आर्थिक समृद्धि की आधारशिला
0 जल प्रबंधन में भागीदारी ने बनाई राह
पानी की रोजमर्रा की आपूर्ति, रख-रखाव तथा इसके इस्तेमाल में महिलाओं की अहम भूमिका होती है। वे जल की प्रमुख उपयोगकर्ता होती हैं। वे खाना पकाने से लेकर, परिवार की स्वच्छता और सफाई के लिये जल का प्रयोग करती हैं। ऐसे में जल संसाधनों के समुचित प्रयोग के प्रति नए दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में महिलाओं की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण साबित होगी। इसके लिए महिलाओं की सक्रिय सहभागिता के साथ जल संसाधन प्रबंधन के सभी चरणों में उनकी दक्षता को बढ़ाने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिये ऐसी कोशिश करनी होगी कि महिलाओं को जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन व उपयोग में अपनी भूमिका बढ़ाने का मौका मिले। कुछ ऐसी ही कोशिश कोरिया जिले के सोनहत विकासखण्ड की ग्राम पंचायत पोड़ी में दिखाई देती है। यहाँ महात्मा गांधी नरेगा से बनी सामुदायिक डबरियों में मछलीपालन का कार्य करते पुरुष समूह ने मछलीपालन में आगे बढ़ने के लिए महिला समूह का साथ लिया है। इसके अंतर्गत डबरी में जल की आपूर्ति, रख-रखाव तथा प्रबंधन से लेकर मछली बीज संवर्धन, मछलीपालन व विक्रय तक के कार्य में महिला समूह, पुरुष समूह के साथ कदम से कदम मिलाकर काम कर रहा है। इस साथ ने जल प्रबंधन के साथ-साथ समूहों की आर्थिक समृद्धि की आधारशिला रख दी है।
ग्राम पंचायत पोड़ी के आश्रित ग्राम अमहर में घुनघुट्टा जलाशय है। इस जलाशय में गांव के कुछ परिवार अपने भोजन और आजीविका के लिए मछली पकड़ते रहे। इन परिवारों के युवाओं की मछलीपालन के प्रति रुचि को देखते हुये कोरिया जिले के मत्स्य विभाग ने इन्हें समूह बनाकर मछलीपालन करने का रास्ता सुझाया। इस सुझाव ने आदिवासी युवाओं पर ऐसा असर डाला कि 10 युवाओं ने मिलकर शिवम स्व सहायता समूह नाम से अपना एक समूह बना लिया। मछुआरा समूह के रुप में पंजीकृत होकर, इन्होंने मत्स्य विभाग से प्रशिक्षण लिया और आवश्यक संसाधन भी प्राप्त किये। इसके बाद इन्हें मछली उत्पादन के लिए जिला पंचायत से घुनघुट्टा जलाशय 7 सालों की लीज पर प्राप्त हो गया। जलाशय इतना बड़ा था कि समूह अपनी सदस्य संख्या के आधार पर तेजी से आगे नहीं बढ़ पा रहा था। इसी बीच मत्स्य विभाग के अधिकारी श्री यू.के.द्विवेदी की सलाह पर गांव के ही मॉ लक्ष्मी स्व सहायता समूह के 20 सदस्यों का साथ शिवम स्व सहायता समूह को मिल गया। इस साथ ने मछलीपालन के जरिये आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर दिया। दोनों समूहों ने मिलकर, एक नई ओम शिव मछुआ सहकारी समिति का गठन किया, ताकि वे मत्स्य विभाग की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ ले सकें।
इस समिति के सचिव श्री बालकरण कहते हैं कि समिति ने मछलीपालन का काम धीरे-धीरे शुरु तो कर दिया था, पर रास्ते में अड़चनें भी आ रहीं थीं। इनमें सबसे बड़ी अड़चन मछली बीज को बैकुण्ठपुर मुख्यालय से जलाशय तक लाना था। लगभग 40 किलोमीटर दूर से मछली बीज के परिवहन में कई बीज मर जाते थे, जिससे समिति को नुकसान उठाना पड़ता था। दूसरी ओर जीरा साईज की मछली बीजों को इतने बड़े जलाशय में सीधे डालने से सही मछली उत्पादन का हिसाब नहीं मिल पा रहा था। इन परिस्थितियों ने समिति को चिंताजनक स्थिति तक पहुँचा दिया था।
चिंताओं की इस भँवरजाल से मछुआ समिति को बाहर निकलने का रास्ता दिखाया महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) ने। मत्स्य विभाग के मार्गदर्शन में महात्मा गांधी नरेगा से घुनघुट्टा जलाशय के ऊपरी भाग में समिति के लिए साल 2017-18 में 6 लाख 59 हजार रुपयों की लागत से 4 मत्स्य बीज संवर्धन पोखर यानि की सामुदायिक डबरियों का निर्माण कराया गया। इन डबरियों में मत्स्य बीज संवर्धन के कार्य के लिए यह जरुरी था कि इनमें बारहों माह पानी बना रहे। कहते हैं न कि जहाँ चाह, वहाँ राह। इस जलाशय से थोड़ी दूरी पर ही पहाड़ी पर एक प्राकृतिक झिरिया (जल स्त्रोत) है, जहाँ से बारहों माह पानी निकलता रहता है। समिति के सदस्यों ने ग्राम पंचायत के सहयोग से महात्मा गांधी नरेगा और रुर्बन मिशन के तालमेल से मिली लगभग 9 लाख रुपयों की राशि से नाली बनाई और झरिया से डबरियों को जोड़ दिया। अब झिरिया का पानी 600 मीटर लंबी इस पक्की नाली से बहकर डबरियों में आता रहता है। डबरियों के भरने के बाद पानी को जलाशय की दिशा में परिवर्तित कर दिया जाता है। इस तरह सदस्यों की एक जुटता, आगे बढ़ने की ललक, मत्स्य विभाग के निरंतर मार्गदर्शन और योजनाओं के तालमेल ने समिति के सामने से लगभग सभी अड़चनों को दूर कर दिया था। अब समिति के सदस्यों ने महात्मा गांधी नरेगा से बनी इन सामुदायिक डबरियों (पोखर) में मत्स्य बीज संवर्धन का कार्य प्रारंभ कर दिया।
समिति के अध्यक्ष श्री कंवल साय बताते हैं कि अब समिति को फायदा होने लगा है। वे डबरियों में जीरा साईज की मछली बीज लाकर डालते हैं और लगभग 2 महीनों तक उनका लालन-पालन करते हैं। इसके बाद जब वे फिंगर साईज की हो जाती हैं, तो उन्हें सोनहत विकासखण्ड के मत्स्य कृषकों को बेच देते हैं। इसके अलावा फिंगरलिंग को जलाशय में भी डालते हैं। इससे मछली उत्पादन भी बढ़ गया है।
समिति के अध्यक्ष श्री कंवल साय बताते हैं कि अब समिति को फायदा होने लगा है। वे डबरियों में जीरा साईज की मछली बीज लाकर डालते हैं और लगभग 2 महीनों तक उनका लालन-पालन करते हैं। इसके बाद जब वे फिंगर साईज की हो जाती हैं, तो उन्हें सोनहत विकासखण्ड के मत्स्य कृषकों को बेच देते हैं। इसके अलावा फिंगरलिंग को जलाशय में भी डालते हैं। इससे मछली उत्पादन भी बढ़ गया है।
इतने प्रयासों के बावजूद समिति को बाजार में मछली और मछलीबीज विक्रय के कार्य में उम्मीद के अनुरुप सफलता नहीं मिल पा रही थी। ग्राम पंचायत ने समिति की इस समस्या का भी समाधान कर दिया। इसी गाँव में महिलाओं का राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित माँ भगवती महिला स्व सहायता समूह लेखा और विक्रय के कार्य में दक्ष है। सो, ग्राम पंचायत की सलाह पर महिला समूह का साथ ओम शिव मछुआ सहकारी समिति को मिल गया। अब समूह की महिला सदस्य डबरी में जल की आपूर्ति, रख-रखाव तथा प्रबंधन से लेकर मछली बीज संवर्धन एवं मछलीपालन तक के कार्य में समिति के सदस्यों की मदद करने लगीं। डबरी में मत्स्य बीज संवर्धन के बाद, फिंगरलिंग और मछलियों के विक्रय कार्य का जिम्मा महिला समूह की सदस्यों ने अपने कंधे पर उठा लिया। वे ही बाजार में उनका विक्रय करती और हिसाब-किताब रखती। समूह की सदस्य सुश्री कमला का कहना है कि मत्स्यपालन से जुड़ने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई है। मेरे घर का गुजारा भी अब इसी से चलता है। समूह की एक और सदस्य श्रीमती पार्वती मुस्कुराते हुये कहती हैं कि मछलीपालन से समूह और समिति के सदस्यों के परिवार को पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन भी मिला है। मेरे बच्चों को मछली की तरकारी बहुत पसंद है, सो हमारे यहाँ अक्सर यह बनती है।
महिलाओं का सहयोग मिलने के बाद, अब समिति के सदस्यों को उनकी मेहनत का सही दाम मिलने लगा है।। साल 2018-19 में समिति को सभी खर्चें काटकर सालाना लगभग 12 लाख 18 हजार रुपयों की आय हुई। बकौल समिति सदस्य बालकरण, अब समिति गांव के जरुरतमंद किसानों को कम ब्याज दर पर रुपये भी देती है। इससे भी समिति को अतिरिक्त आय हो रही है। इस प्रकार की भागीदारी ने जल प्रबंधन से मछली बीज संवर्धन और मछलीपालन के इस प्रयास को दिशा देते हुए कोरिया जिले के पोड़ी गांव के आदिवासी परिवारों के लिए आर्थिक समृद्धि की आधारशिला रख दी है।
--0--
1. कार्यः मत्स्य बीज संवर्धन पोखर निर्माण कार्य, 4-नग, घुनघुट्टा जलाशय, ग्राम-अमहर
स्वीकृत राशिः 6.59 लाख, स्वीकृत वर्षः 2016-17, पूर्णता वर्षः 2017-18, सृजित मानव दिवसः 2984
2. कार्यः सी.सी. नाली निर्माण कार्य, 600-मीटर, घुनघुट्टा जलाशय, ग्राम-अमहर
स्वीकृत राशिः 9.02 लाख, स्वीकृत वर्षः 2017-18, पूर्णता वर्षः 2018-19, सृजित मानव दिवसः 1255
मनरेगा भागः 2.16 लाख, रुर्बन भागः 6.86 लाख
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
माह- सितम्बर, 2019
रिपोर्टिंग व लेखन- श्री संदीप सिंह चैधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर,
जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
तथ्य व स्त्रोत - श्री मोहम्मद आरिफ रजा, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़ । श्री जितेन्द्र सिंह राजवाड़े, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-सोनहत, जिला-कोरिया, छ.ग.। श्री जिन्दर साय, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-पोड़ी, ज.पं.-सोनहत, जिला-कोरिया, छ.ग.। संपादन - श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
|
http://mgnrega.cg.nic.in/success_story.aspx