Monday, 28 February 2022

पितृसत्तात्मक समाज की बदली मानसिकता, संतेश्वरी ने अपने कार्यों से गढ़े नए आयाम

महिला मेट और बैंक सखी की अपनी भूमिका का बखूबी कर रही निर्वाह, 
सर्वश्रेष्ठ बैंक सखी के रूप में 3 बार सम्मानित हो चुकी है संतेश्वरी.


स्टोरी/रायपुर/कांकेर/28 फरवरी 2022. सुश्री संतेश्वरी कुंजाम ने अपने कार्यों और कौशल से पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता बदल दी है। मनरेगा मेट जैसे नाप-जोख की तकनीकी समझ और श्रमिकों के प्रबंधन के कौशल वाले काम को वह बखूबी अंजाम दे रही है। उसने बैंक सखी के रूप में भी अपनी कार्यकुशलता का लोहा मनवाया है। वह तीन बार अपने विकासखण्ड में सर्वश्रेष्ठ बैंक सखी के रूप में सम्मानित हो चुकी है। पहले-पहल जब उसने मनरेगा मेट का काम शुरू किया था तब गांव वाले कहते थे कि लड़की है, क्या मेट का काम करेगी! क्या माप देगी!! संतेश्वरी ने तभी ठान लिया था कि मैं मेट का काम करके दिखाऊँगी। अब वही ग्रामीण उसका गुणगान करते हुए कहते हैं कि संतेश्वरी के कारण महात्मा गांधी नरेगा में बहुत काम मिला। वह दूसरी लड़कियों के लिए प्रेरणा है।

कांकेर जिले के नरहरपुर विकासखण्ड के हटकाचारामा की सुश्री संतेश्वरी कुंजाम की कहानी काफी प्रेरक है। अपने कार्यों से उसने पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता बदली है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम) में महिला मेट के रूप में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर उसने खुद को साबित किया और महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी। बारहवीं तक पढ़ी 26 साल की संतेश्वरी ने अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए वर्ष 2015 में महात्मा गांधी नरेगा कार्यों में अकुशल श्रमिक के रूप में काम करना शुरू किया था। कार्यस्थल पर वह जिज्ञासावश ग्राम रोज़गार सहायक, मेट एवं तकनीकी सहायकों को काम करते हुए देखती थी। कुछ-कुछ काम समझ आने पर उसने ग्राम रोजगार सहायक से मेट का काम करने की इच्छा जाहिर की।

संतेश्वरी की यह इच्छा गाँव में चर्चा का विषय बन गई। कई लोग उसकी क्षमता और रूचि के बारे में टीका-टिप्पणी करने लगे। कई लोग यह मानते थे कि मेट का काम बहुत कठिन है, क्योंकि इसके लिए माप के बुनियादी और तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है। अकुशल श्रमिक होने के कारण वह इसे नहीं कर पायेगी। संतेश्वरी इन बातों से दुखी तो हुई, लेकिन उसने हार नहीं मानी। इसे चुनौती मानकर खुद को साबित करने में लग गई। उसने बुनियादी गणित, कन्वर्सन टूल्स और महात्मा गांधी नरेगा से संबंधित दस्तावेजों को पढ़ना शुरू किया। गाँव में काम करने वाले स्वयंसेवी संस्था ‘प्रदान’ से मैदानी स्तर पर श्रमिकों एवं कार्यस्थल के प्रबंधन के तौर-तरीकों को सीखा। संतेश्वरी के हौसले और इच्छाशक्ति को देखकर उसके माता-पिता ने भी हरसंभव सहायता की।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी सन्तेश्वरी वर्ष 2018 में अपने पंचायत के मेट-पैनल में शामिल हुई। वह विकासखण्ड स्तर पर आयोजित प्रशिक्षणों और मैदानी अनुभव तथा अपनी ऊर्जा, दृढ़ संकल्प व धैर्य से लगातार आगे बढ़ती गई। इस सफर में उसे लोगों की अस्वीकृति और अपमान का भी सामना करना पड़ा। उसने साहस और दृढ़ता से इन सबका सामना किया और अकुशल श्रम तक खुद को सीमित कर लेने वाली महिलाओं के लिए मिसाल कायम की।


स्वसहायता समूह की दीदियों के साथ ने रास्ता किया आसान

संतेश्वरी अपने गांव की गुलाब महिला स्वसहायता समूह और जय मां लक्ष्मी ग्राम संगठन की सदस्य थी। इसलिए उन्होंने सबसे पहले समूह की दीदियों के साथ महात्मा गांधी नरेगा के भुगतान में देरी, काम की गुणवत्ता, सृजित संपत्ति के उपयोग और काम की मांग जैसे मुद्दों पर चर्चा शुरू की। उसकी लगातार कोशिशों से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित ग्राम संगठन की बैठकों में महात्मा गांधी नरेगा चर्चा का नियमित एजेंडा बन गया और सभी ने इससे संबंधित मुद्दों पर ध्यान देना शुरू कर दिया। संतेश्वरी ने समूह की दीदियों को साथ लेकर इन विषयों पर सरपंच, ग्राम रोजगार सहायक, पंचों एवं पंचायत सचिव के साथ ग्रामसभा में भी चर्चा शुरू की।

महात्मा गांधी नरेगा में मेट और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) में बैंक सखी होने के नाते संतेश्वरी ने श्रमिकों के बैंक खातों से संबंधित त्रुटियों को कम करने की दिशा में भी काम करना शुरू किया। इससे श्रमिकों को मजदूरी भुगतान की राशि अपने खातों में प्राप्त करने में सुविधा हुई। वह बैंक सखी के रूप में हर महीने औसतन 15 लाख रूपये का लेन-देन करती है, जिससे लोगों को गाँव में ही नगद राशि मिल जा रही है। इन सबसे परिस्थितियाँ धीरे-धीरे बदलने लगीं और ग्रामीणों का उस पर विश्वास बढ़ने लगा।

एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की योजना बनाने में निभाई अग्रणी भूमिका

संतेश्वरी ने हटकाचारामा की महिला स्वसहायता समूहों, पंचायत सदस्यों और स्वयंसेवी संगठन की मदद से वहां के उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए विकेन्द्रीकृत तरीके से सभी लोगों की भागीदारी से कृषि सुधार के लिए पैच में योजना बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने पारा-मोहल्ला स्तर की बैठकें आयोजित कर भूमि में संभावित विभिन्न सकारात्मक संरचनाओं और उनके उपयोग के बारे में किसानों व महिला समूहों के साथ चर्चा की। उसके प्रयास से विभिन्न हितग्राहियों की भागीदारी के साथ एक पंचायत स्तरीय एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की योजना बनी।

संतेश्वरी की अपने गांव और महिलाओं के लिए विकास की सोच ने जमीनी स्तर पर बदलाव लाया। वित्तीय वर्ष 2020-21 में गांव में प्रति परिवार प्रदान किए जाने वाले रोजगार के औसत दिन 66 प्रतिशत से बढ़कर 87 प्रतिशत हुआ। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत गांव में सृजित कुल मानव दिवस रोजगार में महिलाओं का योगदान भी बढ़ा। वर्ष 2019-20 में यह 31 प्रतिशत था, जो 2020-21 में बढ़कर 36 प्रतिशत हो गया। चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में इसमें और भी इजाफा हुआ है। इस साल यह बढ़कर 37 प्रतिशत से अधिक हो गया है। संतेश्वरी के अकुशल श्रमिक से महिला मेट और बैंक सखी बनने के सफर ने उसकी जैसी अनेक महिलाओं को आगे बढ़ने और नया मुकाम हासिल करने के लिए प्रेरित किया है।
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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 23.02.2022 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 225, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 220, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 214,
रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 286, कुल सृजित मानव दिवस- 7119,
रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 110, महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 2658,
मेट का नाम- सुश्री संतेश्वरी कुंजाम, उम्र- 26 वर्ष, मोबाईल नं.-7354077552
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री राहुल तारक, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-नरहरपुर, जिला-कांकेर।
लेखन- सुश्री मोहिनी, बी.आर.एल.एफ. प्रोजेक्ट सदस्य।
संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Friday, 18 February 2022

समाज के लिए उदाहरण बनी दिव्यांग महिला मेट अनुराग

संघर्ष कर बनी घर की पालनहार.



स्टोरी/रायपुर/दुर्ग/18 फरवरी 2022. दुर्ग जिले के चीचा ग्राम पंचायत की सुश्री अनुराग ठाकुर का जज्बा देखते ही बनता है। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी दिव्यांगता को कभी मंजिल के रास्ते में आने नहीं दिया। जो ठान लिया, उसे पूरा करके ही माना। अपनी हिम्मत, हौसले और जुनून के बूते वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) में महिला मेट बनकर, समाज के लिए वह एक आदर्श बनकर उभरी हैं। आज उनका नाम गाँव के प्रत्येक के जुबान पर है। वह दिव्यांग होने के बावजूद महात्मा गांधी नरेगा में मेट का कार्य करते हुए अपने परिवार का आर्थिक सहयोग कर रही है।

जिले के पाटन विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-चीचा की 34 वर्षीय सुश्री अनुराग ठाकुर एक पैर से दिव्यांग है। उनके परिवार में दो बहनें और एक भाई है। बचपन में ही नियति ने उसके सिर से पिता का साया उठा लिया था। ऐसे में परिवार में बड़ी होने के नाते उसके कंधों पर समय से पहले ही परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी। काफी कोशिशों के बाद उन्होंने अपनी स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की। ग्राम पंचायत की पहल पर महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत वर्ष 2012 से वे मेट के रुप में काम कर रही हैं। वह सुबह जल्दी-जल्दी घर के सभी कामों को निपटाकर महात्मा गांधी नरेगा के कार्यस्थल पर पहुँचती है और मेट के रुप में मनरेगा श्रमिकों को काम आबंटित करके, उनके द्वारा किये गये कामों का हिसाब अपनी मेट-माप पंजी में दर्ज करती हैं। सुश्री अनुराग अपने कार्य में इतनी अधिक कुशल हो गई हैं कि वे अन्य मेट के भांति सभी कामों को सहजता से निपटा लेती हैं। इनके कौशल के सामने इनकी दिव्यांगता कहीं नजर ही नहीं आती।

जीवन के उतार-चढ़ाव को नजदीक से देखने वाली सुश्री अनुराग ने परिवार में बड़े होने की भूमिका का भी बखूबी निर्वहन किया है। उन्होंने विरासत में मिली खेती-बाड़ी को संभालते हुए अपने छोटे भाई-बहनों को पढ़ाया और उनका विवाह भी कराया। वह बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा से उन्हें काफी संबल मिला। योजना में मेट के रुप में मिलने वाले पारिश्रमिक से वे अपनी आजीविका पहले से बेहतर तरीके से चला पा रही हैं। मेट के कार्य से उन्हें अब तक बतौर पारिश्रमिक एक लाख 67 हजार रुपये मिल चुके हैं।

मनरेगा में साल दर साल बढ़ी महिलाओं की भागीदारी

महिला मेट के रुप में सुश्री अनुराग ने महात्मा गांधी नरेगा में चलने वाले कार्यों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए घर-घर महिलाओं से संपर्क करके उनसे काम की डिमांड ली। उनकी सक्रियता के फलस्वरुप वर्ष 2018-19 में 189 महिलाओं को 4 हजार 346 मानव दिवस का रोजगार मिला, जो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 225 महिलाओं के द्वारा सृजित मानव दिवस 7 हजार 719 हो गया। महिलाओं की भागीदारी का यह सिलसिला वर्ष 2020-21 में भी जारी रहा। इस वर्ष 289 महिलाओं के द्वारा 16 हजार 271 मानव दिवस का रोजगार प्राप्त किया गया। वहीं चालू वित्तीय वर्ष 2021-22 में 16 फरवरी की स्थिति में 277 महिलाओं को 5 हजार 430 मानव दिवस का सीधा रोजगार प्राप्त हो चुका है, जबकि अभी वित्तीय वर्ष समाप्त होने में एक माह से अधिक का समय शेष है।


स्व सहायता समूहों का सहयोग

अनुराग ठाकुर महात्मा गांधी नरेगा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के अलावा, गाँव में महिला स्व सहायता समूह की दीदीयों के साथ भी कार्य करती है। वह स्वयं भी ओम सांईनाथ स्व सहायता समूह से जुड़ी हैं और समूह में लेखापाल की भूमिका निभाती हैं। अपनी लीडरशीप और लेखा संधारण के कौशल के बलबूते उन्होंने गाँव में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित 14 महिला स्व सहायता समूहों को परस्पर सक्रिय बनाकर रखा है। वह समूह की सभी दीदीयों के मध्य सहकार की भावना को बलवती करने का कार्य करती हैं। इसके अलावा वह सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं में हितग्राही मूलक कार्यों को सीधे हितग्राही तक पहुँचाने के लिए गांव के निवासियों को जानकारी भी प्रदान करती हैं।
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वित्तीय वर्ष 2021-22 में दिनांक- 17.02.2022 की स्थिति में एक नजरः-
जारी जॉब कार्ड संख्या- 378, सक्रिय जॉब कार्ड संख्या- 399, सक्रिय श्रमिकों की संख्या- 476,
सक्रिय महिलाओं की संख्या- 310, रोजगार प्राप्त परिवारों की संख्या- 320, रोजगार प्राप्त श्रमिकों की संख्या- 397
कुल सृजित मानव दिवस- 7882, रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों की संख्या- 277,
महिला श्रमिकों के द्वारा सृजित मानव दिवस- 5430, सौ-दिवस रोजगार पूर्ण करने वाले परिवारों की संख्या- 12
मेट का नाम- सुश्री अनुराग ठाकुर, उम्र- 34 वर्ष, मोबाईल- 7974429901
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्रीमती डालिमलता, कार्यक्रम अधिकारी, विकासखण्ड-पाटन, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
2. श्री जवाहर चंद्राकर, सरपंच, ग्रा.पं.-चीचा, विकासखण्ड-पाटन, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
रिपोर्टिंग- श्रीमती रीता चाटे, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-दुर्ग, छत्तीसगढ़।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 15 February 2022

मेरा कुआँ - मेरा सम्मान

मनरेगा से बना कुआँ तो निस्तारी की समस्या हुई हल और आजीविका को मिला सहारा.


स्टोरी/रायपुर/गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही/15 फरवरी 2022. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अपने विभिन्न आयामों से ग्रामीण जन-जीवन को निरंतर मजबूती प्रदान कर रही है। योजना के तहत् कुआँ, डबरी, तालाब, पशु शेड, फलोद्यान सहित अन्य हितग्राही मूलक कार्यों से किसानों एवं पशुपालकों की आजीविका सशक्त हो रही है। साथ ही उन्हें अपनी निजी जमीन में स्वीकृत कार्यों में रोजगार भी प्राप्त हो रहा है। योजना से मिल रहे ये दोनों लाभ उन्हें निश्चिंतता प्रदान कर रहे हैं। ऐसी ही निश्चिंतता गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही जिले के पेण्ड्रा विकासखण्ड की की सोनबचरवार ग्राम पंचायत की निवासी 46 वर्षीया श्रीमती उमिन्द कुंवर के चहरे पर साफ नजर आती है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से उनके घर की बाड़ी में कुआँ बनने के बाद अब उन्हें पहले की भाँति रोजमर्रा की जरुरतों को पूरा करने के लिए पानी की व्यवस्था हेतु दूर तक भटकना नहीं पड़ता है। कुआँ बनने के बाद उनका जीवन सहज हो गया है। वे इस कुएँ से अपनी 50 डिसमिल की बाड़ी में विभिन्न तरह की साग-सब्जियों का उत्पादन भी ले रही हैं।

महात्मा गांधी नरेगा से खुद के नाम पर निर्मित परिसम्पत्ति से स्वयं को गौरान्वित मानते हुए श्रीमती उमिन्द कुंवर बताती हैं कि उनके परिवार में उनके पति श्री कलवन कुंवर के अलावा दो बच्चे हैं। परिवार के पास जीवन-यापन के लिए लगभग 2 एकड़ की खेती है और राज्य सरकार से वन अधिकार पट्टा के अंतर्गत एक एकड़ की जमीन भी मिली है, जिसमें वे धान का उत्पादन लेते हैं। इसके अलावा महात्मा गांधी नरेगा में खुलने वाले कामों और आस-पास के खेतों में मजदूरी के लिए वे अपने पति के साथ जाया करती थीं। इस दरम्यान काम पर जल्दी जाने या देर से घर आने पर दैनिक जरुरतों के लिए पानी की व्यवस्था करना दूभर हो जाता था। ऐसे में एक दिन ग्राम रोजगार सहायक श्री रमजीत सिंह की सलाह पर उन्होंने अपने घर के पीछे बाड़ी में कुआँ बनवाने का आवदेन ग्राम पंचायत में दिया। तब ग्राम पंचायत की पहल पर उनके नाम से महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत कुआँ स्वीकृत हो गया।

श्रीमती कुंवर आगे बताती हैं कि मेरे नाम से कुआँ निर्माण की स्वीकृति मेरे लिए सबसे बड़ी बात थी, क्योंकि मैंने आज से पहले किसी महिला के नाम पर कुछ बनना सुना नहीं था और यह साल 2021 में हकीकत में भी बदल गया। अब मेरे पास मेरे नाम से मेरी अपनी संपत्ति है। यह मेरी पहचान और मेरा सम्मान, दोनों है। कुआँ बनने के बाद पहली बार वे अपनी बाड़ी में सब्जी-भाजी का उत्पादन ले रही हैं, जिसमें लगभग 2 डिसमिल में लहसुन, 6 डिसमिल में टमाटर और 5 डिसमिल में आलू लगाया है। इसके अलावा वे कुएँ के पानी से बाड़ी में लाल भाजी, भांटा (बैगन) एवं मिर्च का भी उत्पादन कर रही हैं। वे बताती हैं कि अभी शुरुआती उत्पादन का उपयोग वे घर में प्रतिदिन के उपयोग में कर रही हैं। इसके बाद जैसे-जैसे बाड़ी से पर्याप्त मात्रा में साग-सब्जियाँ निकलेंगी, वे उसे स्थानीय बाजार में बेचेंगी।

सरपंच श्री अगस्ते कंवर का इस संबंध में कहना है कि पंचायत के द्वारा वन अधिकार पट्टा प्राप्त हितग्राहियों की निजी भूमि पर प्राथमिकता के आधार पर महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत अनुमेय कार्य स्वीकृत कराये जा रहे हैं। इसी प्रकिया के अंतर्गत महात्मा गांधी नरेगा से 2 लाख 79 हजार 283 रुपये की प्रशासकीय स्वीकृति से हितग्राही श्रीमती उमिन्द कुंवर की निजी भूमि में कूप निर्माण कार्य स्वीकृत कराया गया था। अप्रेल, 2021 में यह कूप बनकर तैयार हुआ, जिसमें हितग्राही के साथ-साथ गाँव के ही 2 अन्य मनरेगा जॉबकार्डधारी परिवारों को कुल मिलाकर 517 मानव दिवस रोजगार प्राप्त हुआ, जिसके लिए उन्हें 94 हजार 126 रुपये का मजदूरी भुगतान किया गया।

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एक नजरः-
कार्य का नाम- कूप निर्माण कार्य, हितग्राही का नाम- श्रीमती उमिन्द कुंवर पति श्री कलवन कुंवर,
हितग्राही का जॉब कार्ड नं.- CH-01-018-024-001/96, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2019-20
ग्राम पंचायत- सोनबचरवार, विकासखण्ड- पेण्ड्रा (गौरेला 1), जिला- गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, पूर्णता वर्ष- 2021-22
स्वीकृत राशि- 279283.00 रुपए, व्यय राशि- 226623.00 रुपए, मजदूरी भुगतान- 94126.00 रुपए,
कार्य प्रारंभ तिथि- 06.03.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 07.04.2021, वर्क कोड- 3301018024/IF/1111382746,
सृजित मानव दिवस- 517, नियोजित परिवारों की संख्या- 03,
जी.पी.एस. लोकेशन- 22°42'21.7"N 82°02'25.2"E, पिनकोड- 495119
हितग्राही श्रीमती उमिन्द कुंवर का संपर्क सूत्र- 6263674465 (श्री कलवन कुंवर-पति)
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तथ्य एवं आंकड़े- श्री रोशन सराफ, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-पेण्ड्रा, जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
1. श्री रोशन सराफ, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-पेण्ड्रा, जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
2. श्री रमजीत सिंह, ग्राम रोजगार सहायक, ग्रा.पं.- सोनबचरवार, ज.पं.-पेण्ड्रा (गौरेला 1), जिला-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
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रिपोर्टिंग- श्री रवि कुमार, सहायक परियोजना अधिकारी, डी.आर.डी.ए.-गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, छ.ग.।
लेखन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Tuesday, 8 February 2022

मनरेगा से फलीभूत हुआ ‘दूधो नहाओ – पूतो फलो’ का आशीर्वाद

मनरेगा से बने पशुशेड में पशुपालन कर दुग्ध उत्पादन को बनाया मुख्य व्यवसाय.
प्रति माह हो रही 30 से 40 हजार रुपये की आय.



स्टोरी/रायपुर/बालोद/ 8 फरवरी 2022. 'दूधो नहाओ-पूतो फलो'....62 वर्षीय श्रीमती तुलसीबाई साहू के इस आशीर्वाद के तले आज उनका 14 सदस्यीय परिवार फल-फूल रहा है। साल 2020 में जहाँ पूरी दुनिया कोरोना महामारी के दौर में लॉक-डाउन और आर्थिक तंगी से जूझ रही थी, ऐसे में श्रीमती तुलसीबाई ने समझदारी का परिचय देते हुए परिवार को एकजुट किया। इसके बाद उन्होंने अपनी निजी भूमि पर महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से बने पशु शेड में 10 मवेशियों की पालना करते हुए उनका दूध बेचकर अपने परिवार को उस कठिन समय से बाहर निकाला। आज उनके पास 42 मवेशी हो गए हैं और उनका पूरा परिवार इस व्यवसाय में लगा हुआ है, जिससे उन्हें प्रति माह 30 से 40 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। परिवार की दशा-दिशा में आये इस बदलाव को लेकर गाँव में सब उनकी तारीफ करते हैं।

महिलाओं के लिए मिसाल बनीं तुलसीबाई
बालोद जिले के गुरुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत पेरपार में श्रीमती तुलसीबाई अपने 14 सदस्यीय परिवार के साथ रहती हैं। उनके परिवार में उनके पति श्री जगन्नाथ साहू के अलावा उनके तीन बेटे और पुत्रवधुएँ एवं 6 बच्चे हैं। इतने बड़े परिवार का भरण-पोषण लगभग 3 एकड़ की खेती एवं 10 पशुओं, जिनमें से चार ही दुधारु थे, पर निर्भर था। पशुओं को रखने के लिए कोई पक्की छतयुक्त व्यवस्था नहीं थी, जिससे व्यवसायिक रुप से दुग्ध उत्पादन का कार्य दूर की कौड़ी थी। ऐसे में ग्राम पंचायत की पहल पर उनके यहाँ जून, 2020 में महात्मा गांधी नरेगा से 49 हजार 770 रुपये की लागत से पशु शेड का निर्माण हुआ।

महात्मा गांधी नरेगा से मिले संसाधन से संबल पाकर, श्रीमती तुलसीबाई ने कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों में घर को चलाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों को दूध उत्पादन को मुख्य व्यवसाय बनाकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। तब उनका प्रेरणा रुपी आशीर्वाद पाकर परिवार के सभी पुरुषों और महिलाओं ने मिलकर पशु पालन करना शुरु किया। सबकी मेहनत रंग लाई। आज श्रीमती तुलसीबाई के पशु शेड में मवेशियों की संख्या बढ़कर 42 हो गई है, जिनमें से 16 दुधारु हैं। उनसे प्रति दिन लगभग 40-50 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है, जिसे बाजार में बेचने पर महीने की लगभग 40 हजार रुपये की आमदनी हो रही है।

श्रीमती तुलसीबाई बताती हैं कि महात्मा गांधी नरेगा से बने पशु शेड में पशु पालन और दूध उत्पादन के कार्य से उन्हें जो आमदनी हुई, उससे उन्होंने 08 नये मवेशी खरीदे और दो अतिरिक्त पशु शेड का निर्माण करवाया। वे आगे बताती हैं कि कल तक वे पारंपरिक रुप से पशुपालन कर रहे थे, लेकिन आज उन्होंने इसे डेयरी व्यवसाय में बदल दिया है। डेयरी की शुरुआत में पशुओं से जो गोबर मिला, उसे राज्य सरकार की गोधन न्याय योजना के तहत बेचने से 20 हजार रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई, जिससे दो नग वर्मी कम्पोस्ट टांका बनवाया। अब उसमें गोबर से जैविक खाद बना रहे हैं और उसे खेतों में उपयोग कर रहे हैं। इससे हमारी छोटी-सी खेती-बाड़ी भी निखर रही है।
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एक नजरः-
कार्य का नाम- पशु शेड निर्माण कार्य, हितग्राही का नाम- श्रीमती तुलसी बाई पति श्री जगन्नाथ साहू,
हितग्राही का जॉब कार्ड नं.- CH-03-012-030-001/93, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत, स्वीकृत वर्ष- 2020-21
ग्राम पंचायत- पेरपार, विकासखण्ड- गुरुर, जिला- बालोद, स्वीकृत राशि- 57649.00 रुपए, व्यय राशि- 49770.00 रुपए
कार्य प्रारंभ तिथि- 15.06.2020, कार्य पूर्णता तिथि- 28.06.2020, वर्क कोड- 3303012036/IF/1111437489,
सृजित मानव दिवस- 24, नियोजित परिवारों की संख्या- 02, मजदूरी भुगतान- 4560.00 रुपए,
जी.पी.एस. लोकेशन- 22°74'23.77"N 81°48'01.23"E, पिनकोड- 491227
हितग्राही श्रीमती तुलसीबाई साहू का संपर्क सूत्र- 07771088038 (श्री कांशीराम साहू-पुत्र)
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तथ्य एवं आंकड़े-
1. श्री राजेन्द्र कश्यप, कार्यक्रम अधिकारी, ज.पं.-गुरुर, जिला-बालोद, छ.ग.।
2. श्रीमती संजुलता राजपूत, सरपंच, ग्रा.पं.- पेरपार, ज.पं.-गुरुर, जिला-बालोद, छ.ग.।
रिपोर्टिंग- श्री ओम प्रकाश साहू, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत-बालोद, जिला-बालोद, छ.ग.।
लेखन एवं संपादन- श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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Monday, 7 February 2022

मल्टी-यूटिलिटी सेंटर ने खोला स्वरोजगार का द्वार, महिलाओं ने अकुशल श्रम से व्यवसाय की ओर बढ़ाए कदम

महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से निर्मित वर्क-शेड में बना रही हैं फेन्सिंग पोल, आर्थिक स्वावलंबन के लिए बनीं प्रेरणास्रोत.


मजदूरी करने वाली महिलाएं अब खुद का व्यवसाय कर रहीं, इनके काम को देखकर गांव में बने 12 नए स्वसहायता समूह.


स्टोरी/रायपुर/कोरिया/7 फरवरी 2022. स्वरोजगार के लिए अच्छा माहौल और उपयुक्त स्थान पाकर सुदूर कोरिया जिले के आदिवासी बहुल चिरमी गांव की महिलाओं ने अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया है। महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और डी.एम.एफ. (जिला खनिज न्यास निधि) के अभिसरण से बने मल्टी-यूटिलिटी सेंटर में वहां की गंगा माई स्वसहायता समूह की 12 महिलाएं खुद का उद्यम स्थापित कर फेंसिंग पोल बनाने का काम कर रही हैं। खेतों और महात्मा गांधी नरेगा में खुले कार्यों में मजदूरी करने वाली इन महिलाओं को अकुशल श्रम से स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाते देखकर गांव की बांकी महिलाएं भी प्रेरित हो रही हैं। इनके काम शुरू करने के बाद से गांव में 12 स्वसहायता समूह गठित हो चुके हैं।

महात्मा गांधी नरेगा और डी.एम.एफ. के अभिसरण से 12 लाख 15 हजार रूपए की लागत से वर्क-शेड के रूप में तैयार मल्टी-यूटिलिटी सेंटर में चिरमी की गंगा माई स्वसहायता समूह की महिलाएं फेन्सिंग पोल बनाकर खड़गंवा विकासखण्ड के कई गांवों में आपूर्ति कर रही हैं। इनके द्वारा निर्मित 300 से अधिक पोल्स (Poles) की बिक्री अब तक की जा चुकी है। ग्राम पंचायतें इनका उपयोग गौठान और ब्लॉक-प्लांटेशन की घेराबंदी में कर रही हैं। पोल्स की बिक्री से समूह को 80 हजार रूपए मिले हैं। इन महिलाओं को तीन लाख रूपए का वर्क-ऑर्डर मिला है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित इस समूह की महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन की उड़ान को देखकर गांव में 12 नए महिला स्वसहायता समूह गठित हो गए हैं।

गंगा माई स्वसहायता समूह की सदस्य श्रीमती उर्मिला सिंह और श्रीमती रामवती महात्मा गांधी नरेगा में पंजीकृत श्रमिक हैं। खेती-किसानी, वनोपज संग्रहण और महात्मा गांधी नरेगा में मजदूरी ही उनकी आजीविका का साधन हुआ करता था। उन्होंने कुछ साल पहले गांव की अन्य महिलाओं को जोड़कर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गंगा माई स्वसहायता समूह बनाया। समूह की इन महिलाओं ने महात्मा गांधी नरेगा में कार्य से मिली मजदूरी में से कुछ रकम बचाकर समूह की गतिविधियां प्रारंभ की। इनके समूह को आजीविका मिशन से 15 हजार रूपए की आर्थिक सहायता भी मिली। इससे उत्साहित होकर इन्होंने वन-धन केन्द्र के माध्यम से वनोपज संग्रहण का काम शुरू किया। इस काम के लिए समूह को वन प्रबंधन समिति के माध्यम से बतौर कमीशन 18 हजार रूपए मिले। चिरमी में पिछले साल गौठान बनने के बाद इन महिलाओं ने वहां जैविक खाद बनाने का काम किया। इससे उन्हें साढ़े आठ हजार रूपए की अतिरिक्त कमाई हुई।

श्रीमती उर्मिला सिंह बताती हैं कि ग्राम पंचायत से उनके समूह को जून-2021 में यह मल्टी-यूटिलिटी सेंटर मिला था। लेकिन इसके तुरंत बाद खेती-किसानी का काम आ जाने से उन लोगों ने सितम्बर-2021 से फेंसिंग पोल बनाने का काम शुरू किया। आजीविका मिशन से मिले संसाधनों, वहां बने समान रखने का स्टोर और पोल्स की तराई के लिए पानी की व्यवस्था होने के बाद काम में तेजी आई। वह बताती हैं कि समूह को आसपास के ग्राम पंचायतों से अब तक करीब एक हजार पोल का ऑर्डर मिल चुका है। वे इनमें से 300 पोल्स की आपूर्ति भी कर चुके हैं।

कोरिया जिला मुख्यालय बैकुंठपुर से 28 किलोमीटर दूर चिरमी में गौठान के पास ही वर्क-शेड का निर्माण कराया गया है। इसके लिए 12 लाख 15 हजार रूपए की प्रशासकीय स्वीकृति जारी हुई थी। महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी भुगतान के लिए मिले एक लाख 54 हजार रूपए और डी.एम.एफ. से सामग्री के लिए प्राप्त दस लाख 61 हजार रूपए के अभिसरण से इसका निर्माण हुआ है। गांव में मल्टी-यूटिलिटी सेंटर के निर्माण से जहां एक ओर 39 मनरेगा श्रमिकों को 798 मानव दिवस का रोजगार मिला, वहीं स्थानीय समूह को स्वरोजगार के लिए ठौर भी मिल गया।

महात्मा गांधी नरेगा के तहत वर्ष 2020-21 में गंगा माई स्वसहायता समूह की महिलाओं के परिवार ने 612 दिनों का रोजगार प्राप्त किया था, जबकि इस वर्ष 2021-22 में उन्होंने केवल 306 दिनों का रोजगार प्राप्त किया है। यह इस बात का प्रमाण है कि ये महिलाएं अब अकुशल श्रम के स्थान पर रोजगार के स्थाई साधन अपने व्यवसाय को तरजीह दे रही हैं। कल तक खेतों और महात्मा गांधी नरेगा के कार्यों में मजदूरी ढूंढने वाली ये महिलाएं अब राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान), महात्मा गांधी नरेगा और डी.एम.एफ. से संबल और संसाधन पाकर आर्थिक स्वावलंबन के नए आयाम गढ़ रही हैं।
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एक नजरः-
कार्य का नाम- स्व सहायता समूह हेतु मल्टी यूटिलिटी सेन्टर निर्माण कार्य, क्रियान्वयन एजेंसी- ग्राम पंचायत,
ग्राम पंचायत- चिरमी, विकासखण्ड- खड़गवां, स्वीकृत राशि- 12.15 लाख रुपए, व्यय राशि- 11.95 लाख रुपए
स्वीकृत वर्ष- 2020-21, कार्य प्रारंभ तिथि- 28.01.2021, कार्य पूर्णता तिथि (भौतिक)- 24.05.2021,
वर्क कोड- 3306003015/AV/1111388920, जी.पी.एस. लोकेशन- 23°05'31.6"N 82°32'44.2"E, पिनकोड- 497449, 
परियोजना में शामिल योजनावार लागतें-
स्वीकृत राशि रुपए 12.15 लाख रुपए में महात्मा गांधी नरेगा से मजदूरी भुगतान हेतु रुपए 1 लाख 54 हजार और जिला खनिज न्यास संस्थान निधि (डी.एम.एफ.) से रुपए 10 लाख 61 हजार रुपए।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत पोल निर्माण हेतु आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था हेतु निधि।
सृजित मानव दिवस- 798, नियोजित श्रमिकों की संख्या- 39, मजदूरी भुगतान- 1,51,620.00 रुपये

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रिपोर्टिंग एवं लेखन- श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, जिला-कोरिया, छ.ग.।
पुनर्लेखन एवं संपादन-
1. श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
2. श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क संचालनालय, रापपुर, छत्तीसगढ़।
प्रूफ रिडिंग- श्री महेन्द्र मोहन कहार, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, छत्तीसगढ़।
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