सरपंच की सोच और अभिसरण से
आंगनबाड़ी बनी फुलवारी
जीवन में माहौल काफी मायने रखता है। यदि माहौल खूबसूरत और खुशनुमा
हो तो सीखने और समझने में सहायता मिलती है। छोटे बच्चों के संदर्भ में यह बात काफी
मायने रखती है। इसीलिए शहरों में छोटे बच्चों के लिए जो प्ले-स्कूल होते हैं, वे बड़े
मन-भावन होते हैं। उनकी भीतरी और बाहरी दीवारों पर सुंदर-सुंदर और रंग-बिरंगे
चित्र बने होते हैं। इसके अलावा स्कूल के प्रांगण में सुगंधित और खूबसूरत फूलों के
पौधे भी होते हैं। यह माहौल बच्चों ही नहीं बल्कि बड़ों को भी आकर्षित करता है। मैं
जब भी शहर जाता, तो ये सब वहाँ देखता और सोचा करता कि अपने
गांव के छोटे बच्चों के लिए भी कम-से-कम एक ऐसी प्ले-स्कूल जैसी आंगनबाड़ी होनी
चाहिए।
आज जो आप यह आंगनबाड़ी देख रहे हैं, यह इसी
सोच का परिणाम है। सभी पंचों और ग्रामीणों की मेहनत से हमारे गांव में भी शहर के
प्ले-स्कूल के भांति सुंदर आंगनबाड़ी, सामने की ओर खूबसूरत बगीचा और झूलें हैं।
इन्हें देखने से यह भवन और परिसर, आंगनबाड़ी न होकर फुलवारी
हो गया है। यह कहना है बालोद जिले की ग्राम पंचायत- कुरदी के सरपंच श्री देवी
प्रसाद देवांगन का।
गुण्डरदेही विकासखण्ड में फुलवारी के नाम से प्रसिद्ध हो रही इस
आंगनबाड़ी के सम्बन्ध में सरपंच श्री देवांगन जी बताते हैं कि
बच्चों के लिए फुलवारी बनाने कि मेरी इस सोच को मैदानी स्तर पर आधार मिला है,
महात्मा गांधी नरेगा और योजनाओं के परस्पर तालमेल से। योजनाओं के तालमेल यानि
अभिसरण के अंतर्गत महात्मा गांधी नरेगा से 5 लाख रुपये और महिला व बाल विकास विभाग
से 1 लाख 45 हजार रुपयों को मिलाकर, नवीन आंगनबाड़ी भवन के निर्माण के लिए राशि 6
लाख 45 हजार रुपयों की स्वीकृति प्राप्त हुई थी। ग्राम पंचायत ने बतौर क्रियान्वयन
एजेंसी के रुप में इस महत्वपूर्ण कार्य का प्रारंभ दिनांक 22 मार्च, 2016 को किया।
सभी की मेहनत रंग लाई और दिनांक 9 अक्टूबर, 2016 को यह आंगनबाड़ी भवन बिल्कुल शहरी
प्ले-स्कूल के भांति बनकर तैया र हो गया। भवन के
निर्माण में यह बात महत्वपूर्ण रही, कि इसके निर्माण में गांव के 13 भाईयों और 10
बहनों ने जी-जान के साथ मिलकर काम किया। इन बहनों में से क्षमाबाई और मुन्नीबाई के
बच्चे त्रिदेव और घनिता इसी आंगनबाड़ी में शिशु शिक्षा और देखभाल पा रहे हैं।

इसी दरम्यान आंगनबाड़ी में बच्चों से मुलाकात करवाते हुये
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता श्रीमती युगेश्वरी देवांगन कहती हैं कि अब हमारे गांव में 2
आंगनबाड़ी हो गई है। गांव में बच्चों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर और गांव की
बसाहट के कारण दूसरी आंगनबाड़ी की आवश्यकता लंबे समय से महसूस हो रही थी, जिसे इस
नवीन आंगनबाड़ी भवन ने पूरा कर दिया है। मेरी इस नवीन आंगनबाड़ी का क्रमांक 2 है।
गांव में 12 वार्ड हैं, तो यहाँ 6 वार्डों के 27 बच्चे,
8 गर्भवती महिलाएं और 9 शिशुवती महिलाएं आती हैं। सरपंच जी
की इच्छाशक्ति और ग्राम पंचायत के प्रयासों से हमारे गांव को भी शहरों के भांति
नये रुप-रंग में आंगनबाड़ी मिल गई है। इसकी बाहरी दिवारों पर हुई रंग-बिरंगी
चित्रकारी और कलात्मक बनावट, बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करती है। आंगनबाड़ी का यह
नया स्वरुप बच्चों में अवलोकन एवं अनुकरण की क्षमता को बढ़ाता है।
नवीन भवन में पृथक से रसोईघर, स्टोर और शौचालय की व्यवस्था से
आंगनबाड़ी सहायिका को कार्य करने में काफी सहुलियतें हुई हैं। आंगनबाड़ी भवन के बाहर परिसर
में ही बनाये गये सुंदर गार्डन और झूले, इसे फुलवारी का स्वरुप प्रदान करते हैं।
बच्चे आंगनबाड़ी में शिशु शिक्षा और पोषण प्राप्त करने के बाद, बाहर गार्डन में
खेलते हैं और झूले में झूलते हैं। गार्डन और झूलों के कारण, कई बार तो प्राथमिक
शाला के बच्चे भी यहाँ नजर आते हैं। अपनी बातों को विस्तार देते हुये सरपंच श्री
देवीप्रसाद आगे बताते हैं कि जिले में इस नये स्वरुप में अन्य ग्राम पंचायतों में
भी नवीन भवन बन रहे हैं, किन्तु हमने यहाँ छांयादार व फूलदार पौधों के साथ एक
सुंदर गार्डन बनाया है और झूलों की व्यवस्था भी की है। इससे बच्चों का मानसिक और
शारीरिक, दोनों विकास हो रहा है। इसी अनुक्रम में सरपंच जी की बातों के समर्थन में
तकनीकी जानकारी देते हुये ग्राम रोजगार सहायक श्री भीखम साहू कहते हैं कि यहाँ
झूलों की व्यवस्था और गार्डन का निर्माण भी योजनाओं के अभिसरण के जरीये किया गया
है। इसके अंतर्गत महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का अभिसरण
14वें वित्त योजना और जिला खनिज न्यास निधि से किया गया है।

इस प्रकार नवीन भवन और परिसर में बने गार्डन-झूलों से यह बात
सार्थक प्रतीत हो रही है कि जिला-बालोद की ग्राम पंचायत-कुरदी में योजनाओं के अभिसरण ने
आंगनबाड़ी को फुलवारी का स्वरुप दे दिया है। यह फुलवारी, गांव के प्ले-स्कूल के
रुप में शिशुओं के संज्ञानात्मक, व्यक्तिगत-सामाजिक एवं संवेगात्मक, शारीरिक,
भाषायी एवं सृजनात्मक विकास में सहायक हो रही है।