फलदार पौधों के साथ लेमन ग्रास व शकरकंद की अंतरवर्ती खेती से कमाए लाखों रुपए.
पड़त भूमि विकास कार्यक्रम के अंतर्गत फलदार पौधों की मातृ नर्सरी की स्थापना से जिले के किसानों को बागवानी विस्तार के लिए मिलेंगे उन्नत पौधे.
सामूहिक प्रयास से बदलाव लाने की इस कहानी की शुरुआत होती है गाँव के साधारण से पाँच किसानों की आपसी बातचीत और आगे बढ़ने की ललक से। इन किसानों में श्री परसराम भैना, श्री सोनसाय पण्डो, श्री हरिदास वैष्णव, श्री संतोष कुमार यादव और मोहम्मद सत्तार ने आपस में बातचीत करके बड़े स्तर पर खेती की एक कार्ययोजना बनाई। इसमें बस एक ही समस्या थी कि इनके पास कहीं पर भी खेती लायक बड़ी जोत यानि खेती भूमि उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में सभी ने मिलकर अपनी कुछ भूमि के साथ गाँव के किनारे छोटी-मोटी झाड़ियों के बीच की पड़त भूमि को मिलाकर, उसे खेती लायक बनाने का विचार किया और परस्पर सहमति से उसमें टमाटर लगाने का निर्णय लिया। जब यहाँ टमाटर की खेती की गई, तब पौधों में फल आने के पहले ही लगातार बारिश और प्रतिकूल मौसम की मार ने पूरी की पूरी फसल को चौपट कर दिया।
इस संबंध में किसान श्री हरिदास वैष्णव बताते हैं कि टमाटर की फसल को बचाने के लिए बहुत उपाय किए गए थे, किन्तु नुकसान को नहीं रोक सके। वहीं एक अन्य किसान श्री परसराम भैना, जो कि इस समूह के सबसे कमजोर किसान थे, कहते हैं कि- “मेरे पास चार एकड़ भूमि है, परंतु असिंचित होने के कारण बारिश भरोसे परिवार के खाने भर को अनाज बमुश्किल हो पाता था। पिछले साल बारिश से धान की अच्छी पैदावार हुई थी और कीमत भी अच्छी मिली थी, तो लगभग 25 हजार रुपए जुड़ गए। जब दोस्तों ने टमाटर की खेती की सलाह दी, तो यह जमा पूँजी उसमें लगा दी। उसके बाद मौसम खराब होने से टमाटर की फसल बर्बाद हो गई और मेरी कमर पूरी तरह टूट गई।”
हौसला पस्त हो चुके इन किसानों के लिए ग्राम पंचायत एवं जिले का कृषि विज्ञान केन्द्र मददगार बनकर सामने आये और इन्हें नए सिरे से आजीविका शुरु करने का विकल्प दिया। पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) के तहत बारह एकड़ भूमि पर सामूहिक फलोद्यान और अंतरवर्ती खेती के लिए 11 लाख 82 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई और कृषि विज्ञान केन्द्र को कार्य एजेंसी बनाया गया।
अब कृषि विज्ञान केन्द्र ने सबसे पहले इन किसानों का एक समूह बनाया और गाँव के मनरेगा श्रमिकों के नियोजन से परियोजना में शामिल भूमि को समतलीकरण कर खेती लायक बनाया। फिर कार्य-योजना के अनुसार, यहाँ उच्च गुणवत्ता वाले फलदार पौधे वैज्ञानिक तरीके से लगवाए। इनका रोपण इस तरह से किया गया कि सभी पौधे उच्च उत्पादकता के साथ आने वाले वर्षों में मातृ-वाटिका की तरह अच्छे गुणवत्तायुक्त कलमें भी प्रदान करेंगे। यहाँ 285 आम के पौधों के साथ रोपे गए कुल 862 पौधों में 85 अनार, 190 कटहल, 105 अमरुद और 197 सीताफल के पौधे हैं। अच्छी देखभाल के कारण यहाँ शत-प्रतिशत पौधों की जीवितता बनी हुई है। केन्द्र के विज्ञानिकों के अनुसार आने वाले वर्षों में यहाँ से प्रतिवर्ष 20 से 25 हजार नए पौधे तैयार किए जा सकेंगे। इससे जिले में बागवानी विस्तार हेतु उच्च गुणवत्ता के निरोगी पौधों की उपलब्धता बनी रहेगी और किसानों को आमदनी के विकल्प मिलेंगे। इस कार्ययोजना की शुरुआत में ही सफलता मिलने लगी थी। पौधों की तैयारी के पूर्व ही इस फलोद्यान से निकलने वाली नई पौध के लिए जिले के उद्यान विभाग से करार हो चुका है, जिसके अनुसार विभाग प्रतिवर्ष यहाँ से निर्धारित दर पर पौधे खरीदेगा। महात्मा गांधी नरेगा मद से विकसित हो रहे इस फलोद्यान की घेराबंदी में किनारों पर 250 गढ्ढों में शकरकंद की कलमें लगाई गई थीं। यहाँ फलदार पौधरोपण के बाद अंतरवर्ती फसल के रुप में लेमनग्रास लगाया गया है। इनकी नियमित सिंचाई के लिए पास में ही बहने वाली नदी से पंप लगाकर पानी लिया जा रहा है और टपक पद्धति से सिंचाई की जा रही है। समूह के सदस्य श्री सोनसाय पण्डो की लगभग दो एकड़ भूमि इस फलोद्यान में शामिल है। वह बतलाते हैं कि यहाँ सिंचाई की लिए सोलर पम्प लगाने की योजना बनाई गई थी, जिसकी क्रेडा विभाग से अनुमति भी मिल चुकी है। लॉकडाउन के दौरान इस कार्य से जहाँ गाँव में पर्याप्त संख्या में रोजगार के अवसर सृजित हुए, वहीं समूह के किसानों को भी रोजगार प्राप्त हुआ। समूह के कृषक श्री परसराम और श्री हीरादास ने बताया कि इस परियोजना के शुरुआती छः माह में ही उन्हें इसका लाभ मिलना शुरु हो गया था। यहाँ तैयार की गई लेमनग्रास की 74 क्विंटल पत्तियों को काटकर बेचने से उन्हें अगस्त माह में 74 हजार रुपए से ज्यादा का लाभ हुआ था। इसके साथ ही लेमन ग्रास की एक लाख 8 हजार नग स्लिप्स की बिक्री से उन्हें 81 हजार रुपए की आमदनी भी हुई थी। यहाँ लगाई गई शकरकंद की 65,300 नग वाईन कटिंग(डंठल) का भी विक्रय किया गया, जिससे समूह को एक लाख 14 हजार 275 रुपये की आय हुई। अब कुछ ही दिनों में शकरकंद की फसल भी निकालने लायक हो जाएगी, जिसका लगभग दस क्विंटल उत्पादन का अनुमान है, जिसकी अनुमानित कीमत 35 हजार के आस-पास हो सकती है। कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों की देख-रेख में यहाँ शतावर के भी एक सौ पौधे लगाए गए हैं, जो अभी तैयार हो रहे हैं। इन किसानों ने आगे बताया कि यहाँ के लेमनग्रास से निकलने वाले तेल का भी पैसा इनके खातों में आने वाला है। इससे और अधिक लाभ होगा। परियोजना के प्रारंभिक चरण में ही इन पाँचों किसानों में से प्रत्येक के खाते में 33 हजार 775 रुपए आ चुके हैं। वहीं महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी की राशि मिलने से अब इनके समक्ष पैसों का संकट कम हो गया है। सभी किसान कहते हैं कि फलोद्यान में लेमनग्रास और शकरकंद की अंतरवर्ती खेती ने जीवन में बदलाव ला दिया है। वे हँसते हुए कहते हैं कि सालभर मेहनत से जितना नहीं मिलता था, वह इस खेती से छःमाह में ही मिल गया है। अब जब तक हिम्मत है, तब तक इस खेती को मन लगाकर करेंगे।विशेषज्ञों ने आगे बताया कि लेमनग्रास खेती का फायदा यह है कि इसे एक बार लगाकर प्रत्येक दो से ढाई माह के बीच 4 से 5 साल तक इसकी कटाई की जा सकती है। जिले में किसानों का उत्पादक समूह बनाकर उसके माध्यम से लेमनग्रास से तेल निकालने की यूनिट लगाई गई है, जिससे कच्चे माल को एसेंसियल ऑइल के रुप में प्राप्त किया जा रहा है। लेमनग्रास के सुगंधित तेल से हस्त निर्मित साबुन व अगरबत्ती निर्माण कार्य का तकनीकी प्रशिक्षण भी इन कृषकों को दिया गया है, ताकि वे इनका निर्माण कर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकें। वहीं यहाँ रोपित फलदार पौधों से लेयरिंग, कटिंग, ग्राफ्टिंग व बीज द्वारा लगभग 20-22 हजार उच्च गुणवत्ता की नई पौध तैयार की जावेगी, जिससे इन किसानों के समूह को लगभग दो लाख रुपए की अतिरिक्त आय अनुमानित है।
एक नजरः-
कार्य का नाम- सामूहिक फलदार पौधरोपण अंतरवर्ती लेमनग्रास/शकरकंद की खेती,
ग्रा.पं.- लाई, विकासखण्ड- मनेन्द्रगढ़, जिला- कोरिया, पिनकोड- 497442
कार्य प्रारंभ तिथि- 04.05.2020, कार्य स्थिति- प्रगतिरत, परियोजना क्षेत्र- 12 एकड़,
स्वीकृत राशि- 11.28 लाख, स्वीकृत वर्ष-2020-21, सृजित मानव दिवस- 1546,
रोपित पौधों की प्रजातिवार संख्या- आम (285), अनार (85), कटहल (190), अमरुद (105) एवं सीताफल (197)
रोपित लेमन ग्रास की प्रजाति- सिम शिखर व कावेरी
रोपित शकरकंद की प्रजाति- इंदिरा मधुर, इंदिरा नंदनी, इंदिरा नारंगी, श्री भद्रा व श्री रतना
नियोजित मनरेगा परिवारों की संख्या- 20
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 23◦18'01.4″ एवं Longitude: E 82◦18'49.0″
क्रं.
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किसानों
का नाम
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वर्ग
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रोजगार
दिवसों की संख्या
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मजदूरी
राशि
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1.
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श्री परसराम भैना
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अनुसूचित जनजाति
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24
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4560.00
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2.
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श्री सोनसाय पण्डो
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विशेष पिछड़ी जनजाति
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6
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1140.00
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3.
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श्री हरिदास वैष्णव
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अन्य पिछड़ा वर्ग
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44
|
8360.00
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4.
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श्री संतोष कुमार यादव
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अन्य पिछड़ा वर्ग
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36
|
6840.00
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5.
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श्री मोहम्मद सत्तार
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अन्य पिछड़ा वर्ग
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12
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2280.00
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तथ्य एवं स्त्रोत-
1. श्री आर.एस. राजपूत, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं केन्द्र प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र बैकुण्ठपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7089554290
2. डॉ. केशव चंद्र राजहंस, वैज्ञानिक (उद्यानिकी), कृषि विज्ञान केन्द्र बैकुण्ठपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7415302210
3. श्री बुधेन्द्र नाथ, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-लाई, वि.ख.-मनेन्द्रगढ़, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-8319576988
संपादन-
2. श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, नवा रायपुर अटल नगर, छत्तीसगढ़।