महात्मा गांधी नरेगा से इसका गहरीकरण कराया। इससे एक ओर जहाँ ग्रामीणों को रोजगार मिला, वहीं दूसरी ओर गहरीकरण के बाद से इस तालाब में मछली पालन भी प्रारंभ हो गया। इसके अलावा ग्राम पंचायत को इससे एक निश्चित आय भी हो रही है और गाँव के ही एक आदिवासी परिवार को रोजगार का स्थायी साधन मिल गया है, जिससे उन्हें प्रति वर्ष लगभग दो लाख रूपए तक की आय होने लगी है।

कोरिया जिला मुख्यालय बैकुण्ठपुर से 168 किलोमीटर दूर कंजिया गाँव है, जो कि अनुसूचित जनजाति बाहुल्य है। यहां काफी पुराना एक तालाब है, जिसे ‘बड़ा तालाब’ के नाम से जाना जाता है। गांव के ही मोहल्लों बीचपारा और डोंगरीपारा के बीच मुख्यमार्ग के किनारे यह तालाब स्थानीय तौर पर निस्तारी का प्रमुख साधन है। इसके अलावा यह तालाब उनके पशुओं के पेयजल का भी मुख्य स्रोत है। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि इस तालाब में लंबे समय से गहरीकरण नहीं किए जाने के कारण यहाँ पानी कम होने लगा था, जिससे गर्मियों में यह सूखने की कगार पर पहुँच जाता था। लगभग चार बरस पहले जिले में लगातार दो साल औसत से काफी कम बारिश हुई थी, इस कारण यह तालाब पूरी तरह से सूख गया था।

पंचायत को मिला नया आर्थिक स्रोत

ग्राम पंचायत की सरपंच श्रीमती विपुनलता सिंह बताती हैं कि साल 2015 में जब गर्मियों में पानी की किल्लत हुई थी, तब पंचायत ने तालाब के गहरीकरण का कार्य प्रस्तावित किया था। तब महात्मा गांधी नरेगा से चार लाख 40 हजार की लागत से इसके गहरीकरण का कार्य स्वीकृत किया गया। इस कार्य से गांव में मनरेगा श्रमिकों को फरवरी से जून 2016 तक रोजगार मिला और गांव के पुराने जलस्रोत का पुनरूद्धार भी हो गया। तालाब के गहरीकरण के बाद वर्षा ऋतु में यह पानी से लबालब भर गया। इसके बाद पंचायत ने अपने आय के स्रोत बढ़ाने के लिए इसे ठेके पर देने का निर्णय लिया। इस तालाब के किनारे रहने वाले गांव के ही आदिवासी किसान श्री अमीर सिंह ने इसके लिए सर्वाधिक बोली लगाई और तालाब को 23 हजार रूपए की राशि में 10 सालों की लीज में पंचायत से प्राप्त किया।

आदिवासी परिवार को मिला सहारा

श्री अमीर सिंह के पास लगभग साढ़े चार एकड़ असिंचित कृषि भूमि है। तालाब के किनारे ही उनका घर और लगभग एक एकड़ की बाड़ी है। इस तालाब को लीज में लेकर उन्होंने अपनी बाड़ी में धान के बाद रबी की फसल में गेहूँ और उड़द का उत्पादन लिया है। वहीं बीते दो साल से उन्हें तालाब में मछली पालन के व्यवसाय से लगभग दो लाख रूपए की वार्षिक आमदनी भी होने लगी है। इस संबंध में श्री अमीर सिंह बताते हैं कि अब उन्हें रोजगार को लेकर कोई चिंता नहीं है। पहले साल तो मछली पालन से उन्हें कोई बड़ा लाभ नहीं हुआ, परंतु अब दो वर्षों से अच्छी कमाई हो रही है। मछली बेचने के लिए बाजार की उपलब्धता पर वह हंसकर कहते हैं कि “साहब! कहूं नई जाय ला परय, तलवा के भीठा में सब बिक जथे।”

सदभाव की मिसाल

गांव में रहने वाले वनवासी दिल से किस कदर जिंदादिल होते हैं, यह श्री अमीर सिंह से मिलकर जाना जा सकता है। वे गांव के बाहर के लोगों के लिए मछली की दर 2 सौ रूपए प्रति किलो रखते हैं, परंतु गांव वालों को वह मात्र 150 रूपए प्रति किलो की दर से ही अपनी मछलियां बेचते हैं। इसका कारण वे बताते हैं कि गांव के लोग एक परिवार के होते हैं, उनसे सौदा नहीं किया जाता है। हमेशा भाई-चारा बनाये रखना होता है। गांव में ऐसे किसान जिनके खेत इस तालाब के आस-पास हैं, उन्हें खरीफ के मौसम में जब कभी धान का रोपा लगाने के लिए पानी की जरुरत होती है, उन्हें वे सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराते हैं। वहीं ये किसान भी मछली पालन और आखेट में श्री अमीर सिंह की मदद करते हैं।

आवास निर्माण में मिली मदद

श्री अमीर सिंह के परिवार के पास आज कृषि के बाद मत्स्य पालन मुख्य व्यवसाय हो चुका है। सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना के तहत सूचीबद्ध होने से उन्हें साल 2018-19 में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का लाभ मिला था। अपने लिए पक्के आवास का सपना पूरा होने की खुशी उनके चेहरे पर भी झलकती है। आवास निर्माण के लिए महात्मा गांधी नरेगा से जहाँ उनके परिवार को पूरे 90 दिन की मजदूरी का लाभ मिला, वहीं उन्होंने महात्मा गांधी नरेगा से गहरीकरण हुए इस तालाब में मछली पालन से कमाए पैसे को भी घर के निर्माण में लगाया। वे दोनों पति-पत्नी खुश होकर महात्मा गांधी नरेगा योजना से मिले लाभ के बारे में हंसकर कहते हैं “अब बुढ़ापे की कोई चिंता नहीं है। पैसे आने से सब कुछ अच्छा हो गया है।”

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एक नजरः-
कार्य का नाम- बड़ा तालाब गहरीकरण, ग्रा.पं.- कंजिया, विकासखण्ड- भरतपुर, जिला- कोरिया, पिनकोड- 497778
स्वीकृत वर्ष- 2015-16,  कार्य प्रारंभ तिथि- 09/02/2016, कार्य प्रारंभ तिथि- 30/06/2016, कार्य स्थिति- पूर्ण
स्वीकृत राशि- रुपए 4.40 लाख, सृजित मानव दिवस- 2680, जी.पी.एस. लोकेशन- 23°41'15.9"N 81°41'18.8"E
कार्य का कोड- 3306005027/WC/81055423

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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.-9424259026

तथ्य एवं स्त्रोत-
1. श्री आरिफ रजा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, जिला-कोरिया, छत्तीसगढ़
2. श्री पुरुषोत्तम सिंह मारको, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-कंजिया, वि.ख.-भरतपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7722853989
पुनर्लेखन व संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Saturday, 23 January 2021

धान संग्रहण चबूतरों ने परिसम्पत्ति के रुप में साबित की अपनी सार्थकता

संग्रहण केन्द्र में बने पक्के चबूतरे धान को बचा रहे हैं “नमी, बारिश और चूहों से”.
महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से बनाए गए हैं पक्के चबूतरे.


रायपुर, 21 जनवरी 2021. इस साल कोरिया जिले के दूरस्थ विकासखण्ड भरतपुर के गाँव कंजिया में सरकार द्वारा समर्थन मूल्य में उपार्जित धान की सुरक्षा को लेकर ग्राम पंचायत के पदाधिकारियों और सहकारी समिति के प्रबंधकों के माथे पर चिंता की लकीरें नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर यहाँ अपना धान बेच चुके किसान भी अब पूरी तरह से निश्चिंत हैं कि स्थानीय सहकारी समिति द्वारा खरीदा गया उनका धान बे-मौसम होने वाली बारिश, नमी और चूहों व कीड़ों के प्रकोप से उनके द्वारा उपार्जित धान सुरक्षित है। 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) के अभिसरण तथा ग्राम पंचायत और सहकारी समिति के संयुक्त प्रयास से यह संभव हो सका है। महात्मा गांधी नरेगा से स्वीकृत सात लाख 38 हजार रूपए और 14वें वित्त आयोग के 50 हजार रूपए के अभिसरण से कंजिया धान संग्रहण केंद्र में चार पक्के चबूतरों का निर्माण किया गया है। स्थानीय पंचायत एवं सहकारी समिति को इससे जहां धान को सुरक्षित रखने में सहजता हो रही है, वहीं किसान भी अब खुश हैं। वनांचल भरतपुर की ग्राम पंचायत कंजिया की सरपंच श्रीमती विपुलता सिंह कहती हैं कि संग्रहण केन्द्र में चबूतरों के निर्माण से धान को सुरक्षित रखने में बड़ी मदद मिल रही है। इनके निर्माण के कुछ ही महीनों में उपार्जित धान के सुरक्षित रखरखाव से पक्के चबूतरों की उपयोगिता और सार्थकता दिख रही है। कंजिया में 18 जनवरी 2021 तक किसानों से उपार्जित 15 हजार 106 क्विंटल धान आ चुका है, जिसे इन चबूतरों के ऊपर सुरक्षित रखा गया है। 


ग्राम पंचायत स्थित सहकारी समिति, जो कि आदिम जाति सेवा सहकारी समिति मर्यादित गढ़वार (कंजिया) के नाम से पंजीकृत है, वहाँ के सहायक प्रबंधक श्री विक्रम सिंह के अनुसार इस सहकारी समिति से आस-पास के 30 गाँव जुड़े हुए थे। इस साल एक और उपकेन्द्र कुंवारपुर में खुल जाने से कंजिया में लगभग 21 हजार क्विंटल धान की खरीदी का अनुमान है। उन्होंने बताया कि पूर्व के वर्षों में यहाँ सुरक्षित भंडारण की सुविधा नहीं होने से उठाव होने तक हर साल लगभग 150 से 200 क्विंटल धान खराब हो जाता था। इसका सीधा नुकसान सहकारी साख समिति प्रबंधन और समिति से जुड़े किसानों को होता था। परंतु अब अब पक्के चबूतरों के बन जाने से यह समस्या लगभग समाप्त हो गई है। 

श्री सिंह ने आगे बताया कि अभी नए साल की शुरुआत में ही बे-मौसम बारिश हुई थी, परंतु इस बार धान को सुरक्षित रखने में कोई परेशानी नहीं हुई। धान संग्रहण चबूतरों के बन जाने से अब किसानों के द्वारा दिन-रात की मेहनत से उपजाई गई पूँजी 'धान' को ज्यादा अच्छे से रखा जा रहा है। 

यहाँ चबूतरे के निर्माण से सहकारी समिति कंजिया से जुड़े गाँव के किसान श्री संतोष कुमार और श्री रामलाल सहित कुल 49 मनरेगा श्रमिकों को 393 मानव दिवस का सीधा रोजगार भी प्राप्त हुआ। ग्राम रोजगार सहायक श्री पुरुषोत्तम सिंह बताते हैं कि संग्रहण केन्द्र में चार नग चबूतरों के निर्माण से जहाँ पंचायत एवं समिति को अपने कार्य-उत्तरदायित्वों के निर्वहन में सहजता हो रही है। 

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एक नजरः-

कार्य का नाम- धान संग्रहण केन्द्र चबूतरा निर्माण कार्य, निर्मित चबूतरों की संख्या- 4

ग्रा.पं.- कंजिया, विकासखण्ड- भरतपुर, जिला- कोरिया, पिनकोड- 497778

स्वीकृत वर्ष- 2020-21,  कार्य प्रारंभ तिथि- 15/06/2020, कार्य स्थिति- पूर्ण

स्वीकृत राशि- रुपए 7.88 लाख(महात्मा गांधी नरेगा- 7.38 लाख एवं 14वाँ वित्त आयोग- 50 हजार),

रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 49, सृजित मानव दिवस- 393, मजदूरी पर व्यय- 74,670.00

धान संग्रहण केन्द्र में पंजीकृत किसानों की संख्या- 385, कार्य का जी.पी.एस. लोकेशन- 23°41'15.9"N 81°41'18.8"E

कार्य का कोड- 3306005027/AV/1111377944 एवं 3306005027/AV/1111387491

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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.-9424259026

तथ्य एवं स्त्रोत-

1. श्री आरिफ रजा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, जिला-कोरिया, छत्तीसगढ़

2. श्री पुरुषोत्तम सिंह, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-कंजिया, वि.ख.-भरतपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7722853989

पुनर्लेखन व संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

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Friday, 15 January 2021

वृक्षारोपण के साथ लेमनग्रास उत्पादन ने दिखाई किसानों को आर्थिक सशक्तिकरण की राह

महात्मा गांधी नरेगा से 10 एकड़ में फलदार पौधरोपण एवं अंतरवर्ती खेती से कमाए लाखों रुपए

रायपुर, 15 जनवरी, 2021. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों की देख-रेख में हुए वृक्षारोपण के साथ लेमनग्रास की अंतरवर्ती खेती ने कोरिया जिले के आदिवासी किसानों को आर्थिक सशक्तिकरण की एक नई राह दिखलाई है। यहाँ की रटगा पंचायत के पाँच किसानों ने अपनी भूमि का एक-एक हिस्सा मिलाकर पहले तो एक समूह बनाया और फिर मिलकर उस पर फलदार पौधों का रोपण किया। इसके बाद रोपित पौधों के बीच लेमनग्रास व शकरकंद की अंतरवर्ती खेती शुरु की। प्रारंभिक अवधि में ही किसानों का यह प्रयास रंग लाया और इन्हें दो लाख रुपये से अधिक की आमदनी हुई। 

किसानों के इस आर्थिक सशक्तिकरण की कहानी की शुरुआत हुई थी, कोरिया जिले के बैकुण्ठपुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-रटगा के आश्रित ग्राम दुधनिया से। यहाँ रहने वाले श्री बसंत सिंह ने अपनी 4 एकड़, श्री अहिबरन सिंह ने 2 एकड़, श्रीमती इरियारो बाई ने 1 एकड़, श्री शिव प्रसाद ने 2 एकड़ और श्री रामनारायण ने अपनी 1 एकड़ भूमि को मिलाकर पहले एक चक तैयार किया और उसके बाद इनके प्रस्ताव पर यहाँ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से वर्ष 2018-19 में पड़त भूमि विकास कार्यक्रम अंतर्गत सामूहिक फलदार पौधरोपण का कार्य स्वीकृत किया गया। इसके अंतर्गत यहाँ आम, अनार, कटहल, अमरुद और नींबू के 976 पौधों का रोपण किया गया। रोपित पौधों के रख-रखाव में इन पाँचों किसानों के परिवार को सालभर रोजगार तो मिला, किन्तु उसके बाद पौधों में फल आने के इंतजार की लंबी अवधि में इनकी आर्थिक गतिविधियों में एक ठहराव-सा आ गया था। इसी बीच इन्हें जिले के कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से फलोद्यान के बीच अंतरवर्ती खेती कर लाभ अर्जित करने का सुझाव मिला। 

बस, फिर क्या था। जहाँ चाह-वहाँ राह। रटगा गाँव के इन पाँचों किसानों के अनुरोध पर कृषि विज्ञान केन्द्र की टीम ने सामूहिक फलदार पौधरोपण के बीच लेमनग्रास और शकरकंद की अंतरवर्ती खेती का एक प्रस्ताव तैयार किया। किसानों के आत्मबल और महात्मा गांधी नरेगा के सहयोग से साल 2020 के मई माह में इस प्रस्ताव का क्रियान्वयन शुरु हुआ। कोरोना माहमारी के बीच शुरु हुए इस कार्य ने इन किसानों के साथ-साथ गाँव के अन्य ग्रामीणों को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए। लॉकडाउन अवधि में यहाँ 53 मनरेगा श्रमिकों को 3076 मानव दिवस का रोजगार उपलब्ध कराते हुए 5 लाख 62 हजार 400 रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया।
इन पाँचों किसानों के आर्थिक सशक्तिकरण की इस महती परियोजना में तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करने वाले कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री आर.एस.राजपूत ने बताया कि किसानों की भूमि की गुणवत्ता के अनुसार यहाँ फलदार पौधों का रोपण करवाया गया था और उनके बीच अंतरवर्ती फसल के रूप में लेमनग्रास (कावेरी प्रजाति), शकरकंद (इंदिरा नारंगी, इंदिरा मधुर, इंदिरा नंदनी, श्री भद्रा, श्री रतना प्रजाति) की खेती कराई गई है।
उन्होंने आगे बताया कि लेमनग्रास की प्रथम कटाई अगस्त, 2020 में की गई थी। एक बार लेमनग्रास लगाने के उपरांत इसकी खेती 4 से 5 साल तक की जा सकती है तथा प्रत्येक वर्ष 60 से 70 दिनों के अंतराल पर 4 से 5 बार कटाई की जा सकती है। जिले में किसानों का उत्पादक समूह बनाकर, उनके माध्यम से तेल निकालने की यूनिट भी लगाई गई है। इस यूनिट से कच्चे माल को इसेन्सियल ऑयल के रुप में प्राप्त किया जा रहा है। परियोजना में इन्हें अब तक लेमनग्रास की 60 टन पत्तियों की बिक्री से 60 हजार रुपए, वहीं इसके 1 लाख 8 हजार नग स्लिप्स को बेचने से 81 हजार रुपये की आय हो चुकी है। इसके अतिरिक्त शकरकंद की 52,500 नग (शकरकंद वाईन कटिंग) को बेचने से उन्हें 91 हजार 875 रुपए का लाभ हुआ है। आने वाले दिनों में इस समूह को शकरकंद की फसल एवं रोपित फलदार पौधों से लेयरिंग, कटिंग, ग्राफ्टिंग व बीज द्वारा उच्च गुणवत्ता की तैयार नई पौध के विक्रय से भी अतिरिक्त आमदनी होगी। आज की स्थिति में यह परियोजना इनकी नियमित आय का महत्वपूर्ण साधन बन चुकी है।

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एक नजरः- 
कार्य का नाम- सामूहिक फलदार पौधरोपण एवं लेमनग्रास/शकरकंद की अंतरवर्ती खेती, परियोजना क्षेत्र- 10 एकड़,
ग्रा.पं.- रटगा, विकासखण्ड- बैकुण्ठपुर, जिला- कोरिया, पिनकोड- 497335
रोपित पौधों की प्रजातिवार संख्या- आम (335), अनार (173), कटहल (240), अमरुद (218) एवं नींबू (10)
रोपित लेमन ग्रास की प्रजाति- सिम शिखर व कावेरी
रोपित शकरकंद की प्रजाति- इंदिरा मधुर, इंदिरा नंदनी, इंदिरा नारंगी, श्री भद्रा व श्री रतना
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 23°17'35.5" एवं Longitude: E 82°27'21.7"
परियोजना वर्गीकरणः

क्र. कार्य का नाम स्वीकृत
वर्ष
स्वीकृत
राशि
सृजित मानव दिवस मजदूरी भुगतान राशि (रुपए में)
1. सामूहिक फलदार पौधरोपण कार्य 2018-19 17.05 लाख 4,077 7,74,710.00
2. सामूहिक फलदार पौधरोपण के बीच अंतरवर्ती लेमनग्रास/शकरकंद की खेती 2020-21 11.28 लाख 3,076 5,84,440.00
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रिपोर्टिंग व लेखन
श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.-9424259026 

तथ्य एवं स्त्रोत
1. श्री आरिफ रजा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, जिला-कोरिया, छत्तीसगढ़ 
2. श्री आर.एस. राजपूत, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं केन्द्र प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र बैकुण्ठपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7089554290 
3. श्री कृष्णा कुर्रे, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-रटगा, वि.ख.-बैकुण्ठपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-9753496506 

पुनर्लेखन व संपादन 
श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

प्रूफ रिडिंग
 श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

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Tuesday, 12 January 2021

बासमती की खुशबू से महका नरहर का घर-आँगन

0 तीन साल बाद बीजापुर के कोडोली गांव में हो रही है रबी फसल की तैयारियाँ.

0 नहर लाईनिंग से 324 किसान हुए लाभान्वित और 293 हेक्टेयर रकबे की सिंचाई हुई पुनर्स्थापित.

0 खेती-किसानी के लिए महात्मा गांधी नरेगा और डी.एम.एफ. का अभिसरण.

रायपुर, दिनांक-12 जनवरी, 2021. बीजापुर के किसान श्री नरहर नेताम का घर-आंगन आज बासमती चावल की खुशबू से महक उठा है। इनकी इस कड़ी मेहनत, इच्छाशक्ति और लगन को आधार मिला है, महात्मा गांधी नरेगा योजना के साथ सरकार की अन्य योजनाओं के समुचित तालमेल से। जी हां! यह बिल्कुल सत्य है। जिला बीजापुर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के साथ जिला खनिज न्यास निधि के तालमेल से वित्तीय वर्ष 2019-20 में जलाशयों की सिंचाई परियोजना पुनर्स्थापित करने का एक महती कार्य शुरु किया गया था। इसके सकारात्मक परिणाम अब जमीनी स्तर पर नजर आने लगे हैं। जहाँ एक ओर यह कार्य किसानों के लिए आर्थिक उन्नति का कारक बन रहा है, वहीं दूसरी ओर यह परियोजना जिले की सिंचाई रकबे में वृद्धि में मील का पत्थर साबित हो रही है।

यहाँ हम बात कर रहे हैं जिले के भैरमगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत कोडोली में हुए नहर लाइनिंग कार्य की। वहाँ के कोडोली जलाशय से नहर लाइनिंग कार्य (तालाब क्रमांक -1 व 2 से) में कुल 1,800 मीटर लम्बाई की सी.सी. लाइनिंग कर सिंचाई व्यवस्था पुनर्स्थापित की गई है। महज एक साल के भीतर ही इन कार्यों के सुखद परिणाम देखने को मिल रहे हैं। यह परियोजना क्षेत्र में श्री नरहर जैसे किसानों के जीवन में खुशहाली की छटा बिखेर रही है।

श्री नरहर नेताम की 7 एकड़ कृषि भूमि इस नहर से लगी हुई है। उन्होंने हमें बताया कि यह कार्य उन जैसे किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है। पहले यह कच्ची नहर थी। जब भी किसी किसान को पानी की जरूरत होती थी, तो वह नहर के किनारों को काटकर अपने खेतों की सिंचाई कर लेता था। इसके कारण जलाशय के समीप के ही कुछ खेतों को पानी मिल पाता था । वहीं नहर कच्ची होने के कारण, उसमें गाद भरने के साथ-साथ झाड़ियां भी उग आई थीं। इन सब कारणों से आखिरी गांव तक नहर का पानी नहीं पहुँच पा रहा था। इन सभी समस्याओं के कारण वे और उन जैसे अन्य किसान भाई बहुत परेशान रहते थे।

श्री नेताम आगे बताते हैं कि रबी की फसल तो दूर खरीफ़ फसल में भी नहर से सिंचाई को लेकर किसानों के बीच झगड़े की स्थिति भी निर्मित हो जाती थी; लेकिन यह समस्या अब बीते दिनों की बात हो गई है। नहर लाइनिंग के बाद हो रही सिंचाई सुविधा के मद्देनजर उन्होंने खरीफ़ फसल के रूप में 4 एकड़ में बासमती और 3 एकड़ में महेश्वरी किस्म की धान की बुआई की थी, जो अब पककर घर आ चुकी है। इस बार पिछले वर्षों की तुलना में धान की फसल अच्छी हुई है। ऐसा अनुमान है कि बासमती का 50-55 क्विंटल और माहेश्वरी का 20-25 क्विंटल धान का उत्पादन हुआ है। 

खरीफ़ फसल के बाद श्री नरहर अब दोहरी फसल की तैयारी में लग गए हैं। तीन साल बाद उन्होंने अपने एक एकड़ खेत में भुट्टा, आधा एकड़ में चना-सरसों और आधा एकड़ में खरबूजे की बुआई की है। इनकी मेहनत और महात्मा गांधी नरेगा योजना के साथ जिला खनिज न्यास निधि के अभिसरण से विकसित हुई सिंचाई सुविधा के फलस्वरूप आने वाले कुछ महीनों में भैरमगढ़, कोडोली, मिरतुर और नेलसनार के बाजारों में इनके उत्पाद नज़र आएंगे।

योजना से प्रत्यक्ष लाभ

श्री नरहर नेताम के परिवार को महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत वर्षः 2019-20 में 80 दिनों के रोजगार के लिए 14,080.00 रुपये एवं चालू वित्तीय वर्षः 2020-21 में 105 दिनों के रोजगार के लिए 19,950.00 रुपये की मजदूरी का भुगतान किया गया है।


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एक नजरः-
कार्य का नाम- सी.सी. नहर लाईनिंग कार्य (तालाब क्रमांक-1 व 2 से), क्रियान्वयन एजेंसी- जल संसाधन
ग्रा.पं.- कोडोली, विकासखण्ड- भैरमगढ़, जिला- बीजापुर, पिनकोड- 494444
क्रं. कार्य लंबाई स्वीकृत राशि सृजित मानव दिवस लाभान्वित किसान पुनर्स्थापित सिंचित रकबा
MGNREGA DMF Total
1.
सी.सी. नहर लाईनिंग 
(तालाब क्रं. 1 से)
800 मीटर 67.28 लाख 12 लाख 79.28 लाख 9,277 154 95 हेक्टेयर
2.
सी.सी. नहर लाईनिंग 
(तालाब क्रं. 2 से)
1000 मीटर 84.10 लाख 15 लाख 99.10 लाख 10,971 170 198 हेक्टेयर
कुल 1800 मीटर 151.38 लाख 27 लाख 178.38 लाख 20,248 324 293 हेक्टेयर

जी.पी.एस. लोकेशन-
1. Latitude: N 18◦59'9.75″ एवं Longitude: E 81◦10'26.50″ (सी.सी.नहर लाईनिंग, तालाब क्रं.1 से)
2. Latitude: N 18◦58'35.50″ एवं Longitude: E 81◦11'17.93″ (सी.सी.नहर लाईनिंग, तालाब क्रं.2 से)
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रिपोर्टिंग व लेखन
श्री प्रशांत कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छ.ग., मो.-6260162274

तथ्य एवं स्त्रोत
1. श्री मनीष सोनवानी, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छ.ग., मो.-9399925329
2. श्री खेमचंद साहू, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-भैरमगढ़, जिला-बीजापुर, छ.ग., मो.- 9399355394

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1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़। 
2. श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, नवा रायपुर अटल नगर, छत्तीसगढ़।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...