Tuesday, 17 September 2019

किसानों ने लिखी पानी की कहानी

सिरसिदा गाँव में चेकडेम बना समृद्धि का जरिया


          'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों' कवि दुष्यंत की इन पंक्तियों को धमतरी जिले के कुरुद विकासखण्ड की सिरसिदा ग्राम पंचायत के किसानों और ग्रामीणों ने चरितार्थ कर दिखाया है। उन्होंने एकजुटता और तत्परता दिखाते हुये डीही नाले से हर साल यूँ ही बह जाने वाले बारिश के पानी को चेकडेम बनाकर बांध लिया। इससे इनके बोरवेल भी अब साँस लेने लगे हैं। पहले जहाँ बारिश के महीने - दो महीने बाद ही भू-जल स्तर के गिरने के कारण पम्प सूख जाया करते थे, वहीं अब गर्मी का मौसम आने तक पम्प प्राणमय बने रहते हैं और खेतों को सींचते हैं।

          इस चेकडेम का प्रभाव वर्षः 2018-19 में ही गाँव में साफ दिखाई देने लगा था। इस चेकडेम से डीही नाले से लगे दोनों ओर के खेतों को पानी मिल रहा है। इससे कृषि रकबे में बढ़ोत्तरी हुई है। पहले जहाँ सिर्फ 34 एकड़ कृषि भूमि सिंचित हो पाती थी, वहाँ आज लगभग 200 एकड़ कृषि भूमि सिंचित हो रही है। इस चेकडेम के बन जाने से करीब एक किलोमीटर तक लबालब भरे पानी का उपयोग किसान गर्मी तक कर पा रहे हैं। कल तक सिर्फ धान की फसल लेने वाले किसानों ने अब चना और गेहूँ की फसल भी लेना शुरु कर दिया है। कुछ किसान तो सब्जी-भाजी का उत्पादन कर, अच्छा-खासा लाभ कमा रहे हैं।

          इस संबंध में सरपंच श्रीमती लीला बाई देवदास ने बताया कि हर साल डीही नाले से बारिश का पानी बहकर महानदी में चला जाता था। नाले के आस-पास के किसानों ने ग्राम पंचायत से नाले पर चेकडेम बनाने की माँग की थी, ताकि गाँव का पानी गाँव में निस्तारी और खेतों की सिंचाई के काम आ सके। नाले के आकार को देखते हुये, इस पर चेकडेम बनाने के लिए अधिक राशि लगने की संभावना लग रही थी, जिसकी अनुमति तत्काल मिल पाना संभव नहीं था। ऐसे में जनपद पंचायत-कुरुद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री वीरेन्द्र जायसवाल ने योजनाओं के तालमेल यानि कि अभिसरण के जरिये राशि जुटाने का उपाय बताया। बस, फिर क्या था, ग्राम पंचायत ने प्रस्ताव तैयार किया और 22 फरवरी 2017 को महात्मा गांधी नरेगा एवं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अभिसरण से चेकडेम का कार्य स्वीकृत भी हो गया। इधर चेकडेम निर्माण के लिए 34 लाख 97 हजार रुपयों की स्वीकृति की खबर पाकर, किसानों ने भी कमर कस ली। ग्राम पंचायत ने 6 मार्च 2017 को चेकडेम के निर्माण का काम शुरु कर दिया। पहले पांच सौ मीटर की दूरी तक नाले की गाद निकासी (गहरीकरण) करते हुये, अनुपयोगी झाड़ियाँ हटाई गई, फिर चेकडेम का निर्माण प्रारंभ हुआ। महज चार महीने में चेकडेम बनकर तैयार हो गया। सरपंच ने आगे बताया कि जैसे ही चेकडेम बनकर तैयार हुआ, इंद्रदेव भी मेहरबान हुए और बारिश हो गई। इससे डेम में पानी ही पानी दिखाई देने लगा। यह सब किसानों की लगन से ही संभव हो पाया था।

चेकडेम निर्माण से लाभान्वित हुए किसान डेगेश्वर राम पटेल कहते हैं कि पहले यहाँ एक ही फसल ली जाती थी, लेकिन चेकडेम के निर्माण के बाद से गाँव के किसान दो फसल लेकर दोगुनी आमदनी पा रहे हैं। मैं खुद अब अपने 2 एकड़ के खेत में सिंचाई कर पा रहा हूँ। पहले पम्प और पाईप से पानी खेतों तक लाना पड़ता था, अब सीधे चेकडेम से पानी ले लेता हूँ। मेरे साथी किसान सदानंद ने, अपने एक एकड़ खेत में खरीफ के बाद रबी की फसल लेना शुरु कर दिया है। चेकडेम निर्माण से नाले में अप्रैल माह तक पानी को रोककर रख लिया जाता है, जो गाँव वालों के दैनिक कामों के उपयोग में आता है।

          खेती-किसानी से जुड़े राजाराम ध्रुव चेकडेम के निर्माण के बाद के अपने अनुभवों को साझा करते हुये बताते हैं कि लगभग सभी किसान सिंचाई के लिए अपने खेतों में बोरवेल करा लिये थे। सभी के बोरवेल चलने से जमीन के भीतर का पानी धीरे-धीरे 60 फीट नीचे तक चला गया था। जिन किसानों के बोरवेल की गहराई 30-40 फीट थी, उन्हें फिर से बोरवेल कराना पड़ गया था। स्टॉपडेम बनने के बाद से भू-जल स्तर वापस 25-30 फीट पर आ गया है। इससे सीधे तौर पर श्री डेगेश्वर पटेल, श्री जीवन निषाद और श्री खड़ानंद सिन्हा सहित 15 किसानों के बोरवेल में पर्याप्त पानी आ गया है।

          श्री चन्द्रहास ध्रुव, जो कि गाँव में ग्राम रोजगार सहायक हैं, चेकडेम निर्माण को गाँव की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण कड़ी बताते हुये कहते हैं कि चेकडेम में पानी रुकने से जहाँ किसान लाभान्वित हुये हैं, वहीं इसके निर्माण और नाले के गहरीकरण से 242 ग्रामीणों को रोजगार भी मिला, जिसमें 110 महिलाएँ और 132 पुरुष शामिल थे। इस चेकडेम निर्माण के बाद से नाले के आसपास खेतों की मेड़ों का कटाव भी बहुत कम हो गया है। जल संचय होने से भू-जल स्तर भी बढ़ रहा है। गाँव के बाजार चौक एवं उप स्वास्थ्य केन्द्र के पास स्थित 3 हैण्डपम्पों में अब बारहों माह पानी रहता है।

          श्री ध्रुव ने आगे बताया कि चेकडेम बनने के बाद बाड़ी लगाने की इच्छा रखने वाले किसानों को भी फायदा हुआ है। गिरधारी राम साहू ने अपने दो एकड़ खेत में इसी चेकडेम के पानी से साग-सब्जी उगाना शुरु कर दिया है। वे अपनी बाड़ी में करेला, भाटा, भिन्डी एवं कई तरह की भाजियाँ उगाते हैं। पिछले साल उन्हें सिर्फ बाड़ी से ही 40 हजार रुपयों की आय हुई थी। श्री जीवन निषाद भी चेकडेम के पानी से अपने डेढ़ एकड़ खेत में सब्जियाँ उगाते हैं। इससे उन्हें लगभग 30 हजार रुपयों की आय हुई थी।

          चेकडेम बनने के बाद, गाँव की दूसरी अन्य परसम्पत्तियों के साथ ही एक जल संचय एवं जल संवर्धन का स्थाई स्त्रोत शामिल हो गया है। इससे गाँव और ग्रामीण, दोनों खुश हैं।

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एक नजरः-
कार्य का नामः चेक डेम निर्माण कार्य, स्वीकृत वर्षः 2016-17, पूर्णता वर्षः2017-18
स्वीकृत राशिः 34.97 लाख, अभिसरणः मनरेगा-13.04 लाख व पी.एम.के.एस.वाय.-21.93 लाख
संक्षिप्त शब्दावलीः पी.एम.के.एस.वाय.- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना एवं
                             मनरेगा- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना

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माह- सितम्बर, 2019
रिपोर्टिंग व लेखन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
तथ्य व स्त्रोत -         श्री धरम सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी, छ.ग.।
                               श्री रामचंद्र खरे, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-कुरुद, जिला-धमतरी, छ.ग़.।
संपादन -                 श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।

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Wednesday, 11 September 2019

आर्थिक समृद्धि की आधारशिला


आर्थिक समृद्धि की आधारशिला

0 जल प्रबंधन में भागीदारी ने बनाई राह



पानी की रोजमर्रा की आपूर्ति, रख-रखाव तथा इसके इस्तेमाल में महिलाओं की अहम भूमिका होती है। वे जल की प्रमुख उपयोगकर्ता होती हैं। वे खाना पकाने से लेकर, परिवार की स्वच्छता और सफाई के लिये जल का प्रयोग करती हैं। ऐसे में जल संसाधनों के समुचित प्रयोग के प्रति नए दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में महिलाओं की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण साबित होगी। इसके लिए महिलाओं की सक्रिय सहभागिता के साथ जल संसाधन प्रबंधन के सभी चरणों में उनकी दक्षता को बढ़ाने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिये ऐसी कोशिश करनी होगी कि महिलाओं को जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन व उपयोग में अपनी भूमिका बढ़ाने का मौका मिले। कुछ ऐसी ही कोशिश कोरिया जिले के सोनहत विकासखण्ड की ग्राम पंचायत पोड़ी में दिखाई देती है। यहाँ महात्मा गांधी नरेगा से बनी सामुदायिक डबरियों में मछलीपालन का कार्य करते पुरुष समूह ने मछलीपालन में आगे बढ़ने के लिए महिला समूह का साथ लिया है। इसके अंतर्गत डबरी में जल की आपूर्ति, रख-रखाव तथा प्रबंधन से लेकर मछली बीज संवर्धन, मछलीपालन व विक्रय तक के कार्य में महिला समूह, पुरुष समूह के साथ कदम से कदम मिलाकर काम कर रहा है। इस साथ ने जल प्रबंधन के साथ-साथ समूहों की आर्थिक समृद्धि की आधारशिला रख दी है।

          ग्राम पंचायत पोड़ी के आश्रित ग्राम अमहर में घुनघुट्टा जलाशय है। इस जलाशय में गांव के कुछ परिवार अपने भोजन और आजीविका के लिए मछली पकड़ते रहे। इन परिवारों के युवाओं की मछलीपालन के प्रति रुचि को देखते हुये कोरिया जिले के मत्स्य विभाग ने इन्हें समूह बनाकर मछलीपालन करने का रास्ता सुझाया। इस सुझाव ने आदिवासी युवाओं पर ऐसा असर डाला कि 10 युवाओं ने मिलकर शिवम स्व सहायता समूह नाम से अपना एक समूह बना लिया। मछुआरा समूह के रुप में पंजीकृत होकर, इन्होंने मत्स्य विभाग से प्रशिक्षण लिया और आवश्यक संसाधन भी प्राप्त किये। इसके बाद इन्हें मछली उत्पादन के लिए जिला पंचायत से घुनघुट्टा जलाशय 7 सालों की लीज पर प्राप्त हो गया। जलाशय इतना बड़ा था कि समूह अपनी सदस्य संख्या के आधार पर तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रहा था। इसी बीच मत्स्य विभाग के अधिकारी श्री यू.के.द्विवेदी की सलाह पर गांव के ही मॉ लक्ष्मी स्व सहायता समूह के 20 सदस्यों का साथ शिवम स्व सहायता समूह को मिल गया। इस साथ ने मछलीपालन के जरिये आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर दिया। दोनों समूहों ने मिलकर, एक नई ओम शिव मछुआ सहकारी समिति का गठन किया, ताकि वे मत्स्य विभाग की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ ले सकें।

इस समिति के सचिव श्री बालकरण कहते हैं कि समिति ने मछलीपालन का काम धीरे-धीरे शुरु तो कर दिया था, पर रास्ते में अड़चनें भी आ रहीं थीं। इनमें सबसे बड़ी अड़चन मछली बीज को बैकुण्ठपुर मुख्यालय से जलाशय तक लाना था। लगभग 40 किलोमीटर दूर से मछली बीज के परिवहन में कई बीज मर जाते थे, जिससे समिति को नुकसान उठाना पड़ता था। दूसरी ओर जीरा साईज की मछली बीजों को इतने बड़े जलाशय में सीधे डालने से सही मछली उत्पादन का हिसाब नहीं मिल पा रहा था। इन परिस्थितियों ने समिति को चिंताजनक स्थिति तक पहुँचा दिया था।

          चिंताओं की इस भँवरजाल से मछुआ समिति को बाहर निकलने का रास्ता दिखाया महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) ने। मत्स्य विभाग के मार्गदर्शन में महात्मा गांधी नरेगा से घुनघुट्टा जलाशय के ऊपरी भाग में समिति के लिए साल 2017-18 में 6 लाख 59 हजार रुपयों की लागत से 4 मत्स्य बीज संवर्धन पोखर यानि की सामुदायिक डबरियों का निर्माण कराया गया। इन डबरियों में मत्स्य बीज संवर्धन के कार्य के लिए यह जरुरी था कि इनमें बारहों माह पानी बना रहे। कहते हैं न कि जहाँ चाह, वहाँ राह। इस जलाशय से थोड़ी दूरी पर ही पहाड़ी पर एक प्राकृतिक झिरिया (जल स्त्रोत) है, जहाँ से बारहों माह पानी निकलता रहता है। समिति के सदस्यों ने ग्राम पंचायत के सहयोग से महात्मा गांधी नरेगा और रुर्बन मिशन के तालमेल से मिली लगभग 9 लाख रुपयों की राशि से नाली बनाई और झरिया से डबरियों को जोड़ दिया। अब झिरिया का पानी 600 मीटर लंबी इस पक्की नाली से बहकर डबरियों में आता रहता है। डबरियों के भरने के बाद पानी को जलाशय की दिशा में परिवर्तित कर दिया जाता है। इस तरह सदस्यों की एक जुटता, आगे बढ़ने की ललक, मत्स्य विभाग के निरंतर मार्गदर्शन और योजनाओं के तालमेल ने समिति के सामने से लगभग सभी अड़चनों को दूर कर दिया था। अब समिति के सदस्यों ने महात्मा गांधी नरेगा से बनी इन सामुदायिक डबरियों (पोखर) में मत्स्य बीज संवर्धन का कार्य प्रारंभ कर दिया।

समिति के अध्यक्ष श्री कंवल साय बताते हैं कि अब समिति को फायदा होने लगा है। वे डबरियों में जीरा साईज की मछली बीज लाकर डालते हैं और लगभग 2 महीनों तक उनका लालन-पालन करते हैं। इसके बाद जब वे फिंगर साईज की हो जाती हैं, तो उन्हें सोनहत विकासखण्ड के मत्स्य कृषकों को बेच देते हैं। इसके अलावा फिंगरलिंग को जलाशय में भी डालते हैं। इससे मछली उत्पादन भी बढ़ गया है।


          इतने प्रयासों के बावजूद समिति को बाजार में मछली और मछलीबीज विक्रय के कार्य में उम्मीद के अनुरुप सफलता नहीं मिल पा रही थी। ग्राम पंचायत ने समिति की इस समस्या का भी समाधान कर दिया। इसी गाँव में महिलाओं का राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित माँ भगवती महिला स्व सहायता समूह लेखा और विक्रय के कार्य में दक्ष है। सो, ग्राम पंचायत की सलाह पर महिला समूह का साथ ओम शिव मछुआ सहकारी समिति को मिल गया। अब समूह की महिला सदस्य डबरी में जल की आपूर्ति, रख-रखाव तथा प्रबंधन से लेकर मछली बीज संवर्धन एवं मछलीपालन तक के कार्य में समिति के सदस्यों की मदद करने लगीं। डबरी में मत्स्य बीज संवर्धन के बाद, फिंगरलिंग और मछलियों के विक्रय कार्य का जिम्मा महिला समूह की सदस्यों ने अपने कंधे पर उठा लिया। वे ही बाजार में उनका विक्रय करती और हिसाब-किताब रखती। समूह की सदस्य सुश्री कमला का कहना है कि मत्स्यपालन से जुड़ने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई है। मेरे घर का गुजारा भी अब इसी से चलता है। समूह की एक और सदस्य श्रीमती पार्वती मुस्कुराते हुये कहती हैं कि मछलीपालन से समूह और समिति के सदस्यों के परिवार को पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन भी मिला है। मेरे बच्चों को मछली की तरकारी बहुत पसंद है, सो हमारे यहाँ अक्सर यह बनती है।

महिलाओं का सहयोग मिलने के बाद, अब समिति के सदस्यों को उनकी मेहनत का सही दाम मिलने लगा है।। साल 2018-19 में समिति को सभी खर्चें काटकर सालाना लगभग 12 लाख 18 हजार रुपयों की आय हुई। बकौल समिति सदस्य बालकरण, अब समिति गांव के जरुरतमंद किसानों को कम ब्याज दर पर रुपये भी देती है। इससे भी समिति को अतिरिक्त आय हो रही है। इस प्रकार की भागीदारी ने जल प्रबंधन से मछली बीज संवर्धन और मछलीपालन के इस प्रयास को दिशा देते हुए कोरिया जिले के पोड़ी गांव के आदिवासी परिवारों के लिए आर्थिक समृद्धि की आधारशिला रख दी है। 

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महत्वपूर्ण आंकड़ेः-
1. कार्यः मत्स्य बीज संवर्धन पोखर निर्माण कार्य, 4-नग, घुनघुट्टा जलाशय, ग्राम-अमहर 
    स्वीकृत राशिः 6.59 लाख, स्वीकृत वर्षः 2016-17, पूर्णता वर्षः 2017-18, सृजित मानव दिवसः 2984 

2. कार्यः सी.सी. नाली निर्माण कार्य, 600-मीटर, घुनघुट्टा जलाशय, ग्राम-अमहर 
    स्वीकृत राशिः 9.02 लाख, स्वीकृत वर्षः 2017-18, पूर्णता वर्षः 2018-19, सृजित मानव दिवसः 1255 
    मनरेगा भागः 2.16 लाख, रुर्बन भागः 6.86 लाख

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माह- सितम्बर, 2019
रिपोर्टिंग व लेखन- श्री संदीप सिंह चैधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, 
                       जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
तथ्य व स्त्रोत - श्री मोहम्मद आरिफ रजा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़ ।
                       श्री जितेन्द्र सिंह राजवाड़े, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-सोनहत, जिला-कोरिया, छ.ग.।
                       श्री जिन्दर साय, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-पोड़ी, ज.पं.-सोनहत, जिला-कोरिया, छ.ग.।
संपादन - श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...