काजू वृक्षारोपण से बदली गाँव और पंचायत की दशा एवं दिशा
हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के सुदूर वनांचल बस्तर जिले के बकावंड विकासखण्ड की ग्राम पंचायत भेजरीपदर की। यहाँ लगभग 14 साल पहले पंचायत ने गाँव की 2.64 एकड़ बंजर एवं अनुपयोगी पड़ी भूमि पर महात्मा गांधी नरेगा से काजू वृक्षारोपण किया था, जिसने आज ग्राम पंचायत की दशा और दिशा, दोनों ही बदल दी है। पंचायत के इस प्रयास से गाँव की लगभग ढाई एकड़ की इस बंजर भूमि ने हरित चादर ओढ़ ली है और रोपे गए पौधे आज लगभग 11 फीट के काजू के पेड़ बन चुके हैं। ग्राम पंचायत वर्ष 2013 से हर साल इन पेड़ों से प्राप्त होने वाले काजू के फलों की बिक्री से लगभग 20 हजार रुपये की सालाना आय अर्जित कर रही है। पंचायत के इस छोटे से प्रयास से जहाँ गाँव की बंजर पड़ी भूमि उपयोगी बनी है, वहीं यह अतिक्रमण से भी सुरक्षित होकर ग्राम पंचायत के लिए आय का साधन बन गई है।
काजू उत्पादन के लिए उपयुक्त जलवायु के मद्देनजर जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर भेजरीपदर ग्राम पंचायत के आश्रित गाँव दशापाल में जुलाई, 2006 में ग्राम पंचायत ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से काजू वृक्षारोपण कार्य कराया था। इसके लिए 40 हजार 500 रुपयों की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त हुई थी। पंचायत ने यह कार्य 16 हफ्तों में 49 मनरेगा श्रमिकों की मदद से पूरा किया। पौधरोपण का कार्य कतार विधि से हुए, 1 हजार 385 काजू के पौधे रोपे गए । इस कार्य में 34 मनरेगा परिवारों को 232 मानव दिवस का सीधा रोजगार मिला और उन्हें 13 हजार 696 रुपयों का मजदूरी भुगतान किया गया।
पंचायत के इस प्रयास के बारे में और अधिक जानकारी देते हुए सरपंच श्री रघुनाथ कश्यप बताते हैं कि काजू की फसल को पानी की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती और इसे जानवर भी नुकसान नहीं पहुँचाते हैं। इसलिए ग्रामीणों के सहयोग से यहाँ महात्मा गांधी नरेगा से काजू का पौधरोपण किया गया। नमी बनाये रखने के दृष्टिकोण से प्रत्येक पौधे के साथ गोलाकार ट्रेंच का निर्माण भी कराया गया था। आज ये पौधे पेड़ बन चुके हैं और फल दे रहे हैं। ग्रामीणजनों की मदद से इस अनुपजाऊ भूमि को काजू की फसल के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
दशापाल गाँव में हुए इस काजू वृक्षारोपण से फैली हरियाली इस बात का सबूत दे रही है कि महात्मा गांधी नरेगा से किया गया पंचायत का यह प्रयास सफल होकर अब फलता-फूलता नजर आ रहा है।