Saturday, 28 November 2020

मनरेगा से सुधन राम की खुशियों को मिला एक नया ठौर, पेश की आत्मनिर्भरता की मिसाल (लॉकडाउन टू अनलॉक विशेष)

रायपुर। मनुष्य में अगर काम करने की दृढ़ इच्छाशक्ति और लगन हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बनते जाते हैं। ऐसी ही एक मिसाल जशपुर जिले की ग्राम पंचायत कण्डोरा के लघु कृषक श्री सुधन राम ने प्रस्तुत की है। कल तक बारिश के भरोसे खेतों में धान उगाकर और बाकी समय मजदूरी करके, अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले श्री सुधन अब सालभर अपने खेतों में नजर आने लगे हैं। वे वहाँ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से बने कुएँ के पानी से सिंचाई के द्वारा खेतों में धान के अलावा सब्जियों का उत्पादन लेकर अपने परिवार को बेहतर जिंदगी दे पा रहे हैं। उन्होंने कुएँ की बदौलत अपने खेतों में 16 क्विंटल धान की उपज प्राप्त की है और उत्पादित सब्जियों की बिक्री से 50 हजार रुपये की आय भी अर्जित की है।

जशपुर जिले के कुनकुरी विकासखण्ड से 8 कि.मी. दूर कण्डोरा ग्राम पंचायत है। इस पंचायत के निवासी श्री सुधन राम पिता श्री डूढ़ की गाँव में 4 एकड़ कृषि भूमि है। वहाँ वे परम्परागत तरीकों से खेती-किसानी कर अपने परिवार का जीवन-यापन जैसे-तैसे कर रहे थे, परन्तु समय के अनुसार बढ़ती पारिवारिक जरुरतों और आकस्मिक खर्चों को पूरा करने की चुनौती हमेशा बनी रहती थी। उस पर पूरी तरह बारिश पर निर्भरता भी एक समस्या बनी हुई थी, जो उन्हें सतत आजीविका के लिए एक नया रास्ता ढूंढने के लिए विवश कर रही थी। 

अंततः श्री सुधन राम को रास्ता मिला और खुशियों ने उनके घर-आँगन में दस्तक दे दी। ग्राम पंचायत के सहयोग से उनके खेत में दो लाख 10 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति के साथ कूप निर्माण का कार्य जो प्रारंभ हो गया था। स्वयं, परिवार के 2 सदस्यों और गाँव के 18 मनरेगा श्रमिकों की मदद से उनका यह कुआँ पाँच माह में बनकर तैयार हो गया। कार्य पूर्ण होने के बाद जुलाई 2019 में श्री सुधन ने पहली बार अपने कुएँ से लगी 2 एकड़ 20 डिसमिल जमीन में धान की फसल और बागवानी फसल के रुप में गोभी, टमाटर, आलू, मिर्च, धनिया, मूली, बैगन और प्याज लगाया, जिससे उन्हें लगभग 25 हजार रुपए की आमदनी हुई। उन्हें पहली बार जिंदगी में अपनी मेहनत का इतना ज्यादा मूल्य मिला था, सो पूरा परिवार खुश हो गया। 

लॉकडाउन में भी लॉक नहीं हुई आजीविका 

खेती-बाड़ी के लिए कुएँ के रुप में सिंचाई का साधन मिलने के बाद, जैसे ही श्री सुधन राम की जिंदगी की राह आसान बनने लगी थी कि अचानक कोरोना बीमारी के चलते लॉकडाउन लग गया और बाहरी काम बंद हो गए। ऐसे में कूएँ के पानी से खेत में सब्जी उत्पादन आय का एक प्रमुख साधन बन गया। श्री सुधन ने अपने खेतों में उत्पादित सब्जियों को घूम-घूमकर आस-पास के गाँव में और कुनकुरी के बाजार में बेचकर अच्छी कमाई की। आज उन्होंने सब्जी उत्पादन और बिक्री से लगातार बढ़ती आय को ही अपनी आजीविका का मुख्य आधार बना लिया है। 

इस संबंध में श्री सुधन राम बताते हैं कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ने उनके जीवन को एक नया आधार दिया है। कुआं निर्माण से जहाँ अब उनके खेतों में साल भर सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता बनी रहती है, वहीं उन्हें सालभर का रोजगार अपने ही खेत से मिल रहा है। सालभर सब्जी उत्पादन होने से अच्छी-खासी आमदनी हो रही है और परिवार का भरण-पोषण अच्छे से कर पा रहे हैं। आर्थिक स्थिति बेहतर होने से उन्होंने अपने बेटे का इलाज भी अच्छे से करा पाया है। यह योजना और कुआँ, दोनों ही उनके परिवार की खुशियों का एक नया ठौर बन गया है। 

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कूप निर्माण, कार्य प्रारंभ तिथि-19.02.2019, कार्य पूर्णता तिथि-01.07.2019,
ग्रा.पं.- कण्डोरा, विकासखण्ड-कुनकुरी, जिला-जशपुर
दूरी-कुनकुरी विकासखण्ड मुख्यालय से 8 कि.मी.,
स्वीकृत राशि-2.10 लाख, स्वीकृत वर्ष-2017-18, सृजित मानव दिवस- 566
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 22◦45'41.7384″ एवं Longitude: E 84◦0'10.1196″
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रिपोर्टिंग एवं लेखन- श्री अश्वनी व्यास, समन्वयक (शिकायत निवारण), जिला पंचायत-जशपुर, छत्तीसगढ़, मो.-9165736925
तथ्य एवं स्त्रोत- श्री गोवर्धन प्रसाद नायक, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-कुनकुरी, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़, मो.-8889054279
संपादन- 1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़,
2. श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, इन्द्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, छत्तीसगढ़।

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Thursday, 26 November 2020

कोसाफल उत्पादन व अंतरवर्तीय सब्जी उत्पादनः मनरेगा से आपदा को अवसर में बदलती ग्रामीण महिलाएँ

महात्मा गांधी नरेगा से 25 एकड़ में फैली हरियाली, 
बना कोसाफल का सुनहरा बागान


रायपुर। कोरोना महामारी ने देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ आम आदमी की आर्थिक स्थिति को भी काफी नुकसान पहुँचाया है। एक ओर लॉकडाउन में जहाँ लोगों के रोजगार पर संकट छाया, तो वहीं अनलॉक होने के बाद भी लोगों को उनकी क्षमता के अनुरुप काम नहीं मिल रहा है। इन सब के बावजूद देश में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन्होंने कोरोना महामारी जैसी आपदा को अवसर में बदला है और स्वयं के साथ-साथ अपने से जुड़े लोगों की आजीविका के लिए नए रास्ते बनाये हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण जय माँ कंकाली महिला स्व सहायता समूह की महिलाएँ हैं, जिन्होंने लॉकडाउन से अनलॉक की अवधि में रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न होने पर भी हार नहीं मानी और अपने मजबूत इरादों तथा दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत गाँव में रेशम विभाग के द्वारा महात्मा गांधी नरेगा मद से कराए गए अर्जुन वृक्षारोपण में कोसाफल तथा अंतरवर्तीय सब्जी उत्पादन करके, लाभ कमाने के साथ-साथ अपने परिवार के भरण-पोषण में मदद भी कर रही हैं।

जाँजगीर चाँपा जिले में ग्राम महुदा (च) की ग्रामीण महिलाएँ बनी मिसाल

छत्तीसगढ़ में कोसे के कपड़े के लिए प्रसिद्ध जाँजगीर चाँपा जिला मुख्यालय से 20 कि.मी एवं बलौदा विकासखण्ड मुख्यालय से 35 कि.मी. दूर ग्राम पंचायत महुदा (च) की माँ कंकाली महिला स्व सहायता समूह की महिलाएँ इन दिनों मिसाल बन गई हैं। कोरोना संक्रमण काल की विषम परिस्थितियों में ये महिलाएँ रेशम विभाग से कृमिपालन एवं कोसाफल उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त कर, जुलाई 2020 से अर्जुन के पेड़ों पर कृमि पालन का कार्य कर रही हैं। 45 दिनों की कड़ी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के दम पर पहली फसल के रुप में इन्होंने 35 हजार कोसाफल का उत्पादन प्राप्त किया। इन्होंने स्थानीय व्यापारियों को दो रुपए प्रति कोसाफल के हिसाब से बेचकर 70 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त की। वहीं प्रक्षेत्र के एक हिस्से में आलू, टमाटर, प्याज, लहसुन, मक्का, मूंग, पालक, लालभाजी, धनिया, मिर्ची के अलावा पपीता इत्यादि का उत्पादन करके, उन्हें आस-पास के स्थानीय बाजार में बेचने का कार्य भी कर रही हैं। इससे इन्हें एक लाख रुपए से अधिक की आमदनी भी हो चुकी है। 

इस समूह की अध्यक्ष श्रीमती शांति बाई बरेठ बताती हैं कि लॉकडाउन में सब काम बंद हो गया था, जिसके बाद यहाँ अर्जुन के लगे पेड़ों के बीच की खाली जगह को देखकर ध्यान आया कि इसमें हम सब्जी उगाकर रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं। फिर यहाँ हमने सब्जी उगाने का प्रयास किया, जो अब हमारी सहायक आजीविका बन गया है। वे कहती हैं कि कोरोनाकाल की शुरुआत में हमारे गांव क्षेत्र के साप्ताहिक बाजारों में रोक होने के कारण सब्जियों के दाम लगातार बढ़ रहे थे। ऐसे में गांव के गरीब लोगों को सब्जियां खरीदने में काफी दिक्कत हो रही थी। हमारे उत्पादन से गांव के लोगों को बहुत राहत मिली। कम कीमत होने के कारण ग्रामीण आसानी से खरीदते रहे।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना बनी आजीविका का आधार

दरअसल महुदा (च) गाँव की लगभग 25 एकड़ भूमि वीरान और अनुपयोगी थी। यहाँ पंचायत की पहल पर करीब चार साल पहले रेशम विभाग के द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) अंतर्गत 6 लाख 60 हजार रुपए की प्रशासकीय स्वीकृति से टसर पौधरोपण किया गया था। इसमें 73 मनरेगा जॉबकार्डधारी परिवारों ने काम करते हुए 41 हजार पौधों का रोपण किया था, जिसके लिए उन्हें 3 लाख 75 हजार 446 रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया। वहीं रोपे गए पौधों के संधारण के लिए अभिसरण के तहत रेशम विभाग के द्वारा रेशम विकास एवं विस्तार योजनांतर्गत 11 लाख 42 हजार 400 रुपए स्वीकृत किए गए। इन चार सालों में अर्जुन पौधे अब 6 से 8 फीट के हरे-भरे पेड़ बन गए हैं। यहाँ भूमिगत जल की वृद्धि के लिए महात्मा गांधी नरेगा से साल 2020-21 में 5.54 लाख रुपए की लागत से पौधों के निकट 6,220 गड्ढे खोदे गए हैं। इस कार्य में मनरेगा श्रमिकों को 2 हजार 490 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हुआ है। 

जिला रेशम विभाग के उपसंचालक श्री एस.एस. कंवर ने इस संबंध में बताया कि यहाँ महात्मा गांधी नरेगा से टसर पौधरोपण एवं संधारण कार्य में जिन महि लाओं ने काम किया था, उनमें से रुचि के आधार पर 25 महिलाओं का एक समूह बनाया गया और उन्हें कृमिपालन का 15 दिवसीय विशेष प्रशिक्षण दिया गया। अब ये महिलाएँ कोसाफल उत्पादन में पारंगत हो गई हैं और इसे अपनी आजीविका के रुप में अपना लिया है। 

महुदा गाँव की इन ग्रामीण महिलाओं का यह छोटा सा प्रयास स्वयं के साथ-साथ गाँव की अर्थव्यवस्था के विकास में भी सराहनीय कदम है।

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एक नजर-
कार्य का नाम- टसर पौधरोपण, क्षेत्रफल- 25 एकड़, कार्य प्रारंभ तिथि- 20.6.2016, परियोजना अवधि- 1 वर्ष,
पौधों की संख्या- 41,000 (महात्मा गांधी नरेगा)
ग्रा.पं.- महुदा (च), विकासखण्ड- बलौदा, जिला-जाँजगीर चाम्पा,
दूरी- जिला मुख्यालय से 20 कि.मी. एवं विकासखण्ड मुख्यालय से 35 कि.मी.
स्वीकृत राशि- 6.60 लाख (महात्मा गांधी नरेगा), स्वीकृत वर्ष- 2015-16, सृजित मानव दिवस- 2186,
स्वीकृत राशि- 11.42 लाख (संधारण कार्य-रेशम प्रभाग, ग्रामोद्योग विभाग), स्वीकृत वर्ष- 2019-20, परियोजना अवधि- 4 वर्ष,
स्वीकृत राशि- 5.54 लाख (जल संरक्षण कार्य-महात्मा गांधी नरेगा), स्वीकृत वर्ष- 2020-21, सृजित मानव दिवस- 2490
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: N 22◦5'4.87586″ एवं Longitude: N 82◦39'29.6847″
महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत रोपे पौधों की प्रजाति– अर्जुन
माँ कंकाली महिला स्व सहायता समूह- श्रीमती शांति बाई बरेठ (अध्यक्ष) 

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रिपोर्टिंग - श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-जाँजगीर चाँपा, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- 1. श्री मनमोहन सिंह ठाकुर, वरिष्ठ रेशम निरीक्षक, महुदा (च), जिला-जाँजगीर चाँपा, छ.ग., मो.-9406045859
2. श्री विजय कुमार अनंत, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.-महुदा (च), वि.ख.-बलौदा, जिला-जाँजगीर चाँपा, छ.ग., मो.-8964003727
3. श्री ह्दयशंकर, कार्यक्रम अधिकारी, वि.ख.-बलौदा, जिला-जाँजगीर चाम्पा, छ.ग., मो.-7974829952
लेखन व संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़
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Tuesday, 17 November 2020

वीरान पहाड़ी पर वृक्षारोपण कर वन्य प्राणियों का संरक्षण

0 महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग के अभिसरण से मसनिया पहाड़ पर लगाए गए थे 25 हजार पौधे. 
0 भालूओं के लिए पहाड़ पर ही खाने और पानी की व्यवस्था, ग्रामीणों की सोच से मानव-भालू द्वंद्व खत्म.


रायपुर। प्राकृतिक संसाधनों, पारिस्थितिक तंत्र और जल, जंगल व जमीन को सहेजने में महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) किस तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, यह देखना हो तो मसनिया पहाड़ पर उगाए गए पेड़ों के बीच खेलते-कूदते भालूओं के आनंददायक दृश्य का साक्षात्कार करना चाहिए। महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग की योजनाओं के अभिसरण से वहां न केवल पहाड़ को वृक्षों से आच्छादित किया गया है, बल्कि जल संरक्षण के लिए कई चेकडेम भी बनाए गए हैं। मानव और वन्य प्राणी के सह-अस्तित्व को मानवीय प्रयासों से मजबूत करने का नायाब उदाहरण है मसनिया पहाड़ और इसके आसपास के क्षेत्र में महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग से हुए काम।

जांजगीर-चांपा जिले के सक्ती विकासखंड के मसनियां कला और मसनियाखुर्द गांव से लगे मसनिया पहाड़ पर कुछ साल पहले तक हरियाली का नामो-निशान तक नहीं था। पेड़-पौधों से वीरान इस पहाड़ी पर खाने-पीने की कमी हुई तो भालू एवं अन्य वन्य प्राणी गांव की तरफ खिंचे चले आए। नतीजतन भालू और ग्रामीण बार-बार आमने-सामने होने लगे, जिससे कभी भालू तो कभी ग्रामीण घायल हुए। भूख के कारण भालू फसलों को भी नुकसान पहुंचाने लगे। इससे ग्रामीणों में भय व्याप्त रहने लगा और वे इस समस्या से निजात पाने का रास्ता तलाशने लगे।

गांववालों ने आपस में चर्चा कर भालूओं को पहाड़ एवं जंगल में ही संरक्षित करने की योजना बनाई। मसनियां कला ग्राम पंचायत और उसके आश्रित गांव मसनियाखुर्द में ऐसे पौधे लगाने पर विचार किया गया, जिससे कि भालूओं को जंगल में ही खाने को मिल जाए और वे गांव की तरफ न आए। इसके लिए महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग की योजनाओं के अभिसरण से पहाड़ पर वृक्षारोपण करने का उपाय खोजा गया। वर्ष 2017-18 में अगले पांच वर्षों के लिए योजना तैयार कर इसे अमलीजामा पहनाया गया। लगभग 25 एकड़ जमीन पर मिश्रित पौधों का रोपण किया गया, जिसमें सागौन, डूमर, खम्हार, जामुन, आम, बांस, सीसम, अर्जुन, केसियासेमिया और बेर के 25 हजार पौधे शामिल थे।

इस काम के लिए महात्मा गांधी नरेगा से 29 लाख 38 हजार रूपए स्वीकृत होने के बाद श्रमिकों ने अपनी सहभागिता निभाते हुए उज्जड़, वीरान व दुर्गम मसनिया पहाड़ी पर पौधे रोपने का काम शुरू किया। यह काम मुश्किल था क्योंकि पौधरोपण के बाद पानी की कमी के चलते पौधे अधिक समय तक जिंदा नहीं रह पाते। पानी की समस्या को दूर करने महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग के अभिसरण से भू-जल संरक्षण के लिए करीब दस लाख रूपए स्वीकृत किए गए। इस राशि से ब्रशवुड चेकडेम, गाडकर चेकडेम, बोल्डर चेकडेम और कंटूर ट्रेंच का निर्माण किया गया। श्रमिकों ने कड़ी मेहनत से लगातार पानी देकर व फेंसिंग कर पौधों को सुरक्षित रखा।

अच्छी देखभाल से पौधे दो साल में ही वृक्ष की तरह लहलहाने लगे। मजदूरों ने कांवर एवं डीजल पंप के माध्यम से इन पौधों की सिंचाई की। पौधों की सुरक्षा के लिए सीमेंट पोल चैनलिंक से 716 मीटर फेंसिंग की गई। पांच सालों की इस कार्ययोजना में पहले साल वृक्षारोपण और उसके बाद के वर्षों में पौधों के संधारण एवं सुरक्षा कार्य में अब तक सीधे कुल 7851 मानव दिवस रोजगार का सृजन भी हुआ है। इसके लिए श्रमिकों को करीब 14 लाख रूपए का मजदूरी भुगतान किया गया है। वहां महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से ही निर्मित ब्रशवुड चेकडेम, गाडकर चेकडेम, बोल्डर चेकडेम व कंटूर ट्रेंच से पौधों को भरपूर पानी मिलने से उनकी अच्छी बढ़ोतरी हुई। अभी 10 से 12 फीट तक के पेड़ वहां नजर आने लगे हैं। भू-जल संरक्षण से अब भालूओं को पहाड़ी पर ही पानी भी मिलने लगा है।

जामवंत परियोजना से भालू रहवास एवं चारागाह विकास 

राज्य कैम्पा मद से जामवंत परियोजना के तहत क्षेत्र को विकसित करने के लिए पिछले वित्तीय वर्ष में 48 लाख रूपए स्वीकृत किए गए। इस राशि से वहां जलस्रोत के विकास के लिए तालाब एवं डबरी बनाया गया है। भालू रहवास एवं चारागाह विकास के लिए छायादार व फलदार प्रजाति के 13 हजार 200 पौधे रोपे गए हैं। इनमें बेर, जामुन, छोटा करोंदा, बेल, गूलर, बरगद, पीपल, सतावर, केवकंद, जंगली हल्दी और शकरकंद के पौधे शामिल हैं। भालूओं को दीमक अति प्रिय है, इसलिए क्षेत्र में दीमक सिफ्टिंग (भालू के लिए उपयोगी) को भी यहां स्थापित किया गया है। वनमंडलाधिकारी श्रीमती प्रेमलता यादव कहती हैं कि जल, जंगल और जमीन को बचाने से ही प्रकृति का संतुलन बना हुआ है। महात्मा गांधी नरेगा और वन विभाग के तालमेल से मसनिया कला पहाड़ी में इस दिशा में अहम काम हुआ है। पहाड़ पर वृक्षारोपण और जल संग्रहण से वन्य प्राणी खासकर भालू स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। 

मानव-भालू द्वंद्व के बजाय सह-अस्तित्व 

मसनियां कला के सरपंच श्री संजय कुमार पटेल बताते हैं कि पौधरोपण के बाद से इस क्षेत्र की रंगत बदल गई है। महात्मा गांधी नरेगा तथा वन विभाग के संयुक्त प्रयासों से मानव व भालू के बीच द्वंद्व अब समाप्त हो गया है और वे सह-अस्तित्व की भावना से एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाए बिना साथ मिलकर रहवास कर रहे हैं। फलदार और छायादार पेड़ों ने पहाड़ को न केवल हरियाली की चादर ओढ़ाई है, बल्कि भालूओं को भी संरक्षण प्रदान किया है। भालूओं को किसी से, किसी तरह का कोई नुकसान न हो, इसके लिए गांव में “भालू मित्र दल” का गठन किया गया है। 

इस दल की सदस्या श्रीमती भगवती पटेल बताती हैं कि गांव में भालूओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन इससे किसी को किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती। मसनिया पहाड़ के नीचे पेड़ों के पास भालू अक्सर दिख जाते हैं। 
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एक नजर-
कार्य का नाम- मिश्रित वृक्षारोपण, क्षेत्रफल- 25 एकड़, कार्य प्रारंभ तिथि- 20.7.2017
पौधों की संख्या- 25,000 (महात्मा गांधी नरेगा) एवं 13,200 (वन विभाग-राज्य कैम्पा मद)
ग्राम-मसनियाखुर्द, ग्रा.पं.- मसनियां कला, विकासखण्ड- सक्ति, जिला-जाँजगीर चाम्पा,
दूरी- जिला मुख्यालय से 54 कि.मी. एवं विकासखण्ड मुख्यालय से 10 कि.मी.
स्वीकृत राशि- 39.28 लाख (महात्मा गांधी नरेगा से पौधरोपण व जल-संरक्षण व संचय कार्य हेतु) एवं 48 लाख (वन विभाग),
स्वीकृत वर्ष- 2017-18, परियोजना अवधि- 5 वर्ष, सृजित मानव दिवस- 7851(अक्टूबर, 2020-21 तक),
जी.पी.एस. लोकेशन- Latitude: 22.070641 एवं Longitude: 83.004816  
महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत रोपे पौधों की प्रजाति व संख्या- सागौन के 8015, डूमर के 2975, खम्हार के 1815, जामुन के 2445, आम के 2075, बांस के 1425, सीसम के 1245, अर्जुन के 1275, केसियासेमिया के तीन हजार तथा बेर के 730 पौधों को मिलाकर, कुल 25 हजार पौधे रोपे गए।
वर्षवार सृजित मानव दिवस-

क्रं.

वर्ष

गतिविधि

सृजित मानव दिवस

1.

2017-18

पौधरोपण

4451

2.

2018-19

पौध संधारण

685

3.

2019-20

पौध संधारण

1748

4.

2020-21

पौध संधारण

967


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रिपोर्टिंग एवं लेखन - श्री देवेन्द्र यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- जाँजगीर चाम्पा, छत्तीसगढ़।
तथ्य एवं स्त्रोत- 1. श्री एम.आर.साहू, वन परिक्षेत्र अधिकारी, वन मण्डल-सक्ति, जिला- जाँजगीर चाम्पा, छत्तीसगढ़।
2. श्री अमर सिंह सिदार, उपवन परिक्षेत्र अधिकारी, वन मण्डल-सक्ति, जिला- जाँजगीर चाम्पा, छत्तीसगढ़।
3. श्री अमर सिंह सिदार, पूर्व सरपंच, ग्राम पंचायत- मसनियां कला, वि.ख.-सक्ति, जिला- जाँजगीर चाम्पा, छत्तीसगढ़।
4. सुश्री आकांक्षा सिन्हा, कार्यक्रम अधिकारी, वि.ख.-सक्ति, जिला-जाँजगीर चाम्पा, छत्तीसगढ़।
संपादन- 1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ एवं 
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क अधिकारी, जनसम्पर्क संचालनालय, नवा रायपुर अटल नगर, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...