Friday, 28 December 2018

मनरेगा के कुएँ से मनहरण के जीवन में आयी हरियाली

 मनरेगा के कुएँ से मनहरण के जीवन में आयी हरियाली

कुएँ के पानी से उत्पादित सब्जियों ने जिंदगी का स्वाद बदल दिया। आसपास के गाँवों में सायकल पर घूम-घूमकर हरी भरी सब्जी-भाजी बेचने वाले श्री मनहरण साहू के जीवन में हरियाली ने दस्तक दे दी है। अब बाजार से साग-सब्जी खरीद कर बेचने के स्थान पर मनहरण अपनी एक एकड़ जमीन में ही साग-सब्जी उगाते हैं और बेचते हैं। जैसा मौसम - वैसी सब्जी...। वे सुबह-सुबह अपनी सायकल पर सब्जियाँ लादते हैं और बेचने के लिये निकल पड़ते हैं। इन हरी-भरी सब्जियों को बेचने पर अब जहाँ उन्हें दिल से खुशी महसूस होती है, वहीं पहले से ज्यादा कमा भी पा रहे हैं। इस कमाई से वे अब अपने परिवार के लिए खुशियों के साधन आसानी से जुटा पा रहे हैं। इस खुशी का कारण बना है, उनके खेत में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से बना कुआँ। 
धमतरी जिले के कुरुद विकासखण्ड के ग्राम पंचायत-बकली में रहने वाले मनहरण साहू, पिता तिहारु राम एक साधारण सीमांत किसान हैं। वे किसानी और मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। इसके अलावा कुरुद और नयापारा में लगने वाले बाजार से साग-सब्जियाँ खरीदकर, बकली सहित आस-पास के गाँवों में सब्जियों को बेचकर दो-पैसे अधिक जुगाड़ने की कोशिश में लगे रहते थे। इस कोशिश में उन्हें अक्सर यह मलाल रहा करता था कि काश उनके खेत में सिंचाई का कोई साधन होता, तो अपनी मेहनत से हरी-भरी सब्जी उगाता और उन्हें बेचकर ज्यादा पैसे कमा पाता। वहीं हरी-भरी और ताजी सब्जियों को लेकर जो तारीफ ग्राहकों से मिलती हैं, वो उनकी खुद की अपने खेत में पैदा की हुई होती, तो दिल से खुशी होती।
मनहरण के मन की यह तमन्ना भी तब पूरी हो गई, जब उन्हें ग्राम पंचायत से यह सूचना मिली कि उनकी जमीन पर महात्मा गांधी नरेगा से कुआँ निर्माण स्वीकृत हो गया है। यह सूचना केवल सूचना नहीं, बल्कि उनके जीवन में हरियाली की दस्तक थी। साल 2017 के जून माह की 3 तारीख को मनहरण की जमीन पर कुँआ निर्माण का श्रीगणेश हुआ। कुआँ के निर्माण में नियोजित महात्मा गांधी नरेगा श्रमिकों की मेहनत से यह 13 जुलाई 2017 को बनकर तैयार भी हो गया। मनहरण को कुएँ के निर्माण में कार्य करने पर मजदूरी के रुप में दस हजार आठ सौ छत्तीस रुपयों की मजदूरी भी मिली। कुआँ निर्माण कर अब वे खुशहाल किसान कहलाने लगे हैं। फिलहाल एक एकड़ भूमि में कुँए की बदौलत वह बरबट्टी, भिंडी, सेमी, तोरई, टमाटर, फूलगोभी और गाँठगोभी जैसी सब्जियों की खेती कर रहे हैं।
कुएँ से मोटर पंप के सहारे सब्जी-बाड़ी में सिंचाई करते हुए मनहरण बताते हैं कि जब से उन्हें कुँआ मिला है, तब से मैं खेत में सपरिवार काम करके साग-सब्जियाँ उगाता हूँ, फिर उन्हें साइकिल पर ले जा करके आसपास के गाँव सिवनीकला, चीवरी, भैंसमुडी, गौरी, ददहा, पारसवानी और रावनगुडा में बेचने जाता हूँ। पहले बाजार से साग-सब्जी खरीदकर बेचने पर लगभग सौ रुपए प्रतिदिन की कमाई हो जाती थी। अब अपने खेत की उत्पादित सब्जियों को बेचने पर 200 से 350 रुपये तक की आमदनी हो जाती है। सारा खर्चा काटकर महीने भर में लगभग छः हजार रुपये की बचत हो जाती है।
उन्होंने आगे बताया कि सब्जियों के बेचने से होने वाली आय से वे अपने बच्चों को शिक्षित करने का दायित्व बखूबी निभा रहे हैं। बच्चों को भोजन में हरी-भरी सब्जियाँ भी खाने को मिल रही हैं, जिससे उन्हें सही पोषण मिल पा रहा है। परिवार की खुशहाली में मेरी धर्मपत्नी श्रीमती गोदावरी के साथ अब यह कुआँ भी मेरा महत्वपूर्ण साथी बन गया है।   

--0--
----------------------------------------------------------------------------
एक नजरः-
कार्य का नाम- कुआँ निर्माण ग्राम पंचायत- बकली,  विकासखण्ड- कुरुद,  जिला- धमतरी, छत्तीसगढ़
कार्य की लाग1.88 लाखस्वीकृत वर्ष2017-18
---------------------------------------------------------------------------------------------

----------------------------------------------------------------------------
रिपोर्टिंग          -           श्री देवेन्द्र यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- जांजगीर चाम्पा
तथ्य व स्त्रोत     -           श्री धरम सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी एवं श्री डुमनलाल ध्रुव, सहायक प्रचार                                        प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी,
लेखन              -           श्री संदीप सिंह चैधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय
संपादन            -           श्री आलोक कुमार सातपुते एवं  श्री प्रशांत कुमार यादवसहायक प्रचार प्रसार                                                अधिकारीप्रकाशन शाखाविकास आयुक्त कार्यालय, इन्द्रावती भवन,अटल नगर,रायपुर



Monday, 17 December 2018

तालाब संवरा और लौटे आये अच्छे दिन


तालाब संवरा और लौटे आये अच्छे दिन

महात्मा गांधी नरेगा से अभिसरण के तहत हुआ तालाब गहरीकरण

 किसी तालाब के गहरे होने से उस गाँव के अच्छे दिन लौट आना आखिर कैसे सम्भव है। कोई एक तालाब कैसे किसी की दशा और दिशा को बदल पाने में समर्थ हो सकता है... लेकिन यह हुआ है धमतरी जिले के मगरलोड विकासखण्ड में ग्राम पंचायत-मुड़केरा के आश्रित गांव राउतमुडा। यहाँ पर इन दिनों तालाब की सफलता की कहानी सुनी जा सकती है। गाँव के ग्रामीण इस तालाब की चर्चा ऐसे उत्साह से करते हैं कि जैसे गाँव के किसी युवा ने कोई उपलब्धि हासिल की हो।
तालाब दिखाते हुए वे कहते हैं कि देखिए, साहब... पहले बस इत्ता-सा रह गया था यह तालाब और इसका पानी। पानी इतना गंदा हो गया था कि हवा के चलने पर इसकी बदबू दूर तक महसूस होती थी। बारिश खत्म होने के कुछ दिनों बाद ही यह सूख जाया करता था। पर अभी देखिए... कितना सुंदर है यह तालाब और इसका पानी। तालाब में पानी क्या लौटा, हमारे तो जैसे अच्छे दिन ही लौट आए।
तालाब के संबंध में विस्तार से बताते हुए यहाँ की महिला सरपंच नूरजहाँ रिजवी कहती हैं कि हम सोच भी नहीं सकते थे कि एक तालाब गांव की दशा और दिशा को बदल सकता है। सरपंच के तौर पर मैं तालाब की दशा को लेकर काफी चिंतित थी। बस, एक ही ख्याल रहता था कि किसी भी तरह से इस तालाब को फिर से पुनर्जीवित तो करना ही है। लगभग 237 जनसंख्या वाले इस गांव में पानी की काफी समस्या भी थी। दूरस्थ अंचल एवं वन क्षेत्र में होने के कारण निस्तारी के लिए पानी की कमी की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। 
तालाब के संबंध में विस्तार से बताते हुए यहाँ की महिला सरपंच नूरजहाँ रिजवी कहती हैं कि हम सोच भी नहीं सकते थे कि एक तालाब गांव की दशा और दिशा को बदल सकता है। सरपंच के तौर पर मैं तालाब की दशा को लेकर काफी चिंतित थी। बस, एक ही ख्याल रहता था कि किसी भी तरह से इस तालाब को फिर से पुनर्जीवित तो करना ही है। लगभग 237 जनसंख्या वाले इस गांव में पानी की काफी समस्या भी थी। दूरस्थ अंचल एवं वन क्षेत्र में होने के कारण निस्तारी के लिए पानी की कमी की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था।
उन्होंने आगे बताया कि तालाब को पुनर्जीवित करने के लिए ग्राम पंचायत ने ग्रामीणों की बैठक आयोजित की। यहाँ सभी के बीच काफी चर्चा हुई। धीरे-धीरे बात बनने और बढ़ने लगी। आखिरकार यह तय हुआ कि पानी की समस्या को दूर करने के लिए तालाब का गहरीकरण किया जाए और इसके पाटों को बांधने के लिए पीचिंग का कार्य भी करवाया जाए। अब सवाल पैसों का था, तो यह भी हल हो गया कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से राशि प्राप्त की जाए।
ग्रामवासियों के इस निर्णय पर ग्राम पंचायत ने एक प्रस्ताव तैयार किया और विधिवत अनुमोदन प्राप्त कर, नौ लाख छियत्तर हजार रुपये की लागत से तालाब गहरीकरण की प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त की। इसमें महात्मा गांधी नरेगा से सात लाख छिहत्तर हजार रुपये और मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना से दो लाख रुपयों का अभिसरण शामिल है। इस तरह तालाब गहरीकरण के लिए संसाधनों की व्यवस्था के बाद 15 मार्च 2016 को तालाब गहरीकरण की शुरुआत हई। ग्रामीणों, विशेषकर महिलाओं की भागीदारी और मेहनत से तालाब का आकार खुलने लगा एवं गहरीकरण भी हुआ। इस कार्य से जहाँ ग्रामीणों को सीधे रोजगार के अवसर प्राप्त हुए, वहीं गांव को जल संरक्षण का साधन भी उपलब्ध हो गया।

होने लगा साग-भाजी उत्पादन
तालाब गहरीकरण के बाद बारिश का मौसम आया और बारिश का पानी मोतियों की तरह तालाब में समाने लगा। बारिश में लबालब भर जाने से ग्रामीणों का उत्साह बढ़ गया। इसका एक फायदा यह भी हुआ कि तालाब के आस-पास के खेत भी सिंचित हो गए और भू-जल स्तर में भी वृद्धि हुई। ग्राम पंचायत के उपसरपंच श्री मोहम्मद अय्यूब खान कहते हैं कि गांव में तालाब से लगे खेतों में महिलाएँ तालाब के पानी से सब्जी-भाजी लगा रही हैं, जिसे वे गांव में ही बेचकर रुपये कमा रही हैं।  

मछलीपालन से हुई आय
गाँव में पानी आया तो दूसरे काम भी होने लगे। तालाब में भरपूर पानी होने के बाद, यह तालाब सिर्फ निस्तारी के कार्य तक ही सीमित नहीं रहा। लबालब भरे इस तालाब को देखकर गांव के ही जय माँ दुर्गा स्वसहायता समूह ने ग्राम पंचायत के समक्ष मछलीपालन हेतु निवेदन किया। उनकी इच्छा और उत्साह को देखकर ग्राम पंचायत ने तालाब को एक साल के लिए उन्हें पट्टे पर दे दिया। इससे ग्राम पंचायत को दस हजार रुपये की आय प्राप्त हुई। स्वसहायता समूह ने भी लगन से मछलीपालन किया और मछली बेचकर लगभग एक लाख पचास हजार रुपये की आय प्राप्त की। समूह की अध्यक्ष श्रीमती शालिनी ध्रुव ने कहा कि सभी सदस्यों ने मिलजुल कर मछलीपालन किया। बाजार में समूह की महिला सदस्यों ने ही मछली बेचने का काम किया। घर के पुरुष सदस्यों ने तालाब से मछली पकड़ने में हमारी मदद की।
तालाब का पुनर्जीवन, गांव के लिए इतना फायदेमन्द होगा, यह शायद ही किसी ने सोचा होगा। पर आज तालाब ने काफी कुछ बदल दिया है। 





--0--


----------------------------------------------------------------------------
एक नजरः-
कार्य का नाम- तालाब सौंदर्यीकरण निस्तारी तालाब, 
ग्राम पंचायत- मुड़केरा, आश्रित ग्राम- राऊतमुडा  विकासखण्ड- मगरलोड,  जिला- धमतरी, छत्तीसगढ़
अभिसरण में शामिल योजना/विभाग व परियोजना की लागत- 9.76 लाख (महात्मा गांधी नरेगा- 7.76 लाख व मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना- 2.00 लाख), निर्माण वर्ष2017-18
---------------------------------------------------------------------------------------------





----------------------------------------------------------------------------

रिपोर्टिंग - श्री देवेन्द्र यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- जांजगीर चाम्पा
तथ्य व स्त्रोत- श्री आयुष झा, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-मगरलोड, धमतरी,
लेखन - श्री संदीप सिंह चैधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर
संपादन - श्री आलोक कुमार सातपुते, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, रायपुर
श्री प्रशांत कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, प्रकाशन शाखा, विकास आयुक्त कार्यालय, रायपुर
 ----------------------------------------------------------------------------





Thursday, 13 December 2018

बंजर टापू हुआ गुलजार

बंजर टापू हुआ गुलजार

मनरेगा से वीरान भूमि में किया वृक्षारोपण, सींचकर बिखेरी हरियाली


       
      धमतरी जिले के कुरुद विकासखण्ड के अंतर्गत ग्राम पंचायत- परखंदा में महानदी के जल प्रवाह क्षेत्र में बना टापू, जो करीब दशकों पहले से वीरान और बंजर था, उसे कड़ी मेहनत और हौसलों के दम पर परखंदा के सरपंच और ग्रामीणों ने मिलकर हरा-भरा कर दिया है। आज उसमें हरे-भरे फलदार वृक्ष लहलहा रहे हैं। इन पेड़-पौधों के बीच अंतरवर्तीय सब्जी की खेती करके ग्रामीणों ने बंजर टापू को आजीविका का जरिया भी बना लिया है। आज यहाँ से उत्पादित फलों और सब्जियों की नजदीकी बाजारों में काफी मांग है।
        परखंदा गांव की इस उपजाऊ भूमि की आज जो यह तस्वीर दिखाई देती है, वह पहले ऐसी नहीं थी। मानवीय हस्तक्षेप और बदलती प्राकृतिक दशाओं के बीच कभी तरबूज की खेती का केन्द्र रहा यह स्थल लगभग बंजर और वीरान हो गया था। इतनी बड़ी भूमि का उपयोग नहीं होने और बंजर रहने का यहाँ के ग्रामीणों को काफी मलाल था। किन्तु भूमि के बड़े आकार, प्रबंध और तकनीकी उपायों के अभाव के कारण कोई राह नहीं सूझ रही थी। मन में बंजर भूमि के पर्यावरण को ठीक करने और फलदार वृक्षों से ग्राम पंचायत व ग्रामीणों की आय बढ़ाने के जज्बे ने एक दिन ग्राम पंचायत के सरपंच श्री रमेश कुमार साहू को एक राह भी दिखा दी। उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पी.एम.के.एस.वाय.) के परस्पर तालमेल से टापू के लगभग 15 एकड़ क्षेत्र में भूमि समतलीकरण, मिश्रित पौधरोपण एवं वृक्षारोपण में टपक पद्धति से सिंचाई कार्य की परियोजना को ग्रामीणों के सामने रखा। इस परियोजना के अंतर्गत पहले समतलीकरण व पौधारोपण कार्य से मजदूरी प्राप्त होने, फिर रोपित फलदार पौधों के फलों की बिक्री और पौधों के बीच सब्जियों की खेती से होने वाली आमदनी के प्रस्ताव से ग्रामीणों में खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सभी ने सहर्ष अपनी सहमति दे दी।

        ग्रामीणों की सहमति और ग्राम सभा के अनुमोदन के बाद, विधिवत ग्राम पंचायत को आखिरकार उनका यह प्रस्ताव 16 जून 2016 को तेइस लाख अट्ठारह हजार रुपयों की स्वीकृति के साथ प्राप्त हो गया, जिसमें महात्मा गांधी नरेगा से बारह लाख उन्तीस हजार और पी.एम.के.एस. योजना से दस लाख नवासी हजार रुपये शामिल हैं। इसके बावजूद पर्यावरण को बेहतर करने के जज्बे के सामने परियोजना को शुरु करने के लिए गांव की आबादी भूमि से नदी के बीचों-बीच टापू की बंजर भूमि तक संसाधन पहुँचाना एक बड़ी बाधा थी, लेकिन हौसले पस्त नहीं हुए। मेहनत और लगन के बूते जुलाई, 2016 को ग्रामीणों ने मिलकर इस बंजर जमीन को हरा-भरा करने की शुरुआत कर दी। तीन साल की परियोजना में सबसे पहले भूमि का समतलीकरण कर, उसमें फलदार पौधे रोपे गए। पौधारोपण को सुरक्षा देने के उद्देश्य से बांस और करौंदे के पौधों की चारों ओर बायो-फेंसिंग की गई। फिर सिंचाई के लिए टपक पद्धति अपनाई गई। इसके लिए क्षेत्र में बोरिंग की व्यवस्था की गई। सिंचाई के साधन होने और सुरक्षा मिलने से पौधे तेजी से बढ़े। ग्रामीणों ने मिलकर सभी पौधों की परवरिश की और सिंचाई कर, बंजर भूमि को हरा-भरा बना दिया।

बेमिसाल काम
            अपने हौंसले, कड़ी मेहनत और लगन के कारण आज परखंदा गांव के सरपंच और ग्रामीण आस-पास के गांवों में पर्यावरण संरक्षण और आजीविका की दिशा में बेहतर कार्य के लिए मिसाल बन गए हैं। ग्राम रोजगार सहायक श्री श्यामलाल सोनकर का कहना है कि दो साल पहले इस टापू पर कुछ नहीं था, नाम मात्र की घास-फूस और कटीली झाड़ियां नजर आती थीं। ग्राम पंचायत ने ग्रामीणों की मदद से इसे हरा-भरा कर न सिर्फ पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति बेहतर कदम उठाया है, बल्कि बंजर में भी फल व सब्जियां पैदाकर यह साबित कर दिखाया है कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती। यहाँ की हरियाली से प्रभावित होकर बच्चे भी खेलने आ जाते हैं। बच्चे इस जगह को बगीचा कहने लगे हैं। इस बगीचे में वे शाम होते ही लुका-छिपी, छू-छुआउल, पिठ्ठुल आदि खेल खेलते हैं।

लगभग दो हजार पौधों ने बिखेरी हरियाली
ग्राम पंचायत के सरपंच श्री रमेश कुमार साहू ने बताया कि दो हजार छः सौ छियासी पौधे टापू में लगाये हैं। इसमें आम के 524, अमरुद के 378, कटहल के 129, जामुन के 130, करौंदा के 1200 एवं बांस के 325 पौधे शामिल हैं। उन्होंने बताया कि पौधे अब लगभग 7 फुट जितने बड़े हो गए हैं और अमरुद के पेड़ में तो दूसरी बार फल आ गए हैं। ग्रामीणों के द्वारा ही समूह में इन पौधों की देखभाल की जाती है। समूह के सदस्य बिसहत राम निषाद, तामेश्वर साहू, कामता निषाद, देव कुमार निषाद, राधेश्याम यादव और उत्तम कुमार साहू के द्वारा परियोजना क्षेत्र में रोपित पौधों के बीच इंटर क्रॉपिंग करके फलों और सब्जियों का उत्पादन किया जा रहा है और कुरुद सहित आसपास के गांवों के बाजारों में विक्रय किया जाता है। इस जमीन पर तरबूज की फसल से 80 हजार, अमरुद से 5 हजार और सब्जियों से 70 हजार रुपये की आमदनी हुई है।
             सभी की मेहनत से बंजर टापू की यह जमीन आय का एक जरिया बन गई है।
   
--0--


----------------------------------------------------------------------------
एक नजरः-
कार्य का नाम- भूमि समतलीकरण, वृक्षारोपण एवं वृक्षारोपण में टपक (ड्रीप) सिंचाई कार्य, 
ग्राम पंचायत- परखंदा,  विकासखण्ड- कुरुद,  जिला- धमतरी, छत्तीसगढ़
अभिसरण में शामिल योजना/विभाग व परियोजना की लागत- 23.18 लाख (महात्मा गांधी नरेगा- 12.29 लाख व प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- 10.89 लाख), निर्माण वर्ष2016-17 से 2018-19
---------------------------------------------------------------------------------------------




Tuesday, 11 December 2018

छोटी शुरुआत से उम्मीदों की उड़ान

छोटी शुरुआत से उम्मीदों की उड़ान

दुग्ध उत्पादन कर, आदिवासी संवार रहे हैं अपनी जिंदगी


किसी भी कार्य की शुरुआत अच्छी होनी चाहिए। यह जरुरी नहीं की वो बड़ी हो या छोटी। अक्सर छोटी-छोटी शुरुआतें और सफलता, आत्मविश्वास को बढ़ाती हैं। इसी आत्मविश्वास के सहारे उम्मीदों के उड़ानों की शुरुआत होती है। कोरिया जिले के बैकुण्ठपुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-जगतपुर में आदिवासी परिवारों द्वारा संचालित एक छोटी-सी डेयरी को देखकर ये बातें निश्चित तौर पर कही जा सकती हैं। यहाँ डेयरी में एक गिलास दूध पीने से इस बात का अहसास हो जाता है, कि ये आदिवासी समूह किस शिद्द्त से अपनी आजीविका को बेहतर बनाने के लिए दिलों-जान से लगा हुआ है।
इनकी इस शुरुआत को आधार मिला, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और जिला खनिज न्यास संस्थान (डिस्ट्रीक मिनरल फण्ड) के परस्पर तालमेल से। इस तालमेल में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से प्राप्त दो लाख रुपयों से जहाँ डेयरी के लिए शेड का निर्माण हुआ, वहीं जिला खनिज न्यास संस्थान की निधि से प्राप्त नौ लाख नब्बे हजार रुपयों से डेयरी निर्माण की शेष आवश्यकताओं की पूर्ति की गई और गायों व सांड की व्यवस्था हुई।
यहाँ आदिवासी किसान अवधनारायण, जगजीत सिंह, शोभनाथ सिंह, बुधराम और संतोष सिंह ने डेयरी व्यवसाय की शुरुआत करके, अपनी आजीविका को बेहतर बनाने की सोच रखने वाले ग्रामीणों और छोटे किसानों के सामने मिसाल पेश की हैं। समूह के सदस्य अवधनारायण बताते हैं कि वे परिवार में पुरखों से गाय-पालन करते आए हैं और यह उनकी परंपरा और रुचि का काम भी है। यह कभी नहीं सोचा था कि इस काम को रोजी-रोटी का भी हिस्सा बनाएंगे। एक दिन हमें ग्राम पंचायत और कृषि विज्ञान केन्द्र से डेयरी चलाने का कौशल प्रशिक्षण मिलने की जानकारी प्राप्त हुई, तभी से हमनें सोच लिया था कि अब अपने परंपरागत कार्य को अपना हुनर बनाकर जिंदगी संवारेंगे। हमने महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत प्रोजेक्ट लाइफ से डेयरी संचालन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद कृषि विज्ञान केन्द्र-बैकुण्ठपुर के विषय विशेषज्ञ श्री संदीप शर्मा जी के मार्गदर्शन में हमारी इस डेयरी का प्रोजेक्ट बना और महात्मा गांधी नरेगा योजना के अभिसरण के अंतर्गत स्वीकृत हुआ। हम पांचो ने मिलकर एक सितम्बर 2017 को डेयरी निर्माण की शुरुआत की। लगभग नौ महिनों की मेहनत के बाद हमारी डेयरी बनकर तैयार हो गई। प्रशिक्षण तो हमें मिल ही चुका था। इसलिये हम जी-जान से डेयरी के काम में जुट गये। 

पशुओं की देखभाल पर पूरा ध्यान
            डेयरी में गायों की देखभाल और दूध दुहने की जिम्मेदारी समूह के सदस्य मिलकर निभाते हैं। समूह का कोई न कोई सदस्य हर समय डेयरी में मौजूद रहता ही है। चार गायों से शुरु हुई इस डेयरी में प्रजनन के बाद सदस्यों की संख्या 5 से बढ़कर 8 हो गई है। पशुओं के बीमार होने पर तत्काल पशु चिकित्सक को बुलाकर उपचार कराया जाता है। समूह के सदस्य गायों की नस्ल सुधारने के काम में भी लगे हुए हैं। इस डेयरी केन्द्र में यहाँ के अलावा गांव की अन्य 10 गायों का भी नस्ल सुधार किया जा चुका है।

शुरुआत में 16 लीटर से ज्यादा दूध का हो रहा उत्पादन
             अभी शुरुआत में डेयरी में एक गाय रोजाना औसतन 4 से 6 लीटर दूध दे रही हैं, जो कुछ दिनों में ओर अधिक बढ़ जायेगा। समूह के सदस्य श्री अवधनारायण के मुताबिक उनकी डेयरी में रोजाना 20 से 22 लीटर के बीच दूध का उत्पादन होता है। दूध की अधिकांश खपत नजदीकी कोरिया-कॉलरी में हो जाती है, जहाँ उन्हें दूध का 40 रुपये प्रति लीटर का दाम मिल जाता है। यानी महीने भर में करीब पच्चीस हजार रुपये का दूध बिक जाता है। इतना ही नहीं डेयरी से निकलने वाले गोबर से गांव में स्थापित वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन इकाई में जैविक खाद तैयार करते हैं और उसे अपने खेतों में इस्तेमाल भी करते हैं।

कड़ी मेहनत और समय पर मार्गदर्शन से सफलता
आम कृषक से प्रगतिशील डेयरी किसान बनने वाले जगजीत सिंह का कहना है कि जो दिन-रात काम कर सकता है, उसे ही डेयरी खोलनी चाहिए। जगजीत के मुताबिक डेयरी में हर वक्त पशुओं का ध्यान रखना पड़ता है। उनके खाने से लेकर साफ-सफाई और दवा-पानी, सब कुछ देखना होता है। यह बहुत मेहनत का काम है लेकिन इसे करने से आत्मसंतुष्टि भी मिलती है। डेयरी के काम में धैर्य भी रखना होता है और समस्याएं भी आती रहती हैं, जिन्हें डॉक्टरों और विशेषज्ञों के मार्गदर्शन से दूर किया जा सकता है।
डेयरी संचालन के समस्त कार्यों में ग्राम पंचायत का भरपूर सहयोग मिला। डेयरी स्थापना से आज तक कृषि विज्ञान केन्द्र, बैकुण्ठपुर के वैज्ञानिक व विषय-विशेषज्ञों का नियमित मार्गदर्शन मिल रहा है। 


--0--

----------------------------------------------------------------------------
एक नजरः-
कार्य का नाम- आदिवासी किसानों द्वारा सामूहिक गाय प्रजनन केंद्र, 
हितग्राही का नाम- अवधनारायण सिंह, जगजीत सिंह, शोभनाथ सिंह, बुधराम और संतोष सिंह
ग्राम पंचायत- जगतपुर,  विकासखण्ड- बैकुण्ठपुर,  जिला- कोरिया, छत्तीसगढ़
अभिसरण में शामिल योजना/विभाग व परियोजना की लागत- 13.90 लाख (महात्मा गांधी नरेगा- 2.00 लाख व जिला खनिज न्यास संस्थान निधि- 9.90 लाख), निर्माण वर्ष- 2017-18
---------------------------------------------------------------------------------------------


Friday, 7 December 2018

नवाचार ने दी आदिवासियों की आजीविका विकास को नई दिशा

नवाचार ने दी आदिवासियों की आजीविका विकास को नई दिशा

महात्मा गांधी नरेगा और भारतीय कृषि विज्ञान अनुसंधान की आदिवासी उपयोजना के अभिसरण से हुई स्थापित हुई केंचुआ खाद उत्पादन इकाई

ग्रामीण भारत, युवाओं के लिए संभावनाओं से भरा हुआ है। संसाधनों की उपलब्धता और उचित मार्गदर्शन से ग्रामीण युवाओं के जीवन को एक नई दिशा दी जा सकती है, जो उनके लिए एक नवाचार साबित हो सकती है। हर एक कार्य क्षेत्र में नवाचार, सफलता की राह जरुर दिखाता है। कार्य क्षेत्र कोई भी हो, बस शुरुआत होनी चाहिए। ऐसी ही शुरुआत कोरिया जिले के बैकुण्ठपुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-जगतपुर में आदिवासी युवकों के द्वारा संचालित वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) उत्पाद इकाई को देखकर मिलती है। जहाँ युवाओं ने इकाई स्थापना के बाद से दो चरणों में लगभग 2.50 लाख और 3 लाख रुपये की जैविक खाद की बिक्री की है और 3 लाख रुपये की जैविक (केंचुआ) खाद बनकर तैयार है। इस कार्य में जहाँ उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और भारतीय कृषि विज्ञान अनुसंधान की आदिवासी उपयोजना के अभिसरण से संसाधन मिले और वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन इकाई की स्थापना की, वहीं कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से सही और नियमित रुप से मार्गदर्शन भी प्राप्त किया।

            जगतपुर ग्राम पंचायत में स्थापित वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन इकाई से कोरिया एग्रो प्रोड्यूसर कम्पनी के नाम से केंचुआ खाद की बिक्री होती है। यह कम्पनी कृषि विज्ञान केन्द्र ने क्षेत्र के किसानों को लेकर बनाई है, जिसमें उत्पादन इकाई के सदस्य भी शामिल हैं। यहाँ कार्यरत आदिवासी शोभनाथ सिंह ने बताया कि वर्तमान में उत्पादन इकाई में मेरे साथ गांव के 10 सदस्य नियमित और सक्रिय रुप से एक टीम के रुप में काम कर रहे हैं। पिछले साल 2017-18 में लगभग 35 टन केंचुआ खाद का उत्पादन किया गया था। जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है और जल धारण क्षमता भी बढ़ती है। इसलिए समूह के सदस्यों ने सबसे पहले अपनी मेहनत से तैयार किये गए खाद का उपयोग अपने-अपने खेतों में किया। इसके साथ ही शासकीय विभागों और आस-पास के किसानों को खाद भी बेची। इससे लगभग 2 लाख 50 हजार रुपये की आमदनी भी हुई।

            समूह के ही अन्य सदस्य श्री जलजीत सिंह ने शोभनाथ सिंह की बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि यह काम उन्हें और उनके समूह को अच्छा लगा। कृषि विज्ञान केन्द्र-बैकुण्ठपुर के वैज्ञानिकों ने हमें वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन इकाई में केंचुआ खाद बनाने का तरीका सिखाया, और आज भी हमें नियमित रुप से मार्गदर्शन दे रहते हैं। कम समय में मेहनत करके पैसा कमाने का साधन होने के कारण हमने वर्मी कम्पोस्ट में ही मेहनत करने का सोचा। आज हमारी मेहनत रंग ला रही है। इस साल 2018-19 में अब तक उत्पादन इकाई से हमने लगभग 50 टन केंचुआ खाद बनाई है और इसमें से 3 लाख रुपये की खाद बेच भी चुके हैं।

जैविक खाद का उपयोग और वर्मी कम्पोस्ट के प्रति बढ़ी है रुचि
            सरपंच श्री शिवप्रसाद सिंह ने, गांव में बन रही केंचुआ खाद के संबंध में खुशी व्यक्त करते हुये कहा कि महात्मा गांधी नरेगा और कृषि विज्ञान केन्द्र के इस तालमेल से आर्थिक प्रगति की जो राह इन युवकों को दिखाई गई है, उसका व्यापक परिणाम देखने को मिल रहा है। इनके द्वारा केंचुआ खाद बनाने के बाद इलाके में जैविक खाद के उपयोग और वर्मी कम्पोस्ट टेंक तैयार करने के प्रति रुचि दिखाई दे रही है। बैकुण्ठपुर विकासखण्ड में ही ग्राम पंचायत- बरबसपुर, लौहारी, उमझर, नगर और रटगा के ग्रामीण ने उत्पादन केन्द्र को देखा है। वहीं सोनहत विकासखण्ड के ग्राम पंचायत- सुन्दरपुर, लटमा और भैंसवार के ग्रामीणों ने भी उत्पादन केन्द्र जैविक खाद को तैयार करने के तरीके को जाना और समझा। कृषि विज्ञान केन्द्र को मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-उजियारपुर से तो इसी तरह का केन्द्र स्थापित करने का आवेदन भी प्राप्त हुआ है।

कुछ नया करने का इरादा
            कृषि विज्ञान केन्द्र-बैकुण्ठपुर के फील्ड असिस्टेन्ट श्री फैय्याज आलम के मुताबिक गांव के युवक कुछ नया करना चाहते थे। उनके आवेदन पर उन्हें वर्मी कम्पोस्ट पर 90-घंटो का विशेष प्रशिक्षण मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत दिया गया था। प्रशिक्षण के बाद उत्तीर्ण प्रशिक्षणार्थियों की रुचि के आधार पर कृषि विज्ञान केन्द्र के द्वारा 21 युवाओं का एक समूह तैयार किया गया । वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं केन्द्र प्रमुख श्री रंजीत सिंह राजपूत के निर्देशन में इनकी आजीविका के विकास के लिए 12 लाख 90 हजार रुपयों की लागत का एक सामूहिक वर्मी कम्पोस्ट खाद उत्पादन सह शेड निर्माण का प्रोजेक्ट तैयार किया गया। प्रोजेक्ट में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से 9 लाख  90 हजार रुपए और भारतीय कृषि विज्ञान अनुसंधान की आदिवासी उपयोजना से 3 लाख रुपयों का अभिसरण किया गया। प्रोजेक्ट के विषय-वस्तु विशेषज्ञ श्री संदीप शर्मा के मार्गदर्शन में 21 मार्च, 2017 को प्रोजेक्ट की आधारशिला समूह के युवकों ने मिलकर रखी। युवकों की मेहनत का ही परिणाम था कि लगभग तीन महीने के भीतर ही 94-नग वर्मी कम्पोस्ट टेंक मय शेड के साथ केंचुआ खाद उत्पादन इकाई बनकर तैयार हो गई। वर्तमान में यहाँ नियमित और सक्रियता के साथ समूह के 11 सदस्य काम कर रहे हैं, शेष सदस्य खेती व अन्य कार्यों में लगे हैं।

टीम वर्क से होता है सब काम
            केंचुआ लाना हो या वर्मी कम्पोस्ट बनाना अथवा 25 किलो खाद की पैकिंग से बोरी तैयार करना, ये सभी कार्य समूह के सदस्य टीमवर्क के रुप में करते हैं। समूह के सदस्य श्री अवधनारायण जैविक खाद बनाने की प्रकिया के बारे में बताते हैं कि सबसे पहले पिट को बनाया जाता है। इसके बाद उसमें मिट्टी को डालकर उसे अच्छी तरह से दबा-दबा कर बैठाया और मजबूत किया जाता है। इसके बाद उसमें सड़ने योग्य भूसा, हरा पत्ता, चारा, खरपतवार, गोबर, मिट्टी आदि डालकर खाद बनाने के लिए उसमें केंचुआ छोड़ दिया जाता है। लगभग डेढ़ महीने के बाद में जैविक खाद प्राप्त हो जाता है। समूह के द्वारा स्थानीय तौर पर 9 रुपये प्रति किलो की दर से 25 किलो का बोरा बेचा जा रहा है।

            समूह के इस कार्य और उन्हें मिल रहे लाभ को देखकर यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि योजनाओं के परस्पर तालमेल और विशेषज्ञों के नियमित मार्गदर्शन ने इस नवाचार को सार्थक कर दिया है।

-0-  
             

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...