Wednesday, 23 December 2020

मनरेगा से मिले संबल और सामूहिक प्रयास ने बदली पाँच किसानों की दशा

फलदार पौधों के साथ लेमन ग्रास व शकरकंद की अंतरवर्ती खेती से कमाए लाखों रुपए.

पड़त भूमि विकास कार्यक्रम के अंतर्गत फलदार पौधों की मातृ नर्सरी की स्थापना से जिले के किसानों को बागवानी विस्तार के लिए मिलेंगे उन्नत पौधे.

रायपुर। कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत लाई के कुछ किसानों ने इस साल मानसून पूर्व सामूहिक खेती का एक प्रयास करने का विचार किया। सबने मिलकर अपने परिवार की बचत रकम लगाकर गाँव के किनारे से बहने वाली हसदेव नदी के किनारे की पड़त भूमि को विकसित कर खेती करने के लायक बनाया। जब भूमि खेती के लायक हुई, तो सबने बड़े उत्साह से टमाटर की फसल लगाई। पौधे बढ़ते, इससे पहले ही मौसम की मार हुई और पूरी फसल नष्ट हो गई। इस सामूहिक खेती के असफल प्रयास में इन किसानों की जमा पूँजी पूरी तरह बर्बाद हो गई। इस पूँजी के एक झटके में बर्बाद होने से इनके सामने विकट समस्या आ खड़ी हुई। अब इनके पास न तो खेती का कोई विकल्प था और न ही कोई बचत पूँजी, जिसके सहारे वे दुबारा कोई प्रयास कर सकें। ऐसे में इन किसानों का संबल बना महात्मा गांधी नरेगा। इस योजना के अंतर्गत इन्हें सामूहिक फलदार पौधरोपण अंतरवर्ती लेमनग्रास/शकरकंद की खेती कार्य स्वीकृत किया गया, जिससे इन्हें अपने कर्जों से मुक्ति में मदद मिली, वहीं वे अब लाभ लेने की स्थिति में आ गये हैं। इस कार्य में फलदार पौधों की स्थापित मातृ नर्सरी से इन्हें प्रथम छःमाही में ही लगभग दो लाख रुपए का लाभ हो चुका है। इन किसानों ने अपनी आर्थिक प्रगति से संबल पाकर जल्द ही एक ट्रेक्टर खरीदने की योजना बनाई है। 

सामूहिक प्रयास से बदलाव लाने की इस कहानी की शुरुआत होती है गाँव के साधारण से पाँच किसानों की आपसी बातचीत और आगे बढ़ने की ललक से। इन किसानों में श्री परसराम भैना, श्री सोनसाय पण्डो, श्री हरिदास वैष्णव, श्री संतोष कुमार यादव और मोहम्मद सत्तार ने आपस में बातचीत करके बड़े स्तर पर खेती की एक कार्ययोजना बनाई। इसमें बस एक ही समस्या थी कि इनके पास कहीं पर भी खेती लायक बड़ी जोत यानि खेती भूमि उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में सभी ने मिलकर अपनी कुछ भूमि के साथ गाँव के किनारे छोटी-मोटी झाड़ियों के बीच की पड़त भूमि को मिलाकर, उसे खेती लायक बनाने का विचार किया और परस्पर सहमति से उसमें टमाटर लगाने का निर्णय लिया। जब यहाँ टमाटर की खेती की गई, तब पौधों में फल आने के पहले ही लगातार बारिश और प्रतिकूल मौसम की मार ने पूरी की पूरी फसल को चौपट कर दिया। 

इस संबंध में किसान श्री हरिदास वैष्णव बताते हैं कि टमाटर की फसल को बचाने के लिए बहुत उपाय किए गए थे, किन्तु नुकसान को नहीं रोक सके। वहीं एक अन्य किसान श्री परसराम भैना, जो कि इस समूह के सबसे कमजोर किसान थे, कहते हैं कि- “मेरे पास चार एकड़ भूमि है, परंतु असिंचित होने के कारण बारिश भरोसे परिवार के खाने भर को अनाज बमुश्किल हो पाता था। पिछले साल बारिश से धान की अच्छी पैदावार हुई थी और कीमत भी अच्छी मिली थी, तो लगभग 25 हजार रुपए जुड़ गए। जब दोस्तों ने टमाटर की खेती की सलाह दी, तो यह जमा पूँजी उसमें लगा दी। उसके बाद मौसम खराब होने से टमाटर की फसल बर्बाद हो गई और मेरी कमर पूरी तरह टूट गई।” 

हौसला पस्त हो चुके इन किसानों के लिए ग्राम पंचायत एवं जिले का कृषि विज्ञान केन्द्र मददगार बनकर सामने आये और इन्हें नए सिरे से आजीविका शुरु करने का विकल्प दिया। पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) के तहत बारह एकड़ भूमि पर सामूहिक फलोद्यान और अंतरवर्ती खेती के लिए 11 लाख 82 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई और कृषि विज्ञान केन्द्र को कार्य एजेंसी बनाया गया। 

अब कृषि विज्ञान केन्द्र ने सबसे पहले इन किसानों का एक समूह बनाया और गाँव के मनरेगा श्रमिकों के नियोजन से परियोजना में शामिल भूमि को समतलीकरण कर खेती लायक बनाया। फिर कार्य-योजना के अनुसार, यहाँ उच्च गुणवत्ता वाले फलदार पौधे वैज्ञानिक तरीके से लगवाए। इनका रोपण इस तरह से किया गया कि सभी पौधे उच्च उत्पादकता के साथ आने वाले वर्षों में मातृ-वाटिका की तरह अच्छे गुणवत्तायुक्त कलमें भी प्रदान करेंगे। यहाँ 285 आम के पौधों के साथ रोपे गए कुल 862 पौधों में 85 अनार, 190 कटहल, 105 अमरुद और 197 सीताफल के पौधे हैं। अच्छी देखभाल के कारण यहाँ शत-प्रतिशत पौधों की जीवितता बनी हुई है। केन्द्र के विज्ञानिकों के अनुसार आने वाले वर्षों में यहाँ से प्रतिवर्ष 20 से 25 हजार नए पौधे तैयार किए जा सकेंगे। इससे जिले में बागवानी विस्तार हेतु उच्च गुणवत्ता के निरोगी पौधों की उपलब्धता बनी रहेगी और किसानों को आमदनी के विकल्प मिलेंगे। इस कार्ययोजना की शुरुआत में ही सफलता मिलने लगी थी। पौधों की तैयारी के पूर्व ही इस फलोद्यान से निकलने वाली नई पौध के लिए जिले के उद्यान विभाग से करार हो चुका है, जिसके अनुसार विभाग प्रतिवर्ष यहाँ से निर्धारित दर पर पौधे खरीदेगा। 

महात्मा गांधी नरेगा मद से विकसित हो रहे इस फलोद्यान की घेराबंदी में किनारों पर 250 गढ्ढों में शकरकंद की कलमें लगाई गई थीं। यहाँ फलदार पौधरोपण के बाद अंतरवर्ती फसल के रुप में लेमनग्रास लगाया गया है। इनकी नियमित सिंचाई के लिए पास में ही बहने वाली नदी से पंप लगाकर पानी लिया जा रहा है और टपक पद्धति से सिंचाई की जा रही है। समूह के सदस्य श्री सोनसाय पण्डो की लगभग दो एकड़ भूमि इस फलोद्यान में शामिल है। वह बतलाते हैं कि यहाँ सिंचाई की लिए सोलर पम्प लगाने की योजना बनाई गई थी, जिसकी क्रेडा विभाग से अनुमति भी मिल चुकी है। 

लॉकडाउन के दौरान इस कार्य से जहाँ गाँव में पर्याप्त संख्या में रोजगार के अवसर सृजित हुए, वहीं समूह के किसानों को भी रोजगार प्राप्त हुआ। समूह के कृषक श्री परसराम और श्री हीरादास ने बताया कि इस परियोजना के शुरुआती छः माह में ही उन्हें इसका लाभ मिलना शुरु हो गया था। यहाँ तैयार की गई लेमनग्रास की 74 क्विंटल पत्तियों को काटकर बेचने से उन्हें अगस्त माह में 74 हजार रुपए से ज्यादा का लाभ हुआ था। इसके साथ ही लेमन ग्रास की एक लाख 8 हजार नग स्लिप्स की बिक्री से उन्हें 81 हजार रुपए की आमदनी भी हुई थी। यहाँ लगाई गई शकरकंद की 65,300 नग वाईन कटिंग(डंठल) का भी विक्रय किया गया, जिससे समूह को एक लाख 14 हजार 275 रुपये की आय हुई। अब कुछ ही दिनों में शकरकंद की फसल भी निकालने लायक हो जाएगी, जिसका लगभग दस क्विंटल उत्पादन का अनुमान है, जिसकी अनुमानित कीमत 35 हजार के आस-पास हो सकती है। कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों की देख-रेख में यहाँ शतावर के भी एक सौ पौधे लगाए गए हैं, जो अभी तैयार हो रहे हैं। इन किसानों ने आगे बताया कि यहाँ के लेमनग्रास से निकलने वाले तेल का भी पैसा इनके खातों में आने वाला है। इससे और अधिक लाभ होगा। 

परियोजना के प्रारंभिक चरण में ही इन पाँचों किसानों में से प्रत्येक के खाते में 33 हजार 775 रुपए आ चुके हैं। वहीं महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी की राशि मिलने से अब इनके समक्ष पैसों का संकट कम हो गया है। सभी किसान कहते हैं कि फलोद्यान में लेमनग्रास और शकरकंद की अंतरवर्ती खेती ने जीवन में बदलाव ला दिया है। वे हँसते हुए कहते हैं कि सालभर मेहनत से जितना नहीं मिलता था, वह इस खेती से छःमाह में ही मिल गया है। अब जब तक हिम्मत है, तब तक इस खेती को मन लगाकर करेंगे। 

एक्सपर्ट व्यू 
इस परियोजना के टेक्नीकल एक्सपर्ट एवं कृषि विज्ञान केन्द्र कोरिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री आर.एस.राजपूत एवं वैज्ञानिक (उद्यानिकी) श्री केशव चंद्र राजहंस ने बताया कि महात्मा गांधी नरेगा के अनुमेय कार्य पड़त भूमि विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत यहाँ उन्नत किस्म फलदार पौध रोपण सह अतंरवर्तीय फसल के रूप में लेमनग्रास (कावेरी प्रजाति), शकरकंद (इंदिरा नारंगी, इंदिरा मधुर, इंदिरा नंदनी, श्रीभ्रदा, श्री रत्ना प्रजाति) व औषधीय पौध सतावर का उत्पादन लिया जा रहा है। 

विशेषज्ञों ने आगे बताया कि लेमनग्रास खेती का फायदा यह है कि इसे एक बार लगाकर प्रत्येक दो से ढाई माह के बीच 4 से 5 साल तक इसकी कटाई की जा सकती है। जिले में किसानों का उत्पादक समूह बनाकर उसके माध्यम से लेमनग्रास से तेल निकालने की यूनिट लगाई गई है, जिससे कच्चे माल को एसेंसियल ऑइल के रुप में प्राप्त किया जा रहा है। लेमनग्रास के सुगंधित तेल से हस्त निर्मित साबुन व अगरबत्ती निर्माण कार्य का तकनीकी प्रशिक्षण भी इन कृषकों को दिया गया है, ताकि वे इनका निर्माण कर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकें। वहीं यहाँ रोपित फलदार पौधों से लेयरिंग, कटिंग, ग्राफ्टिंग व बीज द्वारा लगभग 20-22 हजार उच्च गुणवत्ता की नई पौध तैयार की जावेगी, जिससे इन किसानों के समूह को लगभग दो लाख रुपए की अतिरिक्त आय अनुमानित है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- सामूहिक फलदार पौधरोपण अंतरवर्ती लेमनग्रास/शकरकंद की खेती,
ग्रा.पं.- लाई, विकासखण्ड- मनेन्द्रगढ़, जिला- कोरिया, पिनकोड- 497442
कार्य प्रारंभ तिथि- 04.05.2020, कार्य स्थिति- प्रगतिरत, परियोजना क्षेत्र- 12 एकड़,
स्वीकृत राशि- 11.28 लाख, स्वीकृत वर्ष-2020-21, सृजित मानव दिवस- 1546,
रोपित पौधों की प्रजातिवार संख्या- आम (285), अनार (85), कटहल (190), अमरुद (105) एवं सीताफल (197)
रोपित लेमन ग्रास की प्रजाति- सिम शिखर व कावेरी
रोपित शकरकंद की प्रजाति- इंदिरा मधुर, इंदिरा नंदनी, इंदिरा नारंगी, श्री भद्रा व श्री रतना
नियोजित मनरेगा परिवारों की संख्या- 20
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 23◦18'01.4″ एवं Longitude: E 82◦18'49.0″
 
समूह के किसानों को वित्तीय वर्षः2020-21 में महात्मा गांधी नरेगा से प्राप्त रोजगारः
क्रं.
किसानों का नाम
वर्ग
रोजगार दिवसों की संख्या
मजदूरी राशि
1.
श्री परसराम भैना
अनुसूचित जनजाति
24
4560.00
2.
श्री सोनसाय पण्डो
विशेष पिछड़ी जनजाति
6
1140.00
3.
श्री हरिदास वैष्णव
अन्य पिछड़ा वर्ग
44
8360.00
4.
श्री संतोष कुमार यादव
अन्य पिछड़ा वर्ग
36
6840.00
5.
श्री मोहम्मद सत्तार
अन्य पिछड़ा वर्ग
12
2280.00
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रिपोर्टिंग व लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.-9424259026
तथ्य एवं स्त्रोत-
1. श्री आर.एस. राजपूत, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं केन्द्र प्रमुख, कृषि विज्ञान केन्द्र बैकुण्ठपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7089554290
2. डॉ. केशव चंद्र राजहंस, वैज्ञानिक (उद्यानिकी), कृषि विज्ञान केन्द्र बैकुण्ठपुर, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-7415302210
3. श्री बुधेन्द्र नाथ, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-लाई, वि.ख.-मनेन्द्रगढ़, जिला-कोरिया, छ.ग., मो.-8319576988
संपादन- 
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, विकास भवन, नवा रायपुर अटल नगर, छत्तीसगढ़।
2. श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, नवा रायपुर अटल नगर, छत्तीसगढ़।
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Monday, 14 December 2020

आर्थिक संबल से संपन्नता की कहानी गढ़ते संपत

रायपुर। मेहनतकश आदिवासी परिवार मार्गदर्शन और संसाधनों का संबल पाकर संपन्नता की कहानी गढ़ लेते हैं। प्रगति की राह पर बढ़ते ऐसा ही परिवार है कोरिया जिले की ग्राम पंचायत पिपरिया में रहने वाले श्री संपत सिंह पिता बुद्धु सिंह का है। खरीफ की खेती के बाद परिवार की रोजी-रोटी चलाने के लिए अकुशल श्रम की कतार में लगने वाले इस परिवार को जब से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से डबरी के रुप में जल-संचय का साधन मिला है, तब से इनके जीवन जीने का तरीका ही बदल गया है।

     मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत पिपरिया के निवासी श्री संपत सिंह के छोटे से परिवार को अब बारिश के बाद के महीनों में रोजगार की कोई चिंता नहीं है। महात्मा गांधी नरेगा से एक छोटा सा जल-संग्रह का साधन पाकर, यह परिवार अपनी आर्थिक उन्नति की राह बनाने में लग गया है। डबरी बनने के बाद इन्होंने धान की दो-गुनी उपज ली और अब वे अपनी बाड़ी में दो क्विंटल आलू के अलावा टमाटर और मिर्च लगाकर खुशहाली के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं।

     श्री संपत के परिवार में माँ श्रीमती मानकुंवर, पिता श्री बुद्धु सिंह और पत्नी श्रीमती सुनीता को मिलाकर कुल चार सदस्य हैं। यद्यपि पिता की उम्र 60 साल से अधिक हो चुकी है और वे अब पहले की तरह खेतों में काम नहीं करते हैं, फिर भी उनके नाम से स्वीकृत हुई यह डबरी खेतों में श्री संपत को उनके पिता के होने का एहसास निरंतर कराती रहती है। खेतों में डबरी निर्माण की आवश्यकता के प्रश्न पर श्री संपत ने उत्साहपूर्वक बताया कि उनके पिता के नाम पर गाँव में कुल आठ एकड़ कृषि भूमि है, जिसमें से चार एकड़ भूमि घर से लगकर है। सिंचाई साधनों के अभाव में पूरी की पूरी जमीन असिंचित थी। गाँव में उनके चाचा और आस-पड़ोस के किसानों के खेतों में डबरी बनने के बाद से उनकी खेती और जीवन में आये परिवर्तन ने ही उन्हें अपने खेत में डबरी बनाने के लिए प्रेरित किया था। ग्राम पंचायत की मदद से उनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से डबरी बनी है। वे डबरी की बदौलत इस साल रबी की फसल के रुप में गेहूँ लगाने की तैयारी में हैं।

     जनपद पंचायत- मनेन्द्रगढ़ की तकनीकी सहायक श्रीमती अंजु रानी इस डबरी निर्माण से जुड़े अन्य पहलुओं पर रोशनी डालती हुए कहती है कि योजनांतर्गत सितम्बर 2019 में श्री बुद्धु सिंह के नाम से एक लाख 80 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति से यह डबरी स्वीकृत हुई थी। लॉकडाउन के दरम्यान यहाँ काम चला था और हितग्राही के परिवार को सीधे रोजगार भी मिला, जिससे उन्हें लगभग 18 हजार रुपए की मजदूरी प्राप्त हुई। इन रुपयों के सहारे हितग्राही के बेटे श्री संपत ने बिजली से चलने वाला दो हॉर्सपावर का एक पम्प खरीदा, जिसका उपयोग वे डबरी से सिंचाई में करते हैं। डबरी से मिल रहे फायदों को आगे बढ़ाते हुए, इन्होंने मछलीपालन के लिए इस बार डबरी में पाँच किलो मछली बीज भी डाला है।

     महात्मा गांधी नरेगा का संबल श्री संपत की संपन्नता की कहानी का आधार बना। अब वह अपनी सफलता से अन्य हितग्राहियों के लिए प्रेरणा पुंज बन रहा है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- डबरी निर्माण कार्य (बुद्धू सिंह/ माधव), ग्रा.पं.- पिपरिया, विकासखण्ड- मनेन्द्रगढ़, जिला- कोरिया,
कार्य प्रारंभ तिथि- 03.11.2019, कार्य पूर्णता तिथि- 30.04.2020,
स्वीकृत राशि- 1.80 लाख, स्वीकृत वर्ष-2019-20, सृजित मानव दिवस- 980,
दूरी- जिला मुख्यालय से 10 कि.मी. एवं विकासखण्ड मुख्यालय से 45 कि.मी., पिन कोड- 497442
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 23◦15'49.9″ एवं Longitude: E 82◦14'49.8″
परिवर्तन- पहले घर के पास के खेतों में खरीफ में 20 से 25 बोरा धान की फसल होती थी, जो इस बार 45 बोरा हुई है।

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रिपोर्टिंग एवं लेखन - श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार-प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छत्तीसगढ़, मो.- 9424259026
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Monday, 7 December 2020

पथरीली व चट्टानी भूमि हुई हरी-भरी, परस्पर तालमेल ने बनाया असम्भव को सम्भव


रायपुर। आईये, आपको आज एक ऐसे स्थान पर ले चलते हैं, जहाँ वन विभाग और पंचायत के परस्पर तालमेल और मनरेगा श्रमिकों की मेहनत ने पथरीली व चट्टानी भूमि की तस्वीर ही बदल दी है। एक दशक पहले तक तो यह कल्पना करना ही असम्भव था कि एक ऐसी पठारी भूमि, जो पूरी तरह से पत्थर-चट्टानयुक्त और वृक्षविहीन हो, वह कभी पेड़-पौधों से हरी-भरी भी होगी। 

जोश, जुनून और जज्बा हो तो पत्थरों का सीना चीरकर भी पौधों की कोपलें उगाई जा सकती हैं...लक्ष्य के प्रति समर्पण और बदलाव की चाह से महासमुन्द जिले के कौंदकेरा गाँव में वन विभाग ने पंचायत के सहयोग से और मनरेगा श्रमिकों की मेहनत के बल-बूते इस तरह के असम्भव से दिखने वाले कार्य को अंजाम देकर एक उदाहरण सबके सामने रख दिया है।

दरअसल महासमुन्द से तुमगाँव मुख्यमार्ग पर विकासखण्ड महासमुन्द के कौंदकेरा गाँव में 15 एकड़ की भूमि पत्थर और चट्टानयुक्त, वीरान व बंजर थी। यहाँ अप्रेल, 2012 में वन विभाग ने पीपल, बरगद व गूलर प्रजाति के पौधों का रोपण किया था। इसके लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से 14 लाख 50 हजार रुपए स्वीकृत किए गए थे। दो साल तक वन विभाग के मार्गदर्शन में यहाँ 44 महिला और 93 पुरुष मनरेगा श्रमिकों की कड़ी मेहतन और देख-रेख के फलस्वरुप, इन चट्टानों और पत्थरों के सीने पर रोपे गए पौधों ने अपनी हरियाली की छटा बिखेरनी शुरु कर दी थी। हरियाली मुरझाए नहीं, इसके लिए पौधरोपण के बाद इनकी सिंचाई मटका के माध्यम से टपक पद्धति से की गई। पौधे बेहतर तरीके से बढ़ें, इसके लिए उनके बीच लगभग 8 मीटर की दूरी रखी गई और समय-समय पर गोबर खाद, डी.ए.पी., यूरिया और सुपर फॉस्फेट भी डाला गया। 

विभागों के परस्पर तालमेल और मनरेगा श्रमिकों के श्रम से यह प्रयास अब फलता-फूलता नजर आने लगा है। आज जहाँ यह पथरीली बंजर भूमि हरी-भरी हो गई है, वहीं इस कार्य से गाँव के 54 मनरेगा जॉबकार्डधारी परिवारों को 7 हजार 741 मानव दिवस का रोजगार भी प्राप्त हुआ। इसके लिए उन्हें 9 लाख 44 हजार 410 रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया था। यहाँ रोपे गए पौधे अब 10-15 फीट के हरे-भरे पेड़ बन गए हैं, जिन्हें देखकर आज पूरा गाँव खुश है। साल 2012 से वन विभाग, पंचायत और ग्रामीणों को शायद इसी दिन का इंतजार था। सामूहिक प्रयास से यह परिक्षेत्र हरा-भरा होकर ऑक्सीजोन में बदल गया है। अब इसे देखने और यहाँ घूमने-फिरने आस-पास के लोग आने लगे हैं। यहाँ की हरियाली इस बात का सबूत दे रही है कि परस्पर तालमेल से असम्भव को सम्भव बनाया जा सकता है। 


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एक नजरः-
कार्य का नाम- पत्थर चट्टान में पीपल, बरगद वृक्षारोपण कार्य, ग्रा.पं.- कौंदकेरा, जिला व विकासखण्ड- महासमुन्द,
कार्य प्रारंभ तिथि- 02.04.2012, कार्य पूर्णता तिथि- 07.06.2014, वृक्षारोपण क्षेत्र- 15 एकड़,
स्वीकृत राशि- 14.50 लाख, स्वीकृत वर्ष-2012-13, सृजित मानव दिवस- 7741,
रोपित पौधों की प्रजातिवार संख्या- पीपल (448), बरगद (448) एवं गुलर (40)
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 21◦10'03.3″ एवं Longitude: E 82◦07'14.4″
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रिपोर्टिंग - श्री प्रथम अग्रवाल, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-महासमुन्द, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- श्री राकेश चौबे, वन परिक्षेत्र अधिकारी, जिला-महासमुन्द, छत्तीसगढ़, मो.-9425563857
(तत्कालीन वन परिक्षेत्र अधिकारी- श्री सी.बी.अग्रवाल, मो.-9425242730)
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...