Wednesday, 2 September 2020

मनरेगा से बनी मातृफल पौधशाला से किसानों को मिलेंगे कमाई के अवसर

मनरेगा से बनी मातृफल पौधशाला से किसानों को मिलेंगे कमाई के अवसर

0   17 तरह के फलों के उन्नत पौधे तैयार करने पौधशाला.

0   महात्मा गांधी नरेगा और कृषि विज्ञान केंद्र का अभिसरण : किसानों को उन्नत किस्म के 1.69 लाख फलदार पौधों का वितरण.

0   परियोजना से 402 परिवारों को 12 हजार 084 मानव दिवसों का सीधा रोजगार, किसानों की आय बढ़ाने बागवानी विस्तार.


बच्चों की पाठशाला का नाम तो आप रोज सुनते होंगे। आज हम आपको एक पौधशाला से रू-ब-रू करा रहे हैं, जहां 17 तरह के फलदार वृक्षों के उन्नत किस्म के पौधे तैयार किए जा रहे हैं। अच्छी गुणवत्ता के फलों की ज्यादा पैदावार देने वाले ये पौधे किसानों को वितरित किए जा रहे हैं। पिछले ढाई वर्षों में इस पौधशाला में तैयार एक लाख 69 हजार उन्नत प्रजातियों के फलदार पौधे किसानों को बागवानी विस्तार के लिए दिए गए हैं। कुछ सालों में ये फलदार पौधे किसानों की अतिरिक्त कमाई का मजबूत संसाधन बनेंगे।

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के भलेसर गांव में महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना) और कृषि विज्ञान केंद्र के अभिसरण से 15 एकड़ क्षेत्र में मातृफल पौधशाला (Nursery) संचालित की जा रही है। वहां फलों का बगीचा भी तैयार किया गया है। कृषि विज्ञान केंद्र के  वैज्ञानिकों ने पांच सालों की कड़ी मेहनत से वहां 17 किस्म के फलों के मातृवृक्ष तैयार किए हैं। इन वृक्षों से तैयार पौधे अनुवांशिक और भौतिक रुप से शुद्ध एवं स्वस्थ होने के कारण फलों का अधिक उत्पादन करेंगे। इससे किसानों को आमदनी बढ़ाने का अच्छा मौका मिलेगा। इस परियोजना से पिछले पांच सालों में 402 परिवारों को 12 हजार 084 मानव दिवस का सीधा रोजगार भी मिला है, जिसके लिए उन्हें कुल 20 लाख 18 हजार रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया है। 

कृषि विज्ञान केंद्र, महासमुंद ने पांच साल पहले मनरेगा श्रमिकों के नियोजन से 34 लाख 9 हजार रूपए की लागत वाली इस पौधशाला और फलोद्यान की शुरूआत की थी। महासमुंद विकासखंड के भलेसर में 15 एकड़ भूमि का चिन्हांकन कर अवांछनीय झाड़ियों की सफाई, गड्ढों की भराई और समतलीकरण कर सालों से बंजर पड़ी भूमि को उपयोग के लायक बनाया गया। साल भर बाद इस परियोजना के दूसरे चरण में उद्यानिकी पौधों के रोपण के लिए ले-आउट कर, गड्ढों की खुदाई की गई। इसमें वैज्ञानिक पद्धति अपनाते हुए गड्ढे इस तरह खोदे गए कि दो पौधों के बीच की दूरी के साथ ही दो कतारों के बीच परस्पर पांच मीटर की दूरी रहे। पौधरोपण के लिए एक मीटर लंबाई, एक मीटर चौड़ाई और एक मीटर गहराई के मापदण्ड को अपनाते हुए सभी गड्ढों की खुदाई की गई, जिससे की पौधों में बढ़वार आने के बाद भी उनकी जड़ों को जमीन के अंदर वृद्धि के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। इसके बाद इनमें गोबर खाद, मिट्टी, रेत एवं अन्य उपयुक्त खादों को मिलाकर भराई की गई, जिससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध हो सके।

कृषि विज्ञान केन्द्र ने उन्नत पौधशाला तैयार करने के लिए पूरे प्रक्षेत्र को 15 भागों में विभाजित कर अलग-अलग फलदार प्रजाति के पौधों का रोपण किया। अनार, अमरुद, नींबू, सीताफल, बेर, मुनगा, अंजीर, चीकू, आम, जामुन, कटहल, आंवला, बेल, संतरा, करौंदा, लसोडा एवं इमली के पौधों की रोपाई की गई। परियोजना के तीसरे चरण में अगले दो वर्षों में रोपे गए पौधों की नियमित निंदाई-गुड़ाई की गई। पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए इनकी समय-समय पर कटाई-छटाई भी की गई, ताकि पेड़ के हर हिस्से में सूरज की रोशनी अच्छी तरह पहुंच सके। कीट-फफूंद का प्रकोप रोकने के लिए समय-समय पर किटनाशक दवाईयों का छिड़काव भी किया गया।

परियोजना से जुड़े कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सतीश वर्मा ने बताया कि वर्ष 2018-19 से मातृवृक्षों से उन्नत किस्म के पौधे तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है। महात्मा गांधी नरेगा श्रमिकों की सहायता से गूटी दाब, कटिंग, ग्राफ्टिंग और बीज जैसी प्रक्रियाओं से उच्च गुणवत्ता के फलदार पौधे तैयार किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पौधशाला में महात्मा गांधी नरेगा के साथ कृषि विज्ञान केन्द्र के अनावर्ती एवं आवर्ती मद से प्राप्त 14 लाख रुपए का अभिसरण किया गया है। इस राशि से प्रक्षेत्र की सीमेंट के पोल एवं चैन-लिंक द्वारा फेंसिंग, बोर खनन, पम्प स्थापना, बिजली व्यवस्था, गोबर खाद और उर्वरकों की खरीदी के साथ अन्य उद्यानिकी कार्य संपादित करवाए गए हैं।

 

उन्नत किस्म के फलदार पौधे

पौधशाला से पिछले ढाई वर्षों में 18 हजार 210 किसानों को एक लाख 68 हजार 897 पौधे वितरित किए गए हैं। वर्ष 2018-19 में 4,793 किसानों को 62 हजार 700 पौधे, 2019-20 में 13 हजार 072 किसानों को एक लाख एक हजार एक सौ तथा चालू वित्तीय वर्ष में अब तक 345 किसानों को 5097 पौधे दिए गए हैं। जिले के आठ गौठानों में भी यहां तैयार फलदार पौधे लगाए गए हैं। इनमें अमरुद की तीन किस्में इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ-49 व ललित, अनार की भगवा किस्म, नींबू की कोंकण लेमन किस्म, संतरा की कोंकण संतरा किस्म, मुनगा की पी.के.एम.-1 किस्म, अंजीर की पूना सलेक्शन किस्म, करौंदा की हरा-गुलाबी किस्म और आम की इंदिरा नंदिराज, आम्रपाली एवं मल्लिका किस्म के पौधे शामिल हैं।

किसानों की आर्थिक स्थिति में होगा सुधार

वैज्ञानिक डॉ. वर्मा बताते हैं कि मातृवृक्ष परियोजना के सुचारु संचालन के लिए यहाँ रोपे गए फल वृक्षों के कतारों के मध्य अंतरवर्तीय फसलें ली जा रही हैं। इसके अंतर्गत खरीफ के मौसम में तिल, मूंग व उड़द तथा रबी के मौसम में बरबट्टी, टमाटर, बैगन व कद्दू वर्गीय सब्जियों की खेती की जा रही है। इनके विक्रय की राशि से ही इस परियोजना को वर्तमान चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 और आगे के वर्षों में भी बढ़ाया जाएगा। महात्मा गांधी नरेगा और कृषि विज्ञान केन्द्र के अभिसरण से स्थापित यह पौधशाला आने वाले समय में किसानों को फलों की खेती करवाने एवं इसके उन्नत तकनीकों की जानकारी देने के लिए एक आदर्श प्रदर्शन इकाई के रुप में कार्य करेगी। इससे अधिक से अधिक किसानों के लिए फलों की खेती से अपनी आय दुगुनी करने का मार्ग प्रशस्त होगा।


-:एक नजर:-
(क) कार्य का नाम-
1. कृषि विज्ञान केन्द्र (इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय) उद्यानिकी पौधा नर्सरी
स्वीकृत राशि- 7.090 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2015-16, अवधि-5 वर्ष
रोजगार प्राप्त जॉबकार्डधारी परिवार- 152, सृजित मानव दिवस- 2509
मजदूरी भुगतान- 4.190 लाख.

2. कृषि विज्ञान केन्द्र (इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय) के खाली जमीन में वृक्षारोपण कार्य
स्वीकृत राशि- 27.00 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2015-16 , अवधि- 5 वर्ष
रोजगार प्राप्त जॉबकार्डधारी परिवार- 250, सृजित मानव दिवस- 9575
मजदूरी भुगतान- 15.990 लाख.

 (ख) पौधों का वितरण-

स.क्रं.

वित्तीय वर्ष

लाभान्वित किसानों

की संख्या

वितरित पौधों

की संख्या

1.

2018-19

4,793

62,700

2.

2019-20

13,072

1,01,100

3.

2020-21(अगस्त तक)

345

5,097


(ग) फलों की प्रमुख किस्में/प्रजातियाँ-

स.क्रं.

फल

प्रजाति

1.

अमरुद

इलाहाबादी सफेदा, लखनऊ-49 व ललित

2.

नींबू

कोंकण लेमन

3.

संतरा

कोंकण संतरा

4.

मुनगा

पी.के.एम.-1

5.

अंजीर

पूना सलेक्शन

6.

करौंदा

हरा-गुलाबी

7.

आम

इंदिरा नंदिराज, आम्रपाली मल्लिका

 

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रिपोर्टिंग- श्री प्रथम अग्रवाल, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-महासमुंद, छत्तीसगढ़। 
तथ्य व स्त्रोत- डॉ. सतीश वर्मा, केन्द्र निदेशक एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र, भलेसर, महासमुंद, छत्तीसगढ़। 
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
संपादन- श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, छत्तीसगढ़।
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