Showing posts with label CG_Stories_MGNREGA_Janjgir champa_JP-Pamghar_GP-Dhardhai_मनरेगा से बहुरे गजपुरबा तालाब के दिन. Show all posts
Showing posts with label CG_Stories_MGNREGA_Janjgir champa_JP-Pamghar_GP-Dhardhai_मनरेगा से बहुरे गजपुरबा तालाब के दिन. Show all posts

Friday, 16 March 2018

मनरेगा से बहुरे गजपुरबा तालाब के दिन


मनरेगा से बहुरे गजपुरबा तालाब के दिन


जलस्रोतों में नदियों के बाद तालाबों का सर्वाधिक महत्व है। तालाबों से सभी जीवजंतु अपनी प्यास बुझाते हैं। किसान तालाबों से खेतों की सिंचाई करते रहे हैं। हमारे देश में आज भी सिंचाई के आधुनिकतम संसाधनों की भारी कमी है, जिस कारण किसान वर्षा तथा तालाब के पानी पर निर्भर हैं। लेकिन तालाबों की निरंतर कमी होती जा रही है। यह कमी, हमें तालाबों के महत्व के गुमनाम होने की ओर इशारा कर रही है। इसी गुमनामी का शिकार हो गया था, जांजगीर चाम्पा जिले के विकासखण्ड- पामगढ़ की ग्राम पंचायत-धरधेई का गजपुरबा तालाब। सामाजिक महत्व लिये इस तालाब के हालात तो इतने खराब हो गये थे कि यह सामान्य निस्तारी के लायक भी नहीं बचा था। कचड़े और गाद की अधिकता के कारण पानी गंदा हो गया था, जिसके कारण कोई तालाब के नजदीक भी खड़ा होना पसंद नहीं करता था। लेकिन जैसा की हम जानते हैं कि हर दिन एक जैसा नहीं होता है, उसी प्रकार इस तालाब के भी दिन बहुर गये हैं। यह अब फिर से पहले की तरह लोगों की दैनिक जीवन की गतिविधियों से जुड़ गया है। तालाब के किनारे से गुजरने से यहाँ लगे फूलों की महक आनंदित कर देती है। पानी में तस्वीरें भी अब साफ दिखाई देती हैं। यह सब संभव हो सका है इस गांव के सरपंच श्री भुवनेश्वर साहू की सोच, ग्रामीणों की मेहनत और महात्मा गांधी नरेगा से मिली राशि से।
यूं तो धरधेई गांव में बहुत से तालाब हैं, लेकिन गजपुरबा तालाब का महत्व इस गांव के लिए कुछ अलग ही है। यह तालाब न केवल दो गांवों की आबो-हवा को आपस में जोड़ता है, बल्कि अपने पारम्परिक महत्व के कारण एक दूजे को एकजुट किए हुए है। यह तालाब गांव के लिए किसी संस्कृति से कम नहीं है। फिर भी समय अंतराल में रखरखाव के अभाव और उपेक्षा के कारण गुमनामी के कगार पर पहुँच चुका था। तालाब की यह स्थिति सरपंच श्री भुवनेश्वर साहू को विचलित किए हुये थी। इसी बीच उन्हें महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से पारंपरिक जल स्त्रोतों के पुनरुज्जीवन कार्य के प्रावधान का उपयोग करने का उपाय सूझा। यह उपाय ग्रामीणों की सहमति और भागीदारी से कारगर भी साबित हुआ। महात्मा गांधी नरेगा के तहत 6 लाख 11 हजार रुपयों की लागत से स्वीकृत हुआ गजपुरबा तालाब गहरीकरण का कार्य 14 मई, 2017 को शुरु हुआ। जैसे-जैसे तालाब गहरीकरण का काम बढ़ते जा रहा था, वैसे-वैसे ग्रामीणों की भागीदारी भी इसमें बढ़ती जा रही थी। चूँकि ग्रामीण महिलाओं की तालाब के प्रति आस्था अधिक होती है। इसलिए तालाब गहरीकरण में महिलाओं की भागीदारी भी अधिक रही। अंततः एक सौ 57 महिलाओं और एक सौ 8 पुरुषों के अथक परिश्रम से तालाब के गहरीकरण का यह पुनित कार्य 12 जून, 2017 को पूरा हुआ।
तालाब गहरीकरण के बाद, आज यह गजपुरबा तालाब अपने पुराने गौरव को लिए फिर से अस्तित्व में आ गया है। यह धरधेई गांव के साथ-साथ लोहर्सी गांव के ग्रामीणों की भी निस्तारी में मदद कर रहा है। यहां के निवासी श्री खम्हनलाल, श्रीमती मालतीबाई, श्री फागूलाल, सुश्री रामवती, श्रीमती रमशीला, श्रीमती ललिताबाई, श्री कमलकुमार और श्री गिरधारीलाल बताते हैं कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से तालाब के गहरीकरण के बाद ऐसा लगता है, मानों यह जी गया है। हमारे पुराणों में कहा भी गया है कि 10 कुओं के बराबर एक डबरी होती है और 10 डबरियों के बराबर एक तालाब होता है। अब हम इस तालाब को बचा कर रखेंगें। यह योजना बहुत अच्छी है। इससे न केवल हमारा तालाब बचा है, बल्कि हमें गहरीकरण का कार्य करने से मजदूरी भी मिली है।
सरपंच श्री भुवनेश्वर कहते हैं कि इस कार्य में 4 लाख 92 हजार 710 रुपयों का भुगतान मजदूरी में हुआ है। तालाब में एक निर्मला घाट भी बनाया गया है। इससे गांव की माताओं और बहनों को निस्तारी में सहुलियत हो रही है। 

फूलों से गुलजार हुआ तालाब का पथ
तालाब के किनारे चारों तरफ विभिन्न प्रकार के फूल लगाए गए हैं। इस तालाब के किनारे बनी पचरी के पीछे गुलाब, गेंदा, और सूरजमुखी के पौंधो सहित तुलसी पौधा भी लगाया गया है। इससे यहाँ की आबो-हवा सुंगधित बनी रहती है। शहरों के भांति ग्रामीण युवा और बुजुर्ग भी सुबह-शाम तालाब किनारे ठहलने जाते हैं। ग्रामीण श्री रामलाल पटेल का कहना है कि हम में से जो भी यहाँ ठहलने आता है, वो तालाब से पानी निकालकर इन पौधों में डाल देता है, जिससे ये मुरझाते नहीं हैं।

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...