Monday, 28 September 2020

सामुदायिक फलोद्यान से आत्मनिर्भरता और आर्थिक उन्नति का सफ़र

सामुदायिक फलोद्यान से

आत्मनिर्भरता और आर्थिक उन्नति का सफ़र

रायपुर। सहकारिता की भावना के साथ एक सूत्र में बंधकर आगे बढ़ने का परिणाम हमें जशपुर जिले के गाँव सुरेशपुर में देखने को मिला। यहाँ पाँच आदिवासी किसानों ने अपनी-अपनी कृषि भूमि के आपस में लगते हिस्सों को मिलाकर लगभग 5 हेक्टेयर के एक चक में कुछ बरस पहले महात्मा गांधी नरेगा से आम का फलोद्यान लगाया था। अब ये पौधे पेड़ बन गए हैं। पिछले तीन सालों में आम के उत्पादन से अब तक 5 लाख रुपए से अधिक की आमदनी इन्हें हो चुकी है। वहीं सब्जियों की अंतरवर्ती खेती करते हुए वे अतिरिक्त लाभ भी अर्जित कर रहे हैं। अब वे अपने गाँव में फल उत्पादक के रुप में भी पहचाने जाने लगे हैं। 

जिला मुख्यालय से 96 किलोमीटर दूर पत्थलगाँव विकासखण्ड में सुरेशपुर एक आदिवासी बहुल्य गाँव है। इस गाँव के निवासी 45 वर्षीय श्री मदनलाल पिता श्री जगरनाथ एक आदिवासी गोंड किसान हैं। वे खेती करके अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे थे, किन्तु उन्हें अपनी लगभग ढाई हेक्टेयर की पड़ती(बंजर) कृषि भूमि पर कुछ भी नहीं उगा पाने का काफी दुख था। एक दिन उन्होंने पंचायत कार्यालय में सहसा ही गाँव के ग्राम रोजगार सहायक श्री ज्ञानेश कुमार डनसेना से इस संबंध में बातचीत की थी, उन्हें क्या पता था कि उनकी यह बातचीत उनके पड़ती जमीन के दिन बदल देगी। श्री ज्ञानेश ने उन्हें उद्यानिकी विभाग के माध्यम से सामुदायिक फलोद्यान लगाने और उनके बीच अंतरवर्ती खेती के रुप में सब्जियों के उत्पादन का उपाय बताया। बस फिर क्या था, श्री मदनलाल ने पंचायत की सलाह पर तुरंत अपनी कृषि भूमि से लगते अन्य कृषकों श्री बुधकुंवर पिता श्री सोनसाय, श्री मोहन पिता श्री बुधु, श्री मनबहाल पिता श्री माधव और श्रीमती हेमलता पति श्री पिनाकधर से संपर्क किया एवं उन्हें मिलकर सामुदायिक फलोद्यान से होने वाले फायदे के बारे में बताया। चूँकि इन चारों किसानों की आधे से लेकर एक हेक्टेयर तक की कृषि भूमि श्री मदनलाल की कृषि भूमि से लगती थी और लगभग सभी की यह भूमि पड़ती होने के कारण अनुपयोगी थी। इसलिए सभी ने इसके लिए अपनी सहमति दे दी। आखिरकार श्री मदनलाल की मेहनत रंग लाई और ग्राम सभा के प्रस्ताव के आधार पर 9.48 लाख रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति के साथ सामुदायिक फलोद्यान रोपण का मार्ग प्रशस्त हो गया।

यहाँ वर्ष 2013-14 में उद्यानिकी विभाग ने श्री मदनलाल सहित पाँचों किसानों की कृषि भूमि को मिलाकर 4.600 हेक्टेयर भूमि के एक चक पर आम का सामुदायिक फलोद्यान रोपण का कार्य महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से कराया। उस समय 7 लाख 97 हजार रुपयों की लागत से आम की दशहरी प्रजाति के एक हजार 300 पौधे रोपे गए थे। यह कार्य इन पाँचों हितग्राहियों के परिवार के सदस्यों सहित कुल 67 जॉबकार्डधारी श्रमिकों ने मिलकर पूरा किया। योजना से इन्हें 3 हजार 617 मानव दिवस रोजगार के लिए 5 लाख 75 हजार 863 रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया।

जिले के उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक श्री राम अवध सिंह भदौरिया बताते हैं कि इस आम्र फलोद्यान से इन्हें पिछले 3 सालों में आमों की बिक्री से लगभग 5 लाख 70 हजार रुपये से अधिक की आमदनी हुई है। वहीं दूसरी ओर अंतरवर्ती फसल के रुप में इन्होंने बरबट्टी, भिण्डी, करेला, मिर्च, टमाटर, प्याज और आलू की सब्जियों का उत्पादन लिया है। इन सब्जियों को स्थानीय और पत्थलगाँव के बाजारों में बेचकर इन्होंने लगभग साढ़े 3 लाख रुपए की अतिरिक्त कमाई भी की है। पाँचों किसानों में श्री मदनलाल काफी सक्रिय हैं। वे फलोद्यान में अपने हिस्से की भूमि के साथ-साथ बाकी चारों किसानों की भूमि पर रोपे गए पेड़ों की शुरु से देखभाल करते आए हैं। 

फलोद्यान से प्राप्त हुए फायदों के बारे में लाभार्थी श्री मदनलाल कहते हैं कि “इस आम के बगीचे में उद्यानिकी विभाग ने हमारी बहुत मदद की है। विभाग ने यहाँ राष्ट्रीय बागवानी मिशन योजना से ड्रिप इरिगेशन सिस्टम, सब्जी क्षेत्र विस्तार (प्याज), पैक हाउस, मल्चिंग शीट और वर्मी कम्पोस्ट यूनिट के रुप में विभागीय अनुदान सहायता उपलब्ध कराई हैं। हमारी परस्पर एकजुटता और योजनाओं के तालमेल से विकसित हुए इस फलोद्यान से तीन ही सालों में ही हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी हुई है। आमों की अच्छी क्वालिटी होने से पत्थलगाँव विकासखण्ड के फल व्यापारी सीधे खेत पर पहुँचकर हमसे इनकी थोक में खरीदी कर रहे हैं।”

-0-

एक नजर-

कार्य का नाम- सामुदायिक फलोद्यान रोपण-सुरेशपुर, क्षेत्रफल- 4.60 हेक्टेयर, पौधों की संख्या- 1300, प्रजाति- दशहरी आम,
ग्रा.पं.- सुरेशपुर, विकासखण्ड- पत्थलगाँव, जिला- जशपुर, जनसंख्या- 2200
स्वीकृत राशि- 9.48 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2013-14, सृजित मानव दिवस- 3617, नियोजित श्रमिक- 67

क्रं.

हितग्राही का नाम

रोपण रकबा (हेक्टेयर में)

रोपण पौधों की संख्या

1.

श्री मदनलाल पिता श्री जगरनाथ

2.400

610

2.

श्री बुधकुंवर पिता श्री सोनसाय

0.400

120

3.

श्री मोहन पिता श्री बुधू

0.500

170

4.

श्रीमती हेमलता पति श्री पिनाकधर

0.500

170

5.

श्री मनबहाल पिता श्री माधव

0.800

230

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रिपोर्टिंग- श्री शशिकांत गुप्ता, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत- जशपुर, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- 1. श्री पुष्पेन्द्र कुमार पटेल, प्रभारी उद्यान अधीक्षक, विकासखण्ड-पत्थलगाँव, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़।
2. श्री ज्ञानेश कुमार डनसेना, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-सुरेशपुर, ज.पं.-पत्थलगाँव, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री आलोक सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Thursday, 24 September 2020

काजू वृक्षारोपण से बदली गाँव और पंचायत की दशा एवं दिशा

 काजू वृक्षारोपण से बदली गाँव और पंचायत की दशा एवं दिशा

रायपुर। आईये आपको आज एक ऐसी ग्राम पंचायत के बारे में बताते हैं, जिसने एक छोटे से प्रयास से अपने गाँव की बंजर और पथरीली भूमि की तस्वीर ही बदल दी है। पूरी कहानी पढ़कर आपको इस बात का अंदाजा हो जाएगा कि प्रदेश में किस तरह पंचायतें अपनी और अपने गाँव की दशा एवं दिशा को बदल रही हैं। 

हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के सुदूर वनांचल बस्तर जिले के बकावंड विकासखण्ड की ग्राम पंचायत भेजरीपदर की। यहाँ लगभग 14 साल पहले पंचायत ने गाँव की 2.64 एकड़ बंजर एवं अनुपयोगी पड़ी भूमि पर महात्मा गांधी नरेगा से काजू वृक्षारोपण किया था, जिसने आज ग्राम पंचायत की दशा और दिशा, दोनों ही बदल दी है। पंचायत के इस प्रयास से गाँव की लगभग ढाई एकड़ की इस बंजर भूमि ने हरित चादर ओढ़ ली है और रोपे गए पौधे आज लगभग 11 फीट के काजू के पेड़ बन चुके हैं। ग्राम पंचायत वर्ष 2013 से हर साल इन पेड़ों से प्राप्त होने वाले काजू के फलों की बिक्री से लगभग 20 हजार रुपये की सालाना आय अर्जित कर रही है। पंचायत के इस छोटे से प्रयास से जहाँ गाँव की बंजर पड़ी भूमि उपयोगी बनी है, वहीं यह अतिक्रमण से भी सुरक्षित होकर ग्राम पंचायत के लिए आय का साधन बन गई है।

काजू उत्पादन के लिए उपयुक्त जलवायु के मद्देनजर जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर भेजरीपदर ग्राम पंचायत के आश्रित गाँव दशापाल में जुलाई, 2006 में ग्राम पंचायत ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से काजू वृक्षारोपण कार्य कराया था। इसके लिए 40 हजार 500 रुपयों की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त हुई थी। पंचायत ने यह कार्य 16 हफ्तों में 49 मनरेगा श्रमिकों की मदद से पूरा किया। पौधरोपण का कार्य कतार विधि से हुए, 1 हजार 385 काजू के पौधे रोपे गए । इस कार्य में 34 मनरेगा परिवारों को 232 मानव दिवस का सीधा रोजगार मिला और उन्हें 13 हजार 696 रुपयों का मजदूरी भुगतान किया गया।

पंचायत के इस प्रयास के बारे में और अधिक जानकारी देते हुए सरपंच श्री रघुनाथ कश्यप बताते हैं कि काजू की फसल को पानी की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती और इसे जानवर भी नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। इसलिए ग्रामीणों के सहयोग से यहाँ महात्मा गांधी नरेगा से काजू का पौधरोपण किया गया। नमी बनाये रखने के दृष्टिकोण से प्रत्येक पौधे के साथ गोलाकार ट्रेंच का निर्माण भी कराया गया था। आज ये पौधे पेड़ बन चुके हैं और फल दे रहे हैं। ग्रामीणजनों की मदद से इस अनुपजाऊ भूमि को काजू की फसल के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

दशापाल गाँव में हुए इस काजू वृक्षारोपण से फैली हरियाली इस बात का सबूत दे रही है कि महात्मा गांधी नरेगा से किया गया पंचायत का यह प्रयास सफल होकर अब फलता-फूलता नजर आ रहा है। 

-0-


एक नजर- 
कार्य का नाम- काजू वृक्षारोपण कार्य-दशापाल, क्षेत्रफल- 2.64 एकड़, पौधों की संख्या- 1385 
ग्रा.पं.- भेजरीपदर, विकासखण्ड- बकावण्ड, जिला- बस्तर, जनसंख्या- 1038 
स्वीकृत राशि- 0.405 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2006-07, कार्यावधि- 1 वर्ष, सृजित मानव दिवस- 232 

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रिपोर्टिंग- श्री पवन कुमार सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत- बस्तर, छत्तीसगढ़। 
तथ्य एवं स्त्रोत- श्री लोकनाथ पटेल, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत- बकावंड, छत्तीसगढ़। 
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Wednesday, 2 September 2020

मनरेगा से बनी मातृफल पौधशाला से किसानों को मिलेंगे कमाई के अवसर

मनरेगा से बनी मातृफल पौधशाला से किसानों को मिलेंगे कमाई के अवसर

0   17 तरह के फलों के उन्नत पौधे तैयार करने पौधशाला.

0   महात्मा गांधी नरेगा और कृषि विज्ञान केंद्र का अभिसरण : किसानों को उन्नत किस्म के 1.69 लाख फलदार पौधों का वितरण.

0   परियोजना से 402 परिवारों को 12 हजार 084 मानव दिवसों का सीधा रोजगार, किसानों की आय बढ़ाने बागवानी विस्तार.


बच्चों की पाठशाला का नाम तो आप रोज सुनते होंगे। आज हम आपको एक पौधशाला से रू-ब-रू करा रहे हैं, जहां 17 तरह के फलदार वृक्षों के उन्नत किस्म के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। अच्छी गुणवत्ता के फलों की ज्यादा पैदावार देने वाले ये पौधे किसानों को वितरित किए जा रहे हैं। पिछले ढाई वर्षों में इस पौधशाला में तैयार एक लाख 69 हजार उन्नत प्रजातियों के फलदार पौधे किसानों को बागवानी विस्तार के लिए दिए गए हैं। कुछ सालों में ये फलदार पौधे किसानों की अतिरिक्त कमाई का मजबूत संसाधन बनेंगे।

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के भलेसर गांव में महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना) और कृषि विज्ञान केंद्र के अभिसरण से 15 एकड़ क्षेत्र में मातृफल पौधशाला (Nursery) संचालित की जा रही है। वहां फलों का बगीचा भी तैयार किया गया है। कृषि विज्ञान केंद्र के  वैज्ञानिकों ने पांच सालों की कड़ी मेहनत से वहां 17 किस्म के फलों के मातृवृक्ष तैयार किए हैं। इन वृक्षों से तैयार पौधे अनुवांशिक और भौतिक रुप से शुद्ध एवं स्वस्थ होने के कारण फलों का अधिक उत्पादन करेंगे। इससे किसानों को आमदनी बढ़ाने का अच्छा मौका मिलेगा। इस परियोजना से पिछले पांच सालों में 402 परिवारों को 12 हजार 084 मानव दिवस का सीधा रोजगार भी मिला है, जिसके लिए उन्हें कुल 20 लाख 18 हजार रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया है। 

कृषि विज्ञान केंद्र, महासमुंद ने पांच साल पहले मनरेगा श्रमिकों के नियोजन से 34 लाख 9 हजार रूपए की लागत वाली इस पौधशाला और फलोद्यान की शुरूआत की थी। महासमुंद विकासखंड के भलेसर में 15 एकड़ भूमि का चिन्हांकन कर अवांछनीय झाड़ियों की सफाई, गड्ढों की भराई और समतलीकरण कर सालों से बंजर पड़ी भूमि को उपयोग के लायक बनाया गया। साल भर बाद इस परियोजना के दूसरे चरण में उद्यानिकी पौधों के रोपण के लिए ले-आउट कर, गड्ढों की खुदाई की गई। इसमें वैज्ञानिक पद्धति अपनाते हुए गड्ढे इस तरह खोदे गए कि दो पौधों के बीच की दूरी के साथ ही दो कतारों के बीच परस्पर पांच मीटर की दूरी रहे। पौधरोपण के लिए एक मीटर लंबाई, एक मीटर चौड़ाई और एक मीटर गहराई के मापदण्ड को अपनाते हुए सभी गड्ढों की खुदाई की गई, जिससे की पौधों में बढ़वार आने के बाद भी उनकी जड़ों को जमीन के अंदर वृद्धि के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। इसके बाद इनमें गोबर खाद, मिट्टी, रेत एवं अन्य उपयुक्त खादों को मिलाकर भराई की गई, जिससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हो सके।

कृषि विज्ञान केन्द्र ने उन्नत पौधशाला तैयार करने के लिए पूरे प्रक्षेत्र को 15 भागों में विभाजित कर अलग-अलग फलदार प्रजाति के पौधों का रोपण किया। अनार, अमरुद, नींबू, सीताफल, बेर, मुनगा, अंजीर, चीकू, आम, जामुन, कटहल, आंवला, बेल, संतरा, करौंदा, लसोडा एवं इमली के पौधों की रोपाई की गई। परियोजना के तीसरे चरण में अगले दो वर्षों में रोपे गए पौधों की नियमित निंदाई-गुड़ाई की गई। पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए इनकी समय-समय पर कटाई-छटाई भी की गई, ताकि पेड़ के हर हिस्से में सूरज की रोशनी अच्छी तरह पहुंच सके। कीट-फफूंद का प्रकोप रोकने के लिए समय-समय पर किटनाशक दवाईयों का छिड़काव भी किया गया।

परियोजना से जुड़े कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सतीश वर्मा ने बताया कि वर्ष 2018-19 से मातृवृक्षों से उन्नत किस्म के पौधे तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है। महात्मा गांधी नरेगा श्रमिकों की सहायता से गूटी दाब, कटिंग, ग्राफ्टिंग और बीज जैसी प्रक्रियाओं से उच्च गुणवत्ता के फलदार पौधे तैयार किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पौधशाला में महात्मा गांधी नरेगा के साथ कृषि विज्ञान केन्द्र के अनावर्ती एवं आवर्ती मद से प्राप्त 14 लाख रुपए का अभिसरण किया गया है। इस राशि से प्रक्षेत्र की सीमेंट के पोल एवं चैन-लिंक द्वारा फेंसिंग, बोर खनन, पम्प स्थापना, बिजली व्यवस्था, गोबर खाद और उर्वरकों की खरीदी के साथ अन्य उद्यानिकी कार्य संपादित करवाए गए हैं।

 

उन्नत किस्म के फलदार पौधे

पौधशाला से पिछले ढाई वर्षों में 18 हजार 210 किसानों को एक लाख 68 हजार 897 पौधे वितरित किए गए हैं। वर्ष 2018-19 में 4,793 किसानों को 62 हजार 700 पौधे, 2019-20 में 13 हजार 072 किसानों को एक लाख एक हजार एक सौ तथा चालू वित्तीय वर्ष में अब तक 345 किसानों को 5097 पौधे दिए गए हैं। जिले के आठ गौठानों में भी यहां तैयार फलदार पौधे लगाए गए हैं। इनमें अमरुद की तीन किस्में इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ-49 व ललित, अनार की भगवा किस्म, नींबू की कोंकण लेमन किस्म, संतरा की कोंकण संतरा किस्म, मुनगा की पी.के.एम.-1 किस्म, अंजीर की पूना सलेक्शन किस्म, करौंदा की हरा-गुलाबी किस्म और आम की इंदिरा नंदिराज, आम्रपाली एवं मल्लिका किस्म के पौधे शामिल हैं।

किसानों की आर्थिक स्थिति में होगा सुधार

वैज्ञानिक डॉ. वर्मा बताते हैं कि मातृवृक्ष परियोजना के सुचारु संचालन के लिए यहाँ रोपे गए फल वृक्षों के कतारों के मध्य अंतरवर्तीय फसलें ली जा रही हैं। इसके अंतर्गत खरीफ के मौसम में तिल, मूंग व उड़द तथा रबी के मौसम में बरबट्टी, टमाटर, बैगन व कद्दू वर्गीय सब्जियों की खेती की जा रही है। इनके विक्रय की राशि से ही इस परियोजना को वर्तमान चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 और आगे के वर्षों में भी बढ़ाया जाएगा। महात्मा गांधी नरेगा और कृषि विज्ञान केन्द्र के अभिसरण से स्थापित यह पौधशाला आने वाले समय में किसानों को फलों की खेती करवाने एवं इसके उन्नत तकनीकों की जानकारी देने के लिए एक आदर्श प्रदर्शन इकाई के रुप में कार्य करेगी। इससे अधिक से अधिक किसानों के लिए फलों की खेती से अपनी आय दुगुनी करने का मार्ग प्रशस्त होगा।


-:एक नजर:-
(क) कार्य का नाम-
1. कृषि विज्ञान केन्द्र (इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय) उद्यानिकी पौधा नर्सरी
स्वीकृत राशि- 7.090 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2015-16, अवधि-5 वर्ष
रोजगार प्राप्त जॉबकार्डधारी परिवार- 152, सृजित मानव दिवस- 2509
मजदूरी भुगतान- 4.190 लाख.

2. कृषि विज्ञान केन्द्र (इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय) के खाली जमीन में वृक्षारोपण कार्य
स्वीकृत राशि- 27.00 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2015-16 , अवधि- 5 वर्ष
रोजगार प्राप्त जॉबकार्डधारी परिवार- 250, सृजित मानव दिवस- 9575
मजदूरी भुगतान- 15.990 लाख.

 (ख) पौधों का वितरण-

स.क्रं.

वित्तीय वर्ष

लाभान्वित किसानों

की संख्या

वितरित पौधों

की संख्या

1.

2018-19

4,793

62,700

2.

2019-20

13,072

1,01,100

3.

2020-21(अगस्त तक)

345

5,097


(ग) फलों की प्रमुख किस्में/प्रजातियाँ-

स.क्रं.

फल

प्रजाति

1.

अमरुद

इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ-49 व ललित

2.

नींबू

कोंकण लेमन

3.

संतरा

कोंकण संतरा

4.

मुनगा

पी.के.एम.-1

5.

अंजीर

पूना सलेक्शन

6.

करौंदा

हरा-गुलाबी

7.

आम

इंदिरा नंदिराज, आम्रपाली मल्लिका

 

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रिपोर्टिंग- श्री प्रथम अग्रवाल, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-महासमुंद, छत्तीसगढ़। 
तथ्य व स्त्रोत- डॉ. सतीश वर्मा, केन्द्र निदेशक एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र, भलेसर, महासमुंद, छत्तीसगढ़। 
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, छत्तीसगढ़।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

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