Thursday, 23 December 2021

रोजगार के साथ ही कुपोषण को मात देने का काम, आंगनबाड़ियों में अंडों की आपूर्ति

# महात्मा गांधी नरेगा, 14वां वित्त आयोग एवं जिला खनिज संस्थान न्यास निधि के अभिसरण से सामुदायिक मुर्गीपालन.
# समूह की महिलाएँ मुर्गीपालन व अंडा उत्पादन कर हुईं आत्मनिर्भर.
# परंपरागत मुर्गीपालन को व्यावसायिक रूप देकर महिलाओं ने कमाए 25 लाख रूपए.



स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/23 दिसम्बर, 2021. आदिवासी अंचल की महिलाएं घर पर किए जाने वाले परंपरागत मुर्गीपालन को व्यावसायिक रूप देकर अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। अलग-अलग स्वसहायता समूहों की ये महिलाएं स्वरोजगार के साथ ही कुपोषण को मात देने का भी काम कर रही हैं। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम), डी.एम.एफ. (जिला खनिज संस्थान न्यास निधि) और 14वें वित्त आयोग के अभिसरण से सुदूर वनांचल बीजापुर जिले की 43 समूहों की महिलाएं सामुदायिक मुर्गीपालन कर अंडा उत्पादन कर रही हैं। स्थानीय जिला प्रशासन महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान हेतु आंगनबाड़ियों के लिए इन अंडों की खरीदी कर रही है। समूह की महिलाएं स्थानीय बाजारों में भी इन अंडों को बेचती हैं। विभिन्न स्वसहायता समूहों द्वारा जिले के 43 सामुदायिक मुर्गीपालन केन्द्रों में तीन लाख 77 हजार अण्डों का उत्पादन किया गया है। इनमें से तीन लाख 44 हजार अंडों की बिक्री से महिलाओं ने 25 लाख रूपए से अधिक की कमाई की है।

नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में वनोपज संग्रहण, कृषि और पशुपालन ग्रामीणों की आजीविका का प्रमुख आधार है। वहां के आदिवासी परिवार घरों में परंपरागत रूप से मुर्गीपालन करते हैं। स्थानीय महिलाओं की मुर्गीपालन में दक्षता और कुपोषण दूर करने में अंडा की उपयोगिता को देखते हुए बीजापुर जिला प्रशासन ने वर्ष 2020-21 में अलग-अलग योजनाओं के अभिसरण से सामुदायिक मुर्गीपालन के माध्यम से अंडा उत्पादन की आधारशिला रखी। इस परियोजना के अंतर्गत जिले में अभी 43 सामुदायिक मुर्गीपालन शेड संचालित किए जा रहे हैं। इनका निर्माण महात्मा गांधी नरेगा से प्राप्त 60 लाख नौ हजार रूपए, 14वें वित्त आयोग के 29 लाख 72 हजार रूपए और डी.एम.एफ. के एक करोड़ 27 लाख 26 हजार रूपए के अभिसरण से हुआ है। इस दौरान जिले के मनरेगा श्रमिकों को 6536 मानव दिवस का सीधा रोजगार भी प्राप्त हुआ।

स्वरोजगार के साथ ही कुपोषण से मुक्ति की लड़ाई में जिले के बीजापुर विकासखण्ड में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) के अंतर्गत गठित नौ, भैरमगढ़ विकासखण्ड के 14, भोपालपटनम विकासखण्ड के सात और उसूर विकासखण्ड के 13 स्वसहायता समूहों की महिलाएं अपनी सहभागिता दे रही हैं। पशुपालन विभाग के तकनीकी मार्गदर्शन में मुर्गीपालन में व्यावसायिक दक्षता हासिल कर ये महिलाएं बी.वी. 380 लेयर बर्ड्स प्रजाति की मुर्गियों का पालन शेड में कर रही हैं। सामुदायिक मुर्गीपालन के लिए चूजों की आपूर्ति, केज की व्यवस्था तथा वर्षभर के लिए चारा एवं आवश्यक दवाईयों का इंतजाम डी.एम.एफ. के माध्यम से किया गया था।

बीजापुर विकासखण्ड के तोयनार ग्राम पंचायत में मुर्गी शेड का संचालन करने वाली रानी दुर्गावती स्वसहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती सोनमणि पोरतेक बताती हैं कि उसके समूह द्वारा अब तक 49 हजार अण्डों का उत्पादन किया गया है। इनमें से साढ़े 48 हजार अण्डों की बिक्री से करीब तीन लाख रूपए की आमदनी हुई है। उसूर विकासखण्ड के नुकनपाल पंचायत में मुर्गी शेड संचालित करने वाली काव्या स्वसहायता समूह की सचिव सुश्री पार्वती कहती है कि इस परियोजना से हम महिलाओं को अपनी आजीविका चलाने का साधन मिल गया है। आर्थिक रूप से हम सक्षम हो गई हैं। मुर्गीपालन से समूह को हर माह अच्छी कमाई हो रही है। जिला प्रशासन की कोशिशों और महिलाओं की मेहनत का असर अब दिखने लगा है। बीजापुर में कुपोषण तेजी से घट रहा है। अक्टूबर-2019 में कुपोषण की दर वहां लगभग 38 प्रतिशत थी, जो जुलाई-2021 में आयोजित वजन त्यौहार के आंकड़ों के मुताबिक 13 प्रतिशत गिरकर 25 प्रतिशत पर आ गई है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- स्व सहायता समूह हेतु पोल्ट्री फार्म निर्माण, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
विकासखण्ड (ग्राम पंचायत)-
1. बीजापुर विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- तोयनार, ईटपाल, चेरपाल, बोरजे, मोरमेड़ एवं पापनपाल (6).
2. भैरमगढ़ विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- जैवारम, मटवाड़ा, मंगलनार, पातरपारा, नेलसनार, मिरतुर, कोडोली, तालनार, टिन्डोडी, जांगला, कॉन्ड्रोजी, मंगापेठा एवं फरसेगढ़ (13).
3. भोपालपटनम विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- तमलापल्ली, संगमपल्ली, दम्पाया, चेरपल्ली, रुद्राराम, गोटाइगुड़ा एवं भद्रकाली (7).
4. उसूर विकासखण्ड में शामिल ग्राम पंचायतें- आवापल्ली, नुकनपाल, मुरदण्डा, इलमिड़ी, संकनपल्ली, हीरापुर एवं बासागुड़ा (7).
परियोजना में शामिल 43 सामुदायिक मुर्गीशेड निर्माण में योजनावार लागत- महात्मा गांधी नरेगा से 60.09 लाख, 14वां वित्त आयोग से 29.72 लाख एवं जिला खनिज संस्थान न्यास निधि से 127.26 लाख रुपए।
प्रति इकाई लागत-
(क) 100 मुर्गियों के लिए एक सामुदायिक शेड की स्वीकृत राशि-
1.83 लाख रुपए (महात्मा गांधी नरेगा-1.13 लाख एवं 14वां वित्त आयोग राशि- 0.70 लाख)
(ख) 200 मुर्गियों के लिए एक सामुदायिक शेड की स्वीकृत राशि-
2.48 लाख रुपए (महात्मा गांधी नरेगा-1.48 लाख एवं 14वां वित्त आयोग राशि- 1 लाख)
(ग) प्रति यूनिट हेतु 50 मुर्गियाँ, वर्षभर का चारा, आवश्यक दवाईयाँ व केज हेतु स्वीकृत राशि-
1.14 लाख रुपए (जिला खनिज संस्थान न्यास निधि)

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तथ्य-आंकड़े एवं रिपोर्टिंग - श्री मनीष सोनवानी, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
लेखन - श्री प्रशांत यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-बीजापुर, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन एवं संपादन -
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग - श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।

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Friday, 17 December 2021

पपीता की खेती ने बदली कुंजबाई की किस्मत

दो एकड़ में 500 क्विंटल पपीता का उत्पादन, बिक्री से मिले 4 लाख रूपए.


महात्मा गांधी नरेगा, उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केन्द्र के अभिसरण से शुरू की पपीता की खेती, इस साल खुद के पैसे से लगाए हैं 2600 पौधे.


रायपुर. 17 दिसम्बर 2021. महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम), उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र के अभिसरण से धान के बदले पपीता की खेती शुरू करने वाली श्रीमती कुंजबाई की किस्मत पपीता की एक फसल ने बदल दी है। उसके दो एकड़ खेतों में 500 क्विंटल पपीता का उत्पादन हुआ है। पपीता की गुणवत्ता ऐसी कि बिलासपुर के फल व्यवसाईयों ने खेत में खड़ी फसल ही खरीद ली। इससे कुंजबाई को चार लाख रूपए मिले। पपीता की पहली फसल के मुनाफे से उत्साहित कुंजबाई ने इस बार अपने पैसों से इसके 2600 पौधे लगाए हैं।

बेमेतरा जिले के बाराडेरा ग्राम पंचायत के आश्रित गांव मुंगेली की श्रीमती कुंजबाई साहू चार एकड़ की सीमांत किसान हैं। महात्मा गांधी नरेगा तथा उद्यानिकी विभाग के अभिसरण से मिले संसाधनों और बेमेतरा कृषि विज्ञान केन्द्र के मार्गदर्शन में उन्होंने पिछले साल अपने दो एकड़ खेत में पपीते के दो हजार पौधे लगाए थे। इनसे 500 क्विंटल पपीता की पैदावार हुई, जिसे थोक फल विक्रेताओं ने आठ रूपए प्रति किलोग्राम की दर से उनके खेतों से ही खरीद लिया। पपीता के पेड़ों में फल आने के बाद उद्यानिकी विभाग की मदद से बिलासपुर के थोक फल विक्रेताओं ने उससे संपर्क किया। अच्छी फसल देखकर व्यापारियों ने तुरंत ही पूरे दो एकड़ के फल खरीद लिए। कुंजबाई को पपीता की बिक्री के लिए कहीं बाहर जाना नहीं पड़ा और घर में ही रहकर फसल के अच्छे दाम मिल गए। इससे उत्साहित होकर उसने इस साल पपीता के 2600 पौधे लगाए हैं। कुंजबाई ने कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर पिछले वर्ष पपीता के पौधों के बीच में अंतरवर्ती फसल के रूप में भुट्टा, कोचई और अन्य सब्जियों की भी खेती की। इससे उसे अतिरिक्त कमाई हुई।

कुंजबाई का परिवार पहले परंपरागत रूप से धान की खेती से जीवन निर्वाह करता था। इसमें लगने वाली मेहनत और लागत की तुलना में फायदा कम होता था। कृषि विज्ञान केन्द्र बेमेतरा में सब्जी और फलों की खेती से होने वाले लाभ के संबंध में आयोजित प्रशिक्षण में शामिल होने से उसके विचार बदले। वहां विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए रास्ते पर चलने का निर्णय तो उसने ले लिया था, लेकिन आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होने के कारण इसे शुरू नहीं कर पा रही थी। ग्राम पंचायत ने इस काम में उसकी सहायता की और महात्मा गांधी नरेगा के साथ उद्यानिकी विभाग की योजना का अभिसरण कर उसके दो एकड़ खेत में एक लाख 27 हजार रूपए की लागत से पपीता की खेती का प्रस्ताव स्वीकृत कराया।

कुंजबाई के खेत में जून-2020 में पपीता उद्यान का काम शुरू हुआ। महात्मा गांधी नरेगा से भूमि विकास का काम किया गया। इसमें दस मनरेगा मजदूरों को 438 मानव दिवस का रोजगार मिला, जिसके लिए 83 हजार रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया। कुंजबाई के परिवार को भी इसमें रोजगार मिला और 33 हजार रूपए की मजदूरी प्राप्त हुई। उद्यानिकी विभाग ने पपीता की खेती के लिए ड्रिप-इरिगेशन, खाद और पौधों की व्यवस्था की। खेत के तैयार होने के बाद कुंजबाई ने अपने बेटे श्री रामखिलावन साहू और बहु श्रीमती मालती बाई के साथ कृषि विज्ञान केन्द्र के मार्गदर्शन में दो हजार पौधों का रोपण किया। वहां के वैज्ञानिकों ने उसके परिवार को पपीता की खेती की बारिकियों का प्रशिक्षण दिया। महात्मा गांधी नरेगा, उद्यानिकी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र की सहायता से कुंजबाई के परिवार की मेहनत रंग लाई और उसकी दो एकड़ की फसल चार लाख रूपए में बिकी। आधुनिक तौर-तरीकों से खेती उसे अच्छा मुनाफा दे रही। इससे उसका परिवार तेजी से समृद्धि का राह पर बढ़ रहा है।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कुंजबाई/उमाशंकर का पपीता उद्यान कार्य, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम- मुंगेली, ग्राम पंचायत- बाराडेरा, विकासखण्ड- बेमेतरा, स्वीकृत राशि- 1.27 लाख रुपए, व्यय राशि- 1.23 लाख रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 08.06.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 02.07.2021, वर्क कोड- 3303002044/IF/1111497272,
परियोजना में शामिल योजनावार लागतें-
महात्मा गांधी नरेगा से 87 हजार रुपए, उद्यानिकी विभाग से 30 हजार रुपए एवं हितग्राही अंशदान 10 हजार रुपए
सृजित मानव दिवस- 438, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 10, मजदूरी भुगतान- 83,265 रुपए,
हितग्राही का नाम- श्रीमती कुंजबाई साहू, पति स्व. श्री उमाशंकर साहू (जॉब कार्ड नं.- CH-03-002-044-003/182-A)
हितग्राही श्रीमती कुंजबाई साहू, उनके पुत्र श्री रामखिलावन और पुत्रवधु श्रीमती आरती को प्राप्त रोजगार दिवस एवं मजदूरी- 174 मानव दिवस एवं 33,087 रुपए।
कृषि विज्ञान केन्द्र से मार्गदर्शन- डॉ. चेतना बंजारे
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री राकेश कुमार टंडन, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-बेमेतरा, जिला-बेमेतरा, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप वारे, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बेमेतरा, जिला-बेमेतरा, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्री नवीन कुमार साहू, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बेमेतरा, छत्तीसगढ़।
पुनर्लेखन एवं संपादन -
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 7 December 2021

दिव्यांग सुश्री ठगन ने संघर्ष कर बदली अपनी तकदीर

मनरेगा मेट बनकर योजना में बढ़ाई महिलाओं की भागीदारी
और खुद को भी बनाया सशक्त.


स्टोरी/रायपुर/राजनांदगांव/07 दिसम्बर 2021. दुनिया में ऐसे कई दिव्यांग हैं, जिन्होंने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाया है। इन्होंने कभी हौसला नहीं खोया और सफलता के मुकाम पर पहुँचकर औरों के लिए आदर्श प्रस्तुत किया है। दिव्यांगता को कभी जीवन में बाधक बनने नहीं दिया और संघर्ष कर अपनी तकदीर को बदला है। राजनांदगांव जिले के छुईखदान विकासखण्ड की मुंडाटोला ग्राम पंचायत की दिव्यांग महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) मेट सुश्री ठगन मरकाम की कहानी भी ऐसी ही है। परिवार में माता-पिता के गुजरने के बाद गाँव के बड़े-बुर्जुगों को ही अपना अभिभावक मानकर मनरेगा के जरिये गाँव के लिए कुछ कर गुजरने का हौसला रखने वाली वह आज सबकी, विशेषकर महिलाओं की आदर्श बन गई है।

35 वर्षीया सुश्री ठगन एक पैर से दिव्यांग हैं और जनवरी 2021 से गाँव में महिला मेट की भूमिका का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रही हैं। मेट बनने के बाद उन्होंने गाँव में नया तालाब निर्माण, श्री विनय धुर्वे के खेत में भूमि सुधार कार्य एवं श्री श्यामलाल के खेत में कूप निर्माण का कार्य करवाया है। उनकी सक्रियता से योजनांतर्गत खुले कामों में महिला श्रमिकों की भागीदारी बढ़कर 50 प्रतिशत पर पहुँच गई है। महात्मा गांधी नरेगा में वर्ष 2019-20 में जहाँ महिलाओं के द्वारा सृजित मानव दिवस रोजगार का प्रतिशत 42.36 था, वह वर्ष 2020-21 में बढ़कर 50.86 प्रतिशत हो गया। गाँव में महिलाओं के बीच अपने सरल व्यवहार को लेकर लोकप्रिय सुश्री ठगन ने अपनी लगनशीलता के बलबते चालू वित्तीय वर्ष में भी महिलाओं की भागीदारी को 50 प्रतिशत बनाकर रखा है। नवम्बर, 2021 की समाप्ति तक गाँव में कुल रोजगार प्राप्त 615 श्रमिकों में से 310 महिला श्रमिकों को 6802 मानव दिवस का रोजगार मिल चुका है।

मनरेगा मेट सुश्री ठगन का अतीत संघर्षों से भरा रहा है। मनरेगा मजदूर से मनरेगा मेट बनने का सफर उनके लिए आसान नहीं था। माता-पिता के स्वर्गवास होने और बहनों के विवाह उपरांत वह परिवार में अकेली हो गई थी। एक पैर से दिव्यांग होने के कारण पंचायत से उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार काम मिलता था। । अपने संघर्षों के बारे में ठगन मरकाम कहती हैं कि उनके पास लगभग डेढ़ एकड़ की पुश्तैनी कृषि भूमि है, जिसे वे अधिया में देकर कृषि कार्य कराती हैं। जीवन-यापन के सीमित साधनों के कारण उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। ऐसे में ग्राम रोजगार सहायक सुश्री सरिता ध्रुर्वे उनके लिए नवा बिहान (नई सुबह) बनकर आयी और उन्हें महात्मा गांधी नरेगा में महिला मेट के रुप में काम करने की सलाह दी। यह उनकी सलाह का ही परिणाम है कि सुश्री ठगन गाँव में आज मनरेगा मेट के रुप में सम्मानपूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन कर पा रही हैं। मनरेगा से मिले पारिश्रमिक से उन्होंने अपने लिए एक सिलाई मशीन खरीद ली है, जिसका उपयोग वे अपनी आजीविका समृद्धि के लिए कर रही हैं।

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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 04.12.2021 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 314, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 303,
रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 286, रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 615, सृजित मानव दिवस- 13602,
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 310, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 6802,
मेट का नाम- सुश्री ठगन मरकाम पिता स्व. श्री राम मरकाम, उम्र- 35 वर्ष, मोबाईल नं.-82258 93923

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तथ्य/आंकड़े– श्री सिद्धार्थ जायसवाल, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-छुईखदान, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़,
रिपोर्टिंग- श्री फैज मेमन, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-राजनांदगांव, जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़,
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।

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Friday, 3 December 2021

स्वच्छता के बाद अब महात्मा गांधी नरेगा में प्रबंधन का हुनर दिखा रही है मेट करीना

रिजेक्टेड ट्रांजेक्शन की समस्याओं को दूर कर मनरेगा मजदूरी भुगतान को सुगम बनाया


स्टोरी/रायपुर/जशपुर/03 दिसम्बर 2021. नारी को अपने बाल्यकाल से ही घर के सभी कामों के प्रबंधन के बारे में जानकारी होती है। घरेलू आवश्यकताओं और जरूरतों को पूरा करने के लिए संसाधनों के समुचित उपयोग एवं उनके प्रबंधन देखते हुए वे बड़ी होती हैं। किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते वे परिवारिक प्रबंधन कार्य में दक्ष हो जाती हैं। यही दक्षता उन्हें घर के बाहर अपने कार्य-उत्तरदायित्वों के निर्वहन में मदद करती है। जशपुर जिले के मनोरा विकासखण्ड अन्तर्गत ग्राम पंचायत डड़गांव की रहने वाली श्रीमती करीना खातून के प्रबंधन कार्य को महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत खुले कामों में देखा जा सकता है। कल तक गांव में स्वच्छता के क्षेत्र में अपने प्रबंधन कार्य के हुनर का लोहा मनवा चुकी श्रीमती करीना आज महात्मा गांधी नरेगा में श्रमिकों से काम की मांग, मोबाईल एप्प में उनकी उपस्थिति, रिजेक्टेड ट्रांजेक्शन जैसी मजदूरी भुगतान में आने वाली समस्या का निराकरण एवं जॉब कार्ड अद्यतन जैसे कार्यों के प्रबंधन को बड़ी कुशलता से करती हैं।

स्वच्छता एवं रोजगार का प्रबंधन

37 वर्षीय करीना वर्ष 2018 से अपने गांव में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अन्तर्गत स्वच्छता ग्राही की भूमिका का निर्वहन कर रही हैं। इस दौरान उन्होंने ‘‘शौचालय का उपयोग, गांव को प्लास्टिक मुक्त बनाने, किशोरियों/ बालिकाओं एवं महिलाओं हेतु माहवारी प्रबंधन तथा सैनेटरी पैड के नियमित उपयोग’’ के संबंध में जागरुकता एवं व्यवहार परिवर्तन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये हैं, जिसके लिए उन्हें 2 अक्टूबर 2019 को राष्ट्रीय स्तर पर "बेस्ट स्वच्छता ग्राही" पुरस्कार से नवाजा गया। महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत साल 2019 से मेट के रुप में काम करते हुए करीना ने अपनी प्रबंधन-कला के बलबूते अन्य मेट के साथ एक टीम बनाई और काम करना शुरु किया। उनकी टीम योजनांतर्गत श्रमिकों से काम की मांग प्राप्त करती है और फिर उन्हें कार्य प्रारंभ होने की सूचना देते हुए उनका कार्यस्थल पर नियोजन व प्रबंधन करती है।

स्वच्छता-ग्राही के बाद महात्मा गांधी नरेगा में मेट के रुप में अपने अनुभव को साझा करते हुए श्रीमती करीना खातून बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत सबसे बड़ी चुनौती श्रमिकों के मजदूरी भुगतान में आ रही ट्रान्जेक्शन्स रिजेक्शन की समस्याओं का निराकरण है। इसके अंतर्गत सामान्यतः श्रमिकों को बैंक से जारी पास-बुक में अंकित नाम व खाता क्रमांक के आधार पर नरेगा सॉफ्टवेयर (नरेगा-सॉफ्ट) में दर्ज श्रमिकों के नाम व खाता क्रमांक में अंतर, अमान्य खाता प्रकार, ऐसा कोई खाता नहीं, खाता बंद या स्थानांतरित, निष्क्रिय आधार, केवाईसी अपडेट नहीं, खाता मौजूद नहीं है, आधार को खाते से नहीं जोड़ा गया, बैंकों के मर्ज होने की स्थिति में अमान्य बैंक पहचानकर्ता, आई.एफ.एस. कोड का गलत होना एवं दावारहित खाता जैसे कारण हैं, जिनसे मजदूरी भुगतान के लिए जारी फंड ट्रांसफर आर्डर रिजेक्ट हो जाते हैं और श्रमिक को लगता है कि उसका मजदूरी भुगतान नहीं हो रहा है। वे आगे बताती हैं कि साल 2019 में महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत मजदूरी भुगतान के कुल 250 ट्रांजेक्शन रिजेक्ट हुए थे, जिसे जनपद पंचायत के कार्यक्रम अधिकारी से प्राप्त मार्गदर्शन के आधार पर आवश्यक सुधारकर, दूर किया। आज की स्थिति में ग्राम पंचायत में रिजेक्टेड ट्रांजेक्शन नहीं के बराबर हैं और महात्मा गांधी नरेगा के मजदूरों के बैंक-पासबुक में उनकी मजदूरी दिखाई देती है। इसका सीधा प्रभाव कार्य स्थल पर दिख रहा है। महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत खुले कामों में श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

परिवार और खेती-बाड़ी को बनाया खुशहाल


महिला मेट के तौर पर काम करते हुए श्रीमती करीना को अब तक बतौर पारिश्रमिक 31 हजार 884 रुपये प्राप्त हो चुके हैं, जिसका उपयोग उन्होंने अपने बच्चों के ट्यूशन एवं कॉलेज फीस भरने में किया। इसके अलावा उन्होंने शेष बचे रुपयों को अपने लगभग दो एकड़ की जमीन में मिर्ची की खेती में लगाया है। उनकी मेहनत से आज उनका खेत हरा-भरा है।

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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 26.11.2021 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 351, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 287, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 701,
सक्रिय महिलाओं की संख्या- 363, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 145,
रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 242, सृजित मानव दिवस- 4601,
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 148, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 2748,
मेट का नाम- श्रीमती करीना खातून , उम्र- 37 वर्ष

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तथ्य/आंकड़े- श्री अखिलेश भगत, तकनीकी सहायक, जनपद पंचायत-मनोरा, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़,
रिपोर्टिंग- श्री विकास प्रभात एक्का, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-मनोरा, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़,
लेखन- श्री अश्विनी व्यास, समन्वयक (शिकायत निवारण), जिला पंचायत-जशपुर, जिला-जशपुर, छत्तीसगढ़,
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।

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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...