Monday, 29 June 2020

पंचायत ने कायम की एक पंथ तीन काज की मिसाल

फलदार पौधरोपण से जमीन हुई अतिक्रमण से सुरक्षित, पर्यावरण हुआ हरा-भरा और पंचायत के लिए बने आय के अवसर.



एक पंथ दो काज, यानि एक कार्य से दो लाभ प्राप्त होना। यह मुहावरा तो हम सबने कभी न कभी सुना ही है,  लेकिन एक पंथ तीन काज की बात शायद ही किसी ने सुनी या देखी होगी। इसे छत्तीसगढ़ राज्य के मर्राकोना गाँव में जाकर देखा और समझा जा सकता है। मुंगेली जिले के पथरिया विकासखण्ड के इस गाँव के आश्रित ग्राम पीपरलोड़ में पंचायत ने साल 2018-19 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) के तहत फलदार पौधरोपण कराया था। इसके अंतर्गत दो हजार अमरुद के पौधे रोपे गए थे, जो आज दो साल बाद अमरुद वाटिका या बिही बाड़ी का रुप ले चुके हैं। पंचायत का यह कार्य, आज सभी के लिए एक मिसाल बन गया है।

पंचायत के द्वारा महात्मा गांधी नरेगा से किए गए इस काम से गाँव की 3.34 एकड़ सरकारी जमीन अतिक्रमण से सुरक्षित हुई ही, फलदार पौधरोपण से गाँव का पर्यावरण भी हरा-भरा हो गया है। इससे गाँव को जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मदद मिल रही है। वहीं यह, ग्राम पंचायत की आय का जरिया भी बनने जा रहा है।


ग्राम पीपरलोड़ में महात्मा गांधी नरेगा से दो साल पहले लगभग तीन एकड़ से कुछ अधिक की शासकीय भूमि में 2 हजार अमरुद के पौधों का रोपण किया गया था। इस काम में 25 ग्रामीण परिवारों को सीधे रोजगार मिला। पौधों की सुरक्षा एवं संवर्धन के लिए यहाँ पूरे क्षेत्र की तार से फेंसिंग की गई। ग्राम पंचायत ने 14वें वित्त आयोग की राशि से अभिसरण करते हुए, यहाँ नलकूप कराकर पौधों के लिए पानी की व्यवस्था भी की।




मर्राकोना पंचायत की सरपंच श्रीमती फुलेश्वरी मरकाम कहती हैं कि पंचायत के लिए गाँव की शासकीय भूमि को अतिक्रमण से बचाना सबसे बड़ी चुनौती रहती है। इसे देखते हुए ही पंचायत ने महात्मा गांधी नरेगा योजना के माध्यम से पौधरोपण कर, इसे सुरक्षित करने का फैसला लिया था। इस फैसले के तहत योजनांतर्गत 12 लाख 93 हजार रुपयों की लागत से अमरुद के पौधों का रोपण कराया गया। पौधरोपण कार्य की अवधि तीन साल है, जिसमें प्रथम वर्ष रोपण और शेष दो वर्ष संधारण कार्य शामिल है। इस कार्य से गाँव के 25 परिवारों को कुल 1134 मानव दिवस का रोजगार महात्मा गांधी नरेगा से मिला। रोपित पौधों को संवारने में ग्रामवासियों ने भी पूरा सहयोग दिया है। जनभावना के अनुरुप पंचायत ने इस पूरे पौधरोपण को महात्मा गांधी अमरुद वाटिका का नाम दिया।

सरपंच श्रीमती मरकाम आगे बताती हैं कि मुख्य मार्ग के किनारे और आवास मोहल्ला के पास लगाए गए अमरुद के पौधे अब बिही बगीचा का रुप ले चुके हैं। यह पौधरोपण, जिसे कभी कोई अमरुद वाटिका कहता है, तो कभी कोई बिही बगीचा, के साकार होने के पीछे सक्रिय जनभागीदारी का होना है। नियमित देखभाल के कारण पौधरोपण के दो साल बाद, आज सभी पौधे जीवित हैं। उन्नत किस्म के पौधे होने के कारण दूसरे साल में ही इनमें फल आने लगे हैं। यह पंचायत के लिए आय का साधन बन गया है। पंचायत यहाँ स्व-सहायता समूहों को अंतर्वर्ती फसलों के रुप में सब्जियों के उत्पादन के लिए प्रेरित करने की योजना बना रही है, जिससे गाँव की महिलाओं को स्व-रोजगार का साधन मिल जाएगा और पौधरोपण की नियमित देखभाल भी होती रहेगी।
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एक नजरः-
कार्य का नाम-  वृक्षारोपण कार्य आवास मोहल्ला के पास पीपरलोड़,
ग्रा.पं.- मर्राकोना, विकासखण्ड- पथरिया, जिला- मुंगेली, छत्तीसगढ़।
स्वीकृत राशि- 12.93 लाख, स्वीकृत वर्ष- 2018-19, कार्यावधि- तीन वर्ष।
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रिपोर्टिंग -               श्री विनायक गुप्ता, सहायक परियोजना अधिकारी, जिला पंचायत- मुंगेली, छत्तीसगढ़।
तथ्य व स्त्रोत -          श्री ऋषि कुमार उइके, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत- पथरीया, जिला-मुंगेली, छत्तीसगढ़।
लेखन व संपादन -     श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर।
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Wednesday, 24 June 2020

मछली पालन बना आमदनी का जरिया


जिला मुख्यालय कबीरधाम से लगभग 70 किमी दूर सुदूर वनांचल क्षेत्र में बोड़ला विकासखण्ड के गांव बम्हनी की निवासी श्रीमती माहेश्वरी पटले का परिवार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) अंतर्गत डबरी निर्माण से आजीविका का नया साधन पाकर आत्मनिर्भर हो गया है । 


श्रीमती माहेश्वरी पटले, बम्हनी गाँव की अन्य मनरेगा महिला श्रमिकों के भाँति एक सामान्य पंजीकृत श्रमिक है। एक दिन उन्हें जब यह मालूम हुआ कि उनकी अपनी निजी भूमि पर डबरी का निर्माण हो सकता है, तो मानो उनके लिए तरक्की की नई राह खुल गई । ग्राम पंचायत बम्हनी की ग्राम सभा में श्रीमती माहेश्वरी और उसके पति कांशीराम ने आवेदन करते हुए कहा कि उन्हें अपने खेत में डबरी का निर्माण करना है । फिर क्या था; ग्राम पंचायत ने नक्शा, खसरा सहित सभी जरूरी दस्तावेजों के आधार पर श्रीमती माहेश्वरी पटले के नाम से 1.57 लाख रूपए की लागत से डबरी निर्माण का कार्य स्वीकृत करा कर प्रारंभ करा दिया । डबरी निर्माण में 922 मानव दिवस का रोजगार सृजन हुआ, जिसमें 1.54 लाख रूपए मजदूरी पर और तीन हजार रूपए सामग्री पर खर्च हुये। डबरी निर्माण में श्रीमती माहेश्वरी, उनके पति कांशीराम एवं उनके पुत्र रवि कुमार पटले को 167 रूपए प्रति दिवस की दर से रोजगार भी मिल गया ।

डबरी निर्माण की शुरुआत, उनके आगे बढ़ने का एक कदम था । 20 मीटर बाई 20 मीटर साईज की एक अच्छी डबरी बनने से उनके लिए स्व-रोजगार के द्वार खुल गये। डबरी निर्माण के बाद, श्री कांशीराम और उसके पुत्र रवि ने सरपंच श्री डाखन सिंह चौधरी के साथ मछली पालन विभाग से संपर्क किया। यहाँ उन्हें अभिसरण के तहत आजीविका संवर्धन के लिए मछली पालन का विशेष प्रशिक्षण, जाल, एवं दवाईयाँ निःशुल्क मिल गई। वहीं विभाग ने दो हजार रूपए के रियायत दर पर छः किलो मछली बीज भी उन्हें उपलब्ध करा दिया। बस फिर क्या था, श्रीमती माहेश्वरी के पूरे परिवार ने दिलो-जान से डबरी में मछलीपालन का कार्य शुरु कर दिया। मछलियों के बीज जैसे ही बड़े हुये, श्री कांशीराम और उनके पुत्र रवि ने प्रत्येक सप्ताह मछलियाँ बाजार में 120 से 140 रुपये प्रति किलो की दर से बेचना शुरू कर दिया। पहले सप्ताह में ही लगभग 8,400 रूपए की आमदनी हो गई। मछली के व्यवसाय से उन्हें प्रत्येक सप्ताह अच्छी आमदनी होने लगी। मछलीपालन विभाग से प्राप्त मार्गदर्शन के आधार पर, उन्होंने अपने घर से कुछ रूपए लगाकर इस डबरी को और बड़ा तथा गहरा कर दिया, ताकि मछलीपालन बेहतर तरीके से हो सके और बड़ी साईज की मछलियाँ प्राप्त हो सके। आज साल 2020-21 में योजनांतर्गत बनी डबरी और उसमें हो रहे मछलीपालन को 3 साल हो चुके हैं और वे मछली पालन से अच्छी आमदनी कमा रहे तथा अपनी जरूरतों को पूरी कर रहे हैं।

गाँव के सरपंच श्री डाखन सिंह चौधरी, श्रीमती माहेश्वरी की निजी भूमि में निर्मित डबरी के बारे में बताते हैं कि ‘‘हमारे गांव से 4 से 5 कि.मी. दूर समनापुर और रेंगखार गाँव में साप्ताहिक बाजार बैठता है । श्री कांशीराम और उनके बेटे, वहाँ मछली बेचने के लिए अपनी दुकान लगाते हैं। उनके द्वारा मनरेगा से बनी इस डबरी में किया जा रहा मछली पालन, आज गाँव में सभी के लिए नाजिर बन गया है ।’’

हितग्राही श्रीमती माहेश्वरी अपना अनुभव बताती हैं कि ‘‘डबरी बनाकर, मछली पालन करना ही हमने सोच रखा था। पंचायत के माध्यम से हमको महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत रोजगार और परिसम्पत्ति के जरिये स्व-रोजगार, दोनों मिल गया। एक बड़ी डबरी मेरे यहाँ बन गई। इसमें रोहू, कतला, मृगल एवं बी ग्रेड जैसी मछलियों का पालन कर, उन्हें पास के बाजार में बेच रहे हैं। सीजन में अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है।’’

श्रीमती माहेश्वरी के पति श्री कांशीराम कहते हैं कि ‘‘मैं और मेरा बेटा रवि तथा घर के अन्य सदस्य मिलकर, डबरी से मछली पकड़ते हैं। डबरी निर्माण के बाद से हमको बहुत फायदा हो रहा है, क्योंकि पहले हम रोजी-मजदूरी करके अपना खर्च चलाते थे, लेकिन अब एक मछलीपालक किसान बनकर लाभ कमा रहे हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से हमको डबरी के रूप में जो स्व-रोजगार का साधन मिला है, उससे हमारी आजीविका बेहतर हो गई है। सालभर में मछलीपालन से लगभग 18 से 20 हजार रुपयों की कमाई हो जाती है।’’


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माह- जून2020
रिपोर्टिंग एवं लेखन   -              श्री विनित दास, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत- कबीरधाम, छत्तीसगढ़।
तथ्य व स्त्रोत            -               श्री बाबूलाल मेहरा, कार्यक्रम अधिकारी, जनपद पंचायत-बोड़ला, जिला-कबीरधाम, छत्तीसगढ़।
संपादन                    -               श्री संदीप सिंह चैधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़।
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Monday, 22 June 2020

पंचायत ने रखी मनरेगा अभिसरण से हरियाली और खुशहाली की नींव (लॉकडाउन विशेष)

मिश्रित फलदार पौधरोपण से लगभग 3 एकड़ शासकीय भूमि हुई अतिक्रमण से सुरक्षित

इंटरक्रॉपिंग कर सब्जी उत्पादन से स्व सहायता समूहों की महिलाओं ने खड़ी की आत्मनिर्भरता की इमारत

लॉकडाउन में बेची एक लाख रुपये से अधिक की सब्जियाँ

देश में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ पंचायतों ने अभूतपूर्व प्रयास करते हुए ग्रामीण विकास की दिशा में मील के पत्थर स्थापित किए हैं। ऐसा ही एक उदाहरण, धमतरी जिला मुख्यालय से महज 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत पोटियाडीह में देखने को मिलता है। जहाँ पंचायत ने साल 2019-20 में महात्मा गांधी नरेगा से पौधरोपण कर हरियाली और खुशहाली की जो नींव रखी थी, वहाँ आज गाँव के स्व सहायता समूहों की महिलाओं ने सब्जी उत्पादन कर आत्मनिर्भरता की इमारत खड़ी कर ली है। पंचायत के इस प्रयास से गाँव की लगभग 3 एकड़ की शासकीय भूमि अतिक्रमण से सुरक्षित हो गई है। यहाँ महात्मा गांधी नरेगा और गौण खनिज मद के अभिसरण से हुए पौधरोपण के बाद, रिक्त स्थानों में पंचायत की पहल पर तीन स्वसहायता समूहों की महिलाएँ सब्जियों का उत्पादन कर रही हैं। पिछले छः महिनों की अवधि, जिसमें वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण लागू देशव्यापी लॉकडाउन भी शामिल है, में समूह की महिलाओं ने एक लाख रुपये से अधिक की सब्जियाँ बेचकर आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम आगे बढ़ा दिया है।  

जिला एवं विकासखण्ड धमतरी की ग्राम पंचायत पोटियाडीह में पंचायत के इस प्रयास के बारे में बताते हुए सरपंच श्री खम्हन लाल ध्रुव कहते हैं कि, धमतरी जिला मुख्यालय के नजदीक होने के कारण ग्राम पंचायत के समक्ष गाँव की शासकीय भूमि को अतिक्रमण से बचाना सबसे बड़ी चुनौती थी और इस चुनौती का समाधान पंचायत को महात्मा गांधी नरेगा से मिला। साल 2019-20 में यहाँ लगभग 3 एकड़ की शासकीय भूमि पर 8 लाख 84 हजार रुपयों की लागत से मिश्रित फलदार पौधरोपण कराया गया। पंचायत को यह राशि महात्मा गांधी नरेगा और गौण खनिज मद के तालमेल यानि अभिसरण से प्राप्त हुई थी। इस राशि में महात्मा गांधी नरेगा से 3 लाख 82 हजार रुपये और गौण खनिज मद से 4 लाख 47 हजार रुपये व्यय किए गए।
सरपंच श्री ध्रुव ने आगे बताया कि शासकीय भूमि को बचाने और गाँव में हरियाली लाने के दृष्टिकोण से कराया गया यह कार्य शुरुआत से ही गाँव के लिए अत्यंत लाभकारी रहा है। यहाँ हुये पौधरोपण और दो डबरियों के निर्माण से गाँव के 54 परिवारों को कुल 1630 मानव दिवस का रोजगार महात्मा गांधी नरेगा से मिला था। वहीं अब गाँव के शाकम्भरी स्व सहायता समूह, लक्ष्मी महिला कमांडो स्वसहायता समूह और नवजागृति स्वसहायता समूह की महिलाएँ यहाँ पौधरोपण के बीच रिक्त स्थानों में सब्जी उत्पादन का कार्य कर रही हैं। पंचायत की इस पहल से जहाँ स्व सहायता समूह की महिलाओं को स्वरोजगार के लिए संसाधन मिला है, वहीं रोपित किये गये पौधों की सुरक्षा भी हो रही है।

योजनाओं के अभिसरण से हुए पौधरोपण पर विस्तार से जानकारी देते हुये ग्राम रोजगार सहायक श्री मुकेश कुमार सिन्हा बताते हैं कि यहाँ महात्मा गांधी नरेगा से आम, कटहल, मुनगा, आँवला, नींबू, केला, जामुन, सीताफल, बेर और पपीता मिलाकर 10 प्रजाति के कुल 375 पौधों का रोपण किया गया है। यह कार्य महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत कुल 68 जॉबकार्डधारी श्रमिकों के द्वारा किया गया था, जिसमें 25 महिलाएँ और 43 पुरुष श्रमिक शामिल थे। रोजगार प्राप्त महिला श्रमिकों में शाकम्भरी स्वसहायता समूह की सदस्य श्रीमती प्रमिला पटेल भी शामिल हैं, जिन्हें वित्तीय वर्षः 2019-20 में 29 दिनों का रोजगार मिला था। वहीं गौण खनिज मद से यहाँ पौधरोपण की सुरक्षा एवं सरंक्षण के लिए फेंसिंग पोल व तार, बोर व पम्प, पाइप लाईन विस्तार, गेट निर्माण, नाडेप, लेबलिंग सहित अन्य कार्य कराये गये हैं।

पोटियाडीह के इस वृक्षारोपण कार्यस्थल में स्व सहायता समूह की सदस्यों के द्वारा सब्जी उत्पादन से संबंधित की जा रही गतिविधियों से अवगत कराते हुए शाकम्भरी स्वसहायता समूह की सचिव श्रीमती प्रमिला पटेल कहती हैं कि, पंचायत से तीन स्व सहायता समूहों को यह भूमि स्वरोजगार के लिए मिली है। हम सभी यहाँ जैविक विधि से सब्जी उत्पादन और विक्रय का कार्य कर रहे हैं। लॉकडाउन समय को मिलाकर पिछले छः महिनों में हमने यहाँ से लगभग 5 क्विंटल लौकी, 4 क्विंटल कद्दू, 4 क्विंटल चेच भाजी, 3 क्विंटल अमारी भाजी, 1.50 क्विंटल कांदा भाजी, 2 क्विंटल बरबट्टी, 2 क्विंटल भिण्डी, 4 क्विंटल जरी, 1 क्विंटल करमत्ता भाजी, 2 क्विंटल गलका, 0.80 क्विंटल करेला, 1.20 क्विंटल कुंदरु, 1 क्विंटल लाल भाजी और 3 क्विंटल बैंगन का उत्पादन लिया है। इस प्रकार लगभग 34.50 क्विंटल सब्जी को बेचकर समूह ने एक लाख रुपए से अधिक आय प्राप्त की है।

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन अवधि में समूह की गतिविधि के बारे में लक्ष्मी महिला कमांडो स्व सहायता समूह की सदस्य श्रीमती संतोषी साहू बताती हैं कि समूह के सदस्यों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए और मास्क पहनकर सब्जियों को बेचा है। जैविक विधि से सब्जी उत्पादन के कारण आस-पास के मार्केट में हमारी सब्जियों की काफी डिमांड है। समूह की महिलाएँ सब्जी उत्पादन के साथ-साथ गौठान में पशुओं के लिए यहाँ नेपियर घास भी उगा रही हैं।

इस प्रकार ग्राम पंचायत पोटियाडीह में जहाँ स्व सहायता समूहों की महिलाएँ पंचायत के सहयोग से आर्थिक उन्नति की ओर बढ़ रही हैं, वहीं महात्मा गांधी नरेगा अभिसरण से हुआ यह फलदार पौधरोपण पंचायत के लिए भी भविष्य में आय प्रदान करने वाली परिसम्पत्ति बन गया है।
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एक नजरः-            कार्य का नाम – ऑक्सीजोन मिश्रित वृक्षारोपण कार्य, स्वीकृत राशि – रुपये 8.84 लाख
                           स्वीकृत वर्ष – 2019-20, रोपित पौधों की संख्या – 375, सृजित मानव दिवस – 1630               
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माह- जून, 2020
तथ्य संकलन -         श्री मुकेश कुमार साहू, ग्राम रोजगार सहायक, ग्राम पंचायत-पोटियाडीह, विकासखण्ड- धमतरी,  
                                जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़।
रिपोर्टिंग -                श्री धरम सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा, जिला पंचायत-धमतरी, छ.ग.।
लेखन एवं संपादन - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन,
                                 नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।

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Thursday, 11 June 2020

डबरी बनी नूतन के विश्वास का आधार

काँकेर जिले के निवासी श्री नूतन दर्रो पेशे से आज किसान हैं और उन्हें विश्वास है कि पिछले साल की भाँति इस साल भी उनकी खरीफ की फसल को अनियमित वर्षा से नुकसान नहीं होगा। खेतों में सूखे की दरारें नहीं अपितु हरी-भरी धान की फसल दिखाई देगी। उनके इस विश्वास का आधार बनी है, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) से बनी डबरी। इस डबरी की बदौलत श्री नूतन ने वित्तीय वर्ष 2019-20 में धान और काले चने की अच्छी पैदावार ली थी। अब डबरी में मछलीपालन कर, लॉकडाउन के कारण पैदा हुई आर्थिक मंदी में भी मुनाफा कमा रहे हैं।

भानुप्रतापपुर विकासखण्ड की ग्राम पंचायत-चिचगाँव के कृषक श्री नूतन, अपने जीवन में आये इस बदलाव के बारे में बताते हैं कि पिछले तीन-चार सालों से बारिश के मौसम में अनियमित वर्षा हो रही है। बारिश में बीच-बीच में सूखे का एक लंबा अंतराल आ जाता था, जिससे धान के खेत पानी की कमी के कारण सूखने लगते और उनमें दरारें साफ-साफ नजर आने लगतीं। हालात तो यहाँ तक खराब हो गये थे कि सूखे के बाद जब पानी गिरता तो फिर से खेतों की बुआई करनी पड़ती। इससे खेती-किसानी को बहुत नुकसान हो रहा था। इस नुकसान से मैं बहुत परेशान रहने लगा था।

 श्री नूतन की इस परेशानी को समझते हुए, ग्राम पंचायत ने उनकी बहुत मदद की । उनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से ग्राम पंचायत ने डबरी का निर्माण करवाया। इसमें उनके परिवार को 112 दिनों की 19 हजार 264 रुपये मजदूरी भी प्राप्त हुई। डबरी बनने के बाद एकत्र हुये वर्षाजल का उपयोग श्री नूतन ने अनियमित वर्षा के दौरान किया और अपनी धान एवं काले चने की फसल को बचाया। खरीफ की फसल लेने के बाद उन्होंने डबरी में जून, 2018 से मछलीपालन शुरु किया। अब तक वे मछलियों को बेचकर लगभग 50 हजार रुपये कमा चुके हैं। लॉकडाउन की अवधि में उन्होंने 20 हजार रुपये की मछलियाँ बेची हैं। डबरी बनने के बाद हुई आय से श्री नूतन ने सबसे पहले अपनी 20 हजार रुपये की उधारी को चुकाया और शेष बचे पैसे का उपयोग बच्चों की शिक्षा और खेती-बाड़ी में किया।

ग्राम रोजगार सहायक श्री उपेन्द्र शोरी नूतन के खेत में निर्मित डबरी के बारे में कहते हैं कि इनके खेत में महात्मा गांधी नरेगा से साल 2018-19 में राशि 2 लाख 94 हजार रुपयों की लागत से डबरी का निर्माण करवाया गया था। डबरी बनने के बाद से नूतन में एक गजब का आत्मविश्वास दिखाई देता है। वे अब अपने खेती-किसानी और मछलीपालन के काम में लगे रहते हैं।

जल संग्रहण का साधन मिलने के बाद, हर साल खेत से यूँ ही बह जाने वाला वर्षाजल, अब डबरी के जरिये नूतन और नूतन जैसे किसानों के जीवन को खुशियों से भिगा रहा है।

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माह- जून, 2020
रिपोर्टिंग व लेखन             - श्री ऋषि जैन, शिकायत निवारण अधिकारी, जिला पंचायत-काँकेर, छ.ग.। 
पुनर्लेखन व सम्पादन         - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
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Wednesday, 10 June 2020

हौसलों की उड़ान कभी नाकामियाब नहीं होती

मनरेगा से बनी डबरी से लाख रुपये की धान बेचकर, अब लॉकडाउन में मछलीपालन से कमाया लाभ.


हौसलों की उड़ान कभी नाकामियाब नहीं होती और मुश्किलें उन्हें कमजोर नहीं, मजबूत बना देती हैं। कोरिया जिले के खड़गवाँ विकासखण्ड के सुदूर गाँव पेण्ड्री के निवासी श्री रामसिंह ने इसे अपने आत्मविश्वास और महात्मा गांधी नरेगा से मिली डबरी के दम पर साबित कर दिखाया है। बारिश में खेती-बाड़ी कर, सालभर मजदूरी पर निर्भर रहने वाले श्री रामसिंह आज अपने खेत में महात्मा गांधी नरेगा से बनी डबरी में मछलीपालन में व्यस्त हैं। उनके लिए मानों लॉकडाउन जैसी कोई आर्थिक मुश्किल ही नहीं है। उन्होंने मछलीपालन कर लॉकडाउन में मछली बेचकर बारह हजार रुपये से अधिक का लाभ कमाया है। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत श्री रामसिंह के खेत में बनी डबरी ने उनकी आजीविका को मजबूती दी है। इससे उनके हौंसलों को मजबूती मिली और उन्होंने पहली बार बम्पर धान का उत्पादन लेकर, उसे सहकारी समिति को बेचकर एक लाख 20 हजार रुपयों की आय प्राप्त की।

महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित डबरी ने कोरिया जिले के वनवासी श्री रामसिंह पिता श्री पुरुषोत्तम के हौसलों को कभी कम नहीं होने दिया है। वे हमेशा अपनी आजीविका की समृद्धि के लिए कोशिशे करते रहते हैं, जिसमें यह डबरी उनकी सहायक बनी हुई है। छः एकड़ जोत के किसान श्री रामसिंह कहते हैं कि पहले उनकी आजीविका बारिश के भरोसे वाली खेती और मजदूरी पर ही निर्भर थी। खेती से सालभर खाने का अनाज ही मिल पाता था, बाकी जरुरतों के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी। ऐसे में एक दिन ग्राम पंचायत कार्यालय में ग्राम पंचायत विकास योजना के निर्माण के लिए बुलाई गई बैठक में महात्मा गांधी नरेगा से किसानों के आजीविका विकास के लिए डबरी निर्माण की जानकारी प्राप्त हुई। डबरी से मछलीपालन और खेती के लिए पानी के प्रबंधन की बात ने तो मानो श्री रामसिंह के बेहतर आजीविका पाने के हौसलों को पंख लगा दिये हों। उन्होंने तुरंत ही ग्राम पंचायत में अपने खेत में डबरी बनवाने का आवेदन दे दिया। ग्राम पंचायत ने डबरी निर्माण के लिए एक लाख 60 हजार रुपए मंजूर कर काम शुरु कर दिया। तीन सप्ताह तक चले इस कार्य में श्री रामसिंह के परिवार ने भी काम किया और उन्हें 14 हजार रुपये की मजदूरी प्राप्त हुई। 18 अप्रेल 2017 को उनके खेत में योजनांतर्गत डबरी बनकर तैयार हो गई।

देशव्यापी लॉकडाउन में आर्थिक मंदी के इस दौर में जहाँ लोगों के हौसलें पस्त हुए हैं। वहाँ श्री रामसिंह जैसे किसान अपने आत्मविश्वास और महात्मा गांधी नरेगा से मिले आजीविका के संसाधन के सहारे आगे बढ़ रहे हैं। महात्मा गांधी नरेगा से डबरी खुदने के बाद, पहली ही बारिश में वह पानी से लबालब भर गई। पहला साल नए संसाधन के उपयोग को समझने का रहा और दूसरे साल डबरी की मदद से धान की अच्छी पैदावार के बाद श्री रामसिंह ने गेहूँ का भी उत्पादन लिया। इसके बाद खड़गवाँ विकासखण्ड के आमाडांड से चार सौ रुपये की दर तीन किलो मछली बीज लेकर उन्होंने डबरी में मछलीपालन शुरु किया। मछलीपालन की उनकी कोशिशें सफल हुई और 12 हजार रुपये से अधिक की मछली लॉकडाउन में बेच चुके हैं। इस प्रकार रामसिंह ने साबित कर दिया है कि जो लोग अपने हौसलों को कभी कम नहीं होने देते और हमेशा कोशिश करते रहते हैं, वे कभी भी नाकामियाब नहीं होते। उन्हें सफलता जरुर हासिल होती है।
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एक नजर %&
कार्य का नाम - डबरी निर्माण (हितग्राही- श्री राम सिंह)
ग्राम पंचायत - पेण्ड्री, विकासखण्ड - खड़गवाँ, जिला - कोरिया, छत्तीसगढ़।
स्वीकृत राशि – 1.60 लाख.

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माह- जून, 2020
रिपोर्टिंग व लेखन             -           श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छ.ग.।
पुनर्लेखन व सम्पादन        -           श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
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Monday, 8 June 2020

महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने बदली जिंदगी, सीमांत किसान उत्तम अब साल भर उगा रहे हैं सब्जी

सब्जी बेचकर लॉक-डाउन में भी हर महीने कमा रहे हैं दस हजार

महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना) ग्रामीणों की जिंदगी कैसे बदल रही है, इसकी मिसाल है उत्तम साहू। धमतरी जिले के कुरूद विकासखंड के ग्राम चर्रा के सीमांत किसान उत्तम पहले मजदूरी करते थे। महात्मा गांधी नरेगा के तहत खेत में कुएं के निर्माण के बाद अब वे साल भर साग-सब्जियों की खेती करते हैं। वे सब्जी बेचकर मौजूदा लॉक-डाउन के दौर में भी हर महीने दस हजार रूपए कमा रहे हैं। कुएं के निर्माण और सब्जी की खेती शुरू करने के बाद से आर्थिक रूप से वे लगातार मजबूत होते जा रहे हैं। 

उत्तम साहू मनरेगा से अपने खेत में कुआं खुदाई के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि कुआं निर्माण के समय उनके साथ उनकी पत्नी पुनिया बाई, बेटे महेन्द्र और पुत्रवधु महेश्वरी ने भी काम किया था। उनके परिवार को मजदूरी के रुप में 26 हजार 436 रुपए मिले थे। कुएं के निर्माण में एक लाख 88 हजार रूपए की लागत आई थी। उत्तम साल भर भरे रहने वाले अपने कुएं में एक हॉर्स-पॉवर का पंप लगाकर सब्जियों की खेती कर रहे हैं। उनके खेतों में अभी चेंच भाजी, अमारी भाजी, पटवा भाजी, धनिया पत्ती, गलका, करेला, टमाटर और नींबू का उत्पादन हो रहा है। मौजूदा लॉक-डाउन में बाजार न जाकर वे गलियों में आवाज देकर सब्जी बेच रहे हैं। इससे हर महीने उन्हें दस हजार रूपए की आमदनी हो रही है। उत्तम कहते हैं - ʻमहात्मा गांधी नरेगा से बने कुएँ के कारण आज लॉक-डाउन में भी मेरी रोजी-रोटी पर लॉक नहीं लगा है।ʼ

कोविड-19 का संक्रमण रोकने लागू देशव्यापी लॉक-डाउन में मनरेगा के अंतर्गत आजीविका संवर्धन के लिए निर्मित परिसम्पत्तियों ने हितग्राहियों को आर्थिक संबल प्रदान करने के साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी गतिमान बनाए रखा है। मनरेगा के कार्यों का लाभ व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों स्तर पर मिल रहा है। जॉबकार्डधारियों की निजी भूमि पर डबरी निर्माण, निजी तालाब निर्माण, भूमि सुधार, कूप निर्माण, मुर्गी शेड, बकरी शेड, पशु शेड और मिश्रित फलदार पौधरोपण जैसे आजीविका संवर्धन के कार्य होने से उनके जीवन में तेजी से बदलाव आ रहा है।

मनरेगा से जुड़कर ग्रामीणों को जो आर्थिक संसाधन प्राप्त हुए हैं, उससे वे मौजूदा हालात में काफी राहत महसूस कर रहे हैं। लॉक-डाउन से निपटने गांव-गांव में मनरेगा से ज्यादा से ज्यादा हितग्राहीमूलक कार्य शुरू किए जा रहे हैं। इससे हितग्राहियों को लंबे समय तक फायदा देने वाले संसाधन के साथ ही स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों को सीधे रोजगार मिल रहा है। यह हितग्राही के साथ श्रमिकों को भी आर्थिक संबल दे रहा है।


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एक नजर %&
कार्य का नाम - कूप निर्माण (हितग्राही- श्री उत्तम साहू)
ग्राम पंचायत - चर्रा, विकासखण्ड - कुरुद, जिला - धमतरी, छत्तीसगढ़।
स्वीकृत राशि – 1.88 लाख.
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माह- जून, 2020
रिपोर्टिंग व लेखन             -    श्री डुमनलाल ध्रुव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-धमतरी, छ.ग.। 
पुनर्लेखन व सम्पादन प्रथम -  श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
अंतिम संपादन                 -   श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क अधिकारी, जनसंपर्क संचालनालय, छत्तीसगढ़ ।

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Saturday, 6 June 2020

महात्मा गांधी नरेगा से बनी डबरी में मछली पालन कर खम्हन ने लॉक-डाउन में भी कमाया मुनाफा

डबरी के आसपास की जमीन में उगाते हैं सब्जियां, मुश्किल समय में कई ग्रामीणों को बांटी सब्जी


महात्मा गांधी नरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) से हो रहे आजीविका संवर्धन के कार्यों ने कई परिवारों की जिंदगी बदल दी है। जीवन-यापन के साधनों को सशक्त कर इसने लोगों की आर्थिक उन्नति के द्वार खोले हैं। कोविड-19 से निपटने लागू देशव्यापी लॉक-डाउन के दौर में भी महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित संसाधनों ने हितग्राहियों की आजीविका को अप्रभावित रखा है। नए संसाधनों ने उन्हें इस काबिल भी बना दिया है कि अब विपरीत परिस्थितियों में वे दूसरों की मदद कर रहे हैं।

लॉक-डाउन में जब लोग रोजी-रोटी की चिंता में घरों में बैठे हैं, तब जांजगीर-चांपा के सीमांत किसान खम्हन लाल बरेठ अपनी डबरी से मछली निकालकर बाजारों में बेच रहे हैं। डबरी के आसपास की जमीन में उगाई गई सब्जियां उन्हें अतिरिक्त आमदनी दे रही हैं। वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण पैदा हुए विपरीत हालातों के बीच भी उनका 14 सदस्यों का परिवार आराम से गुजर-बसर कर रहा है। खम्हन लाल की इस बेफिक्री का कारण मनरेगा के तहत उनके खेत में खुदी डबरी है। इस डबरी ने मछली पालन के रूप में कमाई का अतिरिक्त साधन देने के साथ ही बरसात में धान की फसल के बाद सब्जी की खेती को भी संभव बनाया है।
जांजगीर-चांपा जिले के मालखरौदा विकासखंड के चरौदा गांव के किसान खम्हन लाल के खेत में निर्मित डबरी ने उनके जीवन की दशा और दिशा बदल दी है। मनरेगा के अंतर्गत 20 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी एवं 10 मीटर गहरी निजी डबरी ने जीवन आसान कर दिया है। इस डबरी के निर्माण के दौरान खम्हन लाल के परिवार के साथ ही अन्य ग्रामीणों को भी कुल 656 मानव दिवसों का सीधा रोजगार मिला। खम्हन लाल और उनकी पत्नी ने 38 दिन साथ काम कर 6346 रूपए की मजदूरी प्राप्त की।

खम्हन लाल बताते हैं कि डबरी निर्माण के पहले वे धान की फसल के बाद मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण करते थे। लेकिन जब से डबरी बनी है वे धान की खेती के साथ मछली पालन भी कर रहे हैं। डबरी के आसपास चारों ओर सब्जी-भाजी तथा फलों के पेड़ भी लगाए हैं। पिछले दो वर्षों से वे मछली पालन और सब्जी बेचकर सालाना करीब 50 हजार रूपए की अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं। 

खम्हन लाल के बेटे बसंत कुमार जो अभी गांव के सरपंच भी हैं, कहते हैं कि मनरेगा ने उनकी जिंदगी बदल दी है। डबरी ने उनकी आजीविका को स्थायी और सशक्त बनाया है। अभी डबरी के आसपास नमी वाली जगहों पर फल और सब्जियां उगा रहे हैं। यहां हम लोगों ने केला, पपीता, कटहल, मुनगा, अमरूद, हल्दी, मिर्च, लहसुन, तरोई, टमाटर, लौकी, मखना और बरबट्टी लगाया है। लॉक-डाउन में सब्जी की जो भी पैदावार हुई, उसे बाजार में बेचने के साथ-साथ गांव के जरूरतमंद परिवारों को भी दिया है। मुश्किल समय में लोगों की मदद कर सकें, इसका सुकुन है।


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 माह- जून, 2020

रिपोर्टिंग व लेखन             - श्री देवेन्द्र कुमार यादव, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-जाँजगीर चाम्पा, छ.ग.।
पुनर्लेखन व सम्पादन प्रथम - श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
अंतिम संपादन                 - श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क अधिकारी, जनसंपर्क संचालनालय, छत्तीसगढ़ ।
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लॉक-डाउन में भी रोज अच्छी कमाई कर रहे हैं जयसिंह


मनरेगा से बने कुएं से अब खेतों में साल भर हरियाली, अभी सब्जी की खेती से कमा रहे मुनाफा


हौसलों को अगर संसाधन मिल जाए तो सफलता का रास्ता सुगम हो जाता है। कोविड-19 के चलते लॉक-डाउन के कारण जब लोग अपनी आजीविका को लेकर चिंतित हैं, कोरिया जिले के किसान जयसिंह रोज एक से डेढ़ हजार रूपए कमा रहे हैं। इन दिनों वे साग-सब्जी की खेती कर रहे हैं और इसकी बिक्री से हर दिन उन्हें अच्छी आमदनी हो रही है। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत जयसिंह के खेत में खोदा गया कुआं विपरीत परिस्थितियों में उनकी मजबूत आजीविका का आधार बना है। कुएं की खुदाई के बाद से अब साल भर उनके खेतों में हरियाली रहती है। इस साल धान की बम्पर पैदावार के बाद अभी सब्जियों से उनके खेत लहलहा रहे हैं।

महात्मा गांधी नरेगा से निर्मित कुएं ने कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ विकासखंड के पिपरिया के करीब छह एकड़ जोत के किसान जयसिंह की खेती की दशा और दिशा बदल दी है। वे बताते हैं कि पहले उनकी कृषि ट्यूब-वेल के भरोसे थी। लेकिन पर्याप्त पानी न होने के कारण बारिश के बाद बहुत दिक्कत आती थी। गर्मी के दिनों में फसल अकसर सूख जाती थी। परेशानियों के बीच उन्होंने पंचायत में महात्मा गांधी नरेगा के तहत खेत में कुआं खोदने के लिए आवेदन दिया। ग्राम पंचायत ने कुएं के लिए एक लाख 80 हजार रूपए मंजूर कर काम शुरू कर दिया। इस कुएं के साथ आदिवासी किसान जयसिंह की जिंदगी ने भी करवट ली।

देशव्यापी लॉक-डाउन में आर्थिक मंदी के इस दौर में जयसिंह छोटे किसानों के लिए नजीर बन गए हैं। महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत आजीविका संवर्धन के लिए निर्मित कुएं ने आर्थिक समृद्धि का रास्ता खोला है। धान की अच्छी पैदावार के बाद उन्होंने पालक, लालभाजी और भिंडी लगाया। उन्हें सब्जियों की खेती से कम समय में ही 30 हजार रुपए का मुनाफा हुआ। अभी पिछले दो माह से वे औसतन 1200 रूपए की सब्जी रोज बेच रहे हैं। जयसिंह कहते हैं- 'लॉक-डाउन में भी मुझे कोई चिंता नहीं है। रोजी-रोटी के लिए अलग से कोई काम करने की जरूरत नहीं। महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं की बदौलत अब हर मौसम में मेरे खेतों में फसल और पर्याप्त आमदनी है।'

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संक्षिप्त शब्दावलीः-
कार्य का नाम- कूप निर्माण
मनरेगा/ महात्मा गांधी नरेगा- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना
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माह- जून, 2020
रिपोर्टिंग व लेखन             -           श्री रुद्र मिश्रा, सहायक प्रचार प्रसार अधिकारी, जिला पंचायत-कोरिया, छ.ग.। 
पुनर्लेखन व सम्पादन प्रथम -           श्री संदीप सिंह चौधरी, प्रचार प्रसार अधिकारी, महात्मा गांधी नरेगा राज्य कार्यालय, इंद्रावती भवन, नवा रायपुर अटल नगर, जिला-रायपुर, छत्तीसगढ़ ।
अंतिम संपादन                 -           श्री कमलेश साहू, जनसंपर्क अधिकारी, जनसंपर्क संचालनालय, छत्तीसगढ़ ।
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महात्मा गांधी नरेगा से बने कुएं ने दिखाई कर्ज मुक्ति की राह

कुएं ने धान की पैदावार तो बढ़ाई ही, आजीविका का नया जरिया भी दिया. ईंट निर्माण से तीन सालों में साढ़े तीन लाख की कमाई. स्टोरी/रायपुर/बीजापुर/...