डबरी बनी रामावतार
की खुशियों के लिए 'अवतार'
जिला-रायपुर के
तिल्दा विकासखण्ड की ग्राम पंचायत- बरौंडा में खुशियों भरा जीवन जीने वाले
रामावतार देवांगन की जिन्दगी पहले ऐसी नहीं थी। उनके पास कृषि भूमि तो पर्याप्त थी, लेकिन
उसमें सिंचाई के साधन नहीं होने के कारण पैदावार कम होती थी। ऐसे में दिन-रात
मेहनत करने के बावजूद, परिवार की समस्त आर्थिक जरुरतें पूरी नहीं हो पा रही थी।
खेती-बाड़ी के लिए बारिश पर निर्भरता उनकी मजबूरी बन गई थी। बारिश से जो धान की
फसल होती थी, उसी से परिवार का भरण-पोषण होता था। ऐसे में परिवार के लिए कुछ बेहतर
सोच पाना दूर की ही कौड़ी थी। इन सबके के बावजूद श्री रामावतार के मन में मौजूदा परिस्थितियों
को बदलने की इच्छाशक्ति थी। इसी इच्छाशक्ति ने उन्हें ग्राम पंचायत कार्यालय
पहुँचा दिया। वहाँ मौजूद ग्राम रोजगार सहायक श्री जगदेव से हुई चर्चा में उन्हें
पता चला की महात्मा गांधी नरेगा से किसानों के खेतों में डबरियों का निर्माण किया
जा रहा है। डबरी बन जाने से जहाँ पानी का साधन मिलेगा, वहीं मछलीपालन के अवसर भी
होंगे। ग्राम रोजगार सहायक की यह बात श्री देवांगन को जंच गई। उन्होंने इस संबंध
में अपने परिवार में चर्चा की, जहाँ पहले तो डबरी निर्माण में खेत का एक हिस्सा
जाने की बात पर परिवार के सदस्यों ने शुरुआत में थोड़ा आना-कानी की, किन्तु बारिश
के बाद सिंचाई के लिए डबरी में जमा हुये पानी से अच्छी फसल मिलने की उम्मीद ने
परिवार की सहमति भी दिला दी। इसके बाद श्री रामावतार ने बिना देर किये ग्राम
पंचायत को डबरी निर्माण के लिए आवेदन दे दिया।
श्री रामावतार के
आवेदन और ग्राम पंचायत के प्रस्ताव पर, मई 2016 में उनके नाम से महात्मा गांधी
नरेगा के अंतर्गत डबरी निर्माण का कार्य स्वीकृत हो गया। यह उनकी इच्छाशक्ति का ही
परिणाम था कि मई माह में ही उनके खेत में डबरी का निर्माण प्रारंभ हो गया और 3 लाख
रुपयों की लागत से 15 जून 2016 को डबरी बनकर तैयार हो गई। इसके बाद माह जून-जुलाई
में हुई बारिश से डबरी लबालब हो गई। डबरी में भरपूर पानी को देखते हुये रामावतार
ने मछलीपालन प्रारंभ कर दिया। 4 माह के बाद ही उन्हें डबरी से उत्साहजनक परिणाम
मिलने लगे। लगभग 30 से 40 किलो मछली मिली, जिसे बाजार में बेचकर अच्छा खासा मुनाफा
कमाया। इसके बाद डबरी में जमा पानी से खेत में लगाई धान की फसल को मिली नमी और
पानी से पैदावार भी अच्छी हुई। इस बार पिछली बार की अपेक्षा 15 से 20 बोरा धान
अधिक हुआ। उन्नति का यह सफर साल 2017 में भी जारी रहा। इस बार श्री देवांगन ने
दोहरी फसल के रुप में खेतों में सरसों, तिवरा, गेंहू और प्याज की फसल भी लगाई।
महात्मा गांधी
नरेगा से बनी डबरी से मिले लाभ पर उनकी पत्नी श्रीमती रोहणी बाई कहती हैं कि इस
डबरी ने हमारे जीवन को बदल दिया है। यह हमारे लिए किसी अवतार से कम नहीं है।